RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा बस की लाइन में खड़ी बस की प्रतीक्षा कर रही थी ।
एक शेवरलेट गाड़ी आशा के सामने आकर रुकी और किसी ने उसे आवाज दी - “आशा !”
आशा ने घूमकर कार के भीतर देखा । शेवरलेट की ड्राइविंग सीट पर जेपी बैठा था ।
“दफ्तर जा रही हो ?” - जेपी ने पूछा ।
आशा ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“मैं बाहर जा रहा हूं । आओ तुम्हें रास्ते में छोड़ता आऊंगा ।”
आशा हिचकिचाई ।
“अरे आओ न ।” - जेपी बोला और उसने कार का आशा की ओर वाला द्वार खोल दिया ।
आशा ने अपने दाये बायें देखा । लाइन में खड़ा हर व्यक्ति बड़े विचित्र नेत्रों से उसे घूर रहा था । आशा को लगा जैसे वह भारी परेशानी का अनुभव कर रही थी ।
“और क्या हाल है ?” - जेपी बोला ।
“ठीक है, जी ।” - आशा सकुचाती हुई बोली ।
“अशोक मिला ?”
“जी नहीं ।”
“अभी तुमने सिन्हा की नौकरी नहीं छोड़ी ?”
“जी नहीं ।”
“अब तो तुम एक ग्रैंड स्टैण्ड की खातिर, लोगों में चर्चा का विषय बनने की खातिर ही नौकरी कर रही हो, वैसे तुम्हें नौकरी करने की जरूरत तो है नहीं अब ।”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“अशोक तुम्हारी बहुत तारीफ करता है ।”
“.........।”
“तुमसे बहुत मुहब्बत करता है ।”
“.....।”
“तुमने क्या तो जादू कर दिया है उस पर ।”
“.....।”
“अगर तुम इसे अपना प्रोफेशनल सीक्रेट न समझो तो एक बात पूछं ?”
“पूछिये ।”
“तुमने अशोक को फंसाया कैसे ?”
आशा जल उठी । वह अपने स्वर को सन्तुलित रखने का भरसक प्रयत्न करती हुई बोली - “मैंने अशोक को नहीं फंसाया है ।”
“ओह ! अशोक ही तुम्हारे पीछे पड़ा हुआ है । और वही जिद कर रहा है कि आशा मुझसे शादी कर लो । आशा मुझसे शादी करलो । हैं ?”
आशा चुप रही ।
“मतलब यह कि तुमने ऐसी तरकीब भिड़ाई है कि अशोक यह समझे कि वह ही तुम्हारा दीवाना है । तुम्हें उसकी कोई विशेष परवाह नहीं है । तुम तो उसकी शादी का प्रपोजल स्वीकार करके, उसकी हीरे की अंगूठी स्वीकर करके उस पर अहसान कर रही हो ।”
“ऐसी बातें करने का क्या फायदा है, सेठ जी ?” - आशा दुखित स्वर से बोली ।
जेपी चुप हो गया ।
“अच्छा एक बात बताओ ।” - थोड़ी देर बाद जेपी फिर बोला ।
“पूछिये ।”
“जिस उद्देश्य की खातिर तुम अशोक से शादी कर रही हो अगर तुम्हारा वह उद्देश्य न पूरा हुआ तो ?”
“क्या उद्देश्य है मेरा ?” - आशा ने कठिन स्वर से बोला ।
“जब कोई गरीब लड़की किसी अमीर लड़के को इस हद तक अपनी खूबसूरती और जवानी से प्रभावित कर लेती है कि लड़का उससे शादी करने के लिये तैयार हो जाये को उद्देश्य एक ही होता है । दौलत और रुतबा हासिल करना ।”
“मैंने ऐसी घृणित बात कभी नहीं सोची है ।” - आशा तनिक क्रोधित स्वर में बोली ।
“ऐसी बात सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ती ये तो अपने आप दिमाग में पनपती हैं । देखो, अशोक एक रईस बाप का बेटा जरूर है लेकिन खुद रर्ईस नहीं है । उसके अपने नाम एक नया पैसा भी नहीं है । अपनी मामूली से मामूली जरूरत के लिये उसे मेरे सामने हाथ फैलाना पड़ता है । मैंने आज तक अशोक को जिन्दगी की किसी भी सुख-सुविधा से वंचित नहीं रखा है । मैंने उसकी हर इच्छा पूरी की है । उसने जो मांगा है मैंने उसे दिया है । इसी वजह से वह दोनों हाथों से मेरा पैसा उड़ाता है लेकिन क्योंकि मुझे पैसे की कमी नहीं है । इसिलये मैंने कभी परवाह नहीं की है । अशोक मेरा इकलौता बेटा है । मैं मर जाऊंगा तो मेरी करोड़ों की सम्पत्ति का वह अकेला वारिस होगा । इसीलिये तुम्हारे जैसी लड़कियां उसके साथ यूं चिपकी रहती हैं जैसे गुड़ के साथ मक्खियां । बहुत लड़कियों ने अशोक से विवाह के लिये हां करवाने के लिये अपना बहुत कुछ कुर्बान कर दिया है लेकिन अशोक कभी भी किसी के साथ बन्ध जाने के लिये राजी नहीं हुआ है । तुम पहली लड़की हो जो अशोक को शादी के लिये तैयार करने में सफल हो गई है । जब अच्छी खासी रर्इस लड़कियों की नजर मेरी दौलत पर थी तो मैं कैसे मान लूं कि तुम केवल मुहब्बत की खातिर अशोक से मुहब्बत कर रही हो ।”
“मैं अशोक से मुहब्बत नहीं कर रही हूं ।”
“हां, हां मुहब्बत तो तुम किसी और से, किसी अपने ही वर्ग के लड़के से कर रही होगी, अशोक से तो तुम केवल शादी कर रही हो ।”
“मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“मुझसे झूठ बोलने का क्या फायदा होगा जबकि अशोक मुझे पहले ही सब कुछ बता चुका है ।”
“मैं आप से झूठ नहीं बोल रही हूं और आप मेरी नीयत पर शक करके मुझे अपमानित कर रहे हैं । सेठ जी, भगवान कसम मैं वैसी लड़की नहीं हूं ।” - आशा का गला भर आया ।
“अच्छा, मान अपमान की भावना है तुममें ?” - जेपी व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
आशा चुप रही ।
“अच्छा एक बात बताओ ।” - जेपी कुछ क्षण रूक कर बोला ।
“फरमाइये ।”
“अगर मैं तुम्हें वैसे ही ढेर सारा रुपया दे दूं तो क्या तुम अशोक का पीछा छोड़ दोगी ?”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“मतलब यह है कि अशोक का पीछा तुम नहीं छोड़ोगी । ठीक भी है । जब सारी दौलत पर नजर हो तो उनके एक भाग का लालच तुम्हें कैसे लुभा सकता है ।”
आशा के लिये और सहन कर पाना कठिन हो गया ।
“सेठ जी ।” - वह कठिन स्वर से बोली - “जरा गाड़ी रोकिये ।”
“क्यों ?” - जेपी बोला - “अभी तो महालक्ष्मी बहुत दूर है ।”
“जी हां, मुझे मालूम है ।” - लेकिन मुझे यहीं उतरना है ।
“अच्छी बात है ।” - जेपी बोला और उसने गाड़ी को मोटर ट्रेफिक में से निकाल कर एक ओर रोक दिया ।
“अब शायद तुम अशोक को जाकर बताओगी” - जेपी बोला - “कि किस प्रकार मैंने तुम्हारा अनादर किया है, तुम्हारी नीयत पर शक किया है, तुम्हारे पवित्र प्यार की उससे भी पवित्र भावनाओं की खिल्ली उड़ाई है, तुम पर गोल्ड डिगर होने का लांछन लगाया है वगैरह... वगैरह...”
आशा कार का द्वार खोलकर बाहर फुटपाथ पर आ खड़ी हुई और द्वार को दुबारा बन्द करती हुई सुसंयत स्वर से बोली - “नमस्ते सेठ जी, लिफ्ट के लिये धन्यवाद ।”
“धन्यवाद कैसा ।” - जेपी सहज स्वर से बोला - “गाड़ी तम्हारी है । अभी नहीं है तो कुछ दिनों में हो जायेगी । वैसे शादी जल्दी ही कर रही हो या बिल्ली चूहे को मारने से पहले अभी थोड़ी देर और खिलायेगी ।”
आशा जेपी की बात अनसुनी करती हुई फुटपाथ पर चलने लगी । कुछ क्षण जेपी की गाड़ी पीछे फुटपाथ के साथ लगी खड़ी रही, फिर गाड़ी स्टार्ट हुई और सर्र से आशा की बगल में से निकल गई और सड़क पर दौड़ती हुई अनगिनत मोटर गाड़ियों की भीड़ में कहीं गुम हो गई ।
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