RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“अ-अरे!” कमरे में कदम रखते ही देशराज भौंचक्का रह गया—“य-ये क्या हुआ आरती?”
होंठों पर बंधी पट्टी और मुंह के अन्दर ठुंसे कपड़े के कारण आरती के हलक से केवल ‘गूं-गूं’ की आवाज निकलकर रह गयी—दोनों हाथ पीठ पर बांधकर किसी ने रेशम की मजबूत डोरी से उसे लोहे की भारी अलमारी के साथ बांध रखा था—बंधन इतने मजबूत थे कि स्वेच्छापूर्वक आरती जुम्बिश तक नहीं ले सकती थी।
देशराज ने झपटने वाले अन्दाज में उसे बंधनमुक्त किया, पूछा—“तुम्हारी यह हालत किसने की?”
होंठों पर बंधी पट्टी और मुंह में ठुंसे कपड़े को निकालने के साथ आरती ने बताया—“पिताजी ने …।”
“प-पिताजी?” देशराज चिहुंक उठा।
“उन्होंने तुम्हारे और ब्लैक स्टार के बीच होने वाली वार्ता अपने कमरे में रखे एक्सटेंशन इन्स्ट्रूमेन्ट पर सुन ली थी।”
“ओर!” देशराज पर मानो बिजली गिरी—“फ-फिर?”
“उन पर तुम्हारी करतूतों का भेद एस.एस.पी. पर खोल देने का जुनून सवार था—कह रहे थे आज उन्हें अपने बेटे से घृणा हो गई है—पुलिस इंस्पेक्टर होने के बावजूद वह ब्लैक स्टार के हाथों की कठपुतली बना हुआ है—वे यह भी कह रहे थे कि ब्लैक स्टार के हुक्म पर तुम किसी की हत्या के जुर्म में किसी निर्दोष को फंसाने वाले हो—मैंने तब भी रोकना चाहा, कहा ‘मुमकिन है, ब्लैक स्टार के फोन से कोई गलतफहमी ‘क्रिएट’ हो गयी हो, अतः इस संबंध में कुछ भी करने से पूर्व एक बार आपसे बात कर ली जाये’, मगर उन्होंने एक न सुनी—ज्यादा विरोध किया तो मेरी यह हालत करके निकल गए।”
“क-कब?” देशराज की आवाज सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रही थी—“कब की बात है ये?”
“आपके जाते ही वे कमरे से बाहर निकले थे।”
“त-तो फिर अब तक एस.एस.पी. के पास पहुंचे क्यों नहीं—मेरे खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं हुआ—उफ्फ! उन्होंने पहन क्या रखा था?” भयंकर आशंका ने मानो उसे पागल कर दिया, चीख पड़ा वह—“जल्दी जवाब दो आरती, कौन से कपड़े पहने हुए थे वे?”
“नीला कुर्ता, सफेद धोती और …”
“और जूतियां!” देशराज ने पागलों के से अंदाज में आरती की बात पूरी की।
“हां।”
“न-नहीं … नहीं!” देशराज दहाड़ उठा—“ऐसा नहीं हो सकता।”
“क्या बात है, क्या हो गया?”
देशराज पर मानो वह बिजली गिरी थी जो पलक झपकते ही प्राणी को राख के पुतले में तब्दील कर देती है, दिलों-दिमाग सुन्न पड़ गया—आंखों के समक्ष बुड्ढे की लाश चकरा रही थी।
कानों में अपने शब्द गूंजे—‘इस बार नदी में लुढ़का देते हैं उसे—साली को मगरमच्छ नोच-नोचकर निपटा देंगे—रही सही बह जाएगी—न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!’
‘यह ठीक रहेगा!’ पांडुराम ने कहा था—‘बहुत ही बड़े-बड़े मगरमच्छ हैं नदी में … कभी-कभी तो किनारे पर जलने वाली चिताओं से लाश को खींचकर ले जाते हैं … नदी उफान पर है, आधे घंटे बाद दुनिया की कोई ताकत लाश को नहीं ढूंढ सकेगी।’
“क-क्या हुआ?” आरती ने उसे झंझोड़ डाला—“आपको क्या हो गया है?”
क्या जवाब देता देशराज?
तभी फोन की घंटी बजी।
रिसीवर उठाकर उसने ‘हैलो’ कहा।
“गजब हो गया सर!” पांडुराम की आवाज—“गोविन्दा और छमिया ने आत्महत्या कर ली …।”
“क-कैसे?” देशराज दहाड़ उठा।
“अपने क्वार्टर में मृत पाए गए हैं दोनों, चूहेमार दवा की शीशी लुढ़की पड़ी है, सुसाइड नोट भी छोड़ा है, थाने में अपने साथ किए गए सुलूक के बारे में साफ-साफ लिख दिया है उन्होंने। मगर आप फिक्र न करें—हम सुसाइड नोट को गायब कर देंगे।”
“नहीं हवलदार, उसे गायब करने की जरूरत नहीं है।”
“ज-जी?” पांडुराम की आवाज सातवें सुर में जा मिली।
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