RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
अगली सुबह!
जब तेजस्वी जीप ड्राइव करता हुआ थाने से बाहर निकला, तब उसके जिम्म पर धोबी के यहां से कुछ ही देर पहले आई कड़क वर्दी थी—सिर पर लगी कैप के पीतल के बैज को मानो रेत से मांज-मांजकर धोया गया था—पैरों में मौजूद भारी बूट इतने चमचमा रहे थे कि अक्स तक देखा जा सकता था और उन सबसे ज्यादा चमकदार थी वह मुस्कराहट जो तेजस्वी के होंठों का स्थाई श्रृंगार बनकर रह गई थी।
जो घोषणा थारूपल्ला द्वारा काली बस्ती में की गई थी—जाने कैसे पेट्रोल पर दौड़ने वाली आग की तरह उसकी खबर संपूर्ण प्रतापगढ़ क्षेत्र में फैल गई!
लोक आश्चर्यचकित थे!
तेजस्वी उनके लिए रोबिन हुड बन गया था।
जाने कैसे, लोगों के पास यह सूचना भी थी कि तेजस्वी आज सुबह काली बस्ती जाएगा—शायद यही कारण था वह जीप लेकर जिन रास्तों से गुजरा—सड़क के दोनों तरफ लोगों की भीड़ खड़ी मिली।
हालांकि किसी ने कुछ कहा नहीं किंतु चेहरे और आंखों में मौजूद भाव बता रहे थे, इस वक्त तेजस्वी देव-पुरुष बनकर उनके दिलों पर हुकूमत कर रहा है। … अपना स्पेशल रूल उसने ड्राइविंग डोर पर इस तरह बांध रखा था कि दूर ही से नजर आ जाए।
झावेरी नदी का एक किलोमीटर लम्बा पुल पार करके काली बस्ती में प्रविष्ट होते ही स्थितियां बदल गईं।
हालांकि भीड़ बहुत ज्यादा थी—ऐसा लगता था जैसे काली बस्ती का संपूर्ण जनमानस केवल उन रास्तों के दोनों तरफ उमड़ आया हो जिनसे तेजस्वी को गुजरना था—मगर प्रत्येक चेहरे पर उसके लिए घृणा और आंखों में गुस्सा उबल रहा था।
लोग रास्ते के दोनों तरफ यूं खड़े थे जैसे गणतंत्र दिवस की परेड देखने आए हों, महिलाएं और बच्चे छतों और छज्जों पर थे—तेजस्वी ने नोट किया, सभी के चेहरों पर हिंसक भाव थे—ऐसे, जो स्पष्ट बता रहे थे कि अगर ब्लैक स्टार का आदेश बीच में न होता तो ये लोग गिद्धों की मानिन्द उसके जिस्म को नोच-नोचकर खा जाते—कसमसाहट के रूप में सभी चेहरों पर ब्लैक स्टार के आदेश की विवशता छलकी पड़ रही थी।
हालांकि तेजस्वी जानता था, कोई भी उस पर आक्रमण करके ब्लैक स्टार के हुक्म की अवहेलना नहीं करेगा, मगर फिर भी, उनकी भाव-भंगिमाएं इतनी खतरनाक थीं कि रह-रहकर उसके जिस्म में मौत की सिहरन दौड़ जाती—ऐसा लग रहा था जैसे वह ततैयों के छत्ते के अंदर और अंदर घुसता चला जा रहा हो—यह कल्पना करके उसकी रूह कांप उठी कि अगर ब्लैक स्टार अपना आदेश वापस ले ले तो?
अपने अंजाम की कल्पना मात्र से छक्के छूट गए उसके!
अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि वह मुस्करा जरूर रहा था परंतु आसक्त कर डालने वाली चमक का दूर-दूर तक नामोनिशान न था—रोकने की भरपूर चेष्टा के बावजूद चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं।
बीच-बीच में फोर्स के वर्दीधारी सैनिक नजर आए।
सबके हाथों में ए.के.-47 थीं मगर वे तेजस्वी के मनो-मस्तिष्क में वह दहशत न बैठा सकीं जो बस्ती के लोगों की भाव-भंगिमाओं के कारण बैठी थी—हिंसक चेहरों के बीच से गुजरता हुआ जब वह थारूपल्ला के मकान के बाहर पड़े लॉन में पहुंचा, तब तक दिल रह-रहकर कहने लगा था—‘कुछ भी हो तेजस्वी, काली बस्ती में कदम रखकर तूने गलती की है …।’
मगर!
अब क्या हो सकता था?
मजबूती का प्रदर्शन किए, आगे बढ़ते चले जाने के अलावा कोई रास्ता न था।
उसने लॉन में जीप रोकी।
दस ए.के.-47 धारियों ने जीप को चारों तरफ से घेर लिया।
सशस्त्र वर्दीधारियों का एक रिंग गोल लॉन की सरहदों पर बना हुआ था—जोर-जोर से धड़क रहे दिल पर काबू पाने की चेष्टा के साथ वह जीप से कूदा—पूरी कोशिश की कि स्टाइल वही रहे जो जीप से थाने के प्रांगण में कूदते थारूपल्ला की थी।
जीप के दरवाजे पर बंधा अपना रूल खोला उसने।
उसे घेरे खड़े वर्दी और ए.के.-47 धारियों ने कुछ कहा नहीं।
तेजस्वी ने उनमें से एक से पूछा—“किधर चलना है?”
“मेरे पीछे आओ!” कहने के साथ वह इमारत के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ा।
तेजस्वी उसके पीछे हो लिया।
स्टार फोर्स के बाकी लोग उसके पीछे थे।
लॉन की सरहदों पर खड़े वर्दीधारी हिले तक नहीं, पूरी तरह मुस्तैद खड़े थे वे।
तेजस्वी इस तरह आगे बढ़ रहा था जैसे रक्षामंत्री सलामी गारत की सलामी ले रहा हो—हां, एक बात अलग थी और वह ये कि रूल की चेन को वह बार-बार अपने हाथों में लपेटता-खोलता जा रहा था।
वे मकान में पहुंचे।
जगह-जगह सशस्त्र सैनिक तैनात थे।
थारूपल्ला से उसकी भेंट ऊपरी मंजिल के एक कमरे में हुई—उसके जिस्म पर इस वक्त अपनी वर्दी थी, नजर पड़ते ही तेजस्वी ने चुभते स्वर में कहा—“हैलो थारूपल्ला—देखो मैं आ गया!”
“बैठो।” भावहीन चेहरे के साथ उसने कमरे में पड़े सोफे की तरफ इशारा किया।
तेजस्वी आगे बढ़ा—रूल सैन्टर टेबल पर डाला और सोफे पर बैठने के बाद एक सिगरेट सुलगाई—जोरदार कश द्वारा खींचे गए धुएं को छोड़ता हुआ बोला—“मुझे कमरे में इन लोगों की मौजूदगी पसंद नहीं आ रही।”
थारूपल्ला ने सैनिकों से कहा—“तुम जाओ।”
वे इस अंदाज से बाहर निकले जैसे दरवाजे की तरफ से जबरन खींचे गए हों—अंतिम समय तक उनकी सुलगती आंखें तेजस्वी पर जमी हुई थीं, दांत किटकिटा रहे थे वे मगर तेजस्वी ने परवाह न की—उधर सैनिक बाहर निकले, इधर तेजस्वी ने मानो अपने कांस्टेबल को हुक्म दिया—“दरवाजा अंदर से बंद कर दे।”
थारूपल्ला के अंदर से तिलमिलाहट उफनी लेकिन खुद पर काबू पाए रहा—आगे बढ़कर उसने दरवाजा बंद कर दिया, मुड़ा और वापस आकर सोफे के नजदीक खड़ा हो गया।
तेजस्वी ने सामने की सीट की तरफ इशारा किया—“बैठो।”
“बैठने से क्या होगा—तुम्हें यहां ब्लैक स्टार ने बुलाया है, वे तुमसे बात करना चाहते हैं।” सपाट स्वर में कहने के बाद थारूपल्ला एक विशाल अलमारी की तरफ बढ़ गया।
इस बार तेजस्वी कुछ बोला नहीं।
अलमारी खोलते थारूपल्ला को देखता रहा—अगले पल उसके सामने शक्तिशाली ‘फ्रीक्वेंसी’ वाला ट्रांसमीटर था—देखने मात्र से तेजस्वी भले ही लापरवाह नजर आ रहा हो परंतु ब्लैक स्टार से संपर्क स्थापित करते थारूपल्ला की एक-एक हरकत नोट की उसने—उधर, संपर्क स्थापित होते ही थारूपल्ला ने कहा—“थारूपल्ला बोल रहा हूं सर।”
“बोलो!”
“इंस्पेक्टर तेजस्वी यहां मौजूद है।”
संक्षिप्त, सीधा और सपाट आदेश—“बात कराओ।”
कानों से हैडफोन उतारता हुआ थारूपल्ला तेजस्वी की तरफ पलटकर बोला—“ब्लैक स्टार बात करना चाहते हैं।”
तेजस्वी उठा, करीब आधी सिगरेट फर्श पर डाली और जूते से रौंदता हुआ अलमारी की तरफ बढ़ा—चेहरा गंभीर था—दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा था—मनोभावों को चेहरे पर परिलक्षित न होने देने की भरपूर चेष्टा के साथ वह अलमारी के नजदीक पहुंचा—हालांकि अपना प्लान बनाने के पहले ही चरण में अच्छी तरह व्यवस्थित कर चुका था कि ब्लैक स्टार से क्या बातें करनी हैं, उसके बावजूद कलेजा दहल रहा था—शायद इस भय के कारण कि अगर ब्लैक स्टार को अपनी बातों से विश्वास न दिला पाया, उसे प्रभावित न कर सका तो क्या होगा?
तेजस्वी के अंदर की थरथराहट अपने अंत की कल्पना से जन्मी थी—अगर ब्लैक स्टार को प्रभावित कर सका तो सफलता उसके कदम चूमेगी, न कर पाया तो थारूपल्ला के हवाले कर दिया जाएगा उसे—मौत और जिंदगी के बीच केवल उसके ‘वाक्-चातुर्य’ को काम करना था—तलवार की धार पर कदम रखते हुए तेजस्वी ने कानों पर हैडफोन चढ़ाने के बाद माइक पर कहा—“जय यमनिस्तान!”
“अपना उद्देश्य बताओ इंस्पेक्टर।” स्वर बेहद रूखा और कड़ा था।
तेजस्वी के मस्तक पर पसीना छलछला उठा।
दिमाग में विचार कौंधा—‘अगर ऐसे सपाट अंदाज में बातें होंगी तो ब्लैक स्टार को प्रभावित करने का मौका ही कहां मिलेगा?’
तेजस्वी के सामने मरने-जीने का प्रश्न मुंह बाए खड़ा था।
और कहावत है, ‘मरता क्या नहीं करता’ अतः अंदर से चूहे की तरह कांपने के बावजूद लहजे में दृढ़ता एवं आत्म- विश्वास भरता बोला—“आपके सवाल का जवाब देने से पहले मैं अपने कुछ सवालों का जवाब चाहूंगा।”
गुर्राहट उभरी—“भूलो मत इंस्पेक्टर, इस वक्त तुम ब्लैक स्टार से बात कर रहे हो।”
“त-तो?” हृदय सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था मगर लहजे को न लरजने दिया।
“आज तक कोई ऐसी हिमाकत न कर सका कि हमारे सवाल का जवाब देने से पहले अपने सवालों का जवाब चाहे।”
तेजस्वी जानता था, इस वक्त रत्तीभर ढिलाई उसे मौत के मुंह में धकेल सकती थी अतः मुकम्मल दृढ़ता का प्रदर्शन किया उसने—“क्या आज से पहले आपका वास्ता तेजस्वी जैसे किसी शख्स से पड़ा है?”
“मतलब?”
“साफ है, आज तक आप केवल अपने मातहतों से बात करते रहे हैं, और तेजस्वी आपका मातहत नहीं है, अतः आपको मुझसे वैसी बातों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए जैसी आपके मातहत करते हैं।”
बड़े ही खतरनाक स्वर में पूछा गया—“क्या तुम्हें मरने से डर नहीं लगता इंस्पेक्टर?”
एकाएक तेजस्वी को स्मरण हो आया, ब्लैक स्टार उसका उद्देश्य जानने के लिए मरा जा रहा है—दिमाग में विचार उठा—‘वह कम-से कम उस वक्त तक उसे नहीं मरने देगा जब तक उसका उद्देश्य न जान ले’—इस विचार ने तेजस्वी के टूटते आत्मविश्वास को सम्बल दिया, पूरी मजबूती के साथ कहा उसने—“अगर डरता होता तो काली बस्ती में कदम रखने के बारे में सोचता ही नहीं।”
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