RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“और सौ बातों की एक बात ।” - ज्योति बोली - “कल जब मैंने उसे देखा था, तब वो ऐसी नहीं थी । सात साल पहले की अपनी ट्रेजेडी को वो जरूर नहीं भूली थी, उस बाबत जज्बाती भी वो बहुत हुई थी लेकिन डैडियो, उसके लिये तुम्हारे सोचे विधवा वाले रोल में वो कहीं फिट नहीं हो रही थी । उसकी उस घड़ी की चमक-दमक तो ऐसी थी कि अच्छी-भली औरत उसके पहलू में खड़ी होती तो वो विधवा लगने लगती । उसने हम लोगों के जज्बात का ख्याल किया जो यहां आ कर भी चुपचाप चली गयी, वो अपनी जिन्दगी में अपने-आपको आदर्श भारतीय नारी के अन्दाज से परम्परागत विधवा कबूल कर चुकी होती तो इधर का रुख ही न करती । आखिर पिछली छः बार से भी तो वो तुम्हारे रीयूनियन पार्टी के न्योते को नजरअन्दाज कर रही है ।”
“तुम एक बात भूल रही हो ।” - शशिबाला बोली - “वो सिर्फ रीयूनियन पार्टी में शामिल होने के लिये ही यहां नहीं आयी थी, बकौल सतीश, उसे यहां और भी काम था, कोई और ऐसा जरूरी काम था जिसे करने में उसके बारह-तेरह घण्टे खर्च हुए थे ।”
“हां ।” - सतीश बोला - “क्या काम होगा उसे ? क्यों साहबान ?” - वो दोनों पुलिस अधिकारियों से सम्बोधित हुआ - “ईस्ट एण्ड से कुछ जाना आपने ? आप वहां पायल की बाबत तफ्तीश करने वाले थे ?”
“ये अभी तक यहीं हैं ?” - डॉली बोली ।
“हां ।” - ज्योति बोली - “और हम सब इनके सामने अन्धाधुन्ध मुंह फाड़ रहे हैं । पता नहीं क्या कुछ कह दिया हम लोगों ने जो ये गांठ बांध चुके होंगे ।”
“हमारा पुलिस से कोई छुपाव नहीं है ।” - सतीश बोला - “हम इनकी तरफ हैं । कातिल को पकड़वाने के मामले में हम इनकी हर मुमकिन मदद करने को तैयार हैं ।”
“वुई एप्रीशियेट द स्पिरिट, सर ।” - सोलंकी बोला ।
“लेकिन मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला । कल आप कह रहे थे कि आप सब मालूम कर लेंगे कि पायल को ईस्टएण्ड पर कहां काम था, किससे काम था, कितनी देर तक काम था वगैरह...”
“हमें उस लाइन पर तफ्तीश करने का अभी मौका नहीं मिला ।” - सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा बोला - “हमारे पास स्टाफ की कमी है ।”
“तो और स्टाफ मंगाओ, भई । आखिर पणजी से ये इंस्पेक्टर साहब भी तो आये हैं ।”
“हम करेंगे कुछ इस बाबत ।” - सोलंकी बोला ।
“अभी तो आपको पायल की लाश तलाश करने के लिये भी आदमी चाहियें । फिर...”
तभी एक हवलदार वहां पहुंचा । ब्राण्डो की तरफ से तवज्जो हटाकर दोनों पुलिस अधिकारियों ने उसकी तरफ देखा ।
“साहब !” - हवलदार बोला - “कुएं से सामान निकाल लिया गया है ।”
“कुएं से ?” - ब्राण्डो हकबकाया-सा बोला - “कुएं की तलाशी आप कल ले तो चुके थे ।”
“आज फिर उसमें आदमी उतारा गया था ।” - फिगुएरा सहज भाव से बोला ।
“आज फिर क्यों ?”
फिगुएरा ने उत्तर न दिया ।
“आज क्या मिला वहां से ?” - ब्राण्डो ने पूछा ।
“पता नहीं । देखने पर पता चलेगा ।”
“तफ्तीश का सिलसिला” - सोलंकी बोला - “थोड़ी देर के लिये मुल्तवी किया जा रहा है । आप लोग बरायमेहरबानी एस्टेट में ही रहें, कहीं बाहर न जायें, कहीं दूर न निकल जायें ।”
“हम यहां गिरफ्तार हैं ?” - फौजिया बोली ।
“गिरफ्तार नहीं हैं, मैडम, लेकिन यहां से एकाएक कूच कर जाने की मंशा रखने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है । सो देअर ।”
फिर तत्काल दोनों पुलिस आधिकारी वहां से रुख्सत हो गये ।
***
ग्यारह बजे ब्रेकफास्ट हुआ जिसके बाद डॉली और राज टहलते हुए मैंशन के पिछवाड़े में ब्राण्डो के प्राइवेट बीच की ओर निकल गये ।
उस घड़ी कुएं के करीब कोई नहीं था ।
ⳕ”क्या बरामद हुआ होगा ?” - डॉली सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“पता नहीं ।” - राज बोला - “लेकिन पता चल जायेगा ।”
“कोई खास ही चीज बरामद हुई होगी जो वो पुलसिये अभी तक खामोश हैं ।”
“या बहुत खास या निहायत मामूली । जिक्र न करने के काबिल ।”
“ये कैसे हो सकता है ? कोई आधी रात के बाद चोरों की तरह कुएं तक पहुंचा तो उसमें कोई मामूली, जिक्र न करने के काबिल, चीज फेंक कर गया ?”
“वो चीज फेंकने वाले के लिये अहम होगी, बरामद करने वाले के लिये अहम नहीं होगी । बहरहाल इस बाबत जो होगा, सामने आ जायेगा ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया और फिर बोली - “तुम्हारे ख्याल से पायल की लाश बरामद हो जायेगी ?”
“हो ही जानी चाहिये !”
“उसके हसबैंड की तो आज तक बरामद न हुई ।”
“उसकी लाश को तो तुम लोग बताते हो कि समुद्र लील गया था । लेकिन पायल के साथ तो ऐसा नहीं हुआ । आयशा ने उसकी लाश देखी थी, तभी तो उसने चौकी पर फोन किया था ।”
“उसे खबर कैसे लगी होगी पायल की लाश की ? पता कैसे लगा होगा, या सूझा कैसे होगा उसे कि फलां जगह पायल की लाश पड़ी थी ?”
“शायद पायल ने ही किसी तरीके से आयशा से सम्पर्क साधा हो और उससे कोई मदद मांगी हो और फिर उसे मुलाकात के लिये कहीं बुलाया हो । आयशा वहां लेट पहुंची होगी । वहां पायल का कत्ल पहले ही हो चुका होगा ।”
“ओह !”
“ये आयशा तुम लोगों के मुकाबले में पायल की ज्यादा सहेली थी ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं थी अलबत्ता आयशा में ही कोई ऐसी खूबी जरूर थी कि हममें से किसी को किसी मदद या सलाह की जरूरत होती थी तो हम उसी से बात करती थीं । इसीलिये पायल ने ऐसा किया होगा ।”
“पायल से तुम्हारी कैसी बनती थी ?”
“वैसी ही जैसी बाकी बुलबुलों की बनती थी ?”
“मुलाकात ब्राण्डो के सौजन्य से ही हुई थी या तुम पहले से एक-दूसरे से वाकिफ थीं ?”
“पहले से वाकिफ थीं । अलबत्ता जान-पहचान निहायत मामूली थी । वो क्या है कि उन दिनों हम दोनों ही कुछ बन जाने जाने की फिराक में फिल्म प्रोड्यूसरों के दफ्तरों के, स्टूडियोज के, विज्ञापन एजेन्सियों के दफ्तरों वगैरह के चक्कर लगाया करती थीं । लिहाजा कहीं-न-कहीं टकराव हो ही जाता था ।”
“ऐसे चक्कर कहां लगते थे ?”
“बम्बई में ?”
“तुम बम्बई की रहने वाली हो ?”
“हां ।”
“पायल भी ?”
“नहीं । वो बड़ोदा से थी ।”
“उसकी फैमिली के बारे में कुछ जानती हो तुम ?”
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