Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:32 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैने उसकी ज़ुल्फो पे अपनी उंगली फिराई तो वो सिहर गयी मैने उसके गाल को हल्के से चूमा फिर उसकी साड़ी को एक झटके में उसके बदन से खींच लिया तो वो हिल गयी मैने धीरे धीरे उसे खड़ा खारके उसे लगभग राउंड घुमाते हुए उसकी साड़ी उसके पेटिकोट की गाँठ खोलते हुए अलग कर दी...माँ अब ब्लाउस और पेटिकोट में थी......माँ जानती थी मेरी हसरतों की आग फिर सुलगने लगी है और अब मैं उसे बकशने वाला नही...

मैने उसे पलटा और उसकी पीठ पे फसि ब्लाउस की डोरियो को खोल दिया फिर हुक भी....फिर पेट पे हाथ ले जाते हुए नाभि को सहलाते हुए पेटिकोट का नाडा भी खोल कर पेटीकोट को कमर तक उठा दिया और उसे लगभग गोदी में उठा लिया वो हड़बड़ा सी उठी...मैने उसे पलंग पे जाके लेटा दिया उसकी गोरी गोरी टाँगों को चूमा फिर मुँह नाभि के पास आते हुए उस पर हल्के से दाँत गढ़ाए माँ चीख उठी उसने हल्की सी मेरे चेहरे पे चपत लगाई फिर नज़ाकत से मेरी ओर देखने लगी...

मैने उसे उल्टा लिटाया और उसकी पीठ को चूमता रहा...पेटिकोट अब तक जो कमर पे थी वो पेट तक आके इकट्ठी हो गयी थी लपेटे लपेटे एक टाँग माँ ने टाँग पे चढ़ाया मैने उसकी टाँगों के बीच अपना मूसल जैसा लंड फिराया और उसकी झान्टेदार पानी छोड़ती चूत में एक ही बार में घुसा दिया तो माँ बदहवास मेरे बदन पे ढेर हो गयी...जैसे वो सुध बुध खो बैठी सिसकते हुए बस अधखुली आँखो से चुदाई का अहसास पा रही थी...मैने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और उसकी गर्दन और गाल को चूमने लगा...

उसके बाद बिस्तर जैसे हमारी चुदाई से चर्चर आवाज़ निकलने लगी पूरा बिस्तर हिल रहा था....और मैं माँ की चुदाई करने में मशगूल हो गया....मैने उस रात माँ की गान्ड को फिर एक बार चोदा था....ऐसे 2-3 दिन माँ की गान्ड मारने से माँ को हल्का दर्द उठा फिर उसे मेरा लंड खाने में आदत सी पड़ गयी...इस बार एजेंट ने मामलों में ल्यूब की डिब्बी और कयि ब्रॅंडेड कॉनडम्स के सॅंपल्स लाए थे उनमें से कुछ मैने रख लिया था सोचा था माँ को प्युरे सुरक्षा से निरोध चढ़ा कर ही चोदुन्गा क्यूंकी माँ को बिना निरोधक के चुदवाने से ऐतराज़ था....हम माँ-बेटे अपनी ज़िंदगी ऐसे ही काट रहे थे

मैने मोरतुज़ा काका के कारोबार को छोड़ दिया कारण उनकी वजह से मुझे अपनी माँ के साथ समय बिताने का वक़्त तक नही मिलता था और वो अपने दामाद की मुझसे जी हुजूरी कराने में लगे रहने लगे माँ ने मुझे समझाया कि हर कोई फ़ायदा तो उठाता ही है तू कुछ और कोशिश कर...मैने एजेंट को अपने साथ में कर रखा था और जल्द ही मैं एक डिपार्ट्मेनल स्टोर में ऐज आ पर्चेस ऑफीसर की नौकरी पा गया....हम उतने अमीर तो नही हुए लेकिन हमारे पास कोई पैसो की कमी नही थी ज़रूरत की हर चीज़ थी हामरे पास हम माँ-बेटे अपने ज़िंदगी को ऐसे ही काट रहे थे....माँ अब मुझसे इजाज़त नही मांगती अब हम यहाँ बहुत महीनो से है तो माँ घाट में कपड़े धोने काकी के साथ तो कभी टाउन में सब्ज़ी की खरीदारी खुद करने निकल जाती है....

एक दिन ऑफीस की छुट्टी थी और माँ को घाट पे कपड़े धोने ले जाना चाहता है चूँकि आज काकी जो कि हमारी पड़ोसन जिसके साथ माँ बातें करती थी और उसी के साथ घाट जाती थी वो बीमार थी इसलिए माँ ने फ़ैसला किया कि वो खुद जाएगी पर मैं घर में था और शाम होने को था घाट पूरा सुनसान हो जाता था इस वक़्त इसलिए उसे संकोच हो रहा था अकेले जाने को लेकिन डर की कोई बात नही थी क्यूंकी आस पास कोई नही होता था....मैने माँ का कारण जाना तो माँ के साथ खुद ही कपड़ों से भरा टब लिए उनके साथ घाट की ओर चलने लगा

माँ आगे थी और मैं पीछे तो मुझे उसकी गोल गोल हिलते चूतड़ नाइटी के बाहर से दिख रहे थे...वो आज लेट हो गयी थी नहाई भी नही थी उसने सोचा था कि शाम को कपड़े धोके घर लौट आएगी पर आज मौसम का मिज़ाज भी कुछ ठीक नही लग रहा था लेकिन फिर भी माँ के गंदे कपड़े बहुत मज़ूद थे इसलिए उसे जाना पड़ा...मैं उसके पीछे था और उसके हिलते चूतड़ और उसकी गोलाईयों के उभार को नोटीस करने लगा मुझे अहसास हुआ माँ ने अंदर कोई कपड़ा नही पहना मैने माँ से जब इशारो में ही सवाल किया कि माँ तूने आज अंदर कुछ नही पहना तो उसने बस पलटके कहा अब जब तूने मुझे मना किया है तो मैं काहे को पहनु और घाट कौन सा टाउन में है आस पड़ोस तो औरतें है..और उन्हें क्या फरक पड़ता है? यहाँ तो पल्लू भी किए औरत नंगी चुचियाँ लेके घूमती है

मैं मुस्कुराया और हल्के से माँ के चूतड़ पे छपत लगाई चारो तरफ देखते हुए तो माँ ने मुझे आँख दिखाई फिर मुस्कुराइ मैं माँ के पीछे चले ही जा रहा था और उसकी हिलते नितंबो के उभार को नाइटी के बाहर से ही घूर्र रहा था....और माँ आगे आगे उसे सब मालूम था पर उसे भला क्यूँ आपत्ति होती मर्द जो था उसका...

रास्ते भर माँ को घुरते हुए मैं उसके साथ कुछ ही देर में घाट पहुचा...पीछे मूड के देखने पे घर सबका दूरी पे था मुझे मालूम नही था कि घाट हमारे घर से इतने नज़दीक भी हो सकता है....घाट की सीडिया कुल 40-50 के लगभग थी जो सीधे नीचे की ओर जाते हुए पानी की आती किनारों पे ख़तम हो रही थी फिर बीच में दाई और बाई ओर जाती एक बड़ी सी तालाब जैसी नदी थी....उस पार बड़े बड़े पेड थे सुना था उस साइड जंगल पड़ जाता था...और उसके थोड़े आगे नॅशनल हाइवे...मैने पाया कि शाम का वक़्त था और कोई वहाँ मज़ूद था भी नही दाई और बाई ओर कच्ची सड़क थी जो ना जाने किस ओर जा रही थी....पर वहाँ कोई आस पास घर नही था जिस रास्ते से हम आए थे बस वोई चार पाँच घर काफ़ी दूरी पे दिख रहे थे...

माँ ने मुझे आवाज़ लगाई तो वो धीरे धीरे सीडियो पे उतरते हुए काफ़ी नीचे जा चुकी थी...मैं उसके पीछे उतरा...जल्द ही हम दोनो पानी जहाँ से शुरू होता है वहाँ पे बैठ गये माँ तो टब से निकाले बड़े बड़े कपड़ों को एक साइड रखके उसे तालाब के पानी में डुबो डुबॉके निकाल रही थी...वो घुटनो के बल संडास करने की मुद्रा में बैठ गयी थी....उसने अपनी टांगे इतनी खोल ली कि उसके नाइटी के अंदर टाँगों के बीच की झलक मैं आराम से देख सकता था मैं सीडी पे बैठा था...मुँह धोने के बहाने सर जैसे ही नीचे झुकाया...

तो माँ की नाइटी के भीतर उसकी टांगे फैली होने से झाका..उफ्फ झान्टेदार फूली हुई चूत दिखी...जब मैं उपर उठा तो माँ को मुस्कुराता पाया मेरी चोरी पकड़ी गयी थी ..

अंजुम : तू इसलिए मेरे साथ आया है क्या? कम से कम यहाँ तो बाज़ आजा

आदम : तू ही तो बोली कोई आस पास नही है...

अंजुम : तो इसका मतलब तू मुझे अकेला पाके फायेदा उठाएगा

आदम : हा हा हा मैं ऐसा तो नही

अंजुम : क्या भरोसा तेरा? अच्छा चल छोड़ तू मुझे काम कर लेने दे

आदम : मैं तेरी मदद करूँ ?

अंजुम : नही रहने दे तू खामोखाः थक जाएगा

आदम : काम करने में कैसी थकान? तेरे काम से ज़्यादा थकावट तो इस काम में नही होगी

माँ शरमा गयी उसने मेरी तरफ तीखी निगाहो से देखा...फिर कपड़े, कपड़े धोने वाले बल्ले से पीटने लगी...मैं माँ को काम में मलिन देख मैं भी उसके नाइटी पहने जिस्म को ताड़ने लगा...एक बात तो तय थी माँ यहाँ की देहातन औरतो की तरह बाल खुले रखा करती थी कोई आँचल नही करती थी....मुझे अच्छा लगता था...खैर मैने सोचा कि मैं भी नहा धो लूँ तो अपने कपड़े उतारने लगा तो माँ ने मेरी ओर देखते हुए ज़ोर से कहा "अर्रे पागल सारे कपड़े क्यूँ उतार रहा है? कम से कम कच्छा तो उतार मत"........माँ की बातों को सुन मैं एक पल के लिए ठिठक गया पाजामा उतारते हुए उसकी तरफ मुस्कुराया..उसे अहसास हुआ मेरे कच्छे के उभार का...वो चुपचाप कपड़े धोते हुए मुझे देख रही थी...

अंजुम : ज़्यादा आगे तक मत जाना पानी गहरा है और तू ठहरा शहरी लौंडा डूब जाएगा (माँ ने फिर मुझे टोका)

आदम : हाहाहा तू है ना तैरके निकाल लेना मुझे

अंजुम : देख ऐसी जगहो पे मुझे मज़ाक मस्ती पसंद नही यहाँ की औरतें तो डेली नहाती है वो तो पेशेवर तैराक है मैं थोड़ी मैं तो बिहार से हूँ हालाँकि वहाँ पे भी गंगा नदी है पर कभी तैरि नही हूँ

आदम : तू फिकर मत कर बस घुटनो तक पानी में जाउन्गा

अंजुम : अच्छा संभाल के
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