RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" तुमने उसे पकड़ने की कोशिश नही की "
" आप पकड़ने की बात करते है, हम ने तो साले को खदेड़ दिया था, ना खदेड़ते तो आज वो जगदीश अंकल को मार ही डालता " ये बात एक अन्य युवक ने कही थी," अकेले की तो किसी की हिम्मत नही पड़ी लेकिन जब सभी अपने घरो से निकल आए और मारो-मारो का शोर मचा दिया तो वो घबरा गया... "
" मैंने तो एक पत्थर भी मारा था उसे " एक औरत बोली.
अधेड़ भी बोला," मैंने भी "
चारो तरफ से आवाज़े उठने लगी थी कि," मैंने भी पत्थर मारा था "
शोर थोड़ा शांत हुआ तो विजय ने पूछा," जब सब लोग पत्थर मारने लगे तो उसने क्या किया "
" तभी तो छोड़ा जगदीश का पीछा " अधेड़ ने कहा," वापिस दौड़कर अपनी बाइक के पास आया, उसे स्टार्ट करके भाग गया "
" तुम लोगो को उसे पकड़ लेना चाहिए था "
" अजी पकड़ लेते, कहना आसान है, यहाँ होते तो देखते, उसके हाथ मे रेवोल्वर था, किसी को भी मार सकता था "
" क्या किसी ने उसे पहले भी इस बस्ती मे देखा था "
कयि आवाज़े उभरी," नही "
" किसी ने बाइक का नंबर नोट किया हो "
" मैंने कोशिश की थी " एक युवक बोला," लेकिन पढ़ा नही गया, नंबर प्लेट पर मिट्टी लगी हुई थी "
एक अधेड़ की आवाज़," अजी साले ने जानबूझकर लगा रखी होगी, ऐसे लोग बड़े हरामी होते है "
" जगदीश तो ज़रूर जानता होगा उसे "
" पता नही जानता है या नही, पर उस बेचारे को तो अपना ही होश नही है, एक बार गिरा तो फिर उठ भी नही पाया, बुरी तरह काँप रहा था, हम सबने उठाकर घर के अंदर पहुचाया "
" अच्छा उससे बात तो कर ले " विजय ने कहा," रास्ता दो "
भीड़ ने रास्ता दिया.
वे आगे बढ़े.
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लकड़ी का दरवाजा पार करते ही छोटा-सा आँगन था.
आँगन मे काफ़ी औरते इकट्ठा थी.
कयि रो रही थी.
एक जवान लड़की तो दहाड़े मार-मारकर रो रही थी.
कुछ महिलाए उसे चुप कराने की, सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी, पता लगा, वो जगदीश की बेटी थी.
आँगन के अगल-बगल दो कमरे थे.
एक कमरे मे औरतो की भीड़ थी.
वहाँ से भी रोने की आवाज़े आ रही थी.
इनस्पेक्टर ने रास्ता बनवाया.
वे कमरे मे पहुचे.
जगदीश एक चारपाई पर लेटा हुआ था.
आँखे बंद थी.
उसके कपड़े कयि जगह से फटे हुए थे.
चेहरे समेत जिस्म के कयि हिस्सो मे चोट लगी हुई थी.
उन पर हल्दी लगा दी गयी थी और दो महिलाए हाथ के पंखे से उसकी हवा कर रही थी.
एक महिला कह रही थी," हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था, क्यो सुहाग उजाड़ना चाहता था नास्पीटा मेरा, कम्बख़्त का नाश होगा, कोई उसे ही गोली से उड़ा देगा "
औरते उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी.
इनस्पेक्टर, विजय और विकास समझ गये कि वो जगदीश की पत्नी होगी, कुछ देर बाद इनस्पेक्टर ने कहा," देखिए, बड़े साहब आए है, ये जगदीश से पूछताछ करेंगे, जल्दी ही उसे ढूँढ निकालेंगे, हम आपको यकीन दिलाते है कि वो 24 घंटे मे जैल मे होगा "
सबने उसकी तरफ देखा.
आँख खोलकर जगदीश ने भी.
इनस्पेक्टर के कयि बार कहने और पोलीसवालो की मशक्कत के बाद औरतो को कमरे से निकाला गया लेकिन जगदीश की पत्नी वही जमी रही बल्कि बेटी भी अंदर आ गयी.
विजय ने उसी से पूछा," जिस वक़्त ये सब हुआ उस वक़्त तुम लोग कहाँ थे "
" मैं और माँ तो सब्जी लेने गये हुए थे " रोती हुई लड़की ने बताया," वापिस आए तो बस्ती मे हंगामा मचा हुआ था, सब लोग बापू को उठाए हुए घर की तरफ ला रहे थे "
" यानी कि उस वक़्त जगदीश घर मे अकेला था "
पत्नी बोली," मैं होती तो नास्पीटे का मुँह नोच लेती "
विजय ने कुछ देर उनसे बातें की, फिर तब, जब उत्तेजना थोड़ी कम हुई तो बोला," अगर तुम लोग चाहती हो कि वो पकड़ा जाए और उसे सज़ा मिले तो कुछ देर के लिए बाहर चली जाओ, हमे जगदीश से थोड़ी पूछताछ करनी पड़ेगी "
फिर भी, वे एक बार के कहने पे नही गयी.
समझाने-बुझाने के से अंदाज मे इनस्पेक्टर ने उनका हाथ पकड़ा और आँगन मे छोड़ कर आया, तब, विजय के इशारे पर विकास ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
विजय ने जगदीश से पहले सवाल किया," कौन था वो "
" म...मैं नही जानता " उसके होंठ काँप रहे थे.
विजय ने सॉफ महसूस किया कि उसने झूठ बोला था लेकिन फिलहाल इस बात पर ज़ोर ना देकर अगला सवाल किया," क्यो मारना चाहता था वो तुम्हे "
" म...मुझे कुछ भी नही पता "
" अच्छा ये बताओ, क्या हुआ था, जिस वक़्त वो आया था, उस वक़्त तुम क्या कर रहे थे "
" कुछ नही साहब, मैं तो अपने कमरे मे लेटा हुआ था "
" इसी कमरे मे "
" नही साहब, मेरा कमरा वो बगल वाला है "
" अच्छा चलो, तुम लेटे हुए थे, फिर क्या हुआ "
" उसे देखते ही चौंका और फिर चारपाई से खड़ा हो गया, पूछा कि वो कौन है और इस तरह सीधा घर मे क्यो घुसा चला आया, उसने कोई भी जवाब देने की जगह अपनी जेब मे हाथ डाला और रेवोल्वर निकाल लिया, मेरे तो होश फाख्ता हो गये साहब, लगा कि वो मुझे मारने वाला है, जान बचाने के लिए बस एक ही बात सूझी और मैं उसपर झपट पड़ा, शायद उसे ऐसी उम्मीद नही थी, शायद उसने सोचा होगा कि मैं रेवोल्वर देखकर इतना डर जाउन्गा कि कुछ कर ही नही सकूँगा इसलिए वो भी हड़बड़ा गया और हड़बड़ाहट मे ही उससे गोली चल गयी पर वो गोली मुझे नही लगी थी, वो पीछे वाली दीवार से जा टकराया था, मैं मौका देखकर कमरे से भाग निकला, 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाता हुआ घर से बाहर निकला मगर उसने मेरा पीछा नही छोड़ा साहब, घर के बाहर भी... "
" वो सब हम सुन चुके है " उसकी बात काटकर विजय ने सख़्त लहजे मे कहा," हमे बेवकूफ़ मत समझो जगदीश, एक अंजान आदमी किसी के घर मे घुसे और बगैर कुछ कहे-सुने जेब से रेवोल्वर निकालकर उसे मारने की कोशिश करे ऐसा कही होता है "
" आ...ऐसा ही हुआ है साहब "
" हम मान ही नही सकते, हम क्या कोई भी नही मानेगा, वो जो तुम्हे जान से मारने के इरादे से आया था, उसके पीछे कोई ना कोई कारण रहा होगा, बेवजह कोई किसी को नही मारता और मारने के लिए उस हद तक तो हरगिज़ नही जाता जिस हद तक वो गया, हमे लोगो ने बताया कि उसने बाहर भी तुम्हारा पीछा किया, दो गोलिया चलाई, ऐसा करके खुद अपने लिए भी बहुत बड़ा रिस्क लिया उसने, इतना रिस्क कोई छोटे-मोटे कारण से नही लेता "
" व...वो सब तो ठीक है साहब पर मुझे सच मे कुछ नही पता "
" सोच लो " विजय ने चेतावनी-सी दी," अगर तुम कुछ नही बताओगे तो वो नही पकड़ा जाएगा और यदि वो नही पकड़ा गया तो जिस हद तक जाकर उसने तुम्हे मारने की कोशिश की है उसे देखते हुए हम दावे के साथ कह सकते है कि बहुत जल्दी वो दूसरा हमला करेगा, दूसरा भी कामयाब ना हुआ तो तीसरा करेगा, तीसरा नाकाम होने पर चौथा करेगा, मतलब ये कि वो तब तक तुम पर हमला करता रहेगा जब तक तुम्हे मार ना दे क्योंकि इतना तो तुम भी समझ गये होगे कि उसका मकसद ही तुम्हारी हत्या करना है "
जगदीश का चेहरा पीला पड़ गया.
होंठ काँपे मगर आवाज़ ना निकल सकी.
" बोलो " विजय ने चोट की," तुम उसे जानते हो ना "
उसकी आँखो से आँसू निकले, गर्दन हां मे हिली.
" कौन है वो "
" न...नाम नही जानता "
" और क्या जानते हो "
" वो एक साल पहले, बस एक बार मुझसे मिला था "
" कहाँ "
" नगर पालिका मे ही "
" किसलिए मिला था "
" स..साहब " वो रो पड़ा," मुझे सज़ा तो नही होगी "
" सच बोलॉगे तो कुछ नही होगा "
" उसने मुझे एक लाख रुपये दिए थे "
" किसलिए "
" कहा था, आज जब तुम कूड़े के ढेर पर कूड़ा डालने जाओ तो कूड़े के पाँचवे पहाड़ के ढलान पर, नीचे की तरफ देखना, वहाँ एक लाश पड़ी नज़र आएगी.
'लाश', मेरे छक्के छूट गये.
'एक औरत की लाश है वो'
'त..तो मैं क्या करूँ'
'अगर मैं तुमसे ना मिलता और इस बारे मे ना बताता, तब तुम्हे वहाँ लाश नज़र आती तो क्या करते'
'प...पोलीस को खबर करता'
'अब भी वही करना है. इससे ज़्यादा कुछ नही'
मेरी समझ मे कुछ नही आया था इसलिए कुछ बोल ना सका, बस देखता रहा उसकी तरफ, उसने जेब से हज़ार के नोटो की एक गद्दी निकालकर मेरी तरफ बढ़ाई और बोला,' इस काम के मेरी तरफ से ये लाख रुपये रखो'
हज़ार के नोटो की गॅडी देखकर तो मेरी घिग्घी बँध गयी साहब, भला हमे उतने नोट एकसाथ देखने को कहाँ मिलते है, और वो उन्हे देने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था, लगा, इतने से काम के वो भला एक लाख रुपये क्यो देगा, ज़रूर लफडे का काम है, मैं किसी मुसीबत मे फँस सकता हूँ.
इसलिए कहा,'नही, मैं ये पैसे नही ले सकता'
'क्यो' वो मुस्कुरा रहा था.
'ज़रूर ये कोई दो नंबर का काम है'
'तुमने एक लाश देखी और उसके बारे मे पोलीस को खबर कर दी, इसमे दो नंबर का क्या हो गया, तुमने तो खुद ही कहा, वैसे भी लाश को देख लेते तो पोलीस को खबर करते'
'त...तभी तो कह रहा हू कि सिर्फ़ इस काम के आप मुझे एक लाख रुपये क्यो देंगे, ज़रूर कुछ और भी करना चाहते होंगे'
'तुम्हारी कसम, और कुछ नही कराउन्गा तुमसे' उसने दृढ़ता से कहा,' बस इसी काम के लिए एक लाख रुपये है'
'पर ऐसे काम के, जिसे मैं वैसे भी करता, आप मुझे एक लाख रुपये क्यो दे रहे है'
'लाख रुपये कामना चाहते हो तो इस लफडे मे ना पडो'
'कुछ तो फ़ायदा होगा आपका'
'आदमी को दूसरे का नही, अपना फ़ायदा देखना चाहिए' इस बार उसने धमकाते हुवे कहा था,' इस गॅडी को पकड़ते हो या तुम्हारे किसी दूसरे भाई-बंधु को देखूं, वहाँ कूड़ा डालने जाने वाले तुम अकेले नही हो, बस यू समझो कि तुम्हारा नसीब अच्छा है जो इस काम के लिए तुम्हे चुना'
उसका इतना कहना था कि मैंने तुरंत गॅडी पकड़ ली साहब, पर उससे बार-बार कहा कि मैं लाश की सूचना पोलीस को देने के अलावा और कुछ नही करूँगा.
उसने कहा,' इसके अलावा एक काम और करना है तुम्हे, ये कि कभी किसी को नही बताना है की मैंने तुम्हे इस काम के लिए रुपये दिए है, सबके सामने बस यही आना चाहिए कि तुमने लाश देखी और पोलीस को सूचना दे दी'
मैंने कहा कि,' मैं भला क्यो किसी को बताने लगा'
और... वो दिन और आज का दिन, उसके द्वारा मुझे कोई और काम बताने की तो बात ही दूर, मुझे अपनी शकल तक नही दिखाई.
बस आज ही सामने आया था "
" अब नये सिरे से बताओ " विजय ने कहा," आते ही उसने क्या कहा "
" एक साल बाद उसे अपने दरवाजे पर देखकर मैं चौंक पड़ा बल्कि ये कहूँ तो ग़लत ना होगा कि चारपाई से उच्छल पड़ा था, वो बहुत जल्दी मे था, आते ही बोला,' तेरे पास कुछ लोग आने वाले है, वे तुझसे ये पूछेंगे कि तूने लाश की सूचना पोलीस को अपनी तरफ से दी थी या इसके लिए किसी ने कहा था, तुझे मेरे बारे मे या हमारे बीच मे हुई डील के बारे मे कुछ नही बताना है, बस ये कहना है कि तेरी नज़र इत्तेफ़ाक से लाश पर पड़ी और तूने उसकी सूचना पोलीस को दे दी'
'ह..हां' हड़बड़ाहट मे मेरे मुँह से यही निकला,' यही कहूँगा, ये तो उसी दिन तय हो गया था और मैंने आजतक किसी को कुछ बताया भी नही है मगर बात क्या है, कुछ लफडा हो गया है क्या'
'कुछ ख़ास नही' उसने कहा,' बस ये जवाब दे देगा तो कुछ नही होगा, बात आगे बढ़ेगी ही नही'
मैं क्योंकि डर गया था इसलिए मुँह से निकला,' म..मुझे तो कुछ नही होगा ना'
उसने ध्यान से मुझे देखा.
शायद मेरे चेहरे पर छाई घबराहट को.
कुछ देर ऐसा लगा जैसे कुछ सोच रहा हो.
फिर बड़बड़ाकर जैसे खुद से ही कहा,' नही, तू ये काम नही कर पाएगा, उनके सामने तो बिल्कुल नही टिक सकेगा, चीकू जैसा पक्का खिलाड़ी टूट गया, वो तुझसे सबकुछ उगलवा लेंगे'
'कौन' मैंने पूछा.
कुछ देर उसके चेहरे पर दुविधा के-से भाव रहे फिर ऐसे भाव उभर आए जैसे किसी सहक्त निस्चय पर पहुच गया हो और जेब मे हाथ डालकर रेवोल्वर निकाल लिया.
मेरी तो हालत खराब हो गयी.
मुँह से निकला,' य...ये क्यो निकाला है'
'एक ही रास्ता है जगदीश' उसने दाँत पीसे थे.
'क...क्या'
'तेरा ख़ात्मा' कहने के साथ वो रेवोल्वर मुझ पर तानने के लिए हाथ सीधा कर ही रहा था कि मुझे लगा, मेरी जिंदगी एक सेकेंड से ज़्यादा की नही है.
मरता क्या ना करता वाली हालत हो गयी थी मेरी.
उसका रेवोल्वर वाला हाथ मेरी तरफ तन चुका था और ज़ोर से चीखते हुए मैंने उसका वही हाथ पकड़कर उपर उठा दिया.
गोली चली मगर वो मुझे नही लगी थी क्योंकि उसका हाथ उपर की तरफ उठ चुका था.
हम दोनो गुत्थम-गुत्था हो चुके थे.
उससे भिड़ ज़रूर गया था मैं लेकिन बहुत बुरी तरह डरा हुआ था, इसलिए चीख भी रहा था ताकि कोई मेरी मदद के लिए आ जाए, उसने मेरे चेहरे पर घूँसा मारा.
मैं पीछे वाली दीवार से जा टकराया.
इस ख़ौफ़ ने मुझे तुरंत ही उछल्कर खड़ा होने पर मजबूर कर दिया की अगर ज़रा-सी भी चूक हो गयी तो वो मुझे गोली मार देगा.
मैंने देखा, उस वक़्त वो चारपाई के नीचे पड़ा अपना रेवोल्वर उठाने की कोशिश कर रहा था.
मैं समझ गया, गुत्थमगुत्था के बीच वो वहाँ गिर गया होगा.
उस क्षण बचने के लिए मुझे बाहर की तरफ दौड़ लगाने के अलावा कुछ नही सूझा और वही मैंने किया लेकिन वो तो....
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