उसकी बाते सुन कर सरोज थोड़ी टेन्षन मे आ गयी कि कहीं ये कुछ उल्टा सीधा बोल कर कोई लफडा ना करवा दे इसलिए उसको लेकर अंदर चली गयी….शाम को चारो दोस्त वापिस दिन भर ऋषि को तलाश करने के बाद अपने फ्लॅट मे लौट आए.
सरोज—सुनो आज ना मैने बहुत बढ़िया चीज़ खरीदी है.
चुतताड—कौन सी नयी बात है…रोज ही तो कुछ ना कुछ ख़रीदती रहती हो.
सरोज—तो क्या करूँ तुम्हारा तो कुछ पता रहता नही कि पूरा दिन कहाँ रहते हो….?
चुतताड—अच्छा…अच्छा…क्या खरीद लिया ऐसा आज….?
सरोज (खुश होकर)—अभी लाई…….ये देखो..बढ़िया तोता है ना, ये बोलता भी है.
तोता—क्यो रे…. चुतताड, तू यहाँ इसके पास भी आने लगा.
सरोज (चौंक कर)—क्याआअ...... ?
चुतताड—नही...नही....ये झूठ बोलता है,…..बाहर फेंक दो इस तोते को.
सरोज—अब मैं समझी, तुम कहाँ गायब रहते हो…..? अभी बताती हूँ तुम्हे.
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इधर तभका कोइली गाओं के हालात पहले से भी बदतर हो चुके थे….अजगर का आतंक लोगो के सर चढ़ कर बोल रहा था…रोज कोई ना
कोई भूख प्यास से तड़प कर मर रहा था.
पहले तो लोग कभी कभार घर के बाहर कुछ समय के लिए निकल भी आते थे किंतु अब तो वो भी दुश्वार हो चुका था…..जो भी घर से बाहर
निकलता वो उस नर पिशाच का शिकार बन जाता.
राजनंदिनी अपने कमरे मे बैठी एक तस्वीर को अपलक निहारे जा रही थी…तभी उसकी माँ शकुंतला उसके पास आ गयी जो अपनी बेटी की ऐसी हालत से बहुत दुखी थी.
शकुंतला—बेटी, आख़िर कब तक तू उसको याद करती रहेगी….? जाने वाले कभी लौट के नही आते…ये बात कब समझेगी तू….?
राजनंदिनी (नम आँखे)—आप तो ऐसा मत कहो माँ….मेरा दिल कहता है कि मेरा ऋषि एक ना एक दिन अवश्य आएगा.. आप सब झूठ
कहते हो, देखना वो ज़रूर आएगा…..अगर मेरा प्रेम सच्चा है तो उसे मेरे लिए, अपनी राजनंदिनी के लिए आना ही होगा माँ.
शकुंतला (दुखी होकर)—मुझ से तेरा ये दुख नही देखा जाता बेटी…आख़िर माँ हूँ तेरी….चल हम कही और चलते हैं यहाँ से किसी तरह
निकल कर….यहाँ सिर्फ़ मौत है, सिर्फ़ मौत.
राजनंदिनी—नही माँ, मैं इस जगह को छोड़ कर कहीं नही जा सकती….अगर मेरा ऋषि मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ गया और मुझे नही पाया
यहा तो उसको बहुत दुख होगा….मैं यहाँ से कही नही जाउन्गी.
शकुंतला—बेटू तू कब तक उसका इंतज़ार करेगी….?
राजनंदिनी (आँखो से पानी बहाते हुए)—अपनी आख़िरी साँस तक मैं ऋषि के वापिस लौटने का इंतज़ार करूँगी माँ… लेकिन यहाँ से कही
नही जाउन्गी.
‘’बदलना नही आता हमे मौसम की तरह,
हर एक ऋतु (सीज़न) में तेरा इंतेज़ार करते हैं..
ना तुम समझ सकोगे जिसे क़यामत तक,
कसम तुम्हारी तुम्हे इतना प्यार करते हैं’’..
वही अगले दिन चारो दोस्त मॉर्निंग वॉक करने के लिए जाते हैं…ये उनका डेली का रुटीन था…आक्च्युयली उनका मेन उद्देश्य ऋषि को
तलाश करना था जिसके लिए चारो ने वैश्यालय तक की खाक छान मारी थी.
नंगू—अरे यार चुतताड दौड़ते हुए थक गये हैं….जा ना कही से कुछ चाय ( टी ) ले आ….तब मज़ा आएगा.
पंगु—हाँ यार.
गंगू—जल्दी कर यार.
चुतताड—सालो तुम लोग के पास हाथ पैर नही हैं क्या जो हमेशा मुझे ही बलि का बकरा बनाते रहते हो.
नंगू—लगता है आज भाभी के पास कुछ देर बैठना पड़ेगा बहुत दिन से उनसे ठीक से बात नही की है….
गंगू—सही कहा यार तूने….अच्छा चुतताड तू रहने दे हम भाभी के हाथ की चाय पी लेंगे.
चुतताड—हां, जिससे तुम दोनो उसके कान मेरे खिलाफ भर सको….इससे अच्छा तो यही है कि तुम यही चाय पी लो. सालो कमिनो हमेशा मुझे ब्लॅकमेल करते रहते हो.
चुतताड तीनो को मन ही मन गाली देते हुए पास की ही दुकान पर चाय लेने चला गया…..चाय लेकर जैसे ही वो पलटा तभी उसकी नज़र
किसी पर पड़ी जिसे देख कर चुतताड के होश उड़ गये….उसका मूह किसी अविश्वशनीय आश्चर्या से खुला का खुला रह गया.
चुतताड (शॉक्ड)-ये कैसे संभव हो सकता है....? ये कैसा चमत्कार है.....?