Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:31 PM,
#92
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ की बात सुन मैं उठ खड़ा हुआ मैने नोटीस किया माँ अब भी मेरी टाँगों के बीच के उभार का जायेज़ा ले रही थी मेरे अंडकोष झूल रहे थे जो बार बार पाजामे पे अपना उभार दर्शा रहे थे..माँ का चेहरा एकदम लाल लग रहा था...

आदम : अच्छा माँ तुझे कैसे मालूम कि मैं बिना कच्छे के सोता हूँ

अंजुम : चल हट कम्बख़्त जा नहा ले

आदम : अर्रे बता ना माँ (मैने नज़ाकत भरे लहज़े में ज़िद्द की)

अंजुम : बहुत कमीना हो गया है तू हाए बेशरम कुछ लिहाज़ तो कर माँ का

आदम : बता ना

अंजुम : ठीक है तो सुन आज जब मैं नहा कर अंदर आई तो मुझे लगा कि तू गहरी नींद में है जब मैने तेरी चादर हटाई तो अचानक से मेरी नज़र तेरे तानव में उठे लिंग पे पड़ी

माँ की इस बात को सुन मुझे जैसे करेंट लगा मैं अपने होंठो पे ज़ुबान फेरने लगा....माँ जैसे शरमा गयी फिर मुझे लगभग भगाने लगी...जब मैं नहाने घुसा तो अपने भीगे बदन पे साबुन मलते हुए लंड को एकदम उत्तेजित पाया जो माँ के सेक्सी बदन को नोटीस करने से ही खड़ा था...उपर से आज मैं इतनी ठरक महसूस कर रहा था..मैं उत्तेजना के चरम सुख पे था इसलिए 1 मिनट की मूठ मारी मेंने मेरे लौडे ने सफेद गाढ़ा वीर्य छोड़ा..मैने पूरे बदन को सॉफ किया नाहया फारिग होके बाहर आया

माँ और मैं फिर व्यस्त हो गये....माँ खाना बनाने में जुटी हुई थी तो मैं एजेंट को कॉल करके नये माल के आने की खबर जानने में लगा हुआ था....एजेंट ने बताया कि माल आ चुका है अगर हो सके तो मैं मार्केट आ जाए ताकि मामलो का जायेज़ा और इनस्पेक्षन दोनो कर ले...मैने शाम का टाइम लिया और पानी पीने रसोईघर के अंदर आया तो पाया माँ के चुतड़ों की गोलाइयाँ पाजामे के बाहर से काफ़ी उभरी हुई दिख रही थी पसीने पसीने होने से कपड़ा माँ के चूतड़ से चिपक गये थे और उसके नितंबो के बीच कुछ धँस से गये थे मैने ग्लास रखा

और माँ के पास आते हुए उसे काम में व्यस्त पाया वो अपनी ज़ुल्फो को हटाए माथे को पोंछ रही थी.....दोनो गॅस में चूल्हा चढ़ा हुआ था...मैने हल्के से उसके दाए नितंब को पाजामे के उपर से ही उस पर हाथ रखा और उसे हल्का सा दबाया..माँ सिहर उठी उसके हड़बड़ाने से पहले मैने उसे पीछे से अपने बदन से चिपका लिया और उसके पसीनेदर गले को चूमा और उसके गाल पर मैं अपना चेहरा उसके चेहरे से रगड़ने लगा माँ मेरे सर को धकेलने लगी

अंजुम : अर्रे ये क्या बेहुद्गि है आदम? उफ्फ बहुत ज़्यादा नही हो रहा (माँ ने हल्का सा विरोध किया)

आदम : क्यूँ मेरा छूना तुझे अच्छा नही लगता?

अंजुम : हमारे बीच कुछ तय हुआ था ना तू भूल गया

आदम : मैने तुझसे वादा किया था कि मैं तुझे हर सुख और आराम दूँगा

अंजुम : अच्छा जी तो तू अब मेरे दिए हुए वायदे का फ़ायदा उठा रहा है....तूने ही मुझसे कहा था जब तक मैं ना कहूँ तू मुझे छुएगा भी नही

आदम को ख्याल आया तो उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ...लेकिन उसने माँ के जंपर के अंदर हाथ डाला और उसके गुदाज़ पेट पे अपने दोनो हाथ कस लिए "ह्म भुला तो नही हूँ पर तुझसे दूर नही हो पा रहा अब जब तक घर में रहूँगा तुझसे अलग नही हो पाउन्गा"...........माँ मुस्कुराइ वो चाकू से नींबू काट रही थी

अंजुम : लगता है जेठ जी से बात करनी ही पड़ेगी ताकि तुझे सनडे की भी छुट्टी ना मिले

आदम : क्यूँ ? मेरे साथ वक़्त गुज़ारने में तुझे अच्छा नही लगता

अंजुम ने प्यार से मेरे चेहरे और बालों पे हाथ फेरा फिर उसने मेरे गाल को चूमा....उसके इशारे भरे मुस्कुराए लहज़े को समझा तो माना कि वो मज़ाक था...माँ ने इस बीच मुझे अपने से दूर धकेला और फिर थाली देते हुए बोली जाओ खाना लगाओ मैं हार मानते हुए मुस्कुराए उसकी नरम कलाईयों को छूते हुए थाली लिए अंदर चला आया

हम माँ-बेटे ने एक साथ लंच किया...उसके बाद माँ को थोड़ी सुस्ती होने लगी तो वो बेड पे बैठके टीवी देखने लगी...मुझे तय्यार होता देख उसने सवाल किया मैने कहा कि मैं आता हूँ एजेंट से मिलके....माँ ने कहा कि अच्छे से जाना और जल्दी घर आ जाना

मैं मेन मार्केट के लिए निकल गया...वहाँ एजेंट से मुलाक़ात की फिर उसके साथ उसके घर पहुचा वहाँ उसने मुझे नये नये आए माल दिखाए....उन्हें सेलेक्ट करना और डिसट्रिब्यूट करने का मेरा काम था....जो जो चीज़ो की डिपार्ट्मेनल स्टोर को रिक्वाइयर थी उतना सामान मैने चूज किया...अचानक एक नया माल हाथ लगा....वो कोई झिल्लिडर बिकिनी थी जिसके फिते काफ़ी पतले डोरी जैसे थे काफ़ी सेक्सी पीसस थे वो...एजेंट मुस्कुराया उसने कहा कि यह यहाँ यक़ीनन सेल होगी क्यूंकी यहाँ ठरकीयो की कमी नही हम दोनो मज़ाक कर रहे थे...

मैने वो सॅंपल एक अपने पास रख लिया और बाकी मामलो बताए वक़्त पे डिपार्ट्मेनल स्टोर पहुचने के लिए मुहय्या कराया...काम काज से निपटते हुए जब मैं बाइक से घर आ रहा था तो एक बार केमिस्ट शॉप पर रुका वहाँ मैने एक दवाई मेडिकल शॉप वाले को देने के लिए कहा...उसने मुझे सुडोल कॅप्सुल का एक डिब्बा दे दिया...मैने माँ के स्तनों को नोटीस किया था सोचा कि इस बार माँ को ये कॅप्सुल खिलाके देखता हूँ ताकि मेरी माँ और भी सेक्सी लगे...माँ अगर ऐतराज़ करती तो मैं ज़िद्द पे आमादा हो जाता यही सोचके मैं घर लौटा

मैने माँ को तोहफे में वो सॅंपल वाली बिकिनी दी...जिसे देखके वो शरमाने लगी..."हाए अल्लाह ये तू मेरे लिए लाया है".....

.."हां माँ मेरा दिल है कि तू यह पहने".......

."छी तौबा मेरी उमर नही ये सब पहनने की क्या अज़ीब चीज़े तू लाता है"........

"तू पहनके दिखना ब्रा और पैंटी भी तो फिट आती है तुझे ये भी आएगी तू पहनके दिखा ना"......माँ बहुत झिझक रही थी क्यूंकी उसका साइज़ काफ़ी छोटा था पर मेरी ज़िद के आड़े उन्हें मानना पड़ा

जब मैं बेडरूम में बैठा टीवी देख रहा था तो इतने में दरवाजे के खुलने की आहट हुई..मैं एकटक माँ की तरफ देखते ही हक्का बक्का मुँह खोले खड़ा रह गया ...एक तो माँ के बाल खुले हुए थे और ब्यूटी पार्लर हाल ही में उसे भेजा था इसलिए फेशियल की वजह से उसका चेहरा चमक रहा था...उसने आइब्रो भी बनाए हुए थे

उसने मेरी दी हुई बिकिनी पहनी हुई थी जो उसकी कंधो से लेके पीछे पीठ पे एक गाँठ बनके फसि हुई थी वो फिते नीचे जाते हुए माँ की दोनो चुचियो के कटाव के साथ साथ सिर्फ़ माँ के निपल्स को ही छुपा रहे थे नीचे टाँगों के बीच पैंटी जैसी वो लाइनाये वो तो माँ की झान्टेदार चूत को छुपा ही ना सकी बस उसने चूत की दरार से लेके पीछे दोनो नितंबो को ऐसे छुपाया हुआ था कि माँ के गोल गोल नितंब उससे एकदम चिपके खुद को दर्शा रहे थे...पैंटी की डोरी महेज़ एक धागा था जो पैंटी को दोनो टाँगों के बीच जोड़ा हुआ था जो दोनो कमर में फँसा हुआ था....माँ की गोल गहरी नाभि और उसके नीचे नाभि से शुरू होते मैं स्ट्रेच मार्क्स को घूर रहा था उफ्फ वो उस बिकिनी में काफ़ी सेक्सी लग रही थी माँ का चेहरा एकदम गुलाबी सुर्ख था

आदम : उफ्फ माँ बगलो को भी उठाओ

अंजुम ने अपने बगलो उठाया और दोनो में उगे हुए अपने काख के बाल दिखाए उफ्फ उनकी बाँह उठाने से ही मैं जैसे फर्श पे गिरते गिरते बेहोश होते बचा...वो काफ़ी सेक्सी लग रही थी मैं उन्हें पलटा और उनकी पीठ पे हल्की रोयेदार बाल पे अपना हाथ फेरा फिर उनकी कमर की निकली दोनो तोंद पे हाथ फेरा और उनके नितंबो के बीच की दरार में फासी पैंटी की सिलवटों को देखने लगा...ब्रा की हुक तो महेज़ एक धागा ही थी सामने पलटने के बाद मैं बड़े गौर से माँ की छातियो को घूर्रने लगा वो बिकिनी मुस्किल से ही माँ की चुचियो को छुपा रही थी माँ शरम से एक दम पानी पानी हो रही थी लेकिन बेटे की ज़िद्द के आगे वो चुपचाप खड़ी बस लजा रही थी..
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