10-07-2019, 01:27 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
गीता- सही तो कह रही थी अनिता , अब तुम पहले वाले नही रहे कब आते हो कब जाते हो हमे तो मालूम ही नही पड़ता है. और ज़िंदगी मे आगे बढ़ना ज़रूरी होता है पर पुराने बन्धनो को भी थाम कर चलना ज़्यादा ज़रूरी होता है.
मैं- तुम भी भाभी की तरह बात करने लगी मेरा भी मन करता है पर मेरी मजबूरी है जो मैं उसके पास नही जा सकता मेरी ताई को पहले से ही हमारी सेट्टिंग के बारे मे मालूम है , बीच मे भी वो मुझे टोका करती थी और अब तो उन्होने खुल्ला कह दिया है कि अगर मेरी बहू के साथ कुछ भी किया या उसके करीब आने की कॉसिश भी कि तो पूरे कुनबे के सामने वो बता देंगी . जानती हो फिर इस से क्या होगा.
सबसे पहले तो मेरे और रवि का रिश्ता खराब होगा और फिर बाकी बाते भी खुल जाएँगी.मैं अपने मज़े के लिए परिवार तो बर्बाद नही कर सकता ना.
गीता- तो अनिता को सॉफ बोल क्यो नही देते कि ये बात है.
मैं- वो नही समझेगी, फिर वो ताई के साथ पंगा करेगी और फिर भी सब बर्बाद हो जाएगा तो अच्छा है ना कि मैं ही बुरा बन लू.
गीता- खैर जाने दो. मुझे तो लगा था कि अब तुम भूल गये मुझे.
मैं- तुम्हे भूल कर कहाँ जाना है वो तो निशा साथ आई हुई थी तो थोड़ी फ़ुर्सत सी नही हो रही थी फिर प्रीतम से मुलाकात हो गयी. मैं सोच रहा था कि जाने से पहले तुमसे मिल कर जाउन्गा.
गीता- चलो किसी ने तो सोचा मेरे बारे मे.
बाते करते हुए हम दोनो उसके घर आ गये. मैने देखा आस पास और भी घर बन गये थे.
मैं- बस्ती सी बन गयी है इस तरफ तो.
गीता- हाँ, आजकल लोग खेतो मे ही मकान बनाने लगे हैं तो इस तरफ भी बसावट हो गयी है.
मैं- अच्छा ही हैं .
गीता- सो तो है.
मैं- काम ठीक चल रहा है तुम्हारा.
गीता- मौज है, अब खेती कम करती हूँ डेरी खोल ली है तो दूध--दही मे ही खूब कमाई हो जाती है कुछ मजदूर भी रख लिए है.
मैं- बढ़िया है .
गीता ने घर का ताला खोला और हम अंदर आए.
गीता- क्या पियोगे दूध या चाय.
मैं- तुम्हारे होंठो का रस.
गीता- अब कहाँ रस बचा हैं , अब तो बूढ़ी हो गयी हूँ बाल देखो आधे से ज़्यादा सफेद हो चुके है.
मैं गीता के पास गया और उसकी चुचियो को मसल्ते हुए बोला- पर देह तो पहले से ज़्यादा गदरा गयी है गीता रानी . आज भी बोबो मे वैसी ही कठोरता है.
गीता- झूठी बाते ना बनाया करो.
मैं-झूठ कहाँ है रानी , झूठ तो तब हो जब तेरी तारीफ ना करू.
मैने गीता के ब्लाउज को खोल दिया ब्रा उसने डाली हुई नही थी. उसकी चुचिया पहले से काफ़ी बड़ी हो चुकी थी .
मैं- देख कितना फूल गयी है और तू कहती है कि.
गीता- उमर बढ़ने के साथ परिबर्तन तो होता ही हैं ना
मैने गीता की छातियो को दबाना शुरू किया तो वो अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी.
गीता- आज रात मेरे पास ही रुकोगे ना.
मैं- हाँ, आज तेरी चूत के रस को जो चखना है.
गीता- चख लो . तुम्हारे लिए ही तो है ये तन-बदन आज मुझको भी थोड़ा सुकून आ जाएगा.
गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
|
|
10-07-2019, 01:27 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मैने गीता को टेढ़ी करके लिटा दिया और उसकी एक टाँग को मोडते हुए अपने लंड को चूत पर फिर से लगा दिया गीता ने अपने चूतड़ पीछे को किए और मैने एक हाथ साइड से ले जाते हुए उसकी चुचि को पकड़ के फिर से उसको चोदना शुरू किया . गीता की रस से भरी चूत मे मेरा लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था .सर्दी की उस शाम मे हम दोनो पसीने से तरबतर हुए बिस्तर पर धमा चौकड़ी मचा रहे थे.
कुछ देर बाद मैं उसी तरह उसकी लेता रहा फिर मैने उसे औंधी लिटा दिया और पीछे से उसके उपर चढ़ कर चोदने लगा गीता के चूतड़ बुरी तरह से हिल रहे थे ओर उसके बदन मे कंपन ज़्यादा होने लगा था तो मैं समझ गया था कि वो झड़ने वाली है मैने अपने हाथ उसकी साइड से दोनो चुचियो पर पहकुअ दिए और दबाते हुए उसकी लेने लगा.
करीब दो चार मिनिट बाद ही मुझे भी महसूस होने लगा कि मैं झड़ने वाला हू तो मैं तेज तेज घस्से लगाने लगा और गीता भी बार बार अपनी चूत को टाइट करने लगी . और फिर गीता के मूह से आहे फूटने लगी अपनी चूत को कसते हुए वो झड़ने लगी उसके चुतड़ों का थिरकना कुछ पलों के लिए शांत सा हो गया और मैं तेज़ी से उसको चोदते हुए अपने झड़ने की तरफ बढ़ने लगा.
उसके झड़ने के कुछ देर बाद ही मैने उसकी प्यासी चूत मे अपने वीर्य की धारा छोड़ दी और जब तक अंतिम बूँद उसकी चूत मे ना समा गयी मैं धक्के लगाता ही रहा. झड़ने के बाद मैने पास पड़ी रज़ाई हम दोनो पर डाल ली और गीता के पास लेट गया. वो वैसे ही पड़ी रही.
गीता- जान ही निकाल दी .
मैं- मज़ा आया कि नही.
गीता- इस मज़े की बहुत ज़रूरत थी मुझे.
मैं- आज रात तेरे पास ही रहूँगा.
गीता- सच कह रहे हो .
मैं- तेरी कसम.
गीता- आज खूब खातिर दारी करूँगी तुम्हारी.
थोड़ी देर बाद गीता उठी और अपनी चूत से टपकते मेरे वीर्य को साफ करने के बाद उसने वापिस अपना लेहना पहन लिया . मैने भी कचा पहन लिया और बाहर आकर सस्यू वग़ैरा किया. मैने घड़ी मे टाइम देखा साढ़े 6 हो रहे थे और चारो तरफ अंधेरा हो चुका था. आस पास के घरो मे बल्ब जल चुके थे.
गीता- खाने मे क्या बनाऊ
मैं- जो तेरा दिल करे.
गीता- खीर और चुरमा बनाती हूँ.
मैं- बना ले.
जब तक उसने खाना बनाया मैं बिस्तर मे लेटा टीवी देखता रहा पर असली खेल तो खाना खाने के बाद शुरू होना था. गीता मेरे लिए दूध का गिलास लेके आई तो मैने अपने लंड को गिलास मे डुबोया और गीता की तरफ देखा तो गीता समझ गयी कि मैं क्या चाहता हूँ. मैं बार बार अपने लंड गिलास मे डुबाता और गीता तुरंत मेरे लंड को अपने मूह मे भर लेती. इस तरीके से उसको लंड चुसवाने मे बहुत मज़ा आ रहा था. गीता ऐसे ही चुस्ती रही जब तक कि सारा दूध ख़तम नही हो गया. फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया और अपने होंठ उसकी चूत पर लगा दिए.
“सीईईईईईईईई” गीता कसमसा उठी लंबे समय से उसने अपनी चूत पर ऐसा अहसास नही पाया था . मैने चूत पर जीभ फेरनी शुरू की तो गीता के चूतड़ ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे. सुर्र्रर सुर्र्र्र्र्रर्प प़ मेरी जीभ उसकी पूरी चूत पर उपर नीचे हो रही थी , घोड़ी बनी हुई गीता की चूत का नशा रस बन कर बह रहा था और वो पागल हुए जा रही थी.
“कितना तडपाएगा जालिम, ठंडी क्यो नही करता मुझे” गीता लगभग चीखते हुए बोली . पर किसे परवाह थी औरत जितना मस्ती मे आके तड़पति है उतना ही मज़ा वो देती है और मैं तो आज गीता को पूरी तरह से पागल कर देना चाहता था. मैं उसके नशीले शबाब को आज बाकी बची रात मे चखना चाहता था पर मेरी उस इच्छा को मेरे फोन की रिंगटोन ने तोड़ दिया.
मैने देखा चाची का फोन आ रहा था ,एक नज़र मैने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर डाली और फिर फोन को कान से लगा दिया.
चाची- मनीष अभी घर आ.
मैं- आता हूँ पर क्या हुआ.
चाची- तू बस घर आ जा.
चाची ने बस इतना बोलके फोन काट दिया तो मुझे टेन्षन सी लगी.
गीता- क्या हुआ.
मैं- चाची का फोन था अभी घर बुलाया है.
गीता- इस वक़्त,
मैं- पता नही क्या बात है पर कुछ तो गड़बड़ है, मुझे अभी जाना होगा मैं बाद मे आउन्गा.
गीता- इस समय अकेले जाना ठीक नही होगा मैं चलता हूँ.
मैं- नही, और फिर तुम आओगी तो घरवालो को क्या कहूँगा कि मैं तुम्हारे साथ था.
गीता- तो फिर आराम से जाना.
मैने अपने कपड़े पहने और फिर गीता के घर से बाहर चल दिया आस पास खेत होने की वजह से ठंड कुछ ज्यदा सी थी और पैदल पैदल चलने से मुझे कुछ टाइम लग गया जब मैं घर पहुचा तो देखा कि चाची दरवाजे पर ही खड़ी थी.
मैं- क्या हुआ चाची ऐसे क्यो फोन किया मुझे.
चाची- अनिता……..
मैं- क्या किया भाभी ने.
चाची- अनिता, गुस्से मे घर से चली गयी है रवि से झगड़ा किया उसने .
मैं- ये भाभी भी ना पता नही क्या सूझता रहता है अब इतनी रात को क्या ज़रूरत थी पंगा करने की. रवि कहाँ है.
चाची- सब लोग उसको ही ढूँढ रहे है बड़ी जेठानी कह रही थी कि अनिता बोलके गयी है की आज किसी कुवे या जोहद मे डूबके जान दे देगी, मुझे तो बड़ी टेन्षन हो रही है, ये बहू भी ना पता नही क्या दिमाग़ है इसका पिछले कुछ दिनो से काबू मे ही नही है.
मैं- जान देना क्या आसान है जब गुस्सा शांत होगा तो आ जाएगी अपने आप.
|
|
10-07-2019, 01:28 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
हम बात कर ही रहे थे कि रवि भाभी को ले आया .
मैं- भाभी ये क्या तरीका है इतनी रात को सबको परेशान करने का.
भाभी- तुम अपने काम से काम रखो तुम्हे मेरे मामले मे पड़ने की ज़रूरत नही है.
रवि- चुप कर जा वरना मेरा हाथ उठ जाएगा.
मैं- रवि, कोई बात नही गुस्से मे है . होता है.
भाभी-हां हूँ गुस्से मे तो किसी को क्या है जब इस घर मे मेरी कोई हसियत ही नही है तो क्यो रहूं मैं यहाँ पर. सारा दिन बस गुलामी करती रहूं कभी पशुओ का तो कभी खेतो का बस मेरी ज़िंदगी इसी मे जा रही है.
मैं- तो मत करो , काम की दिक्कत है तो मत करो. पर इस बात के लिए कलेश क्यो करना.
रवि- मनीष बात काम की नही है , इसको होड़ करनी है निशा से इसको लगता है कि निशा के आने से घर मे इसकी चोधराहत कम हो गयी है सब लोग निशा को ज़्यादा प्यार करते है और निशा के आगे ये फीकी पड़ जाती है .
रवि की बात सुनकर मैं और चाची हैरान रह गये.
चाची- पर ये तो ग़लत बात हैं ना बेटा, निशा इस घर की खास मेहमान है और मनीष की सबसे प्यारी दोस्त, अनिता ये बिल्कुल ग़लत तुम अच्छी तरह से जानती हो कि निशा और मनीष साथ रहते है और जल्दी ही शादी भी करेंगे , अपनी देवरानी से कैसी जलन
भाभी- मैं क्यो रीस करूँगी उस से, भला उसकी और मेरी क्या तुलना.
मैं- भाभी सही कहा आपने, आप अपनी जगह हो और वो अपनी , आप इस घर की बड़ी बहू हो पर आपका फ़र्ज़ बनता है कि घर को एक धागे मे बाँध के चले आपके मन मे ऐसी छोटी बात आई यकीन नही होता.
भाभी- कुछ बातों का यकीन मुझे भी नही होता देवेर जी.
भाभी की ये बात अंदर तक जाकर लगी.
मैं- भाभी, आप आप ही रहोगे, निशा क्या कोई भी आपकी जगह नही ले पाएगा पर निशा भी अब इस घर की सदस्या है जितना हक आपका है उतना ही उसका भी इस घर पर है.
ताई जी- बिल्कुल सही कहा तुमने, और अनिता तुझे इस घर मे रहना है जाना है वो तेरी मर्ज़ी है पर कालेश नही होना चाहिए, शूकर है निशा यहाँ नही है वरना वो क्या सोचती और क्या इज़्ज़त रह जाती हमारी. मैने कभी बेटी और बहू मे कोई भेद नही रखा पर पता नही आजकल इसके दिमाग़ मे कहाँ से ये बाते आ रही हैं .
चाची- सही कहा जीजी आपने , अनिता तुम अभी जाकर आराम करो और ठंडे दिमाग़ से सोचना कि इस घर के प्रति तुम्हारी क्या ज़िम्मेदारिया है और रवि तुम भी शांत हो जाओ बाकी बाते सुबह होंगी . इस घर की शक्ति इसके एक होने मे है और मैं कह रही हूँ कि जो भी मत-भेद हो इतने गहरे ना हो कि इस घर की नीव को हिला दे. सो जाओ सब लोग और किसी बुरे सपने की तरह इस झगड़े को भूलने की कॉसिश करना .
धीरे धीरे सब लोग चले गये पर मैं हॉल मे ही सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा कि आख़िर अनिता भाभी के दिमाग़ मे ये बात आई कहाँ से.
उस रात नींद नही आई बस दिल परेशान सा होता रहा अनिता भाभी ने जिस तरह से आज ये ओछी हरकत की थी मुझे बहुत ठेस लगी थी . मैने कभी ऐसी उम्मीद नही की थी कि भाभी अपने मन मे ऐसा कुछ पाले हुए है. दिल किया कि निशा को फोन कर लूँ पर समय देख कर किया नही वो रात भी कुछ बहुत ज़्यादा लंबी सी लगी मुझे.
अगले दिन मम्मी- पापा आने वाले थे उनको मालूम होता कि रात को क्या तमाशा हुआ तो उनको भी बुरा लगता ही पर मैने अनिता भाभी से खुल क बात करने का सोचा ,
मालूम हुआ कि वो तो सुबह सुबह ही खेतो पर चली गयी थी तो मैं भी उसी तरफ मूड गया.आज ठंड भी कुछ ज़्यादा थी और हवा भी तेज चल रही थी अपनी जॅकेट मे हाथो को घुसेडे मैं पैदल ही कच्चे रास्ते पर जा रहा था कि मुझे रास्ते मे प्रीतम मिल गयी.
प्रीतम- मनीष कहाँ जा रहा है,
मैं- कुवे पर
प्रीतम- कल कहाँ था मैं इंतज़ार करती रही.
मैं- एक पंगा हो गया था यार अभी थोडा जल्दी मे हूँ फिर बताउन्गा तुझे
प्रीतम- रुक तो सही मैं भी चलती हूँ तेरे साथ थोड़ा समय बिता लूँगी तेरे साथ.
अब मैं फस गया था प्रीतम को मना कर नही सकता और वहाँ पर अनिता भाभी इसको देखते ही फिर से शुरू हो जाएगी और मैं बीच मे लटक जाउन्गा.
मैं- यार , अनिता भाभी है कुवे पर तुझे देखते ही वो फिर से शुरू हो जाएगी.
प्रीतम- गान्ड मराने दे उसको, उसकी तो आदत है , उसका बस चले तो तुझे अपने पल्लू मे बाँध के रख ले, मैं बता रही हूँ तुझे उस से दूर रहा कर, .
मैं- यार वो समझने को तैयार नही है कि वक़्त बदल चुका है पहले जैसा कुछ भी रहा है क्या तू ही बता.
प्रीतम- छोड़ ना उसको , मेरा मूड खराब मत कर. मैं सिर्फ़ तेरे साथ रहना चाहती हूँ कल वैसे भी मेरा ससुर आ रहा है तो चली जाउन्गी.
मैं- तू बोल रही थी कि देल्ही मे जाएगी.
प्रीतम- पति ले जाएगा तो जाउन्गी वैसे कह तो रहा था कि होली के बाद उसको क्वॉर्टर मिलेगा.
मैं- मैं भी देल्ही मे ही हूँ, मिलती रहना.
प्रीतम- ये भी कहने की बात है क्या. वैसे ठंड बहुत करवा रखी है आज तूने.
मैं- तुझ जैसा बम साथ है तो मुझे सर्दी कैसे लग सकती है प्यारी.
प्रीतम- देख ले कही तेरी भाभी को मिर्च ना लग जाए.
मैं- चल एक काम करते है आज तुम दोनो की साथ ही ले लेता हूँ.
प्रीतम- चल पागल, मज़ा नही आएगा.
मैं- क्यो नही आएगा तुम दोनो आपस मे होड़ कर लेना कि कौन अच्छे से चुदता है.
प्रीतम- कहाँ से आते है ये ख्याल तेरे मन मे ,
मैं- मुझे भी नही पता .
बाते करते करते हम लोग कुवे पर पहुच गये चारो तरफ सरसो की फसल खड़ी थी और खेती की ज़मीन होने पर ठंड भी बहुत लग रही थी.
मैं- प्रीतम तूने खेत मे चूत मरवाई है
प्रीतम- कयि बार. तुझे याद है अपन लोग तो जंगल मे भी करते थे.
मैं- तेरी बात ही निराली है दिलदार है तू
प्रीतम- अब कुछ नही बचा यार, अब तो बस बालक पालने है और ऐसे ही जीना है.
मैं- बात तो सही है . चल कमरे मे चलते है ठंड बहुत है बाहर.
हम लोग अंदर गये पर भाभी नही थी वहाँ पर.
मैं- प्रीतम डोली मे दूध रखा हो तो दो कप चाय बना ले ना.
प्रीतम- हे, मैं तो अपना दूध पिलाने को मरी जा रही हूँ तुझे दूध की पड़ी है.
मैं- रानी, तेरी इसी अदा पे तो मैं फिदा हूँ. पर पहले चाय बना ले.
|
|
10-07-2019, 01:28 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
प्रीतम मेरी बाहों मे सिमटने लगी कुछ सर्द मौसम और कुछ दिल मे भावनाओं का ज्वर बेशक प्रीतम मेरी मंज़िल नही थी पर सफ़र मे हमसफर ज़रूर थी . मैने उसे सीने से चिपका लिया और अपनी आँखो को मूंद लिया.
प्रीतम- ये सुकून पहले क्यो ना मिला.
मैं- सच कहूँ तो सुकून पहले ही था. आज तो बस हम भाग रहे है दौड़ रहे है पता नही किसके पीछे और किसलिए. सब रूठ गया अब ना घर है ना परिवार बस मुसाफिर बनके रह गये है भटक रहे है अपने आप को तलाश करते हुए, जानती है इस नौकरी ने मुझे रुतबा तो दिया पर मैं इसे अपना नही पाया हूँ. चाहे मेरी ड्यूटी घने जंगलों मे रही या बर्फ़ीली वादियो मे, देश मे या बाहर बस इस नौकरी के बोझ को कंधो पर महसूस किया है मैने. दुनिया नौकरी के लिए तरसती है पर मैं वापिस अपनी बेफिक्री को जीना चाहता हूँ.
प्रीतम- मुमकिन नही अब, समय आगे बढ़ गया है तुमको भी आगे बढ़ना होगा.
मैं- जानती हो अनिता भाभी के बहुत अहसान है मुझ पर उन्होने बहुत किया मेरे लिए . बेशक हमारे बीच शारीरिक संबंध थे पर एक दोस्त से बढ़कर, मैं बता ही नही सकता कि वो क्या थी और क्या है मेरे लिए, पर तुम्हारी बात को ले लो, समय बदल गया है भाभी को समझना चाहिए इस बात को कुछ चीज़े अब पहले सी नही रही. और जो बाते उन्होने निशा के लिए बोली दिल मे तीर की तरह चुभ रही है.
प्रीतम- बुरा मत मानियो पर अनिता को अभी काबू कर ले वरना ये आग जो वो लगा रही है सारा कुनबा जलेगा इसमे. कल को जब निशा के आगे तुम्हारे इन संबंधो की बात आएगी तो चाहे वो कितना भी विश्वास करती हो तुम पर , उसका दिल तो टूट ही जाएगा ना तब तुम क्या करोगे याद रखना औरत की नज़र मे एक बार गिरे तो उठ नही पाओगे. तुम्हे सदा ही अपना माना है इसलिए कहती हूँ अनिता को समझा लो .
मैं- सोचा तो है भाभी से बात करके कोई रास्ता निकालूँगा.
प्रीतम- बेहतर रहेगा यार.
प्रीतम ने अपना हाथ मेरी जॅकेट मे डाल दिया और मेरे सीने को सहलाने लगी.
मैं- याद है कैसे तेरे जिस्म को चाशनी मे भिगो कर खाया करता था मैं .
प्रीतम- नादानियाँ थी वो सब, पर आज मीठी यादे है .
मैं- पर उस टाइम तू टॉप थी गाँव की, हर कोई बस तेरे आगे पीछे ही घूमता था .
प्रीतम- चढ़ती जवानी की नादानियाँ, आज सोचो तो हँसी आ जाती है. याद है एक बार मेरी माँ ने बस पकड़ ही लिया था अपने को.
मैं- काश पकड़ ही लेती तो ठीक रहता ना.
प्रीतम- अच्छा जी तब तो सिट्टी – पिटी गुम हो गयी थी.
मैं- तब आज जितना हौंसला कहाँ था .
प्रीतम- क्या फ़ायदा इस हौंसले का , अब हम नही है.
मैने अपनी छाती पर उसका रेंगता हाथ पकड़ लिया और थोड़ा सा और उसको अपने करीब कर लिया.
प्रीतम- निशा को भी ऐसे ही पकाते हो क्या तुम
मैं- ये तो निशा ही जाने, कभी कहती नही कुछ ऐसा वो.
प्रीतम- समझदार लड़की है मुझे खुशी है कोई तो मिला जो तुमको थाम सकेगा.
मैं- अभी तो तुम ही थाम लो ना मुझे.
प्रीतम- मैं तो हमेशा ही महकती हूँ तुम्हारे अंदर कही ना कही.
प्रीतम ने करवट ली और मेरे उपर आ गयी अगले ही पल मेरे होंठ उसके होंठो की क़ैद मे थे मैने बस उसकी पीठ पर अपनी बाहे कस दी और खुद को उसके हवाले कर दिया. उसका चूमना कुछ ऐसे था जैसे चूल्हेस की दहक्ति लौ. उसके किस करने मे कुछ तो बात थी मेरे हाथ उसकी मांसल गान्ड को सहलाने लगे थे और आवेश मे मैने उसकी पाजामी को नीचे सरका दिया.
मेरे अंदर महकती उसकी सांसो ने मुझे उत्तेजित करना शुरू कर दिया था.कुछ ही देर मे हम दोनो के कपड़े चारपाई के नीचे पड़े थे और हम दोनो के दूसरे के जिस्म को रगड़ते हुए किस करने मे खोए हुए थे. प्रीतम के बदन पर बढ़ती हुई उमर के साथ जो निखार आया था उसने उसको और भी मादक बना दिया था . प्रीतम का हाथ मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे भर चुका था जिसे वो अपनी चूत पर तेज तेज रगड़ रही थी. उसकी बेहद गीली चूत पर बस एक हल्के से धक्के की ज़रूरत थी और मेरा लंड सीधा उन गहरी वादियो मे खो जाता जिसकी गहराई को शायद ही कभी कोई नाप पाया हो.
भयंकर सर्दी के मौसम मे एक रज़ाई मे मचलते दो जवान जिस्म एक दूसरे मे समा जाने को बेताब हो रहे थे. और जैसे ही प्रीतम का इशारा मिला मैने अपने लंड पर ज़ोर लगा दिया प्रीतम की चूत ने अपने पुराने साथी का मुस्कुराते हुए स्वागत किया और मैं पूरी तरह से उ पर छा गया .
“आह, आराम से क्यो नही डालता तू हमेशा आडा टेढ़ा ही जाता है ” प्रीतम ने कहा.
मैं- ज़ोर लग ही जाता है जानेमन.
प्रीतम- ज़ोर लग ही गया है तो अब पूरा लगाना .
प्रीतम का यही बेबाकपन मुझे बहुत पसंद था उसके इन्ही लटको झटको पर तो मैं फिदा था पहले भी और आज भी उसके नखरे जानलेवा ही थे. उसने अपनी टाँगे उठा कर मेरे कंधो पर रख दी और मैं उसकी छाती को मसल्ते हुए उसकी चूत मारने लगा. खाट चरमराने लगी .
प्रीतम- ये भी जाएगी क्या.
मैं- पता नही पर आज तू खूब चुदेगि ये पक्का है .
प्रीतम- सच मे
मैं- देख लियो.
प्रीतम- चल दिखा फिर.
मैं- आज तू देख ही ले, आज जब तक तेरे पुर्ज़े ना हिला दूं उतरूँगा नही तेरे उपर से.
प्रीतम- कसम है तुझे अगर उतरा तो जब तक मैं ना चीखू, ना चिल्लाऊ उतरना नही.
मैं- नही उतरूँगा. आज पुरानी यादो को ताज़ा कर ही लेते है जानेमन .
प्रीतम ने अपनी टाँगे उतारी और अपने होंठो को किस के लिए खोल दिया.
|
|
10-07-2019, 01:28 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
अपनी जीभ से मेरी जीभ को गोल गोल रगड़ते हुए मेरी नस-नस मे मादकता भर रही थी वो और मैं सच कहता हूँ कि मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो मुझे जीवन मे कुछ ऐसी लड़कियो-औरतो के साथ जीने का मौका मिला जो बेस्ट इन क्लास थी. चूत तो सबके पास होती है पर ज़िंदगी मे कुछ लोग बस ऐसे आपसे जुड़ जाते है कि बेशक उन रिश्तो का कोई नाम नही होता पर उनकी अहमियत बहुत होती है.
गहरी सर्दी मे भी हम दोनो की बदन से पसीना अब टपकने लगा था रज़ाई कब उतर गयी थी मालूम ही नही हुआ था. एक दूसरे के होंठो को शिद्दत से चूस्ते हुए होड़ सी मच गयी थी कि आज एक दूसरे को पछाड़के ही दम लेना है पर प्रीतम को हराना आसान कहाँ था, वो तो हमेशा से खिलाड़ी थी इस खेल की और ये बात ही उसे औरो से जुदा करती थी.कुछ देर बाद प्रीतम मेरे उपर आ गयी और ज़ोर ज़ोर से उछलने लगी.
उसकी मोटी मोटी चुचिया बहुत जोरो से हिल रही थी और चूत से टपकता पानी पच पच की आवाज़ कर रहा था.
“आज तुझे इतना थका दूँगी कि तू याद रखेगा”अपनी उखड़ी सांसो को समेट ते हुए वो बोली.
मैं- ना हो सकेगा बावली,फ़ौज़ी हूँ मारना मंजूर है पर थकुन्गा नही चाहे लाख कॉसिश कर ले.
प्रीतम- ऐसी की तैसी तेरी और तेरी फ़ौज़ की.
प्रीतम ने अपने दोनो हाथ मेरे कंधो पर रखे और एक तरह से मेरे उपर लेट गयी अब वो अपनी भारी गान्ड का पूरा ज़ोर लगा सकती थी और उसने बिल्कुल वैसा ही करते हुए अपने चुतड़ों को पटकना शुरू कर दिया , तो मैं जैसे पागल ही हो गया , चुदाई का मज़ा पल पल बढ़ता ही जा रहा था , उपर से जिस दीवानगी के साथ वो मुझे किस कर रही थी मुझे लगा कि छोरी पागल तो नही हो गयी.मैने उसे अपनी बाहों मे कस लिया और उसका साथ देने लगा, नीचे से मेरे धक्को ने भी रफ़्तार पकड़ ली तो चुदाई का मज़ा दुगना हो गया.
मेरे होंठो को इतनी बेदर्दी से अपने मूह मे भरा हुआ था उसने कि सांस लेना मुश्किल हो गया था उपर से उसके दाँत जैसे मेरे होंठ को आज चबा ही जाने वाले थे और जिस हिसाब से मुझे दर्द हो र्हा था लगता था कि होंठ कट गया होगा .पर अब उसका बोझ संभालना मुश्किल हो रहा था तो मैने उसे घोड़ी बना दिया और क्या बताऊ यार उसका पिछवाड़ा इतना मस्त था कि पूछो ही मत.शायद अब मुझे समझ आया था की आख़िर क्यो उसे हमेशा से अपने हट्टी-कट्टी होने का नाज़ क्यो था.मैने अपना टोपा धीरे से उसकी चूत मे सरकाया और फिर निकाल लिया, फिर सरकाया और फिर निकाल लिया ऐसा कयि बार किया.
प्रीतम- मनीष चीटिंग मत कर ऐसे ना तडपा अभी पूरा मज़ा आ रहा है तो ठीक से कर.
मैं- कितना अच्छा लगता है ना जब तेरी भोसड़ी मे लंड को ऐसे आते जाते देखता हूँ.
प्रीतम- ज़िंदगी का एक ये ही तो मज़ा है प्यारे, बाकी तो सब उलझने ही है.
प्रीतम ने अपने पिछले हिस्से को पूरी तरह से उपर उठा लिया जिसकी वजह से मुझे भी उँचा होना पड़ा पर चुदाई मे कोई कसर नही थी, एक के बाद एक वो झड़ती गयी, तरह तरह के पोज़ बदलते गये पर ना वो थक रही थी और ना मैं रुक रहा था.
“और और्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर अओर्र्र्ररर ज़ोर्र्र्र्र्र्ररर सीईईईई आआहह आहह आहह” प्रीतम अब सब कुछ भूल कर ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी थी पर किसे परवाह थी, किसे डर था.उसके गालो पर मेरे दाँत बारबार अपने निशान छोड़ रहे थे . अब ये चुदाई चुदाई ना होकर पागलपन की हद तक पहुच गयी थी.
“और ज़ोर से चोद और दम लगा बस एक बार और झड़ना चाहती हूँ एक बार और मंज़िल दिखा दे मुझे आआआआआआआआआआआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई” प्रीतम बडबडाने लगी.
मैं उसकी भारी गान्ड को सहलाते हुए उसकी पीठ पर किस कर रहा था और वो पागल हुए जा रही थी.करीब पाँच-छे मिनिट और घसम घिसाई हुई और फिर उसने अपने अपने नाख़ून मेरी कलाईयों मे गाढ दिए इतना ज़्यादा मस्ता गयी थी वो इस बार जो वो झड़ी मुझे भी लगा कि बस पानी निकलने ही वाला हैं मैने उसके कान मे कहा कि चूत मे ही गिरा दूं क्या तो उसने मना किया और उठ कर तुरंत मेरे लंड को मूह मे भर लिया.
उसकी जीभ की गर्मी को मैं बर्दास्त नही कर पाया और अपनी मलाई से उसके मूह को भरने लगा जिसे बिना किसी शिकायत के उसने पी लिया.जैसे ही मेरा वीर्य निकला मेरे घुटने कांप गये और मैं बिस्तर पर पड़ गया.
प्रीतम- कहा था ना दम निकाल दूँगी.
मैं- हां,दम निकाल ही दिया तूने जानेमन.
उसने रज़ाई नीचे से उठाई और हम दोनो के उपर डाल ली.कुछ देर बस पड़े रहे ऐसे ही फिर मैं उठा कच्छा पहना और बाहर को चला .
प्रीतम- कहाँ जा रहा है.
मैं- पानी पीने.
प्रीतम- तुझे चोदने के बाद ही प्यास क्यो लगती है
मैं- हमेशा से ऐसा ही है पता नही क्यो.
मैने दरवाजा खोला और बाहर आया तो देखा कि खेली पर भाभी बैठी हुई है.मैने पहले तो पानी पिया .
मैं- भाभी आप कब आई.
भाभी- जब तुम उस कुतिया के साथ कचरा फैला रहे थे.
मैं-भाभी, आप कब्से ऐसे रिक्ट करने लगे.हो क्या गया है आपको आजकल प्रीतम कोई पराई है क्या और उसकी भी अहमियत है मेरे जीवन मे.
भाभी- हाँ जानती हूँ , मेरे अलावा सब किसी की अहमियत है तेरे पास. वो तो मैं ही पागल हूँ जो पता नही क्या क्या सोच लेती हूँ. सारा दोष मेरा ही हैं , मुझे क्या पड़ी है तुम चाहे किसी के पास भी मूह मारो. अब बड़े जो हो गये हो साहब हो गये हो.
मैं- क्या बोल रही हो भाभी, आपके लिए तो हमेशा ही आपका देवेर ही रहूँगा ना, पर अब चीज़े बदल भी तो गयी है ना टाइम देखो कितना बदल गया है .
भाभी- हाँ, तभी तो ….. खैर, मुझे क्या मुझे कुछ समान लेना है अंदर से फिर जा रही हूँ तुम्हे जो करना है करो.
भाभी उठी और अंदर कमरे मे गयी मैं पीछे पीछे आ गया. भाभी ने अंदर प्रीतम को देखा पर कुछ कहा नही. और वापिस जाने लगी तो मैने भाभी का हाथ पकड़ लिया.
भाभी- हाथ छोड़ मेरा.
मैं- रूको तो सही.
भाभी- मैने कहा ना हाथ छोड़.
मैं- आपका और प्रीतम का पंगा क्या है सुलझा लो ना.
प्रीतम- रहने दे ना मनीष, ये बड़े घर की बहू हम नाली के कीड़े इसका और मेरा कैसा साथ.
मैं- यार तुम दोनो ही मेरे लिए कितने इंपॉर्टेंट हो पता हैं ना फिर कम से कम मेरी खुशी के लिए ही मान जाओ.
|
|
10-07-2019, 01:28 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
भाभी- अब तुम्हारा तुम देखो मैं अपना देख लूँगी . वैसे भी मुझे भी कोई शौक नही है किसी के आगे-पीछे चक्कर काटने का,तुम अपने मे मस्त रहो मैं अपने मे. अब एक परिवार है तो आमना-सामना होता ही रहेगा बाकी तुम अपनी जगह मैं अपनी जगह.अनिता के इतने बुरे दिन भी नही आए है की उसे लोगो का मोहताज होना पड़े. ठीक है आज मेरा वक़्त खराब है और तुम बड़े हो गये हो तो ले लो अपने फ़ैसले, जो करना है करो आज के बाद मैं आगे से तुम्हे कुछ नही कहूँगी.
मेरा दिमाग़ सच मे झल्लाने लगा था जहाँ मैं भाभी को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था उतना ही उनके दिल मे मैल भरता जा रहा था.मैने फिर भी एक कोशिश की उनको समझाने की पर वो टस से मस ना हुई और चली गयी रह गये मैं और प्रीतम.
प्रीतम- इसको नशा बहुत है बड़े घर की होने का.
मैं- क्या बड़े घर की है यार. मैं क्या बदल गया , अब जो काम है वो तो करना ही पड़ेगा ना. साल मे मुश्किल से इतने ही दिन मिलते है और यहाँ आओ तो इनके ये तमाशे यार अब टाइम के अनुसार तो चलना पड़ेगा ना. बीते कुछ सालो मे दुनिया बदल गयी है तुम और हम तो इंसान ही हैं ना , मैं घर ना बसाऊ क्या. माना ठीक है, तब बच्पना बहुत है और जवानी का जोश भी हो गया और फिर मज़े तो दोनो ने ही किए थे ना. पर ज़िंदगी मे और भी चीज़ों को देखना पड़ता है .
प्रीतम- यही बात तो अनिता समझ नही रही है. खैर ,मूड खराब मत कर वैसे भी मैं जा रही हूँ फिर देखो कब मुलाकात हो . अब तू ऐसे रहेगा तो मुझे भी बुरा लगेगा.
कुछ देर सुस्ताने के बाद एक बार और हम ने चुदाई की फिर कुछ खाया पिया और फिर उसको तो जाना ही था . मैं उसको कुछ देना चाहता था पर उसने मना कर दिया .
घर गया तब तक मम्मी- पापा भी वापिस आ चुके थे तो थोड़ी बहुत बाते उनसे भी हो गयी. वैसे भी अगले दिन मुझे भी देल्ही के लिए निकलना था तो थोड़ा बहुत टाइम पॅकिंग मे निकल गया . मैं फादर साब से बात करना चाहता था पर कह नही पाया तो दिल की बात दिल मे लिए मैने बस पकड़ ली देल्ही के लिए. इस बार जब गाँव से चला तो ऐसा लगा कि पीछे कुछ रह गया है.एक अजनबी पन सा साथ लेकर मैं चला था इस बार अपने सफ़र मे. निशा मुझे देखते ही खुश हो गयी थी.रात को हम दोनो एक दूसरे के पास पास बैठे थे.
निशा- सोच रही हूँ, बुआ के बेटे की शादी है तो कुछ शॉपिंग कर लूँ
मैं- जो तेरा दिल करे , कर ले.
वो- तुम ही बताओ क्या गिफ्ट खरीदे.
मैं- कहा ना, जो तुम्हारा दिल करे. जो तुम्हे पसंद है वो ही मेरी पसंद है.
निशा ने मेरे काँधे पर अपना सर रख दिया और पास बैठ गयी. अक्सर हमारे पास कहने को कुछ नही होता था, दिल अपने आप समझ लिया करते थे दिलो की बाते. अगर निशा नही होती तो मेरा क्या होता मिथ्लेश के जाने के बाद जैसे उसने थाम लिया था मुझे, ज़िंदगी मे फिर से मुस्कुराने की वजह थी तो वो निशा थी, मेरी निशा.
और बहुत विचार करके मैने फ़ैसला किया कि निशा ही मेरी ज़िंदगी की डोर बनेगी. अगली शाम मैं उसे लेके झंडेवालान मे माता के मंदिर ले गया.
निशा- यहाँ क्यो आए है हम
मैं- कुछ कहना था तुमसे.
निशा- हाअ,
मैने वो दुल्हन का जोड़ा जिसे निशा ने पसंद किया था , जिसे उसकी नज़रों से बचाकर मैं खरीद लाया था मैने उसके हाथों मे रख दिया.
वो हैरान रह गयी थी , उसके चेहरे पर जो खुशी थी हां उसी को तो मैं देखना चाहता था.
निशा- मज़ाक कर रहे हो ना मनीष.
मैं- नही, इस से पहले कि मैं टूट कर बिखर जाउ, निशा मुझे थाम लो मुझे अपना बना लो. मुझसे शादी करोगी निशा.
निशा की आँखो से आँसू बह चले, पर उसके चेहरे पर मुस्कान थी , जो मेरे दिल को धड़का गयी थी. निशा ने बस अपनी बाहे फैला दी और मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. जैसे गरम रेत पर बरसात की कुछ बूंदे गिर जाती है उतना ही करार मुझे उस पल था. जल्दी ही वो मेरे सामने दुल्हन का जोड़ा पहने खड़ी थी. मैने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी , उसका हाथ अपने हाथो मे थामे फेरे लेते हुए मैं और वो अपनी नयी ज़िंदगी के सपने सज़ा रहे थे, मैं कभी नही सोचा था कि निशा मेरी जीवनसाथी बनेगी पर उपर वाले ने शायद उसे ही चुना था मेरे हम सफ़र के रूप मे. कहने को तो वो बस सात फेरे थे पर मैं और निशा जानते थे कि हमारा बंधन अब दो जिस्म एक जान हो गया था.
हमारे रिश्ते को अब एक नाम मिल गया था, शादी के बाद हम दोनो वही पर सीडीयो पर बैठे थे.
निशा- कभी सोचा नही था ना.
मैं- तुम हमेशा से मुझसे प्यार करती थी ना
निशा- तुम जानते हो ना. मेरा था ही कौन एक सिवाय तुम्हारे.
मैं- कभी कभी डर लगता है मुझे
निशा- क्यो.
मैं- मेरी तकदीर ही ऐसी है .
निशा- अब से मैं तकदीर हूँ तुम्हारी, मैं तुम्हारे भाग्य को अपने हाथो की लकीरो मे लेके चलूंगी,
मैने उसका माथा चूम लिया. और रात होते होते हम घर आ गये.
मैने घर आके सबसे पहले पापा को फोन किया.
मैं- एक बात बतानी थी आपको.
पापा- हाँ बेटे, सब ठीक तो हैं ना.
मैं- सब ठीक है पापा, वो मैने , वो मैने शादी कर ली है .
पापा- चलो कुछ तो ठीक हुआ तुम्हारी ज़िंदगी मे पर किस से.
मैं- निशा से पापा.
पापा- अब मुझे चैन मिला , निशा ही तुम्हे ठीक रखेगी, रूको मैं तुम्हारी मम्मी को बुलाता हूँ.
और फिर मैने पापा की आवाज़ सुनी , खुशी से चहकते हुए, कुछ देर बाद फोन पर मम्मी थी अपनी ढेरो शिकायते लेकर.
मुंम्मी- हाय राम, क्या जमाना आ गया हमे बता तो देता , मुझे तो बुलाना ही नही चाहता फलना फलना.
मैं- सुन तो लो मेरी बात .
पर तभी निशा ने मेरे हाथ से फोन ले लिया .
|
|
05-11-2021, 08:32 PM,
|
|
deeppreeti
Member
|
Posts: 147
Threads: 3
Joined: Mar 2021
|
|
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
Good Story
|
|
|