प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:39 PM,
#61
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
रति-द्वार दर्शन :

जब मैं रमेश और सुधा को स्टेशन छोड़ कर वापस आया तो लगभग साढ़े ग्यारह बज चुके थे। मिक्की गेस्टरूम में सो चुकी थी। मैंने उस रात मधु को दो बार कस कस कर चोदा और एक बार उसकी गांड भी मारी। आज जिस तरीके से मैंने मधु को रगड़ा था मुझे नहीं लगता वो अगले दो दिनों तक ठीक से चल फिर पाएगी।

आज मेरा उतावलापन और बेकरारी देखकर मधु आखिर बोल ही पड़ी, “आज आपको क्या हो गया है ? मुझे मार ही डालोगे क्या ? कहीं आप नशा तो नहीं कर आये हो।”

अब मैं उसे क्या बताता कि मैं तो मिक्की के नशे में अन्दर तक डूबा हुआ हूँ। मैं तो बस इतना ही बोल पाया आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो मेरी जान और तीन चार चुम्बन उसके गालों पर ले लिए तो वो बोली- उन्ह्ह्ह…. हटो परे झूठे कहीं के…. !हम लोगो को रात को सोने में दो बज गए थे।

रात के घमासान के बाद सुबह उठाने में देर तो होनी ही थी। मैं कोई आठ बजे उठा। मधु पहले ही उठ चुकी थी। मधु ने मुझे जगाया और उलाहना देते हुए बोली- रात में तो तुमने मेरी कमर ही तोड़ डाली।

मैंने उसे फिर बाहों में भरने कि कोशिश की तो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली “सुबह सुबह छेड़खानी नहीं ! जाओ मोना को जगा दो ! मैं चाय बनाती हूँ “

मैं बाथरूम से फ्रेश होकर गेस्ट रूम में गया जहां मिक्की सोई हुई थी। मिक्की अभी भी बेसुध पड़ी सो रही थी। उसने अपना अंगूठा मुंह में ले रखा था और दूसरे हाथ से बेबी डॉल को सीने से चिपका रखा था। बालों की एक आवारा लट उसके गालों पर बिखरी पड़ी थी। जिस अंदाज में वो सोई थी मुझे लगा कि वो अभी निरी मासूम बच्ची ही है। मुझ जैसे पढ़े लिखे आदमी के लिए ऐसी भावनाए रखना कदापि उचित नहीं है।

पर मेरा ये ख़याल अगले ही पल हवा में काफूर हो गया। उसने फूलोंवाली फ़्रॉक और गुलाबी रंग की पेंटी पहन रखी थी। वो करवट लेकर लेटी हुई थी। एक टांग थोड़ी सी ऊपर की ओर मुड़ी हुई। उसकी पुष्ट जाँघों को देखकर तो लगा जैसे वो कोई हॉकी की खिलाड़ी हो। पेंटी के अन्दर कसी हुई उसकी बुर एकदम फूली हुई थी। रोम विहीन टाँगे घुटनों से ऊपर उठी उसकी फ़्रॉक से झांकती हुई उसकी जाँघों की रंगत तो शरीर के दूसरे हिस्सों से कहीं ज्यादा गोरी थी। मैं तो बेसाख्ता आँखें फाड़े उस रूप की देवी को देखता ही रह गया। मेरा पप्पू तो बेकाबू होने लगा।

मैं सोच रहा था कि उसे जगाने के लिए उसकी संगमरमरी जाँघों पर हाथ फेरूँ या नितम्बों पर जोर की थप्पी लगाऊं या उसके गालों पर एक पप्पी लेकर उसे जगाऊं। धड़कते दिल से मैंने अपना एक हाथ और मुंह उसकी जाँघों की ओर बढाया ही था कि पीछे से मधु की आवाज आई,”अरे मोना अभी उठी नहीं ? ऑफ।। ये लड़की भी कितना सोती है ?”

मैं तो इस अप्रत्याशित आवाज से हड़बड़ा ही गया। मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरा सारा खून रगों में जम ही गया है। आज तो मेरी चोरी पकड़ी गई है। पता नहीं मेरे मुंह से कैसे निकल गया।

“हाँ हाँ उठ ही रही है !”

मुझे लगा अगर मैंने मधु की ओर देखा तो जरूर वो जान जायेगी और मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा। पर भगवान् का लाख लाख शुक्र है वो रसोई में चली गई थी। अगर एक दो सेकंड की भी देरी हो जाती तो ??

सोच कर मैं तो सूखे पत्ते की तरह काँप गया।

मैं तो तब चौंका जब मिक्की ने आँखे मलते हुए कहा,”गुड-मोर्निंग फूफाजी !”

मैं भला क्या कहता। मिक्की बाथरूम में चली गई। मेरी हालत तो उस निराश शिकारी की तरह हो रही थी जिसके हाथ में आया हुआ शिकार छूट गया हो। मैं बाहर लॉन में पड़ी चेयर पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगा।

गर्मियों की छुटियाँ चल रही थी इसलिए मधु को तो वैसे ही स्कूल नहीं जाना था (मधु बच्चों के एक स्कूल में डांस टीचर है) और मैंने आज बंक मारने का इरादा पहले ही कर लिया था वैसे भी आज बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी थी। मैं चाहता था कि मिक्की और मधु पहले नहा धो लें, मैं तो आराम से नहाना चाहता था। मुझे आज अपने पप्पू का मुंडन भी करना था। आप तो जानते ही है मधु को लंड और चूत पर झांटे बिलकुल अच्छी नहीं लगती। उसने कल रात भी उलाहना दिया था। पर मैं तो कुछ इससे आगे भी सोच रहा था। क्या पता कब किस्मत मेरे ऊपर निहाल हो जाये और मेरी मोनिका डार्लिंग मेरी बाहों में आये तो मैं एक हैंडसम चिकने आशिक की तरह लगूं। वैसे एक कारण और भी था। गुरूजी कहते है झांटों की सफाई करने के बाद लंड और चूत दोनों की सुन्दरता बढ़ जाती है और लंड का आकार बड़ा और चूत का छोटा नजर आने लगता है। वैसे तो ये नज़र का धोखा ही है पर चलो इस खुशफहमी में बुरा भी क्या है।

खैर कोई बारह-साढ़े बारह बजे मैं नहा धोकर फारिग हुआ। मिक्की स्टडी रूम से बाहर आ रही थी। उसकी नज़रें झुकी हुई थी और साँसे उखड़ी हुई माथे पर पसीना। वो मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थी। वो मेरी और देखे बिना मधु के पास रसोई में चली गई। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं पर बाद में मेरी तो बांछें ही खिल गई। ओह मिक्की डार्लिंग ने जरूर वो ही ‘जंगली छिपकलियों’ वाला फोल्डर और फाइल्स देखी होंगी। थैंक गॉड। आईला….। मेरा दिल किया कि जोर से पुकारूं – मोनिका…. ओ।।। माई।। । डार्लिंग”।

कोई आधे घंटे बाद मिक्की नाश्ता लेकर आई। उसकी नज़रें अभी भी झुकी हुई थी। ऊपर से वो सामान्य बनने की कोशिश कर रही थी।

मैंने उसे पूछा,”क्या बात है ?”

तो वो बोली “कुछ नहीं आआन्न…. वो….। वो हम मंदिर कब चलेंगे ?”

मैंने उसके चहरे की और गौर से देखते हुए कहा,”शाम को चलेंगे अभी तो बहुत गरमी है !”

आज कामवाली बाई गुलाबो नहीं उसकी लड़की अनारकली आई थी। मैं सोफे पर बैठा टीवी देख रहा था। जब मिक्की रसोई में जा रही थी तो अनारकली उधर देखते हुए मेरे पास आकर फुसफुसाने वाले अंदाज में आँखें मटकते हुए बोली “ये चिकनी लोंडिया कौन है ?”

मैंने उसके दोनों संतोरों को जोर से दबाते हुए कहा “क्यों लाल मिर्च से जल गई क्या ?”

“जले मेरी जूती !” पैर पटकते हुए वो अपना मुंह फुलाते हुए वो अन्दर चली गई।

आप चौंक गए न ? मैं आपको बताना भूल गया कि अनु हमारे यहाँ काम करनेवाली बाई गुलाबो की लड़की है जिसे मैं कई बार चोद चुका हूँ और उसकी गांड भी मार चुका हूँ। वो तो समझती है कि सारी खुदाई छोड़ कर मैं तो बस उस पर ही मोर हूँ। उसे हम भंवरों की कैफियत का क्या गुमान। वैसे भी भगवान् ने औरतों को दूसरी किसी भी सुन्दर औरत के लिए ईर्ष्यालू बनाया ही है तो इसमें बेचारी अनारकली का क्या दोष है।

शाम को कोई चार बजे मैं और मिक्की लिंग महादेव मंदिर पर जाने के लिए तैयार हो गए। मधु ने वो ही कमर दर्द का बहाना बनाया और साथ नहीं गई। मैं इस कमर दर्द का मतलब अच्छी तरह जानता था। मिक्की को जब ये पता चला कि बुआजी साथ नहीं जा रही तो वो बहुत खुश हुई पता नहीं क्यों। दो जनो के लिए तो कार की जगह बाइक ही ठीक थी।
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07-04-2017, 12:39 PM,
#62
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मिक्की ने सफ़ेद पैन्ट और गहरे बादामी रंग और फूलों वाला एक ओर से झूलता हुआ कुर्ता पहन रखा था। सिर पर वोही नाइके वाली टोपी, कलाई में रिस्ट वॉच । मैं तो अभी ये सोच ही रहा था कि मिक्की ने जरूर वोही पेंटी और पैडेड ब्रा भी पहनी होगी जो कल शाम हमने खरीदी थी। पैडेड ब्रा के कारण उसके बूब्स की साइज़ ३४ तो जरूर लग रही थी। होंठों पर हलकी सी लाल लिपस्टिक। आज मैंने भी अपनी काली जीन और पसंदीदा टी-शर्ट पहनी थी। इम्पोर्टेड परफ्यूम स्पोर्ट्स शूज और नाइके की टोपी।

“बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूँ….” मैं मस्ती से गुनगुनाता जब बाहर आया तो मिक्की ने मुझे घूर कर ऊपर से नीचे तक देखा। फिर एक आँख मारते हुए बोली “ओये होए ! क्या बात है ! आज तो बड़े जच रहे हो? किसी को कत्ल करना है क्या ?” मैं क्या बोलता।

“अच्छा बताओ मैं कैसी लग रही हूँ ?” मिक्की ने आँखे नचाते हुए कहा।

“बिलकुल बंदरिया लग रही हो” मैंने उसे चिढ़ाने के अंदाज में कहा तो उसने अपना मुंह फुला लिया। मेरा इरादा उसे नाराज़ करने का कतई नहीं था। मैं तो उसे सपने में भी नाराज करने की नहीं सोच सकता। मैंने उसके गालो पर थप्पी लगाते हुए कहा “बिलकुल हंसिका मोटवानी और करीना कपूर लग रही हो ! सच में !”

“परे हटो।। हुंह झूठे कहीं के ? ” जिस अदा से उसने ये कहा था मुझे मधु का रात वाला डायलॉग याद आ गया। इसी लिए तो कहते है कई चीजें वंशानुगत भी होती हैं।

मिक्की मोटर साइकल पर मेरे पीछे चिपक कर बैठी हुई थी उसका एक हाथ मेरी कमर को नाभि के थोड़ा नीचे कस कर पकड़े हुए था। उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रखा था और एक हाथ गले में डाल रखा था। जिस तरीके से वो मेरे साथ चिपक कर बैठी थी मुझे नहीं लगता मिक्की अब छोटी बच्ची रह गई है। उसकी गोलाइयां मेरी पीठ पर आसानी से महसूस हो रही थी। आज उसने भी शायद अपनी बुआजी की ड्रेसिंग टेबिल का पूरा फायदा उठाया था। पिछले जन्मदिन पर जो इम्पोर्टेड परफ्यूम मैंने मधु को गिफ्ट दिया था उसकी महक भला मैं कैसे नहीं पहचानता। मैं तो इतना मदहोश हो रहा था कि मुझे लगने लगा कहीं मैं कोई एक्सीडेंट ही कर बैठूंगा।

जहां से पहाड़ी पर मंदिर के लिए रास्ता शुरू होता है श्रद्धालु नंगे पैर ही ऊपर पैदल जाते है। मोटरसाइकल स्टैंड पर खड़ी करने और जूते उतारने के बाद मैंने मिक्की को बताया ऊपर पीने का साफ़ पानी नहीं मिलेगा अगर पीना है तो यही पी लो। मिक्की पानी की पूरी एक बोतल डकार गई और मैंने जानबूझ कर उसे बाद मैं फ़्रूटी के २-३ पाउच और पिला दिए। आप इतने भी कम अक्ल नहीं है कि मेरी इस चाल को न समझ रहे हो। पर मिक्की इन सब बातों से परे कुछ और खाने पीने की फिराक में थी। हमने प्रसाद के साथ कुछ स्नेक्स, मिठाइयां और बंदरों के लिए भुने हुए चने लेने के बाद मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। मंदिर की दूरी यहाँ से कोई दो किलोमीटर है।

आज सोमवार का दिन था पर भीड़ कोई ज्यादा नहीं थी कोई इक्के दुक्के ही श्रद्धालु थे क्योंकि लोग सुबह सुबह दर्शन करके चले जाते है। हमारे जैसे प्यार के परवाने अपनी शमा के साथ शाम को ही आते है। दर्शन करने और कच्चा दूध-जल चढाने के बाद जब हम मुख्य मंदिर से बाहर आये तो मैंने मिक्की से पुछा तुमने क्या मन्नत माँगी तो वो कुछ सोचने लगी और फिर बोली,”नहीं ! पहले आप बताओ !”

मेरे जी में आया साफ़ कह दूं कि मैंने तो बस तुझे ही माँगा है पर ये कहना इतना आसान भी नहीं था मेरे दोस्तों और दोस्तानियो ! मैंने घुमा फिरा कर कहा,”जो तुमने माँगा, वो ही मैंने मांग लिया !”

“क्या…. ? आपने भी ? मतलब…. याने ….? ओह !! ?” वो आश्चर्य से मेरा मुंह देख रही थी जैसे मैंने उसकी कोई शरारत या चोरी पकड़ ली हो। जब उसे अपनी बात समझ आई तो शर्म से दोहरी गई। मैं तो निहाल ही हो गया।

मंदिर के पीछे थोड़ा खुला आँगन सा है जहां पर तीन तरफ दो दो फ़ुट की दीवार बनी है नीचे गहरी खाई और झाड़ झंखाड़ है। यहाँ काले मुंह वाले लंगूर बहुत है जो पेड़ों पर उछल कूद मचाते रहते हैं, आने वाले श्रद्धालु उन्हें भुने हुए चने, केले आदि डाल देते हैं। बच्चो का तो ये मनपसंद खेल होता है। फिर मिक्की भी तो अभी बच्ची ही थी ऐसा मौका वो भला क्यों छोड़ती। उसने भी बंदरों को चने डालने शुरू कर दिए। हम लोग एक कोने में खड़े थे। थोड़ी दूर दूसरे कोने में एक नवविवाहित जोड़ा अपनी गुटरगूं में व्यस्त था। लड़का शायद उसका चुम्बन लेना चाहता था पर लड़की शर्म के मारे उसे मना कर रही थी। मैंने देखा मिक्की बड़े गौर से उनको देख रही है। मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद वो दोनों उठकर चले गए तब मिक्की को शायद मेरी याद आई।

“जिज्जू ! थोड़ी देर बैठें ?”

“हाँ, यहीं दीवार के पास बैठ जाते हैं।”

हम दोनों पास पास बैठ गए। एक हलका सा हवा का झोंका आया तो मिक्की के बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे तन मन को अन्दर तक सराबोर करती चली गई। मिक्की बंदरों को दाने डाल रही थी। कभी ऊपर उछालती कभी दूर फेंक देती बंदरों की इस उछल कूद से उसे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने उसे समझाया कि इनको ज्यादा मत सताओ नहीं तो ये काट खाएँगे पर मिक्की तो अपनी ही धुन में थी।

पेड़ की एक डाली पर एक बन्दर अपनी लुल्ली निकाले उसे छेड़ रहा था। मिक्की उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। इतने में एक बंदरिया आई और बन्दर उसके ऊपर चढ़ कर आगे पीछे धक्का लगाने लगा। मिक्की ने बिना अपनी नज़रें हटाये मुझ से बोली “देखो जिज्जू ! ये बन्दर क्या कर रहे हैं।”

उसे क्या पता, वो बेख्याली में क्या बोल गई !

मेरे लिए भी ये अप्रत्याशित था। अब आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते है मैंने अपने पप्पू को किस तरह से रोक रखा था। अगर ये घर या कोई सूनी जगह होती तो निश्चित ही मैं कुछ कर बैठता। पर मैंने उसे कहा, “ये आपस में प्यार कर रहे हैं, इनका भी शुक्र पर्वत तुम्हारी तरह बहुत ऊंचा है।”

अचानक वो बोली, “वो कैसे क्या आपको ….? क्या आपको हाथ देखना आता है ?”

आपको बता दूँ मैं थोड़ा बहुत हस्त रेखाएं देख लेता हूँ। पूरा तो नहीं जानता पर जीवन रेखा, हृदय रेखा आदि तो थोड़ा बहुत बता ही देता हूँ। बाकी तो गप्प लगाने वाली बात है। किसी को भी प्रभावित कर लेना मेरे बाएँ हाथ का खेल है। मैं जानता हूँ कि ये सब उसे उसकी मम्मी ने बताया होगा। क्यों कि मैं सुधा को भी एक दो बार पपलू बना चूका हूँ। उसे भविष्य और हाथ की रेखाओं को जानने की बड़ी इच्छा रहती है।

“हाँ ! हाँ !! आओ” मैंने उसे अपने पास खींचते हुए कहा।

मैंने उसका बायाँ हाथ अपने हाथ में ले लिया। हाथ के नाखून थोड़े बढ़े हुए थे। उन पर नेल-पेंट किया हुआ था। बाएँ हाथ का अंगूठा थोड़ा सा पतला लग रहा था और उस पर नेल-पेंट भी नहीं लगा था।

मैंने उससे पूछा,”मिक्की क्या तुम अभी भी अंगूठा चूसती हो ?”

“हाँ कभी कभी” उसने नज़रें झुकाते हुए कहा।

“तुम्हारी मम्मी तुम्हें मना नहीं करती क्या ?”

“वो तो बहुत गुस्सा होती हैं।”

“तो फिर तुम ऐसा क्यों करती हो ?”

“असल में मुझ से अनजाने में ऐसा हो जाता है।”

“अनजाने में हो जाता है या तुम्हे इसमें मज़ा भी आता है?”

“हाँ सच कहूँ तो जब मैं अकेली होती हूँ तो मुझे अंगूठा चूसने में बहुत मज़ा आता है” उसने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया।

“अब तुम्हारी अंगूठा चूसने की उम्र नहीं रही है कुछ और भी चूसना सीखो !”

“और क्या चूसने की चीज होती है जीजाजी ?” उसने आँखें मटकाते हुए कहा।

“जैसे कि….! जैसे कि ….!!” मैं गड़बड़ा गया लेकिन फिर संभालते हुए कहा “जैसे कि आइस कैंडी लोलीपोप और…. और….। कुल्फी…. बहुत सी चीजें हैं जिन्हें तुम प्यार से चूस सकती हो !”

एक बार तो मेरे जी में तो आया की कह दूँ अब तो तुम्हे लंड चूसना सीखना चाहिए पर मैं अभी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। शुरू शुरू में थोड़ा संयम बरतना होगा नहीं तो ये चिड़िया मेरे हाथों से फुर्र हो जायेगी। वैसे तो मैं भी यही चाहता था कि वो अंगूठा चूसना जारी रखे। इसका एक कारण है ? हमारे गुरूजी कहते हैं जो लड़की बचपन में अंगूठा चूसती है वो अपने प्रेमी या पति की अच्छी प्रेमिका और पत्नी साबित होती है और उनका दाम्पत्य जीवन बहुत ही अच्छा और सुखी बीतता है। मतलब आप बिलकुल अच्छी तरह समझ गए होंगे।

मैं बातों का सिलसिला रोमांटिक करना चाहता था, मैंने पूछा “अच्छा मिक्की एक बात बताओ !”

“क्या ?”

“तुम फिल्म देखती हो ?”

“उम्म्म…. हाँ”

“अच्छा बताओ तुम्हारा मनपसंद हीरो कौन है ?”

“मेरा उम्म्म….। हाँ।। मुझे तो अनिल कपूर अच्छा लगता है !”

मैं तो सोच रहा था कि वो शाहिद कपूर, रणबीर कपूर, ऋतिक रोशन जैसे किसी चिकने चॉकलेटी हीरो का नाम लेगी। मैंने उस से कहा “अनिल कपूर ! ? अरे वो मुच्छड़?”

“पता है उसने मिस्टर इंडिया में कितना अच्छा काम किया है। उसके पास एक जादू का रिस्ट बैंड होता है जिसको कलाई में पहन कर वो गायब हो जाता है।” मिक्की ने ऑंखें नचाते हुए कहा फिर ठंडी सांस लेते हुए बोली “काश ऐसा ही बैंड मेरे पास भी होता !!”

“अच्छा आप बताओ आप को कौन पसंद है ?” मिक्की बोली।

“आ….न !! मुझे ? मुझे तो अजय देवगन अच्छा लगता है”

“अरे ! वो अकडू…. ओह नो ! आप झूठ बोल रहे हैं !”

“इसमें झूठ बोलने वाली क्या बात है ?” मैंने कहा।

“पर लड़कों और आदमियों को तो फ़िल्मी हिरोइन पसंद होती है ना ? और अजय देवगन कोई लड़की थोड़े ही है ?” मिक्की मेरा मखौल उड़ाते हुए हंसने लगी।

“ओह….!!” मेरी भी हंसी निकल गई। मैंने बात संवारते हुए कहा “भई मुझे तो सबसे ज्यादा मिक्की ही अच्छी लगती है और कोई नहीं !” मैंने उसकी नाक पकड़ते हुए कहा। मुझे तो बस उसके गाल, होंठ, नाक या नितम्ब कुछ भी छूने का बस बहाना ही चाहिए होता था। इस मौके पर मैं चाहता तो मिक्की को जोर से अपनी बाहों में भर कर चुम्बन भी ले सकता था पर थोड़ी दूर पर २-३ लौंडे लपाड़े खड़े हमारी ओर ही देख रहे थे, मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से रोका।

“हूँ…. ह….” मिक्की ने मुंह सा बनाया।

“अरे भई सच ….! बाय गोड मैं तुमसे बहुत प्यार…. अररर मेरा मतलब है प्रेम…. वो ! वो ! बहुत चाहता हूँ मैं तुम्हें….!” मेरी जबान साथ नहीं दे रही थी।

मिक्की खिलखिला कर हंस रही थी “वो तो मुझे पता है कि आप मेरे पीछे पागल हैं और मेरे ऊपर लट्टू हैं पर मैं तो फ़िल्मी हिरोइन की बात कर रही थी।” मिक्की ने अपने हाथों से अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
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07-04-2017, 12:39 PM,
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मैं इस फिकरे का मतलब अगले दो दिनों तक सोचता ही रहा था। मैंने फिर बात संवारते हुए कहा “उम्म्म….। हाँ…. चलो मुझे जिया खान सबसे सुन्दर लगती है”

“जिऽऽइऽऽअआ…. जिया खान अरे वो !! एक नंबर की चीट …. धोखेबाज !”

“क्यों उस बेचारी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?”

“अरे आप उसे बेचारी कहते हैं आप नहीं जानते उसने निःशब्द में अमित अन्कल से पहले तो प्यार का नाटक किया और बाद में छोड़ कर चली गई ! च !!! च…. बेचारे अमित अंकल उसकी याद में कितना रोये थे! मैं होती तो कभी छोड़ कर न जाती !” मिक्की ने जिस अंदाज में कहा था मैं तो उसकी इस अदा पर दिलो-जान से कुर्बान ही हो गया। साला रामगोपाल वर्मा भी एक नंबर का गधा है अगर निःशब्द बनानी ही थी तो मिक्की और मुझे लेकर बनाता तो बात ही कुछ और होती। मेरा दावा है गोल्डन जुबली तो जरूर हो जाती।

खैर मैंने बातों का रुख बदलते हुए पूछा “अच्छा बताओ तुम्हारी उम्र क्या हुई है?”

“तीस अप्रैल को में मैं पूरी अट्ठारह साल की हो गई हूँ, क्यों ?”

“लेकिन…. जिज्जू आप क्यों पूछ रहे हैं?… छोड़ो इन बातों को ! मेरा हाथ देखो ना !” मिक्की थोड़ा सा झुंझलाते हुए बोली।

मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया। नाज़ुक मुलायम चिकनी हथेली और पतली पतली अंगुलियाँ। इन नाजुक हाथों से अगर ये मेरा पप्पू पकड़ ले तो मैं सारी कायनात न्योछावर कर दूँ।

उसके हाथ को थोड़ा सीधा करते हुए और धीरे धीरे मसलते हुए मैंने कहा,”देखो यह तुम्हारी जीवन-रेखा है !”

मैंने ध्यान से देखा उन्नीसवें साल में उसे बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट आने वाला है। मैं इस कष्ट को अच्छी तरह जानता था पर मैंने उसे नहीं बताया।

“हाँ आगे बताइये !”

“अच्छा ये तुम्हारी विद्या-रेखा है” मैंने अपने अंगुली को विद्या रेखा वाली जगह रखा तो मेरी ओर देखने लगी। मैंने पूछा “तुम जीवन में आगे क्या बनाना चाहती हो?”

“पापा तो कहते है तुम एम.बी.ए. या सी.ए. कर लो। आप क्या कहते हो ?”

“मैं तो एम.बी.बी.एस. करके डॉक्टर बनना चाहता था पर नहीं बन पाया क्या तुमने कभी डॉक्टर बनाने के बारे में नहीं सोचा ?”

“अरे बाप रे ! उसमें तो बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है ? आँखों पर मोटा सा चश्मा लग जाता है !”

“तो क्या हुआ ! कुछ बनाने के लिए कुछ मेहनत तो करनी ही पड़ती है, और फिर दूसरो को इंजेक्शन लगाने में तुम्हे मजा भी तो आएगा !” वो हैरानी से मुझे देखने लगी और मैं हंसने लगा।

मिक्की ने कहा “चलो वो बाद में सोचेंगे, हाँ ! आगे बताइये !”

“और ये तुम्हारी हार्ट-लाइन है !”

“हुम्म्म्म्म”

“और ये शुक्र पर्वत है।” मैंने उसकी हथेली के एक ओर इशारा करते हुए कहा।

“हाँ हाँ ! शुक्र पर्वत के बारे में बताइये !”

“क्यों तुम शुक्र पर्वत के बारे में ही क्यों जानना चाहती हो? तुम्हें जीवन रेखा या हृदय रेखा के बारे में नहीं जानना ?” मैंने पूछा।

“नहीं पहले शुक्र रेखा, आई मीन, पर्वत के बारे में बताइये !” वो फिर जिद्द करने लगी। उसने बाद में बताया था कि एक दिन कोई पंडितजी उनके घर आये थे और वो मम्मी का हाथ देख रहे थे। पर जब शुक्र पर्वत की बात आई तो पंडितजी और मम्मी ने उसे बाहर भेज दिया था। पता नहीं ऐसी क्या बात थी जो उसके सामने नहीं बताना चाहते थे।

अगर आपको थोड़ा बहुत हस्त रेखाओं का ज्ञान हो तो आप जानते होंगे कि शुक्र ग्रह को सेक्स का ग्रह माना जाता है। जिसका शुक्र पर्वत जितना ऊँचा उठा होता है सेक्स के मामले में वो उतना ही ज्यादा कामासक्त और सक्रिय होता है। मैं जानता हूँ सुधा एक नंबर की चुद्दकड़ है। जब से रमेश एक एक्सीडेंट के बाद सेक्स के मामले में कुछ ढीला हुआ है सुधा के सेक्स कि भूख और ज्यादा बढ़ गई है। मैं भी उसे चोद चुका हूँ उसकी गांड भी मार चुका हूँ। ऐसी ठरकी औरतें एक मर्द से कभी संतुष्ट नहीं होती। (खैर मेरा ये अनुभव ‘नन्दोइजी नहीं लंन्दोइजी’ नाम से बाद में पढ़ लेना)

हे भगवान् ! तू कितना दयालु है। मेरे जैसे भक्त के ऊपर कितना मेहरबान है। मिक्की का शुक्र पर्वत उसकी मम्मी से भी ज्यादा उंचा है। आप समझ गए होंगे मेरी तो लाटरी ही लग जायेगी। इतनी हसीन नाज़ुक कमसिन कच्ची कली मेरे सामने अपना हुस्न लुटाने बेताब बैठी है। या अल्लाह….। सॉरी !!! लिंग महादेव….!

“ओफ्फो…. जीजू बताइये न ?”

“हाँ हाँ…. देखो ये जो शुक्र पर्वत होता है ये कामगुरु होता है और उसे नियन्त्रित करता है।” मैंने उसे समझाते हुए कहा।

“ये काम-गुरु क्या होता है ?” मिक्की ने पूछा।

अब मेरे लिए उलझन का वक़्त था। क्या सब कुछ स्पष्ट शब्दों में बोल दूँ या फिर थोड़ा घुमा फिरा कर उसे समझाऊं। मेरा पप्पू और दिल तो कह रहे थे- गुरु ! लोहा गरम है और खुदा मेहरबान है (क्या पता इतनी जल्दी लिंग महादेव प्रसन्न हो गए हों) मार दो हथोड़ा ! क्यों इधर उधर भटक रहे हो, इस कच्ची कली को प्यार से लंड और चूत की परिभाषा साफ़ साफ़ बता दो।

लेकिन फिर मस्तिष्क ने कहा- कुछ पर्दा तो रखो ! अगर उसने अपनी मम्मी या बुआजी से कुछ उलटा सीधा कह दिया तो हाथ में आई मछली फिसल जायेगी और तुम जिंदगी भर इस कमसिन कली की याद में अपना लंड हाथ में लिए मुठ मारते रह जाओगे। इस अनछुई नाज़ुक चूत (सॉरी बुर) को चोदने के सारे सपने एक मिनट में स्वाहा हो जायेंगे।

मैंने एक जोर का सांस लिया और एक मिनट में सब कुछ सोच लिया। मैं इतना पागल नहीं था कि ऐसा सुन्दर मौका हाथ से निकल जाने देता।

“देखो, मैं तुम्हे साफ़ साफ़ समझा तो दूंगा, पर मेरी एक शर्त है ?” मैंने कहा।

“वो क्या ?” मिक्की ने हैरत भरी नज़रों से मुझे देखा।

“देखो तुम्हारी मम्मी भी कुछ बातें तुमसे छुपाती हैं ? है ना ?”

“हांऽऽन ?”

“तो तुम भी वादा करो कि हमारे बीच जो बाते हो रही हैं या भविष्य में होंगी उनके बारे में अपनी मम्मी या बुआजी किसी को कभी नहीं बताओगी !”

“ठीक है”

“प्रोमिस?”

“हाँ प्रोमिस ! पक्का !!” मिक्की ने हामी भरी।

दोस्तों ! अब तो बस मेरी मंजिल का फासला कोई दो कदम का ही रह गया था।

लेकिन दिल्ली अभी दूर थी। अचानक एक बन्दर उछलता हुआ पता नहीं कब हमारे बीच आया और मिक्की के हाथों से मिठाई और चने का पैकेट छीन कर भाग गया। मिक्की की घिघ्घी बंध गई और डर के मारे मुझ से लिपट गई। उफ़्फ़….! उसके नाजुक कबूतर (उरोज) मेरे दोनों हाथों में आ गए मैंने उसे अपनी बाहों में समेट लिया, वो मम्मी ! मम्मी ! चिल्ला रही थी।
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07-04-2017, 12:39 PM,
#64
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैं उसको चुप कराने की कोशिश कर रहा था और कोशिश क्या मैं तो इस सुखद घटना का पूरा फायदा उठा रहा था। कभी उसके नरम गालों पर हाथ फेरता कभी उसके नितम्बों पर कभी उसके उरोजों पर। मिक्की किसी अबोध डरे हुए बच्चे की तरह मुझसे लिपटी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से। उसका दिल बहुत जोर से धड़क रहा था। वो मेरे सीने से चिपटी रोए जा रही थी।

इतने में दो तीन आदमी और औरतें भागते हुए आये और पूछने लगे क्या हुआ। मैंने उन्हें कहा कुछ नहीं थोड़ा सा डर गई है एक बन्दर मिठाई का लिफाफा छीन कर भाग गया और ये डर गई।

अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हमने जल्दी जल्दी वहाँ से उतरना चालू कर दिया। शाम होने वाली थी। मिक्की डर के मारे एक बच्चे कि तरह मेरा बाजू पकड़े मुझसे चिपकी हुई थी। मेरे लिए तो ये स्वर्णिम अवसर था। मैं भला ऐसा सुन्दर मौका कैसे छोड़ सकता था मैंने भी उसे अपने से चिपटा लिया। हे महादेव ! तुमने तो मेरी एक ही सोमवार में सुन ली।

कोई सात बजे का समय रहा होगा। अब एक और खूबसूरत हादसा होने वाला था। मिक्की ने चढ़ाई शुरू करने से पहले पूरी एक बोतल पानी और दो-तीन फ्रूटी भी पी थी। अब भला पेट का क्या कसूर ! सू सू तो आना ही था ?

“फूफाजी ! मुझेऽऽ सूऽऽ-सूऽऽ आऽ रहाऽ हैऽ !” वो संकुचाते हुए बोली। अब वहाँ बाथरूम तो था नहीं, मैंने कहा “जाओ उस बड़े पत्थर के पीछे कर आओ।”

वो डर के मारे अकेली नहीं जाना चाहती थी,”नहीं आप मेरे साथ चलो आप मुंह दूसरी तरफ कर लेना !”

आप सोच सकते हैं मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत पल आने वाला था। मेरी तो मनमांगी मुराद ही पूरी होने वाली थी।

हम पत्थर के पीछे चले गए। मैंने थोड़ा सा मुंह घुमा लिया।

उसने अपनी सफ़ेद पेंट नीचे सरकाई- काली पेंटी में फंसी उसकी खूबसूरत हलके हलके सुनहरी रोएँ से सजी नाज़ुक सी बुर अब केवल दो तीन फीट की दूरी पर ही तो थी। जिसके लिए आदमी तो क्या देवदूत भी स्वर्ग जाने से मना कर दें। मैंने अपने आप को बहुत रोका पर उसकी बुर को देख लेने का लोभ संवरण नहीं कर पाया।

मेरे जीवन का ये सबसे खूबसूरत नजारा था। उसकी नाभि के नीचे का भाग (पेड़ू) थोड़ा सा उभरा हुआ। उफ़ ।। भूरे भूरे छोटे छोटे सुनहरे बालो (रोएँ) से लकदक उसकी बुर का चीरा कोई 3 इंच का तो जरूर होगा। गुलाबी पंखुड़ियां। ऊपर चने के दाने जीतनी रक्तिम मदन मणि गुलाबी रंगत लिए भूमिका चावला और करीना कपूर के होंठों जैसी लाल सुर्ख फांके। फूली हुई तिकोने आकार की उसकी छोटी सी बुर जैसे गुलाब की कोई कली अभी अभी खिल कर फूल बनी है।

मैं उसे छू तो नहीं सकता था पर उसकी कोमलता का अंदाजा तो लगा ही सकता था। अगर चीकू को बीच में से काट कर उसके बीज निकाल दिए जाएँ और उसे थोड़ा सा दबाया जाए तो पुट की आवाज के साथ उसका छेद थोड़ा सा खुल जायेगा अब आप आँखें बंद करके उसे प्यार से स्पर्श कर के देखिये उस लज्जत और नज़ाकत को आप महसूस कर लेंगे। बुर के चीरे से कोई एक इंच नीचे गांड का गुलाबी भूरा छेद खुल और बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मर्लिन मुनरो अपने होंठों को सीटी बजाने के अंदाज में सिकोड़ रही हो। उसके गोल गोल भरे नितम्ब जैसे कोई खरबूजे गुलाबी रंगत लिए हुए किसी को भी अपना ईमान तोड़ने पर मजबूर कर दे। केले के पेड़ जैसी पुष्ट चिकनी जंघाएँ और दाहिनी जांघ पर एक काला तिल। हे भगवान् मैं तो बस मंत्रमुग्ध सा देखता ही रह गया। ये हसीं नजारा तो मेरे जीवन का सबसे कीमती और अनमोल नजारा था।

मिक्की एक झटके के साथ नीचे बैठ गई। उसकी नाजुक गुलाबी फांके थोड़ी सी चौड़ी हुई और उसमें से कल-कल करती हुई सू-सू की एक पतली सी धार….शुर्ररऽऽऽ… शिच्च्च्च….!! सीईई…. पिस्स्स्स ! करती लगभग डेढ़ या दो फ़ुट तो जरूर लम्बी होगी।

कम से कम दो मिनट तक वो बैठी सू-सू करती रही। पिस्स्स्स….! का मधुर संगीत मेरे कानो में गूंजता रहा। शायद पिक्की या बुर को पुस्सी इसी लिए कहा जाता है कि उसमे से पिस्स्स्स…. का मधुर संगीत बजता है। छुर्रर….। या फल्ल्ल्ल्ल….। की आवाज तो चूत या फिर फुद्दी से ही निकलती है। अब तक मिक्की ने कम से कम एक लीटर सू-सू तो जरूर कर लिया होगा। पता नहीं कितनी देर से वो उसे रोके हुए थी। धीरे धीरे उसके धार पतली होती गई और अंत में उसने एक जोर की धार मारी जो थोड़ी सी ऊपर उठी और फिर नीचे होती हुई बंद हो गई। ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो। दो चार बूंदें तो अभी भी उसकी बुर के गुलाबी होंठों पर लगी रह गई थी।
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07-04-2017, 12:39 PM,
#65
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
इस जन्नत भरे नजारे को देखने के बाद अब अगर क़यामत भी आ जाए तो कोई डर नहीं। बरसों के सूखे के बाद सावन जैसी पहली बारिश की फुहार से ओतप्रोत मेरा तन मन सब शीतल होता चला गया। उस स्वर्ग के द्वार को देख लेने के बाद अब और क्या बचा था। मुझे लगा कि मैं तो बेहोश ही हो जाऊँगा। मेरे शेर ने तो पैन्ट में ही अपना दम तोड़ दिया। पर इस दृश्य के बाद मेरे शेर के शहीद होने का मुझे कोई गम नहीं था।

मैं यही सोच रहा था कि स्वर्ग के द्वार से अभी तक मिक्की ने केवल मूतने का ही काम क्यों लिया है। जब वो उठी तो किसी पेड़ से एक पक्षी पंख फड़फड़ाता कर्कश आवाज करता हुआ उड़ा तो मिक्की फिर डर गई और इस बार फिर मेरी और दौड़ने के चक्कर में उसका पैर फिसला और पैर में थोड़ी सी मोच आ गई। इतने खूबसूरत हादसे के बाद फिर ये तकलीफदेह दुर्घटना हे भगवान् क्या सब कुछ आज ही होने वाला है ??

जब हम घर पहुंचे तो मिक्की को लंगड़ाते हुए देख कर मधु ने घबरा कर पूछा “अरे कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया ? क्या हुआ मोना को ?”

“अरे कुछ ख़ास नहीं, थोड़ा सा फिसल गई थी, लगता है मोच आ गई है !”

“हे भगवान् ध्यान से नहीं चल सकते थे क्या ? ऑफ…. इधर आओ जल्दी करो लाओ आयोडेक्स मल देती हूँ” मधु घबरा सी गई।

“नहीं बुआजी कोई ज्यादा चोट नहीं लगी है ” मिक्की ने बताया।

“चुप ! तुझे क्या पता कहीं फ्रेक्चर तो नहीं हो गया ? किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया उसी समय ?” मधु बिना किसी की बात सुने बोलती जा रही थी।

आयोडेक्स लगाने, नमक वाले पानी से सिकाई करने, हल्दी वाला दूध पिलाने और इतनी गर्मी में भी चद्दर उढ़ा कर सुलाने के बाद ही मधु ने उसका पीछा छोड़ा।

मैं बाथरूम में जाकर अपना अंडरवियर चेंज करके जब ड्राइंग रूम में आया तो वहाँ पर मिठाई का एक डिब्बा पड़ा हुआ नज़र आया। मैंने मधु से जब इसके बारे में पुछा तो उसने बताया “अरे वो निशा है ना !”

“कौन निशा ?”

“तुम्हें तो कुछ याद ही नहीं रहता ! अरे वो मेरी झाँसी वाली कजिन की रिश्तेदार है न स्कूल में ?”

ये औरतें भी अजीब होती है कोई भी बात सीधे नहीं करेगी घुमा फिर कर बताने और बात को लम्बा खीचने में पता नहीं इनको क्या मज़ा आता है।

“हाँ हाँ तो ?”

“अरे भई उसके देवर की शादी है। वो तो मुझे कल रात को उनके यहाँ होने वाले फंक्शन में बुलाने का कह कर गई है। रिसेप्सन में तो जाना पड़ेगा ही सोच रही हूँ रात वाले फंक्शन में जाऊं या नहीं ?”

मैं जानता था मैं मना करू या हाँ भरूं, मधु नाचने गाने का ये चांस बिलकुल नहीं छोड़ने वाली। मधु बहुत अच्छी डांसर है। शादी के बाद तो उसे किसी कॉम्पिटिशन में नाचने का अवसर तो नहीं मिला पर शादी विवाह या पार्टीज में तो मधु का डांस देख कर लोग तौबा ही कर उठते हैं। इस होली पर भांग पीकर उसने जो ठुमके लगाए थे और कूल्हे मटकाए थे, कालोनी के बड़े बुजुर्गों का भी ‘ढीलू प्रसाद’ धोती में उछलने लगा था। क्या कमाल का नाचती है।

आप की जानकारी के लिए बता दूँ राजस्थान में शादी वाली रात जब लड़की के घर फेरे होतें है तो लड़के वालों के घर पर रात को नाच गाना होता है। उसमे सिर्फ मोहल्ले वाली और नजदीकी रिश्तेदार औरतें ही शामिल होती है। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था इतना सुनहरा मौका इतनी जल्दी मुझे मिल जायेगा। सच कहते है सचे मन से भगवान् को याद किया जाए तो वो जरूर सुनाता है। अब तक आपने अंदाजा लग ही लिया होगा कि मेरे जैसे चुद्दकड़ आदमी की भगवान् में कितनी आस्था होगी ? वैसे देखा जाये तो मैं भगवान्, स्वर्ग-नर्क, पाप-पुण्य, पूजा-पाठ आदि में ज्यादा विश्वास नहीं रखता पर इन खूबसूरत हादसों के बाद तो उसे मान लेने को जी चाहता है।

मैंने आज पहली बार पूजा घर में जाकर भगवान का धन्यवाद किया।
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07-04-2017, 12:39 PM,
#66
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
दोस्तों, आज दिन भर मैं ऑफिस में सिर्फ मिक्की के बारे में ही सोचता रहा। कल जिस तरह से खूबसूरत घटनाएँ हुई थी, मेरे रोमांच का पारावार ही नहीं था। इतना खुश तो मैं सुहागरात मना कर भी नहीं हुआ था। मैं दिन भर इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि कैसे मिक्की और मैं एक साथ अकेले सारी रात भर मस्ती करेंगे। न कोई डर न कोई डिस्टर्ब करनेवाला। सिर्फ मैं और मिक्की बस।

मैं सोच रहा था मिक्की को कैसे तैयार करूँ। कभी तो लगता कि मिक्की सब कुछ जानती है पर दूसरे ही पल ऐसा लगता कि अरे यार मिक्की तो अभी अट्ठारह साल की ही तो है उसे भला मेरी भावनाओं का क्या पता होगा। अगर जल्दबाजी में कुछ गड़बड़ हो गई और मिक्की ने शोर मचा दिया तो ???

मैं ये सब सोच सोच कर ही परेशान हो गया। क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा। गुरूजी सच कहते है चुदी चुदाई औरतों को चोदना बहुत आसान होता है पर इन कमसिन बे-तजुर्बेकार लड़कियों को चोदना वाकई दुष्कर काम है। मैंने अपनी योजना पर एक बार फिर गौर किया। हल्दी मिले दूध में अगर नींद की दो तीन गोलियाँ मिला दी जाएँ तो पता ही नहीं चलेगा। गहरी नींद में मैं उसके कोरे बदन की खुशबू लूट लूँगा।

मैंने एक दो दिन पहले ही नींद की गोलियों का इंतजाम भी कर लिया था। लेकिन फिर ख़याल आया मिक्की की बुर अगर मेरा इतना मोटा और लम्बा लंड सहन नहीं कर पाई और कुछ खून खराबा ज्यादा हो गया और कहीं डॉक्टर की नौबत आ पड़ी तो तो ? मैं तो सोच कर ही काँप उठा ?

आपको बता दूं कि मैं किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती या बलात्कार पर आमादा नहीं था। मैं तो मिक्की से प्यार करता था मैं उसे कोई नुक्सान या कष्ट कैसे पहुंचा सकता था। काश मिक्की अपनी बाँहें फैलाए मेरे आगोश में आ जाए और अपना सब कुछ मेरे हवाले कर दे जैसे एक दुल्हन सुहागरात में अपने दुल्हे को समर्पित कर देती है। इस समय मुझे रियाज़ खैराबादी का एक शेर याद आ गया :

हम आँखें बंद किये तस्सवुर में बैठे हैं !

ऐसे में कहीं छम्म से वो आ जाए तो क्या हो !!

जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने सब कुछ भगवान् के भरोसे छोड़ दिया। हालात के हिसाब से जो होगा देखा जायेगा।

शाम को मैं जानबूझकर देरी से घर पहुंचा। कोई आठ साढ़े-आठ का समय रहा होगा। खाना तैयार था। मधु पार्टी में जाने की तैयारी कर रही थी। इन औरतों को भी तैयार होने में कितना वक़्त लगता है। उसने शिफ़ॉन की काली साड़ी पहनी थी और लो कट ब्लाउज। मधु साड़ी इस तरह से बांधती है कि उसके नितम्ब भरे-पूरे नज़र आते हैं। सच पूछो तो उसकी सबसे बड़ी दौलत ही उसके नितम्ब है। और मैं तो ऐसे नितम्बों का मुरीद हूँ। जब वो कोई साढ़े नौ बजे तक मुश्किल से तैयार हुई तो मैंने मज़ाक में उससे कहा “आज किस किस पर बिजलियाँ गिराओगी !!”

वो अदा से आईने में अपने नितम्बों को देखते हुए बोली “अरे वहाँ तो आज सिर्फ औरतें ही होंगी, मनचले भंवरे और परवाने नहीं !”

“कहो तो मैं साथ चलूँ?” मैंने उसे बांहों में लेना चाहा।

“ओफ़्फ़ ! छोड़ो न तुम्हें तो बस इस एक चीज के अलावा कुछ सूझता ही नहीं ! पता है मैं दो दिनों से ठीक से चल ही नहीं पा रही हूँ।” उसने मुझे परे धकेलते हुए कहा।

“अच्छा, यह बताओ, मैं कैसी लग रही हूँ?” औरतों को अपनी तारीफ़ सुनाने का बड़ा शौक होता है। सच पूछो तो उसके कसे हुए नितम्बों को देख कर एक बार तो मेरा मन किया कि उसे अभी उलटा पटक कर उसकी गांड मार लूँ पर अभी उसका वक़्त नहीं था।

मैंने कहा “एक काजल का टीका गालों पर लगा लो कहीं नज़र न लग जाए !”

मधु किसी नव विवाहिता की तरह शरमा गई ! ईईईस्स्स्स्स्श…।।

कोई दस बजे वो कार से अपनी सहेली के घर चली गई। (मधु कार चला लेती है) जब मैं गेट बंद करके मैं ड्राइंग रूम में वापस आया तो मिक्की बाथरूम में थी शायद नहा रही थी।

मैं स्टडी रूम में चला गया। मैंने दो दिनों से अपने मेल चेक नहीं किये थे। मैंने जब कम्प्यूटर ओन किया तो सबसे पहले स्टार्ट मेन्यू में जाकर रिसेंट डॉक्यूमेंट्स देखे तो मेरी बांछे ही खिल गई। जैसा मैंने सोचा था वो ही हुआ। वीडियो पिक्चर की फाइल्स खोली गई थी और ये फाइलें तो मेरी चुनिन्दा ब्ल्यू-फिल्मों की फाइलें थी। आईला…!! मेरा दिल बेतहाशा धड़कने लगा। अब मेरे समझ में आया कि कल दोपहर में मिक्की स्टडी रूम से घबराई सी सीधे रसोई में क्यों चली गई थी।

मोनिका डार्लिंग तूने तो कमाल ही कर दिया। मेरे रास्ते की सारी बाधाएं कितनी आसानी से एक ही झटके में इस कदर साफ़ कर दी जैसे किसी ने कांटेदार झाड़ियाँ जड़ समेत काट दी हो और कालीन बिछा कर ऊपर फूल सजा दिए हो। अब मैं किसे धन्यवाद दूँ, अपने आपको, कंप्यूटर को, मिक्की को या फिर लिंग महादेव को ?

मैंने इन फाइल्स को फिर से पासवर्ड लगा कर लॉक कर दिया और अपनी आँखें बंद कर के सोचने लगा। मिक्की ने इन फाइल्स और पिक्चर्स को देख कर कैसा अनुभव किया होगा ? कल पूरे दिन में उसने कम्प्यूटर की कोई बात नहीं की वरना वो तो मेरा सिर ही खा जाती है। मैं भी कतई उल्लू हूँ मिक्की की आँखों की चमक, उसका सजाना संवारना, मेरे से चिपक कर बाइक पर बैठना, शुक्र पर्वत की बात करना, बंदरों की ठोका-ठुकाई की बात इससे ज्यादा बेचारी और क्या इशारा कर सकती थी। क्या वो नंगी होकर अपनी बुर हाथों में लिए आती और कहती लो आओ चोदो मुझे ? मुझे आज महसूस हुआ कि आदमी अपने आप को कितना भी चालाक, समझदार और प्रेम गुरु माने नारी जाति को कहाँ पूरी तरह समझ पाता है फिर मेरी क्या बिसात थी।

कम्प्यूटर बंद करके मैं आँखें बंद किये अभी अपने ख्यालों में खोया था कि अचानक मेरी आँखों पर दो नरम मुलायम हाथ और कानों के पास रेंगते हुए साँसों की मादक महक मेरे तन मन को सराबोर कर गई। इस जानी पहचानी खुशबू को तो मैं मरने के बाद भी नहीं भूल सकता, कैसे नहीं पहचानता। मेरे जीवन का यह बेशकीमती लम्हा काश कभी ख़त्म ही न हो और मैं क़यामत तक इसी तरह मेरी मिक्की मेरी मोना मेरी मोनिका के कोमल हाथों का मखमली स्पर्श महसूस करता रहूँ। मैंने धीरे से अपने हाथ कुर्सी के पीछे किए। उसके गोल चिकने नितम्ब मेरी बाहों के घेरे में आ गए, बीच में सिर्फ़ नाईटी और पैन्टी की रुकावट थी।

उफ्फ्फ… मिक्की की संगमरमरी जांघे उस पतली सी नाइटी के अन्दर बिलकुल नंगी थी। मैं इस लम्हे को इतना जल्दी ख़त्म नहीं होने देना चाहता था। पता नहीं कितनी देर मैं और मिक्की इसी अवस्था में रहे। फिर मैंने हौले से उसकी नरम नाज़ुक हथेलियों को अपने हाथों में ले लिया और प्यार से उन्हें चूमने लगा। मिक्की ने अपना हाथ छुड़ा लिया और मेरे सामने आ कर खड़ी होकर पूछने लगी- कैसी लग रही हूँ?

मैंने उसके हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया और अपनी गोद में बैठा कर अपने जलते होंठ उसके होंठों पर चूमते हुए कहा- सुन्दर, सेक्सी ! बहुत प्यारी लग रही है मेरी, सिर्फ़ मेरी मिक्की !

मिक्की ने शरमाते हुए गर्दन झुका ली !

मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर उसके चेहरे को ऊपर उठाया और फ़िर से उसके गुलाबी लब मेरे प्यासे होंठों की गिरफ़्त में आ गए। बरसों से तड़फती मेरी आत्मा उस रसीले अहसास से सराबोर हो गई। जैसे अंधे को आँखें मिल गई हो, भूले को रास्ता और बरसों से प्यासी धरती को सावन की पहली फुहार। जैसे किसी ने मेरे जलते होंटों पर होले से बर्फ की नाज़ुक सी फुहार छोड़ दी हो।

अब तो मिक्की भी सारी लाज़ त्याग कर मुझे इस तरह चूम रही थी कि जैसे वो सदियों से कैद एक ‘अभिशप्त राजकुमारी’ है, जैसे उसे केवल यही एक पल मिला है जीने के लिए और अपने बिछुड़े प्रेमी से मिलने का। मैं अपनी सुधबुध खोये कभी मिक्की की पीठ सहलाता कभी उसके नितम्बों को और कभी होले से उसकी नरम नाज़ुक गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठो को डरते डरते इस कदर चूम रहा था कि कहीं भूल से भी मेरे होंठो और अंगुलियों के खुरदरे अहसास से उसे थोड़ा सा भी कष्ट न हो। मेरे लिए ये चुम्बन उस ‘अनमोल रत्न’ की तरह था जिसके बदले में अगर पूरे जहां की खुदाई भी मिले तो कम है।

आप जानते होंगे मैं स्वर्ग-नर्क जैसी बातों में विश्वास नहीं रखता पर मुझे आज लग रहा था कि अगर कहीं स्वर्ग या जन्नत है तो बस यही है यही है यही है…!

अचानक ड्राइंग रूम में रखे फ़ोन की कर्कश घंटी की आवाज से हम दोनों चौंक गए। हे भगवान् इस समय कौन हो सकता है ? किसी अनहोनी और नई आफत की आशंका से मैं काँप उठा। मैंने डरते डरते फ़ोन का रिसीवर इस तरह उठाया जैसे कि ये कोई जहरीला बिच्छू हो। मेरा चेहरा ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने मेरा सारा खून ही निचोड़ लिया हो।
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07-04-2017, 12:40 PM,
#67
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैं धीमी आवाज में हेल्लो बोला तो उधर से मधु की आवाज आई, “आपका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा है !”

“ओह ! क्या बात है?” मैंने एक जोर की सांस ली।

“वो वो मैं कह रही थी किऽऽ किऽऽ हाँ ऽऽ मैं ठीक ठाक पहुँच गई हूँ और हाँ !”

पता नहीं ये औरतें मतलब की बात करना कब सीखेंगी “हाँ मैं सुन रहा हूँ”

“आर।। हाँ वो मिक्की को दवाई दे दी क्या ? उसे हल्दी वाला दूध पिलाया या नहीं ?”

“हाँ भई हाँ दूध और दवाई दोनों ही पिलाने कि कोशिश ही कर रहा था !” मैंने मिक्की की ओर देखते हुए कहा “हाँ एक बात और थी कल सुबह भैया और भाभी दोनों वापस आ रहे हैं उन्होंने मोबाइल पर बताया है कि अंकल अब ठीक हैं।” मधु बस बोले जा रही थी “सुबह मैं आते समय उन्हें स्टेशन से लेती आउंगी तुम परेशान मत होना। ओ के ! लव ! गुड नाईट एंड स्वीट ड्रीम्स !”

मधु जब बहुत खुश होती है तो मुझे लव कहकर बुलाती है (मेरा नाम प्रेम है ना)। लेकिन आज जिस अंदाज़ में मुझे उसने लव के साथ गुड नाईट और स्वीट ड्रीम्स कहा था मैं उसके इस चिढ़ाने वाले अंदाज़ को अच्छी तरह समझ रहा था। सारी रात उससे दूर ? पर उसे क्या पता था कि आज तो सारी रात ही मेरे स्वीट ड्रीम्स सच होने वाले हैं ?

मिक्की मेरे चेहरे की ओर देख रही थी। मैंने उसे जल्दी से सारी बात बता दी। वो पहले तो थोड़ा हंसी और फिर दौड़ कर मेरी बाहों में समा गई। मैंने उसे अपनी गोद में उठा कर उसके गालों पर एक करारा सा चुम्बन ले लिया। जवाब में उसने मेरे होंठ काट खाए जिससे उन पर थोड़ा सा खून भी निकल आया। इस छोटे से दर्द का मीठा अहसास मेरे से ज्यादा भला और कौन जान सकता है। मैं उसे गोद में उठाये अपने बेडरूम में आ गया। मिक्की की आँखें बंद थी। वो तो बस हसीं ख़्वाबों की दुनिया में इस कदर खोई थी कि कब मैंने उसकी नाइटी उतार दी उसे कोई भान ही नहीं रहा।

और अब बेजोड़ हुस्न की मल्लिका मेरे आगोश में आँखें बंद किये बैठी थी। अगर ठेठ उज्जड भाषा में कहा जाए तो मेरी हालत उस भूखे शेर की तरह थी जिसके सामने बेबस शिकार पड़ा हो और वो ये सोच रहा हो कि कहाँ से शुरू करे। लेकिन मैं कोई शिकारी या जंगली हिंसक पशु नहीं था। मैं तो प्रेम का पुजारी था। अगर रोमांटिक भाषा में कहा जाए तो मेरे सामने छत्तीस प्रकार के व्यंजन पड़े थे और मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कि कौन सा पकवान पहले खाऊं ।

मैंने अभी कपड़े नहीं उतारे थे। मैंने कुर्ता-पायजामा पहने हुआ था। मेरा लंड मेरे काबू में नहीं था वो किसी नाग की तरह फुफकार मार रहा था। १२० डिग्री के कोण में पायजामे को फाड़ कर बाहर आने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था। मिक्की मेरी गोद में बैठी थी। हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे। मिक्की ने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और मैं उसे रसभरी कुल्फी की तरह चूसने लगा। मेरा लंड उसकी नाज़ुक नितम्बों की खाई के बीच अपना सिर फोड़ता हुआ बेबस नज़र आ रहा था। मैं कभी मिक्की के गालों को चूमता कभी होंठो को कभी नाक को कभी उसके कानो को और कभी पलकों को। मिक्की मेरे सीने से छिपाते हुए मुझे बाहों में जकड़े गोद में ऐसे बैठी थी जैसे अगर थोड़ा भी उसका बंधन ढीला हुआ तो उसके आगोश से उसका ख्वाब कोई छीन कर ले जायेगा। कमोबेश मेरी भी यही हालत थी।

कोई १०-१५ मिनट के बाद जब हमारी पकड़ कुछ ढीली हुई तो मिक्की को अपने बदन पर नाइटी न होने का भान हुआ। उसने हैरानी से इधर उधर देखा और फिर मेरी गोद से थोड़ा सा छिटक कर मारे शर्म के अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिए। नाइटी तो कब की शहीद होकर एक कोने में दुबकी पड़ी थी जैसे मरी हुई चिड़िया।

“मेरी नाइटी?”

“मेरी प्रियतमा, आँखें खोलो !”

“नहीं पहले मेरी नाइटी दो, मुझे शर्म आ रही है !”

“अरे मेरी बिल्लो रानी ! अब शर्म छोड़ो ! तुम इस ब्रा पेंटी में कितनी खूबसूरत लग रही हो जरा मेरी आँखों से देखो तो सही अपने आपको ! तुम यही तो दिखाने आई थी ना !”

“नहीं पहले लाईट बंद करो !”

“लाइट बंद करके मैं कैसे रसपान करूंगा तुम्हारी इस नायाब सुन्दरता का, यौवन का !”

“जिज्जू ! प्लीज़ ! मुझे शर्म आ रही है !”

मैंने न चाहते हुए भी उठ कर लाईट बंद कर दी पर बाथरूम का दरवाजा खोल दिया जिसमे से हलकी रोशनी आ रही थी।

“अब तो आँखे खोल दो मेरी प्रियतमा !”

“नहीं पहले खिड़की का पर्दा करो !”

“क्यों वह कौन है ?”

“अरे वह मेरे मामाजी खड़े है जो हमारी रासलीला देख रहे हैं।”

“मामाजी ? कौन मामाजी ?” मैंने हैरानी से पूछा।

“ओफ्फ ओ !! आप भी निरे घोंचू है अरे बाबा ! चन्दा मामा !”

मेरी बेतहाशा हंसी निकल गई। बाहर एकम का चाँद खिड़की के बाहर हमारे प्यार का साक्षी बना अपनी दूधिया रोशनी बिखेर रहा था।

मैंने उसे बिस्तर पर लिटा लिया और खुद उसकी बगल में लेट कर अपनी एक टाँग उसकी जाँघों पर रख ली और उसके चेहरे पर झुक कर उसे चूमने लगा। मेरा एक हाथ उसके गाल पर था और दूसरा उसके बालों, लगे और कन्धे को सहला रहा था। मेरी जीभ उसके मुख के अनदर मुआयना कर रही थी। अब वो भी अपनी जीभ मेरी जीभ से टकरा टकरा कर मस्ती ले रही थी।

धीरे धीरे मेरा हाथ उसके यौवन कपोतों पर आ गया, वो जैसे सिहर सी गई, उसने मेरी आँखों में झांका और मेरा हाथ उसके कंधे से ब्रा की पट्टी को बाजू पर सरकाने लगा। मेरी उंगलियां उसकी ब्रा के कप में घुस गई और उसके तने हुए चूचुक से जा टकराई। मैंने उसके स्तनाग्र को दो उंगलियों में लेकर हल्के से मसला वो सीत्कार उठी।

फ़िर मेरा हाथ उसकी पीठ पर सरकता हुआ उसकी ब्रा के हुक तक पहुँच गया और हुक खुलते ही मैं ब्रा को उसके बदन से अलग करने की कोशिश करने लगा तो मिक्की जैसे तन्द्रा से जागी और अपनी सम्भालने लगी। लेकिन तब तक तो उसकी ब्रा मेरे हाथ में झूलने लगी थी और मिक्की फ़िर से मेरी आँखों में आँखें डाल कर मानो पूछ रही थी कि “यह क्या हो रहा है?”

काले रंग की ब्रा जैसे ही हटी, दोनों कबूतर ऐसे तन कर खड़े हो गए जैसे बरसों के बाद उन्हें आजादी मिली हो। छोटे नागपुरी संतरों की साइज़ के दो गोल गोल रस्कूप मेरे सामने थे। बादामी और थोड़ी गुलाबी रंगत लिए उसके एरोला कोई एक रुपये के सिक्के से बड़े तो नहीं थे। अनार के दाने जीतनी सुर्ख लाल रंग की छोटी सी घुंडी। आह्ह्ह…।।

मैंने तड़ से एक चुम्बन उस पर ले ही लिया। मिक्की सिहर उठी। पहले मैंने उनपर होले से जीभ फिराई और अब मैंने अपने आप को पूरी तरह से मिक्की के ऊपर लाकर उसके गोरे, चिकने बदन को अपने बदन से ढक दिया और उसके एक चूचुक को होठों में दबा कर जैसे उसमें से दूध पीने का प्रयत्न करने लगा। मेरा लण्ड उसकी जांघों के बीच में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।

और बाद में मैंने एक संतरा पूरे का पूरा अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा। मिक्की की सिसकारियां गूंजने लगी। मेरा एक हाथ उसकी पीठ और गोल गोल नितम्बों पर घूम रहा था। और दूसरे हाथ से उसका दूसरा स्तन दबा रहा था। मैंने जानबूझ कर उसकी बुर पर हाथ नहीं फेरा था इसका कारण मैं आपको बाद में बताऊंगा।

मेरे दस मिनट तक चूसने के कारण उसके उरोज साइज़ में कोई दो इंच तो जरूर बढ़ गए थे और निप्पल्स तो पेंसिल की नोक की तरह एकदम तीखे हो गए। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसका एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा हुआ था। उसकी कांख में उगे सुनहरे रंग के रोएँ देख कर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपना मुंह वहाँ पर टिका दिया। हालांकि वो नहा कर आई थी पर उसके उभरते यौवन की उस खट्टी, मीठी, नमकीन सी खुशबू से मेरा स्नायु तंत्र एक मादक महक से भर उठा। मैंने जब जीभ से चाटा तो मिक्की उतेजना और गुदगुदी से रोमांचित हो उठी।
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07-04-2017, 12:40 PM,
#68
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
अब मैंने पहले उसके गालों पर आई बालो की आवारा लट को हटा कर उसका चेहरा अपनी हथेलियों में ले लिया। थरथराते होंठो से उसके माथे को, फिर आँखों की पलकों को, कपोलों को, उसकी नासिका, उसके कानों की लोब और अधरों को चूमता चला गया। मिक्की पलकें बंद किये सपनों की दुनिया में खोई हुई थी। उसकी साँसे तेज चल रही थी होंठ कंपकपा रहे थे। मैंने उसके गले और फिर उसके बूब्स को चूमा। दोनों उरोजों की घाटी में अपनी जीभ लगा कर चाटा तो मिक्की के होंठो से बस एक हलकी सी कामरस में भीगी सित्कार निकल गई। हालांकि रौशनी में चमकता उसका चिकना सफ्फाक बदन मेरे सामने सब कुछ लुटाने के लिए बिखरा पड़ा था।

अचानक उसे ध्यान आया कि मैं तो पूरे कपड़े पहने हुए हूँ, उसने मुझे उलाहना देते हुए कहा “अच्छा जी आपने तो अपने कपड़े उतारे ही नहीं !”

मैं तो इसी ताक में था। दरअसल मैंने अपने कपड़े पहले इस लिए नहीं उतारे थे कि कहीं मिक्की मेरा सात इंच का फनफनाता हुआ लंड देखकर डर न जाए और ये न सोचे कि मैं जबरन कुछ कर देने पर तुला हुआ हूँ या कहीं उसका बलात्कार ही तो नहीं करना चाहता। कपड़े उतार कर मैं डबल बेड पर सिरहाने की ओर कमर टिका कर बैठ गया। मेरी एक टांग सीधी थी और दूसरी कुछ मुड़ी हुई जिसकी जांघ पर मिक्की अपना सिर रखे आँखें बंद किये लेटी थी। मैंने नीचे झुक कर उसका चुम्बन लेने की कोशिश की तो वो थोड़ा सा नीचे की ओर घूम गई। मेरा आधा लंड चड्डी के बाहर निकला हुआ था वो उसके होंठों से लग गया। मुझे तो मन मांगी मुराद मिल गई।

मैंने उसे कहा- मिक्की देखो इसे कैसे मुंह उठाए तुम्हें देख रहा है ! हाथ में लो ना इसे !



तीसरा चुम्बन :

मिक्की ने हिचकिचाते हुए पहले तो उसने अपनी नाज़ुक अंगुलियों से उसे प्यार से छुआ और फिर अन्डरवीयर नीचे खिसकाते हुए मेरे लण्ड को पूरा अपने हाथों में भर लिया और सहलाने लगी। मेरे लण्ड ने एक ठुमका लगते हुए उसे सलामी दी और पत्थर की तरह कठोर हो गया। अब मिक्की लगभग औंधी लेटे मेरे लण्ड के साथ खेल रही थी और मेरे सामने थे उसके गोल मटोल नितम्ब। मैंने उन पर प्यार से हाथ फिराना शुरू कर दिया। वाह क्या घाटियाँ थी।

गुलाबी रंग की कसी हुई दो गोलाकार पहाड़ियां और उनके बीच एक बहती नदी की मानिंद गहरी होती खाई। मैं तो किसी अनजाने जादू से बंधा बस उसे देखता ही रह गया। फिर धीरे से मैंने पैंटी के ऊपर से ही उन गोलाइयों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया।

मैंने एक हाथ से उसका चेहरा अपने लण्ड के सुपाड़े पर छुआते हुए कहा- इसे प्यार कर ना ! चूम लो मेरे लौड़े को अपने होठों से !

रहस्यमयी मुस्कान अपने होठों पर लाते हुए मिक्की ने मुझे घूरा और फिर तड़ से एक चुम्बन ले लिया। मिक्की के होंठ थोड़े खुले थे, मैंने एक हल्का सा झटका ऊपर को लगाया तो पूरा सुपाड़ा मिक्की के मुँह में चला गया। वो इसे बाहर निकालना ही चाहती थी कि मैंने उसके सिर को नीचे दबा दिया जिससे मेरा पूरा लण्ड उसके गले तक चला गया और वो गों-गों करने लगी। तब मैंने उसके सिर को छोड़ा, उसने लण्ड को मुँह से निकाला और बनावटी गुस्से से बोली- क्या करते हो जिज्जू? मेरा तो सांस ही रुक गया था !

चूसो ना जैसे अंगूठा चूसती हो ! बहुत मज़ा आएगा तुम्हें और मुझे भी !

यह तो अंगूठे से दुगना मोटा है ! कहते हुए उसने मेरी आंखों में देखा और मेरा आधा लौड़ा अपने मुंह में ले लिया और चूसने की कोशिश करने लगी। फ़िर लण्ड को मुंह से निकाल कर बोली- कैसे चूसूँ? चूसा ही नहीं जा रहा !

मैंने उसे लण्ड को मुंह में लेने को कहा और फ़िर उसका सिर पकड़ कर उसके मुंह में दो-चार धक्के लगाते हुए कहा- ऐसे चूसो !

अब तो वो लण्ड चूसने में मस्त हो गई और मैं अपनी उंगलियाँ उसकी पैन्टी में ले गया उसके अनावृत कूल्हों का जायजा लेने !

इससे बेखबर मेरा लण्ड चूसे जा रही थी किसी आइस-कैंडी की तरह जैसे मैंने उसे परसों मज़ाक में कुल्फी चूसने को कहा था।

ये लड़की तो लण्ड चूसने में अपनी मम्मी (सुधा) को भी पीछे छोड़ देगी। आह उसकी नरम मुलायम थूक से गीली जीभ का गुनगुना अहसास अच्छे अच्छों का पानी निचोड़ ले। कोई पाँच-छः मिनट उसने मेरा लण्ड चूसा होगा। फिर वो अपने होंठो पर जीभ फेरती हुई उठ खड़ी हुई। उसकी रसीली आँखों में एक नई चमक सी थी। जैसे मुझे पूछ रही हो कैसा लगा ?

मैं थोड़ी देर ऐसे ही बारी बारी उसके सभी अंगों को चूमता रहा लेकिन उसकी बुर को हाथ नहीं लगाया। मैं जानता था कि मिक्की की बुर ने अब तक बेतहाशा काम-रस छोड़ दिया होगा पर मैं तो उसे पूरी तरह तैयार और उत्तेजित करके ही आगे बढ़ना चाहता था ताकि उसे अपनी बुर में मेरा लण्ड लेते समय कम से कम परेशानी हो। मेरा लण्ड प्री-कम के टुपके छोड़ छोड़ कर पागल हुआ जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि अगर अब थोड़ी देर की तो यह बगावत पर उतर आएगा या खुदकुशी कर लेने पर मजबूर हो जायेगा। आप मेरी हालत समझ रहे है ना।

मिक्की की आँखें अब भी बंद थी। मैंने धीरे से उससे कहा,”आँखें खोलो मेरी प्रियतमा”

तो वो उनींदी आँखों से बोली,”बस कुछ मत कहो ऐसे ही मुझे प्यार किये जाओ मेरे प्रियतम !”

प्यारे पाठको और पाठिकाओं ! अब पैंटी की दीवार हटाने का समय आ गया था। मैंने मिक्की से जब पैंटी उतारने को कहा तो उसने कहा,” पहले आप अपना अंडरवियर तो उतारो !”

मेरा अंडरवियर तो पहले ही घायल हो चुका था याने फट चुका था बस नाम मात्र का अटका हुआ था। मैंने एक झटके में उसे निकाल फेंका और फिर मिक्की की पैंटी को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे करना शुरू किया- अब तो क़यामत सिर्फ एक या दो इंच ही दूर थी !!
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07-04-2017, 12:40 PM,
#69
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
जिसके लिए विश्वामित्र और नारद जैसे महा-ऋषियों का मन डोल गया वो पल अब मेरे सामने आने वाला था। पहले सुनहरे रोएँ नज़र आये और फिर दो भागो में बटा बुर का पहला नज़ारा- रक्तिम चीरा बाहरी होंठ मोटे और सुर्ख लाल गुलाबी रंगत लिए छोटे होंठ कुछ श्यामलता लिए दोनों आपस में प्रगाढ़ सहेलियों की तरह चिपके हुए और उसके नीचे सुनहरी रंग का गोल गोल गांड का छेद। आह… मैं तो बस इस दिलकश नजारे को देख कर अपनी सुध बुध ही खो बैठा।

पैंटी निकाल कर दूर फेंक दी। उसकी संगमरमरी जांघे केले के तने की तरह चिकनी और सुडोल जाँघों को मैंने कांपते हाथों से उन्हें सहलाया तो मिक्की की एक सित्कार निकल गई और उसके पैर अपने आप चौड़े होते चले गए। फिर मैंने हौले से उसके सुनहरी बालो पर हाथ लगाया।

उफ़… मक्का के भुट्टे को अगर छील कर उस पर उगे सुनहरी बालो का स्पर्श करें तो आपको मिक्की की बुर पर उगे उन छोटे छोटे रेशम से मुलायम बालों (रोएँ) का अहसास हो जायेगा। बाल ज्यादा नहीं थे सिर्फ थोड़े से उपरी भाग पर और दोनों होंठो के बाहर केवल आधी दूर तक जहां चीरा ख़त्म होता है उससे कोई दो इंच ऊपर तक। बुर जहां ख़त्म होती है उसके ठीक एक इंच नीचे जन्नत का दूसरा दरवाजा। उफ़ एक चवन्नी के आकार का बादामी रंग का गोल घेरा जैसे हंसिका मोटवानी या प्रियंका चोपड़ा ने सीटी बजाने के अंदाज में अपने होंठ सिकोड़ लिए हों।

मैने अपनी दोनों हाथों से उसकी पंखुड़ियों को थोड़ा सा चोड़ा किया। एक हलकी सी ‘पुट’ की आवाज के साथ उसकी बुर थोड़ी सी खुल गई केवल दो इंच रतनार सुर्ख लाल अनार के दाने जितनी बड़ी मदन मणि और बीच में मूत्र छेद माचिस की तिल्ली जितना बड़ा और उसके एक इंच नीचे स्वर्ग गुफा का छोटा सा छेद कम रस से भरा जैसे शहद की कुप्पी हो।

मैं अब कैसे रुक सकता था। मैने बरसों के प्यासे अपने जलते होंठ उन पर रख ही दिए। एक मादक सुगंध से मेरा सारा तन मन भर उठा। मिक्की तो बस मेरा सिर पकड़े अपनी आँखें बंद किये पता नहीं कहाँ खोई हुई थी उसका पूरा शरीर काँप रहा था। और मुंह से बस हौले-हौले सीत्कार ही निक़ल रही थी।

मैने अपनी जीभ की नोक जैसी ही उसकी मदनमणि पर लगाई, मिक्की का शरीर थोड़ा सा अकड़ा और उसकी बुर ने शहद की दो तीन बूँदे मुझे अर्पित कर दी। ओह मेरे प्यार का पहला स्पर्श पाते ही उसका छोटा स्खलन हो गया। उसके हाथ और पैर दोनों अकड़े हुए थे शरीर काँप रहा था। मेरा एक हाथ उसके उरोजों को मसल रहा था और दूसरा हाथ उसके गोल गोल नितम्बों को सहला रहा था।

मैने उसकी बुर को चूसना शुरू कर दिया। मिक्की तो सातवें आसमान पर थी। लगभग दस मिनट तक मैने उसकी बुर चूसी होगी। फिर मैने उसकी बुर चूसते चूसते पास पड़ी डब्बी से थोड़ी सी वैसलीन अपने दायें हाथ की तर्जनी अंगुली पर लगाई और होले से उसकी बुर की सहेली पर फिरा दी। मिक्की ने रोमांच से एक बार और झटका खाया। अब मैने दो चीजें एक साथ की उसकी शहद की कुप्पी को जोर से चूसने के बाद उसके अनार दाने को दांतों से होले से दबाया और अपने दायें हाथ की वैसलीन से भरी अंगुली का पोर उसके प्रेम द्वार की प्यारी पड़ोसिन के सुनहरी छेद में डाल दिया।

“ऊईई… मम्म्मीईइ…जीज्जू…ऊ आह्ह्ह मुझे कुछ हो रहा है मैं मर गई… आह्ह्ह… ऊओईईइ…इ ह्हीईइ… य्याआया… !!”

मिक्की का शरीर अकड़ गया, उसने मेरे सिर के बालों को नोच लिया, और अपनी जाँघों को जोर से भींच लिया और जोर की किलकारी के साथ वो ढीली पड़ती चली गई और उसके साथ ही उसकी बुर ने कोई तीन-चार चम्मच शहद (कामरस) उंडेल दिया जिसे मैं भला कैसे व्यर्थ जाने देता, गटागट पी गया। ये उसके जीवन का पहला ओर्ग्जाम था।

कुछ पलों के बाद जब मिक्की कुछ सामान्य हुई तो मैने होले से उसे पुकारा,”मेरी मोनिका ! मेरे प्रेम की देवी ! कैसा लग रहा है ?”

“उन्ह !! कुछ मत पूछो मेरे प्रेम देव ! आज की रात बस मुझे अपनी बाहों में लेकर बस प्यार बस प्यार ही करते रहो मेरे प्रथम पुरुष !”

मैने एक बार फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया। अब बस उन पलों की प्रतीक्षा थी जिसे मधुर मिलन कहते है। मैं अच्छी तरह जानता था भले ही मिक्की अब अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है पर है तो अभी कमसिन कच्ची मासूम कली ही ? वो भले ही इस समय सपनो के रहस्यमई संसार में गोते लगा रही है पर मधुर मिलन के उस प्रथम कठिन चरण से अभी अपरिचित है। मैं मिक्की से प्यार करता था और भला उसे कोई कष्ट हो मैं कैसे सहन कर सकता था।

शायद आप रहे कि मैंने अपना इरादा बदल लिया होगा और उसे चोदने का विचार छोड़ दिया होगा तो आप गलत सोच रहे है। मैं तो कब से उसे चोदना चाहता था। पर उसकी उम्र और किसी गड़बड़ की आशंका से डर रहा था। हाँ उसकी बातें सुनकर एक बदलाव जरूर आ गया। मुझे लगा कि मैं सचमुच उसे प्यार करने लगा हूँ। जैसे वो मेरी कोई सदियों की बिछुड़ी प्रेमिका है जिसे मैं जन्मि-जन्मानंतर तक प्यार करता रहूँगा।

फिर सब कुछ सोच विचार करने के बाद मैंने एक जोर की सांस छोड़ते हुए उसे समझाना शुरू किया,”देखो मेरी प्रियतमा ! अब हमारे मधुर मिलन का अंतिम पड़ाव आने वाला है। ये वो परम आनंद है जिसके रस में ये सारी कायनात डूबी है !”

“मैं जानती हूँ मेरे कामदेव !”

“तुम अभी नासमझ हो ! प्रथम मिलन में तुम्हें बहुत कष्ट हो सकता है !”

“तुम चिंता मत करो मेरे प्रियतम ! मैं सब सह लूंगी मैं सब जानती हूँ !”

अब मेरे चौंकने की बारी थी मैंने पुछा “तुम ये सब ??”

“मैंने मम्मी और पापा को कई बार रति-क्रीड़ा और सम्भोग करते देखा है और अपनी सहेलियों से भी बहुत कुछ सुना है।”

“अरे कऽ कऽऽ क्या बात करती हो… तुमने ?” मेरे आश्चर्य कि सीमा नहीं रही “क्या देखा है तुमने और क्या जानती हो तुम ?”

“वोही जो एक पुरुष एक स्त्री के साथ करता एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ करता एक भंवरा किसी कली के साथ करता है, सदियों से चले आ रहे इस जीवन चक्र में नया क्या है जो आप मेरे मुंह से सुनना चाहते हैं … मैं… मैं… रसकूप, प्रेम द्वार, काम-दंड, रति-क्रीड़ा और मधुर मिलन जैसे शब्दों का नाम लेकर तुम्हें कैसे बताऊँ… मुझे क्षमा कर दो मेरे प्रियतम ! मुझे लाज आती है !!!”

मैं हक्का बक्का सा उसे देखता ही रह गया। आज तो ये मासूम सी दिखनेवाली लड़की न होकर अचानक एक प्रेम रस में डूबी नवयौवना और कामातुर प्रेयसी नज़र आ रही है।

बस अब बाकी क्या बचा था ??? मैंने एक बार फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया…और…।

हमारे इस मधुर (प्रेम) मिलन (इसे चुदाई का नाम देकर लज्जित न करें) के बारे में मैं विस्तार से नहीं लिख पाऊंगा। सदियों से चले आ रहे इस नैसर्गिक सुख का वर्णन जितना भी किया जाए कम है। रोमांटिक भाषा में तो पूरे ग्रन्थ भरे पड़े हैं। वात्स्यायन का कामसूत्र या फिर देशी भाषा में मस्तराम की कोई किताब पढ़ लें।

मैंने मिक्की से उसके रजोदर्शन (मासिक) के बारे में पूछा था (मैं उसे गलती से भी गर्भवती नहीं करना चाहता था) तो उसने बताया था कि उसकी अगली तारीख एक जून के आस पास है और आज तो २८ मई है ! और फिर ! दिल्ली लुट गई……………………!!!

हमें कोई दस-पन्द्रह मिनट लगे होंगे। ऐसा नहीं है कि सब कुछ किसी कुशल खिलाड़ियों के खेल की भाँति हो गया हो। मिक्की जिसे खेल समझ रही थी वास्तव में थोड़ा सा कष्ट कारक भी था। वो थोड़ा रोई-चिल्लाई भी ! पर प्रथम-मिलन के उन पलों में उसने पूरा साथ दिया। आज वो कली से फूल बनकर तृप्त हो गई थी। हम दोनों साथ साथ स्खलित हुए। उसे थोड़ा खून भी निकला था। मैंने अपने कुरते की जेब से वोही रेशमी रुमाल निकाला जो मिक्की ने मुझे बाज़ार में गिफ्ट दिया था और उसके प्रेम द्वार से चूते मेरे प्रेम-रस, मिक्की के काम-राज और रक्त का मिलाजुला मिश्रण उस अनमोल भेंट में डुबो कर साफ़ कर दिया और उसे अमूल्य निधि की तरह संभाल कर अपने पास रख लिया।

फिर हम दोनों ने बाथरूम में जाकर सफाई की। मिक्की की मुनिया पाव रोटी की तरह सूज गई थी, उसके निचले होंठ बहुत मोटे हो गए थे जैसे ऊपर वाले होंठों का डबल रोल हो। मैंने उसकी पिक्की ? बुर ? चूत ? (अरे नहीं यार मैं तो उसे मुनिया कहूँगा) पर एक चुम्बन ले लिया और मिक्की ने भी मेरे सोये पप्पू को निराश नहीं किया उसने भी एक चुम्बन उस पर ले लिया।

मैंने खिड़की का पर्दा हटा दिया। चाँद की दूधिया रोशनी से कमरा जगमगा उठा। दूर आसमान में एकम का चाँद अपनी चांदनी बरसाता हुआ हमारे इस मधुर मिलन का साक्षी बना मुस्कुरा रहा था। मिक्की मेरी गोद में सिर रखे अपनी पलकें बंद किये सो रही थी।

मैंने उदास स्वर में कहा “मिक्की मेरी जान, मेरे प्राण, मेरी आत्मा, मेरी प्रेयसी कैसी हो ?”

उस से बिछुड़ने की वेदना मेरे चहरे पर साफ़ झलक रही थी। कल मिक्की वापस चली जायेगी।

“अब मैं कली से फूल, किशोरी से युवती, मिक्की और मोना से मोनिका बन गई हूँ और मेरी पिक्की अब भोस नहीं… प्रेम रस भरा स्वर्ग द्वार बन गई है कहने को और क्या शेष रह गया है मेरे प्रेम दीवाने, मेरे प्रेम देव, मेरे प्रथम पुरुष !” मिक्की ने रस घोलती आवाज में कहा।

आप जरूर सोच रहे होंगे अजीब बात है ये बित्ते भर की +२ में पढ़ने वाली नादान अंगूठा चूसने वाली नासमझ सी लोंडिया इतनी रोमांटिक और साहित्यिक भाषा में कैसे बात कर रही है ? मैंने (लेखक ने) जरूर कहीं से ये संवाद व्ही शांता राम की किसी पौराणिक फिल्म या किसी रोमांटिक उपन्यास से उठाया होगा ?

आप सरासर गलत हैं। मैंने भी मिक्की (सॉरी अब मोनिका) से उस समय पूछा था तो उसने जो जवाब दिया था आप भी सुन लीजिये :

“क्यों मेरे पागल प्रेम दीवाने जब आप अपने आप को बहुत बड़ा ‘प्रेम गुरु’ समझते हैं, अपने कंप्यूटर पर ‘जंगली छिपकलियों’ के फोल्डर और फाइल्स को लोक और अन्लोक कर सकते है तो क्या मैं आपकी उस काले जिल्द वाली डायरी, जिसे आपने परसों स्टडी रूम में भूल से या जानबूझ कर छोड़ दिया था, नहीं पढ़ सकती ? “

हे भगवान् ? मैं हक्का बक्का आँखें फाड़े उसे देखता ही रह गया। मुझे ऐसा लगा जैसे हजारों वाट की बिजलियाँ एक साथ टूट पड़ी हैं। मैंने कथा के शुरू में आपको बताया था कि मैं उन दिनों डायरी लिखता था और ये वोही डायरी थी जिसके शुरू में मैंने अपनी सुहागरात और मधुर मिलन के अन्तरंग क्षणों को बड़े प्यार से संजोया था और उसके प्रथम पृष्ठ पर ‘मधुर प्रेम मिलन’ लिखा था। मैंने इसे बहुत ही संभाल कर रखा था और मधु को तो अब तक इसकी हवा भी नहीं लगने दी थी, न जाने कैसे उस दिन आजकल के अनुभवों के नोट्स लिखते हुए स्टडी रूम में रह गई थी।

ओह ! अब तो सब कुछ शीशे की तरह साफ़ था।

“आपको तो मेरा धन्यवाद करना चाहिए कि वो डायरी मैंने बुआजी के हाथ नहीं पड़ने दी और अपने पास रख ली नहीं तो इतना बड़ा हंगामा खड़ा होता कि आपका सारा का सारा साहित्यिक ज्ञान और प्रेम-गुरुता धरी की धरी रह जाती ?” मिक्की ने जैसे मेरे ताबूत में एक कील और ठोक दी।

“ओह थैंक यू … मिक्की ओह बा मोनिका कहाँ है वो ड़ायरी ?? लाओ प्लीज मुझे वापस दे दो !”

“ना ! कभी नहीं वो तो मैं जन्म-जन्मान्तर तक भी किसी को नहीं दूँगी, मेरे पास भी तो हमारे प्रथम मधुर मिलन के इन अनमोल क्षणों की कुछ निशानी रहनी चाहिए ना ?”

मैं क्या बोलता ?

मिक्की फिर बोली “मधुर मिलन की इस रात्रि में उदासी का क्या काम है ! आओ ! सपनों के इस संसार में इन पलों को ऐसे व्यर्थ न गंवाओ मेरे प्रियतम ! ये पल फिर मुड़ कर नहीं आयेंगे !”

और मिक्की ने एक बार फिर मेरे गले में अपनी नाज़ुक बाहें डाल दी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलता मिक्की के जलते होंठ मेरे होंठों पर टिक गए और मैंने भी कस कर उन्हें चूमना शुरू कर दिया।

बाहर मिक्की के मामाजी (अरे यार चन्दा मामा) खिड़की और रोशनदान से झांकते हुए मुस्कुरा रहे थे।

अगली सुबह-

मिक्की के पास तो लंगड़ाकर चलने का बहाना था (टांगों के बीच में दर्द का नहीं एड़ी में दर्द का) पर मेरे पास तो सिवाए सिर दर्द के और क्या बहाना हो सकता था। मैंने इसी बहाने ऑफिस से बंक मार लिया। आज मेरी मिक्की मुझ से बिछुड़ कर वापस जा रही थी। शाम की ट्रेन थी। मेरा मन किसी चीज में नहीं लग रहा था। एक बार तो जी में आया कि मैं रो ही पडूं ताकि मन कुछ हल्का हो जाए पर मैंने अपने आप को रोके रखा। दिन भर अनमना सा रहा। मैं ही जानता हूँ मैंने वो पूरा दिन कैसे बिताया।
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07-04-2017, 12:40 PM,
#70
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
ट्रेन कोई शाम को सात बजे की थी। सीट आराम से मिल गई थी। जब गाड़ी ने सीटी बजाई तो मैं उठकर चलने लगा। मिक्की के प्यार में भीगी मेरी आत्मा, मेरा हृदय, मेरा मन तो वहीं रह गया था।

मैं अभी डिब्बे से नीचे उतरने वाला ही था कि पीछे से मिक्की की आवाज आई,”फूफाजी…! आप अपना मोबाइल तो सीट पर ही भूल आये !”

मिक्की भागती हुई आई और मुझ से लिपट गई। उसने अपने भीगे होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और किसी की परवाह किये बिना एक मेरे होंठों पर ले लिया। मैंने अपने आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक पाया।

मिक्की ने थरथरती हुई आवाज में कहा,”मेरे प्रथम पुरुष ! मेरे कामदेव ! मेरी याद में रोना नहीं। अच्छे बच्चे रोते नहीं ! मैं फिर आउंगी, मेरी प्रतीक्षा करना !”

मिक्की बिना मेरी और देखे वापस अपनी सीट की और चली गई। मेरी अंगुलियाँ मेरे होंठों पर आ गई। मैं मिक्की के इस तीसरे चुम्बन का स्पर्श अभी भी अपने होंठो पर महसूस कर रहा था।

मैं डिब्बे से नीचे उतर आया। गाड़ी चल पड़ी थी। खिड़की से मिक्की का एक हाथ हिलाता हुआ नज़र आ रहा था। मुझे लगा कि उसका हाथ कुछ धुंधला सा होता जा रहा है। शायद मेरी छलछलाती आँखों के कारण। इस से पहले कि वो कतरे नीचे गिरते मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल निकाला जो मिक्की ने मुझे गिफ्ट किया था और हमारे मधुर मिलन के प्रेम रस से भीगा था, मैंने अपने आंसू पोंछ लिए।

मेरे आंसू और मिक्की के होंठो का रस, हमारे मधुर मिलन के प्रेम रस से सराबोर उस रस में मिल कर एक हो गए। मैं बोझिल कदमों और भारी मन से प्लेटफार्म से बाहर आ गया। मेरा सब कुछ तो मिक्की के साथ ही चला गया था।

दोस्तों सच बताना क्या अब भी आपको यही लगता है कि ये महज़ एक कहानी है ?
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