RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
अगले दिन!
सुबह के दस बजे!
प्रतापगढ़ थाने के बाहर टायरों की तीव्र चरमराहट के साथ एक मिनी बस रुकी—द्वार पर तैनात संगीनधारी पुलिसिए कुछ समझ भी न जाए थे कि बस के दोनों दरवाजे खुले।
मिलिट्री की सी वर्दी पहने ढेर सारे लोग नजर आए।
उनके हाथों में ए.के.-47 रायफलें थीं।
संगीनधारी सिपाही अभी फैसला न कर पाए थे कि उन्हें करना क्या है कि दो रायफलों की नालें उनके सीनों से आ सटीं।
साथ ही एक कड़क चेतावनी—“जुंबिश खाई तो गोली खानी पड़ेगी।”
जहां-के-तहां खड़े रह गए दोनों, मानो स्टेचू हों।
जिस्मों ने पसीना इस तरह उगला जैसे शर्त लगा बैठे हों—चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं, मुंह से चूं-चां तक की आवाज न निकल सकी, उन्हें केवल दो वर्दीधारी लोगों ने कवर किया था, बाकी वर्दीधारी हाथों में ए.के.-47 लिए मिनी बस से कूद-कूदकर थाने में दाखिल हो गए।
जैसे पूर्वनिर्धारित हो, किसे क्या करना है!
उनके पैरों में मिलिट्री जैसे भारी बूट थे, सारे थाने में बूटों की खड़खड़ाहट गूंज उठी—थाने के प्रांगण के परले सिरे पर खड़े एक पुलिसिए ने यह दृश्य देखा, गड़बड़ी की आशंका से ग्रस्त उसने कंधे पर लटकी रायफल उतारकर हाथ में ली और उसे फायर करने की पोजीशन में लाना चाहता था कि—
‘धांय!’
सारा इलाका गोली की आवाज से गूंठ उठा।
रायफल पुलिसिए के हाथ से छिटककर दूर जा गिरी—इससे पूर्व कि वह कोई दूसरी हरकत करता, मिलिट्री की-सी वर्दी वाले एक शख्स की ए.के.-47 की नाल उसकी कनपटी का चुम्बन लेने लगी।
थाने के प्रांगण में चारों तरफ फैल गए वे।
कुछ बिल्डिंग के विभिन्न ऑफिसों में घुसे।
हालांकि भारी बूटों और फायर की आवाज ने थाने में मौजूद सभी पुलिसियों को चौंका दिया था और वे अपने अपने स्थान पर उछलकर खड़े भी हो चुके थे परंतु केवल खड़े ही हो सके।
कुछ करने की बात दूर, सोचने तक का अवसर न मिल पाया था।
जो जहां था, वहीं-का-वहीं रायफलों के साये में कैद होकर रह गया।
सारी कार्यवाही सैनिक टुकड़ी की मानिन्द व्यवस्थित थी।
कहीं कोई अड़चन, कोई हड़बड़ाहट नहीं!
तेजस्वी उस वक्त अपने ऑफिस में मौजूद पांडुराम को कोर्ट चलने से संबंधित निर्देश दे रहा था जब फायर की आवाज गूंजी—दोनों उछल पड़े, तेजस्वी ने झपटकर होलेस्टर से रिवॉल्वर खींचा।
धांय!
एक गोली सीधी रिवॉल्वर में आकर लगी।
पांडुराम उछलकर दीवार से जा सटा, घिग्घी बंध गई थी उसकी।
और तेजस्वी!
ठगा-सा खड़ा वह ऑफिस के द्वार पर जिन्न की मानिन्द प्रकट हुए दो वर्दीधारियों को घूर रहा था—उनमें से एक के हाथ में रिवॉल्वर था, दूसरे के हाथ में ए.के.-47—रिवॉल्वर की नाल से धुआं निकल रहा था।
तेजस्वी बगैर उनके कहे समझ सकता था कि इस वक्त स्वेच्छापूर्वक अपनी अंगुली तक हिलाना मूर्खतापूर्ण हरकत साबित हो सकती है।
वर्दियां बता रही थीं कि वे स्टार फोर्स के लोग हैं।
“अगर हमारा मकसद खून-खराबा होता तो गोली रिवॉल्वर पर नहीं, तेरी कनपटी पर लगती इंस्पेक्टर!” वह शख्स बोला जिसकी रिवॉल्वर अभी तक धुआं उगल रही थी—“और तुम केवल उतनी देर में इस दुनिया से कूच कर चुके होते जितनी देर में गोली तुम्हारी मेज के आर-पार निकलती।”
तेजस्वी ने शांत स्वर में पूछा—“क्या चाहते हो?”
“हमारा काम चाहना नहीं, आदेश को पूरा करना है।”
“क्या आदेश मिला है तुम्हें?”
“मेजर थारूपल्ला तुमसे मिलना चाहते हैं।” लहजा पूरी तरह सपाट था—“हमारा मिशन था, उनकी और तुम्हारी बातचीत के लिए माहौल तैयार करना।”
“कहां है थारूपल्ला?”
“आते होंगे, अभी माहौल बना कहां है?”
“मतलब?”
“प्रांगण में चलो, वे धूप में बैठकर आराम से बात करना चाहेंगे।”
तेजस्वी चुप रहा गया—अपने स्थान से हिला तक नहीं वह—जबकि घिघियाते से पांडुराम ने कहा—“च-चले चलिए साब, प्रांगण में चले चलिए—ये लोग बड़े जल्लाद होते हैं, मेरे और आप जैसे इंसानों की कीमत इनकी नजरों में गाजर- मूली …।”
“खामोश!” तेजस्वी हलक फाड़कर दहाड़ा।
पांडुराम ने सकपकाकर स्टार फोर्स के लोगों की तरफ देखा—उसे उम्मीद थी, वे किसी भी क्षण इंस्पेक्टर तेजस्वी को गोली मार सकते हैं, मगर आशाओं के विपरीत उनमें से एक ने हल्की मुस्कान के साथ तेजस्वी से कहा—“प्रांगण में चलें?”
“चलो!” कहने के साथ तेजस्वी अपनी मेज के पीछे से निकल आया।
सभी पुलिसिए स्टार फोर्स की राइफलों की नोक पर थे।
तेजस्वी और पांडुराम की तरह सभी को प्रांगण में ले आया गया—इस वक्त वह स्थान पुलिस का थाना नहीं बल्कि स्टार फोर्स की छावनी नजर आ रहा था—स्टार फोर्स के लोग एक मेज और दो कुर्सियां उठाकर प्रांगण में ले आए।
मेज लॉन में डाल दी गई, सफेद रंग का मेजपोश बिछाया गया उस पर।
बीचों-बीच दो गुलदस्ते रख दिए गए, गुलदस्तों में गुलाब के फूल खिले हुए थे।
एक कुर्सी मेज के इधर डाली गई, दूसरी उधर।
आमने-सामने।
“बैठो।” रिवॉल्वरधारी ने तेजस्वी से कहा।
तेजस्वी बगैर कुछ बोले आगे बढ़ा और उस कुर्सी पर जा बैठा जिसकी तरफ रिवॉल्वरधारी ने इशारा किया था—कुर्सी पर बैठने के बाद उसने चारों तरफ का निरीक्षण किया—मौत के आतंक से ग्रस्त पुलिस वाले इस वक्त चूहे से नजर आ रहे थे—रायफलधारियों के कन्धों पर लगी ‘लुप्पियों’ पर स्टील के बने स्टार लगे हुए थे जबकि रिवॉल्वरधारी की लुप्पियों पर लगे स्टार पीतल के थे।
दोनों कंधों पर एक-एक स्टार।
तेजस्वी की निगाहें अभी प्रांगण का निरीक्षण करने में ही तल्लीन थीं कि तोप से छूटे गोले की-सी रफ्तार के साथ खुली जीप मुख्य द्वार पार करके थाने में प्रविष्ट हुई।
जोरदार ब्रेक लगाए जाने के कारण टायरों की तीव्र चीख-चिल्लाहट के साथ जीप प्रांगण में रुकी—हरेक नजर उस पर स्थिर हो गई—जीप में एक ड्राइवर, चार रायफलधारी और एक वह था जो ड्राइवर की बगल में अगली सीट पर बैठा था।
जीप के रुकते ही वह कूद पड़ा।
कलफ लगी ‘मिलिट्री की वर्दी’ पहने हुए था—काला रंग, बलिष्ठ जिस्म, मोटी मूंछों और गंदली आंखों वाले उस शख्स का व्यक्तित्व आकर्षित करने वाला था—भारी बूटों से ठक् … ठक् करता हुआ वह मेज की तरफ बढ़ा, तेजस्वी से नजरें मिलते ही मुस्कुराया।
मगर …।
तेजस्वी केवल उसे घूरता रहा, कुर्सी से खड़ा नहीं हुआ वह।
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