Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 01:06 PM,
#46
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
" हे भगवान, बाल बाल बच गया, अगर किसी ने मेरा पैंट का उभार देख लिया होता तो बवाल मच जाता, ये लंड भी ना...पहले से ही एक के चक्कर मे ज़िन्दगी झंड हुई पड़ी है और अब ये दूसरी को देखकर लार टपक रहा है, अगर उसे थोड़ा सा भी आभास हो जाता तो न जाने क्या हो जाता"
इधर जयसिंह के मन मे मचा तूफान थमने का नाम ही नही ले रहा था

थोड़ी देर ही हुई थी कि मधु ने किचन के अंदर से आवाज़ लगाई " खाना बन गया है, सारे लोग टेबल पर बैठ जाओ"
मधु की आवाज़ सुनकर सभी टेबल पर आ बैठे, हेड चेयर पर जयसिंह बैठा था , और उसके दोनों तरफ उसकी खूबसूरत जवान लड़कियां, हितेश सबसे लास्ट में बैठा था, तभी मधु अंदर से खाने के बर्तन वगरैह ले आयी और उसने सबकी प्लेट्स में खाना सर्व किया
और खुद भी वहीं बैठकर खाना शुरू कर दिया

"अरे वाह, क्या बात है, आज तो आप बिल्कुल सही टाइम पर घर आये हो, हम बुलाते है तो कभी नही आते , आज मणि ने बुलाया तो झट से दौड़े चले आये हम्म्म्म" मधु ने जयसिंह की ओर देखकर कहा

"वो....मैं.....वो" जयसिंह मधु की बात से थोड़ा घबरा गया

" अरे मम्मी, मैं पापा की सबसे प्यारी बेटी हूँ, इसीलिए तो एक बार बोलने पर भी टाइम पर आ गए" मनिका ने जयसिंह के बोलने से पहले ही जवाब दे दिया

"हां भई, ये तो है, आप सबसे ज्यादा मणि को ही प्यार करते है" मधु ने कहा

मधु की बात सुनकर मनिका को बड़ा अच्छा लगा पर जयसिंह के तो गले का निवाला वहीं का वहीं रह गया,अब वो क्या बोलता, कि अपनी इस सबसे प्यारी बेटी के लिए कभी वो दीवाना हुआ करता था और तो और आज सुबह ही उसके नाम की मुठ भी मारके आया है


इधर कनिका और मनिका दोनों ही अपने पापा के सपनो में खोई थी, मनिका अपने पापा का खोया प्यार पाने के लिए तड़प रही थी तो कनिका अभी थोड़ी देर पहले हुए घटनाक्रम के बारे सोच सोच कर गरम हो रही थी।

जैसे तैसे सभी ने अपना खाना खत्म किया, इस दौरान मनिका उससे लगातार अच्छे से बातें कर रही थी, जिससे जयसिंह थोड़ा कंम्फर्टेबल हो गया था, खाना खाने के बाद सभी लोग अपने अपने कमरों में चले गए
कनिका का जिस्म अभी भी बुरी तरीके से वासना में जल रहा था , वो कमरे में आते ही सीधा बाथरूम में घुस गई ओर पलक झपकते उसने अपने कपड़ों को अपने शरीर से आज़ाद कर दिया,
उसका संगमरमर से गोरा बदन धीमी रोशनी में चमक रहा था, उसकी चुत पर छोटे छोटे बल उग आये थे, बालो के बीच झलकती उसकी गुलाबी चुत को देखकर वो थोड़ा शर्मा सी गई

वो दौड़कर शॉवर के नीचे आकर खड़ी हो गई पर शॉवर से निकलती पानी की छोटी छोटी बूंदे उसके जिस्म पर पड़कर उसकी आग बुझाने की बजाय ओर ज्यादा भड़का रही थी,उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, उत्तेजना चरम पर थी, उसका मन जयसिंह के उभार को देखकर सिहरा जा रहा था
कनिका ने अभी की घटना को याद करके एक बहुत ही मदहोश सी अंगड़ाई ली , कनिका की इस अंगड़ाई से उसके सूंदर कड़क मम्मे बाहर की तरफ छलक पड़े और वो अपने हल्के ब्राउन कलर के निप्पलों को अपने नाखूनों से रगड़ने लगी , रगड़ कहकर उसके निप्पल कड़क हो गए थे, उसकी उभरी हुई गांड पर पानी की बूंदे गिरने से कनिका के चूतड़ो का दीदार बहुत ही जान लेवा हो चला था,

आज पहली बार अपने पापा के जिस्म को छूने की वजह से उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी,अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो गया था,
कनिका ने अपने एक हाथ को अपनी टांगो के बीच रखा और दूसरे हाथ से अपने कसे हुए मम्मों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी चुत गर्म आग की भट्टी की तरह सुलग रही थी, "उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस ओह्हहहहहहपापाआआआ .......ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…. पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…". कहते हुए कनिका ने अपनी चूत के दाने को मसलते हुए अपने हाथ की एक उंगली को चूत में घुसा दिया ,“हाआआआआअ” अपनी चूत में उंगली को जाता हुआ महसूस कर के कनिका के मुँह से आहे निकल रही थी,उसकी गरम आहें अब लगातार बढ़ती ही जा रही थी, लगातार अंदर बाहर होती उसकी उंगली उसकी चुत की आग को ओर भड़का रही थी, अपने दूसरे हाथ से वो वो बीच बीच मे अपने निप्पल को कुरेद रही थी , आहिस्ता आहिस्ता उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही रही थी, उसकी उंगलियों की रफ्तार तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, अचानक कनिका के मुँह से एक सिसकारी उभरी और उस की फूली हुई गुलाबी फांकों वाली चूत से रस की बूंदे निकलकर बाथरूम के फर्श पर गिरने लगी, उसके मस्त बदन में हज़ारों चींटियाँ एक साथ रेंगने लगी,फिर एक दम से कनिका का शरीर अकड गया और झटके मारने गया, और अगले ही पल वो भलभला कर झड़ गयी, उसका इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उसके शरीर मे मजे की लहर दौड़ गयी


"ऊऊऊऊ….आआआआहह….उूुऊ" की आवाज़ें अब भी उसके मुंह से निकल रही थी , थोड़ी देर जब उसके सर से वासना का भूत उतरा तो उसने अच्छे तरीके से अपने शरीर की सफाई की ओर फिर नहाकर अपने पापा के ख्यालो में खोते हुए सो गई,


इधर मनिका भी अपने रूम में अपने पापा को करीब लाने और उन्हें अपना बनाने की योजना सोच रही थी, उसे ये काम बहुत होशियारी से करना था क्योंकि इसकी भनक अगर बाकी लोगों को लग जाती तो ......

जयसिंह आज भी सुबह से हुई एक के एक घटना से परेशान था, पहले मनिका का उससे अच्छे से बाते करना, स्टोररूम में उसकी गांड का दीदार होना और फिर कनिका की चुत से उसके लंड का रगड़ जाना , इन सबकी वजह से वो हवस की आग में बुरी तरह जल रहा था, इसलिए उसने आज भी मधु की जमकर चुदाई की, पर उसके मन मे बार बार मनिका और कनिका की तस्वीर उभर रही थी

मधु की जमकर चुदाई करने के बाद जयसिंह उसके बाजू में लेट गया, तभी उसको सिंगापुर वाली बात याद आ गयी,


"मधु , एक बात तो सुनो" जयसिंह ने मधु को कडल करके उसकी चुत में अपना लंड फंसाते हुए बोला

"ओह्ह.....बोलिये, क्या बात है" मधु ने पूछा

"जरासल मुझे किसी काम से कुछ दिनों के लिए सिंगापुर जाना होगा, मुझे वहां सम्मानित किया जा रहा है" जयसिंह बोला

"अरे वाह , ये तो बड़ी अच्छी बात है, कब जाना है आपको" मधु खुश होते हुए बोली

" मुझे 6 तारीख को जाना है, और हां मैं चाहता हूं कि तुम भी मेरे साथ चलो, क्योंकि वहाँ के आर्गेनाइजर ने कहा है कि हम अपनी फैमिली में से किसी को भी साथ ले जा सकते है, सब लोग वह अपनी वाइफ के साथ आएंगे, इसलिए तुम भी मेरे साथ चलो, हम 11 को वापस आ जाएंगे, लगे हाथ हम दोबारा हनीमून भी बना लेंगे" जयसिंह ने उसके निप्पलों पर चूकोटी काटते हुए कहा
" इसस्ससस आप भी न, शादी के इतने साल बाद कोई हनीमून पे जाता है क्या, अपनी उम्र का लिहाज कीजिये" मधु शर्माते हुए बोली

"अरे क्या उम्र, अभी तो हम जवान है, ओर तुम कहो तो अभी तुम्हे दिन में तारे दिखा दे " जयसिंह ने मधु की चुत में अपने लंड को थोड़ा और घुसते हुए कहा, अब उसका लंड दोबारा तनकर तैयार हो चुका था

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़…कैसी बातें कर रहें है आप, तीन तीन बच्चो के बाप होके भी कैसे बेशर्म हुए जा रहे है" मधु को अब दोबारा मज़ा आने लगा था

" जानेमन तुम्हारे जैसे माल को देखकर कभी मैन ही नही भरता, अभी भी बिल्कुल कच्ची कली की तरह लगती हो, जी करता है कि दिन रात इसे मसलता रहूं" जयसिंह ने अब झटके लगाने शुरू कर दिए थे

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़....ये आप कैसी बाते कर रहे है आज" मधु का बदन अब मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था, जरासल इतने महीनों के बाद चुदने की वजह से वो भी ये चाहती थी कि अब जयसिंह उसे रोज़ाना चोदे, इतने महीनों की प्यास अब वो जमकर बुझाना चाहती थी

"ठीक ही बात कर रहा हूँ, तुम्हारी चुत अभी भी कितनी कसी हुई लगती है, दिखने में तो तुम मनिका की बड़ी बहन ही लगती हो, अबसे मैं तुम्हे रोज़ ऐसे ही चोदूंगा" जयसिंह ने झटकों की रफ्तार तेज करते हुए कहा


"ओह्ह ......आपको आज क्या हो गया है.....उन्ह्ह्ह्ह…कितना मज़ा आ रहा है.....हमेशा ऐसे ही चोदिये मुझे, इतने महीनों बाद आपसे चुद कर मैं तो मज़े से पागल हुई जा रही हूं, फाड़ दीजिये इस निगोड़ी चुत को, बुझा दीजिये इसकी महीनों की प्यास " अब मधु भी धीरे धीरे औकात में आती जा रही थी, इतने महीनों की प्यास ने उसके अंदर की हवस को बाहर आने पर मजबूर कर दिया था

जयसिंह लगातार ताबड़तोड़ धक्के लगाए जा रहा था, 20 मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद जयसिंह और मधु दोनों बुरी तरीके से झाड़ गए और कसकर गले लिपट गए, जयसिंह ने अब हल्के हल्के मधु के होंठों को चूसना शुरू कर दिया था, थोड़ी देर बाद जब दोनों की वासना ठंडी हुई तो जयसिंह बोला
"तो फिर तुम चलोगी न मेरे साथ सिंगापुर" जयसिंह ने मधु से पूछा

"सच पूछिए तो मेरी तो बहुत इच्छा है जाने की पर मैं चाहकर भी नही जा सकती" मधु थोड़ा दुखी होती हुई बोली

"पर क्यों नही जा सकती" जयसिंह ने हैरानी से पूछा

"आप भूल गए क्या, 11 से कनिका और हितेश के पेपर स्टार्ट हो रहे है, ऐसे में मैं कैसे जा पाऊंगी" मधु ने कहा

"हम्म्म्म बात तो तुम्हारी ठीक ही है, चलो कोई बात नही मैं अकेला ही चले जाऊंगा" जयसिंह थोड़ा सा निराश होते हुए बोला

"आप नाराज़ तो नही है ना मुझसे" मधु ने जयसिंह की आंखों में झांककर पूछा

"अरे कैसी बात कर रही हो, बच्चो से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट और कुछ भी नही " जयसिंह ने कहा

और फिर दोनों जन एक दूसरे की बाहों में आराम से सो गए

अगले दिन जयसिंह दोबारा लेट उठा, उसकी रात की खुमारी अभी तक उतरी नही थी, वो बाथरूम में जाकर फ्रेश हुआ और तकरीबन आधे घण्टे बाद नाश्ता करने के लिए हॉल की तरफ चल पड़ा, हॉल में जाकर उसने देखा कि वहां सिर्फ और सिर्फ मधु ही बैठी चाय की चुसकियाँ ले रही थी, उसे वहां अकेला देख जयसिंह को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि अभी 8:30 बजने को हुए थे पर कनिका ओर हितेश जो अक्सर स्कूल के लिए अब तक तैयार हो जाया करते थे, उनका कोई नामो निशान ही नज़र नहीं आ रहा था,

"अरे मधु, आज कनिका और हितेश दिखाई नहीं दे रहे, तबियत तो ठीक है उनकी, स्कूल नही जाएंगे क्या आज" जयसिंह मधु के पास ही टेबल पर बैठता हुआ पूछने लगा

"आप तो सचमुच पागल होते जा रहे है, आपको तो ये भी ध्यान नहीं कि आज संडे है, इसीलिए बच्चे आराम से सो रहे है" मधु थोड़ी हंसती हुई हुई बोली

"अरे हां, माफ करना मुझे ध्यान ही नही रहा, क्या करूँ मेरी ऑफिस तो रोजाना खुली रहती है, इसलिए पता ही नही चलता कि कब संडे है और कब मंडे" जयसिंह भी अपने कप में पास रखे हुए थर्मस से चाय डालते हुए बोला

"हां तो फिर इतना काम करने की ज़रूरत की क्या है, किसी चीज़ का ध्यान नही रखते, न सेहत का ना खाने पीने का" मधु थोड़ी तुनकती हुई बोली

"अरे यार, सेहत तो मेरी चंगी भली है, तुमने तो कल रात ही पूरी परख की है, कहो तो दोबारा दिखा दूँ कि मेरी सेहत कैसी है,ह्म्म्म" जयसिंह मधु की हथेलियों पर अपना हाथ रखते हुए बोला


"हे भगवान, आप तो बिल्कुल बेशर्म होते जा रहे है, कल रात से जी नही भर क्या जो सुबह उठते ही दोबारा चालू हो गए" मधु भी हल्के हल्के मुस्काते हुए बोली

"क्या करूँ जान, तुम चीज़ ही ऐसी हो कि जितना चखो कभी मन ही नही भरता " जयसिंह अपने होठों पर जीभ फिराता हुआ बोला

"अच्छा जी, अब मैं अच्छी हो गई, इतने महीने तो नज़र उठाकर भी नही देखा और अब बोलते हो कि एक पल भी नही रह जाता, हम्म्म्म" मधु भी अब पूरी तरह खेल में शामिल हो चुकी थी

"अरे यार, क्या बताऊँ अब, वो काम ही इतना रहता था कि बाकी चीज़ों में ध्यान ही नही गया, उस गलती के लिए मैं माफी चाहता हूं, प्लीज़ जान माफ करदो ना" जयसिंह मधु के हाथों को मसलते हुए बोला

"ऐसे कैसे माफ कर दूँ, इसकी सज़ा तो आपको मिलेगी ही" मधु अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए बोली

"चलो भई, तुम जो सज़ा दोगी हम स्वीकार कर लेंगे" जयसिंह बोला

"ऐसे नहीं पहले वादा कीजिये कि जो मैं कहूँगी, वो आप करोगे" मधु चहकते हुए बोली

"चलो ठीक है, तुम जो कहोगी, मैं करूँगा,अब खुश" जयसिंह हँसते हुए बोला

"तो सुनिए, जब तक आप सिंगापुर नहीं जाते, आप ऑफिस से छुट्टी लेकर घर ही रहेंगे, पिछले एक साल से आपने एक दिन भी पूरा घर पर नही बिताया है" मधु बोली

"अरे पर आफिस का काम.....???" जयसिंह थोड़ा परेशान होकर बोला

"वो सब मुझे नही पता, आपने वादा किया है, अब आप मुकर नही सकते वरना मैं आपसे नाराज़ हो जाऊंगी" मधु ने नज़रे फेरते हुए कहा

"चलो भई, अब तुमने कह ही दिया है तो ठीक है, वैसे भी तुम्हारी बात टालने की हिम्मत किसमे है, इसी बहाने मैं दिन रात तुम्हारे पास रहूंगा ओर फिर........" जयसिंह ने मधु को हाथ थोड़ा जोर से दबाते हुए कहा

"ज्यादा खुश मत होइए, मैने इसके लिए आपको नहीं रोका है, मैं तो बस बच्चो की खातिर आपको रुकने के लिए बोल रही हूं ताकि आप उनके साथ अच्छा टाइम स्पेंड कर सके, और अब तो मनिका भी आ गई है " मधु ने हँसते हुए कहा

"चलो ठीक है फिर ये तय रहा, मैं 6 तारीख तक आफिस नही जाऊंगा, अब खुश" जयसिंह बोला

"बहुत खुश" मधु ने भी खुशि से जवाब दिया

जयसिंह ने तुरंत अपने आफिस में कॉल किया और बता दिया कि वो 3-4 दिन ऑफिस नही आएगा

वो दोनों अभी बाते कर ही रहे थे कि मनिका अपने कमरे से आती हुई दिखाई दी, रात भर मनिका जयसिंह के ख्यालो में खोई थी और आखिर में उसके नाम की उंगली कर आराम से सो गई थी, सुबह उठकर वो थोड़ा फ्रेश हुई और एक पतली सी पजामी और टीशर्ट डालकर सीधा नीचे आ गई

"अरे पापा, आप अभी तक ऑफिस नही गए" मनिका ने हैरान होकर पूछा

"नही मणि , वो मैंने ऑफिस से 3-4 दिन छुट्टी लेली है" जयसिंह ने सामान्य होकर जवाब दिया, अब जयसिंह की झिझक काफी हद तक कम हो चुकी थी

"अरे वाह, ये तो बड़ी अच्छी बात है, इसी बहाने मुझे आपके साथ टाइम स्पेंड करने का समय मिल जाएगा...मेरे मतलब है हमें...." मनिका के चेहरे पर खुशि साफ झलक रही थी

"चलो मणि, आकर नाश्ता कर लो,इतने में मैं हितेश और कनिका को भी उठा देती हूं" मधु ने मनिका से कहा और खिड़ कनिका के रूम की तरफ चल पड़ी

मनिका सीधी आकर जयसिंह के बाजू में बैठ गयी, मनिका ने बेहद ही गहरे गले की टीशर्ट पहनी थी जिसमे से उसकी घाटी के नजारे साफ देखे जा सकते थे, मनिका ने इस बात का फायदा उढाने की चाल सोची, वो झुक कर अपने कप में चाय डालने लगी, उसके इस तरह आगे की ओर झुकने से
मनिका की छाती जयसिंह के काफी करीब आ गई और जयसिंह की नज़रे न चाहते हुए भी उसकी टीशर्ट के अंदर ब्रा में कैद मुलायम मम्मों पर अटक गई, जयसिंह को इस लग रहा था कि मनिका के मम्मे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर की तरह थे जो आज़ाद होने के लिए फडफडा रहे थे, मनिका उस रूप में सेक्स की देवी लग रही थी, उसका यौवन उसकी ब्रा में से ही कहर ढा रहा था,उसकी छतियो के बीच की घाटी जानलेवा थी,दिल थाम देने वाली 'कातिल घाटी' , उसका नव यौवन कयामत ढा रहा था ,जाने अंजाने वो जयसिंह की साँसों में उतरती जा रही थी
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