RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
बड़े आनन्द साहब ने आदतन अपने बाई फोकल्स में से उसे घूरा और फिर शुष्क स्वर में बोले - “आई एम ग्लैड दैट यू आर बैक । अब जो कहना है संक्षेप में कहो ।”
“मैंने तो कुछ भी नहीं कहना है, सर ।” - माथुर अदब से बोला ।
“क्या ?”
“मेरे ख्याल से आपने सुनना है ।”
“क्या फर्क हुआ ? तुम्हारा मतलब है तुम्हारी रिपोर्ट की जरूरत मुझे है, तुम्हें नहीं ।”
“अब मैं अपनी जुबानी कैसे कहूं, सर ? बेअदबी होगी ।”
“माथुर, मुझे तुम्हारे में एक खटकने वाली तब्दीली दिखाई दे रही है । जरूर ये गोवा की आबोहवा का असर है ।”
“आबोहवा बहुत बढिया है सर, वहां की ।” - माथुर उत्साह से बोला - “खासतौर से आजकल के दिनों में । आपको वहां जरूर जाना चाहिये और लौट के ही नहीं आना चाहिये ।”
“क्या !”
“मेरा मतलब है कि आपका वहां ऐसा मन रमेगा कि आप ही नहीं चाहेंगे लौट के आना ।”
“एनफ । ऐनफ आफ दैट । नाओ गैट आन विद युअर रिपोर्ट ।”
“यस, सर । सर वो क्या है कि सात साल पहले पायल पाटिल ने, जबकि उसकी शादी को अभी तीन ही महीने हुए थे, अपने पति श्याम नाडकर्णी का कत्ल कर दिया था ।”
आनन्द साहब के नेत्र फैले ।
“ये बात अब स्थापित हो चुकी है, सर ।”
“कत्ल का उद्देश्य ?”
“नाडकर्णी की दौलत हथियाना ।”
“कैसे किया कत्ल ?”
“पहाड़ी की ऊंची चोटी से समुद्र में धक्का दे दिया । ज्योति ने न सिर्फ उस हरकत को वाकया होते देख लिया, उसने उसकी तस्वीर भी खींच ली ।”
“तस्वीर खींच ली ? वो हर वक्त कैमरा साथ रखती थी ?”
“नो, सर । वो क्या है कि फोटोग्राफी, आई मीन एमेच्योर फोटोग्राफी, सतीश की पार्टियों का एक पार्टी गेम था । सतीश द्वारा तमाम मेहमानों को कैमरे, फिल्में वगैरह मुहैया कराई जाती थीं और एक कान्टैस्ट के तौर पर उन्हें तस्वीरें खींचने के लिये प्रेरित किया जाता था जिसमें से बैस्ट एक्शन शॉट, वर्स्ट क्लोजअप वगैरह के लिये सतीश की तरफ से इनाम मुकर्रर होते थे ।”
“यानी कि संयोग से ज्योति निगम के पास तस्वीर खींचने का साधन था इसलिये उसने तस्वीर खींच ली ?”
“यस, सर ।”
“एक्शन शॉट ! जबकि पायल श्याम नाडकर्णी को पहाड़ी पर से धक्का दे रही थी ?”
“यस, सर ।”
“यानी कि पायल ने अपने पति की दौलत हासिल करने के लिये उसका कत्ल किया ?”
“यही तो मैं कह रहा हूं सर । यहीं से तो अभी मैंने अपनी स्टोरी शुरु की थी जो कि ज्योति के पुलिस को दिये इकबालिया बयान पर आधारित है ।”
“आई सी ।”
“यू शुड पे गुड अटेंशन टु वाट युअर जूनियर इज सेइंग ।”
“आगे बढो ।”
“उस कत्ल में पायल के साथ ट्रेजेडी ये हुई कि उसके धक्के से नीचे समुद्र में जाकर गिरे नाडकर्णी की लाश बरामद न हुई जिसकी वजह से नाडकर्णी को कानूनी तौर पर मृत घोषित न किया जा सका । यानी कि अपने पति की दौलत का वारिस बनने के लिये अब पायल का सात साल तक इन्तजार करना जरूरी हो गया ।”
“आई नो ।”
“लेकिन ज्योति निगम, जिसके पास कि तस्वीर की सूरत में कत्ल का सुबूत था, अपनी जानकारी को कैश करने के लिये सात साल इन्तजार करने को तैयार नहीं थी ।”
“क्यों तैयार नहीं थी ?”
“अपने रंगीले राजा, प्लेब्वाय, कामदेव के अवतार पति कौशल निगम की वजह से जो कि उसका निहायत कीमती खिलौना था, जिसकी मेनटेनेंस पर - डॉली का कहना है कि - ज्योति का इतना खर्चा होता था कि वो जितना कमा लेती, थोड़ा था ।”
“इस वजह से वो पायल को ब्लैकमेल करने पर आमादा थी ?”
“जी हां ।”
“माथुर, गोवा की विजिट से तुम्हारी डिस्क्रिप्शन काफी इम्प्रूव हो गयी है ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“ये डॉली कौन है ?”
“बुलबुल है, सर ।”
“बुलबुल ?”
“सतीश की रीयूनियन पार्टी की मेहमान लड़कियां इसी नाम से जानी जाती है, सर ।”
“ओह ! ओह ! यानी कि ये कौशल निगम कोई जिगोलो (GIGOLO) था, मेल प्रस्टीच्यूट था ?”
“आपने एकदम सही बयान किया उसे सर । ज्योति उसकी दीवानी थी, उसे पति बनाकर उस पर काबिज थी लेकिन कब्जा बनाये रखने के लिए उसके खर्चे बहुत गम्भीर थे जिसकी वजह से ज्योति ने हाथ आये मौके का फायदा उठाने का, यानी कि पायल को ब्लैकमेल करने का, फैसला किया । लेकिन वो खुल खेलने का हौसला नहीं कर सकती थी ।”
“खुल खेलने का क्या मतलब ?”
“वो सीधे पायल के पास जाकर उसे नहीं कह सकती थी कि उसके पास सुबूत था कि उसने अपने पति की हत्या की थी ।”
“क्यों ? क्यों नहीं कह सकती थी ?”
“सर, डू आई हैव टू ड्रा यू ए डायग्राम ?”
“माथुर !”
“सारी, सर । सर, वो क्या है कि पायल वो लड़की थी जो कि एक कत्ल पहले ही कर चुकी थी - दौलत की खातिर । वो एक कत्ल और कर सकती थी - दौलत को अपने पास बरकरार रखने की खातिर । बतौर ब्लैकमेलर पायल खुलकर उसके सामने आती तो कोई बड़ी बात नहीं थी कि वो उसका भी कत्ल कर देती और वो डैमिजिंग तस्वीर उससे जबरन हथिया लेती ।”
“काम इतना आसान तो न होता ?”
“मुमकिन है लेकिन फिर भी ज्योति को इस बात का अन्देशा बराबर था । आप ये न भूलिये कि ज्योति कोई प्रोफेशनल ब्लैकमेलर या आदी मुजरिम नहीं थी । ब्लैकमेल की हिम्मत उसने मजबूरन अपने आप में पैदा की थी । इसलिये उसने ब्लैकमेल का ऐसा तरीका अख्तियार किया जिसमें उसका खुलकर सामने आना जरूरी नहीं था ।”
“क्या किया उसने ?”
“आपको मालूम होगा कि एयरपोर्ट पर जो क्लाक रूम है, उसमें सैल्फ सर्विस लाकर्स उपलब्ध हैं जोकि चौबीस घण्टे में एक बार पांच रूपये का सिक्का डालने से संचालित होते हैं । सिक्का डालने से लाकर खुल जाता है और आप उसके भीतर पड़ी उसकी चाबी अपने अधिकार में कर सकते हैं । फिर लाकर में सामान रखकर उसके ताले को यूं हासिल हुई चाबी से आप बन्द कर सकते हैं और चाबी अपने पास रख सकते हैं । समझ गये ?”
“हां ।” - बड़े आनन्द साहब हड़बड़ाकर बोले - “हां ।” - फिर उन्हें ख्याल आया कि ऐसा उन्हें राज कह रहा था तो वो बड़ी सख्ती से बोले - “यंगमैन, माइंड युअर लैग्वेज ।”
“यस, सर । ज्योति कहती है कि वो एयरपोर्ट का वैसा एक लाकर काबू में कर लेती थी और उसकी डुप्लीकेट चाबी बनवा लेती थी । डुप्लीकेट चाबी वो उचित निर्देशों के साथ डाक से पायल को भिजवा देती थी । निर्देश ये होते थे कि पायल ने रकम को लाकर में बन्द करके पूना, खण्डाला, नासिक, शोलापुर जैसे किसी दूसरे शहर को कूच कर जाना होता था और वहां ज्योति के बताये किसी होटल में ठहरना होता था । ज्योति पहले फोन करके उसकी वहां मौजूदगी की तसदीक करती थी और फिर एयरपोर्ट जाकर, लाकर खोलकर, उसमें पायल द्वार छोड़ी रकम अपने काबू में कर लेती थी । यूं दो-ढाई महीने में उसने पायल से पन्दरह-बीस लाख रूपये हथिया लिया था । यूं पायल का पल्ले का पैसा तो उड़ ही गया था, उसने वाकिफकारों से दोस्तों से उधार मांग-मांगकर भी ज्योति की ब्लैकमेल की डिमांड पूरी की थी । यहां ये बात भी दिलचस्पी से खाली नहीं कि पायल, जोकि जानती तो थी नहीं कि उसे कौन ब्लैकमेल कर रहा था, आर्थिक सहायता के लिये ज्योति के पास भी पहुंची थी जिसने - जरूर पायल की निगाहों में ये स्थापित करने के लिये कि वो तो ब्लैकमेलर हो नहीं सकती थी - उसे पच्चीस हजार रूपये दिये थे ।”
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