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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“पूरे यकीन के साथ नहीं कर सकती। मेरा ख्याल है पिछले शुक्रवार को जब उसे देखा वह ऐसी ही सैंडल पहने थी। तुम्हें यह कहां से मिली?”
-“जंगल में। बूढ़े डेनियल ने उन्हें चिल्लाकर टोका तो वे घबराकर भाग खड़े हुए। इसी हड़बड़ी में वह गिरी और उसके सैंडल की हील उखड़ गई।”
-“आई सी।” एड़ी वापस राज को लौटाकर बोली- लेकिन वे जंगल में गड्ढा क्यों खोद रहे थे?”
-“वे नहीं। वह खोद रही थी। तुम्हारा पति वहां खड़ा उसे खुदाई करती देख रहा था।”
-“लेकिन क्यों?”
-“इससे सवाल तो कई पैदा होते हैं मगर जवाब शायद एक ही हो सकता है। राज बोला- “मैंने ऐसे सैडिस्टिक हत्यारों के बारे में सुना है जो अपने शिकार को सुनसान जगह पर ले जाते हैं। फिर जबरन उसी से उसकी कब्र खुदवाते हैं। अगर वह मीना की हत्या की योजना बना रहा था...।”
-“मैं नहीं मान सकती।” तीव्र स्वर में प्रतिवाद करती हुई बोली- “सतीश ऐसा आदमी नहीं था। ऐसा कुछ उसने नहीं किया हो सकता।”
-“तुम्ही ने तो बताया था वह सैडिस्ट था।”
-“लेकिन मेरा यह मतलब तो नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैंने उसे सिर्फ इसलिए सैडिस्ट कहा था क्योंकि मुझे दुखी परेशान करने और सताने में उसे मजा आता था।”
-“खैर, मुझे जो एक संभावना सूझी मैंने बता दी।” राज बोला- “क्या मैं सिगरेट पी सकता हूं?”
-“श्योर।”
राज ने प्लेयरज गोल्ड लीफ का एक सिगरेट सुलगाया।
-“सोमवार रात में जब तुम्हारा पति घर लौटा तुमने उसे देखा था?”
-“हां। हालांकि काफी रात गए लौटा था लेकिन मैं जाग रही थी।”
-“तुमसे कुछ कहा था उसने?”
-“याद नहीं।” वह विचारपूर्वक बोली- “नहीं, याद आया, मैं बिस्तर में थी। वह बिस्तर पर नहीं आया। पहले बैठा विस्की पीता रहा फिर देर तक घर में इधर-उधर घूमने की उसके कदमों की आहटें सुनाई देती रही। आखिरकार मैं एक स्लीपिंग पिल निगलकर सो गई।”
-“यानी तुमसे कोई बात उसने नहीं की?”
-“नहीं।” अचानक उसने राज की बाँह पर हाथ रख दिया- “तुम कैसे कह सकते हो, सतीश ने उसे मार डाला? जबकि तुम यह तक नहीं जानते वह मर चुकी है।”
-“मैं मानता हूं उसकी लाश नहीं मिली है। लेकिन बाकी जो भी बातें सामने आयी हैं इसी ओर संकेत करती हैं। अगर वह मरी नहीं तो कहां है?”
राज कि बाँह पर एकाएक उसकी उंगलियां जोर से कस गई और आंखों में विषादपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए।
-“मुझसे पूछ रहे हो? क्या तुम समझते हो, मैंने उसे मार डाला?”
-“नहीं, बिल्कुल नहीं।”
राज के इंकार की ओर ध्यान देती प्रतीत वह नहीं हुई।
-“सोमवार को सारा दिन मैं घर में रही थी।” उसने कहना जारी रखा- “इसे साबित भी मैं कर सकती हूं। दोपहर बाद मेरी एक सहेली मेरे पास आई थी। उसने लंच मेरे साथ लिया था फिर रात के खाने पर भी ठहरी थी। जानते हो, वह कौन थी?”
-“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे सामने अपनी एलीबी पेश करने की कोई जरूरत तुम्हें नहीं है।”
-“जरूरत भले ही न हो मगर मैं बताना चाहती हूं। तुम्हें सुनने में एतराज है?”
-“नहीं।”
-“मेरी वह सहेली थी- सुमन चौधरी। एस. एच.ओ. समर सिंह चौधरी की पत्नि। हम अपनी महिला समिति की ओर से गरीब औरतों में सिलाई मशीनें बांटने के प्रोग्राम पर विचार करते रहे थे। हालांकि यह चार दिन पुरानी बात है मगर मुझे लगता है जैसे चार साल पुरानी बात हो। काफी सोच-विचार के बाद भी हम ठोस और कारआमद नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं। हमने बेकार ही वक्त जाया किया।”
-“तुम ऐसा समझती हो?”
-“अब समझ रही हूं। अब मुझे हर एक बात बेकार और बेवकूफाना लगती है। क्या तुम्हें कभी ऐसा लगा है कि वक्त तुम्हारे लिए ठहर गया है और तुम ऐसे शून्य में जी रहे हो जिसमें भविष्य कोई आएगा नहीं और भूत कोई था नहीं?”
-“मेरे साथ तो ऐसा नहीं हुआ लेकिन अक्सर लोगों के साथ होता रहता है। मगर ज्यादा दिन ऐसा रहता नहीं है। तुम्हारे साथ भी नहीं रहेगा। वक्त बड़े से बड़े जख्म को भर देता है।”
-“तसल्ली देने के लिए शुक्रिया।” संक्षिप्त मौन के पश्चात वह बोली- “तुमने कल रात भी मेरे साथ हमदर्दी जाहिर की थी और अब भी यही कर रहे हो। क्यों?”
राज मुस्कराया।
-“मुसीबतजदा या परेशान हाल औरतों के साथ हमदर्दी करना मेरी आदत है। अब मैं एक सीधा सा सवाल पूछता हूं- तुम, आज यहां क्यों आई हो?”
-“शायद तुमसे दोबारा मिलना चाहती थी। पिछली रात और आज सुबह बृजेश से हुई बातों ने मुझे बहुत ज्यादा डरा दिया था।”
-“ऐसा क्या कहा था उसने?”
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़ा बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी के अपने ऑफिस में बैठा मिला। उसके सामने डेस्क पर कागजात फैले थे। अपनी सुर्ख आंखों से उसने राज को घूरा।
-“तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ?”
-“शेव करते वक्त कट गया था।” राज ने लापरवाही से कहा।
-“घास काटने वाली मशीन से शेव कर रहे थे?”
-“हां। आपको मेरे आने की उम्मीद नहीं थी?”
-“नहीं। मैं समझ रहा था, मैदान छोड़कर भाग गए हो।”
-“क्यों?”
-“तुम गायब जो हो गए थे।”
-“अब यकीन आ गया कि भागा नहीं हूं?”
-“हां। कौशल चाहता है, तुमसे कह दूं तुम्हारी मदद नहीं चाहिए।”
-“तो?”
-“तो कुछ नहीं। मैं जो करता हूं अपनी मर्जी से करता हूं किसी के हुक्म से नहीं।” बवेजा आगे झुक गया। उसका चेहरा किसी बूढ़े लूमड़ जैसा नजर आ रहा था- “लेकिन अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो उसके आड़े आने की कोशिश नहीं करता। उसे यह कतई पसंद नहीं है।”
-“पसंद तो मुझे नहीं है।”
-“हो सकता है। लेकिन तुम जो कर रहे हो वो सब करने की कोई अथारिटी भी तुम्हारे पास नहीं है।”
-“मैं एक प्रेस रिपोर्टर हूं। सच्चाई का पता लगाकर उसे जनता के सामने लाना मेरा फर्ज भी है और हक भी।”
-“खैर, तुम रहे कहां?”
-“मोती झील पर।”
-“वहां क्या करने गए थे?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“मैं तुम्हें यहां कांटेक्ट करने की कोशिश करता रहा था।” बवेजा बोला- “मैं ही नहीं एस. एच.ओ. चौधरी भी तुमसे मिलना चाहता है। तुम मोती झील की सैर कर रहे थे और यहां इस मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। जानते हो एयरबेस पर एक मारुती छोड़ दी गई थी.....।”
-“हाँ।” मैंने ही पुलिस को उसकी इत्तिला दी थी।”
-“पुलिस ने उस कार का पता लगा लिया है। वो विशालगढ़ में एक पुरानी कारों के डीलर से खरीदी गई थी और वह आदमी- क्या नाम था उसका?”
-“जौनी?”
-“जौनी ने पहली सितंबर के आसपास उसे खरीदा था। कीमत नगद चुकाई थी पांच सौ रुपए के नोटों में। जब वो डीलर उस रकम को बैंक में जमा कराने गया तो केशियर ने पुलिस बुला ली....।”
-“रकम चोरी की थी?”
-“वे नोट अगस्त में करीमगंज में हुई एक बैंक डकैती में डाकुओं द्वारा ले जायी गई रकम का हिस्सा थे। करीमगंज पुलिस ने उन नोटों के नंबरों की लिस्ट सभी बड़े शहरों के बैंकों को भिजवा दी थी। डकैती में करीब बीस लाख रुपए गए थे।”
-“जौनी ने बैंक से बीस लाख रुपए लूटे थे?”
-“हां। और जौनी की गिरफ्तारी पर पचास हजार रुपए का इनाम है। यह इनाम तुम्हें इस केस पर काम करते रहने का जोश दिलाने के लिए काफी है।”
-“मुझे इनाम का कोई लालच नहीं है।”
-“ठीक है। अगर तुम्हें मिले तो खुद मत लेना मुझे दिला देना।”
राज के जी में आया उस हरामी खूसट का मुंह तोड़ दे लेकिन अभी उसे बूढ़े की जरूरत थी। इसलिए प्रगट में बोला- “दिला दूंगा।”
-“अब यह भी बता दो मोती झील पर क्या करने गए थे?”
-“इसी केस के सिलसिले में गया था।”
-“वहां से कुछ पता चला?”
-“हां।” राज ने सैंडल की ब्राउन हील उसके डेस्क पर रख दी- “क्या यह तुम्हारी बेटी मीना के सैंडल की है?”
बवेजा ने हिल उठाकर यू उंगलियों में घुमाई मानो उससे उसकी मालकिन का अंदाजा लगाना चाहता था।
-“पता नहीं।” अंत में बोला- “औरतें क्या पहनती हैं। इस ओर ज्यादा ध्यान देना मेरी आदत नहीं है। तुम्हें यह कहां से मिली।”
राज ने बता दिया।
-“मुझे नहीं लगता यह मीना की है।” बबेजा हील को डेस्क पर लुढ़काता हुआ बोला- “तुम इससे क्या नतीजा निकाल रहे हो?”
राज ने एक सिगरेट सुलगाई।
-“मेरा ख्याल है, वह कब्र खोद रही थी।”
-“क्या? किसलिए?”
-“वो खुद उसके लिए भी हो सकती थी और किसी और के लिए भी।”
-“और किसके? सैनी के लिए?”
-“नहीं, सैनी के लिए नहीं। वह खुदाई का मुआयना कर रहा था।”
-“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा। तुम्हें यकीन है उसके साथ मीना ही थी?”
-“मेरे पास दो गवाह है। उनमें से किसी ने भी पक्की शिनाख्त तो नहीं की है लेकिन मुझे लगता है वे जानबूझ कर इस मामले में अहतियात बरत रहे हैं। अगर यह हील मीना के सैंडल की है तो शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहेगी।”
बवेजा पुनः हील को उठाकर गौर से देखने लगा।
-“रंजना को पता हो सकता है।” अंत में बोला।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया।
-“हेलो.... कौशल, रंजना है....नहीं, कहां गई है....तुम्हें पता नहीं....।” फिर देर तक मुंह लटकाए सुनने के बाद बोला- “तुम उस बारे में क्या जानते हो....जहां तक मैं समझता हूं, वह बड़ी भारी गलती कर रही है।” उसने रिसीवर यथा स्थान रख दिया- “कौशल का कहना है, वह चली गई।”
राज चकराया।
-“कहां?”
-“उसे छोड़कर। अपने कपड़े भी साथ ले गई।”
-“उसने वजह नहीं बताई?”
-“नहीं, लेकिन मैं जानता हूं।”
-“क्या?”
-“उन दोनों की आपस में कभी नहीं बनी।” बवेजा के चेहरे पर अजीब सी व्याकुलता मिश्रित उपहासपूर्ण मुस्कराहट थी- “रंजना बताया करती थी कि वह बड़ी बेरहमी से उसके साथ पेश आता है। फिर जब से कौशल ने उसे रोक दिया तो रंजना ने इस बारे में बातें करना ही बंद कर दिया।”
-“बेरहमी से?”
-“हां।” लेकिन इसका मतलब यह नहीं है, कौशल उसकी पिटाई करता था। और अगर करता भी था तो ऐसी जगहों पर नहीं कि पिटाई के निशान नजर आए। मैं मानसिक यातना की बात कर रहा हूं। वह मैंटली टॉर्चर करता होगा ताकि रंजना खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाए।”
-“क्या रंजना ने खुदकुशी करने की कोशिश की थी?”
-“हां।”
-“कब?”
-“शादी के थोड़े अर्से के बाद ही रंजना ने काफी सारी स्लीपिंग पिल्स निगल ली थीं। कौशल ने इस बात को दबाने और एक्सीडेंट की शक्ल देने की कोशिश की मगर मैंने मीना से सच्चाई जान ली थी। उन दिनों मीना उन्हीं के साथ रह रही थी।”
-“रंजना को ऐसा क्यों करना पड़ा?”
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मुझे सब अच्छा लगता है रंजना।”
बवेजा ने उसके कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की तो वह पीछे हट गई।
बाप बेटी की बहस और उनके बीच पैदा हो गई टेंशन को खत्म करने के विचार से राज खड़ा हो गया।
-“मिसेज चौधरी, मैं तुम्हें एक चीज दिखाना चाहता हूं।”
उसने कहा और सैंडल से उखड़ी हील उसे थमा दी- “तुम्हारे पिता का ख्याल है तुम इसे पहचान सकती हो।”
रंजना ने खिड़की के पास जाकर पर्दा हटा दिया। अंदर आती रोशनी में चमड़े की हील को देखा।
-“यह तुम्हें कहां से मिली?”
-“मोती झील के पास पहाड़ियों से। क्या तुम्हारी बहन के पास ऐसे ब्राउन कलर के सैंडल थे?”
-“शायद थे। नहीं, मुझे अच्छी तरह याद है ऐसे सैंडल उसके पास थे।” वह पैर पटकती हुई थी राज के पास आ गई- “मीना को कुछ हो गया है न? उसका स्वर उत्तेजित था- क्या हुआ उसे?”
-“काश, मैं जानता होता।”
-“क्या मतलब?”
-“अगर यह उसी के सैंडल की हील है तो सोमवार को वह उस जंगल में सैनी के साथ थी और गड्ढा खोद रही थी।”
-“हो सकता है, अपनी ही कब्र खोद रही थी।” बवेजा बोला।
रंजना ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।
-“तुम समझते हो, वह मर चुकी है?”
-“बेवजह तुम्हें डराने का कोई इरादा मेरा नहीं है लेकिन फिलहाल ऐसा ही लगता है।”
रंजना ने अपनी मुट्ठी में भिंची हील पर निगाह डाली। फिर मुट्ठी खोली तो राज ने देखा उसकी हथेली में किलें गड़ने के निशान बने थे। वह हील को अपने मुंह के पास ले गई और आंखें बंद कर लीं।
पल भर के लिए राज को लगा वह बेहोश होने वाली थी। उसका शरीर तनिक आगे-पीछे लहराया। लेकिन वह गिरी नहीं।
उसने आंखें खोलीं।
-“बस? या कुछ और है?”
-“सैनी की लॉज में ये और मिली थीं।” राज ने कारपेट से उठाई हेयर क्लिप निकालकर दिखाईं।
-“मीना हमेशा ऐसी ही क्लिप बालों में लगाती थी।” रंजना ने कहा।
बवेजा ने बेटी के कंधे के ऊपर से देखा।
-“मीना पूरे घर में इन्हें फैलाए रखती थी। इसका मतलब है, उसने वीकएंड सैनी के साथ गुजारा था। क्यों?”
-“मुझे ऐसा नहीं लगता। लेकिन उसके साथ एक आदमी जरूर था। बता सकते हो वह कौन था?”
बाप बेटी के मुंह से बोल नहीं फूटा। दोनों एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे।
-“मनोहर लाल पिछले शनिवार रात में मोती झील पर था।” राज ने कहा।
-“वह वहां क्या कर रहा था?” बवेजा ने पूछा।
-“मनोहर ही वह आदमी रहा हो सकता था। एक वक्त में वह और मीना एक-दूसरे के बहुत ज्यादा करीब रह चुके थे।”
रंजना का सफेद पड़ गया चेहरा कठोर था।
-“मैं नहीं मानती। मेरी बहन ने उस घटिया आदमी से सीधी मुंह बात तक नहीं करनी थी।”
-“यह सिर्फ तुम ही समझती हो।” बवेजा बोला- “तुम नहीं जानती मीना कैसी लड़की थी। तुम बस यह वहम पाल बैठी हो कि वह सती सावित्री थी। मगर मैं अच्छी तरह जानता हूं क्या थी। दिल फेंक किस्म की लड़की थी। मनोहर के साथ भी उसने वही किया जो दूसरे मर्दों के साथ करती रही थी। आखिरकार मनोहर को उसके साथ सख्ती से पेश आना पड़ा।”
-“यह सच नहीं है।” रंजना राज की ओर पलट कर बोली- “मेरे बाप की बात पर ध्यान मत दो। मीना एक भली लड़की थी। इतनी ज्यादा भोली कि कभी नहीं समझ सकी स्कैंडल में इन्वाल्व हो सकती थी।”
-“भली और भोली।” बवेजा गुर्राया- “वह बारह साल की उम्र से ही लड़कों की सोहबत में रहने लगी थी। मैंने इसी घर के इसी कमरे में रंगे हाथों से पकड़ा था.... और तगड़ी मार लगाई थी।”
-“तुम झूठे और कमीने हो।”
बवेजा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया।
-“मैं झूठा और कमीना हूं?”
-“हां। तुम खुद उसे अपने लिए चाहते थे इसलिए लड़कों से जलते थे....।”
-“तुम पागल हो। एक अजनबी के सामने अपने बाप पर बेहूदा इल्जाम लगा रही हो।”
गुस्से से कांपते बवेजा की आवाज गले में घुट गई। उसने बेटी के मुंह पर जोरदार तमाचा जड़ दिया।
-“नहीं।” रंजना चिल्लाई।
राज उन दोनों के बीच आ गया।
बवेजा सोफे पर गिरकर हाँफने लगा।
राज उसके पास पहुंचा।
-“तुम्हारी बेटी की हत्या किसने की थी?”
-“मैं नहीं जानता।” वह फंसी सी आवाज में बोला- “वह मर गई है। यह भी तुम यकीन से कैसे कह सकते हो?”
-“मुझे पूरा यकीन है। क्या उसकी हत्या तुमने की थी?”
-“तुम पागल हो गए हो जैसे रंजना है। मैंने मीना को हाथ भी नहीं लगाना था।”
-“तुमने एक बार उस पर हाथ डाला था। तुम वाकई कमीने हो।”
-“यह तुमसे किसने कहा?”
-“एक ऐसे शख्स ने जो तुम्हारी गुजिश्ता जिंदगी के बारे में जानता है और वो भी जानता है जो तुमने मीना के साथ किया था।”
बवेजा उठ कर बैठ गया।
-“वो दस साल पुरानी बात है।” वह सर हिलाता हुआ बोला- “मुझमें थोड़ा बहुत जोश बाकी था। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया।” उसके स्वर में आत्म करुणा थी- “उसमें सारा कसूर मेरा ही नहीं था। वह घर में अक्सर नाम मात्र के कपड़े पहने या नंगी घूमती थी। मेरे साथ भी उसी ढंग से पेश आती थी जैसे अपने दोस्तों के साथ आया करती थी। मैं खुद को रोक नहीं सका और.....। मेरी हालत को तुम नहीं समझ सकते.......म.....मैंने बरसों बगैर औरत के गुजारे थे.....।”
-“तुम्हारे इस रोने का मुझ पर कोई असर नहीं होगा, बूढ़े। एक आदमी जो अपनी बेटी के साथ वह सब कर सकता है जो तुमने किया था उसका मर्डर भी कर सकता है।”
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज सर से पांव तक कांप गया। उसकी अपनी जेब में भी रिवाल्वर थी। मगर उसे निकालने का कोई उपक्रम उसने नहीं किया। चौधरी पुलिस इन्सपैक्टर था। उसके रिवाल्वर निकालते ही चौधरी ने सैल्फ डिफेंस में उसे शूट कर डालना था।
विवश खड़े राज का मुंह सूख गया। पीठ पर पसीने की धार बह रही थी। चौधरी ने सर्विस रिवाल्वर उस पर तान दी।
राज को साक्षात मृत्यु नजर आने लगी।
अचानक रंजना उन दोनों के बीच आ गई।
-“कौशल, इस आदमी ने मेरी मदद की है। कोई गलत इरादा इसका नहीं था। इसे शूट मत करो।” रंजना ने दोनों हाथों से पति की दायीं कलाई दबाकर रिवाल्वर नीचे कर दी। और उससे सटकर उसके कंधे पर चेहरा रख दिया- “तुम इसे शूट नहीं करोगे, प्लीज। कोई और हत्या नहीं होनी चाहिए।”
चौधरी ने यूं उसे देखा मानों पहली बार देख रहा था। धीरे-धीरे उसकी निगाहें उस पर केंद्रित हो गई।
-“नहीं होगी।” उसकी आवाज कहीं दूर से आती सुनाई दी- “मैं तुम्हें घर ले जाने के लिए आया था। मेरे साथ चलोगी?”
रंजना ने सर झुका लिया।
-“हां।”
-“तो फिर जाओ, कार में बैठो। मैं आता हूं।”
-“और फसाद नहीं होगा ? वादा करते हो?”
-“हां, वादा करता हूं।”
चौधरी ने रिवाल्वर वापस हौलेस्टर में रख ली।
रंजना धीरे-धीरे पति से अलग हो गई। अपने ही ख्यालों में खोई सी कार की ओर चल दी।
चौधरी उसे देखता रहा जब तक कि अगली सीट पर बैठकर उसने दरवाजा बंद नहीं कर लिया। फिर अपनी पी कैप उठाकर वर्दी की आस्तीन पर झाड़कर सर पर जमा ली।
-“मैं इस सब को भुला देने के लिए तैयार हूं।” राज की ओर पलटकर बोला।
-“मगर मैं तैयार नहीं हूं।”
-“तुम गलती कर रहे हो।”
-“मैं खामियाजा उठा लूंगा।”
-“क्या हम समझौता नहीं कर सकते ?”
-“कर सकते हैं लेकिन तुम्हारी शर्तों पर नहीं। मैं यही अलीगढ़ में रहूंगा जब तक यह किस्सा खत्म नहीं हो जाता। अगर उल्टे सीधे आरोप लगाकर मुझे लॉकअप में बंद कराओगे तो मैं भी तुम्हें नहीं बख्शूंगा।”
-“क्या करोगे?”
-“तुम पर जवाबी आरोप लगा दूंगा।” '
-“किस बात का?”
-“अपना फर्ज अदा करने में जानबूझकर कोताही करने और बदमाशों के साथ मिली-भगत का।”
-“नहीं।” चौधरी ने उसकी बांह पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया- “समझने की कोशिश करो।”
राज पीछे हट गया।
-“मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूं कि दो हत्याओं के मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहा हूं और कोई चीज मुझे रोकने की कोशिश कर रही है। एक ऐसी वर्दीधारी चीज जो देखने में कानून जैसी लगती है। बातें भी कानून की करती है लेकिन उससे कानून की बू जरा भी नहीं आती। उससे बदबू आती है। बेईमानी, खुदगर्जी, मतलबपरस्ती और लालच की।”
चौधरी ने विवशतापूर्वक उसे देखा।
-“मैंने हमेशा अपने फर्ज को पूरी ईमानदारी से अंजाम दिया है।” उसके स्वर में जरा भी जोश नहीं था।
-“पिछली रात भी जब वो ट्रक तुम्हारी आंखों के सामने से निकल गया था?”
उसने जवाब नहीं दिया। कुछेक पल जमीन को ताकता रहा फिर उसी तरह सर झुकाए थके कदमों से पुलिस कार की ओर बढ़ गया।
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