06-02-2020, 02:13 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
जोगलेकर ने भी अपनी गलती को महसूस किया। वह खाली बैग को अभी-भी सीने से लगाकर रखे हुए था जबकि काम होते ही उसने उसे कहीं फेंक देना चाहिए था।
"अब्बी का अबी तुमेरा बैग खाली...इसका अंदर कोई भूत-प्रेत होएला था क्या?" जग्गू जगलर उसकी ओर शंकित दृष्टि से देखता हुआ बोला-"जो पलक झपकते जिनी का माफिक उड़न छू हो गयः...ऐ! क्या! जग्गू बगलर की नजर चील की नजर से चास्तीं तेज है।"
"वो...उसके अंदर दावत का खाना था। दरअसल मै धन सेठ की दावत में जा नहीं सका तो उसने तमाम सारा खाना पैक करके भिजवा दिया। मैंने सोचा कि खाना खराब न हो जाए-इसलिए उसका घर पहुंचना भी जरूरी है। यहां का कुछ पता नहीं कितनी देर लग जाए।"
"कौन धन्नू सेठ...?"
"वही...साकी नाके वाला। कबाड़ का काम करता है न?"
"अपुन नेई जानता।" "
है उधर...साकी नाके में।"
"होएगा तो अपनु कू क्या करने का...अबी तू इधर का बोल। सब बरोबर है न...?"
"हां...सब ठीक है। छोटा सावन्त आ जाए तो उसे और दिखा लेना का...बसा।"
सिर हिलाता जग्गू जगलर वहां से आगे बढ़ गया। उसके जाते ही जोगलेकर ने सबसे पहला काम उस बैग को ठिकाने लगाने का किया। उसे लगा कि अगर अचानक ही सटीक चहाना उसके द्वारा फिट न हो गया होता तो सब गड़बड़ हो जाती।
जग्गू जगलर का उस वक्त संतुष्ट होना बेहद जरूरी था।
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अन्टाप हिल कोठी नम्बर वन-वन नाइन के फाटक पर राज की कार को सेकने की कोशिश की गई मगर राज उसे तेज रफ्तार से दौड़ाता हुआ सीधा कोठी के ड्राइन वे के मध्य में रुका।
आनन-फानन कई गनर दौड़कर उसकी कार के गिर्द जा पहुंचे।
"बाहर निकल...आज जग्गू जगलर तेरे से सास अगला पिछला हिसाब बरामर कर डालेगा...क्या! जग्गू जगलकर वो चीज है जो किसी की उधारी बाकी नेई रखता...अक्खी उधारी चुकता कर डालता...निकल बाहर कू।" वह विषाक्त स्वर में बोला।
"अपने बाप से पूछकर आया न...।" राज कार से बाहर निकला। उसने एक नजर चारों से तनी हुई गनों पर इस प्रकार डाली मानो गनों के स्थान पर फूल मालाओं को देख रहा हो। उसी अंदाज में उसने अपने लिए सिगरेट सुलगा ली। फिर वह कहने लगा "रंजीत सावन्त को अगर बाप मानता हो तो उसे और धरम सावन्त को बाप समझता हो तो उसे जाकर बोल कि उसका बाप आया है। पुरानी मार अगर भूला न हो तो काम फुर्ती से कर। कहीं ऐसा न हो कि टाइम पूरा हो जाए और मैं यहां से चलता बनूं
जोगलेकर पीछे था।
मगर अचाम्भित था क्योंकि वह इतना पीछे भी नहीं था कि उस तक राज की नजर पहुच न पाती। उसकी नजर एक पल के लिए भी जोगलेकर के ऊपर न ठहरी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने जोगलेकर को कभी देखा ही न हो।
"अब तू जाएगा है तो जाएगा किधर...ये जग्गू जगलर का ठिकाना है। इधर आदमी आता अपनी मर्जी से पन जाता अपुन का मर्जी से...तू डंडा चला को भी कुछ नेई कर सका....अपुन तेरे कू इधरिच खोल डालेगा...अब्बी का अबी!"
__ "बाप लोग से पूछा क्या...बिना पूछे कोई काम बिगाड़ेगा तो तेरा क्या होगा मालूम तुझे...मुझे मालूम मैं तुझे तेरे बारे में बताता हूं। तू बिना पूछे कोई कदम उठाएगा तो रंजीत तेरा भेजा निकाल डालेगा। तेरी तिक्का बोटी कर डालेगा...साले सांड! तू अपने आपको समझता क्या है।"
राज जैसे ही उसकी ओर लपका, वह उल्टे कदमों से वापस भाग निकला।
तमाम गनर अचम्भित रह गए जब उन्होंने देखा कि एक निहत्थे आदमी से डरकर जग्गू जगलर जैसी शातिर भाग खड़ा हुआ।
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फिर भी उन लोगों ने एकजुट होकर जब गने तानी तब जाकर राज रुका।
___ "तुम्हारे बड़े बाप ने मुझे यहां बुलाया है। पूछताछ कर लो...कहीं ऐसा न हो, मुझे रोकने के चक्कर में तुम्हारी नौकरी जाती रहे।"
इसी बीच जग्गू जगलर की पोर्टिको के समीप पुन: वापसी हुई।
"आने दो उसे...बड़े साहब बुला रहे हैं।" वह वहीं से चिल्लाकर बोला।
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06-02-2020, 02:14 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
गनर्स ने राज के लिए ड्राइव वे खाली कर दिया। सिगरेट के कश लगाता हुआ राज ड्राइव वे पर चलता हुआ कोठी के भीतर दाखिल हुआ। बड़े हॉल में उसका सामना छोटे-बड़े सावन्त से हुआ।
रंजीत सावन्त और धरम सावन्त।
"आओ मित्र...आओ।" धरम सावन्त ने उसका स्वागत करते हुए चाटुकारिता पूर्ण स्वर में कहा।
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उसके अंदर की धूर्तता को राज भली-भांति समझ रहा था। वह निर्भीक भाव से धरम सावन्त के सामने कुर्सी पर जा बैठा।
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"टोपी वाले, जहां तक मैं समझता हूं...तूने धरम सावन्त होना चाहिए क्योंकि भेड़ की खाल में भेड़िया तू ही नजर आ रहा है और ये सांप का छोटा सपेला...।" उसने शैतानी अंदाज में मुस्कराते हुए कहा-"यानी रंजीत सावन्त...है न?"
"हें-में-ह.!" धरम सावन्त ने अंदर के भाव अंदर ही दबाते हुए मक्कारी भरी हंसी का प्रदर्शन किया-" भेड़ की खाल और भेड़िए वाली बात समझ मैं आयी नहीं मित्र...।"
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"ये जो खद्दर की टोपी...खदर का कुर्ता-पायजामा है न, ये भेड़ की खाल...आगे तुझे क्या समझाऊं...इतना तो तू खुद समझदार है। अब जल्दी बोल, क्यों आमने-सामने बैठकर बात करने का तलबगार था
"तुम्हें देखने का तमन्नाई था।"
"देख लिया?"
"हां।"
"तो फिर काम की बात कर। मुझे दूसरी जगह जाना है।"
__ "काम की बात ये है कि तूने यहां आकर अपनी जिन्दगी की सबसे भारी भूल की है।" बीच में दखल देता रंजीत सावन्त दांत पीसता हुआ तीखे स्वर में बोला।
राज मुस्कराया।
"ऐ...खामोश!" धरम सावन्त ने रंजीत को डांटा
"उल्टी-सीधी बकवास करने की जरूरत नहीं है। खबरदार, जो दोबारा बीच में अपनी टांग फंसाने की कोशिश की।"
रंजीत खामोश हो गया।
"ये पागल है मित्र...।" धरम सावन्त वापस राज की ओर मुड़कर कदरन नम्र स्वर में बोला "इसकी बात का बुरा न मानना...थोड़ा पागल है। वो होता है न खिसका हुआ...?"
___"फिकर मत कर...खिसका हुआ हो या बिना खिसका हुआ। मैं सबको ठीक कर देता हूं।"
"जाने दो मित्र...अब पहले ये बताओ लोगे क्या...मार्टिनी...बैस्ट सेलर...ओल्डमोक या ब्लैक होर्स?"
"नहीं...मेरा पेट शराब से भरा हुआ है और नहीं पीनी...।"
"अच्छा इसके अलावा और कुछ?"
"कुछ नहीं...सिर्फ मतलब की बात कर। मेहमाननवाजी का चक्कर छोड़। मुझे मालूम है तेरे दिल में मैल है। तूने मुझे बुलाया ही इस गरज से है
कि मीठा बोलकर फांस लिया जाए, उसके बाद साले को काटकर गोश्त चील-कौंओं को खिला डालने का।"
"ऐसा नहीं है।"
"अच्छा...! तो बता फिर कैसा है?"
"देखो मित्र, बात बनाने से बनती है। बिगाड़ने से बिगड़ती है। इस बनने-बिगड़ने के काम में जो बनने वाला मामला है वह मुश्किल वाला है। यानी कोई भी चीज बनती मुश्किल से है और बिगड़ती बहुत आसानी से है। इसलिए मेरी राय में बना लो...वही अच्छा है। बिगाड़ने का क्या है...कभी-भी बिगाड़ सकते हो।"
"मैंने कब इंकार किया है।"
"अच्छा देखो...मैं एक जन प्रतिनिधि हूं। नाम धरम सावन्त। ठिकाना तुम जानते ही हो। यानी मेरे बारें में तुम्हें कुल जानकारी है।"
राज खामोश रहा।
"तुम्हारे बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं।"
"झूठ...गलत!"
"यानी?"
"तू नेता है न...इसलिए झूठ बोलने को कोई जुरः म नहीं समझता बल्कि झूठ बोलना अपना हक मानता है...मौलिक अधिकार।"
"लेकिन मैंने तो कोई झूठ नहीं बोल।"
"तूने कहा...तुझे मेरे बारे में कोई जानकारी नहीं...राइट?"
"रहटा।"
"तो तूने ये झूठ कहा। तुझे मेरे बारे में तमाम जानकारी थी। जैसे कि मैं चैम्बूर में सिंधी कालोनी में रह रहा हूं। मेरा फ्लैट कौन सा है...मैं किस नम्बर की कौन-सी कार इस्तेमाल कर रहा हूं। आर. डी. एक्स. जैसे घातक विध्वंसक से मेरा काम तमाम कराने के लिए मेरी एस्टीम में उसे फिट करके रखा। जैसे किसी जानवर के शिकार के लिए हांका लगाया हो, वैसा ही हांका लगाकर मुझे कार की तरफ निकालने की कोशिश की गई...है न? इतनी सारी जानकारियों के बावजूद तू कहता है कि तू कतई झूठ नहीं बोल रहा है। बोल...बता...क्या ये सब झूठ नहीं है?"
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06-02-2020, 02:16 PM,
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hotaks
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RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
इस बीच राज अपने-आपको संभाल चुका था। उसने झटके के साथ हाथ घुमाया तो चमकदार-चाकू काम करता चला गया।
खून के छींटे उड़ गए।
स्टील रॉड वाले का पेट एक छोर से दूसरे छोर तक कट चुका था। उसकी अंतड़िया बाहर आ चुकी थीं।
फुटपाथ पर खून की नदी सी बह निकली थी। राज अपना काम करके फुर्ती से सीधा हुआ। अगर उसने संभलने में एक पल की भी देरी की होती तो जिसके हाथ में शिकारी चाकू था, उस पर टूट चुका होता। लेकिन! राज को संभलता देख चालू वाला ठिठक गया। यूं भी अपने साथी की हालत देख उसकी टांगें कंपकंपाने लगी थीं। हालांकि मुकाबला बराबर का था। चाकू उसके हाथ में भी था और चाकू ही सामने वाले के हाथ में, मगर उसके दिल में दहशत बैठ गई थी। आते-जाते लोग ठिठककर दूर ही ठिठक गए। किसी ने बीच में आने की कोशिश नहीं की।
राज चालू संभालता अपने प्रतिद्वंद्वी की ओर बढ़ा। प्रतिद्वंद्वी सावधान मुद्रा में एकदम तनकर खड़ा हो गया। उसने दो बार चाक को दाएं से बाएं और बाएं से दाहिने हाथ में किया।
दोनों समीप आ गए।
चाकू तेजी से घूमे।
राज एकदम निकट था। अंतिम समय में वह अपना हाथ रोककर घुटनों के बल गिरा। घुटनों तक की उसकी लम्बाई अनायास ही घट जाने की वजह से वह अचानक ही ऊपर से छोटा हो गया।
मवाली का वार खाली गया।
नीचे झुके राज ने चाकू दस्ते तक उसके पेट में उतार दिया। फिर तेज झटके के साथ वह मवाली का पेट चीरता चला गया।
उसकी हालत भी पहले मवाली जैसी हो गई। वह भी अपने ही खून में तड़पकर गिरा।
राज ने काम खत्म होते ही संकरी गली में दौड़ लगा दी। वह मौकाए-वारदात से शीघ्र अति शीघ्र दूर निकल जाना चाहता था।
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समुद्र की लहरों में तेज हलचल थी। आसमान में बादल छाए हुए थे और किसी भी घड़ी मूसलाधार वर्षा आरंभ हो सकती थी।
स्टीमर में जय के अलावा खबरी लाल...यानी पाल भी मौजूद था। स्टीमर मंथर गति से आगे बढ़ रहा था।
राज डेक पर खड़ा दूरबीन से उस दिशा में देख रहा था जिस दिशा में पाल ने लाल हवेली टापू के मिलने की संभावना व्यक्त की थी। तेज हवाएं बह रही थीं। सिर के बाल बेतरतीबी से बिखरे हुए थे।
"काम पूरा है न?" उसने जय से धीमे स्वर में पूछा।
"एकदम पूरा...।" जय रेलिंग के सहारे दूर समुद्र में उठती लहरों की ओर देखता हुआ बोला।
"मास्टर का आदमी आप था न?"
"बरोबर।"
"और माल?"
"माल पहुंचा को गया...बाप ये मास्टर है क्या चीज?"
"किसी खतरनाक संस्था का चीफ है। मैंने धोखे से उसकी जान बचा दी थी। बस...तब से वो मुझे बहुत मानता है।। उसकी संस्था दुनिया के आधे भाग में कार्यरत है। उसके दिए हुए फोन नम्बर पर मुझे हमेशा सही जवाब मिला और हमेशा पक्का काम हुआ।"
"उसका नाम क्या है?"
"मास्टर।"
"ये कोई नाम नई है।"
"मुझे यही नाम मालूम है।"
"बाप लाल हवेली कोई डेंजर जगो है क्या?"
"डेंजर ही होगी। मैं उस जगह से नावाकिफ
"अपुन आदमी साथ लाएला होता तो ठीक होता न?"
"नहीं...अभी कोई आदमी नहीं। स्टीमर का स्टाफ ही काफी है।"
"फिर भी..."
"तू और आदमियों की फिक्र छोड़, ये बता स्टीमर का स्टाफ भरोसे का है न?"
"एकदम भरोसे का...जिसका स्टीमरे है, अपुन का दोस्त होता वो।"
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