RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
देशराज के ऑफिस में दाखिल होती डरी-सहमी छमिया ने पूछा—“आपने रात के इस वक्त मुझे क्यों बुलाया है इंस्पेक्टर साब?”
“तेरा बयान लेना है।”
“व-वो आप दिन में ले चुके हैं …।”
“तुझे दिन वाले और रात वाले बयान का फर्क नहीं मालूम?”
“ज-जी नहीं!”
“दरवाजा बन्द करके अन्दर से चटखनी चढ़ा दे।”
छमिया चिहुंक उठी—“क-क्यों?”
“रात वाला बयान बन्द कमरे में लिया जाता है।”
“न-नहीं!” छमिया ने सख्ती के साथ कहा—“मैं दरवाजा बन्द नहीं करूंगी, बयान लेना है तो ऐसे ही लो!”
देशराज भद्दे अंदाज में हंसा, बोला—“तू तो वाकई बावली है, बयान का मतलब ही समझकर नहीं दे रही—जरा सोच, अगर दरवाजा बन्द कर देगी तो मैं अकेला बयान लूंगा और खुला छोड़ दिया तो थाने में हवलदार है, कांस्टेबल और सिपाही हैं—सब के सब साले बयान लेने चले आएंगे।”
“तो क्या हुआ?” छमिया ने मासूमियत के साथ कहा—“सबको बयान दे दूंगी!”
“अच्छा!” देशराज ने जोरदार ठहाका लगाया—“सबको बयान दे देगी तू?”
“क्यों नहीं, जो सच है …”
“बड़ी दरियादिल है।” देशराज उसके भोलेपन का पूरा लुत्फ लूट रहा था—“लगता है पांडुराम साला झूठ बोल रहा था।”
“क-क्या कह रहे थे हवलदार साब?”
“कह रहा था कि तू अपने पति के अलावा किसी को बयान नहीं देती?”
“क-क्या मतलब?” छमिया चौंकी—“आप कहना क्या चाहते हैं इंस्पेक्टर साब?”
“देख छमिया!” देशराज ने उसे सीधी भाषा में समझाने का निश्चय किया—“तेरा खसम हत्या के जुर्म में फंस गया है और अब केवल मैं उसे बचा सकता हूं।”
“अ-आप … कैसे?”
देशराज ने उसे घोलकर पी जाने वाले अंदाज में घूरा—सचमुच वह बला की खूबसूरत थी—गठा हुआ जिस्म, लम्बा कद—मासूम और माखन की मानिन्द चिकना मुखड़ा, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें और रसीले होंठ—छमिया के सम्पूर्ण जिस्म को टटोलती उसकी अश्लील नजरें पुष्ट वक्षस्थल पर स्थिर हो गईं, बोला—“क्योंकि मैंने ही उसे फंसाया है।”
“अ-आपने?” छमिया उछल पड़ी।
“हां। मैं जानता हूं उसने असलम की हत्या नहीं की—जिसने की है, उसे भी जानता हूं—सुबह होते ही तेरे पति को छोड़कर उसे पकड़ सकता हूं।”
“तो फिर आपने उन्हें पकड़ा ही क्यों?”
पर्वत की चोटियों को घूरते हुए कहा उसने—“तेरी खातिर!”
“म-मेरी खातिर?”
“हां जानेमन, देखने मात्र से ही बड़ी रसीली नजर आती है तू—जैसे ही तुझ पर पहली नजर पड़ी, दिल में इच्छा उभरी—बगैर कपड़ों के तू कैसी नजर आती होगी—हवलदार से कहा—‘तुझे चूसना चाहता हूं’, वह बोला—भूल जाइए, आखिर वह पतिव्रता है—मर सकती है मगर अपने पति के अलावा किसी की तरफ देख तक नहीं सकती—उसी दिन सोच लिया था, मौका आने पर तेरी परीक्षा लूंगा—देखूं तो सही तू किस स्तर की पतिव्रता है और नतीजा सामने है—पतिव्रता वह कहलाती है जो अपना सर्वस्व लुटाकर भी पति की जान बचा ले और मैं … मैं तो केवल तेरी बांहों में एक रात गुजारने का ख्वाहिशमन्द हूं।”
“हरामजादे … कुत्ते!” छमिया बिफर पड़ी—“होश में बात कर।”
तमतमा उठा देशराज, झटके के साथ कुर्सी से खड़ा होता हुआ गुर्राया—“पुलिस वाले से गालियों में मुकाबला करना चाहती है भूतनी की, इस तरह अपने उस उल्लू के पट्ठे पति को नहीं बचा सकती तू।”
“म-मैं तेरे मुंह पर थूकती हूं!” छमिया चिल्ला उठी।
“ये थाना है छमिया और मैं यहां का थानेदार होता हूं।” देशराज गुर्राता चला गया—“इंसान की बिसात क्या है—थाने में थानेदार को मनचाही करने से भगवान तक नहीं रोक सकता—चाहूं तो इसी वक्त तुझे जमीन पर पटककर बयान ले डालूं, मगर नहीं … देशराज का विश्वास बलात्कार में नहीं है—अगर होता तो बहुत पहले मेरे द्वारा रौंदी जा चुकी होती—जो मजा रजामंदी में है वह बलात्कार में नहीं, तू खुद आगे बढ़कर मुझे अपनी बांहों में लेगी—ये पहाड़ जैसी चोटियां खुद मेरे मुंह में डालेगी तू।”
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