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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
मिरर के सामने खड़ी होकर अपने को देखा तो बिल्कुल फ्रेश लग रही थी चेहरा खिला हुआ था और आखें भी नींद के बाद भी खिली हुई थी अपना ड्रेस और बाल को ठीक करने के बाद वो नीचे जाती कि दरवाजा नॉक हुआ
सोनल-- मम्मी जी, चाय नहीं पीनी क्या
आरति- आती हूँ सोनल। चलो।
और भागती हुई नीचे चली गई रामू काका का कही पता नहीं था शायद किचेन में थे। सोनल डाइनिंग टेबल पर थी और आरती का ही इंतजार कर रही थी। आरती भी जाकर सोनल के पास बैठ गई और दोनों चाय पीने लगे
सोनल- मम्मी, पापा का फोन आया था कह रहै थे कि कोई पार्टी में जाना है
आरती--- हां बात हुई थी मेरी भी।
सोनल- हाँ पापा कह रहै थे कि मम्मी फोन नहीं उठा रही है
आरती- सो रही थी सुनाई नहीं दिया
सोनल- हाँ… मैंने भी यही कहा था (कुछ सोचते) थोड़ा बहुत घूम आया करो मम्मी जी पूरा दिन घर में रहने से आप भी पुम्मी आंटी जैसे मोटी हो जाएगी
आरती- अच्छा जी कहाँ जाऊ
सोनल- देखो मम्मी पापा को तो कमाने से फुर्सत नहीं है पर आप तो पढ़ी लिखी है घर के चार दीवारी से बाहर निकलो और देखो दुनियां में क्या चल रहा है और कुछ खर्चा भी किया करो, क्या करेंगे इतना पैसा जमा कर कोई तो खर्चा करे । मुझे तो करने देते नही।हीहीही हीहीही।
आरती- अच्छा दादी अम्मा जी ही ही ही ही
दोनों माँ और बेटी में हँसी मजाक चल रहा था और एक दूसरे को सिखाने में लगे थे
पर आरती का मन तो आज बिल्कुल साफ था आज का अनुभव उसके जीवन में जो बदलाब लाने वाला था उससे वो बिल्कुल अंजान थी। बातों में उसे दोपहर की घटना को वो भूल चुकी थी या फिर कहिए कि अब भी उसका ध्यान उस तरफ नहीं था वो तो सोनल के साथ हँसी मजाक के मूड में थी और शाम की पार्टी में जाने के लिए तैयार होने को जा रही थी। बहुत दिनों के बाद आज वो कही बाहर जा रही थी
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josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस
Post by josef » 22 Jan 2019 11:00
चाय पीने के बाद सोनल अपने कमरे की ओर चली गई और आरती अपने कमरे की ओर तैयार जो होना था वारड्रोब से साडियो के ढेर से अपने लिए एक जड़ी की साड़ी निकाली और उसके साथ ही मैचिंग ब्लाउस रवि को बहुत पसंद था एक ड्रेस
यही सोचकर वो तैयारी में लग गई 9 तक रवि आ जाएगा सोचकर वो जल्दी से अपने काम में लग गई
करीब 9 15 तक रवि आ गया और अपने कमरे में पहुँचा कमरे में आरति लगभग तैयार थी । रवि को देखकर आरती ड्रेसिंग टेबल छोड़ कर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए अपने आपको रवि के सामने प्रेज़ेंट करने लगी
रवि जो कि उसका दिमाग़ कही और था, आरती की सुंदरता को अपने सामने खड़े इस तरह की साड़ी में देखता रहता । आरती इस समय एक महीन सी साड़ी पहने हुए थी स्लीव्ले ब्लाउज था और चूचियां को समझ के ढका था पर असल में दिखाने की ज्यादा कोशिश थी साड़ी का पल्लू भी दाई चुचि को छोड़ कर बीच से होता हुआ कंधे पर गया था उससे दाई चूची बाहर की और उछलकर मुँह उठाए देख रहा था
लेफ्ट चुचि ढका क्या था सामने वाले को निमंत्रण था कि कोशिश करो तो शायद कुछ ज्यादा दिख जाए क्लीवेज साफ-साफ नीचे तक दिख रहे थे मुस्कुराते हुए आरती ने पलटकर भी रवि को अपना हुश्न दिखाया पीछे से पीठ आधे से ज्यादा खुले हुए थे पतली सी पट्टी ही उसे सामने से पकड़ी हुई थी और वैसे ही कंधे पर से पट्टी उतरी थी
रवि- (सिटी बजाते हुए) क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही तैयार हो हाँ… कहाँ बिजली गिराने वाली हो
आरती- हीही और कहाँ जहां गिर जाए यहां तो कुछ फरक नहीं पड़ता क्यों है ना
रवि- हाँ… फिर आज नहीं जाते यही बिजली गिराती रहो ठीक है
आरती- ठीक है
रवि हँसते हुए बाथरूम में घुस गया और आरती भी वापस अपने आपको मिरर में सवारने का अंतिम टच दे रही थी
रवि भी जल्दी से तैयार होकर आरति को साथ में लेकर नीचे की चल दिया। रवि के साथ आरती भी नीचे की जा रही थी डाइनिंग रूम के पर करते हुए वो दोनों सोनल के कमरे की तरफ चल दिए ताकि उसको बोल कर जा सके
रवि- सोनल बेटा हम जा रहे है
सोनल- ठीक है पापा जी
रवि- बेटा जी, खाना खाकर जल्दी सो जाना।
सोनल--- ठीक है पापा जी। अंदर से ही आवाज दे रही थी।
रवि और आरती मुड़े और पलटकर वो बाहर की ओर चले
रवि- अरे रामु काका दरवाजा बंद कर लेना ।
आरती के शरीर में एक सिहरन सी फेल गई जैसे ही उसने रामू काका का नाम सुना उसने ना चाह कर भी पीछे पलटकर किचेन की ओर देख ही लिया शायद पता करना चाहती हो कि रामु काका ने उसे इस तरह से तैयार हुए देखा की नहीं
क्यों चाहती थी, आरती की रामू काका उसे देखे क्यों? पर आरती थोड़ा सा रुक गई । रवी आगे की ओर निकल गया था पलटकर आरती ने जब किचेन की ओर देखा तो पाया कि किचेन के पीछे के दरवाजे से कोई बाहर की ओर निकलते हुए भागा है।
किचेन में एक दरवाजा पीछे की तरफ भी खुलता था जिससे रामु कचरा बाहर फैंकता था या फिर नौकरो के आने जाने का था । बाहर निकलने वाला शायद कौन होगा
पर जो भी था इस समय किचेन में क्या कर रहा था शायद पानी या फिर कुछ खाने आया होगा जैसे ही वो बाहर को निकला वैसे ही रामू किचेन के दरवाजे पर दरवाजा बंद करने को डाइनिंग स्पेस पर निकलकर आया
अब रामु और आरती एकदम आमने सामने थे। रवि बाहर निकल गया था। आरती ड्राइंग रूम के बीच में खड़ी थी फुल्ली ड्रेसअप बिजली गिराती हुई कामसुख और मादकता लिए हुए सुंदर और सेक्सी दिखती हुई और किसी भी साधु या फिर सन्यासी की नियत को हिलाने के लिए ,
जैसे ही रामु और आरती की नजर आपस में टकराई दोनों जैसे जमीन में धस्स गये थे दोनों एक दूसरे को देखते रह गये। रामु की नजर तो जैसे जम गई थी। आरति के ऊपर नीचे से ऊपर तक एकटक निहारता रह गया वो आरती। को क्या लग रही थी किसी अप्सरा की तरह और रामू को देखकर आरती को दोपहर का वाकया याद आ गया कि कैसे रामू ने उसे रोंदा था और कैसे उसके हाथ और होंठों ने उसे छुआ और चूमा था हर वो पहलू दोनों के जेहन में एक बार फिर ताजा हो गई थी दोनों के आँखों में एक सेक्स की लहर दौड़ गई थी । आरती का पूरा शरीर सिहर गया था उसके जाँघो के बीच में हलचल मच गई थी निपल्स ब्रा के अंदर सख़्त हो गये थे
रामू का भी यही हाल था उसके धोती के अंदर एक बार फिर उसके पुरुषार्थ ने चिहुक कर अपने अस्तित्व की आवाज को बुलंद कर दिया था वो अपने को आजाद करने की गुहार लगाने लग गया था दोनों खड़े हुए एक दूसरे को देखते रह गये किसी ने भी आगे बढ़ने की या फिर नजर झुका के हटने की कोशिश नहीं की
पर बाहर से रवि की आवाज ने आरती और रामु को चौंका दिया। आरति पलटकर जल्दी से गाड़ी की ओर भाग गयी।
बाहर रवि गाड़ी के अंदर बैठ चुका था और गाड़ी का गेट खुला था । आरती ने अपने पल्लू को संभाल कर जल्दी से गाड़ी के पास आई और गाड़ी में बैठ गयी।
रामु मंत्रमुग्ध सा आरती के यौवन को निहारता रहा
और अपने आँखों में उसकी सुंदरता को उतारता रहा कामया ने एक बार ओर रामू काका की ओर देखा और चुपचाप दरवाजे से अंदर जाकर अपनी सीट पर बैठ गई । रामु भी लगभग दौड़ता हुआ दरवाजा बंद करने लगा। बाद में उसे पता ही नहीं चला था कि कैसे दो घंटे बीत गये थे और वो सिर्फ़ बहू के बारे में ही सोचता रहा गया था वो अपने अंदर एक ग्लानि से पीड़ित हो गया था छि छी वो क्या सोच रहा था जिनका वो नमक खाता है उनके घर की बहू के बारे में वो क्या सोच रहा था रवि को उसने दो साल का देखा था और तब से वो इस घर का नौकर था । नहीं उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए यह गलत है वो कोई जानवर तो नहीं है वो एक इंसान है जो गलत है वो उसके लिए भी गलत है वो बाहर गार्डन में बैठा था।
पर उसका दिमाग पूरा समय इसी सोच में डूबा था। पर उसके मन का वो क्या करे वो चाह कर भी अपनी नजर बहू के ऊपर से नहीं हटा पाया था पर घर लौटते समय उसने एक बार भी बहू की ओर नहीं देखा था उसने अपने मन पर काबू पा लिया था इंसान अगर कोई चीज ठान ले तो क्या वो नहीं कर सकता बिल्कुल कर सकता है उसने अपने दिमाग पर चल रहे ढेर सारे सवाल को एक झटके से निकाल दिया और फिर से एक नमक हलाल नोकर के रूप में आ गया और गाड़ी घर के अंदर की ओर तेजी से दौड़ चलो थी अंदर बिल्कुल सन्नाटा था घर के गेट पर चौकी दार खड़ा था गाड़ी आते देखकर झट से दरवाजा खुल गया गाड़ी की आवाज से अंदर से रामू भी दौड़ कर आया और घर का दरवाजा खोलकर बाजू में सिर झुकाए खड़ा हो गया।
आरती भी जल्दी से अपनी नजर को नीचे किए रामू काका को पार करके सीधे सीडियो की ओर भागी और अपने रूम में पहुँची रूम में जाकर देखा कि रवि बाथरूम में है तो वो अपनी साड़ी उतारकर सिर्फ़ ब्लाउस और पेटीकोट में ही खड़ी होकर अपने आपको मिरर पर निहारती रही
वो जानती थी कि रवि के बाहर आते ही वो उसपर टूट पड़ेगा इसलिए वो वैसे ही खड़ी होकर उसका इंतजार करती रही हमेशा रवि उसे घूमके आने के बाद ऐसे ही सिर्फ़ साड़ी उतारने को ही कहता था बाकी उसका काम था आग्याकारी पत्नी की तरह आरती खड़ी रवि का इंतजार कर रही थी और बाथरूम का दरवाजा खुला । आरती को मिरर के सामने देखकर रवि भी उसके पास आ गया और पीछे से आरती को बाहों में भरकर उसके चूचियां को दबाने लगा
आरती के मुख से एक अया निकली और वो अपने सिर को रवि के कंधों के सहारे छोड़ दिया और रवि के हाथों को अपने शरीर में घूमते हुए महसूस करती रही वो रवि का पूरा साथ देती रही और अपने आपको रवि के ऊपर न्योछाबर करने को तैयार थी। रवि के हाथ आरती की दोनों चुचियों को छोड़ कर उसके पेट पर आ गये थे और अब वो आरती की नाभि को छेड़ रहा था वो अपनी उंगली को उसकी नाभि के अंदर तो कभी बाहर करके आरती को चिढ़ा रह था । अपने होंठों को आरती के गले और गले से लेजाकर उसके होंठों पर रखकर वो आरती के होंठों से जैसे सहद को निकालकर अपने अंदर लेने की कोशिश कर रहा था। आरति भी नहीं रहा गया वो पलटकर रवि की गर्दन के चारो और अपनी बाहों को पहना कर खुद को रवि से सटा लिया और अपने पेट और चुत को वो रवि से रगड़ने लगी थी उसके शरीर में जो आग भड़की थी वो अब रवि ही बुझा सकता था
वो अपने आपको रवि के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी और अपने होंठों को वो रवि के मुख में घुसाकर अपनी जीब को रवि के मुख में चला रही थी रवि का भी बुरा हाल था वो भी पूरे जोश के साथ आरती के बदन को अपने अंदर समा लेना चाहता था वो भी आरती को कस्स कर अपने में समेटे हुए धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ा और गिरते ही रवि आरति के ब्लाउसपर टूट पड़ा जल्दी-जल्दी उसने एक झटके में आरति के ब्लाउसको हवा में उछाल दिया और ब्रा भी उसके कंधे से उसी तरह बाहर हो गई थी । आरति के ऊपर के वस्त्र के बाद रवि ने आरति के पेटीकोट और पैंटी को भी खींचकर उत्तार दिया और बिना किसी देरी के वो आरती के अंदर एक ही झटके में समा गया
आरती उउउफ तक नहीं कर पाई अऔर रवि उसके अंदर था अंदर और अंदर और भी अंदर और फिर रवि किसी पिस्टन के तरह आरति के अंदर-बाहर होता चला गया । आरती के अंदर एक ज्वार सा उठ रही थी और वो लगभग अपने शिखर पर पहुँचने वाली ही थी। रवि जिस तरह से उसके शरीर से खेल रहा था उसको उसकी आदत थी वो रवि का पूरा साथ दे रही थी और उसे मजा भा आ रहा था उधर रवि भी अपने आपको जब तक संभाल सकता था संभाल चुका था अब वो भी रवि के शरीर के ऊपर ढेर होने लग गया था अपनी कमर को एक दो बार आगे पीछे करते हुए वो निढाल सा आरती के ऊपर पड़ा रहा और आरति भी रवि के साथ ही झड चुकी थी और अपने आपको संतुष्ट पाकर वो भी खुश थी वो रवि को कस्स कर पकड़े हुए उसके चेहरे से अपना चेहरा घिस रही थी और अपने आपको शांत कर रही थी जैसे ही रवि को थोड़ा सा होश आया वो लुढ़क कर आरति के ऊपर से हाथ और अपने तकिये पर सिर रख कर आरति की ओर देखते हुए
रवि- स्वीट ड्रीम्स डार्लिंग
आरती- स्वीट ड्रीम्स डियर और उठकर वैसे ही बिना कपड़े के बाथरूम की ओर चल दी। तभी उसे खिड़की के बाहर फिर से साया नजर आया। आज फिर वो न्नगी थी खिड़की पर जा नही सकी। वो सोचतेहुए बाथरूम में गुस गयी। जब वो बाहर आई तो रवि सो चुका था और वो अपने कपड़े जो कि जमीन पर जहां तहाँ पड़े थे उसको समेट कर वारड्रोब में रखा और अपनी जगह पर लेट गई और सीलिंग की ओर देखते हुए रवि की तरफ नज़रें घुमा ली जो कि गहरी नींद में था। आरति अपनी ओर पलटकर सोने की कोशिश करने लगी और बहुत ही जल्दी वो भी नींद के आगोस में चली गई।
सुबह रोज की तरह वो लेट ही उठी। रवि बाथरूम में था वो भी उठकर अपने आपको मिरर में देखने के बाद रवि का बाथरूम से निकलने का वेट करने लगी
जब रवि निकला तो वो भी बाथरूम में घुस गई और कुछ देर बाद दोनों चेंज करके नीचे सोनल के साथ चाय पीरहे थे। आरती और रवि एक दूसरे से बातों में इतना व्यस्त थे कि सोनल का ध्यान किसी को नहीं था और न हीं सोनल को कोई इंटेरस्ट था इन सब बातों में वो तो बस अपने आप में ही खुश रहने वाली लड़की थी और कोई ज्यादा अपेक्षा नहीं थी उसे किसी से।
अपने घर वालों से एक तो किसी बात की बंदिश नहीं थी उसे यहां और ना ही कोई रोक टोक और नहीं ही कोई काम था तो क्या शिकायत करे । वो बस अपने मे खुश रहती थी। न ही स्कूल में किसी से ज्यादा मेलजोल। सबकी चाय खतम हुई और सब अपने कमरे की ओर चल दिये। पूरे घर में फिर से शांति सब अपने कमरे में जाने की तैयारी में लगे थे। आरती वही बिस्तर बैठी रवि के बाथरूम से निकलने की राह देख रही थी और उसके कपड़े निकालकर रख दिए थे वो बैठे बैठे सोच रही थी कि रवि बाथरूम से निकलते ही जल्दी से अपने कपड़े उठाकर पहनने लगा
रवि-् हाँ… आरती आज तुम क्या गाड़ी चलाने जाओगी
आरती- आप बताइए
रवि- नहीं नहीं मेरा मतलब है कि शायद मैं थोड़ा देर से आऊँगा तो अगर तुम भी कही बीजी रहोगी तो अपने पति की याद थोड़ा कम आएगी हीही
आरति- कहिए तो पूरा दिन ही गाड़ी चलाती रहूं
रवि- अरे यार तुमसे तो मजाक भी नहीं कर सकते
आरती- क्यों आएँगे लेट
रवि- काम है यार
आरती- ठीक है पर क्या मतलब कब तक चलाती रहूं
रवि- अरे जब तक तुम्हें चलानी है तब तक और क्या मेरा मतलब था कि कोई जरूरत नहीं है जल्दी बाजी करने की
आरती- ठीक है पर क्या रात को इतनी देर तक में वहां ग्राउंड पर मनोज अंकल के साथ मेरा मतलब
रवि- अरे यार तुम भी ना , मनोज अंकल हमारे बहुत ही पुराने जानकार है अपनी जान दे देंगे पर तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे
आरती- जी पर
रविवि- क्या पर वर छोड़ो मैं छोड़ दूँगा तुम तैयार रहेना ठीक है जब भी आए चली जाना
आरति- जी
और दोनों नीचे की ओर चल दिए डाइनिंग रूम में खाना लगा था। रवि के बैठ-ते ही आरति ने प्लेट मे खाना लगा दिया और पास में बैठकर रवि को खाते देखती रही । रवि जल्दी-जल्दी अपने मुख में रोटी और सब्जी ठूंस रहा था और जल्दी से हाथ मुँह धोकर बाहर को लपका रवि के जाने के बाद आरती भी अपने रूम की ओर चल दी पर जाते हुए उसे रामु काका डाइनिंग टेबल के पास दिख गये वो झूठे प्लेट और बाकी का समान समेट रहे थे। आरती के कदम एक बार तो लडखडाये फिर वो सम्भल कर जल्दी से अपने कमरे की ओर लपकी और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर दरवाजा लगा लिया पता नहीं क्यों उसे डर लग रहा था अभी थोड़ी देर में ही सोनल भी चली जाएँगी और तब वो क्या करेगी अभी आते समय उसने रामू काका को देखा था पता नहीं क्यों उनकी आखों में एक आजीब सी बात थी की उनसे नजर मिलते ही वो काप गई थी उसकी नजर में एक निमंत्रण था जैसे की कह रहा था कि आज का क्या आरति।
बाथरूम में जल्दी से घुसी और जितनी जल्दी हो सके तैयार होकर नीचे जाने को तैयार थी जब उसे लगा कि सोनल डाइनिंग टेबल पर पहुँच गयी होगी तो वो भी सलवार कुर्ता पहने हुए डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई और सोनल के पास बैठ गई । सोनल को भी कोई आपत्ति नहीं थी या फिर कोई शक या शुबह नहीं। रामु काका ने भी आरती का प्लेट लगा दिया और आरती ने नज़रें झुका कर अपना खाना शुरू रखा ।
और सोनल की ओर देखते हुए
आरती- हाँ…सोनल बेटा आज मुझे जाना है गाड़ी सीखने, तुम शाम को घर पर रहना।
सोनल- जी मम्मी जी, रामु काका है ना और मोनिका दी को बुला लुंगी।
और आरति के सोए हुए अरमान फिर से जाग उठे थे जिस बात को वो भूल जाना चाहती थी । सोनल ने एक बार फिर से याद दिला दिया था वो आज अकेले नहीं रहना चाहती थी और ना ही रामु काका के करीब ही आना चाहती थी कल की गलती का उसे गुमान था वो उसे फिर से नहीं दोहराना चाहती थी पर ना जाने क्यों जैसे ही सोनल ने रामु काका का नाम लिया तो उसे कल की दिन की घटना याद आ गई थी और फिर खाते खाते रात की बात
उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी वो ना चाहते हुए भी एक जोर की सांस छोड़ी और अपने जाँघो को आपस में जोड़ लिया और नज़रें झुका के खाने लगी पर मन था कि बार-बार उसके जेहन में वही बात याद डालती जा रही थी वो आपने आपसे लड़ने लगी थी अपने मन से या फिर कहिए अपने दिमाग से बार-बार वो अपनी निगाहे उठाकर की ओर देखने लगी थी कि शायद कोई और बात हो
तो वो यह बात भूलकर कहीं और इन्वॉल्व हो जाए पर कहाँ सेक्स एक ऐसा खेल है या फिर कहिए एक नशा है कि पेट भरने के बाद सबसे जरूरी शारीरिक भूक पेट की भूख बुझी नहीं कि पेट के नीचे की चिंता होने लगती है और,,,,
आरती तो एक बार वो चख चुकी थी और उसका पूरा मजा भी ले चुकी थी वो तो बस उसको अवाय्ड करना चाहती थी वो यह अच्छे से जानती थी, कि अगर वो ना चाहे तो रामू क्या रामू का बाप भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था और वो तो इस घर का नौकर है किसे क्या बताएगा एक शिकायत में तो वो घर से बाहर हो जाएगा इसलिए उसे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं थी की रामु उसके साथ कोई गलत हरकत कर सकता है पर वो अपने आपको कैसे रोके यही सोचते हुए ही तो वो आज सोनल के साथ ही खाना खाने को आ गई थी अभी जब रवि गया था तब भी उसकी आखें रामु से टकराई थी उसने रामु काका की आखों में वही भूख देखी थी या फिर शायद इंतजार देखा था जो कि उसके लिए खतरनाक था अगर वो नहीं संभली तो पता नहीं क्या होजायगा
यही सोचते हुए वो अपनी निगाहे झुकाए खाना खा रही थी। सोनल का नास्ता हो गया तो वो जल्दी-जल्दी करने लगी
सोनल- अरे अरे मम्मी आराम से ख़ालो ।
आरती- बस हो गया और आखिरी नीवाला किसी तरह से अपने मुँह में ठूँसा और पानी के ग्लास पर हाथ पहुँचा दिया
सोनल भी हँसते हुए उठ गई और आरति भी
दोनो उठकर हाथ मुँह धोया और बाहर निकल कर बस का इंतजार करने लगे ।
सोनल के जाते ही आरती पीछे-पीछे अपने कमरे की ओर बढ़ गई थी ना जाने क्यों वो अपने को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी या फिर डर था कही कोई फिर से गलत कदम ना उठा ले या फिर अपने शरीर की भूख को संभालने की चेष्टा थी यह जो भी हो वो सोनल के जाते साथ ही अपने कमरे में आ गई थी आते समय जब उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया तो देखा कि डिननिग टेबल साफ था मतलब रामू काका ने आज जल्दी ही टेबल साफ कर दिया था नहीं तो वो हमेशा ही सबके अपने कमरे में पहुँचने का इंतजार करता था और फिर आराम से डाइनिंग टेबल साफ करके वर्तन धो कर रख देता था अंदर किचेन से वर्तन धोने की आवजे भी आ रही थी वो कुछ और ज्यादा नहीं सोचते हुए जल्दी से कमरे में घुस गई फिर मुड़ कर वपिश आयी,
एक लंबी सी सांस फेक कर रूम के बाहर आते ही वो थोड़ा सा सचेत हो गई थी उसकी नजर अनायास ही डाइनिंग रूम और फिर उसके आगे किचेन तक चली गई थी पर वहां शांति थी बिल्कुल सन्नाटा वो थोड़ा रुकी और थोड़ा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए सीडियो की ओर चली पर उसे कोई भी आहट सुनाई नहीं दी कहाँ है रामू काका किचेन में नहीं है क्या या फिर अपने कमरे में चले गये होंगे ऊपर या फिर सोचते हुए आरति सीडियो पर चढ़ती हुई अपने कमरे की ओर जा रही थी पर ना जाने क्यों उसका मन बार-बार किचेन की ओर देखने को हो रहा था शायद इसलिए कि कल दोपहर को जो घटना हुई थी क्या वो रामू कका भूल गये थे या फिर घर छोड़ कर भाग गये थे या फिर कुछ और ......
वो सीडिया चढ़ती जा रही थी और सोच रही थी क्या रामु काका उससे एक बार खेल कर ही उसे भूल गये है पर वो तो नहीं भूल पाई तो क्या वो जितनी सुंदर और सेक्सी लगती थी वो अब नहीं रही। क्या रामू काका भी एक बार के बाद उसे फिर से अपने साथ सेक्स के लिए लालायित नहीं होंगे मैंने तो सुना था कि आदमी एक बार किसी औरत को भोग ले तो बार-बार उसकी इच्छा करता है और वो तो इतनी खूबसूरत है और उसने इस बात की पुष्टि भी की थी उसे रामू काका की नज़रों में ही यह बात दिखी थी पर अभी तो कही गायब ही हो गये थे वो सीढ़ियाँ चढ़ना भूल गई थी वही एक जगह खड़ी होकर एकटककिचेन की ओर ही देख रही थी
कुछ सोचते हुए वो फिर से नीचे की ओर उत्तरी और धीरे-धीरेकिचेन की ओर चल दी उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था पर फिर भी हिम्मत करके वो किचेन की ओर जा रही थी पर क्यों क्या पता नहीं पर आरती के पैर जो कि अपने आप ही किचेन की ओर जा रहे थे किचेन के दरवाजे पर पहुँचकर उसने अंदर देखा वहाँ शांति थी वो थोड़ा और
आगे बढ़ी तो उसे रामू काका के पैर देखे वो शायद नीचे फ्लोर पर पोछा लगा रहे थे उसे अपने को इस स्थिति में पाकर आगे क्या करे सोचने का टाइम भी ना मिला कि तभी रामु की नजर आरति पर पड़ गई वो आरती को दरवाजे पर खड़ा देखकर जल्दी से उठा और अपने धोती को संभालते हुए हाथ पीछे करके खड़ा हो गया
और
रामू- जी बहू रानी कुछ चाहिए
आरती -- जी वो पानी
रामू- जी बहू रानी
उसकी नजर अब भी नीचे ही थी पर बहू के इस समय अपने पास खड़े होना उसके लिए एक बहुत बड़ा बरदान था वो नजरें झुकाए हुए आरती की टांगों की ओर देख रहा था और पानी का ग्लास फिल्टर से भरकर आरती की ओर पलटा आरती ने हाथ बढ़ाकर ग्लास लिया तो दोनों की उंगलियां आपस में टच हो गये आरती और रामु के शरीर में एक साथ एक लहर सी दौड़ गई और शरीर के कोने कोने पर छा गई वो एक दूसरे को आखें उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे
पर किसी तरह आरती ने पानी पिया पिया वो तो अपने आपको रामू के सामने पाकर कुछ और नहीं कह पाई थी तो पानी माँग लिया था और झट से ग्लास प्लतेफोर्म में रख कर पलट गई और अपने कमरे की ओर चल दी
रामू वही खड़ा-खड़ा अपने सामने सुंदरी को जाते हुए देखता रहा वो चाहता था कि आरती रुक कर उससे बात करे कुछ और नहीं भी करे तो कम से कम रुक जाए और वही खड़े रहे वो उसको देखना चाहता था बस देखना चाहता था नजर भर के पर वो तो जा रही थी उसका मन कर रहा था कि जाके रोक ले वो बहू को और कल की घटना के बारे में पूछे कि कल क्यों उसने वो सब किया मेरे साथ पर हिम्मत नहीं हुई वो अब भी आरती को सीडिया चढ़ते देख रहा था किसी पागल भिखारी की तरह जिसे सामने जाती हुई राहगीर से कुछ मिलने की आसा अब भी बाकी थी
तभी आरती आखिरी सीढ़ी में जाकर थोड़ा सा रुकी और पलट कर किचेन की ओर देखी पर रामू को उसकी तरफ देखता देखकर जल्दी से ऊपर चली गई रामू अब भी अपनी आखें फाड़-फाड़कर सीडियो की ओर यूँ ही देख रहा था पर वहाँ तो कुछ भी नहीं था सबकुछ खाली था और सिर्फ़ उसके जाने के बाद एक सन्नाटा सा पसर गया था उसे कोने में
कोने में ही नही बल्कि पूरे घर में वो भी पलटा और अपने काम में लग गया पर उसके दिमाग में बहू की छवि अब भी घूम रही थी सीधी साधी सी लगने वाली बहू रानी अभी भी उसके जेहन पर राज कर रही थी कितनी सुंदर सी सलवार कमीज पहेने हुए थी और उसपर कितना जम रहा था
उसका चेहरा कितना चमक रहा था कितनी सुंदर लगती थी वो पर वो अचानक किचेन में क्यों आई थी रामू का दिमाग ठनका हाँ… यार क्यों आई थी वो तो कमरे में थी और अगर पानी ही पीना था तो उनके कमरे में भी पानी था तो वो यहां क्यों आई थी कही सिर्फ़ उसे देखने के लिए तो नहीं या फिर कल के बारे में कुछ कह रही हो या फिर उसे फिर से बुला रही हो अरे यार उसने पूछा क्यों नहीं कि और कुछ चाहिए क्या क्या बेवकूफ है वो धत्त तेरी की अच्छा मौका था निकल गया अब क्या करे अभी भी शाम होने को देर थी क्या वो बहू को जा करके पूछे अरे नहीं कही बहू ने शिकायत कर दी तो
वो अपने दिमाग को एक झटका देकर फिर से अपने काम में जुट गया था पर ना चाहते हुए भी उसकी नजर सीडियो की ओर चली ही जाती थी
और उधर आरती ने जब पलटकर देखा था तो वो बस इतना जानना चाहती थी कि रामु क्या कर रहा था पर उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वो घबरा गई थी और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई थी और जाकर अपने कमरे की कुण्डी लगाकर बिस्तर पर बैठ गई थी पूरे घर में बिल्कुल शांति थी पर उसके मन में एक उथल पुथल मची हुई थी उसने अपनी चुन्नि को उतार फेका और चित्त होकर लेट गई वो सीलिंग की ओर देखते हुए बिस्तर पर लेटी थी उसकी आखों में नींद नहीं थी उसका दिल जोरो से धड़क रहा था उसके शरीर में एक अजीब सी कसक सी उठ रही थी वो ना चाहते हुए भी अपने आपको अपने में समेटने की कोशिश में लगी हुई थी वो एक तरफ घूमकर अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही थी
पर नहीं वो यह नहीं कर पा रही थी उसे रामू काका की नज़रें याद आ रही थी उसके पानी देते समय जो उंगलियां उससे टकराई थी वो उसे याद करके सनसना गई थी वो एक झटके से उठी और बेड पर ही बैठे बैठे अपने को मिरर में देखने लगी बिल्कुल भी सामान्य नहीं लग रही थी वो मिरर में पता नहीं क्या पर कुछ चाहिए था क्या पता नहीं हाँ… शायद रामू हाँ… उसे रामू काका के हाथ अपने पूरे शरीर में चाहिए थे उसने बैठे बैठे ही अपनी सलवार को खोलकर खींचकर उतार दिया और अपनी गोरी गोरी टांगों को और जाँघो को खुद ही सहलाने लगी थी जो अच्छी शेप लिए हुए थे उसके टाँगें पतली और सिडौल सी गोरी गोरी और कोमल सी उसकी टांगों को वो सहलाते हुए उनपर रामू काका के सख़्त हाथों की कल्पना कर रही थी उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थी।
उसके हाथ अपने आप ही उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयो की ओर बढ़ चले थे जैसे की वो खुद को ही टटोल कर देखना चाहती थी कि क्या वो वाकई इतनी सुंदर है या फिर ऐसे ही हाँ वो बहुत सुंदर है जब उसके हाथ उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों पर पहुँचे तो खुद को रोक नहीं पाई और खुद ही उन्हें थोड़ा सा दबाकरदेखा उसके मुख से एक आआह्ह निकली कितना सुख है पर अपने हाथों की बजाए और किसी के हाथों से उसे मजा दोगुना हो जाएगा । रवि भी तो कितना खेलता है इन दोनों से पर अपने हाथों के स्पर्श का वो आनंद उसे नहीं मिल पा रहा था उसने अपने कुर्ते को भी उतार दिया और खड़े होकर अपने को मिरर में देखने लगी थी।
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में वो कितनी खूबसूरत लग रही थी लंबी-लंबी टाँगों से लेकर जाँघो तक बिल्कुल सफेद और चिकनी थी वो कमर के चारो ओर पैंटी फँसी हुई थी जो की उसकी जाँघो के बीच से होकर पीछे कही चली गई थी
बिल्कुल सपाट पेट और उसपर गहरी सी नाभि और उसके ऊपर उसके ब्रा में क़ैद दो ठग हाँ… रवि उनको ठग ही कहता था मस्त उभार लिए हुए थे आरती अपने शरीर को मिरर में देखते हुए कही खो गई थी और अपने हाथों को अपने पूरे शरीर पर चला रही थी और अपने अंदर सोई हुई ज्वाला को और भी भड़का रही थी वो नहीं जानती थी कि आगे क्या होगा पर उसे ऐसा अच्छा लग रहा था आज पहली बार आरती अपने जीवन काल में अपने को इस तरह से देखते हुए खेल रही थी
वो अपने आपसे खेलते हुए पता क्यों अपनी ब्रा और पैंटी को भी धीरे से उतार कर एक तरफ बड़े ही स्टाइल से फेक दिया और बिल्कुल नग्न अवस्था, में खड़ी हुई अपने आपको मिरर में देखती रही उसने आपने आपको बहुत बार देखा था पर आज वो अपने आपको कुछ अजीब ही तरह से देख रही थी उसके हाथ उसे पूरे शरीर पर घूमते हुए उसे एक अजीब सा एहसास दे रहे थे उसके अंदर एक ज्वाला सा भड़क रही थी जो कि अब उसके बर्दास्त के बाहर होती जा रही थी उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपने निपल्स के ऊपर घुमाती हुई आरती अपने पेट की ओर जा रही थी और अपने नाभि को भी अंदर तक छू के देखती जा रही थी दूसरे हाथों की उंगलियां अब उसकी जाँघो के बीच में लेने की कोशिश में थी वो उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी पूरे कमरे में फेल गई और वो अपने सिर को उचका करके नाक से और मुख से सांसें छोड़ने लगी उसकी जाँघो के बीच में अब आग लग गई थी वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी हाँ… कुछ भी वो एकदम से नींद से जागी और फिर से अपने आपको मिरर में देखते हुए अपने आपको वारड्रोब के पास ले गई और एक सफेद पेटीकोट और ब्लाउस निकाल कर पहनने लगी बिना ब्रा के ब्लाउस पहनने में उसे थोड़ा सा दिक्कत हुई पर, ठीक है वो तैयार थी अपने बालों को एक झटका देकर वो अपने को एक बड़े ही मादक पोज में मिरर की ओर देखा और लड़खड़ाती हुई सीढ़ियों तक पहुँची और किचेन का दरवाजा देखा और हल्के स्वर में आवाज लगाई और एक दम से पीछे हट गई
किचेन में हल्की आवाज आते ही रामू उठा और बाहर देखा।
आरति ने तुरंत खुद को छिपा लीया, और खंबे के पीछे खुद को रखकर तेज-तेज सांसें लेने लगी
उसके अंतर मन में एक ग्लानि सी उठ रही थी ना चाहते हुए भी उसने आवाज दी और बिस्तर पर बैठे बैठे सोचने लगी क्या कर रही है वो एक इतने बड़े घर की बहू को क्या यह सोभा देता है अपने घर के नौकरके साथ और वो भी इसी घर में क्या वो पागल हो गई है नहीं उसे यह सब नहीं करना चाहिए वो सोचते हुए बिस्तर पर लूड़क गई और अपने दोनों हाथों से अपने को समेटे हुए वैसे ही पड़ी रही उसका पूरा शरीर जिस आग में जल रहा था उसके लिए उसके पास कोई भी तरीका नहीं था बुझाने को पर क्या कर सकती थी वो जो वो करना चाहती थी वो गलत था पर पर हाँ… नहा लेती हूँ सोचकर वो एक झटके से उठी और तौलिया हाथ में लिए बाथरूम की ओर चल दी उसका पूरा शरीर थर थर काप
रहा था और शरीर से पसीना भी निकल रहा था वो कुछ धीरे कदमो से बाथरूम की ओर जा ही रही थी कि दरवाजे पर एक हल्की सी क्नॉच से वो चौंक गई
वो जहां थी वही खड़ी हो गई और ध्यान से सुनने की कोशिस करने लगी नहीं कोई आहट नहीं हुई थी शायद उसके मन का भ्रम था कोई नहीं है दरवाजे पर जया, नही जया तो नीचे बाहर कपड़े धो रही होंगी और कौन हो सकता है रामू काका, अरे नहीं वो इतनी हिम्मत नहीं कर सकता वो क्यों आएगा
और उधर रामू काका ने आवाज सुनी थी खड़ा का खड़ा रह गया था सोचता हुआ कि क्या हुआ बहू को कही कोई चीज तो नहीं चाहिए शायद भूल गई हो नीचे या फिर कोई काम था उससे या कुछ और वो धीरे से किचेन से निकला और ऊपर सीडियो की ओर देखता रहा पर कही कोई आवाज ना देखकर वो बड़ी ही हिम्मत करके ऊपर की ओर चला और बहू के कमरे की ओर आते आते पशीना पशीना हो गया बड़ी ही हिम्मत की थी उसने आज दरवाजे पर आकर वो चुपचाप खड़ा हुआ अंदर की आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा था एक हल्की सी आहट हुई तो वो कुछ सोचकर हल्के से दरवाजे पर एक कान करके खड़ा हो गया और इंतजार करने लगा था पर कोई आहट नहीं हुई तो यह सोचते हुए नीचे की ओर चल दिया की शायद बहू सो गई होगी
अंदर आरति का पूरा ध्यान दरवाजे पर ही था नारी मन की जिग्याशा ही कहिए वो अपने को उस नोक का कारण जानने की कोशिश में दरवाजे की ओर चली और कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगी कि कही कोई आहट या फिर कोई चहल पहल की आवाज हो रही है कि नहीं पर कोई आवाज ना देखकर वो दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर की ओर देखती है पर कोई नहीं था वहाँ कुछ भी नहीं था तो वो बाहर आ गई थी बाहर भी कोई नहीं था लेकिन आचनक ही उसकी नजर सामने सीढ़ियो पर पड़ी तो वहां रामू खड़ा था जो कि अब उसी की ओर देख रहा था आरति ने अब भी सफेद ब्लाउस और पेटीकोट ही पहना हुआ था और हाथ में तौलिया था वो रामू काका को सीढ़ियो में देख कर सबकुछ भूल गई थी उसे अपने आपको ढकने की बात तो दूर वो फिर से अपने को उस आग की गिरफ़्त में पाती जा रही थी जिस आग से वो अब तक निकलने की कोशिश कर रही थी
उसकी सांसों में अचानक ही तेजी आ गई थी और वो उसकी धमनिओ से टकरा रही थी रामु सीढ़ियो में खड़ा-खड़ा बहू के इस रूप को देख रहा था बहू तो कल जैसे ही स्थिति में है ती क्या वो आज भी मालिश के बहाने उसे बुला रही थी हाँ शायद पर अब क्या करे वो हिम्मत करके सीढ़ियो में ही घुमा और बहू की ओर कदम बढ़ाया अपने सामने इस तरह से खड़ी कोई स्वप्न सुंदरी को कैसेछोड़ कर जा सकता था वो उसका दीवाना था वो तो उस रूप का पुजारी था उस रूप को उसकाया को वो भोग चुका था उसकी मादकता और नाजूक्ता का अनुमान था उसे उसके लिए वो तो कब से लालायित था और वो उसके सामने इस तरह से खड़ी थी । रामू अपने आपको रोक ना पाया और बड़े ही सधे हुए कदमो से बहू की ओर बढ़ने लगा
और आरती ने जब रामु काका को अपनी ओर बढ़ते हुए देखा तो जैसे वो जमीन में गढ़ गई थी उसकी सांसें जो कि अब तक उसकी धमनियों से ही टकरा रही थी अब उसके मुँह से बाहर आने को थी हर सांस के साथ उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी भी निकलने लगी थी उसके शरीर के हर एक रोएँ में सेक्स की एक लहर दौड़ गई थी उसे रामु काका के हाथ और उनके शरीर के बालों का गुच्छे याद आने लगे थे कल जब रामु काका ने उसे अपनी बाहों में लेकर रोंधा था वो एक-एक वाकया उसे याद आने लगा था वो खड़ी-खड़ी काँपने लगी थी उसका शरीर ने एक के बाद एक झटके लेना शुरू कर दिया था वो खड़े-खड़े लड़खड़ा गई थी और दीवाल का सहारा लेने को मजबूर हो गई थी उसकी और रामु काका की आखें एक दूसरे की ओर ही थी एक बार के लिए भी नहीं हटी थी अब आरती पीछे दीवार के सहारे खड़ी थी कंधा भर टिका था दीवाल से और पूरा शरीर पाँव के सहारे खड़ा था सांसों की तेजी के साथ आरती की चूचियां अब ज्यादा ही ऊपर की ओर उठ जा रही थी वो नाक और मुख से सांस लेते हुए रामू काका को अपने करीब आते देख रही थी रामू करीब और करीब आते हुए उसके बहुत नजदीक खड़ा हो गया अब रामु की नजर बहू के शरीर का अवलोकन कर रही थी वही शरीर जिसे कल उसने भोगा था और बहुत ही अच्छे तरीके से भोगा था जैसा मन किया था वैसे ही आज फिर वो उसके सामने खड़ी थी कल जैसे ही परिस्थिटी में और, खुल्ला आमंत्रण था रामु को वो सिर से पैर तक बहू को निहारता रहा और
रामु की नजर एक बार फिर से बहू के चेहरे पर पड़ी और उनको देखते हुए उसने अपने हाथों को बहू की ओर बढ़ाया धीरे से उसने बहू के पेट को छुआ
आरती- आआआआआआअह्ह उूुुुुुुुुउउम्म्म्मममममममममम
रामु के हाथों में जैसे मखमल आ गया हो नाजुक नाजुक और नरम नरम सा बहू का पेट उसकी सांसों के साथ अंदर-बाहर और ऊपर नीचे होते हुए वो अपने हाथों को एक जगह नहीं रख पाया वो अपने दूसरे हाथ को भी लाकर बहू के पेट पर रख दिया और अपने दोनों हाथों से उसको सहलाने लगा बल्कि कहिए उनका नाप लेने लगा वो अपने हाथों से बहू के पेट का आकार नाप रहा था और उस ऊपर वाले की रचना को महसूस कर रहा था वो अपनी आखें गढ़ाए बहू के पेट को ऊपर से देख भी रहा था और अपने हाथों से उस रचना की तारीफ भी कर रहा था उसकी आखों के सामने बहू की दोनों चूचियां अपनी जगह से आजाद होने की कोशिश कर रही थी वो अपने हाथों को धीरे से बहू के ब्लाउसकी ओर ले जाने लगा कि आचनक ही बहू लड़खड़ाई और रामु की सख़्त बाहों ने बहू को संभाल लिया अब बहू भीमा की ग्रफ्त में थी और बेसूध थी उसकी आखें बंद सी थी नथुने फूल रहे थे मुख से सिसकारी निकल रही थी उसका पूरा शरीर अब रामू के हाथों में था उसके भरोसे में था वो चाहे तो वही पटक कर बहू को भोग सकता था या फिर उठाकर अपने कमरे में ले जा सकता था या फिर अंदर उसी के कमरे में कल जैसे बिल्कुल नंगा करके उसके सारे शरीर को जो चाहे वो कर सकता था उसकी आखें बहू की चेहरे पर थी वो अपना सबकुछ रामु के हाथों में सौंप कर लंबी-लंबी सांसें लेते हुई उसकी बाहों ले लटकी हुई थी। रामु उस अप्सरा को अपने बाहों में संभाले हुए अपने एक हाथों से उसकी पीठ को सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके पैरों के नीचे से हाथ डालकर एक झटके से उसे उठाकर उसी के बेडरूम में घुस गया वो कमरे में आते ही अपने हाथों की उस सुंदर और कामुक काया को कहाँ रखे सोचने लगा उसके हाथों में आरती एक बेसूध सी जान लग रही थी एक रति के रूप में वो लगभग बेहोशी की मुद्रा में थी उसे सब पता था कि
क्या चल रहा था पर उसके हाथों से अब बात निकल चुकी थी वो अब रामू को भेट चढ़ चुकी थी या कहिए वो अपने को रामु के सुपुर्द कर चुकी थी अब वो इस खेल का हिस्सा बनने को तैयार थी । अब वो उसे दैत्यकाय के हर उस पुरुषार्थ को सहने को तैयार थी जो कि उसे चाहिए था जो कि उसे रवि से नहीं मिला था या फिर उसे नहीं पता था इतनी दिनों तक वो अब अपने आपको किसी भी स्थिति में रोकना नहीं चाहती थी रामु के गोद में वो ऐसी लग रही थी कि कोई बनमानुष उसे उठाकर अपने हवस का शिकार करने जा रहा हो वो तैयार थी उस बनमानुष को झेलने को उसे राक्षस को अपने अंदर समा लेने को वो चुपचाप उस राक्षस का साथ दे रही थी उसके हर कदम को देख भी रही थी और समझ भी रही थी जैसे कह रही हो करो और करो जो मन में आए करो पर मेरे तन की आग को ठंडा करो प्लीज
रामु अपने हाथों में बहू को उठाए कमरे में दाखिल हुआ और सोचने लगा की अब क्या करे पर वो खुद ही बिना किसी इजाज़त के बहू को उसके बिस्तर तक ले गया और धीरे से हाँ बहुत ही धीरे से बहू को उसके बिस्तर पर लिटा दिया बहू अब सिर और नितंबों और पैरों के तले को रखकर बिस्तर पर लेटी हुई थी। आरती को जैसे ही रामु ने बिस्तर पर रखा वो एक जल बिन मछली की तरह से तड़प उठी उसके हाथ पाँव और सिर बिस्तर पर अपने आपसे इधर उधर होने लगे थे वो अपने को रामु के शरीर से अलग नहीं करना चाहती थी वो जब रामु उसे अपने गोद में भरकर लाया था तो उसके नथुनो में रामु के पसीने की खुशबू को सूंघ कर ही बेसूध हो गई थी कितनी मर्दानी खुशबू थी कितनी मादक थी यह खुशबूओ काम अग्नि में जलती हुई आरती का पूरा शरीर अब रामु के रहमो करम पर था वो चाहती थी कि रामु कल जैसे उससे निचोड़ कर रख दे उसके शरीर में उठ रही हर एक लहर को अपने हाथों से रोक दे, वो अपने आपको अकेला सा पा रही थी बिस्तर पर और रामु पास खड़े हुए बहू की इस स्थिति को अपने आखों से देख रहा था बहू के ब्लाउसमें फँसे हुए उसके गोल गोल बड़े-बड़े चुचो को वो वही खड़े-खड़े निहार रहा था उसके ऊपर-नीचे होते हुए आकर को बढ़ते घटते देख रहा था उसके पेट को अंदर-बाहर होते देख रहा था जाँघो में फाँसी हुई पेटीकोट को उसकी टांगों के साथ ऊपर-नीचे होते हुए देख रहा था उसकी आखें बहू के हर हिस्से को देख रही थी और उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतारने की कोशिश कर रही थी वो खड़े-खड़े देख ही रहा था कि उसके हाथों से बहू की नाजुक हथेली टकराई वो उसकी मजबूत हथेली को अपनी हथेली में लेने की कोशिश कर रही थी वो अपनी हथेली को रामु की हथेली पर कस कर पकड़ बनाने की कोशिश कर रही थी और अपने पास खींच रही थी उसके हाथ रामु को अपने पास और पास आने का न्यौता दे रहे थे। रामु भी अब कहाँ रुकने वाला था वो भी बहू के हाथों के साथ अपने आपको आगे बढ़ाया और बहू के हाथों का अनुसरण करने लगा बहू अपने हाथों को रामु के हाथों के सहारे अपने चूची तक लाने में सफल हो गई थी उसके चूचियां और भी तेज गति से ऊपर की ओर हो गये।
आरती के मुख से एक आआअह्ह निकली और वो रामू के हाथों को अपने चूची के ऊपर घुमाने लगी थी रामू को तो मन की मुराद ही मिल गई थी जो खड़े-खड़े देख रहा था अब उसके हाथों में था वो और नहीं रुक पाया वो अपने अंदर के शैतान को और नहीं रोक पाया था वो अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचियां को कस कर पकड़ लिया और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा । आरती का पूरा शरीर धनुष की तरह से अकड गया था वो अपने सिर के और कमर के बल ऊपर को उठ गई थी
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सोनल बारहवीं कक्षा में थी और उसकी परीक्षा आने वाली थी। वो पढ़ाई में ज्यादा तेज़ नहीं थी और परीक्षा बोर्ड की थी। स्कूल का प्रिंसीपल जो मैथ का टीचर भी था। वो उसे बहुत प्यार से बुलाता था और उसके बदन को छूता रहता था। उसके प्यार से बात करने की वजह उसे पता थी क्योंकि पूरी कक्षा में वो सबसे दब्बू और सदारण लड़की थी जो उसकी बातों को किसी से भी नही कह सकती थी।
परीक्षा पास आते देख सोनल ने ट्यूशन उन्हीं के पास रख ली वो मैथ, साइंस और इंगलिश पढा़ते थे। उन्होंने रवि को बोला वो ट्यूशन नहीं पढा़ते लेकिन सोनल को पढ़ाई करवाएंगे और कोशिश करेंगे पहले दर्जे में पास हो और कोई ट्यूशन फीस नहीं।
उनके क्लास की दो ओर लडकिया भी उनसे उनके घर पढ़ने जाती थी और उनकी हरकते जानते हुए भी सोनल ने ट्यूशन उनसे ही पढ़ने का मन बना लिया। क्यो ये तो वो ही जानती थी। एक सामान्य घरेलू लड़की ऐसे टीचर के पास क्यो जाना चाहती थी पढ़ने।
उनका नाम प्रेम गर्ग था लेकिन सोनल उनको सर बुलाती थी। तब उनकी आयु 50 साल की थी। उनका रंग सांवला कद करीब 5 फीट 8 इंच है। चेहरा क्लीन शेव है और सिर के बालों पर काला रंग लगाते हैं। उनकी आंखें काली हैं और नज़र का चश्मा लगा हुआ है। उनके एक बेटा और बेटी हैं दोनों शादीशुदा हैं। बेटी ससुराल में रहती है बेटा दूसरे शहर में नौकरी करता है तो अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है।
प्रेम सर की पत्नी 40 किमी दूर एक बैंक में नौकरी करती थी जो शाम को करीब 6 बजे घर आती थी।
दोपहर को 2 बजे स्कूल में छुट्टी हो जाती थी और सोनल बैग घर में रखकर खाना खा कर 2:30 बजे सर के घर पहुंच जाती थी, तब सर घर में अकेले ही होते थे। सोनल स्कूल की यूनीफॉर्म बदल कर जींस टॉप या जींस शर्ट पहन कर जाती थी जो कि टाईट होते थे। उन कपड़ों में उनके बदन का एक एक उभार (जो भी उसके शरीर पर था) अच्छे से दिखाई देता था।
सर सब सब्जेक्ट एक एक घंटा पढा़ते थे। पढा़ते टाईम उनकी नजर लड़कियों के बूब्ज़ पर होती थी। वो पढ़ाई कम करवाते और अपनी ठर्क ज्यादा पूरी करते थे। जब उनकी पत्नी घर आ जाती तब छुट्टी करते थे।
अब परीक्षा में 3 मंथ बाकी थे और सोनल को डर लग रहा था।
आज सोनल सर के पास पढ़ाई के लिए गई और उसकी क्लासमेट नही आई थी।
सोनल ने सर् से कहा- सर परीक्षा पास आ रही है और मुझे डर लग रहा है कि अगर अच्छे नंबर नहीं आए तो अच्छे कॉलेज़ में दाखिला नहीं मिलेगा।
सर उसकी पीठ सहलाते हुए कहा- डर मत सोनल, मैं हूं न, तेरे कम से कम 80% नंबर आएंगे।
सोनल ने कहा- पर कैसे सर, आप जानते ही हो मैं इतनी होशियार नहीं हूं, 50% नंबर लेना भी मुश्किल लग रहा है।
सर हंस पडे़ और कहा- जितना आता हो उतना लिख देना, बाकी हमारे पास एक घंटा होता है और सुपरअटेंडेंट और सुपरवाईज़र सब मेरी पहचान के हैं, परीक्षा के बाद मैं करवा दिया करू़गा। मैं जो बोलता जाऊंगा तुम लिखती जाना।
सोनल ने कहा- थैंक्स सर, आप मेरे लिए इतना कुछ कर रहे हो, यह एहसान में कभी नहीं चुका पाऊंगी।
सर ने कहा- ये कोई एहसान नहीं है इसके बदले मुझे भी कुछ चाहिए।
सोनल ने कहा- आप बोलो, मैं पापा से बोल कर आपको वो दिलवा दू़ंगी।
सर ने कहा- वो तुम्हारे पापा नहीं तुम दे सकती हो।
सोनल ने कहा- मैं क्या दे सकती हूं?
सर ने कहा- मुझे खुश करना होगा!
सोनल ने कहा- कैसे सर?
सोनल को कुछ समझ नही आ रहा था कि सर क्या चाहते है।
सर ने कहा- जैसा मैं कह वैसा करती जाना मैं खुश हो जाऊँगा, मैं तुम्हे परीक्षा में मदद कर दूँगा। तुमहारी सहेलियां भी ऐसा ही करेगी।
सोनल ने बिना सोचे हां कर दी।
तभी सर ने अपनी पैंट से लंड बाहर निकाल लिया और कहा- देखो सोनल, कैसे खड़ा है।
सोनल ने पहली बार किसी मर्द का लंड देखा था और मैं गौर से देखने लगी, सर का लंड काफी मोटा, लंबा और जानदार था।
सर ने अपने लंड की चमड़ी पीछे खींच ली और बीच से लाल रंग का टोपा निकल आया। सोनल की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी वो समझ ही नही पाई क्या करे क्या न करे। उसको रोना आ रहा था। घर मे चुलबुली रहने वाली बाहर आते ही डब्बू बन जाती थी जैसे विरोध करना उसके लिए पाप हो सब झेल जाती थी। उसका रोना देख कर सर ने कहा- अभी मेरी पत्नी आने वाली होगी, टाईम कम है। कल को सुबह नौं बजे मेरे घर आ जाना और घर बोल कर आना स्कूल में 3 बजे तक पढ़ाई होगी और फिर सर के पास पढ़ने जाना है. 6 बजे घर आऊंगी।
सोनल ने कुछ नही कहा और अपना बैग उठा कर वहा से निकल आयी। उसको रोना आ रहा था और सोच रही थी कल क्या होगा।
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08-27-2019, 01:25 PM,
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
घर आकर सोनल कुछ नही किया और सीधा अपने रूम में घुस गई। वैसे भी उसकी मम्मी आज कार चलाने सीखने गयी है। अकेले कमरे में बैठी वो बस अपने सर के लण्ड को याद कर रही थी, इतनी पास से पहली बार लण्ड देखा था उसने, वो कंफ्यूज थी कि क्या करे,क्या न करे। चाहती तो वो सर को सबक सिखा सकती है। बस एक बार अपने पापा को बताना है, लेकिन वो कुछ नही कर रही है ओर न ही सर के साथ करना
चाहती है। अजीब जद्दोजहद में पड़ी है।
सोचते सोचते पता नहीं कब नींद आ गई सोनल को। शाम के समय सो गई सोते ही सोनल के सपने में सर आके उसकी पैंटी खींच कर अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया और उसकी चूंत चाटने लगे फिर उसके हाथ पकड़ कर दोनों ऊपर बांध दिये और उसका टाप उतार कर ब्रा को फाड़ दिये, अब सर दोनों हाथों से बूब्स दबाने लगे और चूचियों को पकड़ कर अपने मुंह में लेकर चूसने लगे फिर उसकी गान्ड को चूमने लगे और चाटने लगे और बोले सोनल तेरी गांड के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।
फिर सीधा करके टांगे फैला कर अपनी जीभ से सोनल की चूंत को चाट चाट कर बिल्कुल पागल कर दिया फिर सर बोलने लगे कि अब मेरा लौड़ा चाटो सोनल और सोनल के मुंह में डाल दिया अपना मस्त लंड,सोनल पूरा लंड चूस चूस कर चाटी अब सर उसके बालों को पकड़ कर बोले सोनल मैं तुम्हें चोदू, सोनल बोली हां सर अपनी स्टुडेंट को चोदो ताकि पागल हो जाऊं, इतना चोदिये कि मैं पागल होके जन्नत का मजा ले लूं। सर बोले ओके सोनल मैं तुम्हें आज छिनाल की तरह चोदूंगा, सोनल ने कहा थैंक यू सर, तभी सर ने सोनल टांगें फैला कर चौड़ी कर दी और अपना लंड उनकी चूत में रख दिया और टांगे ऊपर कर दी और एक झटके में पूरा लौड़ा अन्दर उसकी चूत में डाल दिया।
और एक दम से सोनल की आंख खुल गयी। वो पूरे पसीने से भीगे हुए थी। अभी तक जो लड़की कभी अपनी चुत भी नही छुई हो आज उसे एक दम चुदाई भर सपना आया था। अभी भी उसके सामने सपने की यादें घूम रही थी। उसकी सांसे धौकनी के जैसे चल रही थी।
उधर आरति आज कार चलाने के लिए मनोज अंकल के स्कूल पहुच गयी थी। और अभी कार में मनोज अंकल के साथ कार में थी।
आरती थोड़ी सी ठिठकी पर अपने अंदर उठ रही सनश्य को रोक कर वो गाड़ी के अंदर बैठ गयी, मनोज अंकल भी सामने की सीट पर बैठ गये थे और गाड़ी गेट के बाहर की ओर चल दी गाड़ी सड़क पर चल रही थी और बाहर की आवाजें भी सुनाई दे रही थी पर अंदर एकदम सन्नाटा था शायद सुई भी गिर जाए तो आवाज सुनाई दे जाए। मनोज अंकल गाड़ी चला रहा था पर उसका मन पीछे बैठी हुई आरती को देखने को हो रहा था पर बहुत देर तक वो देख ना सका। पहली बार आरती उसके साथ अकेली आई थी वो सुंदरी जिसने कि उसके मन में आग लगाई थी उस दिन जब वो पार्टी में गई थी और आज तो पता नहीं कैसे आई है । (मनोज ने पार्टी में आरति का सेक्सी रूप देखा था।)
एक बड़ा सा लबादा पहने हुए सिर्फ़ साड़ी क्यों नहीं पहने हुए है आरती। मनोज ने थोड़ी ही हिम्मत करके रियर व्यू में देखने की हिम्मत जुटा ही ली देखा की आरती पीछे बैठी हुई बाहर की ओर देख रही थी गाड़ी सड़क पर से तेजी से जा रही थी । मनोज को मालूम था कि कहाँ जाना है , रवि ने कहा था कि ग्राउंड में ले जाना वहां ठीक रहेगा थोड़ी दूर था पर थी बहुत ही अच्छी जगह दिन में तो बहुत चहल पहेल होती थी वहां पर अंधेरा होते ही सबकुछ शांत हो जाता था पर उसे क्या वो तो इस घर का पुराना जानकार था और बहुत भरोसा था रवि को उसपर वो सोच भी नहीं सकता था कि आरती ने उस सोए हुए मनोज के अंदर एक मर्द को जनम दे दिया था जो कि अब तक एक लकड़ी के तख्त की तरह हमेशा खड़ा रहता था अब एक पेड़ की तरह हिलने लगा था उसके अंदर का मर्द कब और कहाँ खो गया था इतने सालो में उसे भी पता नहीं चला था वो बस जी सर् और जी मैडम के सिवा कुछ भी नहीं कह पाया था इतने दिनों में
पर उस दिन की घटना के बाद वो एक अलग सा बन गया था,जब पार्टी में आरती का मनमोहिनी रूप देखा था, जब भी वो खाली समय में बैठता था तो आरती का चेहरा उसके सामने आ जाता था उसके चेहरे का भोलापन और शरारती आखें वो चाह कर भी उसकी वो मुश्कान को आज तक नहीं भूल पाया था वो बार-बार पीछे की ओर देख ही लेता था पर नजर बचा के
और पीछे बैठी आरती का तो पूरा ध्यान ही मनोज अंकल पर था वो दिखा जरूर रही थी कि वो बाहर या फिर उसका ध्यान कही और था पर जैसे ही मनोज अंकल की नजर उठने को होती वो बाहर की ओर देखने लगती और आरती मन ही मन मुस्कुराई वो जानती थी कि मनोज के मन में क्या चल रहा है वो जानती थी कि मनोज अंकल के साथ आज वो पहली बार अकेली आई है और उस दिन के बाद तो शायद मनोज अंकल भी इंतजार में ही होंगे कि कब वो आरती को फिर से नजर भर के देख सके यह सोच आते ही आरती के पूरे शरीर में फिर से एक झुनझुनी सी फैल गई और वो अपने आपको समेट कर बैठ गई वो जानती थी कि मनोज अंकल में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो कुछ कह सके या फिर कुछ आगे बढ़ेंगे तो आरती ने खुद ही कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की
आरती- और कितनी दूर है अंकल
मनोज जो कि अपनी ही उधेड़ बुन में लगा था चलती गाड़ी के अंदर एक मधुर संगीत मई सुर को सुन के मंत्रमुग्ध सा हो गया और बहुत ही हल्के आवाज में कहा
मनोज- बस दो 3 मिनट लगेंगे
आरती- जी अच्छा
और फिर से गाड़ी के अंदर एक सन्नाटा सा छा गया दोनो ही कुछ सोच में डूबे थे पर दोनो ही आगे की कहानी के बारे में अंजान थे दोनो ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे पर एक दूसरे के आकर्षण से अंजान थे हाँ… एक बात जो आम सी लगती थी वो थी कि नजर बचा कर एक दूसरे की ओर देखने की जैसे कोई कालेज के लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने के बाद होता था वो था उन दोनों के बीच मे .
पीछे बैठी आरति थोड़ा सा सभाल कर बैठी थी और बाहर से ज्यादा उसका ध्यान सामने बैठे मनोज अंकल की ओर था वो बार-बार एक ही बात को नोटीस कर रही थी कि मनोज अंकल कुछ डरे हुए थे और, कुछ संकोच कर रहे है वो तो वो नहीं चाहती थी वो तो चाहती थी कि मनोज अंकल उसे देखे और खूब देखे उनकी नजर में जो भूख उसने उस दिन देखी थी वो उस नजर को वो आज भी नहीं भुला पाई थी उसको उस नजर में अपनी जीत और अपनी खूबसूरती दिखाई दी थी अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी दिखाई दी थी उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी उसे तो बस उस नजर का इंतजार था वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी उसके अंग अंग की भूख को जगा गई थी वो नजर रामु और मनोज में कोई फरक नहीं था आरती के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे उसके शरीर के दीवाने उसकी सुंदरता के दीवाने और तो और वो चाहती भी यही थी इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी जो नजर उसने रामु की और मनोज अंकल के अंदर पाई थी उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सबकुछ भूलकर उनकी नज़रों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी और जब वो पाती थी कि उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी कि उसमें से निकलना रामू काका या फिर मनोज अंकल के हाथ में ही होता था आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी पर मनोज अंकल तो बस गाड़ी चलाते हुए एक दो बार ही पीछे देखा था उस दिन तो पार्टी में रवि के साथ होते हुए भी कितनी बार मनोज ने पीछे उसे भीड़ मे नजर बचा कर देखा था और सीढ़िया उतरते उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था आज कहाँ गई वो दीवानगी और कहाँ गई वो चाहत आरति सोचने को मजबूर थी कि अचानक ही उसने अपना दाँव खेल दिया वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने सम्मर कोट के बटनों को खोलने लगी और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उसकोट से अलग करने लगी
मनोज जिसका कि गाड़ी चलाने पर ध्यान था पीछे की गति विधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था उसकी आखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उूुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफ्फ़ क्या नज़ारा था जैसे ही आरति ने अपने कोट को अपने शरीर से अलग किया उसका यौवन उसके सामने था आँचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज के ऊपर था नीचे गिरा हुआ था कोट को उतार कर आरति ने धीरे से साइड में रखा और अपने दाँये हाथ की नाजुक नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चुचियों को ढका या फिर कहिए मनोज को चिड़ाया कि देखा यह में हूँ और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी
जैसे कि कह रही हो लो अंकल मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है।
वो अपने को और भी ठीक करके बैठने की कोशिश कर रही थी ठीक से क्या अपने आपको अंकल के दर्शान के लिए और खुला निमंत्रण दे रही थी वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई और अपनी दोनों बाहों को सामने सीट पर ले गई और बड़े ही इठलाते हुए कहा
आरती- और कीईईतनीईिइ दुर्र्ररर है हाँ…
मनोज- जी बस पहुँच ही गये
और गाड़ी मैदान में उतर गई थी और एक जगह रोक गई
मनोज ने अपने तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलते समय पीछे पलटकर आरती की ओर देखते हुए कहा
मनों- जी आइए ड्राइविंग सीट पर
आरती ने लगभग मचलते हुए अपने साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतर कर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई इचे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई
बाहर मनोज़ डोर पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न सुंदरी को ठीक से देख रहा था वो अपनी नजर को नीचे नहीं रख पा रहा था वो उस सुंदरता को पूरा इज़्ज़त देना चाहता था वो अपनी नजर को झुका कर उस सुंदरता का अपमान नहीं करना चाहता था वो अपने जेहन में उस सुंदरता को उतार लेना चाहता था वो अपने पास से आरती को ड्राइविंग सीट की ओर आते हुए देखता रहा और बड़े ही अदब से उसका स्वागत भी किया थोड़ा सा झुक कर और थोड़ा सा मुस्कुराते हुए वो आरती के चेहरे को पढ़ना चाहता था वो उसकी आखों में झाँक कर उसके मन की बातों को पढ़ना चाहता था वो अपने सामने उस सुंदरी को देखना और देखना चाहता था वो एकटक आरती की ओर नजर गढ़ाए देखता रहा जब तक वो उसके सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई आरती का बैठना भी एक और दिखावा था वो तो मनोज को अपने शरीर का दीदार करा रही थी बैठते ही उसका आचाल उसके कंधे से ढलक कर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया सिर्फ़ ब्लाउसमें उसके चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थी मनोज के सामने उजागर हो गया पर आरती का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठे ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में था वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुस्कान थी पर बाहर खड़े हुए मनोज की तो जैसे जान ही निकल गई थी अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसे काम अग्नि से जलाती हुई स्वर्ग की उस अप्सरा को वो बिना पलके झपकाए आखें गढ़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था उसकी सांसें जैसे रुक गई थी वो अपने मुख से थूक का घुट पीते हुए डोर को बंद करने को था कि उसकी नजर आरती के साड़ी पर पड़ी जो की डोर से बाहर जमीन तक जा रही थी और आरती तो स्टियरिंग पर ही मस्त थी उसने बिना किसी तकल्लूफ के नीचे झुका और अपने हाथों से आरती की साड़ी को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से आरती की जाँघो को थोड़ा सा छुआ और डोर बंद कर दिया
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