non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:18 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। सारा शहर सोया पड़ा था। कही दूर किसी घंटाघर में लगे हुए घंटे ने बारह बजते ही ज़ोर की आवाज़ दी। खाली पड़ी सड़कों पर अभी कुछ ही देर पहले गहन सन्नाटा छाया हुआ था किन्तु कुछ ही पलों के भीतर इस सन्नाटे को भेदते हुए कई सारी गाड़ियाॅ सड़क पर सरपट दौड़ती हुई आईं और फिर एकाएक ही उन सबकी रफ्तार आश्चर्यजनक रूप से धीमी हो गई। वो लगभग चार गाड़ियाॅ थीं। जिनमें से एक टाटा सफारी थी बाॅकी कि तीनों बुलैरो थीं।

धीमी रफ्तार से चलती हुई वो चारों ही गाड़ियाॅ एक के बाद एक आगे के मोड़ पर दाहिने साइड मुड़ गईं। कुछ ही देर में वो चारो एक ऊॅचे मकान के सामने आकर रुकीं। गाड़ियों के रुकते ही चारो गाड़ियों के दरवाजे एक साथ मगर आहिस्ता से खुले। सभी गाड़ियों के खुल चुके दरवाजों में से एक के बाद एक आदमी बाहर निकले। सभी आदमियों के हाॅथ में पिस्तौल स्पष्ट नज़र आ रही थी। टाटा सफारी से दो आदमी बाहर निकले थे। उनमें से एक आदमी की कद काठी से प्रतीत होता था कि वह कोई युवक ही था किन्तु दूसरा आदमी कुछ एज्ड नज़र आ रहा था।

तीनो बुलैरो गाड़ियों से निकले हुए पिस्तौल धारी आदमी पलक झपकते ही उस ऊॅचे मकान के सामने की दीवार तथा मुख्य दरवाजे के इतर बितर मुस्तैदी से तैनात हो गए। उनकी मुस्तैदी देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी महत्वपूर्ण मिशन पर आए हुए हैं। जबकि टाटा सफारी से निकले हुए वो दोनो ही आदमी आराम से किन्तु बेआवाज़ चलते हुए मुख्य दरवाज़े के क़रीब आ कर खड़े हो गए। दरवाजे के पास खड़े हो कर वो दोनो ही बाएॅ साइड देखने लगे।

बाईं तरफ एक आदमी बड़ी दक्षता से रस्सी को ऊपर की बालकनी की रेलिंग में फॅसा कर ऊपर की तरफ चढ़ता चला जा रहा था। सबकुछ मानो पहले से ही प्लानिंग की गई थी कि यहाॅ पहुॅच कर कौन कब क्या करेगा। ख़ैर, कुछ ही देर में वो आदमी रस्सी के द्वारा ऊपर बालकनी में पहुॅच गया। ऊपर बालकनी से चलता हुआ वो दाईं तरफ की खिड़की के पास पहुॅचा। खिड़की के पास पहुॅच कर उसने बड़े एहतियात से खिड़की के पल्लों को अंदर की तरफ पुश किया। किन्तु खिड़की के पल्ले टस से मस न हुए। ये देख कर उस आदमी ने फौरन ही अपने एक हाॅथ को अपने काले लबादे में डाला और कोई चीज़ बाहर निकाली।

यकीनन वो चीज़ खिड़की के पल्लों पर लगे शीशों को काटने वाला हीरा था। उस आदमी ने बड़े एहतियात से तथा बड़ी सफाई से उस हीरे के द्वारा पल्ले पर लगे शीशे को काटा और उसका कटा हुआ टुकड़ा सावधानी से निकाल कर बालकनी में ही नीचे एक तरफ रख दिया। उसके बाद उसने कटे हुए पल्ले में हाॅथ डाल कर खिड़की के पल्लों की कुण्डी को खोल दिया। कुछ ही देर में खिड़की के दोनो ही पल्ले पूरी तरह अंदर की तरफ खुलते चले गए। अंदर की तरफ यूॅ तो अंधेरा ही था किन्तु खिड़की के अंदर की तरफ से लगे पर्दों को हटा कर उस आदमी ने अंदर किसी भी तरह ही चीज़ की आहट को सुनने के लिए अपने कान खड़े कर दिये थे। कुछ देर तक वह ऐसी ही पोजीशन में रहा फिर वह एकदम से खिड़की पर चढ़ कर अंदर कमरे की तरफ अंदाज़े से अपने पैर आहिस्ता आहिस्ता रखता चला गया।

कमरे में आते ही उसने सबसे पहले अपने लबादे से कोई चीज़ निकाली। कुछ ही पलों में पेंसिल टार्च का मध्यम प्रकाश कमरे के फर्श पर उसके पास ही उत्पन्न होता हुआ दिखा। उस आदमी ने पेंसिल टार्च के फोकस को धीरे धीरे आगे बढ़ाते हुए उस दिशा की तरफ किया जिस तरफ से उसे कुछ देर पहले किसी चीज़ की आवाज़ महसूस हुई थी। पेंसिल टार्च का फोकस बढ़ता हुआ कमरे में एक तरफ रखे शानदार बेड की तरफ पहुॅचा। बेड में दोनो किनारों पर दो दो पैर नज़र आए। आदमी ने टार्च के फोकस को थोड़ा ऊपर किया तो पता चला कि बेड पर दो खूबसूरत लड़कियाॅ गहरी नींद में सोई हुई हैं।

दो लड़कियों को गहरी नींद में सोते देख वो आदमी पहले तो अजीब तरह से मुस्कुराया फिर एकाएक ही वह अपनी एड़ियों पर घूम गया। घूमने के बाद वह बड़ी सावधानी से कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ता चला गया। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने दरवाजे पर लगे हैण्डिल को घुमाया जिससे दरवाजा खुल गया। दरवाजे को हल्का खोल कर उसने पहले बाहर की तरफ हल्का सा सिर निकाल कर इधर उधर देखा, उसके बाद वह दरवाजे को खोल कर बड़े आराम से कमरे से बाहर आ गया।

कमरे के बाहर सफेद ट्यूब लाइट का प्रकाश था। हर चीज़ स्पष्ट देखी जा सकती थी। इस वक्त समूचे मकान में गहन सन्नाटा छाया हुआ था। वो आदमी बड़ी सावधानी से आगे बढ़ता हुआ सीढ़ियों के पास आ कर रुक गया। सीढ़ियों के पास ही एक मोटे से खंभे की आड़ में छिप कर उसने पहले इधर उधर देखा उसके बाद नीचे चारो तरफ बारीकी से देखने लगा। सब कुछ बेहतर समझ कर वह खंभे की ओट से निकल कर सीढ़ियों से नीचे की तरफ बेआवाज़ उतरता चला गया।

सीढ़ियों से नीचे आकर वह दाई तरफ बढ़ा। कुछ ही देर में वह मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गया। मुख्य दरवाजा अंदर की तरफ से बंद था। उस आदमी ने बड़ी सावधानी से मुख्य दरवाजे के मोटे से हैण्डिल को घुमा कर दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही सामने वो दोनो ही आदमी खड़े नज़र आए जो टाटा सफारी से बाहर निकले थे। इतने से काम में ही उस आदमी को लगभग दस से पंद्रह मिनट का समय लग गया था। किन्तु वो सब इस बात से बेफिक्र से नज़र आए।

दरवाजा खुलते ही टाटा सफारी से उतरे हुए वो दोनो आदमी मकान के अंदर की तरफ दाखिल हो गए। उनके साथ ही कुछ और लोग भी अंदर की तरफ दाखिल हुए जबकि कुछ लोग बाहर ही मुस्तैदी से खड़े रहे। मुख्य दरवाजे से अभी वो आठ या दस कदम ही आगे बढ़े होंगे कि तभी किसी चीज़ के गिर कर टूटने की तेज़ आवाज़ हुई। इस आवाज़ ने उन सबकी रूह तक को कॅपकॅपा कर रख दिया। सारी सावधानी सारी सतर्कता धरी की धरी रह गई थी। किन्तु अब क्या हो सकता था?

आवाज़ होने के बाद वो सब काफी देर तक अपनी जगह चुपचाप खड़े रह गए थे। जब उस आवाज़ की वजह से कहीं से कोई भी प्रतिक्रिया न हुई तो ये सब अपनी अपनी जगह से हिले। किन्तु अभी चार कदम ही आगे बढ़े थे कि तभी उन सबके कानों में किसी नारी की आवाज़ पड़ी। जो बाईं तरफ से आती हुई नज़र आ रही थी। आते हुए ही उसने कहा था कि "कौन है वहाॅ"?

चालीस के आस पास की ऊम्र की उस मध्यम कदकाठी व शक्लो सूरत की औरत को देखते ही सबको पहले तो मानो साॅप सा सूॅघ गया किन्तु फिर जैसे अचानक ही बिजली सी कौंधी। पास आ चुकी औरत पर दो पिस्तौल धारी झपट पड़े थे। अचानक हुई इस क्रिया से वो औरत बुरी तरह डर कर अभी भयानक आवाज़ में चीखने ही वाली थी कि तभी एक पिस्तौल वाले के एक हाॅथ की हॅथेली किसी कुकर के ढक्कन की भाॅति उसके मुह से चिपक गई।

मुह पर हॅथेली रूपी ढक्कन चिपकते ही औरत गूॅ-गूॅ करती रह गई। वह उन दोनो से छूटने के लिए बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। तभी एक तीसरा पिस्तौल वाला आदमी उसके पास सामने से पहुॅचा और बेहद धीमें किन्तु खतरनाॅक भाव से बोला____"ज्यादा छटपटा मत वरना देख रही है न, इस पिस्तौल की सारी की सारी गोलियाॅ तेरे भेजे में उतार दूॅगा। पलक झपकते ही तेरी रूह ऊपर बैठे खुदा के दरबार में हाज़िरी बजाती नज़र आएगी।"

उस आदमी के द्वारा कहे गए इन खतरनाॅक वाक्यों का तुरंत ही उस औरत पर असर हुआ। वो एकदम से बुत सी बन गई। मगर मुसीबत अभी टली न थी क्योंकि इधर जैसे ही औरत ने छटपटाना बंद किया वैसे ही उधर इस बार एक मर्दाना आवाज़ उभरी। ये आवाज़ उसी तरफ से आई थी जिस तरफ से ये औरत आई थी। मर्दाना आवाज़ में कहा गया वाक्य ये था कि____"का हुआ रे बिंदिया? ई बखत ससुरी ना खुद सोवत है तू अउर ना हमका सोने देत है।"

इस वाक्य के साथ ही बाॅकी आदमियों की सिट्टी पिट्टी गुम होती नज़र आई। मगर चूॅकि ओखली में तो सिर पड़ ही चुका था इस लिए अब मूसल से क्या डरना वाली बात हो गई थी? कहने का मतलब ये कि जैसे ही वो आदमी ये सब कहते हुए सामने आया वैसे ही उसकी नज़र बिंदिया को पकड़े दो आदमियों पर पड़ी। वह एकदम से हक्का बक्का रह गया। इससे पहले कि वह अपने होशो हवाश में आ पाता दो आदमियों ने फौरन ही उसे दबोच लिया। उसके बाद वैसा ही हाल उसका भी हुआ जैसे अभी कुछ देर पहले बिंदिया का हुआ था।

"ओहो तो तू भी यहीं है हरिया।" टाटा सफारी से आए हुए दो आदमियों में से एक ने आगे बढ़ते हुए बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में कहा____"वाह बहुत खूब। वैसे अच्छा सिला दिया नमक हलाली का। हमने तो समझा था कि हमने अपने सभी फार्महाउस पर बड़े ही वफ़ादार कुत्तों को रखा हुआ है मगर, हमें क्या पता था कि हमारे रखे हुए कुत्ते एक दिन हमें ही काटने पर उतारू हो जाएॅगे। ख़ैर, कोई बात नहीं। इसकी सज़ा तो तुम सबको मिलेगी ही मगर उससे पहले बाॅकी लोगों का भी तो अच्छी तरह से प्रबंध कर लिया जाए।"

वो आदमी यकीनन अजय सिंह था जबकि दूसरा वो युवक खुद उसका ही बेटा शिवा था। हरिया ने अजय सिंह की इस बात का कोई जवाब न दिया। बल्कि अजय सिंह को इस वक्त यहाॅ अपने दलबल के साथ देख कर उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उसके चेहरे से ही पता चल रहा था कि वह बुरी तरह डर गया था।

इधर अजय सिंह अभी पुनः कुछ कहने ही वाला था कि ऊपर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए किसी के आने की आहट हुई। अजय सिंह तथा उसके आदमियों ने फौरन ही इधर उधर होकर छिपने का उपाय किया। सीढ़ियों से नीचे आने वाली नैना थी। इस वक्त उसके जिस्म पर नाइट सूट था। सीढ़ियों से नीचे उतर कर वह अपनी ही धुन में किचेन की तरफ बढ़ती चली गई। अजय सिंह को समझते देर न लगी कि उसे इस वक्त के हालात के बारे में कोई अंदेशा तक नहीं है। अतः अजय सिंह ने फौरन ही अपने एक अन्य आदमी को इशारा किया।

अजय सिंह का इशारा पाते ही वो आदमी बड़ी सावधानी से तथा बेआवाज़ किचेन की तरफ बढ़ता चला गया। कुछ ही देर में जब वो वापस आया तो वह अपनी दोनों बाहों के सहारे उठाए हुए नैना को आता दिखाई दिया। नैना कोई भी हरकत नहीं कर रही थी। मतलब साफ था कि उस आदमी ने नैना को बड़ी सफाई से बेहोश कर दिया था।
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