RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग १९)
अन्दर सीट बड़ा ही आरामदायक था | पर्दे लगे थे आस पास | एक मीठी, भीनी भीनी सी खुशबू फ़ैली थी अन्दर | अन्दर बैठने पर मैं ड्राईवर और उसके बगल में बैठे उस काले चश्मे वाले आदमी को देख नहीं पा रहा था और शायद वो भी मुझे नहीं देख पा रहे होंगे; क्योंकि उनके सीट के ठीक पीछे एक मेटलिक दीवार था जिस कारण मैं उनको देख नहीं पा रहा था और शायद वो मुझे | अभी और जायज़ा ले ही रहा था की तभी,
“हेल्लो अभय.. हाऊ आर यू?” – एक आवाज़ गूँजा |
मैं आवाज़ की दिशा की तरफ़ मुड़ा, सामने वाली सीट के ही बिल्कुल किनारे में एक छोटा टेप रेकॉर्डर सा बॉक्स रखा था --- आवाज़ वहीँ से आई थी --- मैं एकटक दृष्टि लगाए रखा उस पर --- आवाज़ दुबारा आई ..
“हैरान मत हो अभय, ये स्पीकर कम माइक्रोफोन है ---- तुम मुझे सुन सकते और मैं तुम्हे | ”
“जी, आप कौन?” – घबराये स्वर में मैंने पूछा |
“ह्म्म्म... आवाज़ क्लियर नहीं पहुँच रही होगी तुम तक शायद... इसलिए पहचान नहीं पाए ; मैं एक्स हूँ.. मिस्टर एक्स.. तुम्हारा शुभचिंतक |” – दूसरी ओर से आवाज़ आई |
“ओहह.. तो ये आप हैं ... जी, बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिलकर .. आई मीन, आपकी आवाज़ सुनकर |” – मैं अभी भी घबराया हुआ था |
“ह्म्म्म... थैंक्स, तुम पहले आदमी हो जिसे मुझसे मिलकर या मेरी आवाज़ सुनकर ख़ुशी हुई | खैर, तो अब ये बताओ की तुम भरी दिन में ही इस तरह से जासूसी क्यों करने लगे? तुम्हें मैंने समझाया था न कि इस तरह का कोई भी काम करने की गलती; गलती से भी मत करना...|” – दूसरी तरफ़ से आई आवाज़ में नाराज़गी साफ़ महसूस की जा सकती थी |
“मैं इसे तुम्हारी दृढ़ता समझूँ या ढीटता ....??” – फ़िर आवाज़ आई |
दो पल ठहर कर थोड़ी हिम्मत जुटा कर होंठों पर जीभ फ़ेर कर भीगोते हुए बोला, “अंग्रेजी में एक कहावत है, अ मैन इज़ जज्ड बाई हिज़ एक्शन नट बाई हिज़ इंटेंशन .. अब आप ही तय कीजिए.. मेरी इस हरकत को आप क्या नाम देना चाहेंगे?”
कुछ सेकंड्स की शान्ति छाई रही ---
और फ़िर आवाज़ आई,
“देखो अभय, मैं तुम्हे दिशा दे सकता हूँ, निर्देश नहीं.. और न आदेश | तुम्हें कौन सी बात माननी है और कौन सी नहीं माननी.. क्या करना है और क्या नहीं..ये सब तुम्हारे ही फैसलों पर निर्भर है --- अगर तुम्हें लगता है की हमसे तुम्हारा कोई फायदा नहीं तो तुम चाहो तो हमारे रास्ते अलग हो सकते हैं |”
इस बार चौंका मैं --- मेरी नादानी की वजह से कहीं मैं अपने इस अनजाने मददगार को खो न दूँ --- एक तो वैसे भी काफ़ी कुछ क्लियर नहीं है चाची या उनसे जुड़े घटनाओं और गतिविधियों के बारे में और ऊपर से इसकी ऐसी पेशकश ….. उफ़.. बुरा फँसा मैं ---!
मैंने जल्दी से बात को संभालने की कोशिश की ……
“जी, देखिये, बात मेरी परिवार की है --- चाचा और चाची, दोनों से ही मुझे बहुत प्यार मिला है --- तो फ़िर, ऐसे में जब उनके आस पास कोई संकट हो और चाची भी उस से घिरी हो; तो आप ही बताइए की क्या मैं चुप रह सकता हूँ ऐसे हालात में? कुछ तो करना ही था मुझे ; और जब तक पूरी विषयवस्तु अच्छे तरह से स्पष्ट नहीं हो जाती तब तक मैं सिवाए जासूसी के और कर भी क्या सकता हूँ ??”
इन तर्कों के साथ मैंने अपनी मजबूरी बतानी और नादानी छुपानी चाही | इधर स्पीकर से भी कुछ पलों के लिए कोई आवाज़ नहीं आई |; फिर अचानक से वही खरखराती आवाज़ गूँजी उन वैन में ....
“तुम्हारे बातों में दम है... पर एक बात बताओ...”
“जी, पूछिए...” – मैं तपाक से बोल पड़ा |
“तुम्हें इतना यकीं क्यूँ है की तुम्हारी चाची वाकई किसी मुसीबत में है....ऐसा भी तो हो सकता है की वो खुद कोई मुसीबत हो?? ”
इस बात ने जैसे एक बम सा गिराया मेरे सिर पर ....
“जी???...ज.....ज......जी, आ.... आप.... आप क्या कहना चाहते हैं?” – मेरे मुँह से शब्द किसी तरह निकले |
“मैं पक्के तौर पर कुछ भी कह रहा हूँ अभय, और न ही मैं ऐसे किसी नतीजे पर पहुँचा हूँ ... सिर्फ़ शक समझो इसे... क्या ये कोई हैरानी की बात नहीं कि जिस चाची के तुम किसी तरह के किसी संकट में होने बात कर रहे हो, परेशान रहते हो और इस बात को अब एक महिना होने को आ गया ; वो चाची अभी तक पूरी तरह से महफूज़ है | उसे कोई परेशानी ज़रूर है पर वो तुमसे या तुम्हारे चाचा से अभी तक शेयर नहीं की... चलो ठीक है, शायद परेशानी शेयर करने लायक नहीं हो .. पर ऐसी कौन सी परेशानी है जिससे वो सुबह शाम परेशान रहती है लेकिन फ़िर भी बहुत ही अच्छे तरीके से खुद ही हैंडल कर ले रही है?? सोचो अभय, ज़रा सोचो.. वो अक्सर घर से किसी न किसी बहाने निकलती है और देर शाम को या देर से घर लौटती है... अब ये मत कहना की आजकल कुछ दिनों से तुमने अपनी चाची को अपने साथ कोई बैग लाते हुए नहीं देखा... देखा तो ज़रूर होगा.. है ना ...? वो बैग क्यों लाती है और उस बैग में क्या होता होगा... इस बारे में सोचा तुमने? जानने की कोशिश की?”
जैसे जैसे उस आवाज़ ने कई सारे पॉइंट्स गिनाए और उन पॉइंट्स के साथ प्रश्न किए .. मैं सोच में डूबता गया और मेरी पेशानिओं में बल पड़ते गए | उस वैन में ऊपर की ओर दो साइड से दो छोटे छोटे टेबल फैननुमा पंखे लगे थे जिनसे अच्छी हवा भी मिल रही थी पर फ़िर भी मेरे माथे पर पसीने की कुछ बूँदें छलक आई थीं.. मैंने पॉकेट से रुमाल निकाल कर माथे को पोछा और इसी के साथ ही दूसरी ओर से आवाज़ आई,
“पोछ लो अभय, पसीने को पोछ लो... पर साथ ही मेरे दागे गए सवालों के बारे में भी सोचो |”
“क्या आप बता सकते हैं कि अभी मेरी चाची कहाँ होगी?” रूमाल को वापस पॉकेट में रखते हुए मैंने पूछा |
“बता सकता हूँ पर बताऊंगा नहीं .. इसकी अपनी वजह है --- खैर, तुम कल शाम साढ़े छह बजे फ्री रहना --- सात बजे तुम्हें योर होटल कम रेस्टोरेंट में पहुँचना है; वहां पहुँचने पर तुम्हें एक अलग ही चाची दिखेगी, आज और अभी वो जिसके साथ होगी, कल भी उसी के साथ होगी और आज जो कर रही होगी शायद कल भी वही करेगी.. मैं चाहता हूँ की तुम खुद अपनी आँखों से सब देखो |”
संशय भरे लहजे में मैंने पूछा, “आं... म्मम्म... पर आप खुद भी तो बता सकते हैं..”
“हाँ, ज़रूर बता सकता हूँ पर बताना आसान नहीं है.. बेहतर यही होगा की कल तुम खुद ही सब देख आओ |”
कुछ सोचते हुए मैं बोला,
“पर मैं ऐसे ही तो नहीं जा सकता न.. मेरा निजी अनुभव कहता है कि वो लोग और वो जगह बहुत खतरनाक है |”
“हाँ, सही कह रहे हो .... अपने सीट के नीचे देखो --- एक बैग होगा वहाँ |” – दूसरी ओर से आवाज़ आई |
मैंने तुरंत सीट के नीचे देखा, एक काले रंग का मध्यम आकार का बैग रखा था |
“बैग को निकालो और खोल कर देखो |” – फ़िर आवाज़ आई |
मैंने उस आवाज़ के कहे अनुसार तुरंत उस बैग को सीट के नीचे से निकाला और चेन खोल कर अन्दर देखा ; हल्के नारंगी रंग के कपड़े रखे थे, शायद ब्लेजर होगा | एक पैंट भी था .. नारंगी रंग का और साथ था एक सफ़ेद शर्ट |
मैं आश्चर्य और आँखों में ढेर सारे प्रश्न लिए उन कपड़ों को अभी देख ही रहा था कि फ़िर से आवाज़ आई –
“हैरानी हो रही होगी तुम्हें और साथ ही सोच भी रहे होगे की ये सब आखिर क्या है?... हैरान न हो.. ये कपड़े दरअसल उसी योर होटल के वेटर्स के यूनिफार्म में से एक है ; कल तुम्हें इन्हीं कपड़ो में योर होटल में जाना है --- इससे लोग तुम्हें उसी होटल का ही एक वेटर समझेंगे --- कई बार होटल का मालिक ख़ास मौकों पर वेटर की कमी होने पर बेरोज़गार लड़कों को एक रात के लिए काम पर रख लेता है ; और अगले दिन अच्छी खासी रकम देकर अलविदा कर देता है --- यहाँ एक बड़ी बात ये है की वो एक बार लड़कों को रखने के बाद दोबारा उनकी जांच नहीं करता इसलिए तुम बेफ़िक्र हो कर वहाँ घुस सकते हो और फ़िर सावधानी से अपना काम कर के निकल सकते हो.... और हाँ, तुम्हें कपड़े कहाँ बदलने हैं, होटल में घुसने के बाद तुम्हें क्या क्या करना है, कैसे सर्विस शुरू करनी है...ये सब इसी बैग में एक पेपर में लिख कर रखा हुआ है ; घर जा कर अच्छे से पढ़ लेना... ओके? ”
“ओके ... मम्मम...एक बात और, प्लीज़ एक हिंट दे दीजिये कि चाची वहां अगर होगी तो क्या कर रही होगी? ”
“ह्म्म्म,... चलो ठीक है, एक छोटा सा हिंट तो दे ही सकता हूँ, वहां तुम्हारी चाची खातिर मदारत करती है वीवीआईपी टाइप के मेहमानों का | ”
मैं चकराया, ये क्या कहा इसने?
पूछा,
“जी, एक बार फ़िर से दोहराएँगे आप.. अभी अभी आपने जो कहा, मैं उसका मतलब समझा नहीं |”
“मेहमान नवाज़ी करती है | ” – आवाज़ इस बार थोड़ा गंभीर सा लगा |
कुछ देर और चलने के बाद एक जगह गाड़ी रुकी और इतने में उस स्पीकर से आवाज़ आई,
“तुम जा सकते हो अभय, अभी तुम्हारे घर में कोई नहीं है --- उस पेपर में लिखे इंस्ट्रक्शन्स को पढ़ने मत भूलना --- जो और जैसा लिखा हुआ है बिल्कुल वैसा ही करना --- होटल के अन्दर जाने के बाद सब कुछ तुम्हारे कॉमन सेंस और सावधानी पर डिपेंड करेगा --- अपनी तरफ़ से बात बिगड़ने मत देना और अगर फ़िर भी कुछ ऐसा वैसा हो गया तो वहां मेरे आदमी होंगे मामले को सँभालने के लिए .... अब जाओ | गुड बाय |”
“पर मिस्टर एक्स, मैं आपके आदमी को पहचानूँगा कैसे ?” – अत्यंत कौतुहलवश मैं पूछ बैठा |
दो क्षण रुक कर आवाज़ आई,
“टेक केयर अभय |”
और इसी के साथ एक हल्की, खट सी आवाज़ आई दूसरी ओर से | फ़िर सब शांत.... सम्बन्ध विच्छेद हो गया था | मिस्टर एक्स मदद तो करना चाहते हैं पर बहुत ही सीमित रूप से | वैन का दरवाज़ा खुला | मैं सावधानी से बैग लेकर बाहर निकला | घर से कुछ ही दूरी पर था, मोड़ को क्रॉस कर चुका था | एक कदम आगे बढ़ कर वैन से थोड़ा दूर हुआ | देखा, सामने वाले सीट पर का शीशा उठा हुआ है | काला शीशा | वैन से थोड़ी दूरी बनते ही वैन स्टार्ट हुई और आगे निकल गई |
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घर पहुँच कर देर तक आने वाले कल के बारे में सोचता रहा | शाम को उसी तरह चाची कंधे पर एक बैग लटकाए घर आई | उस समय मुझे उनके हावभाव और शायद चेहरे के नक़्शे भी कुछ बदले बदले से लगे; मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया ... और दूं भी क्यों ? चाची तो बहुत पहले से ही बदलने लगी थी | वैसे भी मैं, मेरे मन में पहले से ही चल रहे बहुत से विचारों के उधेरबुन में फँसा हुआ था |
रात को डिनर के समय, मैंने अनजाने में चाची को गौर से देखा, पहले से थोड़ी और भरी भरी सी काया लग रही थी उनकी ---
चेहरे पर भी एक अलग ही ग्लो था; शायद फेसिअल की वजह से हुआ हो ---
पर था बिल्कुल ही एक अलग ही चमक उनके चेहरे पर ... गाल जैसे पहले से और ज़्यादा गोरे और लाल लग रहे थे --- उनके चेहरे का एक अलग ही आकर्षण बना हुआ था | अपनी ओर एकटक मुझे देखते देख चाची मुस्कुराई पर साथ ही थोड़ी संजीदा सी हो गई |
चाची – भतीजे में हल्की नोंक-झोंक भी हुई पर पूरे समय संजीदगी से पेश आई और ऐसा लगा जैसे वो मेरे चेहरे के साथ साथ मेरे मन में क्या चल रहा है उसे भी पढना चाह रही हो | मैंने भी काफ़ी सतर्कता का परिचय दिया और कई सारी बातों को अपने तक ही सीमित रखा |
चाची का इस प्रकार संजीदगी दिखाना मुझे थोड़ा अजीब लगा क्योंकि चाची थोड़ी बच्ची और खिलंदरी टाइप की महिला है | बातों को ज़्यादा घूमा फिरा कर कहना या किसी विषय पर बहुत ज़्यादा सीरियस हो कर कुछ कहना तो जैसे उनको आता ही नहीं था; उनके स्वाभाव में ही नहीं था ....
पर आज उनके चेहरे और आँखों ने कुछ अलग ही कहानी पेश करनी चाही --- |
अब तो ये पूरा मामला मेरे लिए और भी अधिक रोमांचकारी और जिज्ञासा भरा हो गया था ...
रात में काफ़ी देर तक उस कागज़ के में दिए गए दिशा-निर्देशों एवं पूरे प्लान को पढ़ते रहा, जो मिस्टर एक्स ने दिया था मुझे ... --- अंत में दो-तीन सिगरेट खत्म कर, अगले दिन एक अलग ही काम करने के रोमांच को तन मन में समेटे मैं सोने चला गया |
क्रमशः
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