प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:37 PM,
#51
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
दोस्तों अब दिल्ली लुटने को तैयार थी…

मैंने उसका टॉप उतार दिया। दोनों क़बूतर आज़ाद हो गए। वो आँखें बन्द करके लेटी थी। होंठ काँप रहे थे। मैंने अभी तक उसकी चूत को हाथ भी नहीं लगाया था। आप तो जानते हैं मैं प्रेम गुरु हूँ और जल्दीबाज़ी में विश्वास नहीं रखता हूँ। मैं तो उसके मुँह से कहलवाना चाहता था कि ‘मुझे चोदो’। अब मैंने उसके होठों पर उसके होंठ रख दिए। उसके नरम नाज़ुक रसीले होठ नहीं जैसे शहद से भरी फूलों की पँखुड़ियाँ हों। मैंने उसे गालों पर, पलकों पर, माथे पर, गले पर, कान पर, दोनों उरोजों पर, और नाभी पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। वो आआहहह… उहहहह… करती जा रही थी। अपने पैर पटक रही थी। उसकी सीत्कार तेज़ होती जा रही थी। वो बोली “ये मुझे क्या होता जा रहा है…” वो रोमांच से काँप रही थी। मैं जानता था अब वह झड़ने वाली है। अरे वो तो बिल्कुल कच्ची कली ही निकली। उसका शरीर अकड़ा और उसने मेरे होंठ ही काट लिए। उसके नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे। उसने एक हल्की सी सिसकारी मारी। लगता है उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। फिर वह ठंडी पड़ गई।

मैंने अपने कपड़े उतार दिए। सिर्फ चड्डी पहनी रखी। पप्पू महाराज ने अपना सिर चिपकी हुई चड्डी से भी बाहर निकाल ही लिया। उस बेचारे के क्या दोष था। अब निशा की बेल-बॉटम हटाने का वक्त आ गया था। निशा आँखें बन्द किए लेटी थी। मैंने उसकी सैलेक्स (सूती के पाजामे जैसी) के इलास्टिक को धीरे-धीरे नीचे करना शुरु किया। (उसने फिर बत्ती बन्द करने को कहा, तो मैंने कहा कि वो जंगली बिल्ली आ गई तो तुम्हारा दूध पी जाएगी और मैं भूखा ही रह जाऊँगा, रहने दो।) निशा ने अपने चूतड़ थोड़े से ऊपर कर दिए। प्यारे पाठकों, और पाठिकाओं ! अब तो स्वर्ग का द्वार बस एक दो इंच ही रह गया था। चूत का अनावरण होने ही वाला था। मेरा पप्पू तो ठुमके पर ठुमका लगा रहा था। उसने तीन-चार वीर्य की पहली बूँदें छोड़ ही दीं। वो तो इस स्वर्ग के द्वार के दर्शन के लिए कब से बेताब़ था।

पहले छोटे-छोटे रेशमी बाल (उन्हें झाँट तो कतई नहीं कहा जा सकता) नज़र आए, और फिर किशमिश का दाना और फिर दो भागों में बँटी हुई उसकी नाज़ुक सी मक्खन मलाई सी चूत की फाँकें। गुलाबी रंगत लिए हुए। चूत के दोनों होठों पर हल्के-हल्के बाल। बीच में हल्की चॉकलेटी रंग की मोटी सी दरार। चीरे की लम्बाई ३ इंच से ज़्यादा बिल्कुल नहीं थी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, ऊपर और नीचे के होंठों में रत्ती फर भी फ़र्क नहीं था। मोटे-मोटे गुलाबी रंग के संतरे की फाँके हों जैसे। दाईं जाँघ पर वो काला तिल। जैसे मेरे कत्ल का पूरा इन्तज़ाम किए हो। उसकी चूत काम-रस से सराबोर नीम गीली थी। मैंने अपने हाथों की दोनों उँगलियों से उसकी चूत की दोनों पंखुड़ियों को धीरे से चौड़ा किया। एक हल्की सी ‘पट’ की आवाज़ के साथ एक गहरा सा चीरा खुल गया।

उफ्फ.. सुर्ख लाल पकौड़े जैसी चूत एक दम गुलाबी रंग की थी। ऊपर अनार दाना, उसके नीचे मूत्र-छिद्र माचिस की तीली की नोक जितना बड़ा। आईला… और उसका फिंच… स्स्स्सी… का सिस्कारा तो कमाल का होगा। एक बार मूतते हुए ज़रूर चुम्मा लूँगा. मूत्र-छिद्र के ठीक एक इंच नीचे स्वर्ग-गुफ़ा का छोदा सा बन्द द्वार जिसमें से हल्का-हल्का सा सफेद पानी झर रहा था। मैंने अपनी जीभ जैसी ही उसकी मदन-मणि के दाने पर रखी तो उसकी एक सीत्कार निकल गई। मैंने जीभ को उसके मूत्र-छिद्र पर फिराया और फिर उसके स्वर्ग-द्वार पर। कच्चे नारियल, पेशाब और पसीने जैसी मादक सुगन्ध मेरे नथुनों में भर गई। कुछ मीठा, खट्टा, नमकीन सा स्वाद भला मैं कैसे नहीं पहचानता, जैसे मिक्की ही मेरे सामने लेटी हो। निशा तो अब किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब ऊपर-नीचे उठाते हुए अपनी चूत मेरे मुँह से चिपका दीं। मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ लिया और ज़ोर से बाल नोच लिए। इसमें उस बेचारी का क्या दोष। मुझे लगा अगर यही हालत रही तो मैं जल्दी ही गंजा हो जाऊँगा। पर अगर ऐसी चूत के लिए गंजा भी होना पड़े तो कोई ग़म नहीं।

उसने उत्तेजना में अपने पाँव ऊपर उठा लिए और मेरे गले के गिर्द लिपट दिए ज़ोर से। मैंने उसकी पूरी की पूरी चूत को अपने मुँह में भर लिया था, वह थी भी कितनी, एक छोटे परवल या सिंघाड़े जितनी ही तो थी। मैंने उसे ज़ोर से चूसा तो निशा ने इतनी ज़ोर की किलकारी मारी कि अगर बाहर तेज़ बारिश और बिजली नही कड़क रही होती तो पड़ोस वाले अवश्य ही सुन लेते। उसके साथ ही उसकी चूत ने कोई ३-४ चम्मच शहद जैसे मीठे नमकीन खट्टे नारियल पानी और पेशाब की मिली-जुली सुगन्ध जैसे काम-रस छोड़ दिया जिससे मेरा मुँह लबालब भर गया। सही मायने में निशा का यह पहला स्खलन था। मैं तो उसे चटकारे लेकर पी ही गया।

दोस्तों, २ उत्पादों की लाँचिंग सफलतापूर्वक हो गई थी। अब चूत और गाँड की चुदाई तथा लंड चुसवाना बाकी था। सबसे पहले चूत की बारी थी, फिर लंड-चुसाई और अन्त में गाँड। आईये अब चूत-रानी का उदघाटन करते हैं। आप तैयार है ना। मेरा पप्पू तो मुझे आज ज़िन्दा नहीं छोड़ेगा। बहुत तड़पाया है इस चूत ने उसे। पूरे २ घंटे से एकदम सावधान की स्थिति में सलामी मार रहा है। निशा बेसुध सी आँखें बन्द किए लेटी थी। थोड़ी देर बाद उसने अपनी जाँघों की कैंची ढीली की और मेरा सिर पकड़ कर ऊपर की ओर सरकाया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रखकर चूसने लगी। २-३ मिनट चूसने के बाद वो बोली “जीजू मुझे पता नहीं ये क्या होता जा रहा है। एक मदहोशी सी छा रही है। कुछ करो ना… उफ्फ… हाय्य्य्यययय…” एक ज़ोर की सीत्कार उसने ली। लगता था वो एक बार फिर झड़ गई है।

मैं उसके ऊपर आ गया। मैंने अपनी चड्डी फाड़ फेंकी। मेरा ७” का पप्पू आज तो लोहे की तरह सख़्त था। उसकी लम्बाई आधा इंच बढ़कर ७.५ इंच हो गई थी। मैंने कहा “क्या करूँ मेरी जान?”

“ओह… जीजू… अब मत तरसाओ… कर लो अपने मन की। ओह आप मेरे मुँह से क्या सुनना चाहते हैं। मुझे शर्म आती है। प्लीज़…” कुछ ना कहते हुए भी उसने सबकुछ कह दिया था। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर लगा दिया।

“ऊईईईई… माँआआ…. ओहहहह… जीजू वो… वो… निरोध (कॉण्डोम) तो लगा लो” निशा की आवाज़ काँप रही थी।

“मेरी रानी निरोध से मज़ा नहीं आएगा।”

“पर वो… वो… अगर मैं गर्भवती हो गई तो…?”

“मेरी जान फिर तुम्हारा नया उत्पाद किस दिन काम आएगा? सिर्फ एक महीने में एक गोली?” मैंने कहा, और मन में सोचा ‘साली मुझे पपलू समझती है।’

“ओह… जीजू, तुम भी एक नम्बर के बदमाश हो…” और उसने मुझे कससकर अपनी बाँहों में भर लिया।

“नहीं, मैं तो २ नम्बर का बदमाश हूँ।” मैंने कहा।

“क्या मतलब?”

“वो बाद में अभी तो एक नम्बर का ही मज़ा लो।” और मैंने तकिये के नीचे से वैसलीन की डिब्बी से थोड़ी से वैसलीन निकाली और अपने लंड और निशा की चूत में एक उँगली भर कर गच्च से डाल दी। उसकी हल्की सी चीख निकल गई। मैंने ५-७ बार उँगली अन्दर-बाहर की। हे भगवान, साली की क्या मस्त सँकरी चूत है। एकदम कच्ची कली जैसी, फ़कत कुँवारी, कोरी रसमलाई जैसी। अब देर करना ठीक नहीं था।

मैंने अपने पप्पू को उसकी चूत के मुहाने पर रका और उसकी कमर के नीचे एक हाथ डाला। उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और फिर एक ही झटके में ३ इंच लंड अन्दर ठोंक दिया। निशा की घुटी-घुटी चीख निकल गई। मैं तो प्रेम-गुरु था। मुझे पता था वो ज़रूर चीखेगी, इसीलिए मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में ले रखा था। और उसकी कमर पकड़ रखी थी ताकि वो उछल कर मेरा काम ख़राब ना कर दे।

अभी धक्के मारने का समय नहीं हुआ था। कोई २-३ मिनट के बाद जब उसकी चूत कुछ आराम में आई और उसने पानी छोड़ा तब मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरु किए पर अभी लंड पूरा नहीं घुसाया। मुझे पता था, अभी एक बाधा और बाक़ी है – उसकी झिल्ली उसकी सील उसकी नाज़ुक झिल्ली, उसकी कुँवारीच्छद। जिसके फटने का दर्द वो मुश्किल से सहन कर पाएगी। पर उसे भी तोड़ना था। मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फेरना चालू रखा। उसकी गाँड के छेद से जैसे ही मेरी उँगलियाँ टकराईं तो मैं तो रोमांच से भर उठा. बालों की कंघी के दाँत जैसी गाँड की तीख़ी नोकदार सिलवटों वाला छेद। आहहहह… क्या मस्त क़यामत है साली की गाँड की छेद

आप चौंक गए ना। आपने रोमांटिक कहानियों में ज़रूर सुना होगा कि लड़कियों की गाँड की छेद मुलायम होती है। अगर कोई ऐसा कहता है तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वो गाँड ज़रूर १५-२० बार लंड खा चुकी है। गुरुजी कहते हैं कि कुँवारी गाँड की पहचान तो उसके उभरे हुए सिलवटों से होती है। अगर आप इस लज्जत को महसूस करना चाहते हैं तो एक संतरे की फाँक लेकर उसकी पतली सफ़ेद झिल्ली को हटा दें। अब उसके जोये नज़र आएँगे। अपनी आँखें बन्द करके उन पर अपनी ऊँगली फिराएँ आप उसका नाज़ुकपन महसूस कर सकेंगे। हे भगवान जिस लड़की ने अपनी चूत में भी कभी उँगली ना की हो उसकी अनछुई कोरी गाँड मार कर तो अगर इस दुनिया से जाना भी पड़े तो ये सौदा कतई घाटे वाला नहीं है। आज तो इस गाँड के छेद में अपना रस भर कर स्वर्ग के इस दूसरे दरवाज़े का लुत्फ हर क़ीमत पर उठाना ही है। पर अभी तो चूत की चुदाई चल रही है। गाँड की बात बाद में। पप्पू तो इस ख़्याल से ही अड़ियल टट्टू बन गया है। पता नहीं ये सब्र करना कब सीखेगा। उसने दो-तीन ठुमके चूत के अन्दर लगाए तो निशा की चूत ने भी उसे कस कर अन्दर भींच लिया।

मैंने उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया और लगा दिया और अपना एक हाथ उसकी पतली कमर के नीचे डाल कर पकड़ लिया। अपने होंठ उसके होंठों पर रख करक उन्हें चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर लिए। वो तो पूरी गरम और मस्त हो चुकी थी। उसने तो अब नीचे से हल्के-हल्के धक्के भी लगाने शुरु कर दिए थे। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया। धक्का इतना ज़बर्दस्त था कि उसकी सील को तोड़ता हुआ गच्च से जड़ तक उसकी चूत में समा गया। निशा की घुटी-घुटी चीख़ बाहर कड़कड़ाती बिजली की आवाज़ में दब गई। वो दर्द के मारे छटपटाने लगी। उसने मेरी पीठ पर अपने नाखून इतने ज़ोर से गड़ाए कि मेरी पीठ पर भी ख़ून छलक आया। उसकी चूत से ख़ून का फव्वारा छूटा और मेरे लंड को भिंगोता हुआ तकिए पर गिरने लगा। निशा की कसमसाहट से उसके होंठ मेरे मुँह से निकलते ही वो ज़ोर से चीख़ी “ओईईईईई… माँ…. मर… गईईईईईईईई…” और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।

मैंने उससे कहा “बस मेरी रानी अब दर्द खत्म ! अब तो बस आनन्द ही आनन्द है। बस अब चुप करो” मैंने उसके नमकीन स्वाद वाले आँसूओं पर अपनी जीभ रख दी। “जीजू आप भी एक नम्बर के कसाई हो, मुझे मार ही डाला… ओओईईईईई… निकाल बाहर.. मैं मर जाऊँगी… उईईईईई माँआआआआ….” वो रोए जा रही थी। मैं जानता ता ये दर्द ३-४ मिनट का है बाद में तो बस मज़े ही मज़े। मेरा पप्पू तो जैसे निहाल ही हो गया। इतनी कसी हुई चूत तो मधु की भी नहीं लगी थी, सुहागरात में।
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07-04-2017, 12:37 PM,
#52
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
कोई ५ मिनट के बाद निशा कुछ संयत हुई। उसकी चूत ने भी फिर से रस छोड़ना चालू कर दिया। मैंने उसकी कपोलों, होंठों और माथे पर चुम्बन लेने शुरु कर दिए। फिर मैंने उससे पूछा “क्यों मेरी मैना, अब दर्द कैसा है?” तो वह बोली “जीजू आपने तो मेरी जान ही निकाल दी, कोई कुँवारी लड़की को ऐसे चोदता है?”

“देखो अब जो होना था हो गया हा, अब तो बस इसके आगे स्वर्ग का सा आनन्द ही आनन्द है” और मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरु कर दिए। निशा को भी अब थोड़ा मज़ा आने लगा था। मैंने कहा “मेरी मैना, अब तुम कली से फूल बन गई हो और मैं तुम्हारा मिट्ठू”

निशा की हँसी निकल पड़ी और उसने २-३ मुक्के मेरी पीठ पर लगाते हुए कहा “तुम पूरे एक नम्बर के बदमाश हो। अपने शब्द जाल में फँसा कर आख़िर मुझे ख़राब कर ही दिया।” मैंने एक धक्का और लगाया तो वह चिहुँकी “ओईईई… आआहह… या… ओह अब रूको मत ऐसे ही धक्के लगाओ… आहहह… या.. ओई… मैं तो गईईईईईईई….” और उसके साथ ही वो एक बार फिर झड़ गई। मैं तो जैसे स्वर्ग में था। मैंने लगातार ८-१० धक्के और लगा दिए। अब तो उसकी चूत से फच्च-फच्च का मधुर संगीत बजने लगा था।

ये सिलसिला कोई २० मिनट तो ज़रूर चला होगा। मेरा पप्पू बेचारा कब तक लड़ता। आख़िर उसको भी शहीद होना ही था। मैंने दनादन ५-७ धक्के और लगा दिए। निशा भी फिर से झड़ने के कगार पर ही तो थी। और फिर… एक.. दो… तीन चार… पाँछ.. पता नहीं कितनी पिचकारियाँ मेरे पप्पू ने छोड़ दीं… निशा ने मुझे कस कर पकड़ लिया और उसकी चूत ने भी काम-रज छोड़ दिया। उसकी बाँहों में लिपटा मैं कोई १० मिनट उसके ऊपर ही पड़ा रहा।

१० मिनट के बाद निशा जैसे नींद से जागी। मैं उठ कर बैठ गया। निशा भी मेरी ओर सरक आई। उसने मेरे होंठों पर दो-तीन चुम्बन ले लिए। मैंने उस से थैंक यू कहा तो उसने कहा “गन्दे बच्चे मेरे प्यारे मिट्ठू…” और मेरी नाक पकड़ कर ज़ोर से दबा दी। मेरे तीसरे उत्पाद की लाँचिंग की ये बधाई ही तो थी।

मैं उसे गोद में उठा कर बाथरूम की ओर ले जाने लगा। उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बन्द कर लीं। मैंने देखा पूरा तकिया मेरे वीर्य, निशा के ख़ून, और काम-रज़ से भीगा हुआ था। मैंने एक हाथ से उस तकिए को उल्टा कर दिया ताकि निशा इतना ख़ून देखकर डर ना जाए।

निशा पॉट पर बैठकर पेशाब करने लगी। आहहहह… फिच्च… स्स्स्सीईईई… का वो सिसकारा और मूत की पतली धार तो मिक्की जैसी ही थी। मैं तो मन्त्र-मुग्ध सा बस उस नज़ारे को देखता ही रह गया। पॉट पर बैठी निशा की चूत ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने मोटे शब्दों में अंग्रेज़ी में ‘W’ (डब्ल्यू) लिख दिया हो। उसकी चूत ऐसी लग रही थी जैसे एक छोटा करेला किसी ने छील कर बीच में से चीर दिया हो। चूत के होंठ सूजकर पकौड़े जैसे हो गए थे। बिल्कुल लाल गुलाबी। उसकी गाँड का भूरा और कत्थई रंग का छोटा सा छेद खुल और बन्द हो रहा था। मुझे अपने चौथे उत्पाद की याद आ गई… अरे भाई लंड भी तो चुसवाना था ना। मैंने उससे कहा “एक मिनट रूको, मूतना बन्द करो और उठो… प्लीज़ जल्दी”

“क्या हुआ?” निशा ने मूतना बन्द कर दिया और घबरा कर बीच में ही खड़ी हो गई। मैंने उसे अपनी ओर खींचा। मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चूत को दोनों हाथों से खोल करक उसकी मदन-मणि के दाने को चूसने लगा। वो तो आहहह… उहह्हह करती ही रह गई। उसने कहा “ओह… क्या कर रहे हो जीजू ओफ्फ्फ.. इसे साफ तो करने दो। ओह गन्दे बच्चे ओईईईई.. माँ…”

यही तो मैं चाहता था। मैं जानबूझ कर उसकी वीर्य और काम-रज से भरी चूत को चूस कर ये दिखाना चाहता था कि चुदाई में कुछ भी गन्दा नहीं होता, ताकि वह मेरा लण्ड चूसने में कोई कोताही ना बरते और कोई आनाकानी ना करे। “अरे प्यार में कुछ गन्दा नहीं होता” मैंने कहा। और फिर उसके किशमिश के दाने को चूसने लगा।

निशा कितनी देर तक बर्दाश्त करती। उसकी चूत के मूत्र-छिद्र से हल्की सी पेशाब की धार फिर चालू हो गई जो मेरी ठोड़ी से होती हुई गले के नीचे गिर सीने से होती मेरे प्पू और आँडों को जैसे धोती जा रही थी। उसने मेरे सिर के बाल पकड़ लिए कसकर। मैं तो मस्त हो गया। जब उसका पेशाब बन्द हुआ तो उसने नीचे झुक कर मेरे होंठ चूम लिए और अपने होठों पर जीभ फिराने लगी। उसे भी अपनी मूत का थोड़ा सा नमकीन स्वाद ज़रूर मिल ही गया।

हमने हल्का सा शॉवर लिया और साफ़-सफाई के बाद फिर बिस्तर पर आ गए। मैं बिस्तर पर टेक लगा कर बैठ गया। निशा अचानक उछली और मुझे एक तरफ लुढ़काते हुए मेरे पेट पर बैठ गई। उसकी दोनों टाँगें मेरे पेट के दोनों तरफ थी और उसके घुटने मुड़े हुए थे। उसने अपने होंठ मेरे होठों पर रख कर दो-तीन चुम्बन तड़ातड़ ले लिए। उसके सिन्दूरी आम मेरे सीने से लगे थे और उसके नितम्बों के नीचे मेरा पप्पू पीस रहा था। वो अपनी चूत और नितम्बों को भी थोड़ा-थोड़ा सा घिस रही ती। ऐसा करते हुए उसने अपनी जीभ की नोक से मेरी नाक चाटी और उसकी नोक अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। आईलाआआआ… मैं तो मस्त ही हो गया।

प्यारे दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि इसमें मस्त होने वाली क्या बात है? नाक होंठ गाल तो हर लड़की चूस ही लेती है। आप गलत सोच रहे हैं। शायद आप औरतों की इस अदा को नहीं जानते। मेरी प्यारी पाठिकाएँ ज़रूर हँस रहीं हैं। वो अच्छी तरह इसका मतलब जानती हैं। नहीं समझे ना? चलो मैं बता देता हूँ…
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07-04-2017, 12:37 PM,
#53
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
इस बात से आप सहमत हैं ना कि जब कोई लड़का या आदमी किसी लड़की या औरत को कहता है कि तुम बहुत ख़ूबसरूत हो तो इसका मतलब साफ़ होता है कि वह उसे चोदना चाहता है। दूसरी बात जब आदमी किसी लड़की के होंठ चूसता है तो वो मन में सोच रहा है कि ये उसकी चूत वाले होंठ ही हैं। और इसी तरह जब कोई लड़की किसी आदमी की नाक चूस रही होती है तो अनजाने में उसका लण्ड ही चूस रही है। थोड़ा सा सब्र रखिए अभी पता चल जाएगा।

“निशा एक बताना तो मैं भूल ही गया” मैंने कहा।

“ऊँहह… अब कुछ मत बोलो बस मुझे प्यार करने दो अपने मिट्ठू को।” उसने फिर मेरे होठों को चूम लिया।

“आदमी के लण्ड की लम्बाई बिना नापे पता करनी हो तो कैसे पता करेंगे?”

“कैसे… क्या मतलब?”

“आदमी की नाक की लम्बाई से ३ गुणा बड़ा उसका लण्ड होता है।” मैंने कहा तो हैरानी से वो मेरी नाक देखने लगी “ओह… नो…”

“नाप कर देख लो” वो मेरी नाक चूमना छोड़ कर एक ओर हो गई और मैं बैठ गया। अब उसने मेरे पप्पू की ओर देखा और हाथ में लेकर उसे मसलने लगी। पप्पू तो बस इसी इन्तज़ार में था। उसने फिर ठुमके लगाने चालू कर दिए। दोस्तों अब लण्ड चुसवाने की बारी थी। मैं जानता हूँ पहली बार लण्ड चूसने में हर लड़की नखरे करती है और उसे गन्द काम समझती है। पर मैं भी प्रेम-गुरु ऐसे ही नहीं बना हूँ। मैंने भी पूरा कार्यक्रम की थी इस उत्पाद की लाँचिंग की।

मैंने उससे कहा “मेरी मैना मैं एक बार तुम्हारी मुनिया को चूसना चाहता हूँ।” भला उसे क्या ऐतराज़ हो सकता था। मैं लेट गया और उसके पैर अपने सिर के दोनों ओर कर दिए जिससे उसकी चूत मेरे मुँह के ठीक ऊपर आ गई। हम दोनों अब 69 की मुद्रा में थे। निशा मेरे ऊपर जो थी। मेरा पप्पू ठीक उसके मुँह के सामने था। मैंने झट से चूत की पंखुड़ियों को चौड़ा किया और गप्प से अपनी जीभ उस गुलाबी खाई में उतार दी। उत्तेजना में उसका शरीर काँपने लगा। मैंने उसकी चूत को ज़ोर-ज़ोर से चूसना चालू कर दिया, अब उसके पास मेरे लंड को चूसने के अलावा क्या रास्ता बचा था। उसने पहले मेरे पप्पू के सुपाड़े को चूमा और उसपर आए वीर्य की कुछ बूँदों चखा और फिर गप्प से उसे मुँह में भर कर चूसने लगी। आह… उसका नरम गीला और थोड़ा कुनकुना अहसास मुझे मस्त करक गया। मेरा पप्पू तो निहाल ही हो गया। मैंने अपनी जीभ उसकी गाँड के भूरे छेद पर भी फिरानी चालू कर दी। मुझे अपना पाँचवा उत्पाद भी तो लाँच करना था। अरे भाई गाँड भी मारनी थी ना। उसके लिए निशा को तैयार करना सबसे मुश्किल काम था। मैंने ४-५ बार अपनी जीभ उसकी गाँड पर फिराई तो वो एक किलकारी मारते हुए फिर झड़ गई। मैं अपना वीर्य उसके मुँह में अभी नहीं छोड़ना चाहता था। मुझे तो पहले उसकी गाँड का उदघाटन करना था। और फिर जैसा मैंने सोचा था वही हुआ।

निशा ज़ोर-ज़ोर की साँसे लेती हुई एक ओर लुढ़क गई। उसके उरोज साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे। आँखें बन्द थीं। अचानक वह उठी और मेरे ऊपर आ कर मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैंने अपनी ऊँगली उसकी गाँड की छेद पर फिरानी शुरु कर दी। उफ्फ… क्या खुरदरा एहसास था। वो तो बस आँखें बन्द किए मुझसे चिपकी पड़ी थी। मैंने हौले से उसके होंठों पर एक चुम्मा लिया और कहा “मेरी रात कली, मेरी मैना क्या हुआ?”

“बस अब कुछ मत बोलो, एक बार मुझे फिर से…” और उसने मुझे चूम लिया।

“निशा एक और मज़ा लोगी?”

“क्या मतलब?” उसने चौंकते हुए मेरी तरफ़ देखा।

“मैं और मधु स्वर्ग के दूसरे द्वार का भी ख़ूब मज़ा लेते हैं।”

“क्या मतलब… वो… वो.. ओह… नो… नहीं…” वो तो ऐसे बिदकी जैसे किसी काली छतरी को देख कर भैंस बिदकती है “ओह जीजू तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना… क्या बात कर रहे हो?”

“अरे मेरी मैंना रानी औरत के तीन छेद होते हैं और तीनों में ही चुदाई की जाती है। चुदाई का असली आनन्द तो इस द्वार में ही है। एक बार मज़ा लेकर ते देखो, फिर तो रोज़ यही कहोगी कि अपना पेन ड्राईव अगले छेद में नहीं, मेरे पिछले छेद में ही डालो।”

“नहीं आप झूठ बोल रहे हैं। भला कोई इसमें करता है?”

“अरे इसमें झूठ वाली क्या बात है। मधु तो इसकी दीवानी है। हल तो हर शनिवार को इसका मज़ा लेते हैं।”

“ओह… अब मैं समझी मधु दीदी रविवार को थोड़ी टाँगें चौड़ी करके… ओह… इस्स्स…” जिस तरह निशा शरमाई थी मैं तो मर ही मिटा उसकी इस अदा पर। चिड़िया फँस जाएगी।

“देखो अब तक मैंने जितनी भी बातें तुम्हें बताई हैं क्यो कोई भी बात ग़लत निकली?”

“पर वो… वो.. इतना मोटा मेरे छोटे से छेद में… ओह नो… मुझे डर लगता है।” वो कुछ सोच नहीं पा रही थी।

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“अच्छा चलो एक टोटका तुम्हें दिखाता हूँ। अगर तुम्हें सही लगे तो ठीक, नहीं तो कोई बात नहीं, गाँड मारना रद्द” मैंने कहा

“वो क्या है?”

दोस्तों अब तो भरतपुर लुटने को तैयार होने ही वाला है। बस २ मिनट की ओर देरी है। मैंने उससे कहा कि तुम उकड़ूँ बैठ जाओ। वह बैठ गई। अब मैंने तकिये के नीचे से बोरोलीन की ट्यूब निकाली ओर उसकी उँगली पर एक मटर के दाने जितनी क्रीम लगा दी। फिर उससे कहा कि तुम इसी अपनी मुनिया की पड़ोसन (गाँड पर यार) लगा लो। उसने ऐसा ही किया। अब मैंने उससे कहा कि खड़ी हो जाओ। वह खड़ी हो गई। फिर मैंने उसे बैठ जाने को कहा और एक छोटा सा शीशा जो मैंने उसके लैपटॉप के बैग से निकाला था उसकी गाँड की छेद पर रख दिया और कहा कि इस शीशे में अपनी रानी की शक्ल तो देखो जितनी दूर तक क्रीम फैल गई है, अगर लंड की मोटाई उस घेरे जितनी या कम है तो गाँड रानी को कोई परेशानी नहीं होगी। क्रीम का घेरा आयोडेक्स के शीशी के ढक्कन जितना था। मेरा लंड भी कमोबेश उतना ही मोटा तो है।

उसे तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। “पर… वो… वो… नहीं मुझे बहुत डर लग रहा है। सुना है इसमें करने पर बहुत दर्द होता है।”

“अच्छा चलो तुम्हें दर्द होगा तो नहीं करेंगे। एक बार प्रयास करने में क्या हर्ज़ है?”

“पर वो… वो ज़्यादा दर्द तो नहीं होगा ना कहीं…?” वो कुछ हिचकिचा रही थी। पर मेरा फ्लो-चार्ट और कार्यक्रम बिल्कुल पक्का था। अब बचना कहाँ संभव था।

मैंने उसे करवट लेकर सो जाने को कहा। वो बाईं करवट के बल लेट गई औऱ अपनी दाईं टाँग को सिकोड़ कर अपने सीने की ओर कर लिया। शायद आप सोच रहे होंगे ‘गाँड मारने का ये कौन सा आसन हुआ। गाँड तो कुत्ते अथवा बिल्ली की मुद्रा में ही अच्छी तरह मारी जा सकती है?’

आप ग़लत सोच रहे हैं। लगता है आपने गाँड ना तो मरवाई है और ना ही मारी है। पहली गाँड चुदाई बड़ी ही सावधानी से की जाती है। पहली गाँड चुदाई में लड़की को ज़्यादा दर्द नहीं होना चाहिए नहीं तो बाद में लड़की कभी गाँड नहीं मरवाएगी। अब मैं घुटने मोड़कर उसकी बाईं जाँघ पर बैठ गया। इस तरह से जब मैं उसकी गाँड में लंड डालूँगा तो वह आगे की ओर नहीं खिसक पाएगी। कुतिया या घोड़ी शैली में यही तो मुश्किल होती है, जब भी आप धक्का लगाएँगे तो लड़की आगे की ओर हो जाएगी और लंड उसकी गाँड से फिसल जाएगा। ५-७ धक्कों के बाद आप बाहर ही खल्लास हो जाएँगे।
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07-04-2017, 12:37 PM,
#54
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
अब मैंने बोरोलीन की ट्यूब निकाली और टोपी खोल कर उसका मुँह उसकी गाँड की सुनहरी छेद पर लगा कर थोड़ा सा अन्दर किया। पहले से थोड़ी बोरोलीन लगी होने से ट्यूब की नॉब अन्दर चली गई। अब मैंने उस ट्यूब को ज़ोर से भींच दिया। “उईईईई… जीजूऊऊऊ गुदगुदी हो रही है” निशा थोड़ा सा चिहुँकी। वो आगे को सरक ही नहीं सकती थी। मैंने आधी से ज़्यादा ट्यूब उसकी गाँड में खाली कर दी। अब धीरे-धीरे मैंने उसकी गाँड के छेद पर मालिश करनी शुरु कर दी। बोरोलीन अन्दर पिघलने लगी थी। और मेरी उँगली उसकी गाँड की कसी हुई छेद के बावज़ूद भी आराम से अन्दर जाने लगी थी, प्यार से धीरे-धीरे। मुझे इस काम में कोई जल्दी नहीं करनी थी। मैं तो गाँड मारने का पक्का खिलाड़ी हूँ। निशा आआआहहह… उउउऊऊऊहहहह करने लगी। कोई ४-५ मिनट की घिसाई और उँगलीबाज़ी से उसकी गाँड तैयार हो गई थी। “ओह… जीजू अब डाल दो”

शाबास मेरी मैंना यही तो मैं चाहता था। अब मैंने वैसलीन की डिब्बी उठाई और लगभग आधी शीशी क्रीम अपने पप्पू पर लगा दी। आपको तो पता है मेरा सुपाड़ा आगे से थोड़ा पतला है। गाँड मारने के लिए अति उत्तम। मैंने सुपाड़े को उसकी गाँड पर लगा दिया। आह… क्या मस्त छेद था। दो गोल पहाड़ियों के बीच एक छोटी सी गुफ़ा जिसका दरवाज़ा कभी बन्द कभी खुल रहा था। निशा आआहहहह… उँहहहह… ओह… उउउऊऊईई.. किए जा रही थी।

दोस्तों और सहेलियों अब मेरे पाँचवें और अन्तिम उत्पाद की लाँचिंग थी। अगर आपको थोड़ा बहुत गाँडबाज़ी का शौक और अनुभव हो तो आप ज़रूर जानते होंगे कि सबसे कठिन काम गाँड के छल्ले को पार करना होता है। एक बार अगर सुपाड़ा उस छल्ले को पार कर गया तो समझो क़िला फ़तह हो गया। अन्दर तो बस गुब्बारे की तरह खाली कुँआ होता है। आप को बता दूँ लण्ड चाहे जितना भी बड़ा क्यों ना हो, गाँड में जड़ तक चला जाएगा बस छेद का घेरा एक बार पार होना चाहिए।

आप सोच रहें होंगे यार एक धक्का लगाओ और ठोंक दो कीला, क्यों तड़पा रहे हो अपने लंड और बेचारी गाँड को। कहीं आप का भी खड़ा तो नहीं हो गया या फिर मेरी प्यारी पाठिकाओं ने अपनी मुनिया में उँगली करनी तो शुरु नहीं कर दी? मुझे पक्का यकीन है आप की पैन्टी ज़रूर गीली हो गई है। चाहो तो देख लो।

मैंने एक उँगली उसकी चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करनी शुरु कर दी औऱ एक हाथ से उसकी घुण्डियाँ मसलनी शुरु कर दी। उसका एक बार और झड़ना ज़रूरी था ताकि गाँड के छेद को पार करवाने में उसे कम से कम दर्द हो। ३-४ मिनट की उँगलीबाज़ी और चुचियों को मसलने से वह उत्तेजित हो गई। उसका शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा और वो ऊईईई.. माँ.आआ…. ओओओहहह ययाआआआआ… करने लगी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने अपनी उँगली निकाली और अपने मुँह में डाल कर एक चटकारा लिया। फिर मैंने दुबारा उँगली उसकी चूत में डाली और उसे भी चूत-रस चटाया। निशा तो मस्त ही हो गई। उसकी गाँड का छेद जल्दी-जल्दी खुलने और बन्द होने लगा था। यही समय था स्वर्ग के दूसरे द्वार को पार करने का। जैसी उसकी गाँड खुलती मेरा सुपाड़ा थोड़ा सा अन्दर सरक जाता। अब तक उसकी गाँड का छेद ५ रुपए के सिक्के जितना खुल चुका था और लगभग पौना इंच सुपाड़ा अन्दर जा चुका था, सफलतापूर्वक बिना किसी दर्द के। मैंने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर का (धक्का नहीं यार) दबाव डालना चालू किया। (मुर्गी को हलाल किया जाता है झटका नहीं) गाँड अन्दर से चिकनी थी और निशा मस्त थी। गच्च से ३ इंच लण्ड घुस गया और इससे पहले कि निशा की चीख हवा में गूँजे मैंने उसका मुँह अपने दाएँ हाथ से ढँक दिया। वो थोड़ा सा कसमसाई और गूँ-गूँ करने लगी। मैं शान्त रहा। मेरा ३ इंच लण्ड अन्दर जा चुका था। अब फिसल कर बाहर नहीं आ सकता था। मुझे डर था कि चूत की तरह गाँड से भी ख़ून ना निकल जाए। लेकिन बोरोलीन और वैसलीन की चिकनाई की वज़ह से उसकी गाँड फटने से बच गई थी। इसका एक कारण और भी था मैंने लण्ड अन्दर डालते समय केवल दबाव ही दिया था धक्का नहीं मारा था।

२-३ मिनट आह… ऊहह… करने के बाद वह शान्त हो गई। मैंने अपना हाथ हटा लिया तो वह बोली “मुझे तो मार ही डाला”

“अरे मेरी मैना अब देखना तुम अपने मुँह से कहोगी और ज़ोर से ठोंको और ज़ोर से”

“हटो गन्दे बच्चे !”

अब धीरे-धीरे धक्के लगाने का समय आ गया था। मैंने अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरु कर दिया। निशा ने अपने गाँड का छेद सिकोड़ने की कोशिश की तो मैंने उसे समझाया कि वो कतई ऐसा न करे। मैंने उसे बताया कि अगर उसने गाँड को सिकोड़ तो अन्दर लंड और सुपाड़ा दोनों फूल जाएँगे और उसे अधिक तक़लीफ होगी। दोस्तों आपको पता होगा कि गाँड मरवाते समय अगर लड़की अपनी गाँड को अन्दर की ओर सिकोड़ ले जैसे मूत रोकने के लिए किया जाता है तो लण्ड और सुपाड़ा अन्दर फूल जाते हैं और फिर मोटे लण्ड से गाँड फटने को कोई नहीं रोक पाएगा।

मैंने अपना लंड जड़ तक अन्दर कर दिया. निशा तो मस्त हो गई। वो तो बस उईई… माँ…. ही करती जा रही थी, मीठी सी सीत्कार। मैं अपना लण्ड अन्दर-बाहर ही करता जा रहा था। वैसे पूछो तो गाँड का असली मज़ा तो बस ३-४ इंच तक ही होता है, उसके आगे तो पता ही नहीं चलता, आगे तो कुँआ ही होता है। निशा अब पेट के बल हो गई थी, उसने अपने दोनों पैर चौड़े कर दिए और नितम्ब ऊपर उठा दिए। मेरा लंड उसकी गाँड में कस गया पर चिकनाई के कारण अन्दर-बाहर होने में कोई दिक्क़त नहीं थी। हर धक्के के साथ निशा की सीत्कार निकल जाती और वह अपने नितम्ब और ऊपर कर लेती. साली पहली गाँड चुदाई में ही इतनी मस्त हो गई, मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी ज़बर्दस्त गाँड होगी। ऐसा नहीं था कि मैं बस धक्के ही लगा रहा था, मैं तो उसकी चूत में भी उँगली कर रहा था, कभी उसकी पीठ चूमता, कभी उसके कान काटता। वो तकिए से सिर लगाए आराम से अपना नितम्ब ऊपर-नीचे करती हुई ओओईईई… आआआहहह… ययाआआआ… कर रही थी।

मैंने १५-२० औरतों की गाँड तो ज़रूर मारी होगी, पर निशा जैसी गाँड तो किसी की भी नहीं थी। मधु की गाँड जब भी मैंने पहली बार मारी थी तो वो तो बेहोश सी हो गई थी पर मेरी ये मैना तो सबसे मस्त निकली। मैं मिक्की की गाँड नहीं मार पाया था पर मेरा अनुमान है कि निशा की गाँड मिक्की से भी हालात में कमतर नहीं है। कोई २०-२५ की गाँड चुदाई के बाद मुझे लगा कि अब मंज़िल नज़दीक आने वाली है तो मैंने निशा से कहा “मेरी मैना, तोता अब उड़ने वाला है”

निशा हँसने लगी “अभी नहीं, एक बार मुझे कुतिया बनाकर भी करो।”

और फिर वो अपने घुटनों के बल हो गई। मैं समझ गया साली गोरी फिरंगन और ब्लैक-फॉक्स वाली ब्लू-फिल्म की तरह चुदवाना चाहती है। मैंने उसकी कमर पकड़ी और लंड अन्दर डाल कर धक्के लगाने शुरु कर दिए। उसकी गाँड का छल्ला ऐसे लग रहा था जैसे किसी बच्ची के हाथ में पहनने वाली लाल रंग की चूड़ी हो या एक पतली सी गोल लाल रंग की ट्यूब-लाईट हो जो जल और बुझ रही हो। उसकी गाँड का छल्ला ऐसे ही अन्दर-बाहर हो रहा था। उसने अपना सिर तकिए से लगा लिया और मेरे आँडों को ज़ोर से अपनी मुट्ठी में लेकर दबाने लगी। मेरे ८-१० धक्कों और चूत में उँगलीबाज़ी करने के कारण निशा की चूत ने पानी छोड़ दिया और उसने एक मीठी सी सीत्कार लेकर अपनी गाँड सिकोड़ी। इसके साथ ही मेरे लंड ने भी ७-८ पिचकारियाँ उसकी गाँड में छोड़ दीं। उसकी गाँड मेरे गरम और गाढ़े वीर्य से लबालब भर गई। जैसे-जैसे मेरे धक्कों की रफ़्तार कम होती गई वो नीचे होती गई और फिर मैं उसके ऊपर लेटता चला गया। मैंने उसे बाँहों में भर रखा था। उसके दोनों उरोज मेरे हाथों में थे।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#55
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
कोई १० मिनट तक आँखें बन्द किए हम लोग ऐसे ही पड़े रहे। फिर निशा उठ खड़ी हुई। वो लंगड़ाती सी बाथरूम की ओर जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर फिर अपनी गोद में बैठा लिया। “ओह सारा पानी मेरी जाँघों पर फैलता जा रहा है, मुझे गुदगुदी हो रही है.. ओह… छोड़ो साफ़ तो करने दो।”

पर मैंने उसे नहीं जाने दिया। मैंने तकिए के नीचे से नैपकीन निकाली और निशा की चूती (रिसती) हुई गाँड को साफ कर दिया। उसकी गाँड का छेद अब बिल्कुल लाल होकर ५ रुपए के सिक्के जितना छोटा हो गया था। छेद की शक्ल अंग्रेजी के “O” जैसी हो गई थी। मैंने फिर उसका सिर पकड़ कर उसके होंठों का एक चुम्बन ले लिया। “थैंक यू मेरी मैना”

“ओह… थैंक यू मेरे मिट्ठू” उसने भी मुझे चूम लिया। वो बिस्तर पर उँकड़ू बैठी अपनी चूत और गाँड के छेदों को देख रही थी। उसने कहा, “देखो मेरी मुनिया और उसकी सौतन का क्या हाल कर दिया है तुमने”

“उसकी चूत सूज कर लाल हो गई थी और गाँड का रंग भी भूरे से लाल हो गया ता। उसकी चूत तो ऐसे लग रही थी जैसे किसी ने छोटी सी परवल को बीच में से चीर कर चौड़ा कर दिया हो। उसकी दरार तो ऐसे लग रही थी जैसे किसी नव-विवाहिता ने अपनी मोटी सी माँग भर रखी हो बिल्कुल लाल-सुर्ख। फिर मैंने कहा “अरे इसकी सुन्दरता तो और भी बढ़ गई है, वाह कितनी प्यारी लग रही है। केशर-क्यारी के बीच, गुलाब का खिला हुआ फूल हो जैसे। प्लीज़ एक चुम्मा लेने दो ना।” मैं उसकी ओर बढ़ा तो वो पीछे सरकती हुई बोली “हटो मतलबी कहीं के, औरतों की भावनाओं का तुम्हें क्या पता!”

“क्यों क्या हुआ मेरी मैना?”

“आपने अपनी मनमर्ज़ी आख़िर कर ही ली ना? अब झूठा प्यार दिखा रहे हो।”

“वो कैसे?”

“ऐसे तो बड़े मिट्ठू बने फिरते थे मधु दीदी के?”

“ओह.. वो.. .” मेरी हँसी छूट गई। ‘मेरी रात-कली ! तुम हम भँवरों की क़ैफियत (आदत) क्या जानो, कभी एक फूल पर चिपक कर नहीं बैठते।’ पर मैंने कहा “वो तो मैं अब भी उसका मिट्ठू हूँ।”

“मैं भी यही देखना चाहती थी उस एकता कपूर को यही तो दिखाना था कि ये मिट्ठू मियाँ उन पर कितना लट्टू है। मेरे मन में भी उसे नीचा दिखाने की कहीं ना कहीं इच्छा थी। शुरु में तो मैं तुम्हें निरा लल्लू ही समझ बैठी थी पर तुम तो बड़े कलाकार निकले !” उसने कहा।

“ओह छोड़ो इन नीचे-ऊपर की बातों को। देखो मेरा पप्पू तुम्हारे लिए कैसे तड़प रहा है” मेरे शेर ने फिर से ठुमके लगाने शुरु कर दिए थे। मैं एक बार उसकी गाँड और मारना चाहता था। मैंने जब आगे बढ़ कर उसे बाँहों में लेना चाहा तो वह बोली, “ठहरो !”

“क्या हुआ?”

“नहीं इस बार मैं ऊपर आऊँगी…” और इससे पहले कि मैं कुछ समझता उसने मुझे एक धक्का दिया और उछल कर मेरे पेट के ऊपर बैठ गई। मुझे बाद में समझ आया कि वह बार-बार ऐसा क्यों कर रही है। दरअसल उसने ब्लू-फिल्म में आँटी को उस लड़के के ऊपर आकर चुदते हुए देखा था। साली उसी आसन में मुझसे भी चुदवाना चाहती थी। कोई बात नहीं, चाकू ख़रबूजे पर गिरे या ख़रबूजा चाकू पर पड़े, कटना तो ख़रबूजे को ही है ना। क्या फ़र्क पड़ता है। मेरा पप्पू भला ऐसा मौका क्यों छोड़ता। वो तो फिर तैयार हो चुका था और उसकी गाँड पर ठोकर लगा रहा था। उसे एक हाथ पीछे किया, थोड़ी सी ऊपर उठी और मेरे लंड को अपनी चूत के मुँह पर लगाकर गच्च से नीचे बैठ गई। मेरा लंड एक कही झटके में जड़ तक उसकी चूत में समा गया। उसके मुँह से ज़ोर की सिसकारी निकली “ओओईईईई… माँआआआआआ…” उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैंने उन्हें चूम लिया। अब मैंने अपने एक हाथ से उसकी कमर को पकड़ा और दूसरे हाथ की उँगली से उसकी गाँड का छेद टटोला। एक ही चुदाई में वो ढीला हो गया था। मैंने गच्च से अपनी तर्जनी जड़ तक उसकी गाँड में ठोंक दी। निशा ज़ोर से चीखी…”

“ऊऊईईईईई माँआआआआ.. क्या करते हो… ओह जीजू, तुम भी एक नम्बर… ओह नो.. तुम पक्के दो नम्बर के बदमाश हो” और उसने मेरे होंठ इतने ज़ोर से काटे कि उनसे खून ही निकल आया। पर मुझे उसका कोई दर्द या ग़म नहीं था। बाहर पानी बरसना बन्द हो गया था पर हमारे अन्दर उबलता पानी तो बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

दोस्तों अब मुठ मारना बन्द करो, अरे भाई आज रात के लिए कुछ तो बचा कर रखो, क्या आप को रोज़ गाँड नहीं मारनी? और मेरी प्यार पाठिकाओं, आप भी अपनी गीली पैन्टी में उँगली करना छोड़ो और आज रात की तैयारी करो।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#56
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
तीन चुम्बन



लेखक : प्रेम गुरू

प्रिय पाठको,

आपने मेरी पिछली कहानी ‘दो नम्बर का बदमाश’ पढ़ी। मुझे बहुत खुशी है कि आप सभी को मेरी कहानी अत्यधिक पसन्द आई, अपनी पिछली कहानी में मैने ‘मिक्की’ का जिक्र किया था। लगभग हर प्रशंसा-पत्र में पाठकों ने पूछा है कि यह मिक्की कौन है, इसके बारे में तो कभी पहले किसी कहानी में नहीं लिखा और न ही मिक्की की ही कोई कहानी लिखी है।

तो मेरे अज़ीज दोस्तो, आपकी नज़र है मेरी प्रियतमा मिक्की की कहानी ! यह कहानी नहीं मेरी आत्मा की आवाज़ है।

प्रेम आश्रम वाले गुरूजी कहते हैं कि लड़कियों की पिक्की, बाल आने के बाद बुर या भोस, चुदने के बाद चूत और फटने (बच्चा होने) के बाद फुद्दी बन जाती है।

अब मैं यह सोच रहा था कि मिक्की (मोनिका) की अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। इतना तो पक्का है कि भले ही उसकी पिक्की पूरी तरह से बुर या भोस न बनी हो पर वो बनने के लिए जरूर आतुर होगी। पता नहीं इन कमसिन लड़कियों की पिक्की को बुर बनने की इतनी जल्दी क्यों लगी रहती है। और जब बुर बन जाती है तो चूत बनने के लिए बेताब रहती है।

आप सोच रहे होंगे कि ये मिक्की कौन है?

मिक्की मेरे साले की लड़की है। घर में सब उसे मिक्की और सभी सहेलियां मोना और स्कूल में वो मोनिका माथुर के नाम से जानी जाती है। उम्र १८ के आसपास, +२ में पढ़ती है। गदराया बदन शोख, चंचल, चुलबुली, नटखट, नादान, कमसिन, क़यामत। कन्धों तक कटे बाल, सुतवां नाक, पतले पतले गुलाबी होंठ जैसे शहद से भरी दो पंखुडियां, सुराहीदार गर्दन, बिल्लोरी आँखें, छोटे छोटे नींबू जो अब अमरुद बन गए हैं पतली कमर, चिकनी चिकनी बाहें और केले के पेड़ की तरह चिकनी जांघें। सबसे कमाल की चीज तो उसके छोटे छोटे खरबूजे जैसे नितम्ब हैं।

हे भगवान् … अगर कोई खुदकुशी करने जा रहा हो और उसके नितम्ब देख ले तो एक बार अपना इरादा ही बदलने पर मजबूर हो जाए। उसकी पिक्की या भोस का तो आप और मैं अभी केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। कुल मिला कर वो एक क़यामत है। ऐसी कन्याएं किसी भी अच्छे भले आदमी का घर बर्बाद कर सकती है। पर मुझे क्या पता था कि भगवान् ने इसे मेरे लिए ही बनाया है।

पहले मैं अपने बारे में थोड़ा बता दूं। मेरा नाम प्रेम गुरु है। मैं एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता हूँ। उम्र ३२ साल, कद ५’ ८” रंग गेहुँवा। शक्ल-सूरत ठीक ठाक। वैसे आदमियों की शक्ल-ओ-सूरत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, ख़ास बात उसका स्टेटस होता है और दूसरा उसकी सेक्स पॉवर। भगवान् ने मुझे इन दोनों चीजों में मालामाल रखा है। मेरे लिंग का साइज़ ७” है और मोटाई २ इंच। मेरा सुपाड़ा आगे से कुछ पतला है। आप सोच रहे होंगे फिर पतले सुपाड़े से चुदाई का मज़ा ज्यादा नहीं आता होगा तो आप गलत सोच रहे हैं। यह तो भगवान् का आशीर्वाद और नियामत समझिये। गांड मरवाने वाली औरतें ऐसे सुपाड़े को बहुत पसंद करती है। आदमियों को भी अपना लण्ड अन्दर डालने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती।

जिन आदमियों के लिंग पर तिल होता है वो बड़े चुद्दकड़ होते है फिर मेरे तो सुपाड़े पर तिल है आप अंदाजा लगा सकते हैं मैं कितना बड़ा चुद्दकड़ और गांड का दीवाना हूँ। मेरी पत्नी मधुर ३६-२८-३६, उम्र २८ साल बहुत खूबसूरत है। उसे गांड मरवाने के लिए मनाने में मुझे बहुत मिन्नत करनी पड़ती है। लेकिन दोस्तों ये फिर कभी। क्यों कि ये कहानी तो मिक्की के बारे में है।

वैसे तो ये कहानी नहीं बल्कि मेरे अपने जीवन की सच्ची घटना है। दरअसल मैं अपने अनुभव एक डायरी में लिखता था। ये सब उसी में से लिया गया है। हाँ मुख्य पात्रों के नाम और स्थान जरूर बदल दिए हैं। मैं अपनी उसको (?) बदनाम कैसे कर सकता हूँ जो अब इस दुनिया में नहीं है जिसे मैं प्रेम करता हूँ और जन्म जन्मान्तर तक करता रहूँगा। इसे पढ़कर आपको मेरी सच्चाई का अंदाजा हो जायेगा। मेरा दावा है कि मेरी ये आप-बीती आपको गुदगुदाएगी, हँसाएगी, रोमांच से भर देगी और अंत में आपकी आँखे भी जरूर छलछला जायेंगी।

पहला चुम्बन :

मेरी एक फंतासी थी। किसी नाज़ुक कमसिन कली को फूल बनाने की। पिछले ७-८ सालो में मैं लगभग १५-२० लड़कियों और औरतों को चोद चुका हूँ पर अब मैं इन मोटे मोटे नितम्बों और भारी भारी जाँघों वाली औरतों को चोदते चोदते बोर हो गया हूँ। मैंने अपने साथ पढ़ने वाली कई लड़कियों को चोदा है पर वो भी उस समय २०-२१ की तो जरूर रही होंगी। हाँ अपने कामवाली बाई गुलाबो की लड़की अनारकली जरूर १८ के आस पास रही होगी पर वो भी मुझे तब मिली जब उसकी बुर चूत में बदल चुकी थी। सच मानो तो पिछले ३-४ सालों से तो मैं किसी कमसिन लड़की को चोदने के चक्कर में मरा ही जा रहा था।

शायद आपको मेरी ये बातें अजीब सी लगे- नाजुक कलियों के प्रति मेरी दीवानगी। हमारे गुरूजी कहते हैं चुदी चुदाई लड़कियों/औरतों को चोदने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती क्योंकि वे ज्यादा नखरे नहीं करती और चुदवाने में पूरा सहयोग करती है। इन छोटी छोटी नाज़ुक सी लड़कियों को पटाना और चुदाई के लिए तैयार करना सचमुच हिमालय पर्वत पर चढ़ने से भी ज्यादा खतरनाक और मुश्किल काम है।

कहते है भगवान् के घर देर है पर अंधेर नहीं है। मेरा साला किसी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर है। वो अपने काम के चक्कर में हर जगह घूमता रहता है। इस बार वो यहाँ टूर पर आने वाला था। मधु ने उसे अपनी भाभी और मिक्की को भी साथ लाने को मना लिया।

सुबह-सुबह जब मैं उन्हें लेने स्टेशन पर गया तो मिक्की को देख कर मेरा दिल इतना जोर से धड़कने लगा जैसे रेल का इंजन। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर आ जायेगा। मैंने अपने आप पर बड़ी मुश्किल से काबू किया। सामने एक परी जैसी बिल्लौरी आँखों वाली नाज़ुक सी लड़की कन्धों पर बेबी डोल लटकाए मेरे सामने खड़ी थी – नीले रंग का टॉप और काले रंग की जीन पहने, सिर पर सफ़ेद कैप, स्पोर्ट्स शूज, कानों में छोटी छोटी सोने की बालियाँ, आँखों पर रंगीन चश्मा ? ऊउफ्फ्फ़ … मुझे कत्ल करने का पूरा इरादा लिए हुए।

दोनों जाँघों के बीच जीन पैंट के अन्दर फंसी हुई उसकी उभरी हुई बुर किसी फ़रिश्ते का भी ईमान खराब कर दे ! मुझे लगा कि मेरा पप्पू अपनी निद्रा से जाग कर अंगडाई लेने लगा है। मैं भी कितना उल्लू का पट्ठा हूँ मिक्की को पहचान ही नहीं पाया। ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल के किसी फंक्शन में जब मैंने उसे देखा था तो उसकी उम्र कोई १३-१४ साल के लगभग रही होगी। मैं भी कितना गधा था इतनी ख़ूबसूरत बला की ओर मेरा ध्यान पहले नहीं गया। मैं तो उसे एक अंगूठा चूसने वाली, इक्कड़ -दुक्कड़, छुपम-छुपाई खेलने वाली साधारण सी लड़की ही समझ रहा था। कितनी जल्दी ये लड़की जवानी पूरी बोम्ब बन गई है। मैं उसे ऊपर से नीचे तक देखता ही रह गया। उसका बदन कितना निखर सा गया था। मैं अभी सोच ही रहा था कि उसकी पिक्की की साइज़ कितनी बड़ी हो गई होगी और उसकी केशर क्यारी बननी शुरू हुई या नहीं मेरा मतलब है की वो अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। पता नहीं उसने अभी तक अपनी पिक्की या बुर से मूतने का ही काम लिया है या कुछ और भी, अचानक मेरे साले की आवाज मेरे कानों में पड़ी।

अरे प्रेम ! कहाँ खो गए भई ?

मैं अपने ख़्वाबों से जैसे जागा। आइये-आइये भाई साहब ! रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई? मैंने उनका अभिवादन करते हुए पूछा।

उन्होंने क्या जवाब दिया, मुझे कहाँ ध्यान था, मेरी आँखें तो बस मिक्की पर से हटाने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे खूबसूरत मौके का फायदा कौन कम्बख्त नहीं उठाएगा। आप समझ ही गए होंगे मैंने आगे बढ़ते हुए मिक्की को अपनी बाहों में भरते हुए कहा- अरे मिक्की माउस ! तू तो बहुत बड़ी हो गई है।

अपने सीने से लगाए मैंने उसकी गालों और सिर के बालों पर हाथ फिराया। उसके छोटे छोटे अमरुद मेरे सीने से दब रहे थे। उसके नाज़ुक बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे नथुनों में समां गई। मुझे लगा कि मेरे ख़्वाबों की मंजिल मेरे सामने खड़ी है। मेरा दिल तो कर रहा था कि उसका प्यार से एक चुम्बन ले लूँ पर स्टेशन पर उसके माता-पिता के सामने ऐसा करना कहाँ संभव था। न चाहते हुए भी मुझे उस से अलग होना पड़ा लेकिन अलग होते होते मैंने उसके गालों पर एक प्यारी सी थप्पी तो लगा ही दी। फिर मैंने उसका हाथ पकड़ा और हम सभी स्टेशन से बाहर अपनी कार की ओर आ गए।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#57
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
घर पहुँचने पर मधु ने अपने भैय्या, भाभी और मिक्की का गरमजोशी से स्वागत किया और फिर मिक्की की और बढ़ते हुए कहा,“अरे मोना तू ?” मधु मिक्की को मोना ही बुलाती है, वो उसे अपनी बाहों में लेते हुए बोली।

“नमस्ते बुआजी !” शायद कहीं सितार बजी हो, जलतरंग छिड़ी हो या किसी अमराई में कोयल कूकी हो, इतनी मीठी और सुरीली आवाज मिक्की के सिवा किसकी हो सकती थी।

“अरे ये तो मुझसे भी एक इंच बड़ी हो गई है।” मधु ने कहा।

“हाँ लम्बी तो बहुत हो गई है पर पढ़ाई-लिखाई में अभी भी मन नहीं लगाती !” सुधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए हुए कहा।

“अरे अभी बच्ची है, अपने आप पढ़ लेगी, तुम क्यों चिंता करती हो !” मधु बोली।

मैं सोच रहा था- क्या वाकई ये अभी बच्ची (बची) ही है। उसके स्तन, नितम्ब तो कहर बरपाने वाले बन चुके हैं।

“फूफाजी ! बाथरूम किधर है?” मिक्की ने पूछा।

“आ…न ! हाँ, आओ इधर है !” मैं उसका हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम से लगे बाथरूम की ओर ले गया। मैं जानबूझकर उसे गेस्ट रूम के साथ भी एक बाथरूम में नहीं ले गया था।

“मैं साथ आऊँ क्या अन्दर ?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

“नहीं ! क्यों ?”

“वो फिर कोई छिपकली आ गई तो ?”

“ओह ! हटो आप भी…” वो शर्माते हुए बाथरूम में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया। और मैं बाहर खड़ा उसके सू-सू की आवाज का इन्तजार करने लगा।

बाहर खड़ा मैं अपने सपनो में खोया हुआ था। आज से कोई ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल किसी फंक्शन में गया था तब की एक घटना मेरी आँखों में फिर से घूम गई।

मेरे ससुराल में घर दो-मंजिला है । ऊपर के भाग में एक कमरा और बाथरूम बना है। मैं शाम को छत के ऊपर टहल रहा था। इतने में मिक्की के चीखने की आवाज सुनाई दी और वो लगभग दौड़ते हुए बाथरूम से बाहर आई, वो थर थर कांप रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझता उसे ठोकर लगी और वो नीचे गिर पड़ी, मैंने भाग कर उसे उठाया। उसके पैर में चोट लग गई थी, उसकी आँखों में आंसू आ गए।

“अरे क्या हुआ ?”

“वो ! वो !” मिक्की तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।

“हाँ ! हाँ ! क्या हुआ ?”

“वो ! बाथरूम में छिपकली है !”

मेरी हंसी निकल गई। मिक्की को छिपकलियों से बड़ा डर लगता है। जब वो उठी तो उसके मुंह से कराह सी निकली,“उईई … माँ !”

“क्या हुआ ?”

“मेरे पैर में चोट लग गई है !” उसने अपना घुटना मसलते हुए कहा।

मैंने उसके घुटने पर हाथ फिराया। उसने मिड्डी और टॉप पहना था। मिड्डी में उसकी पुष्ट जांघे तो कमाल की थी। मैं उसकी बुर तो नहीं देख सकता था पर उसके गोरे गोरे घुटनों और जाँघों को देख कर अंदाजा तो लगा ही सकता था कि वो तो पूरी कमायत ही होगी।

मैंने उसका घुटना सहलाया। वो थोड़ा सा छिल गया था, थोड़ा सा खून भी चमकने लगा था।

मैंने कहा, “अब तुम्हें डॉक्टर इंजेक्शन लगायेगा !”

तो वो रोने लगी और बोली,“नहीं मैं इंजेक्शन नहीं लगवाउंगी ! मुझे इंजेक्शन से बड़ा डर लगता है !”

“भई गाँव में तो बस थूक लगा देते हैं पर यहाँ तो ? “ मैंने आगे की बात जानबूझ कर नहीं कही।

“हाँ ये ठीक है ?” मिक्की ने हामी भरी।

मैंने तुंरत उसके घुटने पर अपनी जीभ लगा दी और थोड़ा सा थूक उस पर लगा कर एक चुम्मा ले लिया। मिक्की खिलखिला कर हंस पड़ी।

“ओह ।। फूफाजी … आप भी …?”

“क्यों क्या हुआ ?”

“कोई घुटनों पर भी पप्पी लेता है ?”

उसने मेरी ओर आश्चर्य से देखा तो मैंने कहा, “अच्छा तो कौन सी जगह पप्पी लेते है?”

‘पप्पी तो गालों पर ली जाती है!” वो मासूमियत से बोली।

“अच्छा ! तो आओ फिर गालों पर भी ले लेते हैं !”

मैं आगे बढ़ा और उसके नरम मुलायम गुलाबी होंटों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने धीरे धीरे उसके होंठो को चूमा और फिर अपनी जीभ उन पर फिराने लगा जैसे सावन का प्यासा बारिश की हर बूँद को पी जाना चाहता है, मैं उसके होंठों को चूसने लगा। वह पूरा साथ दे रही थी उसके लिए तो मानो ये एक खेल ही था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डालने की कोशिश की तो वो हँसने लगी। मेरा दिल धड़क रहा था। मेरी भावनाओं का उसे इतनी छोटी उम्र में क्या भान होगा वो तो इसे केवल अपने अंकल का प्यार ही समझ रही थी पर मेरे लिए तो यह अमूल्य निधि की तरह था। हमारा यह चुम्बन कोई तीन चार मिनट तो जरूर चला होगा। फिर हम अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए अलग हो गए।

मेरे पास उसे गोद में उठाने का सुनहरा अवसर था। मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसे भला क्या ऐतराज़ हो सकता था। उसके पैर में तो चोट लगी थी और वो अपने पैरों से चल कर तो नीचे नहीं जा सकती थी। मैं उसे गोद में उठाये सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और अपनी आँखें बंद करके मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। उसके छोटे-छोटे नींबू मेरे सीने से लगे थे। मैं तो जैसे निहाल ही हो गया। मिक्की को बेड-रूम में छोड़ कर मैं ऊपर आ गया। मेरा पप्पू तो पैन्ट में धमा-चौकड़ी मचा रहा था। अब मेरे पास मुठ मारने के अलावा और क्या रास्ता बचा था। मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया !! और ????

दोस्तों मिक्की और मेरा यह पहला चुम्बन था। आप सोच रहे होंगे इस चुम्बन लेने में क्या मजा आया होगा। क्या नैतिक और सामाजिक रूप से मुझ जैसे पढ़े लिखे और शरीफ समझे जाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा करना ठीक था ? मैंने क्या गलत किया है मैंने तो एक चतुर भंवरे की तरह एक कच्ची-कलि का रस उसे बिना कोई नुक्सान पहुंचाए पी लिया था। मैंने उसकी कोमल भावनाओं से बिना खिलवाड़ किये एक चुम्बन ही तो लिया है? इसमें इतना हो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। आप शायद अभी मेरी इन बातों को नहीं समझेंगे।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#58
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
दूसरा चुम्बन :

बाथरूम के बाहर खड़ा मैं आज से कोई चार साल पहले घटी उस घटना के बारे में सोच ही रहा था कि मिक्की की आवाज मेरे कानों के बिलकुल पास में गूंजी।

“फूफाजी कहाँ खोये हुए हो ?” मिक्की शरारत भरी मुस्कान के साथ मुझे देख रही थी।

मैंने उसके हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा “क्यों आज पप्पी नहीं देनी ?”

वो शर्म से लाल हो गई और मैं रोमांच से लबालब भर गया। मैं उसके गालों पर एक चिकोटी काटी और उसे अपनी ओर खींचने लगा। वो कुनमुनाती हुई सी बोली, “हटो अब मैं बड़ी हो गई हूँ !”

“अरे ! कहाँ से बड़ी हो गई हो, हम भी तो देखे !” मैंने भी शरारत भरे लहजे में कहा।

“वो ! वो…. ओह ! मुझे नहीं पता !” अब तो उसके चेहरे की लाली देखने लायक थी। शर्म से पुरखुमार आँखें नीची झुकी हुई थी। मुझे पूरा यकीन हो गया वो चार साल पुरानी बात को भूली नहीं है।

“तो किसे पता होगा ?” मैंने पूछा।

“मम्मी ऐसा कहती हैं।”

“अरे मम्मी को क्या पता ! तुम तो मेरे लिए अभी भी वो ही छोटी सी मुनिया हो।” मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठते हुए कहा। उसकी आंखें बंद थी। मैंने बड़े प्यार से एक चुम्बन उसके गालों पर ले ही लिया।

मेरी आँखें उसकी छोटी छोटी गोलाईयों पर थी जो अब नींबू से बढ़कर अमरुद बन रहे थे। आगे से तीखे नुकीले, जैसे पेंसिल की टिप। उसके मोटे मोटे होंठ तो सुर्ख लाल थे। जीन में कसे हुए उसके नितम्ब ऐसे लग रहे थे मानो दो छोटे छोटे खरबूजे हो उनके बीच की गहरी दरार साफ़ नजर आ रही थी।

गुरूजी कहते हैं किसी जवान लड़की या औरत की बुर या चूत का अंदाजा उसके होंठो को देख कर लगाया जा सकता है। इस हिसाब से तो उसके निचले होंठ भी अब क़यामत बन गए होंगे। या अल्लाह…. !! क्या मैं कभी उनको देख पाऊंगा और…. और…. खैर ये तो अन्दर की नहीं बाद की बात है।

मिक्की हाल में चली गई और मैं बाथरूम में उसकी वोही पुरानी खुशबू लेने अन्दर चला गया। मेरे नथुनों में उसके जवान होते जिस्म की खुशबू भर गई। मैं कोई चार-पाँच मिनट तक आँखें बंद किये पुरानी यादों और नए चुम्बन के ख्यालों में खोया रहा। मैं सोच रहा था कि इस क़यामत को कैसे पटाया जाए। मुझे कुछ कुछ अंदाजा तो हो ही गया था कि वो हमारे पहले चुम्बन को नहीं भूली है। मैं भी कितना गाडूँ हूँ इतने दिनों तक मुझे यह ख़याल ही नहीं आया कि मोनिका डार्लिंग अब इतनी बड़ी और रस भरी हो गई है।

१८ साल में ही वो इतनी गदरा जायेगी मुझे अंदाजा नहीं था। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि अगर वो अपने होंठों पर लाल रंग की लिपस्टिक लगा ले तो ऐसा लगेगा जैसे वो किसी का खून पीकर आई हो। उसके सुन्दर अमृत कलश हालांकि अभी छोटे ही है पर बिजलियाँ गिराने के लिए काफी हैं। अब ये नींबू की जगह अमरूदों के आकार के तो हो ही गए हैं। उसकी बिल्लौरी आँखें तो ऐसी हैं जैसे नशे में पुरखुमार मस्त हिरणी हो। आप अंदाजा लगा सकते हैं उसकी पिक्की बुर बनने के लिए तड़प रही होगी। अब तो उसने रस बनाना भी शुरू कर दिया होगा। जिस तरह से मेरे चुम्बन लेने के बाद वो शरमाई थी मुझे पूरा यकीन है की उसका किसी हम उम्र सहेली या मैडम के साथ जरूर कोई चक्कर होगा। और अगर ऐसा है तो मेरे लिए तो ये और भी ख़ुशी की बात होगी कि मेरा प्यार वो जल्दी ही स्वीकार कर लेगी।

आप सोच रहे होंगे क्या बकवास लगा रखी है। क्या सिर फिरी बातें कर रहा हूँ। भला इस उम्र में सेक्स की इतनी समझ आ जाती है। तो दोस्तों सुनो हमारे गुरूजी कहते हैं कि लड़की जब रजस्वला होने लग जाती है और उसकी पिक्की बुर बन जाती है यानि कि उसकी भोस पर बाल आने शुरू हो जाते हैं तो वो सम्भोग के लिए तैयार हो जाती है। ये दोनों चीजें ही उसके सम्भोग के लिए तैयार होने की निशानी हैं।

और मिक्की तो १८ साल की हो गई है। मिक्की के बारे में मुझे बाद में पता चला कि वो अपने मम्मी पापा को कई बार सेक्स करते और चूसा चुसाई करते देख चुकी है और सेक्स के बारे में उसने अपनी सहेलियों से भी बहुत कुछ जानकारियां ले रखी हैं। अकेले में कई बार उसने हस्त मैथुन तो नहीं किया पर अपनी पिक्की से छेड़खानी और छोटी मोटी चुहलबाजी जरूर की है। पर ये सब बातें अभी नहीं।

उस दिन रविवार था मुझे ऑफिस नहीं जाना था। बस मैं तो कोई न कोई बहाना बना कर अपनी मिक्की के पास बना रहना चाहता था। सभी ने चाय पी और नहाने की तैयारी करने लगे। रमेश और सुधा गेस्टरूम से लगे बाथरूम में चले गए। मैंने जानबूझकर मिक्की को अपने बेडरूम से लगे बाथरूम में जाने को कहा। वो अदा से अपने कूल्हे मटकाती हुई बाथरूम चली गई। मैं तो बस उसके ख्यालों में ही खोया रह गया। वो कैसे अपनी पेंटी उतारेगी ! उसकी कच्छी गुलाबी रंग की होगी या फिर काले रंग की? उसने ब्रा पहन रखी होगी या अभी शमीज से ही काम चला रही है !

अरे यार ! छोड़ो इन फजूल बातों को !

मैं तो बस यही सोच रहा था कि उसकी पिक्की (नहीं बुर नहीं भोस नहीं पुस्सी) कैसी होगी। काश मैं कोई भंवरा होता या कम से कम छिपकली ही होता तो बाथरूम में छुप कर बैठ जाता और अपनी इस नन्ही कली को जी भर कर नंगे नहाते और मूतते हुए देख सकता।

बाथरूम के अन्दर से शावर चलने की आवाज और मिक्की के इंग्लिश गाने की मिलीजुली आवाज मुझे मदहोश कर रही थी। मेरा पप्पू तो छलांगें लगाने लगा था। कोई आधे घंटे के बाद मिक्की बाथरूम से निकली। उफ्फ्फ….!!!

भीगे बाल और उनसे टपकती हुई शबनम जैसी पानी की बूँदें, टांगों से चिपकी लाल सलेक्स और ऊपर ढीली सी शर्ट। पता नहीं उसने पेंटी और ब्रा जानबूझ कर नहीं डाली या कोई और बात थी। सलेक्स इतनी टाइट थी कि उसकी योनि का भूगोल और इतिहास साफ़ नजर आ रहा था। चूत का चीरा तीन इंच से कम तो क्या होगा। मेरा पप्पू तो मस्त हिरण की तरह कुलांचें भरने लगा। उसके बदन से आती मस्त खुश्बू से मैं तो मदहोश सा हो गया।

इस से पहले कि कोई मेरी हालत देख कर कोई अंदाजा लगाए, मैं बाथरूम में घुस गया। सबसे पहले मैंने उसकी पेंटी को ढूंढा। एक कोने में किसी मरी हुई चिड़िया की तरह मुझे उसकी नीली पेंटी और ब्रा मिल गए। मैंने उसकी पेंटी को उठाया और गौर से देखा। योनि-छिद्र वाली जगह कुछ गीली थी और उस पर सफ़ेद लार जैसा कुछ लगा हुआ था। शायद ये उसका योनि-रस था। मैंने उसे नाक के पास लगा कर सूंघा। ईईईइस्स्श….!! इतनी मादक, तीखी, खट्टी, कोरी पुस्सी की महक मेरे तन मन को अन्दर तक भिगो गई। मैंने उस पर अपनी जीभ लगा दी।

आईला….! क्या खट्टा, मीठा, नमकीन, कच्चे नारियल जैसा स्वाद था। मैंने उसकी पेंटी और ब्रा को एक बार और सूंघा और फिर उसकी पेंटी को अपने 7″ के पत्थर की तरह अकड़े पप्पू के चारों और लिपटा कर शीशे में देखा। पप्पू तो अड़ियल टट्टू ही बन गया था जैसे मार खाए बिना आज नहीं मानेगा। जी तो कर रहा था कि एक बार मुठ मार लूँ। पर मैं तो अपना प्रेम रस आज रात के लिए बचा कर रखना चाहता था। मैंने उसकी पेंटी को अपनी पेंट की जेब में रख लिया अपने प्यार की निशानी मानकर।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#59
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
जब मैं फ्रेश होकर बाहर आया तो सभी मेरा खाने की मेज़ पर इंतजार कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद रमेश मार्केट और मधु और सुधा हमारे बेडरूम में गप्प लगाने चली गई। मैं और मिक्की अब दोनों अकेले रह गए। जैसे ही मधु और सुधा गई मिक्की झट से उठ कर मेरे पास सोफे पर बैठ गई और मेरी आँखों में झांकते हुए बोली,”जिज्जू ! क्या आप मुझे कंप्यूटर सिखा सकते हो ?”

जिज्जू…….. ? आप चौंक गए ना !

ओह….!

मैं बताना ही भूल गया ! मिक्की जब मुझे फूफाजी बुलाती तो मुझे लगता कि मैं कुछ बूढ़ा हो गया हूँ। मैं अपने आप को बूढा नहीं कहलवाना चाहता था तो हमारे बीच ये तय हुआ घरवालों के सामने वो मुझे फूफाजी कह सकती है पर अकेले में या घर के बाहर जीजाजी कहकर बुलाएगी।

“ओह…. येस….येस….! हाँ हाँ ! क्यों नहीं !” मैं हकलाता हुआ सा बोला क्योंकि मेरी निगाहें तो उसके स्तनों पर थी। पतले शर्ट में उसके बूब्स की छोटी छोटी घुन्डियाँ चने के दाने की तरह साफ़ नजर आ रही थी।

“चलो स्टडी-रूम में चलते हैं !” मैं उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे स्टडी-रूम की ओर ले जाने लगा।

उसकी लम्बाई मेरे कन्धों से थोड़ी ही ऊपर थी। उसके नाजुक बदन की कुंवारी खुशबू और चिकना स्पर्श मुझे मदहोश किये जा रहा था। मैं तो उसके साथ चूमने चिपटने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ ही रहा था। उसे भी कोई परवाह नहीं थी। इस उम्र में इन बातों की परवाह वैसे भी नहीं की जाती। मैं तो बस किसी तरह उसे चोदना चाहता था। पर ये इतना जल्दी कहाँ संभव था। खैर मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी।

मेरे मस्तिष्क में कई योजनाएँ घूम रही थी। एक प्लान तो मैं काफी देर से सोच रहा था। मिक्की को कोल्ड ड्रिंक्स और फ़्रूटी पीने का बहुत शौक है उसमें नींद की गोलियाँ डाल दी जाएँ और रात में ? पर घर में इतने सब मेहमानों के होते यह प्लान थोड़ा मुश्किल था। काश कुछ ऐसा हो कि मैं और सिर्फ मेरी प्यारी मिक्की डार्लिंग अकेले हों, हमें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं हो। काश किसी टापू या महल में हम दोनों अकेले हों और नंगधड़ंग बिना रोकटोक घूमते रहें। काश इस शहर में कोई जलजला या तूफ़ान ही आ जाए सब कुछ उजड़ जाए और बस हम दोनों ही अकेले रह जाए…. ओह्ह्ह्ह्…. पर यह कहाँ संभव है ….!

खैर कोई न कोई रास्ता तो भगवान् जरूर निकालेगा।

मैं मिक्की को अपनी बाहों में लिए स्टडी रूम में आ गया जिसमे मैंने कंप्यूटर, प्रिंटर और अपनी बहुत सी फाइल्स और पुस्तकें रखी हुई हैं। स्टडी-रूम में सामने की दीवार पर एक सीनरी लगी है जिसमें एक तेरह-चौदह साल की बिल्लौरी आँखों वाली लड़की तितली पकड़ रही है, बिलकुल मिक्की जैसी।

मिक्की ने गौर से पेंटिंग को देखा पर कोई कमेन्ट नहीं किया। मैंने उसे कन्धों से पकड़ते हुए अपने साथ वाली कुर्सी पर इस तरीके से बैठाया कि मेरे हाथ उसके उरोजों को छू गए।

वाह ! क्या मस्त चिकना अहसास था !

स्टडी-रूम में आने के बाद मैंने उसे कंप्यूटर के बारे में बताना शुरू किया। वो थोड़ा-बहुत कंप्यूटर के बारे में पहले से जानती थी। सबसे पहले उसे कंप्यूटर चालू करने ओपरेट करने और बंद करने के बारे में बताया। जब स्क्रीन ऑन हुई तो पासवर्ड डालना बताया। मैंने उसे ये पासवर्ड याद रखने के लिए बोला ताकि जब वो इस पर प्रेक्टिस करे तो कोई परेशानी न हो। वो सारी बातें एक कागज़ पर लिखती जा रही थी। फिर मैंने उसे इन्टरनेट और ई-मेल आदि के बारे में भी बताया। फाइल्स खोलना और देखना भी उसे समझाया। हमें कोई एक घण्टा तो इस चक्कर में लग ही गया।

ऐसा नहीं है कि मैं उसे सिर्फ कंप्यूटर ही समझा रहा था। मैंने तो उसके हाथ, गाल, कंधे, होंठ, सिर के बाल और बूब्स को छूने और दबाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। कई बार तो मैंने उसकी जाँघों पर भी हाथ साफ़ किया, वो कुछ नहीं बोली। एक दो बार तो मैंने उसके गालों पर प्यार भरी चपत भी लगा दी। मेरे लतीफों से तो वो हंसते हंसते उछल ही पड़ती थी।

एक बार जब उसने अपना एक हाथ ऊपर किया तो उसकी ढीले शर्ट के अन्दर कांख में उगे छोटे छोटे सुनहरे रेशम से रोएँ नजर आ ही गए। हे भगवान् ! उसकी बुर पर भी ऐसी ही सुनहरी केशर-क्यारी बन गई होगी। उसकी थोड़ी खुली और ढीली शर्ट में कैद छोटे छोटे चीकू ? अमरुद? संतरे ? मुझे नजर आ ही गए। उनके उपर मूंग के दाने जितने चूचुक और अट्ठन्नी के आकार का गुलाबी रंग का एरोला।

मेरी आँखें तो फटी की फटी ही रह गई।

मेरा पप्पू तो अब पैन्ट के अन्दर घमासान मचाने पर तुला हुआ था। मुझे लगा कि आज ये मार खाए बिना नहीं मानेगा। मैंने जल्दी से एक किताब अपनी गोद में रख ली। एक दो बार तो मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखने के बहाने उसकी पुस्सी को भी टच कर दिया। पता नहीं वो मेरे मन के अन्दर की बात जानती होगी या नहीं ? हाँ मैंने देखा कि उसकी पिक्की के सामने वाला हिस्सा कुछ फूल सा गया है और पिक्की के छेद वाली जगह एक रुपये के सिक्के जितनी जगह गीली हो गई है।

हमें कंप्यूटर पर बैठे हुए डेढ़ दो घंटे तो हो ही गए थे। मैं भी निरा बेवकूफ हूँ इस डेढ़ दो घंटे में मतलब की बात तो भूल ही गया। अचानक मेरे दिमाग में एक प्लान घूम गया और मेरी आँखें तो नए प्लान के बारे में सोच कर चमक ही उठी।

आप जानते होंगे कि अगर किसी चीज को देखने या जानने के लिए मना किया जाए तो उस चीज के प्रति उत्सुकता ज्यादा बढ़ जाती है, ख़ास कर छोटे बच्चों में। और मिक्की भले ही मेरी नजरों में जवान मस्त प्रेमिका हो लेकिन थी तो अभी बच्ची ही। मैंने कुछ हिरोइनों की नंगी फोटो, पिक्चर, फिल्म्स और कहानियाँ एक फोल्डर में सेव कर रखी हैं। इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था मैंने बातो बातों में उस फोल्डर और फाइल्स का पासवर्ड हटा दिया। अब मैंने मिक्की से कहा- तुम इस फोल्डर को मत खोलना !

“क्यों ऐसा क्या है इसमें ?” मिक्की ने हैरानी से पूछा।

“अरे, इसमें डरावनी फोटो हैं, तुम डर जाओगी !”

“क्या जंगली छिपकलियाँ हैं ?”

मैं जानता था उसे छिपकलियों से बहुत डर लगता है।

मैंने कहा,”हाँ हाँ ! ना ! असली छिपकलियाँ नहीं, पर वैसी ही है !”

मैं अपने मकसद में कामयाब हो चुका था। मैंने कंप्यूटर ऑफ करते समय कनखियों से देखा था कि मिक्की ने पेंसिल से फोल्डर का नाम नोट कर लिया है। हे भगवान् ! तेरा लाख लाख शुक्र है। मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा अब मंजिल नजदीक आ गई है।

शाम के चार बज चुके थे। मधु ने कहा मिक्की को बाजार घुमा लाओ। मैं और मिक्की बाजार जाने की तैयारी करने लगे। मुझे तो क्या तैयारी करनी थी मिक्की ने जरूर अपने कपड़े बदल लिए। हलके पिस्ता रंग की टी-शर्ट और सफ़ेद जीन मेरे कत्ल का पूरा इंतजाम किया था उसने। आप तो जानते है जीन पहने गोल गोल कूल्हे मटकाती लड़कियां मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है।

हम लोग मोटरसाइकल पर बाजार के लिए निकल पड़े। मैंने उसे यहाँ का किला, गणेशस्थान मंदिर और लोहागढ़ फोर्ट आदि दिखाया। हमने एक रेस्तरां में पिज्जा और मटके वाली कुल्फी भी खाई। कुल्फी खाते हुए मैंने उसे मजाक में कहा कि इसे पूरा मुंह में लेकर चूसो बहुत मजा आएगा। मैं तो बस ये देखना चाहता था कि उसे अंगूठे के अलावा भी कुछ चूसना आता है या नहीं। एक स्टाल पर हमने गोलगप्पे भी खाए। गोलगप्पों का साइज़ थोड़ा बड़ा था। जिस अंदाज में पूरा मुंह खोलकर वो गोलगप्पे खा रही थी मैं तो बस यही अंदाजा लगा रहा था कि अगर मेरा डेढ़ इंच मोटा लण्ड ये मुंह में ले ले तो कोई परेशानी नहीं होगी।
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07-04-2017, 12:38 PM,
#60
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
आते समय हमने चॉकलेट के चार-पाँच पैकेट, चुइंगम के दो पैकेट, वीडियो गेम्स की सीडी, २ कॉमिक्स, एक रिस्ट वाच, नाइके की एक टोपी और न जाने क्या क्या अल्लम-गल्लम चीजें खरीदी। मैं तो आज उसे तोहफों से लाद देना और हर तरीके से खुश कर देना चाहता था।

हाँ ! एक खास बात- मिक्की के लिए मैंने दो फोम वाली पेंटीज, पैडेड ब्रा और एक झीनी सी नाइटी भी खरीदी। मैंने उसे समझाया कि इसके बारे में अपनी बुआजी या मम्मी से न बताये। उसने मेरी और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा पर बोली कुछ नहीं और हाँ में सिर हिला दिया।

मैंने जब उससे कहा कि ये पहनकर भी मुझे दिखानी होगी तो उसने मेरी ओर भोलेपन से देखा पर जब बात का मतलब उसके समझ में आया तो वो शरमा गई। ईईश्श्श….ऽऽ

हायऽऽ …. इस अदा पर कौन न मर जाये ए खुदा !

मैंने उस से कहा, “देखो मैंने तुम्हारे लिए कितने गिफ्ट खरीदे हैं तुम मुझे क्या गिफ्ट दोगी ?”

तो वो बड़े ही भोले अंदाज में बोली “मेरे पास क्या है गिफ्ट देने के लिए ?”

मैंने अपने मन में कहा, “अरे तुम्हारे पास तो कारूं का खजाना है मेरी बुलबुल !”

पर फिर मैंने कहा “अगर चाहो तो कोई न कोई गिफ्ट तो दे ही सकती हो !”

वो सोच में पड़ गई, फिर बोली “अच्छा एक गिफ्ट है मेरे पास, पर पता नहीं आपको पसंद आएगा या नहीं?”

“क्या है ? प्लीज बताओ न ?” उसने अपनी जेब से एक रेशमी रुमाल निकाला और बोली, “मेरे पास तो देने को बस यही है।”

“पता है यह रुमाल मैंने पिछले साल आगरा से खरीदा था ?”

“अरे कहीं इस से नाक तो नहीं साफ़ की है ?” मैंने हंसते हुए कहा “नहीं तो पर….! हाँ ! जब मैं मटके वाली कुल्फी चूस रही थी मैंने अपने होंठ जरूर साफ़ किये थे” उसने बड़ी मासूमियत से कहा। मैं तो इस अदा पर दिलो जान से फ़िदा हो गया, मर ही मिटा। मैंने उसके हाथ से रुमाल लेकर उसे चूम लिया। मिक्की जोर से शरमा गई पता नहीं क्यों ?

घर आते समय रास्ते में मैंने उसे बताया कि कल हम सभी लिंग महादेव का मंदिर देखने चलेंगे। शहर से १५-१६ किलोमीटर की दूरी पर एक छोटी सी पहाड़ी पर यह शिव मंदिर है जिसमे पाँच फुट का शिवलिंग बना हुआ है। यहाँ मान्यता है कि कोई पैदल नंगे पाँव आकर शिवलिंग पर सोलह सोमवार कच्चा दूध चढ़ाये तो उसकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मैंने कभी इसे आजमाया नहीं था पर अब मेरा मन कर रहा था कि एक बार यह टोटका भी आजमा कर देख ही लूँ पर १६ सोमवार यानी ४-५ महीने….। यार थोड़ा कम नहीं हो सकता ?

इन बातों से दूर मिक्की तो मेरी बात सुनकर झूम ही उठी। उसकी आँखों की चमक तो देखने लायक थी। लेकिन फिर उसने थोड़ी मायूसी से पूछा,”क्या आप कल ऑफिस नहीं जाओगे?”

“अरे मेरी बिल्लो रानी तुम्हारे लिए छुट्टी ले लेंगे तुम क्यों चिंता करती हो” मैंने उसके गालों को सहलाते हुए कहा। वो शरमा गई। उसके गाल अचानक लाल हो गए और उसने रस भरी आवाज और कातिलाना अंदाज में कहा,”थैंक यू मेरे प्यारे फ़ूऽऽफा…. अर्ररर जीऽऽ जा जीऽऽ ईईस्स्स्सश्श

आज अगर इसी क्षण मृत्यु भी आ जाये तो कोई गम नहीं।

जब हम घर पहुंचे तो वहाँ बम फूट चुका था। रमेश अपने मार्केटिंग के काम से वापस आ गया था। उसने बताया कि सुधा के चाचा का एक्सीडेंट हो गया है और उन्हें आज ही दिल्ली जाना होगा। खबर सुनकर मेरा तो दिल ही बैठ गया। हे भगवान्। मिक्की ने जब सुना तो वो भी उदास हो गई। उसके चेहरे से लगता था कि वो अभी रो पड़ेगी।

“प्रेम हमें आज रात ही निकलना होगा। क्या दिल्ली के लिए अभी कोई ट्रेन है ? रमेश ने पूछा।

“हाँ ट्रेन तो है रात दस बजे पर… रिज़र्वेशन?”

“कोई बात नहीं मैनेज कर लेंगे। अरे सुधा, जल्दी करो, सामान देख लो ! मिक्की कहाँ है ?” रमेश ने सुधा को आवाज दी।

“भाई साहब क्या सुबह नहीं जा सकते ?” मैंने पूछा।

“अरे यार सुधा और मेरा जाना बहुत जरूरी है !”

मुझे थोड़ी सी आशा बंधी मैंने कहा “पर मिक्की तो यहाँ रह सकती है ?”

“वो अकेली यहाँ क्या करेगी ?”

“बच्ची है पहली बार आई है थोड़ा घूम फिर लेगी वापस लौटते समय आप उसे भी साथ ले जाना !” मैंने कहा।

“चलो ठीक है !”

रमेश गेस्टरूम की ओर चला गया जहां सुधा और मधु बैठी थी। मैं भागता हुआ अपने बेडरूम में गया मैंने देखा मिक्की बेड पर ओंधे मुंह लेटी रो रही है। हे भगवान् क्या कयामत के गोल गोल नितम्ब थे। मैंने उसकी जाँघों और नितम्बों पर हाथ फेरा और उसे प्यार से आवाज दी,”अरे मिक्की माउस ! क्या हुआ ?”

“जिज्जू मैं मम्मी-पापा के साथ नहीं जाना चाहती ! प्लीज मम्मी पापा को मना लो ! प्लीज जिज्जू !” उसने लगभग रोते हुए कहा।

“अच्छा ! चलो, पहले अपने आंसू पौंछो ! शाबास ! गुड गर्ल ! अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं !” मैंने उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहा। इतना बढ़िया मौका मैं भला कैसे छोड़ सकता था।

“क्या पापा मान जायेंगे ?”

“तुम चिंता मत करो मैंने उन्हें मना लिया है !”

“ओह मेरे अच्छे जिज्जू !”

मिक्की यकायक मुझसे लिपट गई और उसने मेरे गालों पर चूम लिया। मैं तो अवसर की तलाश में था !

मैंने झटसे मिक्की को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और अपने लब उसके गुलाबी लबों से मिला दिए। मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ पर थे और मेरी जीभ उसके होठों के बीच में अपना रास्ता तलाशते तलाशते उसकी जीभ से जा मिली।

कुछ पलों के लिए तो मैं अपनी सुधबुध ही खो बैठा और शायद वो भी !

लेकिन मिक्की होश में आई और अपने आप को मुझसे छुड़ा कर मेरे गाल पर एक चुम्बन ले कर बाथरूम में भाग गई अपना मुंह धोने। ये सब बहुत जल्दी और अप्रत्याशित हुआ था। मैंने अपने गालों को दो तीन बार उसी जगह सहलाया और फिर अपनी अंगुलियों को चूम लिया।

तो दोस्तो, यह था हमारा दूसरा चुम्बन !
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