Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
12-09-2019, 12:07 PM,
#8
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
“फिर तो एक ही चारा बचा है और मुझे पता नहीं कि यह आप को पसंद आएगा या नहीं.” मैंने झिझकते-झिझकते कहा.
“अरे! बोल भी दीजिये …” आवाज़ में सत्ता की गूंज बराबर थी.
“नाड़ा काट देते हैं, लहंगा रिपेयर कर के नया नाड़ा डालते हैं और चलते हैं. कुल पांच मिनट का काम है. कहिये! क्या कहती हैं आप?”

क्षणभर के लिए जैसे सारी कायनात में चुप्पी सी छा गयी.
“यू श्योर दैट्स द बेस्ट आईडिया वी हैव?”
“अनटिल यू सज़ेस्ट समथिंग बैटर!”
वसुंधरा ने सारे हालात पर कुछ क्षण सोचा, फिर बोली- नया नाड़ा कहाँ से मिलेगा? नाड़ा कौन काटेगा? आप रिपेयर कर के मुझे लहंगा कितने समय में लौटायेंगे? मैं लहंगे के बिना कहाँ रहूंगी?”
हे भगवान्! फिर से वही पुरानी सड़ियल वसुंधरा जागने क़ो थी.

“नया नाड़ा तो मैं अभी अपने वॉर्डरोब में से निकाल लाता हूँ और साथ में कैंची भी. मैं खुद बैडरूम से बाहर चला जाता हूँ. आप अपने लहंगे के नाड़े की गाँठ काट दें और अपना लहँगा ज़मीन पर ही छोड़ कर ड्रेसिंगरूम में चली जाएँ और मुझे वहीं से आवाज़ दें. मैं आकर नया नाड़ा और आपका लहंगा उठा कर ले जाऊंगा, बच्चों के कमरे में जा कर लहंगे पर सुइंग मशीन से दो सीधी सलाईयां मार कर, नया नाड़ा लहंगे में पिरो कर, लँहगा बैडरूम में रख कर कर वापिस बाहर चला जाऊंगा. आप अपना लहंगा पहनिये और हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी वापिस.”

“नहीं नहीं! मेरे तो हाथों में मेहँदी लगी हुई है, मैं कैंची कैसे हैंडल करुँगी, नाड़े की नॉट कैसे बांधूगी?” वसुंधरा ने सवाल दागे.
” तब तो एक ही चारा है.”
” न न … बिल्कुल नहीं.” मेरा मंतव्य समझ कर वसुंधरा कुछ-कुछ विरोध-भरे स्वर में बोली, हालांकि उस विरोध में ‘न’ की मात्रा तो बस नाममात्र ही थी.
“तो आप ही बताएं … क्या करें?” इसके आगे बहस बंद थी क्योंकि इस बात का कोई जवाब था ही नहीं.

मैंने वॉर्डरोब से कैंची उठायी और सुधा के एक सूट की सलवार में से नया नाड़ा खींच कर अपने कंधे पर लटकाया और वसुंधरा के सामने आ खड़ा हुआ.

“आप अपनी आखें बंद कीजिये पहले!” वसुंधरा ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा.
“अरे! कमाल करती हैं आप! मुझे कैंची चलानी है और आप हैं कि मुझे आखें बंद करने को कह रही हैं, आखें बंद करके मैं नाड़ा कैसे काटूंगा? कहीं कैंची आपको लग गयी तो?”
” तो … तो मैं क्या करूँ? ऐसे तो मुझे शर्म लगती है.” अपनी आला ज़ेहनी-कूव्वत से दुनिया-जहान की सिटी-पिट्टी गुम कर देने वाली एक पढ़ी-लिखी, आला दिमाग की मालिक़, वॉइस-प्रिंसिपल साहिबा को अपनी छोटी सी समस्या का कोई कारआमद हल नहीं सूझ रहा था.

इधर काम-संवेदनाएँ फिर सिर उठाने लगी थी और मेरे लिंग में फिर से तनाव आना शुरू हो गया था.

“आप ऐसे करें कि आप अपनी आँखें बंद कर लें और मुझे अपना काम करने दें.” कह कर मैंने अपने बाएं हाथ से वसुंधरा के लहंगे के नाड़े को उठा कर जरा सा अपनी ओर खींचा ताकि लहंगे का नाड़ा, गिरह के एकदम पास से कैंची के खुले मुंह की निचली बाजू और कैंची की ऊपर वाली बाजू के बीच में आ जाए लेकिन इस चक्कर में वसुंधरा बिल्कुल ही मेरे साथ आ सटी.

वसुंधरा के गर्म जनाना जिस्म से उठती गर्मी को मैं अपने पूरे शरीर में महसूस कर रहा था. वसुंधरा के तने हुये दोनों उरोजों के बीच की घाटी मेरी नासिका से ऐन नीचे थी. मेरे पूरे बाएं बाज़ू को वसुंधरा के शरीर ने दबा रखा था. बायीं बाज़ू पर, कंधे से थोड़ा नीचे वसुंधरा के उरोजों का अतिरिक्त दवाब पड़ रहा था. अब चूंकि मेरे बाएं हाथ ने लहंगे के नाड़े वाला हिस्सा छोड़ दिया था तो मेरा बायां हाथ लटक कर वसुंधरा की दोनों जांघों के बीच आ गया था और मैं अपनी बायीं हथेली के पृष्ट भाग पर वसुंधरा की योनि से निकलती ऊष्मा स्पष्ट महसूस कर रहा था.

मैंने देखा कि वसुंधरा के जिस्म के सारे रोएं अचानक ख़ड़े हो गए थे. वसुंधरा के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि वसुंधरा की दोनों आँखें बंद थी, भृकुटि में हल्की सी एक सिलवट थी, लिपस्टिक लगे होंठों में रह-रह कर थरथराहट हो रही थी. मेहँदी-रचे दोनों हाथों से दोनों साइडों पर अंगूठे और तर्जनी की चुटकियों में से लहँगा रह-रह कर छूट-छूट सा जा रहा था और उसके पूरे जिस्म में बार-बार एक झुरझुरी सी उठ रही थी.

माना कि साफ़ साफ़ ‘हाँ’ नहीं थी लेकिन साफ़ साफ़ ‘न’ तो बिल्कुल भी नहीं थी और आधी-अधूरी ‘न’ तो नखरे वाली ‘हाँ’ ही होती है … यह मैं जानता था.

देवराज इन्द्र के दरबार की इक प्यासी अप्सरा, किसी अंजाम की परवाह किये बिना, वर्जित फल चखने को कमर कसे बैठी थी लेकिन मेरे खुद के कुछ जुदा मुद्दे थे.

पहली बात! यह समय ठीक नहीं था, कम से कम आज के दिन तो ऐसा कुछ होना ठीक नहीं था. आज मेरी प्रिया की शादी थी और मेरी पहली आकांक्षा प्रिया की ‘शादी में सबकुछ ठीक-ठाक रहे’ की थी और मेरे जाती नज़रिये से आज के दिन ऐसा कुछ होना ठीक नहीं था.
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