RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
उसने राज का कन्धा थपथपाया और वहां से विदा हो गयी । तभी राज की निगाह उस औरत पर पड़ी जो कि ईस्टएण्ड के डिपार्टमेंट स्टोर के सामने से फियेट में सवार हुई थी । उस औरत की पहचानना आसान था क्योंकि उसको उसने कार पर सवार होते समय अच्छी तरह से देखा था । उसके देखते-देखते वो एक पुरुष के करीब जाकर खड़ी हुई । पुरुष क्लीन शेव्ड था, आंखों पर चश्मा लगाये था और उसके बाल लम्बे थे । फिर भी औरत की वजह से ही राज को आश्वासान था कि वो वही फियेट वाला था जिसके पीछे लगे वो वहां पहुंचे थे ।
बीयर का मग थामे वो टहलता-सा उनकी तरफ बढा ।
“हल्लो ।” - वो उनके करीब पहुंचकर बोला ।
“हल्लो ।” - पुरुष बोला ।
“नाइस वैदर ।”
“यस ।”
“नाइस पार्टी ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू लाइक इट ।”
“आई एम राज माथुर ।”
“विक्रम पठारे । ये मेरी मिसेज हैं ।”
तीनों में फिर से ‘हल्लो-हल्लो’ हुआ ।
“आप इधर ही रहते हैं ?”
“नहीं । लिस्बन में रहते हैं । आजकल के सीजन में डेढ-दो महीने के लिये इधर आते हैं ।”
“यू लाइक इट हेयर ?”
“यस । इन प्रेजेंट सीजन । नाट आलवेज ।”
“आई सी ।”
“मिसेज को ज्यादा पसन्द है इधर का रहन-सहन । लेकिन प्राब्लम है इधर । शापिंग के लिये फिगारो या पणजी जाना पड़ता है ।”
“आज भी गये ।” - महिला बोली - “वन वीक का सामान लाये ।”
अब राज को यकीन हो गया कि वही शख्स फियेट का ड्राइवर था ।
“वो लड़की !” - एकाएक पठारे बोला - “वो तो... नहीं, नहीं है । ...मेरे ख्याल से है । हां, वो ही है ।”
“कौन लड़की ?” - उसकी बीवी बोली ।
“वो उधर, ऊपर, जो काटेज के बाजू में अकेली खड़ी है ।”
“कौन है वो ?”
“डॉली । टर्नर । पॉप सिंगर । मैं ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा, सर” - राज बोला - “फिर भी ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा !” - वो बोला - “भई, मैं तो उसे कभी भी नहीं देखा ।”
“फैशन शोज में देखा होगा ।”
“मैंने आज तक कभी कोई फैशन शो नहीं देखा ।”
“वो स्पेशल फैशन शो होता था जो प्रोफेशनल माडल्स नहीं करती थीं, सतीश की बुलबुलों के नाम से जानी जाने वाली लड़कियां करती थीं ।”
“सतीश की बुलबुलें ! अजीब नाम है । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फेमस नाम है, सर ।”
“होगा । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फिर तो जरूर डॉली का गाना सुना होगा आपने कभी बम्बई में ।”
“नहीं सुना । मैं अपनी लाइफ में कभी बम्बई ही नहीं गया ।”
“कमाल है ? फिर आप डॉली टर्नर को कैसे जानते हैं ? कैसे पहचानते हैं ?”
“फिगारो आइलैंड पर हुए मर्डर की वजह से आजकल रोज तो उसकी फोटो में छपती है । इसकी, फिल्म स्टरा शशिबाला की, कैब्रे स्टार फौजिया खान की... सबकी ।”
“ओह ! तो आपने अखबार में छपी तस्वीर की वजह से डॉली को पहचाना ?”
“हां । लेकिन ये यहां क्या कर रही है ?”
उसी क्षण डॉली वापिस घूमी और काटेजों के बीच से होती हुई उनकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
“और मिस्टर... क्या नाम बताया था तुमने अपना ?”
“माथुर । राज माथुर ।”
“अब मुझे तुम्हारी भी शक्ल पहचानी हुई लग रही है । मैं तुम्हारी भी फोटो...”
“एक्सक्यूज मी ।” - राज जल्दी से बोला - “मैं अभी हाजिर हुआ ।”
उसने बीयर का मग एक नजदीकी मेज पर रखा और काटेजों की तरफ लपका । वो उनके सामने के मैदान में पहुंचा ।
सतीश की जिप्सी उसे पेड़ों के झुरमुट में दाखिल होती दिखाई दी ।
उसकी ड्राइविंग सीट पर डॉली थी और जैसी रफ्तार से वो उसे चला रही थी, उससे लगता था कि उसे वहां से कूच की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी ।
किससे दूर भाग रही थी वो ?
जरूर उससे, न कि उस विक्रम पठारे से ।
वो शख्स डॉली को नहीं जानता था, वो सतीश की किसी भी बुलबुल को नहीं जानता था । अभी कुछ क्षण पहले उसने जिन्दगी में पहली बार सतीश की कोई बुलबुल - डॉली टर्नर - साक्षात देखी थी । वो शख्स नौ-दस साल पहले पायल पर मरता नहीं हो सकता था । डॉली ने उसे फर्जी कहानी सुनाई थी क्योंकि किसी का पीछा नहीं कर रहे थे, कोई उनका पीछा कर रहा था जिससे कि डॉली बचना चाहती थी । जीप में दोहरे होकर और हाथों में चेहरा छुपाकर वो विक्रम पठारे की नहीं, किसी और की ही निगाहों में आने से बचना चाहती थी । और इस काम को अंजाम देने के लिये वो इतनी मरी जा रही थी कि उसने खामखाह उसे एक अनजाने, नामालूम आदमी के पीछे उस दूसरे आइलैंड तक दौड़ा दिया था ।
क्या लड़की थी !
क्या फसादी लड़की थी !
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