RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला देखते ही देखते पेशाब कार्य को संपूर्ण करके खड़ी हो गई और अपनी मां को खड़ी होता देखकर शुभम समझ गया कि अब उसका यहां खड़ा रहना ठीक नहीं है इसलिए वह झट से अपने कमरे में चला गया।,,,
शुभम बाथरूम का नजारा देखकर एकदम सन्न हो गया था कमरे में आकर अपने बिस्तर पर वाह एक दम शांत होकर बैठ गया था। उसने जो आज देखा था वह बड़ा ही कामोतेजक था उसका पानी निकलते निकलते बचा था।
उसे बैठे-बैठे काफी समय हो गया था। और समय भी निकला जा रहा था उसे लगा कि उसकी मां तैयार हो गई होगी इसलिए सीधे वह अपनी मां के कमरे की तरफ चल दिया कमरे का दरवाजा बंद था। उसने बाहर से अपनी मां को आवाज लगा या।।
मम्मी तैयार हो गई कि नहीं,,,
हां हो रही हूं तू हो गया कि नहीं,,,,,,
हां मैं तो कब से हो गया,,,,,,
अच्छा,,,,, तू अंदर आ जा मैं 10 मिनट में तैयार हो जाती हुं। ( निर्मला की आवाज ऐसी आ रही थी ऐसा लग रहा था कि उसने मुंह में कुछ भरी हो,,,, अपनी मां की बात सुनकर शुभम दरवाजे पर हल्के से हाथ रखा तो दरवाजा अपने आप ही खुल गया और वह सीधे कमरे में घुस गया कमरे में घुसते ही जैसे ही उसकी नजर निर्मला पर पड़ी तो वह फिर से दंग रह गया। निर्मला केवल टावल में खड़ी थी और टावल के किनारी उसने मुंह से दबाकर पकड़ रखी थी,, इसलिए तो उसके मुंह से इस तरह की आवाजें आ रही थी । निर्मला टॉवल भी इस तरह का पहनी हुई थी कि टॉवल उसके जांघों से ऊपर तक ही पहुंच रही थी जो कि वह थोड़ा सा भी अलमारी के ऊपर वाले ड्रावर की तरफ हाथ बढ़ाती तो उसकी बड़ी बड़ी नितंब दिखने लग रही थी। यह देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई थी,,,,ऊसे कुछ सुझा नहीं वह बस आंख पड़े अपनी मां की नग्नता का रसपान करता रहा। निर्मला अलमारी में कुछ खंगाल रही थी वह अपने लिएे कपड़े ढुंढ रही थी लेकिन उसे इतना अच्छी तरह से मालूम था कि जिस तरह से वह खड़ी है उसका बेटा उसके बदन को प्यासी नजरों से घूर रहा होगा। प्रभात जानबूझकर ऊपर वाले ड्राइवर की तरफ हाथ बढ़ा ने लगी क्योंकि उसे इतना अंदाजा लग गया था कि ऐसा करने पर उसकी टावल नीचे से ऊपर की तरफ उठ जा रही थी और उसकी गांड का बहुत ही अच्छा खासा हीस्सा शुभम की आंखों के सामने तैरने लग रहा था। और ऐसा करने में निर्मला को अब बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह अलमारी में से अपनी साड़ियों को बारी-बारी से देखते हुए शुभम की तरफ बिना देखे हुए ही बोली,,,,
शुभम मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं पार्टी में क्या पहन कर जाऊं,,,,,, इतनी सारी साड़ियां है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
( शुभम की तो हालत खराब थी वह अपनी मां की नंगी बदन को देखकर अब उत्तेजना का अनुभव करते हुए मस्त हुए जा रहा था और उसके पैंट में,,,
शुभम के पेंट में अच्छा कौशल तंबू बन चुका था जो कि कभी भी उसकी मां की आंखों के सामने नजर आ सकता था इस बात से घबराते हुए वह झट से बिस्तर पर बैठ गया। और बोला।)
मम्मी आप कुछ भी पहनो आप पर तो बेहद अच्छी लगेगी,,,,
ऐसा क्यों? ( इस बार वह अपने बेटे की तरफ नजर घुमाकर देखते हुए बोली।)
क्योंकि तुम सुंदर हो इसलिए जो भी पहनोगी अच्छी लगेगी।
( अपने बेटे की मुंह से अपनी तारीफ सुनकर निर्मला को अच्छा लगा वह मुस्कुराते हुए फिर बोली,, लेकिन अभी भी वह टॉवल को अपनी दातों से ही पकड़े हुए थी। )
लेकिन फिर भी तू ही बता कि आज मैं क्या पहनु? ( निर्मला फिर से अपने हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर साड़ी को ढूंढने का नाटक करते हुए अपनी गांड शुभम को दिखाने लगी और वह शुभम देखकर एकदम मस्त होने लगा वह तो मन ही मन यही सोच रहा था कि अगर कुछ भी नहीं पहनोगी तो भी चलेगा,,,,,, लेकिन फिर भी वह अपनी पसंद बताते हुए बोला)
मम्मी आप वहां आसमानी रंग की साड़ी पहन लो पार्टी में बहुत अच्छा लगेगा,,,,,
( अपने बेटे की पसंद जानकर निर्मला खुश हुई क्योंकि उसे भी आसमानी रंग की साड़ी भी पहनकर जाने की इच्छा हो रही थी अशोक से तो अब यह सब पूछना मतलब पत्थर पर सिर मारने के बराबर था इसलिए वह अपने बेटे से ही यह पुछ कर संतुष्ट हो रही थी। वहां अलमारी में से आसमानी रंग की साड़ी और उसके मैचिंग का ब्लाउज और पेटीकोट निकाल कर बाहर टेबल पर रख दी। लेकिन शुभम की तो हालत खराब हो रही थी वो जानबूझकर बिस्तर पर बैठ गया था ऐसा ना करता तो,,,,, उसके मन के अंदर क्या चल रहा है यह उसकी मां को देखकर समझते देर नहीं लगती। निर्मला इस हालत में बेहद खूबसूरत और कामुक लग रही थी शुभम अपनी मां को इस अवस्था में सीधे नजर से नहीं देख रहा था बल्कि बार बार नजर तिरछी कर के देख ले रहा था। और यह देखकर निर्मला अंदर ही अंदर खुश हो रही थी अब उसे भी जल्दी तैयार होना था क्योंकि समय काफी हो रहा था।
शुभम तू अपनी नजरें बचा रहा था बार-बार वह मुझे फर्श की तरफ देख नहीं रहा था,,,,, तभी उसकी मां ने जो बोलीे वह सुनकर वह एकदम से सन्न हो गया,,,,,
शुभम मेरी पैंटी तो दे,,,,
( इतना सुनकर शुभम तो सक पका किया वह फटी आंखों से अपनी मां की तरफ देखने लगा कि वह क्या कह रही है। शुभम के चेहरे के हाव भाव को देखकर निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि वह शायद उसकी बात को ठीक से समझ नहीं पाया इसलिए वह दुबारा बोली।)
अरे ऐसे क्या देख रहा है मेरी पैंटी पर ही तो तू बैठा है,,,, ला जल्दी दे मै पहनु।
( निर्मला अपने बेटे से इस तरह की बातें करने में बिल्कुल भी हीचकीचा नहीं रही थी। बल्कि उसे तो बहुत मजा आ रहा था। अपनी मां की बात सुनकर शुभम के चेहरे पर घबराहट के भाव नजर आने लगे और वह नजर ए नीचे करके देखा तो वास्तव में वह अपनी मां की पैंटी पर ही बैठा हुआ था। उसने जल्दी से थोड़ा सा बिस्तर पर से उठ कर अपने नीचे से अपनी मां की पैंटी निकालकर अपनी मां की तरफ उछाल दिया,,,,, और निर्मला हवा में उछली हुई पेंटिं को पकड़ने की कोशिश करते हुए उसके मुंह से टावल की किनारी छूट गई और टॉवल अगले ही पल उसके बदन से गिरता हुआ नीचे उसके कदमों में जा गिरा,,,,,आहहहहहह,,,,, एक गरम सिसकारी शुभम के मुंह से निकल गई जब उसने यह नजारा देखा तो,,,,, उसकी मां एक बार फिर उसकी आंखों के सामने एकदम नंगी हो गई,,,,, उसका गोरा दुधिया बदन ट्यूबलाइट के उजाले में एक बार फिर से चमकने लगा,,,,, शुभम तो आंखें फाड़े अपनी मां को ही देखे जा रहा था। यह देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी लेकिन उसने अपने बदन को फिर से टावल उठाकर ढंकने का बिल्कुल भी दरकार नहीं की,,,,, वह शायद यही चाहभी रही थी। इसलिए तो वहां बिना किसी दरकार के अपनी पैंटी को उठाते हुए बोली।
क्या कर रहा है शुभम हाथ में तो दे सकता था। ( निर्मला अपनी पैंटी को उठाकर झटकने लगी,,,,)
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