RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
तेजस्वी के जहन पर इस वक्त खौफ नहीं बल्कि प्रतिद्वन्द्विता की भावना सवार थी।
झुंझलाया हुआ था वह, खुद को गंजों से श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता था।
और!
ऐसा करने का एक हथकंडा उसकी जेब में था।
वही उसने किया!
इस वक्त थाने से आया एक पुलिसिया उसके साथ था।
पटरियों पर खड़ी एक खाली ट्रेन के टॉयलेट कर दरवाजा खोलकर तेजस्वी ने जेब से विग और फेसमास्क निकाला, बाथरूम के फर्श पर डाला और दरवाजा वापस बंद कर दिया।
सिपाही भौंचक्का रह गया, बोला—“ये आपने क्या किया साब?”
“खामोश रहकर तमाशा देखता रह और याद रख, इस कम्पार्टमेंट में हमने कभी कदम नहीं रखा।” कहने के साथ सिपाही को लगभग खींचता हुआ वह प्लेटफॉर्म पर आ गया—कुछ देर अन्य पुलिस वालों की तरह लुक्का की तलाश में भटकता रहा और तब, जब घूम-घामकर वापस कमिश्नर और केन्द्रीय कमांडो दस्ते के गंजों के नजदीक पहुंचा, एक गंजे ने व्यंग्यपूर्वक पूछा—“मिला?”
तेजस्वी ने निराशाजनक मुद्रा में गर्दन हिला दी।
गंजे यूं मुस्कुराए जैसे परिणाम के बारे में पहले से जानते हों।
“शायद आप लोगों का अनुमान सही है!” तेजस्वी ने हथियार डाल दिए—“वाकई किसी ने झूठा फोन करके मुझे बेवकूफ बनाया है और मैं बन गया।”
कोई कुछ नहीं बोला।
अंततः शांडियाल ने कहा—“एनाउन्स करा दो, पुलिस वाले सर्च बंद कर दें।”
तेजस्वी ने एक सब-इंस्पेक्टर को एनाउन्समेंट केन्द्र भेज दिया।
उस वक्त स्टेशन पर एनाउन्समेंट गूंज रहा था जब स्टेशन मास्टर लगभग दौड़ता हुआ उनके नजदीक पहुंचा और उखड़ी सांसों को नियंत्रित करने के प्रयास में हांफता हुआ बोला—“य-ये देखिए साहब, ये क्या है?”
उसके हाथ में विग और फेसमास्क देखकर चारों गंजे उछल पड़े।
शांडियाल भी चौंका।
और!
उस वक्त गंजे सवालिया नजरों से एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे जब बुरी तरह चौंक पड़ने की लाजवाब एक्टिंग करते तेजस्वी ने स्टेशन मास्टर के हाथ से विग और फेसमास्क लगभग झपट लिए—फेसमास्क को हवा में लहराता कह उठा वह—“अरे, ये-ये तो लुक्का … मगर … ये कैसे हो सकता है?”
“ल-लुक्का?” शांडियाल की खोपड़ी घूम गई—“लुक्का का फेसमास्क?”
“और वैसी ही विग जैसे वह बाल रखता था।” इस बार तेजस्वी ने विग हवा में लहरा दी।
शांडियाल की खोपड़ी में कुछ नहीं घुस रहा था, बड़बड़ा कर रह गए—“य-ये क्या मामला है?”
“क्या आप लोगों की समझ में कुछ आ रहा है?” तेजस्वी ने हैरान परेशान गंजों से पूछा—“लुक्का आदमी था या बहरूपिया, एक जीते-जागते आदमी की जगह उसके बाल मिल रहे हैं—चेहरा मिल रहा है, चक्कर क्या है ये?”
नंबर वन ने स्टेशन मास्टर से पूछा—“ये दोनों चीजें तुम्हें कहां से मिलीं?”
“पटरियों पर खड़ी एक खाली ट्रेन के टॉयलेट से सफाई कर्मचारी को मिली हैं—वह मेरे पास ले आया।”
स्टेशन पर हलचल मच गई थी—सफाई कर्मचारी को बुलाया गया, ढेरों सवाल किए गए—वह उन्हें उस टॉयलेट में ले गया जहां से विग और फेसमास्क मिला था। मगर नतीजा न कुछ निकलना था—न निकला—रह-रहकर एक-दूसरे से आंख मिला रहे गंजे जैसे पूछ रहे थे—‘क्या तुम्हारी समझ में कुछ आया?’
अंततः तेजस्वी ने कहा—“मेरे ख्याल में अब लुक्का हमें कभी नहीं मिलेगा।”
“क्यों?” नंबर फोर ने पूछा।
“लुक्का के रूप में जिस चेहरे को हम जानते थे, वह मिल गया है।”
“फिर?”
“फिर क्या?” तेजस्वी ने उनकी तरफ हिकारत भरी नजरों से देखा—“क्या इन दोनों चीजों को देखने के बावजूद इतनी सी बात तुम लोगों के भेजे में नहीं घुसी कि लुक्का कोई छोटा-मोटा गुण्डा नहीं बल्कि बहुत पहुंची हुई चीज था—ऐसी, जिसकी वास्तविक शक्ल तक से हम लोग वाकिफ नहीं हैं।”
“हम समझे नहीं इंस्पेक्टर, तुम कहना क्या चाहते हो?”
“या तो तुम लोग समझकर भी अनजान बन रहे हो या निरे बेवकूफ हो।” तेजस्वी ने गिन-गिनकर बदला लेना शुरू कर दिया—“इन दोनों चीजों की बरामदगी अपने आप चीख-चीखकर कह रही है कि दुनिया में उस शक्ल का कभी कोई आदमी था ही नहीं जिस शक्ल के आदमी को हम लुक्का कहते और समझते रहे—वह कोई और था जिसने इस शक्ल और विग की मदद से खुद को प्रतापगढ़ में लुक्का के नाम से मशहूर किया और जिसने ऐसा किया, जाहिर है कोई बहुत बड़ा खिलाड़ी रहा होगा—बड़े खिलाड़ी के मकसद भी बड़े होते हैं, वैसे भी—कोई किसी छोटे मकसद के लिए इतना बड़ा खेल नहीं खेलेगा कि खुद को किसी क्षेत्र विशेष में नकली चेहरे और नकली नाम से स्थापित कर ले—यह तो ऊपरवाला जाने कि वह कौन था, क्या खेल खेल रहा था या उसका क्या उद्देश्य था? मगर यह तय है, जब उसने देखा कि लुक्का बना रहकर पुलिस के चंगुल से बच नहीं पाएगा तो इस नकली परिचय से मुक्ति पा ली और अब … अब वह हमारी अगल-बगल में ही खड़ा हो तो हम उसे पहचान नहीं सकते।”
शांडियाल हैरान था जबकि चारों गंजे दिल ही दिल में कुबूल कर चुके थे कि तेजस्वी सारे मामले को ठीक-ठीक समझ रहा है—उसके दिमाग की दाद भी दे रहे थे जबकि खुलकर उनमें से एक ने इतना ही कहा—“लगता है, तुम ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर—वाकई, लुक्का एक काल्पनिक पात्र था जिसमें लोग उलझे रहे।”
“मेरा ख्याल है, अब यह बात आपकी समझ में आ गई होगी कि फोन झूठा नहीं था—न मैं भ्रमित हुआ—ना ही पुलिस विभाग—फोनकर्त्ता जो भी था, उसने स्टेशन पर लुक्का को देखा था और उसके बाद, लुक्का उसके लिए भी गधे के सींग की तरह गायब हो गया होगा।”
“अब ये सारी बातें शीशे की तरह साफ हैं।” नंबर एक को कहना पड़ा—“स्वीकार करते हैं इंस्पेक्टर, हम गलत थे और तुम सही—तुम पर किए गए कटाक्षों का हमें अफसोस है।”
तेजस्वी के सीने में धधक रही आग को ठंडक मिली।
“इन दोनों चीजों की बरामदगी के बाद जहां पेचीदगी बढ़ गई है वहीं मामला पहले से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है तेजस्वी!” कमिश्नर साहब गंभीर स्वर में कहते चले गए—“अब तक जहां लुक्का की तलाश हमें केवल योगेश हत्याकाण्ड का रहस्य खोलने जैसे छोटे उद्देश्य के लिए करनी थी वहीं, अब वे सारे सवाल हमारे सामने मुंह बाये खड़े हैं जो तुमने उठाए—लुक्का बना हुआ ये शख्स कौन था—क्या उद्देश्य था उसका—अपने उद्देश्य को पूरा कर चुका अथवा योगेश की हत्या के कारण मजबूरीवश समय से पहले लुक्का वाला बहरूप त्यागना पड़ा—इन सब सवालों के जवाब ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि वे जवाब प्रतापगढ़ में रचे जा रहे किसी बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश कर सकते हैं।”
“मैं सहमत हूं सर, मगर क्योंकि हमारे पास यह पता लगाने का कोई जरिया नहीं है कि ये विग और चेहरा किसके सिर और चेहरे पर फिक्स था, अतः आगे बढ़ने के लिए एकमात्र साधन योगेश के जीवन की छानबीन रह जाती है।”
“मतलब?”
“वह जो भी है, लुक्का के रूप में योगेश के सम्पर्क में था—योगेश का मर्डर किया है उसने—जाहिर है, कोई कारण रहा होगा—मुमकिन है वह कारण कहीं जाकर लुक्का बने व्यक्ति के कथित बड़े उद्देश्य से जुड़ता हो—योगेश हत्याकाण्ड का कारण जानने के लिए हमें उसकी जिंदगी में झांकना पड़ेगा—वह सचमुच स्मैक लेता था या नहीं—लेता था तो सप्लायर कौन था और बदले में योगेश से क्या चाहता था आदि, आदि।”
“चाहे जो करो तेजस्वी, चाहे जिसकी जिंदगी खंगालो—मगर हम इस रहस्य पर से पर्दा उठा देखना चाहते हैं।”
“आप न कहते तब भी मैं पूरा प्रयास करता सर।” तेजस्वी अपना सिक्का जमाने का कोई अवसर चूकना नहीं चाहता था—“आखिर ये मेरे थाना-क्षेत्र का मामला है, रहस्यों पर से पर्दा हटाना मेरी ड्यूटी है।”
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ट्रांसमीटर पर ठक्कर का गंभीर स्वर उभरा—“उसके बाद क्या हुआ?”
“हम लोग अपने ठिकाने पर लौट आए सर।” नंबर वन ने बताया—“इस आशा के साथ कि शायद नंबर फाइव इस बीच यहां पहुंच गया हो।”
“मगर वह नहीं पहुंचा?”
“तभी तो चिंतित होकर आपसे संपर्क स्थापित किया है।”
“हमारे ख्याल से अब वह कभी किसी को नजर नहीं आएगा नंबर वन।”
“ज-जी!” नंबर वन के हलक से चीख निकल गई—“क-क्या मतलब?”
“जो कुछ तुमने बताया, उससे स्पष्ट ध्वनित होता है कि नंबर फाइव अब इस दुनिया में नहीं है।”
“स-सर …।”
“अगर उसका उद्देश्य पुलिस से पीछे छुड़ाना था तो विग और फेसमास्क को जेब में डाल लेना काफी था—उन दोनों चीजों को ट्रेन के टॉयलेट में डालने की क्या जरूरत थी उसे?”
नंबर वन की जुबान तालू से जा चिपकी, कुछ कहते न बन पड़ा उस पर।
“हमें दुःख है नंबर वन—हालात की भाषा समझने में तुम अभी तक सक्षम नहीं हुए हो—परिस्थितियां चीख-चीखकर बता रही हैं—विग और फेसमास्क टॉयलेट में नंबर फाइव ने नहीं फेंके—ऐसा करने की उसे जरूरत ही नहीं थी—वह इतना ‘कूढ़मगज’ नहीं था, समझता होता कि अगर वे दोनों चीजें उसने टॉयलेट में छोड़ीं तो उनकी बरामदगी पुलिस को बता देगी कि लुक्का एक काल्पनिक व्यक्ति था और फिर उसकी तलाश शुरू हो जाएगी जो लुक्का बना—दोनों चीजों को अपनी जेब के हवाले करने में फायदा था ताकि पुलिस सदियों तक लुक्का को ढूंढती रहे।”
“तो क्या विग और फेसमास्क टॉयलेट में किसी और ने डाले?”
“हालात यही कह रहे हैं।”
“तब तो स्पष्ट है सर, उसका भेद किसी पर खुल गया होगा।”
“अब तुम्हारा जहन थोड़ा-थोड़ा सक्रिय हुआ है।”
“सवाल उठता है, किस पर—वह कौन है जिसने वे दोनों चीजें टॉयलेट में डालीं?”
“दो व्यक्तियों में से एक है—ट्रिपल जैड या इंस्पेक्टर तेजस्वी।”
“ज-जी?”
“ट्रिपल जैड का नंबर सैकिंड है, फस्र्ट नंबर पर तेजस्वी को रखा जाए तो गलत न होगा।”
“मैं समझा नहीं सर?”
“उसे दो काम सौंपे गए थे—ट्रिपल जैड का ठिकाना मालूम करना और इंस्पेक्टर को परखना—अगर वह योगेश को मारने से पूर्व ट्रिपल जैड का ठिकाना मालूम कर चुका था तो निश्चित रूप से वहां जाकर उससे भिड़ गया होगा, टॉयलेट से बरामद विग और फेसमास्क उनके टकराव का परिणाम बता रहे हैं।”
“यानि ट्रिपल जैड ने उसे …।”
“अगर वह ट्रिपल जैड का पता उगलवाए बगैर योगेश को खत्म करने की मूर्खता कर बैठा था तो तुरंत ही यह एहसास हो गया होगा कि इस गलती के लिए हम उसे क्षमा नहीं करेंगे—संभव है, अपनी इस मूर्खता पर पर्दा डालने के लिए इंस्पेक्टर को परखने पहुंच गया हो—वहां कोई गड़बड़ हुई हो।”
“इंस्पेक्टर को फस्र्ट और ट्रिपल जैड को सैकिंड नंबर पर किन कारणों से रखा जाए सर?”
“तुमने बताया—प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक लुक्का ने योगेश की टांगों पर गोली चलाई थी जो अचानक उसके बैठ जाने के कारण सिर में लगी—इससे लगता है नंबर फाइव की मंशा उसे मार डालने की न थी यानि तब तक वह योगेश से ट्रिपल जैड का ठिकाना नहीं उगलवा पाया था—अगर यह सच है तो वह ट्रिपल जैड से नहीं बल्कि इंस्पेक्टर से भिड़ा होगा—उधर, तुम्हारे मुताबिक स्टेशन पर इंस्पेक्टर और तुम लोगों के बीच इस बात को लेकर अच्छी-खासी झड़प हो गई थी कि लुक्का स्टेशन पर पहुंचा था या नहीं—यहां तक कि इंस्पेक्टर खीझ उठा था और फिर, वह स्वयं स्टेशन का एक चक्कर लगाकर आया—बाद में विग और फेसमास्क मिले, संभव है ये हरकत उसने खुद को तुम लोगों से श्रेष्ठ साबित करने के लिए की हो।”
“अब हमारे लिए क्या हुक्म है?”
“इंस्पेक्टर को अच्छी तरह टटोलो बल्कि हाथ धोकर पीछे पड़ जाओ उसके—लुक्का का रहस्य भी खोलना पड़े तो कोई गम नहीं—हालांकि हम यहां वी.आई.पी. की सुरक्षा व्यवस्था में व्यस्त हैं मगर मौका मिलते ही वहां आएंगे—चिरंजीव कुमार के दौरे से पहले प्रतापगढ़ में सब कुछ ठीक करना होगा।”
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