12-20-2023, 02:57 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 65 B
पारस का बाज़ार
ये बात सुन कर हुरिया हँस पड़ती है।
देवरानी: दीदी एक सप्ताह में प्यार मिलता है और फिर आप पूरा सप्ताह तड़पती रहती हैं तो आपको सुल्तान पर गुस्सा नहीं आता?
हुरिया: खुदा खैर करे! में उनपर गुस्सा होकर गुनाह क्यू कमाउ?
देवरानी: दीदी! आप ये झुब्बा उतार दो ना!
हुरिया मस्कुराते हुए कहती है ।
"तू नहीं मानेगी छोटी।"
हुरिया अपना हिजाब उतार कर दूसरी तरफ रख देती है ।
हुरिया: बस खुश! देख ले अब इस बूढ़ी को!
देवरानी: वाह! आप तो बहुत सुंदर हो! आप का तो अंग-अंग सुंदरता से चमक रहा है।
हुरिया: अब इतनी भी नहीं हूँ... उमर हो गई अब मेरी!
देवरानी: अरे! कहीं से आप बूढ़ी नहीं लगती। अगर आपका ये रूप देख ले तो आज भी कोई नौजवान युवराज आप पर जान दे दे।
हुरिया: अब आधे से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर्दे में । अब क्या सजना और दिखाना!
देवरानी: दीदी आप ऐसी बात मत कीजिए जीवन में जितना हो सके खुश रहिए! और आप सच्ची अपनी उम्र से कम लगती हैं।
हुरिया: अच्छा बाबा मान लिया।
देवरानी: आप सज सवर कर रहिए और देखिए सुल्तान आपके पास आपकी तीनो सौतनो को छोड़ रोज आपके पास आएंगे!
हुरिया: अच्छा जी!
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देवरानी: जी दीदी! फिर वह अपने हरम की किसी भी औरत को देखेंगे भी नहीं।
हुरिया: शुक्रिया! मेरी बहन मेरे बारे में इतना अच्छा सोचने के लिए पर तुझे देख कर मेरा मन कहता है तुम भी अपने शौहर से परेशान हो।
देवरानी: तुम भी मतलब! आप भी परेशान हो क्या?
हुरिया: नहीं नहीं!
देवरानी: मुझे अब कोई परेशानी नहीं है मुझे मेरा जीवन का उद्देश्य मिल गया है।
हुरिया: अच्छा वो! तो तुम्हारा शौहर साथ में नहीं है, इसी वजह से मैं कह रही थी।
देवरानी हसने लगती है।
"दीदी वह थोड़े डरपोक है । उनके शत्रु उनकी हर तरफ है इसलिए नहीं आये!"
हुरिया: मैंने तो पहली बार तुम्हारे बेटे को ही तुम्हारा शौहर समझ लिया था, क्यू के देवराज ने कहा था के तुम शौहर के साथ आ रही हो।
देवरानी (मन में: तुम सही समझो दीदी!)
देवरानी: होता है दीदी! कोई बात नहीं!
हुरिया: और तुमने वह ब्रेज़ियर पहना या नहीं और हा उसमें जंघिया भी था मैं तुम्हे बताना भूल गई!
देवरानी शर्मा कर!
देवरानी: जी दीदी! अभी पहना है ।
हुरिया: इसलिये तुम्हारा सामान कम हिल ड़ुल रहा है ।
हुरिया ठहाके के साथ हसती है।
देवरानी: दीदी आप भी ना!
तभी दोनों के कानों में ढोल की आवाज गूंजती है।
"खामोश रहना देवरानी कुछ ऐलान हो रहा है।"
"सुनो सुनो सुनो! आज पारस में सुल्तान ने फनकारो की मंजलिस रखी है और पारस की मशहूर फनकार आज रात अपना हुनर दिखाएंगे! सुनो-सुनो सुनो!"
देवरानी: दीदी क्या कह रहे हैं?
हुरिया: आओ बाहर चले!
दोनों बाहर आकर अपने कान लगाकर सुनने लगती है।
"सुनो सुनो सुनो! ये जश्न महाराज देवराज जी की बहन के आने की खुशी में मनाया जा रहा है।"
तभी वहा से शमशेरा तेजी में चलते हुए आ रहा था और अपनी माँ को देख रुक जाता है ।
शमशेरा: अरे माँ आप और खाला देवरानी आप भी यहाँ है?
देवरानी: बेटा वह ऐलान सुनने आये थे ।
शमशेरा: खाला वह अब्बा हुजूर ने जश्न मनाने का एलान किया है।
हुरिया: अच्छा तो कौन-कौन फनकार आ रहा है शमशेरा!
शमशेरा: अम्मी आज की महफ़िल में पारस के जितने भी फनकार हैं शायर कव्वाल सब आ रहे हैं ।
हुरिया ख़ुशी से झूम उठती है और उसके साथ ही उसका चेहरा भी खिल जाता है। जिसे गौर से देख रहा था शमशेरा।
देवरानी: (मन में: बड़ा खुश है और अपनी माँ को गौर से देख भी रहा है)
शमशेरा: मैं अभी आया अम्मी! थोड़ी जल्दी मैं हूँ।
हुरिया: कहा चले बेटा?
शमशेरा बिना कुछ बताए चल देता है।
देवरानी: कहाँ गये युवराज शमशेरा ?
हुरिया: कहा जायेंगे अपने पीने का बंदोबस्त करने गया होगा । दोनों बाप बेटे एक जैसे हैं ।
देवरानी: तो दीदी आप मना नहीं करतीं?
हुरिया: क्या मना करु बहन! मेरे मना करने से इसके बाप नहीं माने, ये कहाँ मान जाएगा।
फिर वह लोग वापस कमरे में जा कर बात चीत में लग जाती हैं।
इधर बलदेव गुस्सा हो कर अपने मामा को ढूँढते हुए शमशेरा से टकराता है।
बलदेव: आपने मामा को कहीं देखा है क्या?
शमशेरा: देखा तो है बराबर!
बलदेव: कहा है वो?
शमशेर: आगे तो सुनो पर मुझे नहीं पता है वह अभी कहा है!
बलदेव मज़ाक समझते हुए एक गुस्से की निगाह से देखता है।
शमशेरा: अरे बच्चा गुस्सा हो गया!
बलदेव: ये क्या बदतमीजी है!
शमशेरा: दोस्त मुआफ़ करना। वैसे मैं मज़ाक कर रहा था । मुझे क्या पता की इस समय मामा आपके कहाँ है! वैसे अगर कोई काम न हो तो चलो मेरे साथ।
बलदेव: कहाँ युवराज?
शमशेरा: चलो भाई तुम्हें पारस के मशहूर बाज़ार में घुमा कर लाता हूँ।
बलदेव के पास कोई काम नहीं था वह भी शमशेरा के साथ अपना घोड़ा निकाल लेता है और दोनों बाज़ार की ओर चल देते हैं ।
कुछ दूर घुड़सावरी करने के बाद बाज़ार शुरू हो जाता है । भीड में भी शमशेरा अपना घोड़ा दौड़ाते हुए जा रहा था।
बलदेव: युवराज घोड़ा यहीं बाँध दीजिये, भीड़ में औरतें और बच्चे हैं, किसी को भी चोट लग नहीं लगनी चाहिए ।
शमशेरा: कैसी बात करते हो भाई मैं शमशेरा पारस का होने वाला सुल्तान हों और मैं जल्द ही पूरी दुनिया पर हुकूमत करने वाला हूँ।
शमशेरा: हट जाओ मेरे रास्ते से!
कह कर अपने घोड़े से रास्ता बनाता हुआ भीड़ को चीरता हुआ जाता रहता है और बाज़ार में हाहाकार मच जाती है।
"हट जाओ सब! शहजादे हैं।"
या पूरी भीड़ छट जाती है बलदेव मजबूरन शमशेरा के पीछे अपने घोड़े को लिए जा रहा था।
आख़िर कर शमशेरा अपनी मंजिल में पहुँच कर घोड़े के लगाम को खींचता हुआ रुक जाता है।
वही पास दुकान वाले आवाज देते हैं।
दुकानवाला: शहजादे आइ! ए ये मेरी कालीन ले लीजिए इसका काम देखिए! इसकी खुबसूरती का कोई सानी नहीं है।
बलदेव: युवराज सही हैं में ये बहुत खूबसूरत कालीन है ।
शमशेरा: इसे छोडो बलदेव! अगर तुम्हें चाहिए होगा तो इसे हम महल बुला लेंगे। अभी चलो।
शमशेरा । सीढ़ियों से उतरकर वह एक अंधेरे से बड़े घर में पहुँचता है जहाँ पर अँधेरा था। लालटेन की रोशनी में ये पता चल रहा था कि ये बड़ा तहखाना था।
बलदेव: युवराज ये तो...!
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शमशेरा: शशश! और ये बार-बार युवराज कहना बंद करो । तुम मुझे नाम से पुकारो!
बलदेव: शमशेरा ये तो सही जगह नहीं है।
शमशेरा: तुम अभी बच्चे हो। अभी यहाँ पर हर किस्म की मदीरा मिलती है और इसके ऊपर माल!
बलदेव: कैसा माल?
शमशेरा हसता है।
शमशेरा पास रखे मिट्टी की सुराही में रखी मदीरा बेच रहे आदमी के पास जा कर कहता है ।
शमशेरा: इधर लाओ एक!
और कुछ सिक्के उसको दे देता है, फिर मदीरा गटकते हुए!
शमशेरा: तो सुनो माल के माने ये है कि यहाँ ऊपर कोठा है और पूरी दुनिया भर से यहाँ तवायफे आती है। यहाँ तुम्हे जर्मन, फ्रांसिसी, मिश्र, अरबी हर देश को सुंदर तवायफे मिलेगी।
बलदेव: शमशेरा! क्या बात कर रहे हो?
शमशेरा एक आँख मारता है।
शमशेरा: भाई यहाँ पर ऐश करने लोग दुनिया भर से आते हैं । तुम्हें चाहिए तो बोलो ।
बलदेव: नहीं, ये पाप है, तुम ये सब कैसे करते हो? सुल्तान को पता चला तो...!
शमशेरा: सुल्तान को बताएगा कौन? हाहाहा! मेरा जब मन करता है मैं मजे कर के जाता हूँ। तुम बच्चे ही रहोगे।
बलदेव: शमशेरा! नहीं ऐसी बात नहीं है, पर मैं किसी से प्रेम करता हूँ। उसे धोखा दे नहीं सकता ।
शमशेरा: भाई बड़े इमानदार हो। लगता है अपनी मेहबूबा को दिल से चाहते हो!
बलदेव: वो मेरे रोम-रोम में बसती है उसे धोखा देना अपने आप को धोखा देने जैसा होगा।
शमशेरा: अब बस करो! ज्यादा मजनू ना बनो। लो मदीरा तो पियो!
बलदेव: नहीं यार उसने मुझे मना किया है।
शमशेरा: भाई वह पारस में तुम्हें देखने थोड़ी आ रही है ।
बलदेव: नहीं, फिर भी!
शमशेरा: भाई तुम्हारी मेहबूबा कहाँ है? हिंद में है ।
बलदेव: हम्म!
शमशेरा: और तुम हो यहाँ पारस में हजारों मील दूर। क्या वहाँ तक उसको इसकी खुशबू आएगी? हाहाहाहा
बलदेव: ठीक है तो लाओ एक घूँट पी लू।
बलदेव भी दो घूंट पी लेता है।
शमशेरा: कैसा लगा इसका स्वाद? मजा आया?
बलदेव: अच्छा है।
बलदेव ने पहले भी मदीरा ही थी कई बार। इस बार उसे लगता है जैसे वह किसी और दुनिया में ही पहुँच गया हो!
जारी रहेगी
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12-20-2023, 02:58 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 66 A
बादशाह की महफ़िल में मचलती हुई मोहब्बत
बलदेव धीरे-धीरे नशे में डूब रहा था और वैसा ही हाल शमशेरा का भी था।
शमशेरा: चलो यार, मैं एक माल को ठोक के आता हूँ ।
बलदेव: नहीं शमशेरा घर चलो...मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा!
शमशेरा: तुम सच में 18 साल के दूध पीते बच्चे हो, चलो!
बलदेव: शमशेरा ! तुमने मुझे बच्चा कहा!
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दोनों वहा से जाने लगते हैं तभी वहा पर एक सुंदर नचनिया सब नशेडीयो का मनोरंजन करते हुए नाचने लगती है, जिसे देख शमशेरा रुक जाता है।
शमशेरा: (मन में: ओह्ह अम्मी तुम कितनी खुबसूरत हो ।)
शमशेरा को उस नचनिया को देख उसकी माँ हुरिया याद आ रही थी जिसके हुस्न को, दिन दहाड़े अपने बाप सुल्तान के हाथो को मसलते हुए उसने अपनी आंखों से देख लिया था।
शमशेरा: (मन में: माँ कसम! अम्मी मुझे एक बार मिल जाओ तो मैं तुम्हें अब्बा की तरह वैसे अधूरा नहीं छोड़ूंगा, जैसे उस दिन तुम मिन्नत करती रही और वह तुमसे दूर हो गए।)
बलदेव: भाई चलो भी क्या सोचने लग गये?
शमशेरा: हाँ! हाँ! अब चलो बच्चे!
शमशेरा तथा बलदेव तहखाने में बने मयखाने से निकल कर सीढ़ियों से चढ़ ऊपर आते हैं और अपने घोड़ों की ओर चल देते हैं। शमशेरा ने इतनी पी ली थी की वह जहाँ भी देख रहा था उसे रह-रह के उसे अपनी माँ दिख रही थी और उसके दिमाग में यहीं गूंज रहा था "सुल्तान! नहीं! रुको! अभी मेरा नहीं हुआ!" और फिर आप अपनी माँ हुरिया को अपने बाप द्वारा चोदने के ख्याल से शमशेरा गरम हो जाता है।
बलदेव चुपचाप उसने जो गलती उसने की है उस बारे में सोचते हुए घोड़े को भगा रहा था।
बलदेव: (मन मैं: देवरानी ने मना किया था और मैंने फिर भी मदिरा पी ली है । गरा उसको पता चल गया मैंने मदिरा पी है तो... अरे क्या हुआ? मैं मर्द हूँ, एक औरत के कहने से पियू नहीं क्या ...?
बलदेव नशे में धुत कभी अपनी गलती पर खेद करता । कभी नशे में सोच रहा था उसने कोई नशा नहीं किया । दोनों ऐसे ही महल पहुच जाते हैं।
जश्न का महौल जोरो शोरो से शुरू था। रात अपना अँधेरा फेलाए हुए थी और पारस को टिमटिमाते तारो की रोशनी से घेर लिया था और तारो की ख़ूबसूरत रोशनी जब पारस की ख़ूबसूरत महलो या दरबारो पर पड़ती तो महौल और भी ख़ूबसूरत हो जाता था ।
दरबार में एक तरफ मर्द बैठे थे या वही बगल में एक परदा कर के महल की सब औरतें भी बैठ कर जश्न मना रही थी ।
फनकार बारी-बारी से आकर अपना फन और हुनर दिखा रहे थे।
परदे के पीछे से जो बारीक-सा कपडे का था जिसका आरपार देखा जा सकता था सब औरतों में अपने सिंहासन पर मल्लिकाजहाँ भी बैठी हुई थी । उसके साथ देवरानी और हरम की 150 कनीज रानिया, जिन्हे सुल्तान मीर वाहिद ने अपने हरम में रखा था, सब के पीछे पारस के अलग-अलग कसबो और शहरो से आयी औरतें भी बैठी थी और पंखे का मजा ले रही थी ।
देवरानी: दीदी ये बलदेव नहीं दिख रहा बहुत समय हो गया!
हुरिया: मुझे पता चला है वह शमशेरा के साथ गया था, फ़िकर ना करो!
देवरानी: मुझे डर लग रहा है एक बार उसको देख लेती हूँ ।
हुरिया अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा के ताली बजाती है।
ताली की आवाज सुन कर वहा दासी आती है।
दासीःजी मल्लिकाजहाँ!
हुरिया: सुनो बलदेव और शमशेरा का पता लगाओ । वह दोनों कहा है?
दासी: जो हुकम मल्लिका जहाँ!
हुरिया देवरानी की ओर देख कर मुस्कुराती है।
हुरिया: अब खुश मेरी रानी! तुम एक मिनट की चैन नहीं लेती बलदेव के बिना।
देवरानी शर्म से अपना सर नीचे कर लेती है ।
देवरानी: (मन में: अब कैसे बताऊ आपको हुरिया दीदी, बलदेव मेरे पति से भी बढ़ कर है और मैं उनसे कितना प्रेम करती हूँ।)
देवरानी हुरिया की मुस्कराहट का जवाब मस्कुरा कर देती है ।
जारी रहेगी ........
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12-20-2023, 02:59 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 66 B
बादशाह की महफ़िल में मचलती हुई मोहब्बत
देवरानी: दीदी ये बलदेव नहीं दिख रहा बहुत समय हो गया!
हुरिया: मुझे पता चला है वह शमशेरा के साथ गया था, फ़िकर ना करो!
देवरानी: मुझे डर लग रहा है एक बार उसको देख लेती हूँ ।
हुरिया अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा के ताली बजाती है।
ताली की आवाज सुन कर वहा दासी आती है।
दासीःजी मल्लिकाजहाँ!
हुरिया: सुनो बलदेव और शमशेरा का पता लगाओ । वह दोनों कहा है?
दासी: जो हुकम मल्लिका जहाँ!
हुरिया देवरानी की ओर देख कर मुस्कुराती है।
हुरिया: अब खुश मेरी रानी! तुम एक मिनट की चैन नहीं लेती बलदेव के बिना।
देवरानी शर्म से अपना सर नीचे कर लेती है ।
देवरानी: (मन में: अब कैसे बताऊ आपको हुरिया दीदी, बलदेव मेरे पति से भी बढ़ कर है और मैं उनसे कितना प्रेम करती हूँ।)
देवरानी हुरिया की मुस्कराहट का जवाब मस्कुरा कर देती है ।
देवरानी: धन्यवाद दीदी!
बलदेव और शमशेरा अपने घोड़ों को सैनिको को सौंप भागते हुए दरबार की ओर जाते हैं।
शमशेरा: हमें देरी हो गई! बलदेव, अगर सुल्तान ने मुझे देख लिया तो मेरी खैर नहीं।
बलदेव: तुम्हारे कारण से मुझे भी सुनना पड़ सकता है, मामा देवराज से!
डर के मारे दोनों का नशा थोड़ा कम हो गया था।
शमशेरा: बलदेव तुम महफ़िल में जाओ हम आते हैं।
बलदेव: तुम क्यू नहीं जाओगे फट रही है बाप के सामने जाने में ...बच्चू!
शमशेरा: तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना, मैं ये जो ले कर आया हूँ इसे अपने कक्ष में सही सलामत पहुँचा कर आता हूँ । रात में सोते वक्त दो घुट और पी लूंगा।
बलदेव: मुझे पता है, तुम कितने बड़े नशेडी हो, ! ठीक है यार, तुम जाओ।
बलदेव महफ़िल में जाता है तो देखता है सब बैठ बहुत ध्यान से एक नचनिया का नाच देख रहे थे ।
बलदेव चुपके से जा कर सबसे पीछे देवराज और सुल्तान मीर वाहिद से छुप कर आसन पर बैठ जाता है।
देवराज की गिद्ध की आखें बलदेव को यू चुपके से आ के बैठा देख लेती है । देवराज अपने भांजे को एक मुस्कान दे कर इशारे में बैठने के लिए कहता है। उत्तर में बलदेव भी आँखों से, जी मामा! का इशारा करता है।
देवराज: (मन में-इसे शमशेरा ले कर गया था, इसे दूर रखना होगा उस शमशेरा से, नहीं तो ये भी बिगड जाएगा।)
पास बैठा सुल्तान मीर वाहिद भी बलदेव को देख....।
" ये शमशेरा कहा रह गया? बलदेव तो आगया। '
शमशेरा अपने कमरे में जा कर मदिरा को छुपा देता है।
इधर देवरानी हुरिया से कहती है कि उसे भूख लगी है, अंदर कक्ष में चलें और हुरिया और देवरानी महल में अपने कक्ष में आजाते हैं ।
महल में लोगों का तांता लगा था और सैनिक गरीबों को कपड़ा, खाना इत्यादि बांट रहे थे।
सैनिक: ये लो तुम्हारा कपड़ा बुढ़िया! सुलान और पारस की सलामती की दुवा करो1
तभी ये सुन कर हुरिया रुक जाती है और सैनिक से पूछती है ।
हुरिया: क्या कहा तुमने?
सैनिक: मुआफ़ किजिये मल्लिकाजहाँ!
हुरिया: वो तुम्हारी माँ की उम्र है। तुम उसे बूढ़ी कह रहे हो । शरम नहीं आती तुम्हें?
सैनिक: मुआफ़ करदे मल्लिकाजहाँ!
हुरिया: हम गरीबों को दे रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं-नहीं कि हम उनपर एहसान कर रहे हैं, बल्कि ये इसलिए है कि खुदा ने हमें सब कुछ दिया है ताकि हम सब को दे सके और पारस के एक गरीब का हक हमारी दौलत पर है।
हुरिया उस बूढ़ी औरत को देख कहती है ।
" हमें दुवाओ से नवाजे अम्मा!
बूढ़ी औरत: खुदा आपको हर ख़ुशी दे मल्लिकाजहाँ!
देवरानी ये देख खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही थी।
देवरानी: (मन में-मल्लिका हुरिया कितनी पाक दिल की है।)
वो दोनों अपनी कक्ष में जाने लगते हैं तभी शमशेरा अपने कक्ष से उनकी तरफ आ रहा था।
शमशेरा: सलाम अम्मी, सलाम देवरानी खाला!
देवरानी: नमस्कार!
हुरिया: सलाम बेटा! कहाँ थे?
शमशेरा: वह बस बलदेव को पारस की सैर करवाने ले गया था ।
हुरिया: तुम देवरानी के लिए कुछ खाना मंगवाओ और अगर तुम्हारे अपने कक्ष में अगर खाना है तो खा लो।
देवरानी: बलदेव कहा है शमशेरा बेटा?
शमशेरा: वो महफिल में है ।
देवरानी ये सुन कर अपनी कक्ष की ओर जाने लगती है।
हुरिया गरीबों में कपड़े और खाना बांट रहे सैनिकों को रुक कर देख रही थी और पास खड़ा शमशेरा हुरिया को देख रहा था ।
देवरानी थोडा आगे जा कर पीछे मुड़ती है तो उसके होश उड़ जाते हैं वह देखती है शमशेरा अपनी अम्मी हुरिया की गांड को घूरे जा रहा था।
देवरानी: (मन में: हे भगवान ये भी।!)
देवरानी देखती है शमशेरा अपनी माँ की गांड को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था ।
शमशेरा: (मन में-अम्मी मैंने जब से आपको अब्बा से चुदाई करवाते हुए देखा है तब से आपके इस हुस्न का दीवाना हो गया हूँ ।)
देवरानी: दीदी...!
ये सुनते ही शमशेरा अपने ख्वाब से बाहर आता है और अपनी निगाहें अपनी माँ से हटा कर देवरानी को देखता है, जो मुस्कुरा कर हुरिया को कहती है।
"दीदी आप भी आइए ना, मुझे अकेला जाना अच्छा नहीं लग रहा है।"
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हुरिया शमशेरा को देख कहती है ।
"अरे बेटा अभी तुम गये नहीं?"
"हाँ अम्मी मैं जा ही रहा था।"
और अपनी नज़रो को बचाता है।
हुरिया: जल्दी! महफ़िल में आ जाना! बेटा!
शमशेरा: जी अम्मी!
हुरिया तेज़ कदमो से अपने भारी भरकम बदन को हिजाब में लिए देवरानी की ओर से चलने लगती है।
देवरानी खड़ी-खड़ी अंदर से मुस्कुराती हुई शमशेरा की निगाहों को ही देख रही थी । जिन्हे देख लगता था को अपनी माँ के चलने पर उसकी भारी चूत को वह खा जाने वाली नजर से देख रहा था।
देवरानी के पास पहूच कर हुरिया बोलती है ।
"चलो देवरानी !"
देवरानी और हुरिया अंदर चले जाते हैंऔर शमशेरा महफ़िल में चला जाता है।
देवरानी: दीदी आपको दुर्गंध नहीं आयी?
हुरिया: मतलब!
देवरानी: दीदी मतलब शमशेरा से कुछ नशा की महक आ रही थी ।
हुरिया: हाँ इसीलिए तो वह देर से आया है, मुझे पता है।
देवरानी: तो दीदी आप ने उसे कुछ कहा क्यू नहीं?
हुरियाँ: मैंने बहुत समझाया पर मेरी ये एक नहीं सुनता । बहन वह रोज पीता है ।
देवरानी: दीदी! ऐसे तो वह अपनी सेहत बर्बाद कर लेगा।
हुरियत: अब वह जाने! अब वह बच्चा नहीं रहा । वह अब 25 साल का समझदार मर्द हो गया है।
देवरानी: मेरा बलदेव तो अभी बस 18 साल का है पर मेरी हर बात मानता है।
दोनों अंदर जा कर खाने पीने लगती हैं।
बलदेव के पास जा कर शमशेरा भी बैठ जाता है पर सुल्तान उसे एक बार घूर कर देखते हैं जिसका मतलब था कि आगे जा कर, शमशेरा को डांट पड़ने वाली थी ।
देवरानी और हुरिया अब वापस आकर महफ़िल में बैठ जाते हैं। अब कव्वाल अपनी कव्वाली सुना रहे थे, डफली और तबले की आवाज गूंज रही थी।
रात के 11 बज गए बलदेव के सोने का समय हो गया था और उसको उसके साथ अब कुछ समय से देवरानी को इस समय अपनी बाहो में रख रगड़ने की आदत हो गयी थी।
बलदेव: (मन में-अरे ये मुझे क्या हो रहा हूँ । मुझे अब मेरी जान देवरानी के साथ होना चाहिए था । पारस में हम देवरानी से दूर रहने के लिए आए हैं क्या?)
बलदेव के ऊपर से नशे की खुमारी अभी पूरी तरह से उतरी नहीं थी।
बलदेव अपने आसन से उठा कर जाने लगता है और पास लगे परदे के पास जा कर अपनी माँ को औरतों की हुजूम में ढूँढने लगता है, आखिर कर उसे हुरिया के साथ अपनी माँ दिखती है, वह उसके करीब जाता है और परदे के पास खड़ा हो कर इशारा करता है।
दासी: युवराज! आप यहाँ से चले जाएँ इस तरफ मर्दों को आना मना है।
बलदेव: अरे मैं उधर नहीं जा रहा हूँ। मेरी माँ को कहो मेरी ओर देखें!
दासी जा कर देवरानी को परदे के पीछे खड़े बलदेव को देखने के लिए कहती हैं।
देवरानी इशारे से पूछती है।"क्या हुआ?"
बलदेव अपने दोनों हाथ जोड़ कर सोने का इशारा करता है।
पास बैठी हुरिया दोनों को इशारे करते हुए देख लेती है ।
हुरिया: क्या हुआ देवरानी बलदेव क्या कह रहा है?
देवरानी: उसको नींद आ रही है सोने के लिए कह रहा है।
जारी रहेगी ........
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