RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'परन्तु मैं तो इस देश में मित्रता स्थापित करने आया हूं।'
'परन्तु आर्य सम्राट ! मित्रता के लिए साथ में इतनी विशाल सेना की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्या आप बल प्रयोग द्वारा मित्रता स्थापित करना चाहते हैं।'
'नायक!' आर्य सम्राट मुस्करा उठे- 'मैं तुम्हारे बुद्धि-चातुर्य की प्रशंसा करता हूं। धन्य है तुम्हारी माता जिसने तुम्हें जन्म दिया।'
'आप भी धन्य हैं, श्रीमान्। अपनी माता की प्रशंसा करने वाले को मैं आदर की दृष्टि से देखता हूं।' पर्णिक ने कहा।
'देखो नायक' सम्राट गंभीर वाणी में बोले—'हमारा आर्य-धर्म संसार में सर्वोच्च है। हम लोग उसके कदर अनुयायी हैं। उसी धर्म का प्रसार करने हम निकले हैं...हमारे यहां आने के दो मुख्य कारण है। प्रथम तो यह कि हमें रहने के लिए मध्य अशांत महाद्वीप में स्थान का बहुत अभाव है,अत: हम यहां अपने कुछ मनुष्यों को बसाना चाहते हैं। इस देश से अच्छा निकटतम कोई भी देश नहीं है कि हम वहां जाकर बस सकें—इसलिए हम यहाँ आये हैं। दूसरा कारण यह है कि यहां हम लोग अपनी सभ्यता का प्रसार करना चाहते हैं।'
'परन्तु अपना धर्म एवं अपनी संस्कृति त्यागकर, आपकी सभ्यता को कौन स्वीकार करना चाहेगा, श्रीमान्?' पूछा पर्णिक ने।
'तुम अंधकार में हो नायक उत्कृष्ट संस्कृति को ग्रहण करना मनुष्यमात्र का परम कर्तव्य है।'
'अगर कोई इसके लिए प्रस्तुत न हो तो...?'
'तो इसके लिए बल प्रयोग करना मैं राजनीति का एक अंग समझता हूं।'
'आपको जानना चाहिये श्रीमान ! कि पर्णिक की माता ने उसे मरना सिखाया है, जीना नहीं...।' पर्णिक ने गर्व से कहा।
'धन्य है तुम्हारी माता!'
आर्य सम्राट के मुख से पुन: अपनी माता की प्रशंसा सुन पर्णिक का मन आर्य सम्राट की शालीनता पर पानी-पानी हो गया।
'मगर श्रीमान्। हमने स्वदेश-रक्षा के निमित्त यह अभियान किया है।'
'तुम्हारी स्वदेश-भक्ति प्रशंसनीय है, वीर युवक मैं तुम्हारे स्वदेश का अहित चिंतक नहीं हूं। मैं अपने रहने के लिए कुछ भूमि चाहता हूं और चाहता हूं, अपने उत्कृष्ट धर्म का प्रसार। यदि यह कार्य नम्रतापूर्वक पूर्ण हो जाय तो बल प्रयोग करना मैं कभी नहीं चाहूंगा।'
............।' पर्णिक निस्तबध रहकर आर्य सम्राट की बातों पर विचार करता रहा।
'मैं इसी हेतु तुम्हारे पास आया हूं, नायक मैं अपने कार्य में तुम्हारी सहायता करना चाहता हूं —तुम्हें अपनी सेना में सम्मिलित करना चाहता हूं। तुम्हारी सम्मिलित होने से हमारी शक्ति द्विगुणित हो जायेगी...यों तो मैं बल प्रयोग भी कर सकता था, मगर तुम्हारी सहृदयता एवं वीरता से मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हूं।'
'परन्तु मैं इसे अस्वीकार करता हूं, श्रीमान्।'
'इसका कारण...? इधर देखो, आर्य-सम्राट तिग्मांशु आकर एक तुच्छ भिक्षा मांग रहे हैं और तुम अस्वीकार कर रहे हो? क्या तुम्हारी माता ने तुम्हें यही शिक्षा दी है कि अपने पास आये हए अतिथि की प्रार्थना पैरों तले कुचल दो? क्या तुम्हारी माता ने तुम्हें यही सिखाया है कि तुम अपने पास सहायता के लिए पास आये हुए व्यक्ति का अपमान एवं तिरस्कार करो?'
'...........।
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