Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:44 PM,
#91
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी तुम्हें क्या लगता है ऐसी हालत में यहां तक पहुंचने के बाद क्या वापस लौट जाना उचित रहेगा,,,,( सुबह दोनों हाथ से अपनी मां की दोनो चुचियों को मसलता हुआ बोला,,,, शुभम के इस बात का निर्मला के पास कोई भी जवाब नहीं था वह कुछ भी नहीं बोली बस अपना एक हाथ पीछे की तरफ ना कर पेंट के ऊपर से ही शुभम के लंड को पकड़ कर दबाने लगी,,, शुभम भी समझ गया कि उसकी मां पूरी तरह से तैयार है इसलिए बिल्कुल भी देर करना उचित नहीं था। शुभम अपनी नानी की तरफ देखा तो वहां अभी भी आंखें बंद किए हुए थी,,, निर्मला की भी नजर बार बार उसकी मां की तरफ चले जा रही थी अजीब से असमंजस में फंसी हुई थी निर्मला,,,,, एक तरफ उसे डर भी लग रहा था कि कहीं उसकी मां कही देख ना ले और एक तरफ ऊसे संभोग सुख का आनंद भी उठाना था। ना-नुकुर करते-करते आखिरकार वह अपने कपड़े उतरवा ही ली,,,, रह-रहकर उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज निकल जा रही थी जिसे वह अपना मुंह दबाकर आवाज को दबा दे रहीे थी,,,, अभी भी निर्मला अपने बेटे के लंड को पजामे के ऊपर से ही मसल रही थी,,,, 4 बार अपनी मां के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद थोड़ा बहुत ज्ञान तो उसे भी हो गया था,,,, की औरत के साथ कब क्या करना है। इसलिए वह एक पल भी गवाए बिना तुरंत चुचियों पर से हाथ हटा कर दोनों हाथों से साड़ी ऊपर की तरफ उठाने लगा निर्मला अपने बेटे की हरकत पर एकदम से कसमंसा रही थी। वह बार-बार कभी अपनी मां की तरफ देखती तो कभी आईने में जिसमे की निर्मला और शुभम साफ साफ नजर आ रहे थे और आईने में नजर आ रहे अपने दोनों लटकते खरबूजे को देखकर उसका चेहरा सुर्ख लाल होने लग रहा था। अगले ही पल वह फुर्ति दिखाते हुए अपनी मां की साड़ी को उसकी कमर तक चढ़ा दिया,,, साड़ी को कमर तक चढ़ाते ही निर्मला की काली रंग की मखमली पेंटी नजर आने लगी,,, जिसमें निर्मला की गदराई गांड छिपी हुई थी। निर्मला भी अब देर करना मुनासिब नहीं समझती थी इसलिए वह खुद ही अपने हाथों से अपनी पैंटी को नीचे जांघो तो सरका दी,,, अपनी मां की बड़ी बड़ी और मोटी गांड देखते ही शुभम की आंखों में चमक आ गई,,,, अब तो शुभम से एक पल भी सब्र करना मुमकिन नहीं था,,,, वह भी तुरंत अपने पजामे कि बटन खोल कर अपने पजामे को नीचे सरका दिया,,, पेंट को नीचे क्या सरकाते ही ऊसका टनटनाया लंड हवा मे झुलने लगा। जिसको देखने की लालच निर्मला रोक नहीं पाई और नजर को पीछे की तरफ घुमा कर वह अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर एकदम से गनगना गई। उसकी बुर में खुजली होने लगी एक बार फिर से वह अपनी मां की तरफ नजर घुमाई,,,,तो,,, वह अभी भी आंखों को बंद किए हुए थी,,, शुभम भी अपनी नानी की तरफ देखते हुए बोला,,,

बस मम्मी अब थोड़ा सा झुक जाओ,,,( इतना कहते हुए वह अपनी हथेली को अपनी मां की पीठ पर रखते हुए इस पर दबाव देने लगा ताकि वह झुक जाए,,, निर्मला को भी मालूम था उसे क्या करना है वह भी धीरे से झुकते हुए बोली,,,,)

बेटा अगर मम्मी देख ली तो,,,,


नहीं देख पाएंगे तब तक अपना काम हो जाएगा बस थोड़ा झुक जाओ,,,
( निर्मला भी यही चाहती थी वह तुरंत झुक गई शुभम अपने लंड को हाथ में पकड़ के उसके सुपाड़े को,,,, बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच सटाया,,, बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी थी निर्मला का पूरा बदन उत्तेजना के मारे गनगना गया,,,, शुभम दोनों हांथोें से अपनी मां की गांड पकड़कर अपनी कमर को आगे की तरफ धकेला,,, बुर गीली होने की वजह से,,,आधे से ज्यादा लंड बुर मे घुस गया। आधे लंड से ही निर्मला की सांस अटक गई,,,शुभम दुसरा मौका दीए बिना ही अगला एक और करारा झटका मारा इस बार सुभम का पूरा लंड निर्मला की बुर मे समा गया,,,, उसकी चीख निकलते निकलते रह गई वह एन मौके पर अपने हाथों से अपना मुंह दबा ली,,, निर्मला के बदन में ऊन्माद पूरी तरह से भर चुका था। एक बार फिर से शुभम अपनी मां को हासिल कर चुका था वह अब रुकना नहीं चाहता था धीरे-धीरे अपनी कमर को हिलाता हुआ अपनी रफ्तार को बढ़ा दिया निर्मला भी मस्त हुए जा रही थी लेकिन आईने में खुद को अपने बेटे को देखकर शर्म से पानी-पानी भी हुए जा रही थी। दोनों को मजा आने लगा था तभी हम दोनों ने देखा कि उसने अपनी आंखों को खोल दी और उसकी नजरें उन दोनों पर ही टिकी हुई थी,,, इस बार निर्मला के साथ-साथ शुभम की भी सांस अटक गई,,,,, शुभम और निर्मला दोनों सोचने लगी कि बाथरुम में तो किसी तरह फस गई लेकिन इधर उनकी आंखों के सामने,,,, निर्मला अपने किए पर पछतावा लगे वह मन ही मन सोचने लगी कि उसे शुभम को रोक देना चाहिए था। शुभम भी अपनी हरकत पर पछताने लगा,,,, वह मन ही मन अपने आप को दोष देते हुए मन नहीं कह रहा था कि उसे अपने ऊपर कंट्रोल रखना चाहिए था। दोनों ज्यों का त्यों उसी पोजीशन में थे। निर्मला झुकी हुई थी और शुभम उसकी गांड को पकड़कर लंड ठुंसे हुए था। निर्मला की मम्मी की नजर उन दोनों पर की थी निर्मला को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसकी मां कुछ बोल क्यों नहीं रही है निर्मलाा भी अपने बदन को ढंकने की कोई भी कोशिश नहीं की। बस वह आश्चर्य और डर के मारे अपनी मां को ही देखे जा रही थी,,,, शुभम की तो घिग्गी बंध गई थी,,, वह क्या करें कहां जाएं कैसे अपने आप को छुपाए,,,, यह सब का ख्याल उसके दिमाग में बिल्कुल भी नहीं आ रहा था वह बस अपनी मां की कमर थामे अपने मोटे तगड़े लंड को अपनी मां की बुर में डाले खड़ा था,,,, उसकी मां भी उसी तरह झुक कर बुत बनी खड़ी थी पूरे कमरे में सन्नाटा सा छा गया था,,, शुभम पूरी तरह से डर चुका था उसे अब पक्का यकीन हो गया था कि अब उन दोनों की हालत खराब होने वाली है भला एक मां अपनी बेटी को इस तरह से अपनी आंखों के सामने और वह भी अपने नाती के साथ चुदती देखेगी तो क्या उसका खून नहीं खौलेगा,,,, और वैसे भी उन दोनों ने शर्म की सारी हदों को तोड़ दी थी। शुभम मन में यही सोच रहा था कि उसकी नानी दोनों के बारे में क्या सोच रही होगी,,, वह उन दोनों को एकदम बेशर्म और सुना लायक समझ रही होगी जो कि बिना शर्म किए ही उसकी आंखों के सामने एक ही कमरे में होने के बावजूद बिना लाज शरम के इस तरह से चुदाई कर रहे हैं। निर्मला और शुभम आश्चर्य के साथ देखे जा रहे थे लेकिन उन्हें अभी तक समझ में नहीं आ रहा था की वह बोल क्यों नहीं रही है बस वह अपनी आंखों को पटपटा रही थी।,,,,,,, निर्मला उसकी मां कुछ कहती इससे पहले ही वह बोलने के लिए अपना मुंह खोलि ही थी कि,,,

मममम,,,, मम्मी,,,,,,
( निर्मला के मुंह से इतना भर निकल पाया था कि उसकी मां आंखों को पटपटाते हुए,,, बिस्तर पर अपने हाथ से टटोलते हुए चश्मे को ढूंढने लगी लेकिन किसी तरह से उनके हाथों से चश्मा चादर के नीचे ढंक गया,,,, वह चश्मा ढूंढ नहीं पा रही थी,,,, तभी वहां बिस्तर पर हाथ से टटोलते हुए और आंखों को पटपटाते हुए बोली,,,

बेटी कहां गई तू,,,, मेरा चश्मा कहीं नजर नहीं आ रहा है।
( निर्मला और शुभम यह बात सुनते ही एकदम से सन्न रह गए और एक दूसरे का चेहरा देखने लगे,,,, वह दोनों कुछ समझ पाते इससे पहले ही वह फीर बोली,,,)

बेटी मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा है तुझे बता ही तो थी कि चश्मा लगाए बिना मुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता,,,
( निर्मला की मां ने निर्मला से यह बात शायद नहीं बताई थी इसलिए निर्मला को इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम था लेकिन अब अपनी मां की बात सुनने के बाद उसे पूरा मामला समझ में आ गया था जिसको सुनकर उसकी आंखों में चमक आ गई थी,,,,, पल भर में उत्तेजना का पारा घटने के बाद इस खबर से एकाएक कामोत्तेजना का तापमान बढ़ने लगा था। शुभम भी यह बात अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी नानी को चश्मे के बिना कुछ भी नजर नहीं आता इसका मतलब साफ था कि उसने अभी तक ऊन दोनों को संभोगरत की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं देख पाई हैं। दोनों संपूर्ण रूप से अभी तक उनकी नजरों में सुरक्षित और संस्कारी ही थे।,,,
निर्मला कुछ कहने की स्थिति में अब बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि सारा मामला साफ हो चुका था उन्हें अब खुला दौर मिल चुका था चश्मा चादर के नीचे होने की वजह से उसके मिलने की गुंजाइश लगभग नहीं थी क्योंकि जिस तरह से वह हाथों से टटोल कर देख रही थी चश्मा मिलना मुमकिन नहीं था।,,,

निर्मला में एकाएक हिम्मत आ गई थी। वह एक खेली खाई औरत की तरह बर्ताव करते हुए,,, अपनी कमर पर रखा हुआ अपने बेटे के हाथ को पकड़कर उसे अपनी हवा में लटकती हुई खरबूजे पर रख दी,,, यह निर्मला की तरफ से शुभम के लिए एक ईसारा था अपने कारवां को आगे बढ़ाने के लिए,,,
यह चूचियां कामोत्तेजना रूपी रिमोट का बटन था जोकि निर्मला ने अपने बेटे के हाथों सौंप दिया था। शुभम भी समझ गया था कि अब डरने वाली कोई भी बात नहीं है। वह तुरंत अपनी मां की चुचियों को दबाना शुरु कर दिया,,,, और अपनी मां की जड़ तक घुसा हुआ लंड बाहर की तरफ खींच कर उसे फिर से अंदर डालते हुए चोदना शुरू कर दिया,,, एक बार फिर से निर्मला की गर्म सिसकारी छूटने लगी,,,, वह अपनी मां की तरफ देखे तो वह अभी भी बिस्तर पर हाथ से टटोल रही थी और बोली,,,,

निर्मला,,,

हां,,,, मम्मी,,,,( सिसकारी की वजह से निर्मला के मुंह से हल्की सी आवाज निकली,,,,।)

बेटी तू यही है फिर भी कुछ बोल नहीं रही है,,,

मम्मी मैं बाल सवार रही हूं,,,,( इतना कहने के साथ ही उत्तेजना में शुभम ने जोरदार झटका मारा तो उसके मुंह से दबी दबी सी चीख निकल गई,,,,)
आहहहह,,,,

क्या हुआ,,,,?

कुछ नहीं मम्मी कंघी में बाल फंस गया था,,,,

अच्छा ठीक है लेकिन तू मेरा चश्मा तो मुझे दे दे उसके बाद बाल संवार लेना,,,,

मम्मी बस थोड़ा देर और रुको और वैसे भी दवा की बोतल पर लिखा हुआ है कि दवा डालने के बाद कम से कम बीस 25 मिनट तक आंखों को बंद ही रखना है।

ठीक है बेटी लेकिन जल्दी से बालों को संवार कर तु मुझे चश्मा दे दे सब कुछ धुंध ला-धुंधला सा नजर आ रहा है।

ठीक है मम्मी आप तबं तकआंखों को बंद कर लो,,,

ठीक है लेकिन शुभम कहां चला गया,,,,,

वह बाहर चला गया है,,,,
( निर्मला की मां अपनी बेटी की बात मानते हुए आंखों को बंद कर ली उन्हें क्या पता था कि उनकी आंखों के सामने ही उनकी बेटी अपने ही बेटे से चुदवा रही है,,,, बातों के दौरान लगातार सुभम अपनी मां की बुर में लंड पेले जा रहा था।
उसके धक्के अब तेज होने लगे थे,,, अपनी मां को चोदते हुए उसके ऊपर झुककर उसके गर्दन को चूमने लगा था। और उसे चुम़ते हुए कानों में धीरे से फुसफुसाया,,,,

वाह मम्मी क्या आईडिया लगाई हो,,,

बस अब कुछ बोल मत जल्दी से अपना काम खत्म कर,,,,

अपनी मां की बात सुनते ही वह अपनी मां की चुचियों को जोर-जोर से दबाता हुआ अपनी कमर की रफ्तार को बढ़ा दिया,,,, निर्मला बेशर्मों बंद कर दो अपने बेटे से चुदाई का मजा ले रही थी लेकिन आईने में अपने आप को इस तरह से अपने बेटे से चुदते हुए देखकर शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी। आज मैंने उसे साफ नजर आ रहा था कि उसका बेटा उसके गर्दन को चूम रहा है उसकी बड़ी बड़ी चूचियां को अपनी हथेली में भरकर दबा रहा है,,,, और हल्की हल्की उसकी कमर भी आगे पीछे होती हुई नजर आती थी। यह सब नजारा निर्मला जैसी की संस्कारी औरत के लिए लज्जा से भर देने वाला था। लेकिन निर्मला ने भी अपनी लज्जा को त्याग चुकी थी,,,, कभी तो वहां कमरे में अपनी मां की उपस्थिति में भी चुदाई का सुख भोग रही थी और इसमें उसे अथाग आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी। अगर कमरे में उसकी मां मौजूद नहीं होती तो इस समय पूरा कमरा निर्मला की गरम सिसकारियों से गुंज रहा होता लेकिन वह अपने आप को अपने दांतो से अपने होंठ को दबाकर अपनी गर्म सिसकारीर्यों की सुंदर ध्वनि को रोके हुए थी। शुभम की रफ्तार बढ़ चुकी थी वह जानता था कि ज्यादा समय ऊन दोनों के पास नहीं है। इसलिए उसका लंबा लंड सटासट निर्मला की बुर के अंदर बाहर हो रहा था,,, सुभम कभी दोनों खरबूजे को मसलता तो कभी केले के तने सामान चिकनी जांघों को हाथों से सहलाता,,,, शुभम पूरी तरह से अपनी मां की जवानी के रस को चलनी से छान लेना चाहता था।
पास में ही बिस्तर पर बैठी निर्मला की मां को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह तो निर्मला के बताए अनुसार अपनी आंखों को बंद किए हुए बैठी थी शायद दवा की शीशी पर लिखे निर्देश की वजह से लेकिन उसे कहां मालूम था कि उसकी बेटी ही उसे धोखा दे रही है।
थोड़ी ही देर बाद शुभम के धक्तों की रफ्तार एकदम से तीव्र हो गई,,,, निर्मला भी उत्तेजना के चलतेै अपनी बड़ी बड़ी गांड को पीछे की तरफ ठेलकर अपने बेटे के लंड को ले रही थी,,,
और थोड़ी ही देर में मां बेटे दोनों ने एक साथ अपने गरम रस को बाहर की तरफ उगलना शुरू कर दिया,,,, शुभम ने ढेर सारा गर्म रस की पिचकारी अपनी मां की बुर में मारना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में सब कुछ शांत हो गया निर्मला ने आंखों के इशारे से शुभम को कमरे से बाहर जाने को कह दी,, और जल्दी जल्दी अपने बालों को संवार कर अपने कपड़ों को दुरुस्त कर दी,,, और अपनी मम्मी के करीब जाते हुए बोली,,,,

बस मम्मी अब पूरा समय हो गया है ।(और इतना कहने के साथ ही वह चादर के नीचे रखी हुई चश्मे को निकालकर अपनी मां की आंखों पर लगाते हुए बोली,,,,।)

अब देखो मम्मी कैसा लग रहा है,,,,

हां अब सही नजर आ रहा है,,,,,( निर्मला की मां खुश होते हुए बोली।)


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RE: Sex kahani अधूरी हसरतें - by sexstories - 03-31-2020, 03:44 PM

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