RE: Maa Bete ki Sex Kahani मिस्टर & मिसेस पटेल
अपडेट 78
‘आह हीतेश के होंठ मेरे क्लीवेज को चूम रहे है.
उफ्फ्फ ये क्या सनसनी मेरे जिस्म में फैल रही है
आज बरसों बाद यूँ लग रहा है में एक बंद कली से फिर एक खिलता हुआ फूल बनने वाली हूँ
और इस फूल की खुश्बु खुद मेरा बेटा ही लेगा
जो अब मेरा पति बन चुक्का है.
जिस्म में रोमाँच भर्ता जा रहा है
एक अजीब सी उल्झन साथ साथ चल रही है
क्या जो हो रहा है ठीक हो रहा है
कहीं मैंने कोई ग़लती तो नहीं करदी
अपने बेटे को अपने पति के रूप में स्वीकार कर के
ये ख्याल बार बार उठता है पर हीतेश के होंठ मुझे पागल करते जारहे हैं
दिल कर रहा है हीतेश के साथ कस के लिपट जाऊ फिर डर लगता है पता नहीं क्या सोचेगा मेरे बारे में
ओह माँ हीतेश ने तो मेरे स्तन को दबाना शुरू कर दिया
है मुझे ये क्या होता जा रहा है ओह कैसे मसलने लगा है आराम से नहीं कर सकता आह दर्द हो रहा है
उफ़ कैसे बोलूँ आराम से करे ----- ओह इस दर्द में भी एक नया सकून मिलने लगा है कितना तडपती थी में एक मर्द के हाथों को अपने जिस्म पे महसुस करने के लिए
आज मेरा बेटा ही वो मर्द बन गया है
‘ओह क्या मनमोहिनी सुगंध आ रही है मेरी माँ से
अब नहीं रहा जा रहा मेरे हाथ खुद ही माँ के स्तन पे चले गए
और जाने मुझे क्या हो गया में माँ के स्तन दबाने लग गया,
न जाने कौन सा जुनून चढ़ गया मुझ पर में बहुत जोर जोर से माँ के स्तन दबाने लग गया और माँ के मुंह से सिसकिया निकलने लगि, मेरे कान उन सिस्कियों में बस दर्द को न पहचान पाए
में तो बस अपने माँ का दीवाना था
जो मेरी कल्पना में बसर करती थी आज वो मेरी हमबिस्तर थी
में अपने पेनिस में उठते हुए दर्द के आगे बेबस होता जा रहा था
अब मेरे हाथ मेरे क़ाबू से बाहर होने लगे और मैंने माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुर कर दिये’
‘यह ये तो बटन खोलने लग गए है
आज में अपने बेटे के सामने बेपर्दा होने वाली हु
ये मुझे क्या होता जा रहा है हीतेश मुझे उन प्रेम की वादियों में खिंच रहा है जिसका रास्ता भूले हुए मुझे बरसों हो गए थे---- आज फिर वो वादियां बांहें पसारे अपना रास्ता खोल रही हैं
ओह मा क्या करूँ मेरा जिस्म मेरा साथ छोड़ता जा रहा है अब मुझसे खुद पे क़ाबू नहीं रखा जायेगा
है राम क्या करूँ’’
‘ओह ये मैंने क्या कर दिया
मेरी नजर जैसे ही ऊपर उठि मैंने अपने माँ की आँखों से बह्ते हुए ऑंसू देख लिए
मेरा सारा जोश सारा पागलपन बरफ की सिल्ली में दब के रह गया
अपने उत्तेजना में मैंने अपने माँ की आँखों में ऑंसू ला दिए और में निकम्मा जो माँ की झोली दुनिया की खुशियों से भरना चाहता था आज पहली ही रात को उसे रुला दिया मेरे हाथ जो माँ के ब्लाउज के बटन खोल रहे थे वो वहीँ जाम के रह गये’
‘सॉरी’
मेरे मुंह से अपने आप निकल गया और में अपनी माँ के ऑंसू चाटने लग गया.
‘आप सॉरी क्यों बोले?’
‘आपकी आँखों में ऑंसू जो ले आय
“मुझे माफ़ कर दो’
‘बुद्धू हैं आप’
‘मतलब !’
माँ के होठो पे वो मुस्कान थी जो मैंने आज तक नहीं देखि थी
“फिर ये ऑंसू क्यों निकले ये में समझ नहीं पाया”.
‘छोडो आप नहीं समझ पाओगे’
‘नहीं अब तो में समझ के रहूँगा ये बुद्धू का लेबल फिर नहीं चाहिए बोलो ना’
‘धत!’
कह कर माँ ने खुद मेरे चेहरे को अपने क्लीवेज पे दबा लिया,
इस से पहले की में फिर उन वादियों में खो जाता मैंने अपना सर उठा के देखा तो माँ की आँखें बंद थी.
‘बताओ न’
माँ ने धीरे से आँखें खोली और में उस सागर में खोटा चला गया में भूल गया मेरा सवाल क्या था
‘आप बहुत जोर से …..’
आगे माँ बोल न पाइ और में खुद को शर्मिंदा मेहसुस करने लगा पहली बार किसी नारि के जिस्म को छूआ था वो भी अपनी माँ के जिस्म को और उत्तेजना में ये भूल गया की में उन्हें दर्द दे रहा हु.
‘ओह सॉरी ... सॉरी” वाकई में गधा हु मैं’ अपने आप मेरे मुंह से निकल गया और में माँ के चेहरे को चुमते हुए सॉरी सॉरी का आलाप रटने लगा.
‘देखो कितने बेवकुफ है”
‘ये भी नहीं पता की ये दर्द दर्द नहीं था, ये तो मेरी मुक्ति का रास्ता था, इस दर्द को ही तो मेहसुस करने के लिए कितना तडपि हु में
अब में खुद कैसे बताऊँ के ये दर्द वो दर्द नहीं जिसे दर्द कहा जाता है,
ये तो वो दर्द है जिसका हर नारि इंतज़ार करती है---बहुत सीधा है मेरा बेटा उफ़ बेटा नहीं ... मेरा पति है मेरी सांस क्यों उछल रही है एक पल तो थम जा मुझे इस अनोखी अनुभुति को समेट्ने तो दे.’
‘सॉरी माँ सॉरी’
में बस यही बोलता जा रहा था और कुछ सुझ नहीं रहा था बस माँ के चेहरे को पगलों की तरहा चूमता चला जा रहा था
ये क्या माँ ने खुद मेरे अलग हुये हाथों को खुद अपने स्तन पे लेकर के रख दिया और में फिर उस वादी में खो गया हाँ अब मेरे हाथों में वो बेरहमी नहीं थी मेरे हाथ उन वक्षों का पूराअहसास करने लगे थे
ये वो स्तन हैं जिन्होंने मुझे जिंदगी दी थी मुझे मेरा पहला आहार दिया था माँ का दूध आज फिर दिल कर रहा है उस दूध को पिने के लिए क्या मुझे आज फिर वो अमृत मिलेगा जिसे पि कर मैंने अपने शरीर को रूप देना शुरू किया था’
‘मंजू’
‘हम्म’
‘क्या मैं?’
‘क्या?’
‘फिर से --- ‘
‘क्या?’
वा समझ रही थी उनके चेहरे की हसि बता रही थी और मेरी वाट लगी हुई थी धडकते दिल से बोल ही दिया.
‘हसो मत ... मुझे दूध पीना है’
ओर माँ का चेहरा देखने लायक हो गया था ... जैसे सारी दुनिया की औरतों की शर्म उनके चेहरे पे सिमट के रह गई हो’
‘बे शर्म होते जा रहे हो’
ये अलफ़ाज़ बहुत ही अटक अटक के निकले थे जैसे माँ को बहुत जोर लगाना पड़ा हो इन शब्दों को कहने के लिये.
‘बेशर्म नहीं प्रेमी बनता जा रहा हूँ’
मुझे खुद ही नहीं पता चला की मेरे मुंह से क्या निकल गया.
इस वक़्त कोई एक दिया माँ के चेहरे के सामने रख देता तो उसकी गर्मी से वो खुद जल पडता और में तो झुलुस रहा था जल रहा था उस यात्रा पे जाने के लिए जिसके लिए मेरा तडपता हुआ पेनिस जोर लगा रहा था
‘आप बहुत….’
इसके आगे वो बोल नहीं पाइ और मेरे हाथ फिर उनके बटन्स के साथ उलझ गए उसकी आँखें फिर बंद हो गई . और मेरे होंठ फिर से उन प्यारे लबोँ का रसपान करने लग गये
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