RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“गुड … वैरी गुड।” आईने के सामने खड़ा देशराज प्रसन्नता के आवेगवश कांप रहा था—उसके एक हाथ में जुंगजू का फोटो था—आईने में नजर आ रही अपनी सूरत से फोटो का मिलान करता वह कहता चला गया—“आपने कमाल कर दिखाया डॉक्टर शुक्ला, खुद जुंगजू भी अगर मुझे अपने सामने खड़ा पाए तो इस भ्रम का शिकार हो जाए कि वह आईने के सामने खड़ा है—एक-एक दाग, एक-एक झुर्री मिला दी है आपने।”
“ये कमाल हमने नहीं, खुद तुमने किया है बरखुरदार।” शुक्ला ने नाक पर सरक आए चश्मे को आदत के मुताबिक दुरुस्त करते हुए कहा—“हम बार-बार एक ही बात रटे जा रहे थे—यह कि ऐसा असंभव है मगर तुमने असंभव को संभव कर दिखाया—तुम्हारे ही दिमाग का आइडिया था और तुम्हारी ही हिम्मत थी जिसके कारण ये सब हो सका—वर्ना … वर्ना कोई खुद पर इस तरह तेजाब डालकर बदसूरत नहीं बन सकता—ऊपर वाला तुम्हें तुम्हारे मिशन में कामयाबी दे देशराज—तुम्हारी ललक और तुम्हारी देशभक्ति को ये डॉक्टर सैल्यूट मारकर सलाम करता है।”
“जो चमत्कार हुआ है उसका सारा श्रेय मुझे दे डालना आपकी महानता है डॉक्टर शुक्ला—आइडिया मेरा जरूर था मगर उसे आपके अलावा दुनिया का कोई शख्स परवान नहीं चढ़ा सकता था।
“तुम लोग एक-दूसरे का प्रशस्तिगान करते रहोगे या मुख्य मुद्दे पर भी आओगे?” काफी देर से खामोश खड़े कमिश्नर शांडियाल ने कहा—“और तुम शायद वह भी भूल गए, डॉक्टर शुक्ला, जो मुश्किल से पांच मिनट पहले खुद कहा था।”
“क्या कहा था हमने?”
“यह कि अभी देशराज का बैड से उठना उचित नहीं है।”
“हां … हां, हमने ऐसा कहा था और ये ठीक भी है।” डॉक्टर शुक्ला ने इस तरह कहा जैसे सचमुच उसे अपनी कही बात शांडियाल के याद दिलाने पर ही याद आई हो—“मगर इस देशराज के बच्चे की जिद्द के आगे भला चलती किसकी है! जिद्द करके आईने तक आ ही गया।”
“हम इसे वापस बिस्तर पर लिटाने के लिए कह रहे हैं।”
“हां … हां … चलो बिस्तर पर लेटो।” कहने के साथ शुक्ला ने देशराज के बाजू पकड़ लिए।
“आप बेवजह मुझे बीमार बनाए दे रहे हैं सर।” बिस्तर की तरफ बढ़ते देशराज ने कहा—“असल में मैं खुद को इतना स्वस्थ महसूस कर रहा हूं कि इसी क्षण से जेल में जाकर जुंगजू का रोल अदा कर सकता हूं।”
“फिक्र मत करो—हमारे जाल में फंसा वह भी वही रोल अदा कर रहा है जो उसे समझाया गया था।”
“उस पर कड़ी नजर रखी जा रही है न?” बैड पर लेटते देशराज ने पूछा।
“नििश्चंत रहो, हर सांस का हिसाब रखा जा रहा है।”
“मामला कहां तक पहुंचा?”
“माचिस की जली हुई तिल्ली से लिखी पर्ची ब्लैक फोर्स के मैम्बर तक अगले ही दिन पहुंच गई थी—कल उसने पुनः एक पर्ची जुंगजू को पहुंचाई जिसमें लिखा है, ऑपरेशन रात के ठीक एक बजे शुरू होगा।”
“यानि मामला ठीक चल रहा है?”
“सब ठीक है—तुम फिक्र मत करो।”
“मगर अभी मुझमें और जुंगजू में एक फर्क है।”
“क्या?” शांडियाल और शुक्ला ने एक साथ पूछा।
“उसके मुंह में आगे वाले दो दांत नहीं हैं।”
“तो?”
जवाब में जब देशराज ने मुंह खोलकर अपने दोनों दांत बैड के पुश्त वाले लोहे के पाइप पर पटकने शुरू किए तो शांडियाल और शुक्ला बौखला उठे—परंतु उसे अपने दोनों दांत तोड़ लेने से न रोक सके।
देशराज का मुंह खूनमखून हो चुका था।
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घंटी बजते ही नंबर वन ने रिसीवर उठा लिया, मगर माउथपीस में बोला कुछ नहीं, रिसीवर के अंदर से अभी तक लाइन पर रिंग जाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी—नंबर टू, थ्री और फोर चेहरों पर जिज्ञासा के बेशुमार भाव लिए वन को देखे जा रहे थे।
एकाएक लाइन पर रिसीवर उठाए जाने का खटका उभरा, डी.आई.जी. चिदम्बरम की आवाज—“हैलो!”
“हम बोल रहे हैं।” दूसरी तरफ से कहा गया।
“ओह!” चिदम्बरम का चौकस स्वर—“सर, आप?”
“हम तुमसे मिलना चाहते हैं।”
“हुक्म कीजिए सर।”
“अभी, इसी वक्त … फौरन चल पड़ो।”
“इ-इस वक्त सर, अभी तो रात के बारह …।”
“शटअप!” गुर्राया गया—“दो लाख कमाना चाहते हो तो इसी वक्त आ जाओ।” इन शब्दों के बाद संबंध विच्छेद कर देने की ध्वनि उभरी—संक्षिप्त वार्त्ता को सुनते-सुनते नंबर वन के मस्तक पर पसीना छलछला आया था, अपने हाथ में मौजूद रिसीवर बहुत आहिस्ता से क्रेडिल पर तब रखा जब चिदम्बरम की तरफ से भी रिसीवर रखे जाने की हल्की आवाज सुन चुका।
“किसका फोन था?” नंबर फोर ने पूछा।
वन ने कहा—“शायद उसी का।”
“शायद?” टू का सवाल।
“उसने नाम नहीं लिया मगर अंदाज रहस्यमय था और चिदम्बरम सर … सर कह रहा था, हवा शंट थी उसकी।”
“क्या बात हुई?” थ्री ने पूछा।
“फोनकर्त्ता ने चिदम्बरम को इसी वक्त बुलाया है।”
“कहां?”
“जगह का नाम किसी के द्वारा नहीं लिया गया।”
“यानि चिदम्बरम को मालूम है उसे कहां पहुंचना है!”
“यकीनन।”
“क्या वह पहुंच रहा है?”
“रात के बारह बजे होने के कारण हिचका था परंतु रहस्यमय शख्स ने डांट दिया—साथ ही कहा, दो लाख कमाना चाहते हो तो फौरन आना पड़ेगा और जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।”
“अर्थात वह जानता है कि चिदम्बरम पहुंचेगा।”
“शायद।”
“गुड।” कहने के साथ नंबर टू उस खिड़की की तरफ लपका जिससे सड़क के पार डी.आई.जी. चिदम्बरम की कोठी का मुख्यद्वार ही नहीं बल्कि लॉन और वृक्षों से घिरी इमारत तक साफ नजर आ रही थी—लिखने की आवश्यकता नहीं रह गई है कि इस वक्त वे शांडियाल की मेहरबानी से डी.आई.जी. की कोठी के ठीक सामने वाली कोठी की ऊपरी मंजिल के एक कमरे में मौजूद थे और डी.आई.जी. के फोन से कनेक्टिड एक इन्स्ट्रूमेंट इस कमरे में था।
नंबर वन, थ्री और फोर भी खिड़की के नजदीक सिमट आए।
कुछ देर बाद डी.आई.जी. की कोठी के बैडरूम की लाइट ऑन हुई, फोर कह उठा—“वह रवानगी की तैयारी कर रहा है, हमें नीचे, अपनी गाड़ी के नजदीक पहुंच जाना चाहिए।”
बात सबको जंची, अतः ऐसा ही किया गया।
पंद्रह मिनट बाद उसकी गाड़ी उस गाड़ी को फॉलो कर रही थी जिसे चिदम्बरम स्वयं ड्राइव कर रहा था—स्पेशल केन्द्रीय कमांडो दस्ते के कमांडोज ने अपनी गाड़ी की हैडलाइट तो क्या, पार्किंग लाइट तक ऑफ कर रखी थी।
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