RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“ऑफिस के दरवाजे पर ताला लटकाकर चाबी अपनी जेब में डाल लीजिए।”
“तू ताला लगा—मैं वायरलैस पर मैसेज देता हूं।” तेजस्वी ने एक सिपाही से कहा—“तू मेरे साथ आ बे!”
सिपाही फौरन खड़ा हो गया।
“ऐसे ही चलेगा क्या?” तेजस्वी उसके खून से सने हाथ देखकर झुंझलाया—“इन्हें धोकर आ!”
“खून तो आपके जूतों पर भी लगा है सर।”
तेजस्वी ने बौखलाकर जूतों पर नजर डाली और दोनों जूतों की नोक पर लगे खून को देखकर अपने बाल नोच डालने को जी चाहा—जहां एक-एक सेकेंड भारी हो रहा था वहां एक के बाद दूसरी समस्या मुंह बाए खड़ी नजर आ रही थी—घबराकर उसने जूते उतारे, बोला—“जा—अपने हाथ और जूते धोकर जीप के पास पहुंच।”
चारों गड्डियां, विग और लुक्का का फेसमास्क तथा रिवॉल्वर जेब के हवाले करने के साथ वह ऑफिस के दरवाजे से बाहर निकलता हुआ चीखा—“ताला लगाकर चाबी मेरे पास ले आ पांडुराम।”
पैरों में केवल जुराब डाले आंधी-तूफान की तरह जीप के नजदीक पहुंचा और उखड़ी सांसों के साथ वह मैसेज प्रसारित करने में जुट गया जो कमिश्नर की दिशा रेलवे स्टेशन की तरफ मोड़ देने वाला था—मैसेज दे चुकने के बाद उसने राहत की आधी सांस ही ली थी कि सिपाही अपने हाथ और उसके जूते धोकर दौड़ता हुआ नजदीक आया—जूतों से पानी चूता देखकर तेजस्वी ने माथा पीट लिया, पट्ठा जूतों की नोक धोने की जगह उन्हें स्नान करा लाया था।
प्लेटफार्म पर कदम रखते ही तेजस्वी की नजर चार गंजों पर पड़ी।
माथा ठनका।
बल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि दिलोदिमाग को ऐसा झटका लगा जैसा अचानक चार शेरों से घिर जाने पर बकरी को लगता होगा।
भीड़ को चीरते हुए वे उसकी तरफ बढ़े।
तेजस्वी के मसामों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया।
नियंत्रित रखने की लाख चेष्टाओं के बावजूद दिमाग पर घबराहट काबिज होती चली गई— उनकी ‘एक्स-रे’ कर डालने वाली नजरों से बचने की खातिर तेजस्वी ने ऐसा प्रदर्शित किया जैसे उन्हें देखा ही न हो और उनकी तरफ पीठ करके प्लेटफार्म पर मौजूद भीड़ का निरीक्षण करने का अभिनय करने लगा।
ऐसा दृश्य था जैसे समूचे प्रदेश की पुलिस प्रतापगढ़ स्टेशन पर सिमट आई हो—चप्पे-चप्पे पर पुलिसिए तैनात थे और हर व्यक्ति को इस तरह घूर रहे थे जैसे वही लुक्का हो—इधर केन्द्रीय कमांडो दस्ते के चारों गंजे उसके नजदीक पहुंचने वाले थे, उधर तेजस्वी की नजर कमिश्नर पर पड़ी।
गंजों के कहर से बचने के लिए उसने शांडियाल के नजदीक पहुंचकर जोरदार सैल्यूट मारा।
“आ गये तुम?” शांडियाल के स्वर में व्यंग्य था।
तेजस्वी ने पूछा—“नजर आया सर?”
“एक-एक आदमी को चैक किया जा रहा है, लुक्का नजर नहीं आ रहा।”
तेजस्वी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला मगर उससे कोई आवाज निकलने से पहले ही एक हाथ ने उसके कंधे को स्पर्श किया—तेजस्वी को एहसास था कि ये हाथ चार गंजों में से किसी एक का है और मात्र इस एहसास के कारण ही संपूर्ण जिस्म में चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट दौड़ गया।
“हैलो इंस्पेक्टर!” इन शब्दों के साथ पहले एक गंजा सामने आया, उसके बाद बाकी तीनों भी सामने आ गये—तेजस्वी ने अपने चेहरे पर हैरत के समुचित भाव उत्पन्न करने के साथ पूछा—“आप लोग यहां?”
“क्यों?” एक ने धमाका किया—“क्या कुछ देर पहले तुमने हमें नहीं देखा था?”
“न-नहीं तो!” तेजस्वी का दिल उसकी पसलियों से सिर टकराने लगा।
“कमाल है!” दूसरा बोला—“हमें तो ऐसा ही लगा जैसे देखने के बावजूद हमें पहचाने न हो?”
तेजस्वी ने हंसने के प्रयत्न में अपनी बौखलाहट छुपानी चाही—“आप लोगों का हुलिया ही ऐसा होता है कि एक बार देखने के बाद कोई भूल नहीं सकता।”
“यही तो हम सोच रहे थे।” तीसरे ने कहा—“कि तुम हमें भूल कैसे गए?”
“असल में मेरी नजरें लुक्का को ढूंढ रही थीं।”
“फिर भी, कमिश्नर साहब को तुरंत देख लिया तुमने।” चौथा उसे घूर रहा था—“हम लोग लगभग कमिश्नर साहब के साथ ही यहां पहुंचे हैं—पांच मिनट हो गए, मगर लुक्का नजर नहीं आया।”
“क्या आप लोग भी उसी की तलाश कर रहे हैं?”
“हां!”
“क्यों?”
“क्यों से मतलब?”
“म-मेरा मतलब ये पुलिस का काम है।” तेजस्वी हड़बड़ा गया—“योगेश का मर्डर और लुक्का की तलाश आप लोगों के स्टैण्डर्ड से बहुत नीचे की बात है।”
“ये बात ट्रेनिंग के दरम्यान हमें घुट्टी की तरह पिलाई जाती है इंस्पेक्टर कि जहां रहो वहां घटने वाली छोटी-से-छोटी घटना से जुड़े रहो, क्योंकि छोटी-छोटी घटनाओं के सूत्र ही अंततः बड़ी वारदात से जाकर मिलते हैं।”
“हमारे ख्याल से तुम्हारी मिली इन्फॉरमेशन गलत थी तेजस्वी!” बेचैन नजर आ रहे शांडियाल ने कहा—“न लुक्का यहां है, न ही था।”
नंबर टू ने सीधे तेजस्वी से पूछा—“ये खबर तुम्हें दी किसने थी?”
तेजस्वी संभला—उसे मालूम था, जवाब देने में हुई हल्की सी चूक बवाले जान बन जाएगी—ये गंजे इतने काइयां हैं कि जरा-सा शक होने पर उसके मुंह से निकले हर शब्द की पुष्टि करने पर जुट जाएंगे, अतः मुंह से वे शब्द निकालने चाहिएं जिनकी पुष्टि न हो सके, बोला—“फोन पर सूचना मिली थी मुझे!”
“फोन पर?” नंबर थ्री उछल पड़ा—“किसका फोन था?”
“उसने अपना परिचय नहीं दिया—मैंने पूछा तो यह कहकर संबंध विच्छेद कर दिया कि आम खाओ इंस्पेक्टर, पेड़ गिनने से क्या लाभ?”
“और तुम आम खाने निकल पड़े?” नंबर फोर ने व्यंग्य किया।
नंबर दो बोला—“साथ ही वायरलेस पर ढिंढोरा पीट दिया ताकि सारा पुलिस विभाग आम खाने आ जुटे!”
“तुम्हें हो क्या गया है तेजस्वी?” शांडियाल झुंझला उठे—“एक अज्ञात व्यक्ति के फोन के बूते पर तुम यह मान कैसे बैठे कि लुक्का यहां होगा?”
“समझने की कोशिश कीजिए सर, ऐसे मौकों पर अज्ञात लोगों के फोन कई बार कारगर सिद्ध हो जाते हैं—ऐसा काम उस शख्स के दुश्मनों में से कोई करता है जिसे पुलिस तलाश कर रही हो और चाहता है कि उसका नाम भी ओपन न हो।”
“मेरे ख्याल से फोन झूठा था!” नंबर वन ने कहा।
“क्या मतलब?”
“लुक्का का यहां न मिलना अपने आप फोन को झूठा प्रमाणित कर देता है।”
“मैं नहीं मानता।” तेजस्वी तिलमिला उठा—“मुमकिन है लुक्का यहीं हो मगर हमें मिल न पा रहा हो या हम लोगों के पहुंचने से पहले रफूचक्कर हो गया हो—मेरा मतलब, उसके न मिलने से एकमात्र यही बात सिद्ध नहीं होती कि फोन झूठा था—कुछ और भी हो सकता है, कुछ भी—क्या ऐसे वाकये नहीं होते कि वांछित व्यक्ति वहीं कहीं छुपा होता है जहां तलाश किया जा रहा हो लेकिन मिल नहीं पाता?”
“यानि तुम्हें विश्वास है, फोन पर दी गई सूचना सही थी?”
“ऐसा कब कहा मैंने?” तेजस्वी अड़ गया—“मुमकिन है आप लोगों की धारणा सच हो, मगर अभी यह केवल धारणा है, प्रमाणित नहीं हो गया है।”
“तो प्रमाणित कब होगा?”
“जब लुक्का पकड़ा जाएगा—खुद बताएगा कि जब हम स्टेशन पर उसे तलाश कर रहे थे, तब वह कहां था?”
“तो तुम उसे तलाश करना चाहते हो?”
“कोशिश करना मेरी ड्यूटी है और फिर, अभी तो यहां पहुंचा हूं—आप लोगों ने अपनी बातों में उलझा लिया …।”
“इंस्पेक्टर साहब ठीक कह रहे हैं भाई।” नंबर फोर ने कहा—“इन बेचारों को अभी मौका ही कहां मिला है! जाइए इंस्पेक्टर साहब—सारा स्टेशन छान मारिए, शायद लुक्का आप ही का इंतजार कर रहा हो!”
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