Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:29 AM,
#21
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (8)

गतान्क से आगे........

तैयार हो जा, जलेगा थोड़ा पर मज़ा भी आएगा और अचानक मेरी आँतों में गरम पानी भर'ने लगा. वह जल भी रहा था. पहले तो मैं समझा नहीं कि क्या हो रहा है पर फिर पता चला कि प्रीतम मेरी गान्ड में मूत रहा है.

उस गरम खारे पानी का जादू ही कुच्छ और था. लग रहा था कि तप'ता अनीमा ले रहा हूँ. खारा होने की वजह से वह जल भी रहा था. गांद मरवा मरवा'कर अंदर से थोड़ी छिल गयी थी और इसीलिए जल रही थी. अप'ने चप्पल से भरे मुँह से मैं थोड कराहा पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरा लंड और तंन गया. पूरा मूत कर ही वह रुका. एक लीटर मूत ज़रूर मेरी आँतों में भर दिया था उस'ने. फिर मेरा लंड सहलाता हुआ प्रीतम बोला.

मज़ा आया मेरे यार? तेरा लंड कैसा सिर तन कर खड है देख . अब मेरी मारेगा राजा? मैने सिर हिला'कर हां कहा क्योंकि मुँह में तो चप्पल थी.

फिर अब पूरी चप्पल मुँह में देता हूँ. और फिर उसे खा जा मेरे यार. मैं जान'ता हूँ की तू कब से ये कर'ने को मारा जा रहा है पर साला शरमाता है. मैने इसी लिए यह घिसी पुरानी पतली चप्पल मँगवाई थी. बिलकुल पतली है. तुझे पहली बार खा'ने को यही अच्छी है, तकलीफ़ नहीं होगी. मैं भी कब से सोच रहा हूँ की मेरी रानी मेरी चप्पालों पर इतना मार'ती है, और उसे आज तक मैं चप्पल खिला नहीं पाया. आज ख़ाले, चप्पल खा कर फिर मेरी गान्ड मार, जैसे मारनी हो, मैं कुच्छ नहीं कहूँगा.

मैं सुन कर मचल गया. डर भी लगा. यह मेरी कब की फेंटसी थी कि मेरे यार, मेरे स्वामी प्रीतम की चप्पल खा जाउ. पर रब्बर की चप्पल खाना कोई माऊली बात नहीं है. मैं कुच्छ कहना चाह'ता था कि यह कैसे होगा पर मुँह भरा होने से बोल नहीं पाया. वह फिर बोला. मैने उसके मन

की बात भाँप ली थी. मेरा लंड अब ऐसा खड़ा था कि सूज कर फट जाएगा. उसे हल्के से दबा कर वह बोला.

पर एक शर्त है यार, चप्पल निगल'ने तक तू लंड ऐसा ही रखेगा. मस्ती में तू मन लगा'कर खाएगा यह मैं जान'ता हूँ पर एक बार अगर झड गया तो फिर नहीं खा पाएगा. इस'लिए तेरी मुश्कें बाँध कर रखूँगा जब तक तू चप्पल चबा चबा कर निगल ना ले. बोल है मंजूर? उस'की आँखों में उत्कट कामवासना धधक रही थी. जितनी आस मेरे मन में थी उतनी ही लालसा उसे मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की थी. मैं तुरंत तैयार हो गया. वैसे मुझे लग'ता है कि वह जिस मूड में था उस'में अगर मैं इनकार भी कर'ता तो वह ज़ोर ज़बरदस्ती से मुझे चप्पल खिला कर ही रहता. मेरे हां कह'ने पर वह बोला.

अब मैं लंड निकाल'ता हूँ पर तू अपनी गान्ड का छल्ला सिकोड लेना. मूत अभी भरा रह'ने दे. चप्पल मुँह में पूरी लेने पर फिर मूत निकाल देना. और एक बात, तू सोच रह होगा कि चप्पल धीरे धीरे टुकडे कर के भी खाई जा सक'ती है, पर उस'में वह मज़ा कहाँ मेरी रानी? पूरी मुँह में ठूंस कर धीरे धीरे चूस चूस कर चबा चबा कर खाएगा तो स्वर्ग में पहुँच जाएगा.

उस'ने लंड मेरे गुदा से बाहर खींचा और मैने झट गान्ड सिकोड ली. जलन भी बहुत हो रही थी पर वह जलन मेरी वासना की अग्नि को और धधका रही थी. मेरे पास प्रीतम बाथ रूम के फर्श पर बैठ गया और रेशम की रस्सी से मेरे हाथ और पैर कस कर बाँध दिए. फिर मेरा सिर उस'ने अपनी गोद में रख लिया और चप्पल का बचा हिस्सा पकड़'कर दबाता हुआ मेरे मुँहे में चप्पल ठूंस'ने लगा.

अब मुँह और खोल यार, नाटक ना कर. ढीला छोड गालों को, दो मिनिट में अंदर डाल'ता हूँ. आधी से ज़्यादा चप्पल मेरे मुँह में थी ही. उस'ने एक हाथ मेरे सिर के पीछे रखा और दूसरे हाथ में चप्पल की हील को लेकर उसे दुहरा फोल्ड कर'के कस कर दबाया. उस'के शक्तिशाली हाथों के दबाव ने जादू किया. कच्छ से पूरी चप्पल मेरे मुँह में समा गयी और मेरे होंठ उनपर बंद हो गये.

चप्पल के मुडे तुडे रब्बर के दबाव से मेरे गाल बुरी तरह से फूल गये थे और बहुत दुख रहे थे. अब मैं डर गया. मज़ा तो आ रहा था पर बहुत तकलीफ़ हो रही थी. चप्पल मेरे मुँह में ऐसी भरी थी कि जैसे गाल फाड़ देगी. मुझसे ना रहा गया और मैं मुँह खोल कर प्रीतम की चप्पल बाहर निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा.

वह मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की कितनी तैयारी से आया था यह अब मुझे मालूम हुआ. उस'ने तुरंत वह बड रब्बर का बैंड तान'कर मेरे सिर पर से डाला और बैंड को फैला'कर मेरे मुँह पर सरका दिया. रब्बर का वह चौड़ा बैंड कस कर मेरे मुँह को बंद कर'ता हुआ अपनी जगह फिट बैठ गया. एक तृप्ति की साँस लेकर वह बोला.

अब ठीक है, मुझे मालूम था कि तू पहली बार चप्पल पूरी मुँह में लेने के बाद छूट'ने की कोशिश करेगा इस'लिए मैने झन्झट ही ख़तम कर दी. अब तू कुच्छ नहीं कर सकता. जब पूरी चप्पल खा लेगा तभी च्छुटक़ारा मिलेगा. मैं पूरा असहाय था. हाथ पैर कस कर बँधे हुए थे, मुँह में चप्पल थी और रब्बर के बैंड ने मेरा मुँह ऊपर से जकड रखा था. मैं बिलकुल एक असहाय गुड्डा बन गया था.

मुझे उठा'कर उस'ने टायलेट पर बिठाया जिससे मैं गान्ड में भरा मूत निकाल सकूँ. नल से एक पाइप लगा'कर पाइप को गान्ड के थोड़ा अंदर डाल कर तेज पानी के धार से उस'ने मेरी आंतेन धोई और एक बार मुझे फिर नहलाया. फिर बदन तौलिया से पोंच्छ कर मेरा मुश्कें बँधा शरीर गुड्डे जैसा उठा'कर बाहर ले गया और पलंग पर प्यार से लिटा दिया.

अब खा आराम से राजा, तब तक मैं अप'ने इस गुड्डे से खेल'ता हूँ. मैं चप्पल खा'ने की कोशिश कर'ने लगा. उस'के लिए उसे चबाना ज़रूरी था. पर रब्बर का बैंड इस कदर मेरे मुँह को जकड़ा था कि जबड़े चला'ने में भी मुझे बड़ी मेहनत करना पड़'ती थी. दस मिनिट कोशिश कर'ने पर मैं लस्त हो गया. चप्पल का बस एक छ्होटा टुकड़ा मैं दाँतों से तोड़ पाया था. वह मेरी गान्ड चूस रहा था और उस'में उंगली कर रहा था. मुँह उठ कर बोला.

देखा मैं तुझे कितना प्यार कर'ता हूँ! मुझे पता था कि तू मेरे चप्पल का इतना दीवाना है कि दस बीस मिनिट में चबा चबा कर खा लेगा. मज़े ले लेकर तू धीरे धीरे खाए इस'लिए रब्बर के बैंड से तेरा मुँह कस दिया है मैने. अब दो तीन घंटे मज़ा कर. वे तीन घंटे मुझे हमेशा याद रहेंगे. भयानक असहनीय वासना में डूबा हुआ मैं किसी तरह उस'के पसीने और तलवों की खुशबू में सनी उस'की चप्पल खा'ने में लगा था और वह मुझसे ऐसे खेल रहा था जैसे बच्चे गुड्डे से खेलते हैं. मेरे शरीर को सहला और मसल रहा था, गान्ड पर चूंटी काट रहा था और चूतड भॉम्पू जैसे दबा रहा था.

फिर मेरी गान्ड में मुँह डाल कर चूस'ने में लग गया. बीच बीच में कस के वह काट खाता या गुदा को मुँह में लेकर चबा'ने लगता. काफ़ी देर मेरी गान्ड चूस'ने के बाद उस'ने आख़िर मेरी गान्ड में अपना लंड घुसेड और चोद'ने लगा.

घंटे भर उस'ने बिना झाडे मेरी मारी. तरह तरह के आसन आज़माए. मुझपर चढ'कर मारी, फिर मुझे गोद में बिठा कर मेरे गाल, आँखें और माथा बुरी तरह से चूमते हुए नीचे से उच्छल उच्छल कर मेरी मारी, बीच में मुझे दीवार से आना था और प्रीतम ने उनका भी खूब स्वाद लिया. मेरे पाँव अप'ने मुँह पर लगा'कर वह मेरे पाँव और चप्पलें चाट'ता रहा और आख़िर आख़िर में उन्हें मुँह में लेकर चूस'ने और चबा'ने लगा. बोला.

रानी, अब किसी दिन तेरी चप्पालों का भी स्वाद लेना पड़ेगा. लग'ता है कि मैं भी तेरी चप्पलें खा जाउ. पर किसी ख़ास दिन तक रुकना पड़ेगा! ख़ास दिन क्या था यह कुच्छ नहीं बताया. उसका हर कामकर्म मेरी वासना बढ़ा रहा था. मैं अब रो रहा था पर अति सुख से. मेरे आँसू वह चाट'ता जाता और मेरी आँखों में देख'ता जाता.

मुझे याद नहीं कितना समय बीत गया पर आख़िर मैने कोशिश कर'के उस'की चप्पल के टुकडे तोड़ लिए. टुकडे मैं मिठायी की तरह चबा'ने लगा. उन'में से रब्बर और उस'के पसीने का मिला जुला रस निकल रहा था. बिलकुल लगदा बन कर जब मैने पहला टुकड़ा निगला तब वह ऐसे गरमाया कि हचक हचक कर मेरी मार'ने लगा.

खा ली साले मेरी चप्पल? स्वाद आया भोसड़ी वाले गान्डू? मेरे राजा, अब देख मैं कितनी चप्पलें तुझे खिलाता हूँ. ऐसी मीठी मीठी गालियाँ देता हुआ वह ऐसा झाड़ा की सिसक'ने लगा. दस मिनिट तक उसका लंड अपना वीर्य मेरी आँत में उगल'ता रहा. आख़िर लस्त होकर वह बेहोश सा हो गया.

मैं अब जल्दी जल्दी चप्पल खा रहा था. टुकडे. अब आसानी से टूट रहे थे. जब आखरी टुकडे का लगदा मैने निगला तो कुच्छ देर वैसे ही पड़ा रहा. ज़बडे दुख रहे थे पर एक असीम सन्तोष मेरे अंदर था. अप'ने मुँह से अब मैने गोंगियाँ शुरू कर दिया.

प्रीतम ने रब्बर बैंड मेरे मुँह से निकाला और मेरे हाथ पैर खोल दिए. मैने जबड़े सहलाए और फिर उठ'कर बिना कुच्छ कहे प्रीतम पर टूट पड़ा. उसे वहीं फर्श पर ऑंढा पटक'कर मैं उसपर चढ गया. मंद मंद मुस्कराता हुआ वह आँखें बंद कर'के शांत पड़ा रहा मानो कह रहा हो कि जो करना हो कर ले यार.

मैने उस'की गान्ड में लंड डाला तो उस'के मुँह से एक सुख की सिस'की निकली. मेरा लंड अब इतना सूज गया था की अपनी ढीली गान्ड के बावजूद उसे मज़ा आ गया होगा. उस'के शरीर को बाँहों में भर'कर मैं घचाघाच उस'की गान्ड मार'ने लगा.

मैने आधे घंटे उस'की मारी. अपनी पूरी शक्ति से उस'के चूतडो में लंड अंदर बाहर किया. पहले मुझे लगा था कि दो मिनिट में झड जाऊँगा पर आज मेरे भाग्य में लग'ता है असीमित सुख लिखा था. इतनी देर खड़ा रह'ने की वजह से लंड जैसे झड़ना ही भूल गया था. आख़िर मैने कस कर उस'की छा'ती दबाई और चूचुक मरोड कर ऐसे धक्के लगाए कि वह भी कराह उठा. उस'की पीठ और गर्दन पर दाँत जमा'कर मैं ऐसा झाड़ा की मानो जान ही निकल गयी. बाद में जब हम वापस पलंग पर जा कर आराम कर रहे थे तब प्रीतम ने प्यार से मुझे बाँहों में भर'कर चूमते हुए कहा.

देखा रानी? चप्पल खा'ने से तेरा कैसा खड़ा हो गया? आज मुझे गान्ड मरा'ने में बहुत मज़ा आया. बस, अब देख'ता जा, मैं कैसे कैसे तुझे और चप्पलें खिलाता हूँ! आज के बाद चप्पालों की कमी नहीं होगी तुझे, बस तेरे ऊपर है कि कितनी खा सक'ता है मैने उसका चूचुक मुँह में लेकर चूसते हुए पूचछा कि और क्या है उस'के मन में चप्पालों के बारे में. वह बोला.

टाइम लगेगा तुझे तैयार कर'ने में. पर मैं चाह'ता हूँ कि धीरे धीरे तू पूरी जोड़ी मुँह में लेना सीख ले. और वे भी मोटी मोटी हाई हील वाली. तब आएगा असली मज़ा, तुझे भी और तुझे खिला'ने वालों को भी. आज की तो ज़रा सी पतली वाली थी, बच्चा भी खा ले ऐसी! मैं पड़ा पड़ा यह सोच'ता रहा कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मुँह में लेकर कैसा लगेगा! मन में गुदगुदी होने लगी. मैं कहाँ जान'ता था कि मेरे भाग्य में अब क्या क्या लिखा है!

एक महीने में प्रीतम मुझे अपनी दो जोड़ी चप्पलें खिला चुका था. मैं उनका ऐसा भक्त हो गया था कि कभी कभी अकेले में उन्हें खा'ने की कोशिश कर'ता था. एक बार पकड़ा गया तो प्रीतम ने दो करारे तमाचे लगाए. वह सच में बहुत नाराज़ हो गया था, उस'की आँखों में गुस्सा उतर आया था, उसे यह बरदाश्त नहीं हुआ कि मैं इतना कामुक कार्य, वह भी प्रीतम का मनपसंद, उस'की पीठ पीछे करूँ.

मुझे लगा कि अब वह दो चप्पलें एक साथ मुझे खिलाना शुरू कर देगा. इस कल'पना से ही कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मेरे मुँह में ठूँसी हैं, मुझे डर और उत्तेजना की अजीब अनुभूति होती थी. पर उस'ने ऐसा नहीं किया. मेरे पूच्छ'ने पर बोला कि मौके पर सब हो जाएगा. हम एक दिन बाजार जा'कर प्रीतम के लिए कुच्छ और चप्पलें खरीद लाए. उस'ने सारी मेरी पसंद से लीं. बोला

तुझे खानी हैं राजा, मज़ा भी तुझे ही लेना है, तू पसंद कर. मैने तीन जोड़ा सादे सपाट सोल वाली और तीन लेडीz स्टाइल हाई हील लिए. कुच्छ पतले पट्टे की थी और कुच्छ मोटे पट्टे की. पर थी सब महँगी वाली, एकदम नरम मुलायम रब्बर की. पैसे भी प्रीतम ने दिए जबकि मैं देना चाह'ता था. आख़िर मैं खा'ने वाला था! पर वह नहीं माना, बोला मेरी रानी को मेरी तरफ से ये तोहफा है.

प्रीतम के पैरों में उन चप्पालों की कल'पना कर'के मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ की दुकान में से निकलना मेरे लिए मुश्किल हो गया. मेरी हालत देख'कर घर वापस आने के बाद प्रीतम ने सारी चप्पलें निकाल'कर बिस्तर पर सिराहा'ने रखीं और मेरा मुँह उन'में दबा'कर मेरी गान्ड मारी. पूरे समय मैं बेतहाशा उन चप्पालों को चाट'ता और चूम'ता रहा जो अब मेरे यार के पैरों में सज'ने वाली थी और फिर मेरे पेट में जा'कर मेरी भूख मिटा'ने वाली थी. चप्पालों से सजी वह सेज मुझे सुहागरात की फूलों से सजी सेज जैसी लग रही थी.

प्रीतम का परिवार और अर्धनारी की चाह

हमारा यह संभोग अब ऐसा निखरा कि ह'में एक दूसरे से अलग रह'ने में तकलीफ़ होने लगी. हमेशा चिपटे रहते. एक माह में मेरी ऐसी हालत हो गयी कि एक दिन गान्ड मराते हुए मैने प्रीतम से कहा.

यार प्रीतम, मेरे राजा, कितना अच्च्छा होता अगर मैं लड़'की होता. तुझसे शादी कर'के जिंदगी भर तेरी सेवा करता. जनम भर तेरा लंड मेरी गान्ड में होता! वह बोला.

तो क्या हुआ, लड़'की तू अभी भी बन सक'ता है. बस छ्होरियों जैसे कपड़े पहन ले. बाल तेरे अब अच्छे बढ गये हैं, थोड़े और बढ़ा ले, एकदम चिकनी छ्हॉकरी लगेगा.

और लंड और मम्मे? मैने पूच्छा.

शुरू में नकली चूचियाँ लगा लेना, पैडेड ब्रेसियार पहन लेना. लंड तो तेरा बहुत प्यारा है मेरी जान. तूने वे शी मेल वाले फोटो देखे हैं ना? क्या चिकनी छ्हॉकरियाँ लग'ती हैं पर सब मस्त लंड वाली होती हैं. उनसे संभोग में एक साथ नर और मादा संभोग का आनंद आता है. तू वैसा बन सक'ता है चाहे तो. मेरी वैसे चूतो में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है सिवा एक चूत के. उससे मैं बहुत प्यार कर'ता हूँ. और अगर तू सच में मेरी सेवा करना चाह'ता है तो एक उपाय है. तू चाहे तो जिंदगी भर मेरे साथ चल कर रह सक'ता है, मेरी पत्नी बन'कर ना सही, मेरी भाभी बन'कर. मेरा दिल धडक'ने लगा. वह मज़ाक नहीं कर रहा था.

तेरा बड़ा भाई है क्या? उस'की शादी नहीं हुई अब तक? मैने पूच्छा. वह हंस कर बोला.

कहो तो मेरा भाई है, कहो तो मामा है और कहो तो मेरा डैडी है. और जिस चूत का मैने ज़िक्र किया, वह पता है किस'की चूत है? मेरी मा की चूत! मैं चकरा गया.

ठीक से ब'ता ना यार! मैने उससे आग्रह किया.

चल पूरी कहानी बताता हूँ. टाइम लगेगा, इस'लिए चल, सोफे पर बैठते हैं आराम से. मुझे उठा कर वा वैसे ही सोफे पर ले गया और मुझे गोद में ले कर बैठ गया. मेरे चूतडो के बीच अब भी उसका लॉडा गढ़ा हुआ था. धीरे धीरे अप'ने लंड को मेरी गान्ड में मुठियाते हुए मुझे बार बार प्यार से चूमते हुए उस'ने अपनी कहानी बताई. मस्त परिवार प्यार की कहानी थी.

प्रीतम की मा प्रभा की शादी बस नाम की हुई थी. उसका पति कभी साथ नहीं रहा. प्रभा अक्सर माय'के आ जा'ती. असल में बचपन से उस'के पिता उसे चोदा करते थे. प्रभा को उनसे चुद'ने में इतना मज़ा आता था कि वह अप'ने पति के साथ नहीं रह पा'ती थी. अप'ने बाबूजी से चुदवा वह वह मस्ती में आ जा'ती थी. जब वह सोलह साल की थी तभी अप'ने पिता से उसे बच्चा पैदा हुआ, प्रदीप. सबको उस'ने यही बताया कि उस'के पति की संतान है, असलियत बस कुच्छ ही लोगों को मालूम थी. एक अर्थ से प्रीतम प्रभा का बेटा था और दूसरे अर्थ से छोटा भाई. उस'के बाद प्रभा पति को छोड कर हमेशा को अप'ने बाबूजी के घर आ गयी.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#22
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (9)

गतान्क से आगे........

प्रदीप जब दस साल का था तब प्रभा के पिता की मौत हो गयी. प्रभा अकेली हो गयी. सेक्स की भूखी उस औरत को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. उसका ध्यान अब अप'ने बेटे पर गया. अगर उस'के पिता अपनी बेटी को चोद सकते थे तो वो अप'ने बेटे को क्यों नहीं चोद सक'ती, ऐसा उस'के दिमाग़ में आने लगा.

उसे पता चला कि बचपन से प्रीतम बहुत मतवाला था. यार दोस्तों से गान्ड मरावाता और मार'ता था. बिलकुल अपनी मा और दादा पर गया था, उन्ही का गरम चुदैल स्वाभाव उस'ने पाया था. उस'की यह गान्ड मरा'ने की आदत छुडा'ने को प्रभा ने उसे खुद ही रिझाया और अप'ने साथ संभोग करना सीखा दिया. बस, नौ दस साल की उम्र से ही प्रदीप अपनी मा को चोद'ने लगा.

प्रभा को बहुत सुख मिला पर प्रदीप की समलिंगी संभोग की आदत वह नहीं छुडा पाई. वह गे का गे ही रहा. दूसरी औरतों में उस'की रूचि बिलकुल नहीं थी. जब वह बारह साल का था तो प्रदीप से प्रभा को गर्भ रह गया. प्रीतम पैदा हुआ. तब प्रभा अठ्ठायीस साल की थी. इस हिसाब से प्रीतम प्रभा का बेटा भी था और भांजा और पोता भी. और प्रदीप प्रीतम का पिता, मामा और भाई तीनों था.

प्रीतम भी पक्का चोदू निकाला. आअठ साल की उम्र में ही प्रदीप ने उस'की गान्ड मारना शुरू कर दी. प्रदीप के महाकाय लंड से मरा कर प्रीतम की हालत खराब हो गयी. दो तीन दिन वह बिस्तर में रहा. प्रभा पहले बहुत नाराज़ हुई और उस'ने प्रदीप को खूब पीटा पर आख़िर उस'ने अपना हाथ छोड दिया क्योंकि प्रीतम को भी मज़ा आया था. वह समझ गयी की उस'के दोनों बेटे गे हैं. अप'ने खेल में उस'ने प्रीतम को भी शामिल कर लिया. वैसे वह बहुत खुश थी. दो दो जवान बेटे उसे चोदते और उस'की गान्ड मारते थे. और साथ में एक दूसरे से भी खूब संभोग करते थे.

अब प्रीतम बाईस साल का नौजवान था, प्रदीप चौंतीस का हो गया था और प्रभा पचास की. प्रदीप ने शादी कर'ने से सॉफ इनकार कर दिया था. बोला था कि किसी औरत को चोदेगा और चूसेगा तो सिर्फ़ मा को. बा'की मज़े के लिए तो उसका छोटा भाई था ही.

प्रभा बेचारी बहुत चाह'ती थी कि प्रदीप शादी कर ले. एक दिन प्रदीप मज़ाक में बोला था कि अगर कोई शी मेल या अर्ध नारी मिल जाए तो वह शादी कर लेगा. पर ऐसा नाज़ुक छ्हॉकरा मिलना चाहिए जिस'का लंड मजबूत हो और मस्त चिकनी गान्ड और चूचियाँ भी हों, भले ही नकली चूचियाँ हों. वैसे असली हों तो और अच्च्छा है. कहानी सुन कर मेरा ऐसा तंन गया था कि क्या कहूँ. प्रीतम उसे मुठियाता हुआ बोला.

अब समझा मेरी गान्ड ढीली क्यों है? प्रदीप ने मार मार कर ऐसी कर दी है. बहुत मज़ा आता है उससे मरवा'ने में. तू उसका लंड देखेगा तो घबरा जाएगा! मुझसे बहुत बड़ा है. वह आगे बोला.

और हम दोनों को भी बचपन से चप्पलें चाट'ने का बहुत शौक है. मा की चप्पलें मुँह में लेकर हम चूसाते हैं और चोदते हैं. इसीलिए मा या हम दोनों कभी पुरानी चप्पलें फेकते नहीं. चुदाई के समय पलंग पर बिखरा लेते हैं फूलों जैसे. अब तो सौ के करीब जोड़ियाँ इकठ्थी हो गयी होंगी. तुझे जो पतली वाली सबसे पहले खिलाई वह मैने ही मा से मंगाई थी. वैसे खाईं कभी नहीं यार, तुझे खिला'कर बड़ा मज़ा आया, अब देखेंगे जमे तो

मैने मचल कर उस'की गर्दन में बाँहें डालीं और उसे चूम'ने लगा. वह भी अपना मुँह खोल कर मेरी जीभ चूस'ता हुआ नीचे से ही मेरी गान्ड मार'ने लगा. झड'ने के बाद उस'ने मेरा लंड चूस डाला. इतनी मीठी उत्तेजना मुझे हुई कि मैं करीब करीब रो दिया. घंटे भर हम चुप रहे. सोते समय उससे लिपट कर मैं शरमा कर बोला.

तू सच कह रहा था कि मैं तेरी भाभी बन जाउ? पर फिर तू मुझे नहीं चोदेगा? वह मेरे बाल सहलाता हुआ बोला.

अरे मैने अपनी मा को नहीं छोडा तो तुझे क्या छोडून्गा. समझ ले तीन तीन से तुझे चुदाना पड़ेगा. मैं, प्रदीप और मा. मा है पचास साल की पर बड़ी छिनाल है. साली का मन ही नहीं भरता. मेरे और प्रदीप का संभोग देख'कर बोली कि अगर तुम लोग आपस में चोद सकते हो तो मैं भी क्यों किसी औरत को नहीं चोद सक'ती. उस'ने भी एक दो साथीनें बना लीं. अब कह'ती है कि अगर सुंदर बहू आ जाए तो क्या मज़ा आए. और अगर कोई गान्डू लड़का लड़'की के रूप में मिल जाए तो सोने में सुहागा हो जाए. कुच्छ देर रुक कर वह आगे बोला

अब समझा कुच्छ? हमारे साथ रहना है तो घर की बहू बन कर तुझे सब'की सेवा करनी होगी. पिटाई भी होगी तेरी अगर किसी की बात नहीं मानी. मैं बोला.

यार पीटोगे क्यों मुझे? मैं तो गुलाम हूँ, हर बात मानूँगा. वैसे मुझे प्रदीप से शादी की बात जम'ती है पर डर भी लग'ता है. मेरी हालत कर दोगे तीनों मिल कर. वह सीरियस होकर बोला.

हाँ, यह तो सच है. गाँव में बहू की क्या हालत होती है यह तू जान'ता है. असल में मा, मेरे और प्रदीप के मन में बड़े बुरे विक्ऱुत ख़याल आते हैं. प्रदीप भी कह रहा था कि कोई छोकरा बहू बन के आए तो सब मुराद पूरी कर लेना. मा तो क्या क्या सोच'ती है, तू सुनेगा तो घबरा जाएगा. और एक बात है. हम जैसे रखें रहना पड़ेगा, जो कहें वह करना पड़ेगा. और जो खिलाएँ वह खाना पड़ेगा. ऐसी ऐसी चीज़ें खिलाई जाएँगी कि किसीने सोचा भी नहीं होगा. पक्के गान्डू और चुदैल कुटैल लड़'के को बहुत मज़ा आएगा हमारी बहू बन'कर अपनी दुर्गति करा'ने में भी. और रही पिटायी की बात, वो तो सिर्फ़ मज़े के लिए होगी. मा और प्रदीप के दिमाग़ में बहुत दिनों से ये चल रहा है, कहते हैं कि कोई फँस जाए तो खूब पीटेन्गे और चोदेन्गे. चिक'ने छ्होरों को पीट'ने का मज़ा ही कुच्छ और है

मेरा मन डान्वाडोल हो रहा था. बहुत डर लग रहा था पर दो मस्त बड़े लंड वाले जवानों और एक अधेड चुदक्कड नारी से मिल'ने वाली तरह तरह की कामुक गंदी और विक्ऱुत यातनाओं की सिर्फ़ कल'पना से ही मैं विभोर हो रहा था. मैने प्रीतम से पूच्छा.

खा'ने की क्या बात कर रहा था यार? वह मुस्करा कर बोला.

तू ही समझ ले, कोई ज़बरदस्ती नहीं है. चप्पल तो तू खाता ही है. मूत भी पीता है. अब ऐसा और क्या है जो अप'ने शरीर से हम तीनों तुझे खिला सकते हैं? तू ठीक से सोच कर बता. तेरी परीक्षा ले रहा हूँ ऐसा समझ ले. रात भर हम'ने संभोग किया, इत'ने हम इन गंदी बातों से उतावले हो गये थे. सुबह देर से उठे. प्रीतम तैयार होकर कॉलेज को निकला. मैने मना कर दिया. बोला आज मूड नहीं है. वह मुस्कराया और चला गया.

मैं झट से तैयार हो कर बाजार गया. अपनी छा'ती और कूल्हों का नाप मैने ले लिया था. चौंतीस और छत्तीस. फेमिन में ब्रा का नाप लेने का लेख आया था, वा मैने पढ़ा था. बाजार से 34 डी डी कप साइज़ की नाइलान की पैडेड ब्रा और 36 साइज़ की पैंटी खरीदी. शाडी पेटीकोट और ब्लओज़ का कपड़ा लिया. एक दर्जी से दुग'ने पैसे देकर साम'ने ही ब्लओज़ सिलवाया. झूट मूट कहा कि बहन के लिए चाहिए. फिर हाई हील की सैंडल ली. अंत में एक लंबे बालों का विग खरीदा.

वापस आया तो बुरी तरह लंड खड़ा था. किसी तरह मूठ मार'ने से खुद को रोका और सो गया. शाम को उठ'कर अप'ने सिंगार में जुट गया. नहा कर पहले पैंटी और ब्रा पहनी. ब्रा के अंदर बहुत सारे रुमाल ठूंस लिए जिससे वह फूल जाए. फिर विग लगाया. आईने में देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ. मैं बहुत ही सेक्सी बड़े स्तनों वाली अर्धनग्न कन्या जैसा लग रहा था. बस पैंटी में तंबू बनाता मेरा लंड यह ब'ता रहा था कि मैं मर्द हूँ. उसे पेट से सटा'कर पेटीकोट पहन और नाडी से लंड पेट पर बाँध लिया.

फिर मैने साड़ी और ब्लओज़ पह'ने. साड़ी दो तीन बार उतारना और पहनना पड़ी पर आख़िर में जम गयी. अंत में सैंडल पह'ने और लिपस्टिक लगा ली. अब प्रीतम के आने का इंतजार था. बेल बजी और मैने धडकते दिल से दरवाजा खोला. प्रीतम चकरा गया कि कहीं ग़लत घर तो नहीं आ गया.

आप कौन? सुकुमार कहाँ है? मैने दरवाजा लगा लिया और उससे लिपट कर चूमते हुए बोला.

हाय सैंया, अपनी रानी को नहीं पहचाना? उस'की आँखों में वासना छलक आई.

क्या दिख'ता है यार तू सुकुमार, सॉरी, मैं कहना चाह'ता था कि क्या दिख'ती है तू माधुरी रानी, एकदम ब्यूटी क्वीन. साला प्रदीप, अब देख'ता हूँ कैसे शादी नहीं करता! कह'कर वह मुझे खींच कर पलंग पर ले गया और मुझे पटक कर मुझ पर चढ कर मुझे बेतहाशा चूम'ने लगा. जल्द ही उसका तन्नाया लंड मेरी गान्ड में था.

दो घंटे बाद जब वह रुका तो लस्त हो गया था. दो बार उस'ने मेरी गान्ड मारी थी. मुझे पूरा नंगा नहीं किया था, ब्रा और पैंटी रह'ने दिए थे. मेरा अर्धनग्न रूप उसे बहुत उत्तेजक लग रहा था. पैंटी में छेद कर'के उसीमेंसे उस'ने मेरी गान्ड मारी थी. जब उस'ने मेरी गान्ड में से लंड निकाला तो मैं उसे मुँह में लेता हुआ बोला.

अपनी रानी की प्यास नहीं बुझायेँगे क्या स्वामी? मैने कब से पानी नहीं पिया. आपका इंतजार कर'ती रही. मैं जान बूझ कर घर की बहू जैसा बोल रहा था. मेरा सिर पकड़'कर पेट पर दबाते हुए वह मेरे मुँह में मूत'ने लगा.

पेट भर कर पी मेरी जान. मैं भी दिन भर नहीं मूता. सुबह जल्दी में तुझे पिलाना भूल ही गया. मेरा लंड अब बुरी तरह से खड़ा था. प्रीतम ऑंढा लेट गया और मैं उस पर चढ'कर उस'की गान्ड मार'ने लगा. आईने में यह द्ऱुश्य बड ही कामुक दिख रहा था कि एक युव'ती एक जवान मर्द की गान्ड मार रही है. प्रीतम भी उत्तेजित होकर बोला.

मा की याद दिला दी तूने. उस'के पास भी दो तीन डिल्डो हैं. जब मूड में आ'ती है तो मेरी या प्रदीप की गान्ड मार लेती है. आज तुझसे मरवा कर ऐसा लग रहा है जैसे उसीसे मरवा रहा हूँ. रात को दो बार और उस'ने मेरी मारी. इस बार मुँह में चप्पल ठूंस कर मेरी गान्ड को उस'ने चोदा. आज मेरे मुँह पर रब्बर बैंड लगा'ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी. मैं वैसे ही उस'की चप्पल चबा चबा कर खा गया. मेरा लंड चूस कर आख़िर उस'ने मुझे झड़ाया और फिर प्यार से मेरा मूत पिया. सोने के पहले वह बड़े प्यार से बोला.

तू करीब करीब पास हो गया है यार परीक्षा में. बस एकाध और चीज़ बची है जिससे मुझे पता चल जाएगा कि तू सच में हमारी दासी बन'कर रह लेगा. मैं जान'ता था. मन ही मन बोला कि सुबह तक रुक मेरे राजा, तुझे पता चल जाएगा कि मैं तुझ से कितना प्यार कर'ता हूँ.

यार का हालुआ

सुबह हम देर से उठे. रविवार था. मेरी नींद जल्दी खुल गयी थी. पड़ा पड़ा मैं प्रीतम के नितंब सहला'ने और चूम'ने लगा. उस'की गुदा को चूमा तो वह जाग गया. वह कुच्छ देर मज़े से गान्ड चुसवाता रहा, फिर उठ कर बैठ गया. चप्पल पहन'कर जब बाथ रूम जा'ने लगा तो मैं भी साथ हो लिया. अंदर पहुँच कर वह बोला.

तू क्यों आ गयी रानी? तेरा अभी काम नहीं है. जा सो जा, मुझे टट्टी करनी है. मेरी ओर वह बड़े गौर से देख रहा था. उस'की आँखों में एक उत्तेजना थी और अपना लंड कस कर मुठिया रहा था. मैं अब भी नारी रूप में था. ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी और विग भी लगाया हुआ था. मैं उस'के साम'ने ज़मीन पर बैठ गया और झुक कर उस'के पैर चूम'ने लगा.

मेरे स्वामी, मुझे माफ़ कीजिए. मुझसे बड़ी गल'ती हुई है. पैर उठा'कर मेरे गालों को अप'ने अन्गूठे से कुरेद'ता हुआ वह बोला.

क्या हुआ रानी? मुझे तो बता. इत'ने दिन आप'के शरीर की यह अमूल्य भेंट मैने बरबाद की है. आज से नहीं कर'ने दूँगी. इसपर मेरा अधिकार है. मैं आप'के शरीर से निकली हर चीज़ खाना चाह'ती हूँ. मेरा यह कर्तव्य है. मेरे स्वामी, मेरे मुँह में टट्टी करो, मुझे खिलाओ अपनी गान्ड का माल, मेरे लिए यह सोने से ज़्यादा कीम'ती है मेरे यार. मेरी यह कामुक बातें सुन'कर प्रीतम वासना से काँप'ने लगा.

सच कह'ता है यार? देख, एक बार शुरू करेगा तो हमेशा करना पड़ेगा. फिर मैं नहीं सुनूँगा तेरी, ज़बरदस्ती किया करूँगा. हाथ पैर बाँध कर तेरे मुँह पर बैठ जाऊँगा मैने ज़मीन पर लेटते हुए कहा.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#23
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (10)

गतान्क से आगे........

हां प्रीतम राजा, मैं सच कह रहा हूँ. प्लीज़, मिटा दे मेरी भूख. तेरी गान्ड के हालूए के आगे दुनिया की कोई भी मिठायी फीकी है उसे भी अब जल्दी हो रही थी, लंड ऐसा खड़ा था कि जैसे फट जाएगा. मेरे शरीर के दोनों ओर पैर जमा कर वह नीचे बैठ और खिसक'कर निशाना जमा'ने लगा. उस'के मासल भारी भरकम चूतड अब मेरे चेहरे के ठीक ऊपर थे.

मैने अप'ने हाथों से उस'के नितंब चौड़े किए और पास से गुदा के अंदर देखा. मज़ा आ गया. अंदर ठोस टट्टी दिख रही थी. गुदा को चूम'कर मैने उस'में अपनी जीभ डाली उस हालूए का स्वाद लेने को. मेरी जीभ का छ्होर उस ठोस माल में गया और उस कसाले खटमिट्ठे स्वाद से और इस घिनौने काम की कामुक भावना से मेरा लंड लोहे के डंडे जैसा तंन गया.

राजा, मेरे स्वामी, एक एक नीवाला खिलाना, जल्दी नहीं करना, मैं स्वाद ले लेकर खाऊंगी अप'ने प्राणनाथ की टट्टी. कहते हुए मैं मुँह फाड़ कर इंतजार कर'ने लगा. प्रीतम उत्तेजना में मेरे खुले मुँह पर अपना गुदा जमा कर बैठ गया और शुरू हो गया.

ले माधुरी रानी, मज़ा कर, खा मेरी टट्टी. उस'की गान्ड का छेद खुला और एक मोटी ठोस लेंडी मेरे मुँह में उतर'ने लगी. मेरे यार की वह गरम गरम ठोस टट्टी मेरे मुँह में गयी तो मैं झड'ने को आ गया. पूरी बड़ी लेंडी मेरे मुँह में जा'ने के बाद मैने आँखों से उसे इशारा किया और प्रीतम ने गुदा सिकोड कर लेंडी मेरे मुँह में गिरा दी.

मैं मुँह बंद कर के उसे चबा कर खूब स्वाद ले लेकर खा'ने लगा. कड़वे से और कसाले स्वाद के बावजूद मेरी उस कामुक हालत में मुझे वह किसी पकवान से कम नहीं लग रही थी. जब मैने टट्टी निगल ली तो प्रीतम मेरा लंड पकड़'कर बोला.

कैसी लगी रानी, ज़रा ब'ता तो! मज़ा आया? रोज खा सकेगी? मैं होंठ चाटते हुए बोला.

मेरे राजा, अब बाथ रूम में तुम सिर्फ़ नहा'ने को आना. बा'की सब काम मेरे मुँह में ही करना. बहुत अच्च्छा लग रहा है यार, पर अभी बंद मत करो, मैं पेट भर कर खाना चाह'ती हूँ

फ़िक्र मत कर मेरी रानी, अब तो रोज तुझे पेट भर'कर खिलाऊँगा. कह'कर प्रीतम'ने ज़ोर लगा'कर अगला नीवाला अपनी गान्ड से निकाला और मेरे मुँह में डाल दिया. उस'की साँसें ज़ोर से चल रही थी, अप'ने लंड को पकड़ कर वह कस कर मुठिया रहा था. मैने हाथ बढ़ा'कर उसका हाथ थाम कर उसका हस्तमैथुन बंद किया नहीं तो साला वैसे ही झड जाता.

प्रीतम की गान्ड खाली कर'ने में दस मिनिट लग गये. बीच में एक दो बार प्रीतम अपना पूरा वजन देते हुए मेरे मुँह पर ही बैठ गया. गांद हिला हिला कर वह मेरे मुँह पर अपना गुदा रगड़ रहा था.

खा रानी, ये ले , और टट्टी खा मेरी जानेमन. मेरी रानी के लिए मेरी टट्टी हाजिर है, तुझसे मैं इतना प्यार कर'ता हूँ कि आज के बाद तेरा पेट दिन में दो बार भर दूँगा इस हालूए से वह सिसक सिसक कर हाँफटे हुए कह रहा था.

जब उस'की गान्ड खाली हो गयी तो उस'ने एक गहरी साँस ली. मैने उसका गुदा चाट चाट कर सॉफ किया और अपनी जीभ गहराई तक उस'की गान्ड में डाल कर कण कण ढूँढ कर खा लिया.

प्यास लगी है राजा, अब मूत भी पीला दे तो मेरा खाना पूरा हो जाए. मैने कहा. प्रीतम उठा और झट से उस'ने मुझे दबोच कर मेरा मुँह खोला और अपना बुरी तरह से सूजा हुआ लंड मेरे मुँह में घुसेड दिया. पूरा लॉडा मेरे गले तक उतार'ने के बाद उस'ने मेरा सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबाया और ज़मीन पर लेट कर मेरे मुँह को घचाघाच चोद'ने लगा.

मैं दम घुट'ने से गोंगिया'ने लगा. गले के अंदर वह मोटा लॉडा घुस'ने से तकलीफ़ हो रही थी पर मज़ा भी आ रहा था. प्रीतम ने परवाह नहीं की और मेरा मुँह चोद'ता रहा. झड कर पहले उसका वीर्य मेरे पेट में गया और फिर बिना रुके उस'ने मेरे मुँह में मूत कर मेरी प्यास बुझा दी.

इस दौरान मैं उस'के चूतडो को बाँहों में भर'कर उस'की गान्ड में उंगली कर रहा था. टट्टी के बाद उस'की गान्ड एकदम गीली चिकनी और गरम हो गयी थी. क्या मज़ा आएगा मेरे यार की वह टट्टी की हुई गान्ड मार'कर, मैं सोच रहा था. इस'लिए मेरे मुँहासे लंड निकाल'कर जब प्रीतम आख़िर उठ'ने लगा तो उसे मैने खींच कर फर्श पर ऑंढा पटक दिया और उस पर चढ कर अपना लंड उस'की गान्ड में उतार दिया.

प्रीतम को आश्चर्य हुआ पर वह अब बहुत अच्छे मूड में था. चुपचाप पड़ा पड़ा मरावाता रहा. मैने मन लगा कर उस'की गान्ड मारी और प्रीतम ने भी मेरा आनंद बढ़ा'ने को अप'ने चूतड उच्छाल उच्छाल कर मरवाई. आख़िर जब हम बेड रूम में गये तो मैं अपनी ब्रा, पैंटी और विग उतार'ने लगा.

रह'ने दे यार, बहुत प्यारा लग'ता है. अब घर में ऐसा ही रहा कर. आदत डाल ले. रात को प्रीतम ने मुझे कहा.

आ यार, देखेगा मेरी मा और प्रदीप की तस्वीर? मैं उच्छल पड़ा. आख़िर उस'ने मुझे अप'ने घर की बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, नहीं तो वह कभी नहीं दिखाता! मैं हमेशा की तरह गान्ड में उसका लंड लेकर उस'की गोद में बैठ था. वह वैसे ही उठ कर मुझे बाँहों में उठ'कर अपनी सूटकेस के पास आया और एक लिफ़ाफ़ा निकाल'कर वापस सोफे पर आ गया. तब तक मैं पैर उठ'कर उस'की गर्दन में बाँहें डाल'कर लटका रहा. अब गान्ड में उसका लंड ना हो तो मुझे अटपटा लग'ता था.

लिफाफे से निकाल'कर उस'ने अपनी मा और प्रदीप की फोटो दिखाई. पहली फोटो में तीनों पूरे कपड़ों में एक साथ खड़े थे. प्रदीप प्रीतम जैसा ही दिख'ता था, ज़रा और लंबा और तगड़ा था. उन'की मा को देख'कर तो मैं दीवाना हो गया. रंग सांवला था, करीब करीब काला ही था पर भरे हुए शरीर की उस नारी को देख'कर ही मन में असीम कामना जाग'ती थी. साड़ी सफेद साड़ी और चोली में उस'के भारी भरकम उरोज आँचल के नीचे से भी दिख रहे थे. बालों में कुच्छ सफेद लटे भी थी. आँखों में छिनालपन लिए वह बड़े शैतानी अंदाज से मुस्करा रही थी.

बस दो फोटो और थी. उन'में चेहरा नहीं था, पर सॉफ था कि किस'की हैं. एक में मा का सिर्फ़ जांघों और गले के बीच का नग्न भाग था. ये बड़े बड़े नारियल जैसे लट'के मम्मे और उनपर जामुन जैसे चूचुक. झाँटें ऐसी घनी कि आधा पेट उन'में धक गया था. दूसरे फोटो में मा की झांतों से भरी चूत में धंसा एक गोरा गोरा लंड था. सिर्फ़ ज़रा सा बाहर था इस'लिए लंबाई तो नहीं दिख रही थी पर मोटायी देख'कर मन सिहर उठ'ता था. किसी बच्चे की कलाई जैसा मोटा डंडा था. मेरे चेहरे पर के भाव देख'कर वह हंस'ने लगा.

मज़ा आएगा जब तेरी गान्ड में यह लंड उतरेगा. तेरा मुँह बाँधना पड़ेगा नहीं तो ऐसा चीखेगा जैसे हलाल हो रहा हो. मुझे भी बहुत दुखा था. मैं बस आठ साल का था जब प्रदीप ने मेरी मारी थी. रात भर बेहोश रहा था मैं. बोल अब भी तैयार है प्रदीप की बहू बन'ने को या डर गया? मैं डर तो गया था पर उस'की मा के सेक्सी देसी रूप और प्रदीप के लंड की कल'पना से लंड में ऐसी मीठी कसक हो रही थी कि मैं मचल उठा.

प्रीतम मेरे राजा, मैं मर भी जाऊं तो भी चलेगा! मुझे गाँव ले चल और तुम तीनों का गुलाम बना ले. दूसरे ही दिन प्रीतम ने मेरे तीन फोटो खींचे. एक पूरे कपड़ों में लड़'की के रूप में और एक सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और विग में. पैंटी के ऊपर के भाग से मेरा लंड बाहर निकल'कर दिख रहा था. तीसरे में मैं पूरा नग्न अप'ने स्वाभाविक लड़'के के रूप में था. फोटो के साथ एक चिठ्ठी लिख'कर उस'ने प्रदीप को बताया कि उस'के मन जैसी 'शी मेल' बहू मिल गयी है और उसे पसंद हो तो आगे जुगाड़ किया जाए.

अगले कुच्छ दिन मज़े में गये. हर हफ्ते दो तीन बार प्रीतम एक चप्पल मुझे खिला देता. हां उस दिन के बाद उस'ने मेरे मुँह में टट्टी नहीं की. मैने बहुत मिन्नत की पर वह अडिग रहा. बोला.

अब एकदम तू बहू बन'ने के बाद होगा सब कुच्छ. अभी से तू उसका आदी हो जाएगा तो फिर सुहाग रात में मज़ा नहीं आएगा. मैं चाह'ता हूँ कि कम से कम कुच्छ ऐसे मामलों में तू कुँवारा रहे. इसीलिए चप्पल की जोड़ी भी अब तक मैने एक साथ तेरे मुँह में नहीं ठूँसी. अब गाँव में तीनों मिल'कर तेरे साथ ये सब घिनौने कुकर्म करेंगे तब आएगा मज़ा. और एक बात है, तेरी चप्पालों की कितनी जोड़ियाँ हैं तेरे पास मैने कहा कि आधा दर्जन हैं. मुँह बना'कर वह बोला

कम पड़ेंगीं. आज ही दर्जन भर और ले आते हैं, उन्हें पहनना शुरू कर दे. उस दिन जा'कर मेरे नाप की एक दर्जन चप्पलें हम ले आए. सब पतली नाज़ुक और एकदम पतले पत्तों वाली थी. मेरी पुरानी चप्पलें उस'ने अंदर रख दीं, और बोला कि ये सब नयी चप्पलें रोज बारी बारी से पहनूं, उन्हें घिसना और मेरे पैर का स्वाद लगाना ज़रूरी है.

मैने बॉल कटाना कब का छोड दिया था. पहले ही मेरे बाल काफ़ी लंबे थे, अब करीब करीब कंधे तक आ गये थे. जल्दी भी बढाते थे इस'लिए मुझे विश्वास था कि दो तीन माह में चोटी या जूड़ा बाँध'ने लायक हो ही जाएँगे.

मैं अर्धनारी बना

दो हफ्ते बाद प्रदीप का जवाब आया. पढ कर प्रीतम मुस्करा'ने लगा, फिर थोड गंभीर हो गया. मैने धडकते दिल से पूचछा

क्या हुआ यार? प्रदीप भैया को मैं पसंद आया या नहीं?

हां और ना. कह'ता है कि बड़ा प्यारा छोकरा है. देखते ही उसका लंड खड़ा हो गया. पर एक बात पर वह अड़ा है. कह'ता है की चूचियाँ नहीं हैं लड़'के की. प्रीतम बोला.

पर ब्रा तो मैं पहनूंगा ना? और बड़ी पहन लूँगा. मैने कहा.

वह असली चूचियाँ चाह'ता है. तूने देखा है ना उन शी मेल फोटो में? वे लड़'के इंजेक्शन से और ऑपरेशन से सच मुच के मम्मे बढ़ा लेते हैं. प्रदीप चाह'ता है कि तेरी भी वैसी ही चूचियाँ हों. मैं उदास हो गया. असली चूचियाँ मैं कहाँ से लाऊँ? प्रीतम मुझे प्यार से चूम कर बोला.

तू तैयार है क्या चूचियाँ उगा'ने को? फिर मैं जुगाड़ कर'ता हूँ. एक डॉक्टर है मेरी पहचान का. वह ऐसा कर'ता है. बस दो घंटे का ऑपरेशन है. दो हफ्ते में टाँकों के निशाम भी भी गायब हो जाएँगे. फिर मज़ा ही मज़ा है. मैने पूच्छा.

पर यार, सिलिकॉन के इंजेक्शन से तो दस मिनिट में हो जाएगा. फिर ऑपरेशन की क्या ज़रूरत है?

सादे मम्मे थोड़े उगाएँगे तेरे! सच के मम्मे जिन'में दूध भी भरा जा सके. प्रीतम मुस्कराता हुआ बोला. मेरे चेहरे पर झलक आए आश्चर्य को देख'कर उस'ने समझाया.

तेरी छा'ती में चमडी के नीचे दो रब्बर की थैलियाँ भरी जाएँगी. उनका मुँह तेरे चूचुकों के छेद से जोड़ा जाएगा जिससे ऊपर से पिचकारी से उन'में दूध, बीयर, शराब कुच्छ भी भरा जा सके. फिर उन'के चारों ओर स्पंज की गद्दियाँ लगा'कर आख़िर में ऊपर से इंजेक्शन से चमडी के नीचे सिलिकॉन भर देंगे. मस्त बड़ी दुधारू भैंस जैसे थन हो जाएँगे तेरे. तेरी चूचियाँ चूस'ने में फिर बहुत मज़ा आएगा. प्रदीप की बहुत इच्च्छा है कि उस'की बाहू के ऐसे मम्मे हों. बोल, है तैयार? मुझे उलझन में पड देख'कर उस'ने समझाया.

लगा ले मेरी जान, चार पाँच साल ऐश करेंगे. फिर चाहे तो दूसरे ऑपरेशन से निकाल देंगे. तू पहले जैसा वापस हो जाएगा. मैने कल'पना की कि अपनी चूचियाँ मैं खुद मसल रहा हूँ या उन'में दूध भर'कर प्रीतम को चुसवा रहा हूँ. ऐसा लंड तन्नाया कि मैं सिसक कर प्रीतम से चिपट गया.

चल करवा दे यार आज ही, अब मुझसे नहीं रुका जाता. प्रीतम इतना खुश हुआ कि मुझे उठ'कर बाँहों में जकड'कर चूम'ने लगा. उस रात उस'ने मुझे इतना प्यार किया और हौले हौले मन लगा'कर मुझसे हर तरह की इतनी रति की कि मैं निहाल हो गया. उस'ने डॉक्टर को फ़ोन कर'के अगले ही हफ्ते का समय भी ले लिया.

ऑपरेशन आसानी से हो गया. डॉक्टर बूढा खूसट था पर था एकदम एक्स्पर्ट. उस'ने ज़रा भी नहीं पूचछा कि मैं यह क्यों कर रहा हूँ. वह यह भी समझ गया था कि प्रीतम मेरा कौन लग'ता है! उसी से उस'ने पूचछा कि कितनी बड़ी चूचियाँ बनाना है और कितनी केपेसिटी की रब्बर की थैलियाँ अंदर रखना है? प्रीतम तो तैश में बोला कि बना दो चालीस साइज़ की, मस्त एक एक लीटर की चूचियाँ. पर डॉक्टर ने समझाया कि मेरे छरहरे बदन और सीने की चमडी से वे नहीं संभालेंगे, जल्द ही लटक जाएँगे.

डॉक्टर की सलाह पर मेरे छत्तीस साइज़ के स्तन बनाए गये. अंदर पाव पाव लीटर की दो रब्बर की थैलियाँ डाली गयीं. इम्पोर्टेड थी, महँगी पर प्रीतम ने सारे पैसे दिए. लगे हाथ मेरी झाँटें बिलकुल सॉफ कर दी गयीं और एलेक्ट्रोलिसिस से उन्हें जड़ तक ख़तम कर दिया गया. मेरी टाँगें, कांखों के बाल सब जगह के बाल उड़ा दिए गये. सिर के बालों को छोड'कर अब मेरा शरीर एकदम चिकना था.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#24
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (11)

गतान्क से आगे.......

जब दूध भरोगे तो अडतीस साइज़ हो जाएगा. दो दिन में टाँके निकाल दूँगा. यह क्रीम लगा लेना, घाव भी गायब हो जाएगा दो हफ्ते में. फिर कोई कह नहीं सकेगा कि नकली चूचियाँ हैं. एक बात और. इन'में दूध एक माह बाद भर के देखना. एक बड़ी इंजेक्शन वाली सुई इस्तेमाल करना. और इन स्तनों को रोज खूब सहलाना और मसलाना. जित'ने दबाओगे, उत'ने ये खिलेंगे, अंदर का स्पंज और सिलिकॉन ठीक से जम जाएँगे और एकदम मासल त'ने स्तन बन जाएँगे. डॉक्टर ने ह'में बीदा करते हुए कहा.

उस'के एक माह बाद की बात है. ऑपरेशन के बाद हम'ने घर बदल लिया था और मैं प्रीतम की बहन बन'कर उस'के साथ रह'ता था. मैने घर के बाहर निकलना भी छोड दिया था.

मैं आईने के साम'ने नंगा खड़ा था. बस हाई हील की सैंडल पहनी थी. प्रीतम मेरे पीछे खड हो कर मेरी चूचियाँ दबा रहा था और उन'की मालिश कर रहा था. मेरे बाल अब तक कंधे के नीचे आ गये थे जिन'में मैं क्लिप लगा लेता था.

चल आज घूम'ने चलते हैं. अब बाहर भी लड़'की के रूप में घूमना तू शुरू कर दे. आदत डाल ले. वैसे गाँव में तुझे बाहर निकल'ने का मौका नहीं आएगा. पर यहाँ शहर में तो तू घूम सक'ती है माधुरी रानी. वह मुझे चूम कर बोला. अब वा मुझे माधुरी या अनुराधा कह कर बुलाता था. मेरा लंड तन कर खड था. सॉफ चिक'ने पेट और गोटियों के कारण लंड बड़ा प्यारा लग रहा था. प्रीतम ने उसे सहलाया और बोला.

इसे अब बाँध कर रखना पड़ेगा. और अब चलते समय ज़रा चूतड मटका'ने की आदत डाल ले. मैने कहा.

प्रीतम, मैं भूल जा'ती हूँ कि मैं अब लड़'की हून. इस'लिए चलते समय लड़'के जैसे चल'ने लग'ती हूँ.

मैं बताता हूँ एक उपाय. चल झुक कर खड़ी हो जा. कह'कर वह एक ककडी ले आया. अप'ने मुँह में डाल कर अप'ने थूक से उसे गीला कर'के उस'ने ककडी मेरी गान्ड में घुसेड दी और उंगली से गहरी अंदर उतार दी.

अब चल कर देख. वह हंस'कर बोला. मैं जब चला तो ककडी गान्ड के अंदर होने से और हाई हील की सैंडल के कारण मेरे चूतड खुद ब खुद लहरा उठे. कमरे के दो चक्कर लगा'कर जब मैं लौट तो प्रीतम मुझसे चिपक गया.

क्या मस्त चल'ती है तू रंडी जैसी! बाहर ना जाना होता तो अभी पटक कर तेरी मार लेता. अब कपड़े पहन और चल. वापस आ'कर तेरी चूचियों का भी टेस्ट लेना है कि इन'में कितना दूध आता है.

जब हम बाहर निकले तो मुझे बहुत अटपटा लग रहा था. डर लग रहा था कि कोई पहचान ना ले कि मैं लड़का हूँ. लंड को मैने पेट पर सटा'कर उसपर पैंटी पहन ली थी और फिर पेटीकोट का नाडा उसीपर कस कर बाँध लिया था. इस'लिए लंड तो छुप गया था पर फिर भी मैं घबरा रहा था. प्रीतम ने मेरी हौसला बँधाया.

बहुत खूबसूरत लग रही है तू माधुरी रानी. दो घंटे बाद हम लौटे तो मैं हवा में चल रहा था. मेरे असली रूप को कोई नहीं पहचान पाया था. प्रीतम के एक दो मित्र भी नहीं जिनसे मैं मिल चुका था. और मैने महसूस किया कि राह चलते नौजवान बड़ी कामुक नज़रों से मेरी ओर देखते थे. मैं कुच्छ ज़्यादा ही कमर लचका कर चल रहा था. लोग प्रीतम की ओर वे बड़ी ईर्ष्या से देखते कि क्या मस्त छोकरी पटायी है उस'ने.

जब वापस आए तो प्रीतम का भी कस कर खड़ा हो गया था. घर में आते ही उस'ने मुझे पटक कर चूमाचाटी शुरू कर दी. वह मेरी गान्ड मारना चाह'ता था पर उस'में ककडी थी. निकल'ने तक उसे सब्र नहीं था. इस'लिए उस'ने आख़िर मेरे मुँह में अपना लॉडा घुसेड कर चोद डाला.

मुझे अपना वीर्य और मूत पिला कर वह उठा तो मैं अपना गला सहलाते हुए उठ बैठा. इतनी ज़ोर से उस'ने मेरा गला चोदा था कि मुझसे बोला भी नहीं जा रहा था. ऊपर से खारे मूत से जलन भी हो रही थी. उस'की वासना शांत होने पर प्यार से मुझे गाली देते हुए वह बोला.

आज रात भर तुझे चोदून्गा. साली रंडी छिनाल. क्या हालत कर दी है तेरे रूप ने! अब गाँव में हम तीनों मिल'कर तेरे रूप को कैसे भोगते हैं, तू ही देखना. ऐसे कुचल कुचल कर मसल मसल कर तुझे चोदेन्गे की तू बिना चुद'ने के और किसी लायक नहीं रह जाएगा साले मादरचोद. अब चल, चूची में दूध भरवा ले और चुदा'ने चल उस'ने एक डिब्बा निकाला. उस'में काले रब्बर के छोटे छोटे चूचुक थे. उन्हें तान कर मुझे दिखाता हुआ बोला.

ये चूचुक औरतें ऊपर से अप'ने चूचुक पर लगा लेती हैं कि दूध छलक ना जाए. अब मैं दर्जनों ले आया हूँ, तेरे लिए काम आएँगीं.

मुझे नग्न कर'के उस'ने मेरे स्तन दबाना शुरू कर दिए. मसल मसल कर उन्हें नरम किया और मेरे चूचुक खींच कर खड़े किए. फिर उस'ने फ्रिज से दूध निकाला. उसमे शक्कर घोली और एक बड़ी सीरिंज में दूध भरा. मेरे चूचुक को दबा'कर उस'ने उस'में का छेद खोला और हौले से उसमे सीरिंज की सुई डाली. मुझे थोड़ा दर्द हुआ पर मैं सह गया. अब तो यह रोज होने वाला था. सीरिंज दबा'कर उस'ने दूध अंदर भरना शुरू किया.

मेरा स्तन फूल'ने लगा. बड़ी अजीब सी गुदगुदी मुझे हुई. कसमसा'कर मैने प्रीतम के गले में बाँहें डालीं और उसे चूम'ने लगा. प्रीतम मेरी चूची एक हाथ से पकड़'कर दूसरे से सीरिंज दबाता रहा और मेरा मुँह चूम'ता रहा.

जब सीरिंज खाली हो गयी तो फिर उस'में दूध भर'कर प्रीतम फिर शुरू हो गया. जब चूचुक में से दूध छलक'ने लगा तब उस'ने सीरिंज निकाली और एक रब्बर का चूचुक तान कर मेरे चूचुक पर पहना दिया. पीछे हट'कर उस'ने मेरी ओर देखा और बोल पड़ा.

वाह, क्या बात है, अब लग रही है असली रसीली चूची. मैने आईने में देखा कि दूध वाली चूची फूल कर दूसरी के मुकाबले दुगुनी हो गयी थी. तन कर खड़ी थी और लाल हो गयी थी. खाली चूची सेब की तरह गोल मटोल थी और भारी वाली नारियल जैसी हो गयी थी. प्रीतम ने उसे दबाया तो मेरे मुँहे से एक हल्की चीख निकल गयी. तन कर मेरा स्तन बड़ा नाज़ुक हो गया था और जारी भी दबा'ने से एकदम दुख'ता था. पर साथ ही मेरे चूचुक में बड़ी कामुक सी टीस उठ'ती थी.

मेरी दूसरी चूची में दूध भर'ने के बाद प्रीतम ने मुझसे चल'ने को कहा. जब मैं चूतड मटक कर चला तो मम्मे गुब्बारों जैसे डोल'ने और उच्छल'ने लगे. वे भरी भी थे इस'लिए मेरी छा'ती पर उनका वजन मुझे बड़ा मादक लग रहा था. मेरे मचलते स्तनों को देख'कर प्रीतम अपना लंड मुठियाते हुए बोला.

आज मज़ा आएगा अब तेरी गान्ड मार'ने में. खूब चूचियाँ मसल मसल कर तेरी मारूँगा. फिर तेरा दूध पीऊंगा और फिर मारूँगा. अब चल, पहले मुझे अपनी गान्ड की ककडी खिला.

मुझे पटक'कर उस'ने मेरे गुदा पर मुँह लगाया और चूस कर ककडी बाहर खींच ली. जैसे जैसे वा बाहर निकल'ती गयी, वह खाता गया. मुझे बड अच्छा लग रहा था. मेरी गान्ड में इतनी देर रह'ने के बाद उसपर ज़रूर मेरी गान्ड का माल लगा होगा. वह जिस तरह खा रहा था, मेरे मन में एक आशा जागी कि शायद मैं जिस तरह से उस'की टट्टी का दीवाना हो गया था, वैसा शायद मेरा यार भी आगे चल कर हो जाए!

अब तुझे भी तेरी पसंद की चीज़ खिलाता हूँ रानी. एक हफ्ते से चप्पल नहीं खिलाई तुझे, चल आज खा ले. कह कर उस'ने अपनी एक चप्पल उतारी और मेरे मुँह में ठूंस दी. आज कल मुझे चप्पल खिला'ने के लिए मेरा मुँह या हाथ पाँव बाँध'ने की ज़रूरत नहीं पड़'ती थी. मैं वैसे ही उसे मुँह में भर लेता था. चप्पल मेरे मुँह में ठूंस'ने के बाद उस'ने तुरंत दूसरी चप्पल डिब्बे से निकाली और पहन ली. उस'के एक पैर में अब नीली चप्पल थी और एक में सफेद. मुझे एक एक चप्पल खिला'ने के चक्कर में जोड़ी अक्सर नहीं जम'ती थी. मेरा ध्यान उसपर गया देख'कर वह बोला.

हां रानी, मुझे भी अटपटी लग'ता है ऐसी बेमेल चप्पल पहन कर. अब शादी के बाद तू एक साथ जोड़ी मुँह में लेना शुरू कर दे, फिर यह झन्झट ही दूर हो जाएगी. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था.

चल अब मरा'ने को आ जा, मेरी गोद में बैठ. आज मस्त दो घंटे मारूँगा तेरी. एक किताब भी लाया हूँ. साथ साथ पढाते हैं. मुझे खींच कर सोफे की ओर ले जाता हुआ वह बोला.

किताब बहुत गंदी थी. हर तरह के संभोग तो उस'में थे ही, जानवरों के साथ रति की भी कहानियाँ थी. प्रीतम गरमा'कर अप'ने चूतड उचका'कर नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ बोला.

रानी, मज़ा आता होगा पशुओं से संभोग में. मेरा बस चले तो एक कुत्ता कुतिया पाल लूँ. पर बाद में देखेंगे, अभी तो चल मुझे दूध पिला.

नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ वह बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियाँ मसल रहा था. बहुत दर्द हो रहा था पर मैं उसे सहन कर रहा था. जब मेरे स्तन लाल लाल हो गये तो उस'ने मेरे एक चूचुक का रब्बर का कवर निकाला. दबाव से उस'में से दूध की फुहार निकल'ने लगी. झुक कर उस'ने उसे मुँह में ले लिया और पीने लगा. उस'के चेहरे पर एक आसीन सन्तोष दिख रहा था. मुझे इतना अच्छा लगा कि आख़िर मैं इतना औरत तो बन ही गया हूँ कि किसी को अपनी छा'ती में से पिला सक'ता हूँ. प्रीतम के सिर को अपनी छा'ती पर दबा कर उस'के मुँह में अपनी चूची घुसेड'कर मैं प्यार से उसे दूध पिला'ने लगा.

रात भर हमारी चुदाई चली. जब हम सोए तो लस्त हो गये थे. मेरी चूचियाँ खाली होकर फिर से अप'ने सेब जैसे आकार में आ गयी थी. प्रीतम बहुत खुश था कि प्रदीप की होने वाली बहू अब पूरी तरह तैयार थी. उस'ने चिठ्ठी लिख कर मा और प्रदीप को तुरंत आने को कहा.

यहीं बुलवा लेते हैं उन दोनों को. यहाँ घर में कोर्ट के क्लर्क को बुलावा'कर तेरी शादी करा देते हैं, फिर सब मिल'कर गाँव चलेंगे. प्रदीप और मा आने तक प्रीतम ने मुझसे संभोग बंद कर दिया. चप्पल खिलाना, मूत पिलाना, सब बंद कर दिया. बोला.

अब सुहागरात की तैयारी कर रानी. नयी दुल्हन की ठीक से खातिर कर'ने को कुच्छ दिन सब का आराम करना ज़रूरी है. मैने मा और प्रदीप को भी लिख दिया है. वहाँ उन'की चुदाई भी बंद हो गयी होगी.

बहू पसंद है

जिस दिन प्रदीप और मा आने वाले थे, मैं बहुत खुश था. शरमा रहा था और डर भी रहा था कि उन्हें मैं पसंद आऊंगा या नहीं. शादी कर'के उसी दिन हम गाँव को रवाना होने वाले थे.

मैं खूब सज़ा धाज़ा. मेरे रूप को देख'कर प्रीतम बड़ी मुश्किल से अप'ने आप पर काबू रख पाया, दो मिनिट तो उस'की गुलाबी आँखें देख कर मुझे लगा था कि कहीं वह वहीं पटक कर मेरी गान्ड ना मार'ने लगे. पर किसी तरह उस'ने अप'ने आप पर काबू किया. हां मेरे साम'ने बैठ कर झुक कर खूबसूरत सैंडलों में लिपटे मेरे पैर वह चूम'ने लगा.

रानी, आज तो तू एकदम जूही जैसी लग'ती है, मा कसम अब तुझे ना चोदू तो मार जाऊँगा. ऊत'ने में बेल बजी तो किसी तरह अप'ने आप को समहाल'कर वह दरवाजा खोल'ने चला गया.

प्रदीप और मा आए तो मैं सहमा हुआ सोफे पर बैठा था. प्रदीप को देखते ही मेरा दिल धडक'ने लगा. आख़िर मेरा होने वाला पति था. अच्च्छा तगड ऊँचा पूरा जवान था. दिख'ने में बिलकुल प्रीतम जैसा था. उस'के पैंट के साम'ने के फूले हिस्से को देख'कर ही मैं समझ गया कि उसका लंड कैसा होगा. मा साड़ी साड़ी पह'ने हुए थी. फोटो में तो उन'की मादक'ता का ज़रा भी अंदाज नहीं लगा था, उनका भरा पूरा शरीर, आँचल के नीचे से दिख'ती भारी भरकम छातिया और पहाड सी मोटी मतवाली गान्ड मुझे मंत्रमुग्ध कर गयी. मुझे देख'कर उन दोनों की भी आँखें चमक उठीं. मा मुझे बाँहों में लेकर चूमते हुए बोलीं.

सच में परी जैसी बहू है, प्रीतम तूने जादू कर दिया. पर ह'में झाँसा तो नहीं दे रहा? मुझे तो यह सच मुच की लड़'की लग'ती है.

जवाब में प्रीतम ने हंस'कर उनका हाथ मेरे पेट पर रख'कर साड़ी के नीचे से मेरे तन कर खड़े पेट से सटे लंड पर रखा तब उन्हें तसल्ली हुई. प्रदीप ने भी टटोल कर देखा कि मैं सच में लड़का हूँ तो उस'की आँखों में खुमारी भर आई. वह शायद मुझे वहीं बाँहों में भर लेता पर मा ने उसे डाँट दिया. बोलीं शादी के बाद गाँव में ही वह मुझे भोग पाएगा, यहाँ नहीं. मा ने पूचछा

बहू का दहेज कहाँ है? बिना दहेज के शादी नहीं होगी! मैं चकरा कर देख'ने लगा. चेहरे के भाव देख'कर प्रीतम हंस पड़ा.

अरे घबरा मत, मा मज़ाक कर रही है, मुझे मालूम है ये किस दहेज की बात कर रही है. मा, प्रदीप, ये देख तेरा दहेज, लाखों का है, बल्कि ज़्यादा का! उस'ने एक बैग खोल कर दिखाया. उस'में मेरी सारी रब्बर की चप्पलें थी. देख'कर प्रदीप की आँखें चमक उठीं. एक जोड़ी उठा'कर वह सूंघ'ने लगा. मा ने भी एक ली और चाट कर देखी.

बहुत स्वादिष्ट है, सच में बड़ी प्यारी बहू है, प्रदीप अब रख दे नहीं तो यहीं जुट जाएगा प्रदीप ने बेमन से चप्पल वापस रखी. मुझे कुच्छ समझ में नहीं आ रहा था पर कुच्छ कुच्छ अंदाज़ा होने लगा था. लंड खड़ा हो गया था.

कुच्छ देर में कोर्ट का क्लर्क आया. प्रीतम ने उसे काफ़ी पैसे दिए थे. बिना कुच्छ पूच्छे उस'ने हमारी शादी रचाई और हमारे दस्तख़त लिए. मैने अनुराधा के नाम पर साइन किया. फिर प्रदीप ने मुझे मंगलसूत्र पहनाया और मैने झुक कर सब के पैर च्छुए. हम बाहर खाना खा'ने गये पर मुझे कुच्छ नहीं दिया गया. मा बोलीं.

अब तेरी नकेल मेरे हाथ में है बहू. खाना अब सीधे गाँव चल'कर. नहीं तो तुझे रास्ते में तकलीफ़ होगी. मैं समझा नहीं पर चुप रहा. प्रदीप तो मुझे ऐसे घूर रहा था कि कच्चा खा जाएगा.

बहू ससुराल चली

घर आ'कर सब'ने सामान बाँधना शुरू हुआ. प्रीतम के दो सूटकेस थे. मा और प्रदीप बस एक बैग लाए थे. मेरा कोई सामान नहीं था क्योंकि अब मेरे पूरा'ने कपड़े मेरे किसी काम के नहीं थे. बस वो चप्पालों का बैग था जो प्रदीप ने संभाल'कर उठाया हुआ था. अंत में प्रीतम बोला.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#25
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (12)

गतान्क से आगे.......

मैने जो बड़ा होल्डाल मँगाया था वह लाए कि नहीं प्रदीप? और टिकट भी देख लो, तीन बर्थ हैं या नहीं प्रदीप ने अप'ने बैग से एक बड़ा होल्डाल निकाला. मेरी ओर देख कर वह मुस्करा रहा था. मैं तीन बर्थ की बात सुन'कर कुच्छ चकरा गया था. मेरे लिए बर्थ नहीं है क्या? प्रदीप मेरे मन की बात ताड़ गया. मुझे खींच'कर ज़मीन पर लिटाते हुए बोला.

तुझे भी ले जाएँगे माधुरी रानी, घबरा मत, और बड़े मस्त तरीके से ले जाएँगे. तू भी याद करेगी कि शादी के बाद घर कैसे आई थी. मुझे ज़मीन पर पटक'कर वह बोला.

मा, तू चप्पल लाई है ना? चल बहू को अपना आशीर्वाद दे दे. फिर मैं अपनी पत्नी को पैक कर'ता हूँ. मा ने एक बड़ी पुरानी घिसी हुई पतली रब्बर की चप्पल और एक काली ब्रेसियार निकाली. चप्पल इतनी प्यारी लग रही थी कि ऐसा लग'ता था कि अभी खा जाउ.

मुँह खोल बहू, तेरे लिए ही लाई हूँ. शादी के बाद बहू के मुँह में शक्कर या मिठायी देती है सास, मैं उससे भी स्वादिष्ट, अपनी चप्पल तेरे मुँह में दे रही हूँ. गाँव में तो ढेरों हैं, तू अब कभी भूखी नहीं रहेगी हमारे यहाँ. मा ने मुझे पुचकार कर कहा.

मेरे मुँह में बड़े प्यार से उन्हों'ने अपनी चप्पल घुसाई. ब्रेसियार क्यों निकाली थी यह मेरी समझ में जल्दी ही आ गया जब मेरा मुँह बंद कर'के उसपर वह ब्रा कस कर बाँध दी गयी.

अब प्रदीप ने मेरे पैर पकड़े और उन्हें फोल्ड कर'के मेरे सिर पर दबा दिए. मेरे हाथ पीठ पीछे बाँध दिए गये और फिर पैर हाथों से बाँध दिए गये. मेरी अब मुर्गे जैसी मुश्कें बाँध गयी थी. मेरी गठरी सी बना दी गयी थी और हाथ पैरों और कमर में बड दर्द भी हो रहा था. मैने किसी तरह वह यातना बर्दाश्त की और चुप रहा. मा ने प्रदीप को कुच्छ इशारा किया, प्रदीप ने मेरी ओर देखा और मेरे हाथ और पैर और खींचे और और कस कर बाँध दिए.

मेरे शरीर में अब बहुत दर्द हो रहा था. मैं छटपटा कर अब हिल'ने लगा और बँधे मुँहे से गोंगिया'ने लगा. मेरी आँखों से जब दर्द के आँसू निकल आए तब मा बोलीं.

शाबास बेटे, अब आया है मज़ा. नहीं तो बहू ऐसे ही सूखे सूखे घर चल'ती तो क्या मज़ा आता. अब रास्ते भर दर्द से बिलबिला'ती चलेगी. और मुँह भी अच्छा बँधा है, चूम तक नहीं निकली बेचारी की नहीं तो रास्ते में चिल्ला'ने लग'ती तो आफ़त आ जा'ती. अब पता चलेगा इसे की आगे इस'के नसीब में क्या है. चल अब, बाँध दे इस'की गठरी.

मेरे दोहरे होकर बँधे शरीर को होल्डाल के एक सिरे में फ्लैप उठा'कर उस'के अंदर ठूंस गया और फिर मुझे बिस्तर जैसा गोल गोल लुढ़ाका'कर मेरे शरीर का बिस्तर बना'कर होल्डाल में बाँध दिया गया. अब मुझे कुच्छ दिख नहीं रहा था, सिर्फ़ सुनाई देता था. मैं अब घबरा गया था और रोने लगा था. अब मुझे कुच्छ अंदाज़ा हो रहा था कि मेरी कैसी दुर्गत बनेगी. एक दो बार लगा भी कि कहाँ फँस गया.

पर मेरा लंड पागल सा हो गया था. इतना जम के खड़ा था और उस'में इतनी मीठी कसक हो रहा थी कि जहाँ एक ओर दर्द से मैं बिलख'ता वहीं दूसरी ओर मेरा यह मन होता कि कितना अच्च्छा होता कि इस समय प्रदीप का लंड मेरी गान्ड में होता और कोई मेरी चूचियाँ बेरहमी से मसलता!

मुझे उठा'कर एक सामान जैसा ले जाया गया. रास्ते भर मेरी हालत खराब रही. मुँह की चप्पल मैं चबा चबा कर खा'ने की कोशिश कर'ता रहा जिससे मुँह को कुच्छ आराम मिले पर मा'ने अपनी ब्रेसियार मेरे मुँह पर ऐसी कसी थी कि जबड़ा ज़रा भी नहीं हिल'ता था. इस'लिए मैं सिर्फ़ उन'की चप्पल चूस सक'ता था, खा नहीं सक'ता था. गाँव का सफ़र बारह घंटे का था. शुरू से ही मेरी हालत खराब हो गयी. स्टेशन पर जब गाड़ी लेट थी तो मा मेरे ऊपर ही बैठ गयीं.

ःओल्डाल कब काम में आएगा? उन'के अस्सी किलो के वजन से मेरी कमर टूट गयी. दम घुट'ने लगा. मैं छटपटा'ने लगा. हिल'ने डुल'ने लगा तो मा को बहुत मज़ा आया. फुसफुसा कर प्रदीप और प्रीतम के कान में कुच्छ बोलीं. शायद यही कह रही होंगी की बहू छटपट रही है. मुझे और तंग कर'ने को वे कुच्छ देर बाद बोलीं.

बेटे तुम लोग भी बैठ जाओ. बड़ा मुलायम मस्त बिस्तर है, किसी लड़'की की गोद जैसा. तुम लोग भी बैठो. और जल्द ही मैं तीन तीन शरीरों के वजन के नीचे दब गया. एक जना मेरे सिर पर बैठ था, एक पीठ पर और एक नितंबों पर. मैं कसमसा'कर चीख'ने की कोशिश कर'ता हुआ बेहोश हो गया.

रास्ते भर मैं आधी बेहोशी में रहा. मुझे ट्रेन में सीट के बाजू में रखा गया था. एक बार प्रदीप जब ऊपर की बर्थ पर चढ'ने के लिए सीट पर चढ़ा तो मा बोलीं.

अरे होल्डाल पर पैर रख'कर चढ बेटे. फिर धीमे स्वर में बोलीं.

बहू को तेरे पैर लग'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. तेरे पैरों के नीचे ही रहना है उसे. और प्रदीप होल्डाल पर खड़ा हो गया. जान बूझ कर पाँच मिनिट खड़ा रहा और मुझे रोन्द'ता रहा. मेरे मुलायम शरीर को दबा'ने में उसे बड मज़ा आ रहा होगा. मैं बिलबिला उठा पर मेरा लंड यह सोच कर ख़ड़ा हो गया कि यह हट्टाकट्ट नौजवान जो मुझे रौंद रहा है, मेरा पति है और कल ही मेरी चुदाई करेगा.

सास का आशीर्वाद और सुहागरात की तैयारी

आख़िर हम घर पहुँचे. शाम हो गयी थी. मुझे जब होल्डाल से निकाला गया तो मैं अधमरा सा हो गया था. कमर सीधी ही नहीं हो रही थी. बहुत भूख और प्यास भी लगी थी. मा की चप्पल मेरे मुँह में ही फँसी हुई थी क्योंकि उसे खा'ने के लिए मैं चबा नहीं पाया था.

मेरे हाथ पैर और मुँह खोल कर मा ने मेरे मुँह से चप्पल निकाली. मेरी आँखों में झाँक'कर देखा उस'में मुझे होने वाली पीड़ा और डर से छलकते आँसू देखे तो मुस्कराईं और बोलीं.

बहुत आनंद में है पर भूखी है बेचारी. और मेरी चप्पल भी अच्छी लगी पर खा नहीं पाई, है ना बेटी? फिकर मत कर, यहाँ अब इतनी चप्पलें खिलाएँगे तुझे कि तू खा नहीं पाएगी! प्रीतम और प्रदीप बेटे, अब तुम लोग सो लो. मैं तब तक बेहू को सुहाग रात के लिए तैयार कर'ती हूँ प्रीतम बोला.

मा, माधुरी का लंड चूस लेना. बीस घंटे से खड़ा है. एक बार झड़ना ज़रूरी है नहीं तो बीमार हो जाएगी बेचारी.

हां मैं समझ'ती हूँ. उस'के वीर्य पर मेरा भी तो पहला हक है सास के नाते, आ बेटी कह'कर मा मुझे बाथ रूम ले गयी. मैं लंगड़ाता उन'के पीछे हो लिया. कमर अब भी दुख रही थी. बाथ रूम के पास ही दो संडास थे. एक के दरवाजे पर मेरी तस्वीर बनी थी. दूसरे पर कुच्छ नहीं था. मेरी आँखों में उभर आए प्रश्न को देख'कर मा बोलीं

आ तुझे दिखाऊँ दो संदासों का क्या मतलब है! तू अब यह संडास इस्तेमाल करेगी जिसपर तेरी तस्वीर बनी है. नया बनवाया है, एकदम आलीशाम. सिर्फ़ तेरे लिए है, और कोई इस'में नहीं जाएगा. अब तक हम दूसरा वाला इस्तेमाल करते थे. अब उस'में ताला लगा देंगे. समझ रही है ना मैं क्या कह रही हूँ? अब इस घर में तेरे सिवा किसी को टायलेट जा'ने की ज़रूरत नहीं होगी.

मैं आँखें फाड़ कर मा की ओर देख'ने लगा. मन में डर और वासना का सागर सा उमड'ने लगा. मा बोलीं.

अब तू ही हम तीनों का चल'ता फिर'ता प्यारा संडास है बहू. ह'में अब सीमेंट के टायलेट की क्या ज़रूरत है? आज तेरी सुहाग रात से पहले तुझसे ही उस'में ताला लगवा'ने की रसम कर लेंगे.

मेरा सिर चकरा'ने लगा. वैसे मुझे इन सब बातों का अंदाज़ा प्रीतम ने दे दिया था पर अब जब समय आ गया था, मेरा डर बढ गया था. बहुत वासना भी जाग'ने लगी थी कि अब शुरू हुई मेरी असली कामुक गंदी विकृत जिंदगी.

फिर मा मुझे बाथ रूम ले गयीं. मुझे नंगा कर'के खुद भी अप'ने कपड़े निकाल'ने लगीं. मैं जैसे जैसे उन'के प'के गदराए शरीर को देख'ता गया, मेरा पहले ही खड लंड और खड़ा होता गया. एकदम चिक'ने संगमरमर जैसा उनका सांवला तराशा शरीर या'ने जैसे खजाना था. चूचियाँ ये बड़ी बड़ी पपीते सी थी और गान्ड तो मानो पहाड की दो चट्टानों जैसी थी. झाँटें ऐसी लंबी की चाहो तो चोटी बाँध लो. कमर पर मुलायम मास का टायर लटक आया था. जांघें किसी पहलवान जैसी मोटी मोटी और मजबूत थी.

उन्हों'ने मुझे नहलाया और खुद भी नहाईं. मेरा शरीर खूब दबा कर देखा और चूचियाँ मसल मसल कर तसल्ली की कि ठीक से सध गयी हैं या नहीं.

आच्छे स्तन हैं तेरे, प्रदीप को दबा'ने में बहुत मज़ा आएगा. बोल'ती हुई वे मेरे शरीर का ऐसे मुआयना कर रही थी जैसे कसाई काट'ने के पहले बकरी की कर'ता है.

बहुत प्यारी है बहू. ह'में बहुत सुख देगी. चल अब तेरा लंड चूस लूँ. और ज़्यादा खड़ा रहा तो टूट कर गिर जाएगा बेचारा. कह'कर उन्हों'ने मुझे दीवार से सटा'कर खड किया और मेरे साम'ने बैठ कर मेरा लंड एक मिनिट में चूस डाला. इतनी देर के बाद जो सुख मुझे मिला उससे मैं गश खा'कर करीब करीब गिर पड़ा.

मा ने मुझे छोडा नहीं बल्कि नीचे बैठ कर मेरा सिर अपनी जांघों के बीच खींच'ती हुई बोलीं.

अब ज़रा अपनी सास की बुर भी चख ले बहू. तेरा पति और देवर तो दीवा'ने हैं ही इसके, अब तू भी आदत डाल ले. मैने उस गीली तप'ती बुर में मुँह डाला तो खुशी से रोने को आ गया. क्या स्वाद था! इतना गाढा शहद बह रहा था जैसे अंदर बोतल रखी हो. चूत भी ऐसी बड़ी थी कि मेरी ठुड्डी उस'में आराम से घुस रही थी. बुर नहीं भोसड़ा था! मैने मन भर कर उस रस को पिया. मा दो बार झडी और मुझे शाबासी भी देती गयीं.

अच्च्छा चूस'ती है बेटी, मैं और सिखा दूँगी कैसे अपनी सास की बुर रानी की पूजा की जाते है. अब तक मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा था. बहुत मीठी कसक हो रही थी. मा ने मुझे ज़मीन पर लिटाया और बोलीं.

आ अब कुच्छ खा ले, कल से तेरे लिए पेट में खाना लेकर घूम रही हूँ. अब बाद में भी तुझे बहुत कुच्छ खा'ने पीने को मिलेगा पर प्रदीप का लंड सह'ने के लिए कुच्छ तो जान आए तेरे शरीर में. मा मेरे सिर के दोनों ओर पैर जमा कर बैठ गयीं और बोलीं.

मुँह खोल बहू रानी, यह सास की तरफ से पहला नीवाला है तुझे. मैं सकते में था. लंड फनफना रहा था. चुपचाप मुँह खोल कर मैं लेट गया. मा ने ज़ोर लगाया और एक बड़ी मोटी लेंडी मेरे मुँह में हॅग दी. फिर झुक कर देख'ने लगीं. उन'की आँखों में असीम वासना थी.

इस मौके का इंतजार मैं बरसों से कर रही हूँ. कब सुंदर बहू आए और मैं अपनी गान्ड से उसे टट्टी खिलाऊं! खाले बिटिया. पेट भर के खा ले.

जब मैने मुँह बंद कर के उन'की टट्टी चबा चबा कर खाना शुरू की तो मा खुशी से सिसक उठीं. मेरी बालाएँ लेते हुए मेरे सिर को पकड़'कर मेरे मुँह में प्यार से हॅग'ने लगीं. अपनी पूरी टट्टी मुझे खिला'ने में मा को दस मिनिट लग गये. उस पहाड जैसी गान्ड में एक किलो से कम क्या टट्टी होगी!

जब मैने बाद में प्यार से जीभ डाल कर उन'की गान्ड अंदर से सॉफ की तो वे बहुत खुश हुईं.

अच्च्छा सीखी सिखाई है बहू. मैने तो चाबुक तैयार रखा था कि ज़रूरत पड़े तो मार मार कर सिखाऊंगी. पर लग'ता है ज़रूरत नहीं पडेगी. जैसी मुझे चाहिए थी वैसी ही छिनाल रंडी बहू मुझे मिली है.

उस'के बाद मेरे मुँह में वे लोटा भर मूती और तभी उठीं जब मैं पूरा पी गया. मेरी भूख और प्यास पूरी मिट गयी थी. पेट गले तक भर गया था. मैं मानो जन्नत में था. . लंड ऐसे खड़ा हो गया था जैसे बैठा ही ना हो. उसे देख कर मा ने मेरी बालाएँ लीं.

बहुत अच्छी बहू ढूंढी है प्रीतम ने. हमेशा मस्त रह'ती है! तुझे चोद'ने में मेरे बेटे को बहुत मज़ा आएगा. चल अब तुझे सुहागरात के लिए तैयार करूँ.

बड़ा मन लगा'कर उन्हों'ने मेरा सिंगार किया. ब्रा पहना'ने के पहले मेरी चूचियों में मा ने प्रीतम की सहाय'ता से बादाम का दूध भरा. पाव पाव लीटर की मेरी चूचियों में डेढ डेढ पाव दूध कस कर भर दिया और ऊपर से रबड के चूचुक लगा'कर मेरे चूचुक भींच दिए कि दूध छलक ना जाए. फिर मा ने रबड की काली ब्रा मुझे पहनाई.

ख़ास तेरे लिए मँगवाई है. अब तेरी चूचियाँ हमेशा दूध से भरी रहेंगी इस'लिए उन्हें कस कर और उठा कर रखना पड़ेगा. और रबड की यह ब्रा लग'ती भी बड़ी प्यारी है, एकदम मुलायम है. देख इनमे तेरे मम्मे कस'ने के बाद कैसे ये दोनों झपट'कर तेरी चूचियाँ मसलते हैं!

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#26
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (13)

गतान्क से आगे.......

वो ब्रा बिलकुल छोटी और तंग थी और मेरे बदन पर चढ़ा'ने के लिए उसे खूब तानाना पड़ा. ब्रा ने मेरी चूचियाँ और छा'ती कस'कर जकड लिए. मेरे मम्मे तन के फूले थे इस'लिए रबड से जकड'ने के बाद थोड़े दुख रहे थे पर रबड के मुलायम स्पर्श से उन'में अजीब सी सुखद सनसनी हो रही थी. उस'के बाद काले रबड की पैंटी पहना'कर मेरा खड़ा लंड उस'में दबा दिया गया. पैंटी पीछे से गुदा पर खुली थी. मा ने समझाया.

तू अधनन्गी इतनी प्यारी लग'ती है कि तेरी गान्ड मार'ने के लिए यह पैंटी नहीं उतारना पड़े इस'लिए ऐसी है. अब तेरे लंड का काम होगा तभी यह उतरेगी. प्रीतम मुझसे चिपकना चाह'ता था पर मा ने उसे डाँट दिया.

चल दूर हो, तेरी भाभी है, आज पहले प्रदीप चोदेगा मन भर कर, तू मेरे साथ आ जा दूसरे पलंग पर. मेरी गान्ड मारना और प्रदीप के करतब देखना. फिर बहू पर करम करेंगे.

मुझे आज उन्हों'ने पूरा सजाया था. हाथों में चूड़ियाँ, कान में बूंदे, पाँव में पायल और बनारसी साड़ी चोली पहनाई. मेरे बाल कंधे तक लंबे हो ही गये थे. उस'में माजी ने फूल गूँध कर चोटी बाँध दी.

अरे प्रदीप अब ज़रा चप्पल ले आ बहू की, खुद ही पसंद कर ले मा ने आवाज़ लगाई. प्रदीप एक गुलाबी चप्पल ले आया. मेरी वही प्यारी घिसी हुई चप्पल थी, प्रदीप ने अचूक चुना ली थी. उस'ने प्यार से मेरे पैर में पहनाई. फिर झुक कर उसे चूम लिया. मेरा रोम रोम रोमाच से सिहर उठा, क्या प्रदीप को भी मेरी चप्पालों से वही करना था जो मुझे उन'की चप्पालों से ये करवा'ने वाले थे!

अरे अभी नहीं, चुदाई तो शुरू होने दे, फिर लेना बहू का प्रसाद मा ने उसे झटकारा.

चलो अब खा लो कुच्छ. फिर बेड रूम में चलते हैं. मा बोलीं. प्रदीप और प्रीतम के साथ वे रसोई में आईं. मुझे परोस'ने को कहा गया.

चल आज से ही काम पर लग जा. ह'में परोस. खाना तो तू खा चुकी है. आगे प्रदीप भी प्यार से खिलाएगा. कल से धीरे धीरे घर का काम भी सिखा दूँगी. घर का पूरा काम करना और हम सब की सेवा करना यही तेरा काम है अब. मा ने कहा.

खाना खाते खाते सब मुझे नोंच रहे थे. जब भी मैं किसी को परोस'ने जाता, कोई मेरी चूची दबा देता या चूतड या जाँघ पर चूंटी काट लेता. धीरे नहीं, ज़ोर से कि मैं तिलमिला जाउ. एक बार रोटी ला'ने में मुझे देर हुई तो प्रदीप ने मज़ाक में ज़ोर से मेरी चूची मसल दी.

जल्दी जानेमन, नखरा नहीं चलेगा. ठस्स भरी होने से पहले ही मेरी चूचियाँ दुख रही थी. अब मैं कसमसा गया और रोने को आ गया.

रोती क्यों है बहू, तेरा पति है, तेरे जवान शरीर को मसलेगा ही. और पिटायी भी करेगा! हमारे यहाँ बहुओं की कस कर पिटायी होती है. इस'लिए जो भी तुझसे कहा जाए, तुरंत किया कर. हम सब भी तेरे शरीर को मन चाहे वैसे भोगेंगे. हमारा हक है. और जब प्रदीप का लॉडा लेगी तो क्या करेगी? मर ही जाएगी! बड़ी नाज़ुक बहू है रे प्रदीप. मा बोलीं.

ऐसी ही चाहिए थी मा, सही है. ज़रा रोएगी धोएगी तो चोद'ने में मज़ा आएगा. मैं तो मा रुला रुला कर चोदून्गा इसको! प्रदीप अपना लंड सहलाता हुआ बोला. खाना खा'ने के बाद मा बोलीं.

चलो अब बहू से एक रस्म भी करा लेना. ले बहू, दूसरे टायलेट में ताला लगा दे. और मुझे एक बड़ा ताला उन्हों'ने दिया. मैने संडास में ताला लगा'कर चाबी उन्हें दे दी.

अब सब'के पैर पड़ और उन्हें बोल कि अब से तेरा मुँह ही इन सब का टायलेट है, उसीमें सब किया करें. मा के कह'ने पर मैने बारी बारी से सब'के पैर च्छुए और बोला.

मेरे प्राणनाथ, मेरे देवराजी, सासूजी, आज से आप'के शरीर से निकली हर चीज़ पर मेरा हक है. मेरे मुँह को आप टायलेट जैसा इस्तेमाल कीजिए.

सब'के पैरों में रबड की चप्पलें थी. उन्हें देख'कर मुझे अजीब सी मीठी सनसनी हुई. मा वही पतली हरी चप्पल पहनी हुई थी जो मेरे मुँह में ठूंस कर मुझे गाँव लाया गया था. प्रीतम के पैर में मैने ही खरीदी हुई नीली चप्पल थी. और मेरे पति के पैरों में सफेद क्रीम रंग की चौड़े पत्तों वाली चप्पलें थी, मोटी और हाई हील स्टाइल की. मुझे रोमाच हो आया. सोच'ने लगा कि सबसे पहले कौन इन्हें मेरे मुँह में देगा? शायद प्रदीप! मैने पैर छूते समय झुक'कर उन सब चप्पालों को छुआ और फिर चूम लिया. माजी मेरी इस हरकत पर खुश होकर बोलीं.

बड़ी प्यारी है मेरी बहू. घबरा मत बेटी, ये सब चप्पलें तेरे लिए हैं. हम तो तुझे खूब खिलाएँगे, बस तू खा'ती जा फटाफट. प्रदीप, चलो अब देर ना करो. बहू को उठा कर ले चलो. वो बेचारी कब से तडप रही है तुझसे चुद'ने को! मैं सिहर उठा. मेरी सुहागरात शुरू होने वाली थी!

सुहागरात, बहू का प्रसाद और पति का आशीर्वाद

प्रदीप मुझे उठा कर चूम'ता हुआ पलंग पर ले गया. मा और प्रीतम भी पीछे थे. मुझे पलंग पर पटक कर प्रदीप मुझपर चढ गया और ज़ोर ज़ोर से मुझे चूम'ने लगा. उस'के हाथ मेरी चूचियाँ और नितंब दबा रहे थे. मुझे बहुत अच्च्छा लगा. आख़िर वह मेरा पति था और अब मेरे शरीर को भोग'ने वाला था. आँखें बंद कर'के मैं उस'की वासना भरी हरकतों का आनंद लेने लगा.

बहू को नंगा करो प्रदीप. बहुत लाड हो गया. अपना काम शुरू करो. और अप'ने अप'ने कपड़े भी उतारो माजी ने हुक्म दिया.

सब फटाफट नंगे हो गये. प्रीतम को तो मैने बहुत बार देखा था. माजी का नग्न शरीर भी आज नहाते समय देख लिया था. पर प्रदीप को मैं पहली बार देख रहा था. उस'के हट्टे कट्टे पहलवान जैसे शरीर को देख'कर मैं वासना से सिहर उठा. क्या तराशा हुआ चिकना मास पेशियों से भरा हुआ बदन था! चूतड़ बड़े बड़े और गठे हुए थे. मैं सोच'ने लगा कि अप'ने पति की गान्ड मार'ने को मिले तो मैं तो खुशी से पागल हो जाऊँगा.

पर प्रदीप का लंड देख'कर मैं घबरा गया. मन में कामना के साथ एक भयानक डर की भावना मन में भर गयी. प्रदीप का लंड आदमी का नहीं, घोड़े का लंड लग'ता था एक फुट नहीं तो कम से कम दस ग्याराह इंच लंबा और ढाई-तीन इंच मोटा होगा!. सुपाड़ा तो पाव भर के आलू जैसा फूला हुआ था! और नसें ऐसी की जैसे पहलवान के हाथ पर होती हैं! घबरा कर मैं थरथर काँप'ने लगा.

मेरी घबराहट देख कर सब हंस'ने लगे. प्रीतम तुरंत मेरी ओर बढ़ा. उस'की आँखों में भी मेरे प्रति प्यार और वासना उमड आई थी.

अरे घबरा गयी माधुरी भाभी? मैने पहले ही कहा था कि प्रदीप का लंड झेलना आसान काम नहीं है. आ तेरे कपड़े उतार दू! भैया, कहो तो मैं चोद लूँ भाभी को?

तू नहीं रे छोटे, तूने बहुत मज़ा लिया है. अब प्रदीप पहले इसे चोदेगा. फिर हम चखेंगे बहू का स्वाद. प्रदीप बेटे, इस'के सब कपड़े निकाल दे, सिर्फ़ ब्रा और पैंटी रह'ने दे. पैंटी में पीछे से च्छेद है, तू आराम से उस'में से इसे चोद सकेगा. देख अधनन्गी बहू क्या ज़ुल्म ढा'ती है. और हां चप्पलें भी पैरों में रह'ने दे, इस'के नाज़ुक पैरों में बहुत जच'ती हैं. माजी बोलीं.

प्रदीप ने फटाफट मेरी साड़ी और चोली उतार दी. काली रबड की ब्रा और पैंटी में सज़ा मेरा गोरा दुबला पतला शरीर देख'कर सब आअह, उफ़, मार डाला कह'ने लगे. प्रदीप मेरे सारे शरीर को चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ा और मेरे पैरों और चप्पालों को चूम'ने लगा. फिर उस'ने मेरी एक चप्पल का सिरा मुँह में लिया और चूस'ने लगा.

प्रीतम और माजी भी मेरे दूसरे पाँव पर लगे थे. मेरे तलवे चाट रहे थे. माजी सिसक कर बोलीं.

अब नहीं रहा जाता, बहुत प्यारी हैं रे इस छ्हॉकरी की चप्पलें प्रीतम बेटे, तू सच कह'ता था. अब चलो बहू का प्रसाद पा लो, फिर उसे चोदेन्गे. मेरे पैरों से चप्पलें निकाल'कर वे उनपर टूट पड़े. प्रदीप ने सीधे एक छ्चीन ली.

मा, एक पूरी मेरी है, आप दोनों दूसरी बाँट लो, माधुरी रानी, आ, अप'ने हाथ से खिला मुझे. सुहागरात को अपनी प्यारी बीवी की चप्पल खा'ने मिली है, मज़ा आ गया. मा बोलीं.

ये ठीक नहीं है प्रदीप, सास के नाते मेरा हक ज़्यादा है, मैं सोच रही थी एक पूरी लेने की, पर जा'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. बहू पहले तू इधर आ, इस चप्पल के पत्ते अलग कर और प्रीतम को दे, नीचे का सपाट चमचम मुझे दे दे, अप'ने नाज़ुक हाथों से मेरे मुँह में डाल दे.

मैं वासना से थारतरा रहा था. इतनी बार मैने प्रीतम की चप्पलें खाई थी पर अब पता चल रहा था कि किसी को अप'ने पैरों की चप्पल खिला'ने में क्या मज़ा आता है, वो भी अपनी सास को, पति को और देवर को एक साथ. प्रीतम बोला

जल्दी करो भाभी, आप'ने पैरों का प्रसाद ह'में दो, तुम घर की लक्ष्मी हो, तुम्हारा प्रसाद पा कर ही हम फिर तेरी भूख बुझायेँगे, तन की और पेट की.

माजी पलंग पर लेट गयीं. मैं उन'के सिराहा'ने बैठ गया. चप्पल हाथ में ले कर मैने खींच'कर उस'के पत्ते निकाले. प्रीतम पास ही बैठ था. उस'ने अपना मुँह खोल दिया.

पट्टे मुझे दे दे भाभी, फिर प्यार से मा को खिलाना.

मैने अप'ने हाथों से प्रीतम के मुँह में अपनी चप्पल के पत्ते दे दिए. वह आँखें बंद कर'के उन्हें चबा'ने लगा. एक असीम सन्तोष उस'के चेहरे पर झलक रहा था. पल भर को आँखें खोल कर उस'ने इशारों से मुझे कहा कि क्या मस्त माल है और फिर आँखें बंद कर'के चबा'ने लगा. माजी बोलीं.

देख बहू, हम सब को अपना प्रसाद देकर फिर जब तक हम इसे खाएँ, हमारी सेवा करो, अब देर ना करो, तेरी ये सास कब से तडप रही है तेरे नाज़ुक पाँव का स्वाद लेने को. और मुँह खोल कर मेरी जाँघ पर सिर रख'कर लेट गयीं. प्रदीप भी मेरी दूसरी जाँघ को सिराहा'ने लेकर लेट गया.

माधुरी रानी, जल्द मा को दे, फिर इस तरफ देख, तेरा ये गुलाम भी तो तरस रहा है, कब से भूखा है तेरी चप्पल के लिए.

मुझे कैसा कैसा हो रहा था. लंड ऐसा सनसना रहा था जैसे फट जाएगा. मैने झुक कर माजी के खुले रसीले मुँह में मुँह डाल दिया और उन'की जीभ चूस'ने लगा. फिर बड़ी मुश्किल से उस शहद को छोड'कर मुँह ऊपर किया और तारथराते हाथों से पत्ते निकाली चप्पल का सपाट सोल उन'के मुँह में दे दिया.

उन्हों'ने उसे झट से आधे से ज़्यादा निगल लिया. ये कोई मुश्किल काम नहीं था, मेरी चप्पल इतनी पुरानी और घिसी पीटी थी कि बस चॅपा'टी सी हो गयी थी. उन्हों'ने मेरा हाथ पकड़'कर चप्पल पर रखा और दबा'ने लगीं, मुझे इशारे से वह कह रही थी कि अंदर डालूं. मैने चूड़ियाँ खनकाते हुए चप्पल को दबा'कर माजी के मुँह में ठूंस दिया. वे थोड़ी कराही और फिर मुँह बंद कर'के चबा'ने लगीं. उनका एक हाथ अब अपनी ही बुर में चल रहा था.

अब मैने प्रदीप की ओर ध्यान दिया, मेरा सैंया अब तक पागल होने को आ गया था अपना लंड मुठिया रहा था. मैने उसका हाथ पकड़'कर आँखों आँखों में झूठे गुस्से से मना किया, कि अजी इसपर तो मेरा हक है, हाथ ना लगाना. फिर दूसरी पूरी चप्पल मैने मोड़ कर गोल रोल जैसी की, जैसा प्रीतम मेरे मुँह में अपनी चप्पल देते हुए किया कर'ता था. उस रोल को मैने प्रदीप के होंठों पर रगडा. जब वह अधीर होकर चाट'ने लगा तो मैने उसे उस'के मुँह में दे दिया. फिर अप'ने हाथों से उसे दबा दबा कर अंदर तक ठूंस दिया.

मेरे सैंया ने आराम से मेरी नाज़ुक पूरी चप्पल ले ली. फिर उसे चबा'ने लगा. उस'की आँखें वासना के अतिरेक से पथरा गयी थी. कमरे में अब चूस'ने और 'मच' 'मच' 'मच' कर'के चबा'ने की आवाज़ आ रही थी. मैं सातवें आसमान पर था, मेरे शरीर के ये सब मतवाले मेरी चप्पालों को खा'कर अप'ने आप को धनी मान रहे थे.

मैने अब सब को चूमना शुरू कर दिया. ऱबड की ब्रा में कसी मेरी चूचियाँ उन'के गालों पर रगड़ीं, माजी की बुर को चूसा और प्रदीप और प्रीतम के लंडों को बड़े लाड से हथेली में लेकर मुठियाया. प्रदीप का लंड तो मेरी दो मूठियो में भी नहीं समाता था. लंडों से खेलते समय मैने बहुत सावधानी बर'ती नहीं तो जिस हाल में वे थे, तुरंत झड जाते. बीच में माजी की विशाल चूचियाँ चूसी और उन्हें दबाया.

अंत में मैने आप'ने तलवे बारी बारी से उन सब'के चेहरों पर रगड़ना शुरू किया. मेरी पायलें 'छुम' 'छुम' कर'के बज रही थी. थोड़े नखरे करते हुए मैने अप'ने दोनों तलवे माजी के चेहरे पर जमाए और उन'के पूरे चेहरे को धक कर रगड़'ने लगा. वे सिर इधर उधर कर'ने लगीं. जब मैने यही प्रदीप के साथ किया तो उस'ने मेरे पैर पकड़'कर अप'ने गालों पर रगड़ना शुरू कर दिया. अंत में मैने अप'ने पैरों के बीच लंड पकड़ लिए और उन्हें रोल कर'ने लगा. माजी की बुर में मैने अप'ने पैर का अंगूठा डाल दिया और चोद'ने लगा.

वे सब अब ऐसे मेरी चप्पलें खा रहे थे जैसे जनम जनम के भूखे हों. सबसे पहले प्रीतम ने अपना नाश्ता ख़तम किया, क्योंकि वह सिर्फ़ पत्ते चबा रहा था, और फिर मुझे पकड़'कर मेरा मुँह चूस'ने लगा. उस'की आँखें गुलाबी हो गयी थी. पाँच मिनिट में ही माजी और प्रदीप ने भी मेरी चप्पलें निगली और मुझपर टूट पड़े. माजी बोलीं.

मैं धन्य हो गयी, मेरी कब की आस पूरी हो गयी, इतना मादक स्वाद आज तक मेरे मुँह ने नहीं चखा. ये मेरी बहू नहीं है, अप्सरा है अप्सरा. प्रदीप उठ, अब इस अप्सरा को दिखा दे कि इस जैसी सुंदर नाज़ुक नार को हमारे परिवार में कैसे भोगा जाता है, चल उठ, तेरा पेट भी भर गया होगा, अब चढ जा इस चाँद के टुकडे पर

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:30 AM,
#27
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (14)

गतान्क से आगे.......

प्रदीप तो मेरी चप्पल खा'कर पागल सा हो गया था. मुझे पटक'कर मेरे ऊपर चढ गया और अपना लंड मेरी गुदा पर रख कर पेल'ने लगा. माजी हंस'ने लगी.

देखो कैसा उतावला हो गया है, अरे पहले ज़रा बहू के शरीर को मसलना कुचलना था. खैर, तेरी बेताबी मैं समझ सक'ती हूँ. मार ले उसकी, अपनी आग शांत कर ले, फिर मिल'कर आराम से खेलेंगे इस गुड़िया से.

प्रदीप के पेल'ने के बावजूद उसका लंड मेरी गान्ड में नहीं घुस रहा था. उधर मैं दर्द से बिलबिलाता हुआ तडप रहा था क्योंकि गान्ड में बहुत दर्द हो रहा था. मेरी हालत अजीब सी थी, एक तरफ मैं किसी नवविवाहित वधू जैसा अप'ने पति से चुद'ने को बेताब था, वहीं उस घोड़े से लंड को देख'कर डर से अधमरा हो गया था. प्रीतम मेरी परेशानी देख'कर बोला.

भैया, ये ऐसे नहीं जाएगा. महीने भर से मैने भाभी को नहीं चोदा है. आराम मिल'ने से अब उस'की गान्ड फिर कुँवारी चूत सी कसी हो गयी है. मक्खन लगा लो नहीं तो माधुरी मर जाएगी.

वह जा'कर मक्खन ले आया. माजी ने मेरी गुदा में और प्रीतम ने अप'ने भाई के लंड में मक्खन लगाया. मक्खन लगाते हुए प्रदीप के लंड को चूम कर प्रीतम बोला.

आज तो यह गजब ढा रहा है यार! सुहागरात ना होती तो मैं कह'ता कि मेरी ही मार लो प्लीज़! उधर माजी बड़े प्यार से दो उंगलियों से मक्खन के लॉंड के लौंदे मेरी गान्ड में भर रही थी. माजी ने मेरे चूतड पकड़'कर कस के चौड़े किए.

देख बेटे, कैसा गुलाब की कली सा च्छेद है, पेल दे अब. प्रदीप ने जैसे ही अप'ने लंड को पकड़ा और बेरहमी से मेरी गान्ड में सुपाड़ा उतार दिया. पक्क की आवाज़ के साथ मेरा छल्ला चौड़ा हुआ और मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं रो पड़ा और हाथ पैर फेकते हुए चीख'ने लगा.

आख़िर सील टूटी साली की. प्रीतम इधर आ और हाथ पकड़ हरामजादी के, बहुत छटपटा रही है प्रदीप मस्त होकर बोला. माजी ने मेरे पैर पकड़ लिए और प्रीतम ने हाथ. प्रीतम ने पूचछा.

मुँह बंद कर दूं भाभी का? माजी बोलीं.

अरे नही, चिल्ला'ने दे, मज़ा आएगा. सुहागरात में बहू रोए तो मज़ा आता है. इससे पता चल'ता है कि असल में चुदी या नहीं! मैं इस'की दर्द भरी चीख सुनना चाह'ती हूँ. जब मेरे बेटे का लॉडा इस'की गान्ड चौडी करेगा, तो ये कट'ती मुर्गी जैसी चिल्लानी चाहिए. तब मैं समझूंगी कि इस अप्सरा को तूने ठीक से भोगा है. वैसे फाड़ तो नहीं देगा रे प्रदीप बहू की गान्ड? नहीं तो कल ही टाँके लगवा'ने पडेन्गे. आगे ढीली ढाली गान्ड मार'ने में क्या मज़ा आएगा?

नहीं मा, ऐसे थोड़े फटेगी! साली पूरी चुदक्कड है. देख अब इस'की कैसी दूरगत कर'ता हूँ! कह'कर प्रदीप ने आगे लंड पेलना शुरू किया. मैं दर्द से चीख'ने लगा. आज सच में मेरी गान्ड ऐसे दुख रही थी जैसे कोई घूँसा बना कर हाथ डाल रहा हो. अब मेरा लंड भी बैठ गया था. सारी मस्ती उतर गयी थी. आँखों से आँसू बह रहे थे. प्रदीप ने और ज़ोर लगा'कर जब तीन चार इंच लॉडा और मेरी गान्ड में उतार दिया तो मैं बेहोश होने को आ गया.

अरे अरे, बेहोश हो रही है बहू. फिर क्या मज़ा आएगा इस'के बेजान शरीर को छोड़'कर. प्रदीप, उस'की चूची मसल, अभी जाग जाएगी. मा की इस सलाह पर प्रदीप ने मेरी चूची पकड़'कर ऐसे कुचली की दर्द से बिलबिला'कर मैं फिर होश में आ गया और हाथ पैर पटक'ने की कोशिश कर'ने लगा.

अब ठीक है, डाल दे पूरा लंड अंदर. मा ने कहा. प्रदीप ने मेरे चूतड पकड़े और घच्छसे पूरा एक फुट लॉडा मेरे चूतडो के बीच गाढ दिया.

मैं ऐसे चिल्लाया जैसे हलाल हो रहा हू! मेरे दर्द की परवाह ना कर'के प्रदीप मेरे ऊपर चढ गया और मेरी चूचियाँ हाथ में पकड़'कर बोला.

अब हट जाओ मा. प्रीतम तू अब जा और मा को चोद ले. मुझे अपनी पत्नी को चोद'ने दे ठीक से. अब देख मैं कैसे इस रंडी की गान्ड का भूर'ता बनाता हूँ. और मेरी रबड की ब्रा में कसी चूचियाँ मसल मसल कर वह मेरी गान्ड मार'ने लगा.

अगले आधे घंटे मेरी जो हालत हुई, मैं कह नहीं सकता. मैं रोता बिलख'ता रहा और मेरा पति हांफ'ता हुआ ऐसे मेरी गान्ड मार'ता रहा जैसे पैसा वसूल कर'ने किसी रंडी पर चढ़ा हो. मुझे ऐसा लग रहा था कि किसीने पूरा हाथ मेरे चूतडो के बीच गाड़ दिया हो और उसे अंदर बाहर कर रहा हो. आज मुझे पता चल गया था कि हलाल होते बकरे को कैसा दर्द होता होगा या फिर भयानक बलात्कार की शिकार कोई युव'ती क्या अनुभव कर'ती होगी!

उधर प्रीतम अपनी मा पर चढ कर उसे चोद रहा था. माजी भी चूतड उच्छाल उच्छाल कर अप'ने छोटे बेटे से चुदवा'ती हुई बड़े बेटे को शाबासी दे रही थी.

बस ऐसे ही बेटा, दिखा दे बहू को चुदाई क्या होती है! प्रीतम ने तो बड़े प्यार से मारी होगी इस'की गान्ड! अब ज़रा यह देखे की असली गान्ड मराना किसे कहते हैं. आज यह ऐसी चुदनी चाहिए कि जनम भर याद रखे कि बहू का स्वागत कैसे किया जाता है

आख़िर प्रदीप एक हुंकार के साथ झड और हांफ'ता हुआ मेरे ऊपर लेट कर आराम कर'ने लगा. मा और प्रीतम मेरी यह निर्मम चुदाई देख'कर पहले ही झड चुके थे. उन'की वासना शांत होने पर अब वे मुझसे थोड़ा नरमी का बर्ताव कर'ने लगे.

बाहू, ठीक से चुदी या नहीं तू या कोई तमन्ना बा'की है? माजी ने पूच्छा. मुझे रोते देख'कर तरस खा'कर बोलीं.

बहुत अच्छा चोदा तूने प्रदीप इसे, इस'की खूबसूर'ती के लायक इसे भोगा, पर अब इसे ज़रा पानी पिला दे. बेचारी को प्यास लगी होगी. और प्रीतम ज़रा अपनी भाभी के लंड पर ध्यान दे, देख कैसा मुरझा गया है. ज़रा मज़ा दिला उसे. तब तक मैं प्रदीप को शहद चखा'ती हूँ. प्रदीप मज़ा आया बेटे?

मस्त मुलायम गान्ड है मा माधुरी की. प्रीतम तू सही बीवी लाया है चुन कर मेरे लिए. अब देखना कैसे इस काली को मसल मसल कर इसका भोग लगाता हूँ. इस'की मलाई चख'ने का मन हो रहा है अब. प्रदीप मेरे गुदा में से लौड खींचते हुए बोला.

माजी ने प्रदीप का मुँह अपनी चूत में डाल लिया और उसे अप'ने बुर के पानी और प्रीतम के वीर्य का मिला जुला अमृत पिला'ने लगीं. मैं अब सोच रहा था कि काश मैं उस'की जगह होता. प्रदीप का लंड निकल जा'ने के कारण अब मेरी गान्ड में होती भयानक यातना कम हो गयी थी फिर भी गान्ड तन तन दुख रही थी. प्रीतम ने पहले प्रदीप का लंड चूस कर साफ किया. फिर वह मेरे गुदा पर मुँह लगा'कर अंदर का माल चूस'ने लगा. मुँह उठा'कर बोला.

वाहा, भाभी की मुलायम गान्ड में से भैया का वीर्य चख'ने का मज़ा ही कुच्छ और है मा. वह साथ में मेरे लंड को सहला रहा था. उसे मालूम था कि मुझे क्या अच्च्छा लग'ता है और उस'के अनुभवी हाथों ने जल्द ही मेरा लंड ख़ड़ा कर दिया. लंड खड होने के बाद गान्ड का दर्द मुझे अब इतना जान लेवा नहीं लग रहा था.

प्रदीप आख़िर अपनी मा की चूत पूरी चाट कर उठा और मेरा सिर अपनी गोद में लेकर लेट गया. मेरे मुँह में अपना मुरझाया लंड पूरा डालते हुए बोला.

माधुरी रानी, चल अब अप'ने पति का शरबत पी ले. ख़ास तेरी प्यास बुझा'ने को मैने बनाया है. फिर वह मेरे सिर को अप'ने पेट पर भींच कर मेरे मुँह में मूत'ने लगा.

उस'ने दस मिनिट मुझे अपना मूत पिलाया. लग'ता है घंटों वह मूता नहीं था. मैने आँखें बंद कर'के चुपचाप अप'ने स्वामी का मूत पिया. वह खारा गरमागरम मूत मुझे बहुत अच्च्छा लग रहा था. मेरे चेहरे पर के भाव देख'कर प्रदीप और माजी बहुत खुश हुए.

सच बड़ी अच्छी ट्रेनिंग दी है प्रीतम ने अपनी भाभी को. कैसे पी रही है जैसे भगवान का प्रसाद हो! माजी बोलीं.

प्रदीप का मूत पीने के बाद प्रीतम और माजी ने भी अपना अपना मूत मुझे पिलाया. प्रीतम ने तो वैसे ही लॉडा मुँह में देकर पिलाया पर माजी ने खड़े होकर मुझे अपनी टाँगों के बीच बिठा'कर मेरे मुँह में मूता जैसे कोई देवी साम'ने बैठे भक्त पर अहसान कर रही हो. पहले चेतावनी भी दी.

बहू, अगर ज़रा भी नीचे गिराया तो आज तेरी टाँगें तोड़ दूँगीं. अपनी सासूमा का यह बेशकीम'ती उपहार मन लगा कर पी. मैं जब बिना छलकाए सारा पी गया तो वे बहुत खुश हुईं. मेरा पेट अब लबालब भरा था और मुझे डकार आ रही थी. तीनों मिल'कर यह सोच'ने लगे कि अब मेरे साथ क्या किया जाए?

इसे कुच्छ खिला दो अब . माजी का आग्रह था. पर प्रीतम ने कहा कि अभी अभी मूत पिया है, पेट भरा है, ठीक से माधुरी खा नहीं पाएगी.

तो कोई ऐसी चीज़ खिला जिसे खा'ने में टाइम लगे. फिर खा लेगी. प्रदीप, तेरी चप्पलें इसी लिए तो रखी हैं? चल तैयार हो जा. बहू चप्पालों की कितनी शौकीन है, मैं जान'ती हूँ इस'लिए वैसे किसी की भी चप्पलें खिला सकते हैं पर आज की सुहागरात में तो पति का ही प्रसाद मिले तो अक्च्छा है. माजी ने प्रदीप को कहा. वह अपनी चप्पलें हाथ में लेकर तैयार हो गया.

हां मा, अपनी दुल्हन के लिए यह तोहफा तो मैने मन लगा'कर तैयार किया है. महीने भर से पहन कर इन्हें चिकना कर दिया है. मेरे पैरों का पसीना भी इन'में भीं गया है, मेरी रानी को खूब स्वाद आएगा.

ठहरो भैया, तुम'ने इसका एक छेद तो चोद डाला, अब दूसरा चोदो. मुँह चोद डालो, मस्त पूरा घुसेड कर पेट तक उतार दो. बहुत अच्छी चुद'ती है यह लौंडा मुँह में, अभी ठीक से सीखी नहीं है इस'लिए गोंगिया'ती है, बहुत मज़ा आता है. तब तक मैं अपनी भाभी की गान्ड मार लेता हूँ. आख़िर इस'की सुहाग रात है, गान्ड खूब चुदनी चाहिए नहीं तो सोचेगी कि कैसे लोग हैं, बहुओं को ठीक से चोदना भी नहीं जानते. और माधुरी मा की गान्ड मार ले तब तक! आख़िर बहू से गान्ड मरा'ने में जो मज़ा है, वह मा भी चख ले ज़रा. प्रीतम ने सुझाव दिया.

प्रदीप को बात जच गयी. चप्पलें बाजू में रख कर उस'ने अपनी मा को बिस्तर पर लेट'ने को कहा. माजी अपनी पहाड सी गान्ड ऊपर कर'के लेट गयीं. मुझे उनपर चढ़ा दिया गया और मेरा लंड उन'की गान्ड में घुसेड दिया गया. काफ़ी फुकला गान्ड थी मेरी सासूमा की, आख़िर दो दो बेटों के मतवाले लंडों से सालों चुदी थी. पर उस मुलायम छेद का मज़ा ऐसा था कि मैं तुरंत अपनी सास की गान्ड मार'ने लगा. प्रीतम मेरे ऊपर चढ गया और मेरी गान्ड मार'ने लगा. उस'के प्यारे जा'ने पहचा'ने लंड के अप'ने गुदा में होते स्पर्श से मुझे बहुत अच्च्छा लगा.

प्रदीप मेरे साम'ने बैठ गया और अपना झाड़ा लंड मेरे मुँह में डाल'कर मेरा सिर अप'ने पेट पर दबा'कर हमारे साम'ने बैठ गया.

चलो शुरू हो जाओ अब . अगले आधे घंटे यह सामूहिक चुदाई चल'ती रही. मैं माजी के मम्मे दबाता हुआ उन'की गान्ड मार रहा था और प्रीतम मेरी. धीरे धीरे प्रदीप का लंड खड़ा हुआ और मेरे गले में समा'ने लगा.

जल्द ही मैं दम घुट'ने से छटपटा रहा था. मेरे पति का एक फूटिया लंड मेरे सीने तक उतर गया था. अब मैं हाथ पैर मार'कर छूट'ने की कोशिश कर रहा था. मेरा गला दुख रहा था और साँस रुक गयी थी. मैं साँस लेने की कोशिश करते हुए चीख भी रहा था पर मुँह से सिर्फ़ 'आम' 'आम' 'अघ' ऐसी आवाज़ निकल रही थी. बीच में मुझे लगा कि अब मैं मर जाऊँगा. किसी तरह हाथ पैर फटकार'ता हुआ रोता बिलख'ता मैं तडप'ता रहा पर वे तीनों मा बेटे मुझसे ऐसे चिपटे रहे जैसे उन्हें कोई परवाह नहीं है कि मैं जिऊ या मरूं, और मुझे भोगते रहे.

आख़िर मेरे झड'ने के बाद वे रुके. प्रीतम और प्रदीप ने अप'ने अप'ने तन्नाए लंड मेरी गान्ड और मुँह से निकाले और बारी बारी से अपनी मा की गान्ड में से मेरा वीर्य चूसा. मैं हांफ'ता हुआ अधमरा साँस लेने की कोशिश कर'ता हुआ लस्त पड़ा रहा. माजी उलाहना देते हुए बोलीं.

तुम लोग झाडे नहीं बहू के शरीर में? अब तो मौका आया है दुल्हन की असली चुदाई का मा! जब तक यह चप्पल खाएगी, हम लगातार इस'की गान्ड मारेंगे. एक मिनिट को भी इस'की गान्ड में लंड चलना बंद नहीं होना चाहिए. आख़िर हमारे खानादान की इज़्ज़त का सवाल है. सुहागरात में बहुएँ बिना रुके रात भर चुदाना चाहिए ऐसी प्रथा है हमारे यहाँ मा. प्रीतम अपनी मा की चूचियाँ दबाता हुआ बोला.

कितनी फिकर है मेरे जवान बेटों को अपनी बाहू के सुख की! मा भाव विभोर होकर बोलीं.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:31 AM,
#28
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (15)

गतान्क से आगे.......

बहू तू अब बाथ रूम हो आ. फ्रेश हो ले, फिर तुझे तेरे पति की चप्पल खिलाते हैं, तू बड़ी बेताब है उस'के लिए मुझे मालूम है. मैं किसी तरह बाथ रूम गया. अंग अंग दुख रहा था. आँखों में आँसू आ गये थे. अब तक मेरी मस्ती हवा हो गयी थी. मन में रुलाई छूट रही थी कि कहाँ फँस गया. पर अब मैं कहाँ जाता, इस परिवार से मेरी छुट्टी इस जनम में तो नहीं होगी ये मुझे मालूम हो गया था.

पंद्रह मिनिट बाद भी मैं जब नहीं निकला तो प्रदीप बुला'ने आया. मैने दरवाजा खोला तो पहले उस'ने मुझे एक करारा तमाचा मारा. मैं रोने लगा. वह बोला.

माधुरी रानी, मुझे लगा था कि आप'ने पातिदेव की चप्पल खा'ने को तू फटाफट खुशी खुशी आएगी पर तू तो रो रही है! यह नहीं चलेगा. तू गुलाम है हमारी, जैसा कहते हैं वैसा करना नहीं तो तेरी ऐसी हालत करेंगे कि तुझसे सहन नहीं होगी. तुझे चप्पल खा'ने का शौक है ना? आज खिलाता हूँ तुझे अपनी चप्पलें. ख़ास सुहागरात के लिए महीने भर से दिन रात पहन कर घूम रहा हूँ

मुझे गर्दन से पकड़'कर दबोच कर वह पकड़'कर बिस्तर पर लाया और मुझे पटक दिया. मुझे लिटा'कर मेरे मुँह में चप्पल देने की तैयारी होने लगी.

एक साथ देना प्रीतम की एक एक करके. प्रदीप ने पूच्छा.

अरे पूरी जोड़ी दो मेरी भाभी के मुँह में. मेरे साथ थी तो मुझे बार बार कह'ती थी कि प्रीतम राजा, जोड़ी दे दे मेरे मुँह में. मैने वादा किया था कि सुहागरात के दिन खिलाऊँगा. एक एक खा'ने में उसे मज़ा नहीं आएगा

प्रीतम मेरी ओर देख'कर बोला. बात तो सच थी पर आज चुदा चुदा कर मेरी हालत खराब थी. मुँह भी दुख रहा था. और प्रदीप की उन दस नंबर की चप्पालों को देख कर जहाँ मन में गुदगुदी होती थी वहीं बहुत डर भी लग रहा था. प्रीतम की चप्पलें तो पतली थी. प्रदीप की एक साथ लेकर तो मैं दम घुट कर मर जाऊँगा. मैं भयभीत होकर चुप रहा.

मा ने मेरे हाथ पकड़े और प्रीतम ने पाँव. प्रदीप तैयार होकर मेरा सिर गोद में लेकर बैठ गया. दोनों चप्पलें उस'ने जोड़ कर पंजे मेरे मुँह पर रखे. मैने चुपचाप मुँह खोल दिया. और क्या करता? पर उन बड़ी ज़रा मोटी रबड की चप्पालों की साइज़ देख'कर मैं घबरा गया था. एक एक चप्पल प्रीतम की पतली दो चप्पालों के बराबर थी जो उस'ने मुझे पहली बार खिलाई थी.

प्रदीप ने चप्पालों के पंजे मेरे मुँह में ठूंस दिए. फिर दबा दबा कर उन्हें मेरे मुँह में और घुसेड'ने लगा. मैं दर्द और दम घुट'ने से तडप'ने लगा. मा बोलीं

अरे धीरे धीरे प्यार से, नाज़ुक बहू है, उसे समय लगेगा तेरी बड़ी चप्पलें निगल'ने में.

अरे मा, कुच्छ नाज़ुक वाजुक नहीं है, नखरा कर'ती है, साली प्रीतम की चप्पलें कैसे गपा गॅप खा'ती थी! है ना प्रीतम? कहते हुए प्रदीप ने ज़ोर लगा'कर आधी चप्पलें मेरे मुँह में डाल दीं.

हां चप्पालों की बहुत शौकीन है माधुरी रानी. पूरी चप्पल जोड़ी मुँह में लेने को कब से आतुर है. मैने ही रोक दिया था कि अब पहले शादी के बाद अप'ने पति की चप्पलें खाना, बाद में मैं और अम्मा भी खिला देंगे.

प्रीतम ने मेरी ओर देख'कर मुस्कराते हुए कहा. पाँच मिनिट बाद जब बची खुची चप्पलें भी मेरे मुँहे में प्रदीप ने ठूंस दी तो मैं कराह कर बेहोश हो गया. आखरी दो तीन इंच मेरे मुँह में डाल'ने के लिए उसे अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करना पड़ा. वह मेरे सीने के ऊपर चढ कर मेरी चून्चियो पर बैठ गया और अप'ने दोनों हाथ रख'कर कस कर दबाया जैसे टायर में ट्यूब ठूंस रहा हो. पकाक से पूरी चप्पलें मेरे मुँह में चली गयीं. मैं दम घुट'ने से और गालों में होते भयानक दर्द से होश खो बैठा. मेरे मुँह पर टेप लगा'कर उसे बंद कर दिया गया कि मैं उन्हें निकल'ने की कोशिश ना करूँ और मेरे हाथ पैर भी कस कर बाँध दिए गये.

आधी बेहोशी में ही मैने सुना की मा ने आप'ने बिटो को मेरा रस पीने की आगया दे दी.

अरे अब बहू को आराम से अप'ने पति की चप्पलें खा'ने दो. अब हम लोग भी कुच्छ खा पी लें. बहू का दूध नहीं पीना है क्या? चलो बारी बारी से ये मज़ा ले लो. और मैं उसका लंड चूस'ती हूँ. देखो कैसे लहरा रहा है. दूध मुझे भी चखाना

मेरी ब्रा और पैंटी अब निकाल दी गयी. प्रीतम और प्रदीप मेरी चूचियों पर टूट पड़े और माजी मेरा लंड चूस'ने लगीं. मेरी चूचियों को दबा दबा कर मसल कर उन'में से दूध निकाल कर दोनों भाई पी रहे थे. उधर मा मेरे लंड को चबा चबा'कर चूस रही थी जैसे गंडरी खा रही हों. मैं तडप कर झड गया. मा'ने पूरा वीर्य पी कर ही मुझे चोदा. फिर प्रीतम और प्रदीप को हटा'कर मेरी दुख'ती चूचियों में बचा दूध दबा दबा कर निकाला और पिया जैसे पिच'के आमों को निचोड़ रही हों उनका बचा खुचा रस निकाल'ने को.

फिर वे आपस में चिपट कर संभोग कर'ने लगे. मुझे मेरी हालत पर छोड दिया गया. दोनों भाई अपनी मा को आगे पीछे से चोद'ने लगे.

खूब चोदो मेरे लाडलो पर झड़ना नहीं. मा उचक उचक कर प्रीतम से गान्ड मरवाते हुए बोलीं. प्रदीप आगे से उन्हें चोद रहा था.

झड़ना बहू की गान्ड में. उस'की गान्ड आज इतनी मारी जानी चाहिए कि कभी यह ना कह स'के कि सुहाग रात में उस'के साथ इंसाफ़ नहीं हुआ . बीच बीच में दोनों अलट पलट कर मेरी गान्ड मार'ने लगते. प्रदीप मेरे मुँह को टटोल'ता और कहता.

अरे अभी तक नहीं खाई चप्पल? जल्दी खा रानी. सुबह हो जाएगी तो नाश्ता भी कराना है तुझे. कब से पेट में लिए घूम रहा हूँ! चल जल्दी चबा . और मुझे चबा'ने को मजबूर कर'ने के लिए कस कर मेरी चूची मरोड देता या चूचुक खींच'ने लगता.

वे दो तीन घंटे मेरे ऐसे गये जैसे मैं स्वर्ग नरक के अजीब से मिले जुले माहौल में हू. बदन और दुखते मुँह से मैं तडप तडप कर रो रहा था और चबा चबा कर प्रदीप की चप्पलें खा'ने की कोशिश कर रहा था. उधर इस विकृत कामक्रीड़ा से मेरे मन की अनकही चाहतों ने ऐसा सिर उठाया था कि लंड में बड़ी मीठी गुदगुदी हो रही थी. एक अपूर्व कामवासना मेरे रोम रोम में भर गयी थी. उन पुरानी पहन पहन कर मैली की हुईं चप्पालों का स्वाद भी मुझे बहुत मादक लग रहा था.

आख़िर रात को तीन बजे मेरा चप्पल खाना ख़तम हुआ. आखरी टुकड़ा मैने निगला और फिर लस्त पड आराम कर'ने लगा. प्रदीप, प्रीतम और मा चोद चोद कर सो गये थे. प्रदीप का लंड अब भी मेरी गान्ड में था. मेरी भी आँखें लग गयीं.

पहली सुबहा

सुबह मुझे झिन्झोड कर जगाया गया. अंग अंग दुख रहा था जैसे किसी ने रात भर तोड़ा मरोड़ा हो. गांद में अजब टीस थी, ज़ोर का दर्द था और कुच्छ मस्ती भी थी. मुँह ऐसे दुख रहा था जैसे गाल फट गये हों.

नींद खुलते खुलते मुझे अपनी बाँहों में उठा'कर चूमते हुए प्रदीप बाथ रूम ले गया. प्रीतम और माजी भी साथ में थे.

चलो बहू को भूख लगी होगी. प्रदीप जल्दी कर बेटा, मैं बहू को तेरी गान्ड में से तेरी टट्टी खाते देखना चाह'ती हूँ. फिर प्रीतम भी खिला देगा.

माजी बार बार प्रदीप से कह रही थी. आराम कर'ने से मेरा लंड फिर खड़ा हो गया था. पिच्छली रात की मेरे दुर्गति याद कर'के मुझे बड़ी मादक सनसनी हो रही थी. अब मैं अप'ने आप को कोस रहा था कि क्यों मैं रोया और चिल्लाया! यह तो मेरा भाग्य था कि इतनी तीव्र गंदी और विकृत कामवासना से भरी जिंदगी मुझे मिली थी. अब मुझे यह लग रहा था कि फिर से तीनों मेरे ऊपर कब चढ़ाएँगे!

अप'ने मसले दुखते बदन में होती पीड़ा को अनदेखा कर'के मैने प्यार से प्रदीप के गले में बाँहें डाल दीं और उसे चूम लिया. उस'की आँखों मे देखते हुए शरमा कर मैने कहा.

स्वामी, आप'ने, देवराजी और माजीने मुझे जो सुख दिया है, मैं कभी नहीं भूलूंगी. आप तीनों मुझे खूब भोगिए, अपनी सारी हवस निकाल लीजिए, मुझे चोद चोद कर मार डा'लिए प्लीज़, मुझसे यह चुदासी सहन नहीं होती अब. और मेरी एक और प्रार्थना है स्वामी! प्रदीप चूम कर मुझे बोला

बोल रानी, क्या चाह'ती है? क्या मुराद रह गयी तेरी सुहागरात में?

देवराजी की गान्ड तो मैने बहुत मारी है, माजी की भी मार ली, अब आप भी मरा लेना मेरे स्वामी, आप जो कहेंगे मैं करूँगी.

प्रदीप ने मुझे चूमते हुए कहा. 'तो यह चाह'ती है तू, चल अभी मार लेना. पहले तेरे मुँह में गान्ड खाली कर लूँ, फिर उस'में अपना यह हसीन लंड डाल देना. और तू फिकर मत कर रानी, तुझे तो हम ऐसे ऐसे चोदेन्गे और ऐसे ऐसे कुकर्म तेरे साथ करेंगे, तूने सोचे भी नहीं होंगे. हर तरह की नाजायज़, गंदी, हरामीपन की क्रियाएँ तेरे साथ हम कर'ने वाले हैं. साल भर में तुझे पीलापिला ना कर दिया तो कहना. अब चल, तुझे अपनी टट्टी खिलाता हूँ.

मुझे बाथ रूम में फर्श पर पटक'कर वह मेरे मुँह पर बैठ गया. उसे अब सहन नहीं हो रहा था. उसका लंड भी फिर तन कर खड़ा हो गया था. अप'ने सैंया के विशाल गठीले गोरे चूतड मैने पास से देखे तो वासना से सिसक उठा. मेरे पति के गुदा का छेद खुल बंद हो रहा था और उस'में से अंदर की ठोस टट्टी बाहर आने वाली थी. मैने मुँह खोला और बिना और कुच्छ कहे मेरा पति मेरे मुँह में हॅग'ने लगा. मोटी ठोस लेंडी मेरे मुँह में उतर'ने लगी. मैं भाव विभोर होकर उसे चबा चबा कर खा'ने लगा. मेरा लंड फिर कस कर खड़ा हो गया था और उस मस्ती में प्रदीप की गान्ड की टट्टी मुझे प्रसाद जैसी लग रही थी.

पाँच मिनिट में मैने प्रदीप की गान्ड खाली कर दी. कम से कम आधा किलो टट्टी निकली होगी. मेरी मदहोश वासना देख'कर प्रीतम और मा भी मस्ती में आ गये थे. प्रदीप की गान्ड मैने चाट कर सॉफ की और फिर तुरंत प्रीतम मेरे मुँह पर बैठ गया. दस मिनिट बाद अपनी गान्ड खाली कर'के जब वह उठा तो उसका भी लंड तन कर खड हो गया था. मा भी मूठ मार रही थी.

बहू एकदम रति देवी की मूरत है प्रदीप. अब तुम लोगों से मूतना तो होगा नहीं अप'ने खड़े लंडों से, मैं ही इस'की प्यास बुझा देती हूँ. कह'कर वे मेरे मुँह में मूत'ने लगीं.

मेरा पेट लबालब भर गया था और वासना से मेरा सिर सनसाना रहा था. मेरी हालत देख कर अब दोनों भाई मेरे ऊपर फिर चढ़ना चाहते थे, मैं भी यही चाह'ता था. पर मा ने मना कर दिया.

बहू को क्या वादा किया था प्रदीप? चलो गान्ड मराओ उससे. प्रदीप ज़मीन पर ओँदा लेट गया और मैं उसपर झुक कर उस'के चूतड चूम'ने लगा. क्या चूतड थे एकदम गठीले, कड़े और मास पेशियों से भरे. मैने उस'के गुदा में नाक डाली और सूंघ'ने लगा. फिर जीभ डाल'कर चाट'ने लगा.

जल्दी कर रानी. प्रदीप बोला. उसे मेरी जीभ का स्पर्श मतवाला कर रहा था.

बहू को मज़ा कर'ने दे मन भर कर. तू कर बहू क्या करना है. मैने मन भर कर अप'ने पति की गान्ड चूसी और आख़िर जब मस्ती से पागल सा हो गया तब उसपर चढ'कर उस'की गान्ड में अपना लंड डाल दिया. तन कर ख़ड़ा होने के बावजूद लंड आराम से गया. आख़िर वह अप'ने छोटे भाई प्रीतम से मरावाता था, गान्ड ढीली होनी ही थी.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:31 AM,
#29
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (16)

गतान्क से आगे.......

मैं उससे चिपट'कर अप'ने पति की गान्ड मार'ने लगा. मेरी चूचियाँ उस'की पीठ पर दब रही थी. उससे प्रदीप को भी मज़ा आ रहा था. प्रदीप भी मुझे हिम्मत दे रहा था.

मार रानी, मार मेरी गान्ड . मा ! मैं पहला पति होऊँगा जिस'ने सचमुच के लंड से अप'नी पत्नी से गान्ड मरवाई है! तीव्र सुख के साथ मैं अचानक झड गया और रोने लगा. रुलाई खुशी की भी थी और इस अफ़सोस से भी थी कि और देर मैं यह सुख नहीं ले पाया. मा ने मुझे दिलासा दिया.

बहू अब तू रोज मार सक'ती है तू. दिल छोटा ना कर, तेरा ही आदमी है, कभी भी इस'की गान्ड मार लिया कर. तुझे ना थोड़े कहेगा! ऐसा किया कर कि रोज इस'की टट्टी खा'कर इस'की गान्ड मारा कर. बहुत मज़ा आएगा. और कल से अब मैं टट्टी कर'ने का टाइम टेबल बना रही हूँ, आख़िर तीन तीन गान्डो का सवाल है. टट्टी खा'ने के बाद बहू का हक होगा उस गान्ड पर अगर वह मारना चाह'ती हो. प्रीतम तू आज बच गया. चल कल मरा लेना. फिर वे अप'ने दोनों मस्ताये बेटों से बोलीं.

अब बहू को स्नान कर'ने दो, सॉफ होने दो. बाद में इसे इस घर के तौर तरीके सीखा देंगे. एक टाइम टेबल भी बनाना है. प्यारी आ'टी होगी. उसे कहूँगी बहू को नहला दे. किसीने बाथ रूम का दरवाजा खटखटाया. माजी बोली.

लो प्यारी आ गयी. आ जा चंदा, तेरी ही राह देख रहे थे. दरवाजा खुला और पैंतीस की उम्र की एक साँवली भरे पूरे बदन की औरत अंदर आई. एकदम सेक्सी और देसी माल था. बड़ा सिंदूर, आधी खुली चोली जिस'में से बड़े बड़े मम्मे दिख रहे थे, और गाँव की स्टाइल में बाँधी साड़ी जिस'में से उस'की मोटी चिकनी टाँगें दिख रही थी. होंठ पान से लाल थे. मुझे घूरते हुए वह बोली.

तो ले आए बहू को? मैं तो मरी जा रही थी देख'ने को पर आप ने कहा कि सुहागरात के बाद ही आना इस'लिए कल रात ऐसे ही सदका लगा'कर सब्र कर लिया. बड़ी सुंदर है बहू, कितनी चिकनी है, कोई कह नहीं सक'ता कि लड़का थी, बस इस लंड से पता चल'ता है. लंड तो बहुत प्यारा है दीदी. और मम्मे? मैं तो वारी जाउ, क्या चूचियाँ हैं? पर बड़ी मसली कुचली और थ'की लग रही है बहू रानी. लग'ता है खूब मस्त सुहागरात हुई है दीदी. और हंस'ने लगी. माजी मुझे बोली.

बहू, यह है चंदा. हमारी नौकरानी है पर घर की है. इससे कोई बात छिपी नहीं है. मेरी ख़ास सहेली है. हम दोनों ने बहुत मज़ा किया है, अब तेरे साथ और करेंगे. आज से यही तेरा ख़याल रखेगी. तुझे हमारे भोग के लिए तैयार किया करेगी. इसका भी तुझ पर इतना ही हक है जितना हमारा. इसका कहा मानना. प्यारी तू बहू को नहला दे और तैयार कर. फिर बहू को सब समझाना है

मुझे प्यारी के सुपुर्द कर'के वे तीनों चले गये. जाते जाते प्रदीप उस'की चूची दबा कर बोला.

अब चढ मत जाना बहू पर प्यारी बाई, हम'ने काफ़ी ठुकायी की है!

अरे तू जा ना! मैं देख लूँगी बहू के साथ क्या करना है उलाहना देकर उस'ने सब को बाहर निकाला और दरवाजा लगा लिया. फिर कपड़े उतारते हुए बोली.

आओ बहू रानी तुम्हें नहला दू. पेट तो भर गया ना? कब से तैयारी हो रही थी तुम्हें खिला'ने पिला'ने की. कह'कर वह एक कुटिल हँसी हँसी और मेरी चूची ज़ोर से मसल दी. मैं कराह उठा. लग'ता है वह भी अपनी मालकिन और उस'के बेटों जैसी दुष्ट थी. पर थी बड़ी सेक्सी.

उस'के मोटे मम्मे, घनी झाँटें और तगडी जांघें देख'कर मेरा लंड उच्छल'ने लगा.

ओहो, तो मैं पसंद आई बहू रानी को! मुझे भी तू बहुत पसंद है बहू, बस अप'ने आप को मेरे हवाले कर से, देख मैं तुझे कहाँ से कहाँ ले जा'ती हूँ. चल अब नहा ले

प्यारी ने मुझे खूब नहलाया. मेरे बदन की मालिश की, मेरे बॉल धोए और अंत में मेरा लंड चूस डाला. दो मिनिट में मुझे झाड़ा'कर मेरा वीर्य पीकर वह उठ खड़ी हुई. मैं ना न करते रह गया क्योंकि मुझे डर था कि उन लोगों को पता चल गया कि मैं झड गया हूँ तो ना जा'ने क्या करें. प्यारी ने मुझे दिलासा दिया.

बहुत स्वाद है तुझ'में बहू. तू मत डर, किसी को पता नहीं चलेगा, अभी तुझे फिर मस्त कर देती हूँ, और पता चल भी जाए तो क्या, मेरा भी हक है तेरे बदन पर. अब चल, मेरी बुर चूस, तेरी सास तो दिवानी है इसकी, तू भी चख ले. फिर दूध पिला'ती हूँ तुझे मेरे चेहरे पर के भाव देख'कर वह हंस'ने लगी.

अरे तेरे पति को, तेरे देवर को मैने ही तो पिलाया है. अब भी पीते हैं बदमाश, जो बच'ता है उन'की मा पी लेती है. अब बैठ नीचे. मुझे नीचे बिठा'कर वह मेरे मुँह में अपनी चूत देकर खड़ी हो गयी और मुझे चूस'ने को कहा. एकदम देसी माल था उसका, चिपचिपा और तीव्र गंध वाला. उस'की बात सच थी. उस'की चूत चूस कर मेरा फिर ऐसा खड़ा हुआ जैसे बैठा ही ना हो.

फिर उस'ने प्यार से वहीं बाथ रूम के फर्श पर बैठ'कर मुझे गोद में लिया और अपना दूध पिलाया. एकदम मीठा और गरम दूध था. मैं तो निहाल हो गया. उस'की मोटी चूची पकड़'कर बच्चे जैसा उसका स्तनपान कर'ने लगा. दोनों स्तन आधे आधे पीला कर प्यारी ने मेरा बदन पोंच्छ कर जल्दी जल्दी साड़ी और चोली पहनाई. मेरे होंठों पर लिपस्टिक लगाई और माग में सिंदूर भरा

ब्रा बाद में पहन लेना. अभी काम है. चल बाहर, सब इंतजार कर रहे होंगे.

मेरी जिंदगी कैसी होगी

बाहर सब नहा धोकर मेरी राह देख रहे थे. आओ बहू, बहुत सुंदर लग रही हो. प्यारी ज़रा नज़र उतार देना मेरी बहू की. बहू अब तुझे समझा'ती हूँ कि तेरा दिन भर का क्या टाइम टेबल है. तुम लोग भी सुनो. माजी फिर मुझे गोद में बिठा'कर चूमते हुए बोली.

बहू, तेरा काम है सिर्फ़ संभोग, दिन रात हमसे चुदवाना और गान्ड मरवाना और जैसा हम कहते हैं वैसा करना. जब कोई चाहेगा , तुझे जैसे मन आए भोग लेगा. और हमारे लिए अपना मुँह हमेशा तैयार रखना. हम उस'में जो दें, वह प्यार से प्रसाद समझ कर खाना. मैं दिन भर घर में रह'ती हूँ इस'लिए मेरी सेवा तो तू हमेशा करेगी. प्रदीप सुबह काम पर जाता है और दोपहर में आता है. सुबह वह तुझे अपनी टट्टी खिला'कर और मूत पीला कर नाश्ता करा'कर जाएगा. जा'ने से पह'ले जैसे चाहे तुझे चोद लेगा. उस'के बाद तेरा नहाना धोना होगा. प्यारी तुझे नहलाएगी और तैयार करेगी. तेरी चूची में दिन में तीन चार बार दूध भी वही भरेगी. इस'के बाद प्रीतम तुझे दोपहर तक चोदेगा. मैं तो रहूंगी ही. दोपहर को प्रीतम अपनी गान्ड से तुझे खाना खिलाएगा और फिर काम पर जाएगा.

प्रदीप आ'कर सो जाएगा कि रात को तुझे ठीक से चोद सके. दोपहर को तू मेरी सेवा करेगी. प्यारी भी अपनी सेवा तुझसे कराएगी. मैं रात का खाना तुझे खिलाऊँगी बेटी, अपनी गान्ड में से मस्त टट्टी दूँगी तुझे. प्रीतम भी आ'कर आराम कर लिया करेगा. फिर हर रात तेरी ठुकायी होगी जैसे कल सुहागरात में हुई थी. हम तीनों मिल'कर तुझे चोदा करेंगे. आज से प्यारी भी अब साथ रहा करेगी. जब भी किसी भी कारण से तू खाली रहे, वह तुझे चोद लिया करेगी. तुझे यह भी अपनी गान्ड से खिलाएगी फिर कोई भी अपनी गान्ड में इसे फिट कर'के तुझे अपनी टट्टी खिला सक'ता है मैं डरते डरते बोला.

पर स्वामी, माजी, देवराजी, मैं तो खुद बड़े चाव से आप'की टट्टी खा'ती हूँ, हमेशा तैयार रह'ती हूँ. इस'की ज़रूरत क्या है?

ज़रूरत क्यों नहीं है रानी प्रदीप अपना लंड मुठियाता हुआ बोला.

मान लो मुझे, मा और प्रीतम को और प्यारी को भी एक साथ एक ही समय तेरे मुँह में हगाना हो तो तू ले नहीं पाएगी. मुँह बंद कर लेगी. ऐसे में ये यंत्र फिट कर'के तुझे तीन क्या, दस लोगों की टट्टी खिला सकते हैं ज़बरदस्ती. मान लो मा ने कभी अपनी सहेलियों को बुलाया रात को, तेरी मुँह दिखाई को, वे कभी कभी अपनी सहेलियों के साथ चुदाई का रतजगा कर'ती है. अब तो सोने में सुहागा हो जाएगा. औरतें तुझे आशीर्वाद के साथ साथ अपनी गान्ड का प्रसाद भी देना चाहेंगी, तब तुझे इतनी औरतों की टट्टी खिला'ने के लिए ये ज़रूरी होगा.

और एक बात है, तू मस्त रह'ती है तो खुद खा'ती है. एक बार तुझे खूब झड कर तेरी मस्ती गायब करके, तुझे चप्पालों से खूब पीट कर, तेरी सारी मस्ती उतार'कर फिर मैं तेरे मुँह में हगाना चाह'ता हूँ. तब पता चलेगा कि मेरी, अप'ने पति की या फिर मा या प्रीतम की टट्टी तुझे कैसी लग'ती है? तब तू नहीं खाएगी अप'ने आप, तब ये यंत्र काम आएगा. मैं डर'के रोने लगा. मा'ने मुझे पुचकारते हुए कहा.

रो मत बहू, आज थोड़े ना कर'ने वाले हैं. ये तो तुझे ब'ता दिया कि किसी दिन करेंगे. और एक बात है, वो जानवरों वाली पुस्तक तो लाना प्रीतम बेटा! प्रीतम जा'कर एक किताब ले आया. मेरी ओर देख'कर वह मंद मंद मुस्करा रहा था.

माजी ने किताब खोली और मुझे चित्र दिखा'ने लगीं. उन'में जानवरों और इंसानों के संभोग के चित्र थे. औरतों को चोदते कुत्ते या घोड़े, जानवरों के लंड चूसते स्त्री पुरुष और अंत में बाँध कर रखे किशोर लड़कों और लड़कियों को चोदते हुए जानवर. उस'में कयी छोकरे और छ्हॉकरियाँ डर और दर्द से रो भी रहे थे और कुच्छ बड़ी वासना से मस्ती में दिख रहे थे. कहीं कहीं तो एक किशोर या किशोरी पर तीन तीन चार चार जानवर चढये हुए थे. हर छेद में एक लंड था. एक चित्र में एक जवान खूबसूरत पुरुष की गान्ड में घोड़े का लंड घुसा हुआ था!

हम सोच रहे थे कि कुच्छ जानवर पाल लेना. प्रदीप दो माह बाद जा'कर खरीद लाएगा. इंसानों से रति कर'ने के लिए सीखे सिखाए मिलते हैं ऐसा मैने सुना है. सोच रहे हैं कि तीन चार बड़े कुत्ते और एक घोड़ा पहले ले आएँ. ह'में कबसे उत्सुक'ता है कि जानवरों के साथ रति करें. पर डर भी लग'ता है. अब तू आ गयी है तो पहले तुझे चुदवायेन्गे कुत्तों से और घोड़े से. तुझे उनका लंड चूस'ने पर मजबूर करेंगे. उत्तेजना से अब माजी अपनी बुर में उंगली कर रही थी. प्रदीप और प्रीतम भी ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते हुए अप'ने लंड मुठिया रहे थे.

बड़ा मज़ा आएगा जब तीन कुत्ते तुझ पर चढ़ाएँगे. एक गान्ड मारेगा, एक लंड चूसेगा और एक मुँह चोदेगा. वैसे कुतिया भी ला सकते है कि तेरे लंड को उस'की चूत में दे दें या किसी कुत्ते की गान्ड में डाल दें. घ्होडे से तेरी गान्ड ज़रूर मरवाएँगे. और तू सही सलामत बच गयी तो फिर मैं भी चुदवा कर देखूँगी. प्रदीप से बड़ा लंड अब सिर्फ़ अरबी घोड़े का ही मिलेगा मुझे! हम लोग भी शुरू हो जाएँगे. तेरे साथ उन जानवरों की फिल्म निकाल'ने का भी प्लान है, बहुत पैसे मिलेगे. हमारी बहू हमारे लिए पैसे भी कमाएगी. मैं डर और वासना से बेहोश होने को था. रुलाई भी छूट रही थी और लंड तन कर उच्छल भी रहा था. मा बोलीं.

बहू को बात पसंद आ गयी, देखो कैसी खुश है!. चल बहुत हो गया. प्यारी जा, उसे तैयार कर. प्रीतम और प्रदीप के लंड अब फट जाएँगे बहू को नहीं चोदा तो. देखा बहू तू कित'ने प्यारे परिवार में आ गयी है! और सुन, आज चोद'ने के पहले सब मिल'कर ज़रा चप्पालों से उस'की पिटायी करो. कल पिटायी नहीं हुई थी उसकी, बुरा मान जाएगी, बोलेगी कैसी ससुराल है जहाँ मन भर के पिटायी भी नहीं होती बहू की. आज सटासट चप्पलें लगा लगा कर उसे पहले कुचल डालो, इतना पीटो की इसका कोमल शरीर गुलाबी हो जाए, फिर चढ जाना! वैसे वे रबड के कोडे भी पड़े हैं, कल इसे उलट लटक'कर इस'की सुनताई करना, मुँह में चप्पल भर देना कि चीख ना पाए.

प्यारी मुझे पकड़'कर ले गयी और मैं अपनी अगली जिंदगी के बारे में सोच'ता सिसक'ता हुआ खिंचाखींचा उस'के पीछे चल दिया.

तो दोस्तो कैसी लगी ये मस्त कहानी आप लोगो को बताना ज़रूर आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त
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05-14-2019, 11:31 AM,
#30
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
मस्त कर गया पार्ट --01

दोस्तों ये कहानी काल्पनिक है भाइयों, आपको पढने के पहले ही वॉर्न कर दूँ कि मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो शायद आप में से कुछ को अच्छी ना लगें! ये केवल एंटरटेनमैंट के लिये लिखी गयी हैं! इस में गाँड की भरपूर चटायी के बारे में, पिशाब से खेलने और उसको पीने के बारे में, इन्सेस्ट, गालियाँ, गेज़ और लडकियों के प्रति गन्दी गन्दी इन्सल्ट्स, फ़ोर्स्ड सैक्स, किन्की सैक्स वगैरह जैसी बातें हैं!इसकी रेटिंग कुछ पार्ट्स में एक्स।एक्स.एक्स. होनी चाहिये! इसमें चुदायी की ओवरडोज़ है! कभी कभी लगेगा, कि सिर्फ़ चुदायी ही जीवन है! जिस किसी को ये बातें अच्छी ना लगें वो कॄप्या आगे ना पढें!ये बात उन दिनों कि जब मैं सिर्फ़ 20 साल का हुआ करता था और होटल डिप्लोमा करके देहली में एक कम्प्यूटर कोर्स करने गया था! तब मोबाइल और ई-मेल्स नहीं थे, कम्प्यूटर भी नया नया आया था इसलिये गेज़ को ढूँढने के लिये सिर्फ़ इन्स्टिंक्ट, चाँस, लक और एक्सपीरिएंस ही इस्तेमाल होता था! अब तो मैं आराम से इंटरनेट के ग्रुप्स और चैट्स पर लडकों से मिलता हूँ मगर तब बात अलग थी! अभी मैं कुछ दिन से, इन्फ़ैक्ट डेढ साल से ज़ायैद नाम के एक लडके से चैट करता हूँ! उसने मुझे अपने फ़ेस के अलावा अपने जिस्म की बहुत पिक्स दिखाई हैं और खूब दिल खोल के चैट किया है! वो मुझे लम्बी लम्बी मेल्स लिखता है! लडका अभी शायद 18-19 का ही है, मुझे भी पता है कि वो मिलेगा नहीं! नेट पर अक्सर लोग मिलते हैं और बिछड जाते हैं... इंटरनेट कुम्भ के मेले की तरह है, जिसमें खो जाना आसान है!

इन्फ़ैक्ट, मैं जितने लोगों से नेट पर चैट करता हूँ उसमें से मिलते कम और बिछडते ज़्यादा हैं, मगर फ़िर भी आदत सी बन गयी है! जब तक ज़ायैद जैसे लडके, चाहे कुछ देर को ही सही, दिल बहलाते रहेंगे, मैं बहलता रहूँगा! मेरे ऑफ़िस में भी इसका चलन है! सभी साइड में एक विन्डो खोल कर चैट करते रहते हैं! वैसे आजकल मेरे ऑफ़िस में एक नया एग्ज़िक्यूटिव आया हुआ है! देखिये, उसके साथ कुछ हो पाता है या वो भी कुम्भ में खो जायेगा! इन्फ़ैक्ट अभी ये लिखते लिखते भी ज़ायैद से चैट कर रहा हूँ और वो चिकना सा सैक्सी एग्ज़िक्यूटिव भी मेरे आसपास ही अपना काम कर रहा है! अभी कुछ देर पहले, वो अपनी ड्रॉअर में कुछ ढूँढने के लिये बहुत देर तक झुका हुआ था! उसकी मज़बूत गाँड फ़ैल के मेरी नज़रों के सामने थी! उसकी थाईज़, पैंट के अंदर से टाइट होकर दिख रही थी!!! काश मैं उनको सहला पाता, उनको छू पाता या उनको किस कर पाता!

मेरी इस कहानी में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो कुछ लोगों को बुरी लग सकती हैं! इसलिये मैं पहले ही बता दूँ कि ये कहानी भी मेरी और कहानियों की तरह केवल एंटरटेन्मैंट के लिये लिखी गयी है! इस में पता नहीं कितना सच है और कितना झूठ! बहुत सी ऐसी चीज़ों का विवरण है, जो मैने ना कभी की हैं और शायद ना कभी करूँगा... बस फ़ैंटेसीज़ हैं, या लोगों से सुना है, देखा है... इसलिये उनके बारे में लिखा है!
वैसे ऐसा कुछ भी नहीं है जो चुदायी शास्त्र में नहीं होता है! हम मे से बहुत लोग शायद मेरी कहानी के कैरेक्टर्स की तरह बहुत सी चीज़ें कर भी चुके होंगे! इसलिये भाइयों, इस कहानी को थोडा नमक मिर्च के साथ पढियेगा तो मज़ा आयेगा!

ये सब टाइप करने के कारण 'मेरा' वैसे भी कुछ खडा है और मैं चुपचाप अपनी ज़िप पर हाथ रख कर हल्के हल्के अपना लँड भी सहला लेता हूँ! कुछ देर पहले वो मेरी तरफ़ मुडा था और मुझे देख कर मुस्कुराया था! उसकी स्माइल बहुत ही सुंदर है! लगता है सारी की सारी गदरायी नमकीन जवानी जैसे पिघल कर होंठों पर आ गयी हो! उसकी उम्र 21 से ज़्यादा नहीं हुई होगी! वो हमारे यहाँ अपनी पहली जॉब ही कर रहा है और अभी दो महीने ही हुए हैं! पहले दिन ही उसकी जवानी मेरी नज़र में बस गई थी! मगर ये कहानी यहाँ शुरु नहीं होती है!

चलिये, आपको करीब 15 साल पहले ले चलता हूँ जब ये कहानी शुरु हो रही थी! मेरे कम्प्यूटर कोर्स के दिन थे! मैं जिस ढाबे पर खाना खाता था, वहाँ एक चिकना सा बिहारी लडका, असद, रोटियाँ बनाता था! उस ढाबे पर जाने का कारण ही था कि मैं उसकी जवानी आराम से निहार सकूँ! मैं ऐसी टेबल पर बैठता, जिससे मुझे वो तंदूर पर झुकता हुआ साफ़ दिखे और मैं उसकी निक्‍कर में लिपटी गदरायी गाँड और नँगी सुडौल माँसल जाँघों को देख सकूँ!

वो उम्र में मुझसे कुछ साल छोटा था मगर उसकी जवानी बडी उमँग से भरी थी! साले की पतली कमर चिकनी और गोरी थी, उसके बाज़ू कटावदार थे, रँग गोरा था, चूतड गोल और रसीले थे और आगे ज़िप के अंदर लौडा जैसे उफ़नता रहता था! वो चिकना और देसी था, मासूम सा मर्द, मुस्कुरा के रोटियाँ देता, मगर ढाबे की भीड में मैं बस उसको देख कर उसके नाम की मुठ ही मार सकता था! कभी रोटियाँ पैक करवाने के बहाने उसके पास कुछ देर खडा होकर उसको पास से देखता और वैसे ही मैने उससे काफ़ी दोस्ती कर ली!

उसका ढाबा मेरे रूम से एक घर आगे था, वो ग्राउँड पर था और मेरा रूम फ़र्स्ट फ़्लोर पर! अक्सर वो बालकॉनी से भी दिखता था! रात में वो वहीं ढाबे पर सोता! उसके साथ पाँच और लडके रहते थे! एक दिन ठँड में बारिश हो गयी तो एरीआ सूनसान हो गया! उस दिन 7 बजे ही आधी रात का सन्‍नाटा था! मैं जब उसके ढाबे पर गया तो वो और लडकों के साथ छुपा हुआ कम्बल ओढ कर टी.वी. देख रहा था! मैने भी दो पेग लगा रखे थे! वो हाथ मलता हुआ आया और तंदूर खोल कर रोटियाँ डालने लगा! दूसरे लडके ने मेरा खाना लगाया! उस दिन जब तीन रोटियाँ हो गयी तो मैने असद को अपने पास बिठा लिया! ठँड के मारे असद का सुंदर सा चेहरा गुलाबी हो गया था, उसके होंठ मुझसे बातें करने में थिरक रहे थे, वो एक पुरानी सी जैकेट पहने था!
'आज टी.वी. का प्रोग्राम है?' मैने पूछा!
'नहीं, ये साले आज कहीं से अध्‍धा ले आये थे...'
'तुम भी पीते हो क्या?'
'नहीं, मगर आज इन्होने पिला दी...'

मैं खुश हो गया! वो मुझे अचानक और ज़्यादा सैक्सी लगने लगा!
'तो क्या अब फ़िर प्रोग्राम चलेगा?'
'कहाँ... सब खत्म हो गयी... एक एक ही पेग बन पाया...'
'तो आज मेरे रूम पर आ जाओ, मेरे पास और भी है...'
'सच?'
'हाँ'
'मगर मैं कैसे आपके रूम पर आ सकता हूँ?'
'क्यों? इसमें क्या है, मैं चलता हूँ... तुम आ जाओ... इनको मत बताना, क्योंकि सबके लिये नहीं होगी...'

मैने उसको अकेले बुलाने का बहाना किया जो कामयाब रहा!
'नहीं नहीं... सबको थोडी पिलाऊँगा भैया...'
'तो आ जाओ'
'कुछ जुगाड करता हूँ...'
उसके साथ अकेले बैठ के दारू पीने की सोच के ही मेरा लौडा ठनक के खडा हो गया! उस दिन उसके चेहरे पर कसक, कामुकता और कसमसाहट थी! शायद मौसम ही इतना सैक्सी था, जिस वजह से उसकी जवानी हिचकोले खा रही थी! उसकी आँखों में एक पेग का नशा और एक कसक भरी प्यास थी जो शायद वैसे मौसम और माहौल में कोई भी गे या स्ट्रेट लडका महसूस कर सकता था और वैसे माहौल में चूत का बडा से बडा रसिया इतना कामातुर हो चुका होता कि वो गाँड मारने से भी परहेज़ नहीं करता!

मैं वहाँ पेमेंट करके उससे आँखों ही आँखों में इशारा करके बडी कामुकता से अपने रूम पहुँचा और वहाँ पहुँच के सिर्फ़ अपने बेक़ाबू लँड को ही सहलाता रहा! मेरे अंदर बेसब्री थी, पता नहीं साला कुछ करने देगा कि नहीं मगर फ़िर भी ये तो था कि मैं कम से कम उसकी जवानी को अकेले सामने बिठा के निहार तो सकता था! मैने जब चुपचाप खिडकी से नीचे झाँका तो वो नहीं दिखा मगर तभी मेरे दरवाज़े पर नॉक हुआ! मैने धडकते हुये दिल से दरवाज़ा खोला! वो अपनी उसी जैकेट और नीचे ट्रैक के ब्लूइश ग्रे लोअर में खडा था! ठँड के मारे उसकी हालत खराब थी!
'भैयाजी, बडी ठँड है... बहनचोद गाँड फ़ट गयी...'
'हाँ, ठँड तो बहुत है...'
मैने अपने लँड को छुपाने के लिये अपने लोअर के नीचे अँडरवीअर पहन ली थी!
'आओ, वोडका से गर्मी आ जायेगी...'
मैं बेड पर टेक लगा के आधा लेट के बैठ गया और वो बगल पर पडी कुर्सी पर बैठ गया, जहाँ मैने जानबूझ के कुछ अश्लील किताबें रख दी थी! मैने जल्दी जल्दी दो पेग बनाये और एक उसको दे दिया! साले ने गटागट अपना ग्लास खाली कर दिया!
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