RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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निक्की के जाने का दुख वहाँ खड़े सभी लोगों को हो रहा था. खास कर जिस वजह से उसका जाना हुआ था, वो वजह और भी ज़्यादा दुख पहुचाने वाली थी. फिर भी मोहिनी आंटी के वहाँ रहने की, वजह से सबको निक्की का वहाँ से जाना ही ठीक लग रहा था.
पद्मिनी आंटी ने प्रिया को चुप कराया और फिर हम सब लोग घर के अंदर आ गये. सब हॉल मे आकर गुम सूम से बैठ गये. मुझे वहाँ बैठना अच्छा नही लग रहा था. इसलिए मैं उठ कर, अपने कमरे मे आ गया.
मैं अपने कमरे मे वापस आया तो, आते ही एक बार फिर मेरी नज़र उन गिफ्ट पर पड़ी, जिन्हे थोड़ी देर पहले हम सब मिल कर देख रहे थे. अभी थोड़ी देर पहले वहाँ कितना हँसी खुशी का माहौल था और अब एक उदासी भरा सन्नाटा फैल गया था.
वो सारे गिफ्ट मुझे निक्की ने ही लाकर दिए थे. ये बात याद आते ही, निक्की की कमी के अहसास से, मेरी आँखों मे नमी छा गयी. मैं ना चाहते हुए भी निक्की के बारे मे सोचने पर मजबूर हो गया था.
मैं जब पहली बार इस घर मे आया था तो, निक्की ही वो लड़की थी, जिसे मैं सबसे ज़्यादा नापसंद करता था. लेकिन निक्की ने खुद से आगे आकर, मेरी मदद की और फिर और अगले ही दिन वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गयी थी. यहाँ तक कि उसे मेरे और कीर्ति के रिश्ते का पता होने के बाद भी, उसने इस बात को सबसे राज़ बनाए हुए ही रखा था.
जबकि आज मेरी वजह से ही उसे इस बेज़्जती का सामना करना पड़ गया था. मेरी वजह से इसलिए क्योकि, वो तो बोर्डिंग वापस जा रही थी. लेकिन मेरी वजह से उसे अपना, बोर्डिंग वापस जाना रोकना पड़ा था और आज कीर्ति की एक ज़रा सी नादानी की वजह से, उसकी इतनी ज़्यादा बेज़्जती हो गयी थी.
मगर मैं इस सबके लिए कीर्ति को भी दोषी नही मान सकता था. क्योकि कीर्ति की हर सोच मुझसे ही सुरू होती थी और मुझ पर ही जाकर ख़तम हो जाती थी. उसने ये सब क्यो किया, ये तो मैं नही जानता था. मगर इतना ज़रूर जानता था कि, उसने ये किसी ना किसी वजह से मेरे लिए ही किया था.
मुझे अब बहुत ज़्यादा अकेलापन सता रहा था और मेरा मन कीर्ति से बात करने का कर रहा था. लेकिन अभी वो स्कूल मे थी और मैं उस से बात नही कर सकता था. इसलिए मैने अपना दिल हल्का करने के लिए छोटी माँ को कॉल लगा दिया.
लेकिन हमेशा की तरह अभी भी उनका कॉल उठाने का नाम नही ले रहा था. मुझे उनकी इस बात पर बहुत गुस्सा आता था कि, वो कभी भी अपना मोबाइल अपने पास नही रखती थी. अभी भी शायद उनका मोबाइल उनके कमरे मे था और वो किसी काम मे बिज़ी थी. फिर भी उनसे बात करने की बेचेनी की वजह से मैं उनको कॉल लगाता ही जा रहा था.
मैं अभी छोटी माँ को कॉल लगा ही रहा था कि, तभी मुझे प्रिया आती हुई दिखाई दी. वो अपने कपड़े बदल चुकी थी. अभी उसने पिंक स्कर्ट और वाइट टॉप पहना हुआ था. ऐसे लग रहा था, जैसे कि वो कहीं जाने की तैयारी मे है.
उसे देखते ही मैं अपने चेहरे पर हाथ फेर कर, अपनी आँखों मे छाइ नमी को पोच्छने लगा. लेकिन उसे मेरे चेहरे को देख कर, मेरी हालत का अहसास हो चुका था. उसने मेरे पास आकर बैठते हुए, बड़ी ही मासूमियत से कहा.
प्रिया बोली “निक्की की याद आ रही है ना.”
मैने प्रिया की इस बात पर मुस्कुराने की नाकाम कोसिस करते हुए कहा.
मैं बोला “हां, उसके बिना बहुत सूना सूना सा लग रहा है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मेरी बात का मज़ाक उड़ा कर, मुस्कुराते हुए कहा.
प्रिया बोली “तो अरे इसमे इतना गम मानने की ज़रूरत क्या है. तुम्हारा ख़ालीपन भगाने के लिए मैं जो यहाँ हूँ.”
प्रिया की ये बात सुनकर, मैं गौर से प्रिया के चेहरे को देखने लगा. प्रिया के इस पल पल बदलते रूप को समझ पाना मेरे बस की बात नही थी. मैं उसके चेहरे को देख कर, ये जानने की कोसिस करने लगा क़ी, प्रिया की ये मुस्कुराहट असली है या फिर ये मुस्कुराहट सिर्फ़ मेरा दिल बहलाने के लिए है.
ये बात सोचते सोचते अचानक मुझे निक्की की, एक बात याद आ गयी. जो निक्की ने प्रिया की बीमारी के, मुझे पता चलने पर कही थी कि, “प्रिया सब कुछ अपने दिल के अंदर छुपा कर रखती है. वो अपना दर्द किसी को दिखाना पसंद नही करती. उसे शायद किसी का दिल दुखाना या किसी को उदास देखना अच्छा ही नही लगता.”
मुझे निक्की की ये बात याद आई तो, आज मुझे इस बात की गहराई का भी अहसास हो गया था. निक्की ने प्रिया के बारे मे जो कुछ भी कहा था, सच ही कहा था. मैने ही कभी प्रिया को समझने की कोसिस नही की थी. मैं प्रिया को हमेशा एक नासमझ और नादान लड़की ही समझता रहा था.
मगर आज जब मैने प्रिया को समझा तो, मुझे उसके दिल की गहराई के सामने, समुंदर की गहराई भी कम नज़र आने लगी थी. उसने कितनी आसानी से इस बात को कबूल कर लिया था कि, मेरा प्यार वो नही, कोई दूसरी लड़की है. इस बात को लेकर उसने फिर कभी मुझे कोई बहस या कोई सवाल नही किया था.
मैं प्रिया की बात सुनकर, उसके बारे मे सोचने लगा था. उधर प्रिया को मेरे चेहरे के पल पल बदलते भाव देख कर, लगने लगा था कि, मुझे उसकी बात का बुरा लग गया है. इसलिए उसने अपनी बात की सफाई देते हुए कहा.
प्रिया बोली “अरे तुम मेरी बात को ग़लत मत समझो. मैं तो बस मज़ाक कर रही हूँ.”
प्रिया की ये बात सुनते ही, मैं अपने ख़यालों से बाहर आ गया और मैने बात को बदलते हुए कहा.
मैं बोला “मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नही लगा. मैं जानता हूँ कि, तुम मज़ाक कर रही हो.”
मेरी बात को सुनकर, प्रिया को राहत महसूस हुई. लेकिन अभी वो कुछ बोल पाती कि, उसके पहले ही मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल देखा तो, छोटी माँ का कॉल आ रहा था. मैने प्रिया को बताया कि, मेरी मम्मी का कॉल आ रहा है. मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी.
मैने कॉल उठाया तो, मुझे कॉल उठाते ही, छोटी माँ के हाँफने की आवाज़ आई. ऐसा लग रहा था की, जैसे वो बड़ी दूर से भागती हुई आई है. मैने उन से इसकी वजह जानने के लिए कहा.
मैं बोला “क्या हुआ. आप इतना हाँफ क्यो रही है.”
छोटी माँ बोली “मैं उपर थी. मोबाइल बज रहा था, इसलिए उपर से भागती हुई आई हूँ.”
छोटी माँ की बात सुनकर, मुझे हँसी आ गई और मैने उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहा.
मैं बोला “लेकिन इसमे भागने की क्या ज़रूरत थी. मोबाइल बज ही तो रहा था. कोई भाग थोड़ी रहा था. जो आप उसे पकड़ने के लिए भाग रह थी.”
लेकिन मेरी इस बात के बदले मे छोटी माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “चल अब ज़्यादा मत इतरा. तेरी वजह से ही भागना पड़ा. वरना तू कहता कि, मुझे तेरी फिकर ही नही रहती.”
मैं छोटी माँ की इस बात का मतलब अच्छे से समझ गया था. वो मेरी पहले कही बात की वजह से ऐसा बोल रही थी. लेकिन फिर भी मैने इस बात से अनजान बनते हुए कहा.
मैं बोला “आप तो ऐसे बोल रही है. जैसे कि आपका मोबाइल चीख चीख कर बोल रहा हो कि, मेरा कॉल आ रहा है.”
छोटी माँ बोली “चल अब मुझे ही सिखाने की कोसिस मत कर. रिचा दीदी मुझे पहले ही तेरी सारी बात बता चुकी है और उन्हो ने ये भी कहा था कि, तू मुझे कॉल करेगा.”
मैं बोला “लेकिन आपने ये क्यो सोचा कि, ये आने वाला कॉल मेरा ही है. किसी और का कॉल भी तो हो सकता था.”
छोटी माँ बोली “क्योकि, तेरे जैसा बेसबरा कोई और नही है. तू एक बार कॉल लगाना सुरू करता है तो, फिर लगाता ही जाता है. जैसे कि सामने वाला मोबाइल के पास ही बैठा हो और जान कर तेरा कॉल ना उठा रहा हो.”
छोटी माँ की इस बात पर मैने भड़कते हुए कहा.
मैं बोला “एक तो आपका कॉल कभी भी एक बार मे उठता नही है. उस पर भी आप मुझे ही दोष दे रही हो. आपका तो मोबाइल रखना ही बेकार है. इस से अच्छा तो आप अपना मोबाइल अमि निमी को दे दो. कम से कम उनके खेलने के काम तो आएगा.”
छोटी माँ ने मेरी बात सुनी तो मुझ पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “बड़ा आया मेरा मोबाइल किसी को देने वाला. वहाँ जाकर तेरा बहुत मूह चलने लगा है. लगता है कि अब तेरी पिटाई करना पड़ेगी. तभी तेरी अकल ठिकाने आएगी.”
छोटी माँ की बात सुनकर, मुझे हँसी आ गयी और मैने उनको छेड़ते हुए कहा.
मैं बोला “आप और मेरी पिटाई करोगी, हाहहाहा. मेरी पिटाई करना आपके बस की बात नही है. पहले आप ये तो याद कर लो कि, इसके पहले कभी आपने मेरी पिटाई की भी है या नही.”
ये बात कहते कहते ना जाने क्यो, मेरी आँख से आँसू छलक आए. प्रिया जो अभी तक हम माँ बेटे की इस तकरार का मज़ा ले रही थी. मेरी आँखों मे आँसू देख कर उसकी मुस्कुराहट गायब हो गयी थी. मैं मोबाइल पकड़े पकड़े, दूसरे हाथ से अपने आँसू पोछ्ने लगा.
लेकिन शायद मेरी इस बात का छोटी माँ पर भी, वो ही असर पड़ा था. जो कि मुझ पर पड़ा था. मेरी इस बात के बाद, उनकी तरफ से भी, जल्दी से कोई जबाब नही आया. क्योकि उन्हो ने मेरी बड़ी से बड़ी ग़लती पर भी, कभी मुझ पर हाथ नही उठाया था. मेरी इस बात के बदले मे जब मुझे छोटी माँ का कोई जबाब नही मिला तो, मैने बात को हल्का बनाने के लिए, फिर से उनको छेड़ते हुए कहा.
मैं बोला “क्या हुआ. क्या आपको अभी तक याद नही आया कि, आपने कभी मेरी पिटाई की भी है या नही.”
छोटी माँ बोली “जा मुझे तुझसे कोई बात नही करनी. तू आज कल मेरा बहुत मज़ाक उड़ाने लगा है.”
छोटी माँ की ये बात सुनकर, मुझे लगा कि, वो सच मे मुझसे नाराज़ हो गयी है. इसलिए मैने उन्हे मनाते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी, छोटी माँ. मैं तो बस आपसे मज़ाक कर रहा था. लेकिन आप तो सच मे नाराज़ हो गयी.”
छोटी माँ बोली “मैं देख रही हूँ कि, जब से तू मुंबई गया है. तब से तू मुझे बहुत सताने लगा है. तू वापस आ, फिर मैं तेरी अच्छे से खबर लेती हूँ. तुझे भगा भगा कर ना मारा तो, मेरा नाम बदल देना.”
मैने देखा कि छोटी माँ का मूड अब ठीक है तो, मैने फिर शरारत करते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, अब यदि मैने फिर कुछ बोला तो आप फिर नाराज़ हो जाओगी. इसलिए अब हम इस बात को यही ख़तम कर देते है.”
छोटी माँ मेरी इस शरारत को समझ नही पा रही थी. इसलिए उन ने मुझे दिलासा देते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “अरे नही, मैं तो मज़ाक कर रही थी. मैं तुझसे ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. बोल ना, तू क्या बोलना चाहता है.”
मैने देखा छोटी माँ मेरी चाल मे आ गयी है. मैने उन्हे परेशान करते हुए फिर कहा.
मैं बोला “तो सुनो छोटी माँ. अब आप बूढ़ी हो गयी हो. आप सीडियाँ उतर कर यहाँ तक आने मे ही इतना हाँफ रही थी तो, फिर भला आप मुझसे भगा भगा कर कैसे मारोगी.”
ये कह कर मैं ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा. मुझे हंसता देख कर, छोटी माँ ने भी हंसते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “अच्छा बच्चू, तो अब मैं तुझे बूढ़ी लगने लगी हूँ. इतनी जल्दी भूल गया कि, तेरे यहाँ से जाती समय कीर्ति ने खुद कहा था कि, मैं उसकी मौसी नही, उसकी बड़ी बहन लगती हूँ और तू खुद भी ये ही बोला था.”
मैं बोला “वो तो हमने आपका दिल रखने के लिए झूठ कहा था. वरना लगती तो आप मेरी माँ ही हो और माँ तो बूढ़ी ही होती है.”
ये कह कर मैं फिर से हँसने लगा. लेकिन छोटी माँ ने मेरी इस बात का जबाब अब मुझे चुनोती देने वाले अंदाज़ मे देते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “अच्छा पुनीत जी, अब आप भी देखिएगा. अब यदि मैने सबके सामने आपकी बड़ी बहन बन कर ना दिखाया तो, मेरा नाम भी सोनू नही.”
छोटी माँ के मूह से ये बात सुनते ही, एक बार फिर मेरी आँख से खुशी के आँसू छलक उठे. सोनू छोटी माँ के प्यार का नाम था. जिसे मैं बचपन मे अक्सर अनुराधा मौसी और रिचा आंटी के मूह से सुना करता था.
लेकिन ना जाने क्यों ये नाम वक्त की धुन्ध मे कहीं खो सा गया था और छोटी माँ सबके लिए सोनू से सिर्फ़ सुनीता बन कर रह गयी थी. मगर आज जब मैने ये नाम एक बार फिर सुना तो, ऐसा लगा कि, जैसे मैं एक बार फिर अपने बचपन की गोद मे वापस पहुच गया हूँ.
छोटी माँ के मूह से उनका नाम सुनकर मेरी आँखों मे खुशी के आँसू और चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी. उधर छोटी माँ ने मुझे खामोश देखा तो, उन्हो ने मुस्कुरा कर, मुझे छेड़ते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “क्या हुआ पुनीत जी, अब आपको साँप क्यो सूंघ गया. आप कुछ बोलते क्यो नही.”
छोटी माँ की बात सुनकर, मैं समझ गया कि, अब वो मुझे परेशान करने के मूड मे आ गयी है. मैने उनसे शिकायत करते हुए कहा.
मैं बोला “ये क्या छोटी माँ. आप मुझे फिर से परेशान कर रही हो.”
छोटी माँ बोली “अच्छा बच्चू, मैने ज़रा सा परेशान किया तो, इतनी जल्दी सीधे रास्ते पर आ गया और इतनी देर से मुझे कौन परेशान कर रहा था.”
छोटी माँ की बात के जबाब मे मैने हँसते हुए कहा.
मैं बोला “वो तो मैं बस ऐसे ही मज़ाक कर रहा था.”
मेरी बात सुनकर, छोटी माँ ने मज़ाक करना बंद किया और मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “अच्छा चल छोड़ और ये बता आज तू इतना खुश क्यो है.”
मैं बोला “खुश कहाँ छोटी माँ. मैं तो बहुत परेशान था. लेकिन आपसे बात करते ही मेरी सारी परेशानी ना जाने कहाँ भाग जाती है.”
छोटी माँ बोली “क्यो, क्या हुआ. तू किस बात को लेकर परेशान था. वहाँ सब ठीक तो है ना.”
मैं बोला “हां, छोटी माँ, यहाँ सब ठीक है. बस एक बात की वजह से थोड़ा सा परेशान हो गया था.”
ये कहते हुए मैने छोटी माँ को मोहिनी आंटी और निक्की के घर से जाने वाली बात बता दी. जिसे सुनने के बाद, छोटी माँ ने मुझे समझाते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “मैने भी मोहिनी के बारे मे सुना है. उसके मूह पर ज़रा भी लगाम नही है. लेकिन ऐसे लोगों की बातों को एक कान से सुनकर, दूसरे कान से निकाल देना चाहिए. इनकी बातों को लेकर परेशान होना अच्छी बात नही है.”
मैं बोला “लेकिन छोटी माँ, मोहिनी आंटी को कुछ सबक तो मिलना चाहिए ना. जिसे से उनके इस मूह पर लगाम लगाई जा सके.”
छोटी माँ बोली “ज़रूर मिलना चाहिए. लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखो कि, बुराई को बुराई से कभी नही मिटाया जा सकता. बुराई से बुराई सिर्फ़ बढ़ती ही है. बुराई को सिर्फ़ अच्छाई से ही मिटाया जा सकता है. इसलिए बुरे के साथ भी अच्छा ही करो, एक ना एक दिन उसकी बुराई, तुम्हारी अच्छाई के सामने हार जाएगी. अच्छाई को जीतने मे समय ज़रूर लगता है. लेकिन अंत मे जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है.”
छोटी माँ की ये बात मेरे गले से नही उतर रही थी. लेकिन मेरा मन अभी इस बारे मे कोई बहस करने का नही था. इसलिए मैने उनकी इस बात की हां मे हां मिला दी. फिर मेरी छोटी माँ से सिखा की शादी मे गिफ्ट देने को लेकर बात हुई तो, उन्हो ने कहा कि, वो सोच कर बताएगी कि, हमे क्या गिफ्ट देना चाहिए.
इसके बाद उनसे थोड़ी देर यहाँ वहाँ की बातें करके, मैने कॉल रख दिया. अभी तक प्रिया बड़े गौर से मेरी और छोटी माँ की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी. मेरे कॉल रखते ही उसने मुझसे कहा.
प्रिया बोली “तुम अपनी मोम को बहुत ज़्यादा परेशान करते हो.”
मैं बोला “नही, मैं अपनी मोम को बहुत प्यार करता हूँ. वो दुनिया की सबसे अच्छी मोम है.”
मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुझे बीच मे ही टोकते हुए कहा.
प्रिया बोली “हे सुनो, तुम्हारी मोम बहुत अच्छी है. लेकिन दुनिया की सबसे अच्छी मोम तो सिर्फ़ मेरी है.”
प्रिया की इस बात को सुनकर, मुझे हँसी आ गयी. मुझे उस से इस बात को लेकर बहस करना ठीक नही लगा और मैने उस से कहा.
मैं बोला “हर बच्चे को उसकी माँ ही दुनिया की सबसे अच्छी माँ लगेगी. इसलिए इस बात मे हम बहस ना ही करे तो, ही अच्छा रहेगा.”
मेरी बात के जबाब मे प्रिया ने भी मुस्कुराते हुए हां मिला दी. जिसके बाद मैने उस उस कहा.
मैं बोला “तुम कहीं जा रही हो क्या.”
प्रिया बोली “नही, मैं तुम्हारे साथ शिखा दीदी के घर चल रही हूँ. मैने मोम से भी पुच्छ लिया है.”
मैं बोला “लेकिन तुम वहाँ परेशान हो जाओगी. शादी वाला घर है और वहाँ अभी बहुत भीड़ भाड़ होगी.”
प्रिया बोली “वैसे तो मुझे इस सब से कोई परेशानी नही होगी. लेकिन यदि तुम मुझे ले जाना नही चाहते हो तो, मैं तुम्हारे साथ कोई ज़बरदस्ती नही करूगी.”
प्रिया की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा. मैं उसका दिल तोड़ना नही चाहता था. इसलिए मैने शिखा को कॉल लगा कर, प्रिया के आने के बारे मे पुच्छ लिया. वो प्रिया की तबीयत के बारे मे जानती थी. इसलिए उन्हो ने कहा कि, मैं प्रिया को ले आउ. वो प्रिया को वहाँ कोई परेशानी नही होने देगी.
शिखा से बात होने के बाद मैने प्रिया को साथ चलने के लिए हां कर दिया. इसके बाद हम लोग बाहर हॉल मे आकर, थोड़ी देर सबके साथ बैठे. फिर पद्मिनी आंटी को बता कर, शिखा के घर आ गये.
हम लोग जब शिखा के घर पहुचे तो, निक्की लोग वहाँ पहले से ही थी. वो लोग ज्यूयेलर्स से नेकलेस सेट लेकर यहाँ देने आई थी. निक्की ने प्रिया को देखते ही, उसके पास आकर, उसे ऐसे गले से लगा लिया, जैसे दोनो बहुत दिन बाद मिल रही हो. दोनो को ऐसे मिलते देख कर, मुझे भी बहुत खुशी हो रही थी.
थोड़ी देर बाद, शिखा ने हम सबको खाना खाने के लिए कहा और फिर हम सब लोग खाना खाने बैठ गये. खाना खाते समय हम सब आपस मे बातें करने मे मगन थे और आरू मुझे बड़े गौर से देख रही थी.
पहले मेरा ध्यान इस बात पर नही था. मैं प्रिया और निक्की से बात करने मे लगा था. लेकिन जब मैने देखा कि प्रिया का ध्यान हमारी बातों मे नही है तो, मैने उसकी नज़रों का पीछा किया तो, पाया कि वो आरू को देख रही है. मगर आरू प्रिया की इस बात से अंजान मुझे देख रही थी.
मेरे आरू की तरफ देखते ही, मेरी और आरू की नज़र आपस मे टकरा गयी. मुझसे नज़र मिलते ही आरू ने मुझे देख कर मुस्कुरा दिया. जिसके बदले मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा दिया. इसके बाद आरू ने मेरी तरफ से चेहरा घुमा कर सीरू की तरफ कर लिया और सीरू से बातें करने लगी.
मैं भी वापस पलट कर प्रिया और निक्की से बातें करने लगा. मगर अब प्रिया का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा लग रहा था. शायद आरू का मुझे इस तरह से देखना, प्रिया को पसंद नही आया था.
लेकिन मैने इस बात को ज़्यादा गंभीरता से नही लिया था. क्योकि मैं प्रिया के मुझसे जुड़ाव को अच्छी तरह से जानता था. ऐसे मे आरू की जगह कोई और भी लड़की यदि मुझे देख रही होती तो, वो भी प्रिया को पसंद नही आता. इसलिए मैने इस बात को अनदेखा कर देना ही ठीक समझा.
मगर शायद प्रिया इस बात को अनदेखा नही कर सकी थी. वो खाना खाने के बाद, निक्की को बुला कर, बाहर ले गयी और उस से कुछ बातें करने लगी. जिसके थोड़ी ही देर बाद, निक्की ने आरू को भी बाहर बुला लिया. जब आरू बाहर पहुचि तो, निक्की ने उस से कुछ कहा और फिर उसके बाद तीनो उपर छत पर चली गयी.
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