RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘पहले मुझे किसी बड़ी पो़जीशन के लायक तो बनने दो; तुम्हारी सिफारिश से मुझे पो़जीशन तो बड़ी मिल जाएगी, मगर उसे सँभालना तो मुझे ही होगा।’’
‘‘कबीर, ये जॉब भी तो तुम्हें माया की सिफारिश पर ही मिली है...।’’
‘‘प्रिया, कहना क्या चाहती हो? क्या मैं इस जॉब के लायक नहीं हूँ? क्या मुझमें कोई काबिलियत ही नहीं है?’’
‘‘कबीर मैंने ऐसा नहीं कहा, तुम ग़लत समझ रहे हो।’’
‘‘प्रिया तुम्हारी दिक्कत क्या है! मैं छोटी जॉब कर रहा हूँ, या मैं माया के साथ जॉब कर रहा हूँ?’’
‘‘मेरी दिक्कत ये है कि तुम मुझसे ज़्यादा वक्त माया को दे रहे हो।’’
‘‘तो सा़फ-सा़फ कहो न, कि तुम्हें माया से जलन हो रही है।’’
‘‘हाँ कबीर, मुझे माया से जलन हो रही है। माया में ऐसा क्या है; क्या वह मुझसे ज़्यादा हॉट है? मुझसे ज़्यादा सेक्सी है? मुझसे ज़्यादा सुंदर है? मुझसे ज़्यादा रिच है? क्या है ऐसा माया के पास, कि तुम मुझे धोखा देकर उसके पास जा रहे हो।’’ प्रिया चीख उठी।
‘‘प्रिया, ये रेस्टोरेंट है घर नहीं; हम ये बात कहीं और भी कर सकते हैं।’’ कबीर ने प्रिया को शांत कराना चाहा।
‘‘मुझे अब तुमसे कोई और बात नहीं करनी कबीर; फैसला तुम्हें करना है... तुम्हारा जो भी फैसला हो मुझे बता देना, मैं तुम्हें रोकूँगी नहीं।’’ प्रिया ने गुस्से से कहा, और फिर अपना बैग उठाकर उसमें से उसने एक ख़ूबसूरती से रैप किया हुआ गिफ्ट निकाला, ‘‘और हाँ, ये मैं तुम्हारे लिए इंडिया से लाई थी, तुम्हें पसंद हो तो रख लेना।’’
कबीर को गिफ्ट देकर, प्रिया अपना बैग उठाकर रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई। कबीर, प्रिया को जाते हुए देखता रहा। ये वही प्रिया थी, जिसकी अल्हड़ चाल पर वो फ़िदा था, जिसकी आँखों के तिलिस्म में वह खो जाना चाहता था। प्रिया की चाल अब भी उसे लुभाती थी; प्रिया की आँखें अब भी उसे, उनमें डूब जाने का आमन्त्रण देती थीं। कुछ ख़ास तो नहीं बदला था; बस उन दोनों के बीच माया आ खड़ी हुए थी। नहीं; दरअसल माया उनके बीच नहीं आई थी; माया को तो कबीर ने ख़ुद अपने और प्रिया के बीच लाकर बैठाया था, और उसके सम्मोहन के आगे समर्पण कर दिया था। माया में ऐसा क्या था जो प्रिया में नहीं था? प्रिया में सब कुछ था, मगर यदि कबीर किसी के सम्मोहन की दासता स्वीकार कर सकता था, तो वह माया का था, प्रिया का नहीं। यदि कबीर ख़ुद को चार्ली की तरह किसी के सामने सिर झुकाए देख सकता था, तो वह माया थी, प्रिया नहीं।
कबीर ने गिफ्ट रैप खोला। भीतर डायमंड और रो़ज गोल्ड की खूबसूरत सी पर्सनलाइज्ड रिस्ट वॉच थी। इतनी महँगी वाच पहनने की कबीर की हैसियत नहीं थी। हैसियत तो कबीर की, प्रिया का जीवनसाथी बनने की भी नहीं थी।
उस शाम प्रिया, माया से खिंची-खिंची सी रही, जिसका अहसास और अपराधबोध दोनों ही था माया को; मगर माया ने अपना रास्ता तय कर लिया था। वह कबीर की तरह दुविधा में जीने वालों में नहीं थी।
अगले दिन ऑफिस में माया, गुस्से से कबीर की डेस्क पर पहुँची। ‘‘यह क्या है कबीर; तुमने रि़जाइन कैसे किया?’’
‘‘माया, किसी कमरे में चलें? यहाँ आसपास लोग हैं।’’ कबीर ने माया के तमतमाए चेहरे को देखकर धीमी आवा़ज में कहा।
माया झटपट मुड़ी, और पास ही बने एक मीटिंग रूम की ओर बढ़ी। कबीर भी उसके पीछे मीटिंग रूम में पहुँचा। माया ने रूम का दरवा़जा बंद करते हुए एक बार फिर कबीर को तमतमाकर देखा।
‘‘माया, मुझे कुछ वक्त चाहिए; और तब तक मैं प्रिया और तुमसे, दोनों से ही दूर रहना चाहता हूँ।’’ कबीर ने कहा।
‘‘कबीर, अब तुम हम दोनों से ही दूर भागना चाहते हो? अब तक प्रिया से मुँह छुपा रहे थे, अब मुझसे भी मुँह छुपाओगे? तुम हिम्मत करके सिचुएशन को फेस क्यों नहीं करते?’’
‘‘माया, ऐसा नहीं है।’’
‘‘ऐसा ही है कबीर! प्रिया से धोखा तो तुम कर ही चुके हो, अब क्या तुम मुझे भी धोखा दोगे?’’
‘‘माया, मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा, बस थोड़ा सा वक्त माँग रहा हूँ।’’
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