06-08-2017, 11:45 AM,
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sexstories
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RE: नए पड़ोसी
मैं धीरे धीरे नीचे आया. पूरे घर में सन्नाटा था. मैंने आंटी के बेडरूम में झाँका. बेड खाली था. मुझे लगा की घर में कोई नहीं है पर ओम की दुकान तो बंद है तो वो और आंटी यही कहीं होंगे. मैं डरते डरते बाकि के कमरे भी देखने लगा तभी अचानक मुझे बाथरूम से शावर की आवाज आई. मैं धीरे से उसी खिड़की के पास आ गया जिससे मैंने रुची को देखा था.
अन्दर का नज़ारा बहुत बेहतरीन था. आंटी अन्दर एकदम नंगी होकर शावर ले रही थी. वो लम्बे खुले बाल, चूचों पर बहता पानी, वो अपनी झांटों पर से हेयर रिमूवर साफ़ कर रही थी पर तभी मेरा थोडा बैलेंस बिगड़ा और मेरा हाथ खिड़की से टकराया. जब तक मैं भागता तभी आंटी ने खिड़की खोल दी. वो सामने मुझे देख कर एकदम चौंक गयी. मैं वापस छत की तरफ भागा पर तभी आंटी चिल्लाई. खबरदार जो भागे. वही खड़े रहो वरना अभी तुम्हारे पापा को फ़ोन करके बोल दूँगी.
मैं वैसे ही पसीना पसीना हो गया था. आंटी की धमकी से मेरे पैर वहीँ जम गए. मैंने सोचा ये साला ओम कहाँ मर गया. यहाँ तो आंटी अकेले ही है. ५ मिनट बाद आंटी कपडे पहन कर वापस निकल आई. और मेरे पास आकर बोली. अन्दर कैसे आये.
"जी छत से. मयंक को ढूढ़ रहा था." मैंने जवाब दिया.
आंटी चिल्लाई, "शर्म नहीं आती झूठ बोलते हो. तुम्हे अच्छी तरह पता है की मयंक नानी के यहाँ गया है. मुझे नहाता हुआ देख रहे थे. चलो तुम्हारे घर में बताती हूँ"
मेरी फट के हाथ में आ गयी. मुझे और कुछ समझ नहीं आया तो मैंने भी बोल दिया की "ठीक है फिर मैं भी अंकल को बोल दूंगा."
आंटी ने मुझे अजीब नजरो से घूरते हुए कहा. "क्या बोल दोगे."
"आपके और ओम भैया के बारे में." मैंने दिल की धडकनों को काबू करते हुए कहा.
"क्या बकवास कर रहे हो. क्या कहा है ओम ने मेरे बारे में?" आंटी ने सकपकाते हुए कहा.
मुझे लगा शायद जान बच जाये. "मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा. मैंने सब अपनी आँखों से देखा है." मैंने जवाब दिया.
"क्या देखा है." आंटी की आवाज ठंडी पड गयी.
मैंने सोचा की अब आर या पार. मैंने ब्लफ मारते हुए कहा. "जब पहली बार ओम ने आपको उस कमरे में चोदा था तब से अभी तक आप लोगो के बीच जो भी हुआ सब देखा है. ओम दोपहर में दुकान बंद करके जो आपके साथ..."
"छि छि. ये कैसी गन्दी बातें करते हो. ये भाषा किसने सिखाई." आंटी ने मुझे रोकते हुए बोला.
"जी आप कर सकती है और मैं कह भी नही सकता." मैंने भी अब पीछे न हटने की कसम खा ली थी.
"अच्छा ठीक है. जाओ. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी और तुम भी नहीं कहना". आंटी ने मुझसे कहा.
पर यही तो मौका था. ये गया तो हमेशा के लिए मौका गया क्योंकि आगे से आंटी सतर्क हो जाएगी. इसीलिए मैंने बोला, "नहीं कहूँगा पर आपको मेरे साथ भी एक बार..."
"चुप रहो. एक तो मैं तुमको जाने दे रही हूँ. तुमको क्या लगता है की जब मैं उनको बताऊंगी की तुम मुझे नहाते देख रहे थे तो उसके बाद बी वो तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेंगे. चुपचाप चले जाओ वरना सच में तुम्हारे पापा को फ़ोन कर दूँगी." आंटी ने गुस्से से कहा.
"कर दीजिये." मैंने आराम से कहा. "और सोचिये की अगर एक परसेंट भी अंकल ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया तो आपका क्या होगा. इसीलिए कह रहा हूँ और वैसे भी आपको क्या फरक पड़ता है. जैसे ओम वैसे मैं."
"तुम अभी बच्चे हो." आंटी ने शायद मन में मेरी बात पर गौर किया था.
मैंने हिम्मत करके फिर से बोला, "बिना मौका दिए ये आप कैसे कह सकती है."
आंटी ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर मेरे पास आई और बोली, "ठीक है. चल आज मैं तुझे मौका देकर भी देख लेती हूँ."
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