RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
मैंने सर उठा कर वसुन्धरा की आँखों में देखा. अपने हाथ में मेरे लिंग का साइज़ अनुभव करते हुए उसका मुंह और आँखें यूं खुली हुई थी जैसे कोई न-काबिल-ए-यक़ीन चीज़ से दो-चार हो रही हो.
दो-चार पल की ज़ोर-आजमाईश के बाद वसुन्धरा ने अपना हाथ मेरे लिंग पर से उठाने की कोशिश को विराम दे दिया और अपनी उँगलियों से मेरे लिंग को थाम कर उसके आकार-प्रकार का ज़ायज़ा लेने लगी.
अब मैंने तो अपना लिंग थामे वसुन्धरा के हाथ पर से अपना हाथ उठा लिया लेकिन वसुन्धरा बदस्तूर मेरे लिंग को थामे रही. मारे उत्तेजना के मेरा लिंग पत्थर सा सख़्त हो रहा था और उसमें से प्री-कम भी बहुत निकल रहा था जिस के कारण वसुन्धरा की उंगलियां मेरे प्री-कम से सनी सनी जा रही थी. लेकिन अब वसुन्धरा को इस से कोई ऐतराज़ नहीं था, वो कभी अपनी उँगलियों के पोरुओं से मेरे मेरे प्री-कम से सने हुए लिंग-मुंड को दबाती और कभी अपनी उंगलियों की गोलाई में मेरे लिंग को दबा दबा कर लिंग की जड़ तक ले जाती और मैं अपने बाएं हाथ से वसुन्धरा की पेशानी से लेकर वसुन्धरा का सर धीमे-धीमे सहला रहा था.
कुछ पल ऐसे ही बीते. अचानक ही वसुन्धरा ने मेरी तरफ करवट ली और अपनी दायीं टांग उठा कर मेरे जिस्म पर रखकर अपने पाँव को मेरे नितम्बों के पीछे लगा कर मेरे जिस्म के निचले भाग को अपने जिस्म के के निचले भाग के साथ रगड़ने का प्रयास करने लगी.
इस प्रक्रिया में मेरा लिंग जोकि वसुन्धरा के दायें हाथ में ही था, वसुन्धरा की जलती-धधकती योनि से सट गया और वसुन्धरा मेरे लिंग को अपनी योनि की पंखुड़ियों पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर रगड़ने लगी और इसी के साथ वसुन्धरा के मुंह से आहों-कराहों का बाज़ार बुलंद होने लगा.
मैंने फ़ौरन वसुन्धरा को अपने बाएं हाथ से अपने आलिंगन में लेकर कस लिया और लगातार उसके चेहरे पर यहां-वहाँ चुम्बन लेने लगा. मैंने नोट किया कि वसुन्धरा अपनी योनि के भगनासा पर मेरा लिंग-मुंड सख्ती से गोल-गोल रगड़ रही थी, यकीनन इस में उसे ज्यादा मज़ा आ रहा था.
जहां तक मेरा सवाल है, वसुन्धरा की योनि की पंखुड़ियों की मेरे लिंग पर लगती मुतवातिर(अनवरत) रगड़, मुझे सरासर जन्नत का नज़ारा करवा रही थी.
अब चूंकि काम-क्रीड़ा की कमान वसुन्धरा के खुद के हाथ में थी इस लिए वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली आहों-सिसकारियों में भी फर्क था- ओ राज! तुम … आह! इतनी देर से … स..सी … इ..इ.. क्यों मिले? … आ … आ … आ … आ … आह! हाय … सी! ओह … आए … ह … ओह … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई!
वसुन्धरा काम-उत्तेजना के शिखर-बिंदु से ज्यादा दूर नहीं थी अब.
इससे पहले कि वसुन्धरा के जिस्म में काम-विस्फोट हो जाए, मुझे इस काम-केलि की कमान अपने हाथ में लेनी थी. मैंने फ़ौरन वसुन्धरा का ऊपर वाला कन्धा (दायां) अपने ऊपर वाले (बायें) हाथ से बिस्तर पर लगा कर वसुन्धरा को सीधा किया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया. इसी चक्कर में वसुन्धरा के (दाएं) हाथ से मेरा लिंग छूट गया. मैंने अपने बाएं हाथ से वसुन्धरा का दायां हाथ वसुन्धरा की कमर के ख़म के पास बिस्तर पर दबा लिया और ख़ुद वसुन्धरा की दोनों टांगों के बीच में घुटनों के बल उकडू बैठ कर दायें हाथ से अपना लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि पर रगड़ने लगा.
वसुन्धरा ने तत्काल अपनी दोनों टांगें हवा में उठा कर मेरे लिंग का अपनी योनि के मुख पर स्वागत किया. मैंने तत्काल वसुन्धरा के दोनों पैर अपने कन्धों पर टिकाये और अपने लिंग-मुण्ड को अपने दाएं हाथ में लेकर वसुन्धरा की योनि की पंखुड़ियों को ज़रा सा खोल कर योनि के ऊपर भगनासा तक घिसने लगा.
वसुन्धरा के मुंह से सिसकारियाँ मुतवातिर जारी थी लेकिन अब वक़्त था कर्म करने का.
अचानक ही मेरा लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि के मध्य से ज़रा सा नीचे, किसी गुदगुदे से गड्ढे में अटक गया. मैं अपना लिंग-मुण्ड वहीं टिका छोड़ कर वसुन्धरा के जिस्म के ऊपरी भाग पर छा गया. इस प्रक्रिया में वसुन्धरा की दोनों टाँगें मेरी निचली पीठ तक फ़िसल गयी. वसुन्धरा ने अपने पांवों की कैंची सी बनाकर जुड़ी हुईं अपनी दोनों एड़ियां मेरे नितम्बों पर टिका दी.
मैंने अपने लिंग पर धीरे-धीरे दबाव बढ़ाना शुरू किया. काम-रस से मेरा लिंग और वसुन्धरा की योनि, दोनों बुरी तरह सने हुए थे. मेरा लिंग वसुन्धरा की योनि में करीब डेढ़ इंच प्रवेश कर चुका था कि वहीं अटक गया. मैं समझ गया कि आगे हाईमन है. हाईमन बोले तो … अक्षत-योनि की पहचान या आम भाषा में योनि की ‘सील’.
मैंने बहुत नर्मी से अपने लिंग पर दबाव बढ़ाया, तत्काल वसुन्धरा के चेहरे पर पीड़ा की लक़ीरें उभरी. मैंने अपना लिंग थोड़ा सा वापिस बाहर खींचा तो वसुन्धरा के चेहरे पर राहत के भाव आये. मैंने फिर हल्के से अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि में वापिस आगे उसकी पुरानी जग़ह तक पहुँचाया.
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