RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
स्कूल में बैठे-बैठे शुभम शीतल के बारे में ही सोच रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने वह नजारा सामने आ जा रहा था जब वह स्कूटी चलाते समय अपने हाथ को पीछे की तरफ लाकर अनजाने में ही या जानबूझकर पैंट के ऊपर से ही उसके खड़े लंड को पकड़कर दबा दी थी,,, बार-बार उसके मन में एक ख्याल आ रहा था कि जो भी शीतल के हाथों हुआ था वह अनजाने में तो बिल्कुल नहीं हुआ था,, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि शीतल की उम्र नादानी करने वाली बिल्कुल भी नहीं थी और ना ही वह छोटी बच्ची थी वह उम्र के ऐसे पड़ाव पर थी जिसने दुनिया का कोना-कोना देख चुकी थी,,,, ऐसे में स्कूटी चलाते समय उसके पीछे कौन बैठा है और उसकी बड़ी-बड़ी नितंबों पर कौन सी नुकीली चीज चुभ रही है,,,,, यह उसे बखूबी पता था,, और वह जान बुझकर ही पैंट के ऊपर से उसका लंड पकड़कर अनजान बऩने की कोशिश कर रही थी,,। उसे इस बात की तसल्ली थी कि चाहे कुछ भी हो फायदा तो उसी का ही था अगर सच में शीतल जैसी खूबसूरत औरत को चोदने को मिल जाए तो उसके हाथ में तो दो दो लड्डु आ जाते,,, जिसका मजा वह बड़े इत्मीनान से उठाता,,, वैसे भी तो इस समय उसके हाथ में निर्मला नामक बेहद स्वादिष्ट लड्डू तो था ही जिसका स्वाद वह दिन रात चखता आ रहा था,,,, शीतल की कामुकता पल पल उसके दिल में खंजर कि तरह उतरती जा रही थी। उसे बस इंतजार था कि शीतल नामक खंजर कब उसके बदन को अपनी जवानी के वार से घायल करता है। एक तरफ क्लास में बैठे-बैठे वह शीतल के बारे में सोचकर उसकी जवानी का रसपान करके मस्त हुए जा रहा था, तो दूसरी तरफ बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके मन मस्तिष्क को विचलित कर देने वाला लेकिन बड़ा ही कामुकता से भरा हुआ नजारा नाच जा रहा था,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी आंखों ने क्या देख लिया,, कभी-कभी तो उसे, अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था,,, वह अपने आप से ही सवाल करता कि क्या जो उसने देखा वह वास्तव में सच था या एक सपना,,,, अगर चौथ की आंखों में देखा वह हकीकत था तो क्या वास्तव में उसके पापा का संबंध किसी गैर औरत के साथ है,, लेकिन भले ही वह औरत देखने में सेक्सी लगती हो उससे भी ज्यादा सेक्सी और खूबसूरत सही मायने में उस औरत के मुकाबले उसकी मां बेहद सेक्सी और बेहद खूबसूरत थी,,,, कोई अंधा व्यक्ति भी होगा तो वह गधे की खुशबू और गुलाब की खुशबू को सुंघकर ही पहचान लेगा,,, औरत अगर गेंदे का फूल थी तो उसकी मां एक खिलता हुआ गुलाब थी जिसकी खुशबू चारों तरफ खुद-ब-खुद हवाओं के जरिए पहुंच ही जाती है ऐसे में उसके पापा का उस औरत के साथ इस तरह के संबंध रखना इस बात को वह हजम नहीं कर पा रहा था। उसे अच्छी तरह से याद आ रहा था कि उसकी मां ने खुद उससे यह कही थी कि उसके पापा उससे प्यार नहीं करते,,, नहीं उसकी जरूरतों को कभी पूरा करते हैं,,, और तो और उसी ने ही यह भी साफ शब्दों में बताई थी कि उसके पापा उसे शारीरिक सुख नहीं देते तभी तो वह खुद ही उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर अपनी जरुरतों को पूरा कर रही थी और अपनी प्यास भी बुझा रही थी,,, । उसके पापा का इस तरह से उसकी मां के प्रति रूखापन उसके लिए ही फायदेमंद था अगर ऐसा ना होता तो आज वहां दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत की खूबसूरत बदन की खुशबू अपने अंदर उतार नहीं पाता उसके बेहद लचीले और मादक अंगों को अपने हाथों से स्पर्श नहीं कर पाता और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ नितंबों को अपने हथेली में भरकर दबाने का सुख नहीं भोग पाता और ना ही उसके दोनों खरबूजा का स्वाद चख पाता,,, और ना ही जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही, खूबसूरत औरत को चोदने का सुख हासिल नहीं कर पाता और ना ही दुनिया के सारे मर्द, औरत के जिस अंग जिसे बुर कहते हैं ना तो उसके दर्शन कर पाता और ना ही उसके शारीरिक रचना के बारे में कभी समझ पाता,,, शुभम अच्छी तरह से जानता था कि वह जवान होने के साथ ही किसी लड़की की खूबसूरती के पीछे इतना आकर्षित नहीं हुआ था जितना कि वह खुद की मां की खूबसूरत बदन और उसकी खूबसूरती के प्रति आकर्षित हुआ था क्योंकि यह बात वह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां की खूबसूरती के आगे एक खूबसूरत लड़की भी पानी भरने के बराबर थी,,, यही बात उसे समझ में नहीं आ रही थी कि जिस की खूबसूरती का दीवाना पूरा मोहल्ला पूरी सोसाइटी और उसकी उम्र के सारे लड़के थे ऐसी खूबसूरत औरत को छोड़कर उसके पापा उस ऑफिस वाली औरत के दीवाने क्यों हो गए,,,, और उसे यह बात भी अच्छी तरह से समझ में आ रही थी कि जिस तरह से उसके पापा उस औरत को ऑफिस के अंदर ही,,, जबकि वह ऑफिस टाइम ही था और सारे कर्मचारी ऑफिस में हाजिर भी थे और ऐसे समय में उसके पापा जिस तरह से बेफिक्र हो कर के उस औरत की चुदाई कर रहे थे और वह औरत भी एक दम मस्त हो करके जिस तरह से उसके पापा से चुदवा रही थी,,,, उसने चेहरे को देख कर यह बात तो एकदम पक्की थी कि यह पहली बार का नहीं था उसके पापा और वह औरत ऑफिस में पहले भी बहुत बार इसी तरह की रंगरेलियां मना चुके थे।,,,, शुभम को अपने पापा की हरकत की वजह से थोड़ा दुख भी था लेकिन अंदर ही अंदर थोड़ी खुशी भी हो रही थी क्योंकि उसकी मां की तरफ उसके पापा की यही बेरुखी उसे और भी ज्यादा उसकी मां के करीब रखने में मददगार साबित हो रही थी।
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