Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
11-17-2020, 12:29 PM,
RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
रात का वक़्त, नताली के घर....

मानस और ड्रस्टी दोनो घर मे अकेले थे. दोनो एक दूसरे के पास बैठे... महॉल भी कुछ अजीब सा था, यूँ तो जब बाहर मिलते तो कहने को 100 बातें होती थी, पर जब आज यूँ अकेले मे मुलाकात हुई तो मानो जैसे शब्द ही ना मिल रहे हो बात करने के लिए..

दोनो खामोश बैठ कर सामने टीवी देख रहे थे, पर मन के अंदर काफ़ी कतुहल भरा महॉल था... एक घंटे करीब, दोनो बिना कुछ कहे एक दूसरे के पास बैठे रहे... अंत मे मानस उठा और कहने लगा.... "ड्रस्टी मैं जा रहा हूँ कल मिलता हूँ"...

ड्रस्टी का दिल जैसे बेचैन हो गया हो, वो मानस को आज कहीं नही जाने देना चाहती थी. लेकिन उठ कर ये बात कह दे, इतनी हिम्मत नही जुटा पा रही थी.. जब से नताली ने "यादगार शाम" की बात कही थी, ड्रस्टी को रह-रह कर उसे वो बात याद आ रही थी और उसके मन की तरंगो को छेड़ रही थी...

इसी बीच मानस अपने धीमे कदमों के साथ गेट तक पहुँच चुका था.... ड्रस्टी की हिम्मत नही हो पा रही थी कि उसे रोक ले, इसी बीच दबी सी आवाज़ मे ड्रस्टी के मुँह से निकल गया... "मानस"...

मानस को अहसास हुआ जैसे ड्रस्टी उसे पिछे से आवाज़ दे रही हो. अपनी जगह रुक कर वो पिछे मुड़ा... ड्रस्टी खड़ी हो कर बस एक टक उसे ही देख रही थी.... मानस ने वापस ड्रस्टी की ओर कदम बढ़ा दिए... पास आ कर धीमे से पूछा .... "क्या हुआ"...

यूँ तो सुलगते अरमान मानस के दिल मे भी थे, पर अपनी भावनाओ को काबू किए वो चुप-चाप जा रहा था. उसे भी शायद पता था कि आज यदि वो ड्रस्टी के साथ रहा तो कहीं कोई नादानी ना हो जाए... पर खामोश खड़ी ड्रस्टी का वो मासूम चेहरा.... "आहह, भला क्यों ना प्यार आए"....

ड्रस्टी, अपने काँपते होतों से बड़ी धीमी आवाज़ मे कही.... "कुछ नही"...

मानस, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, बारे प्यार से कहा.... "तुम बहुत प्यारी लग रही हो ड्रस्टी". ड्रस्टी, मानस की इस बात पर बिल्कुल खामोश हो गयी. वो ऐसे पलकें झुका कर अपनी नज़रें उपर की जैसे दिल के अरमान आखों से बयान कर रही हो.

पर उसके मन मे झिझक थी और आगे बढ़ने के लिए इनकार था. मानस से अपना मुँह फेर कर ड्रस्टी पिछे मूड गयी और दो कदम आगे बढ़ गयी... मानस एक कदम आगे बढ़ कर ड्रस्टी के कलाई को थाम लिया....

सिर्फ़ कलाई ही पकड़ा था, और ऐसा लगा जैसे ड्रस्टी के दिल की धड़कने तेज हो कर बाहर आ जाएगी. आगे क्या होना है ये बात सोच कर ही उसके बदन मे अजीब सी सिहरन पैदा हो रही थी. मानस का हर छोटी से छोटी बात भी उसे एक मादक अहसास दिला रही थी.

वही हाल मानस का भी था. वो भी प्यार की कामुकता मे धीरे-धीरे डूब रहा था. कलाई को थाम उसने झटके से ड्रस्टी को अपने ओर खींच. ड्रस्टी के होश इस कदर उड़े कि वो सीधे सीने से जा कर टकराई. मारे शर्म के उसने अपने सीने के उपर अपना हाथ मोड़ लिया, सीने से लग गयी मानस के.

एक दूसरे के सीने से लगे दोनो अजीब सी खामोशी मे खो गये. एक एहस्सास एक दूसरे के होने का. मानस उसकी पीठ सहलाता उसे अपने बाहों मे भर लिया. इस कदर बदन टूट रहा था ड्रस्टी का, कि वो बाहों मे आकर बस उस एहस्सास मे डूब कर चूर हो गयी. पीठ पर हाथ फेरते-फेरते ना जाने कब मानस के हाथ खुले गले के अंदर नंगी पीठ पर चलने लगा.

सिसकती साँसे अंदर खींची, होंठ मानो सुख रहे हों और होंठो से मिलने को बेताब हो, पर अंदर की लज्जा ड्रस्टी को आगे नही बढ़ने दे रही थी. अंजाने मे ही ड्रस्टी ने अपना चेहरा उपर कर के मानस को देखने लगी. नज़रों से नज़र मिलते ही जैसे नज़रे ठहर सी गयो हो, दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया हो.

चेहरा करीब और करीब और करीब होता चला गया और दोनो एक दूसरे के होंठो को चूमने लगे. काँपते हुए बिल्कुल नरम होंठ मानस के होंठो के बीच थी. साँसे गरम हो कर तेज होने लगी, बदन मे मादक फुहार रेंगने लगी और ड्रस्टी का बदन ढीला पड़ने लगा. दो सीने के बीच जो हाथ अटका था वो खुद-व-खुद झूल कर नीचे आ गया.

और मानस बड़े प्यार से, धीमे से होंठ को चूमते हुए इस कदर अपने होंठ बाहर कर रहा था कि उसके होंठ से फस कर ड्रस्टी के होंठ भी आहिस्ते खिंचे चले आ रहे थे. ड्रस्टी की साँसे पूरी बेकाबू हो चुकी थी, तेज-तेज साँसे लेती वो ड्रस्टी के बालों पर हाथ फेर रही थी.

मानस ने ड्रस्टी की कमर मे हाथ डाल कर उसे अपने गोद मे उठा लिया. होंठ से होंठ को चूमते उसे बारे प्यार से बिस्तर पर लिटा दिया और खुद उसके पास करवट लेट कर उसके चेहरे को देखने लगा.

ड्रस्टी बिस्तर पर लेटी आखें मूंद तेज-तेज साँसे ले रही थी. उसका योबन इस कदर सीने की कसावट को दिखा रहा था कि मानो आज ये योबन मिटने को तैयार हो.

बड़े प्यार से मानस, ड्रस्टी के चेहरे पर हाथ फेरता, धीरे-धीरे हाथ को गर्दन तक ले आया ... "ओह्ह्ह्ह... कितनी खूबसूरत हो तुम ड्रस्टी, बिल्कुल किसी मासूम शहज़ादी जैसे". आवाज़ जैसे ही कानो मे गयी, ड्रस्टी मारे शर्म के पानी पानी हो गयी, और उल्टी लेट कर तकिये मे अपना मुँह छिपा लिया.

मानस कुछ देर तक उसे देखता रहा, फिर आहिस्ते अपना चेहरा पीछे से सूट के खुले हिस्से की ओर बढ़ा दिया. कंधों के बीचो बीच उस खुले हिस्से पर, अपने होंठ लगा कर प्यार भरे चुंबन का एक स्पर्श दिया.

होंठो का वो पहला स्पर्श दिया पीठ पर... कंधे छटपटा कर ऐसे टाइट हुए कि उनकी हड्डियाँ दिखने लगी... पीठ के उस खुले हिस्से पर चूमते हुए, मानस अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा... नया योबन उसपर से अपने अनछुए बदन पर मानस के हाथ का स्पर्श... बदन तो मानो ऐसी कसमसाहट से गुजर रहा था कि, जैसे वो चूर चूर हो गयी हो.
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RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए ) - by desiaks - 11-17-2020, 12:29 PM

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