non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:17 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 61 》

अब तक,,,,,,,

"क्या मतलब है आपका?" कमलकान्त के माॅथे पर शिकन उभरी, बोला___"आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि आपके पास अपने दुश्मन के खिलाफ कोई बहुत बड़ा सबूत लग गया है जिसके तहत आप अपने दुश्मन को बड़ी आसानी से अपने पंजे पर दबोच लेंगे।"

"बिलकुल सही कहा कमलकान्त।" अजय सिंह के चेहरे पर चमक थी, बोला___"ऐसा ही हुआ है। उसने हमारे साथ बहुत खेल खेला अब एक खेल हम भी दिखाएॅगे उसे। एक ऐसा खेल जिसके बारे में उसने ख़्वाब में नहीं सोचा होगा। सबके सब एक ही झटके में हमारे क़दमों तले पालतू कुत्तों की तरह दुम हिलाते नज़र आएॅगे।"

"ऐसी क्या बात हो गई है ठाकुर साहब?" अभिजीत के चेहरे पर हैरानी थी___"जिसके तहत आप इतनी दृढ़ता व इतने विश्वास के साथ कह रहे कि सबके सब आपके पैरों तले आ जाएॅगे?"

"बस देखते जाओ सहाय।" अजय सिंह ने प्रभावशाली लहजे में कहा___"सब कुछ बहुत जल्द समझ आ जाएगा। ख़ैर, हम ये कह रहे हैं कि हमें इसी वक्त वैसे ही कुछ आदमी चाहिए जैसे आप लोगों ने हमारी मदद के लिए भेजे थे।"

अजय सिंह की इस बात पर वहाॅ बैठे सभी लोग कुछ देर तक तो चकित भाव से उसे देखते रहे फिर उन लोगों सहमति में सिर हिलाया। कुछ देर बाद ही मीटिंग खत्म हो गई। अजय सिंह के उठते ही बाॅकी सब भी अपने अपने रास्तों पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

बड़ा ही सनसनीखेज मंज़र था।
ये कोई फार्महाउस था जो कि शहर की आबादी से दूर था। फार्महाउस काफी बड़ा था। बीचो बीच दो मंजिला इमारत बनी हुई थी। चारो तरफ हट्टे कट्टे तथा काली वर्दी पहने गनधारी तैनात थे। इमारत के सामने विशाल मैदान में कई कार व जीपें खड़ी हुई थी। किन्तु इस बीच सबसे सनसनीखेज बात ये थी कि इमारत के बगल से बने गेस्टहाउस के आकार का जो घर बना था उसके सामने की दीवार पर कुछ लोग रस्सियों में बॅधे खड़े थे। सबके हाॅथ आपस में बॅधे ऊपर की तरफ घर की रेलिंग से झूलती रस्सियों पर बॅधे हुए थे।

विराज, गौरी, निधी, अभय, करुणा, दिव्या, शगुन, आशा, रुक्मिणी, आदित्य, रितू, सोनम, नीलम, नैना, बिंदिया तथा शंकर व हरिया ये सब मोटी मोटी रस्सियों में बॅधे हुए छटपटा रहे थे। विराज, रितू व आदित्य के चेहरों पर जहाॅ कठोरता के भाव थे वहीं बाॅकी सबके चेहरे दहशत से भरे पड़े थे। जबकि इन सबके सामने खड़े थे अजय सिंह, प्रतिमा, शिवा तथा उनके कई सारे हथियारबंद आदमी। सबके होठों पर जानदार व विजयात्मक मुस्कान छाई हुई थी। अजय सिंह कुछ देर पहले ही ज़ोर ज़ोर से अट्ठहास लगा रहा था। किन्तु उसके तुरंत बाद ही उसका चेहरा गुस्से से आग बूबला नज़र आने लगा था। यही हाल प्रतिमा व शिवा का भी था। इन तीनों के चेहरों पर इस वक्त गुस्सा व नफ़रत के बेशुमार भाव गर्दिश कर रहे थे।

"हर ब्यक्ति से चुन चुन के हिसाब लूॅगा।" वातावरण में मानो अजय सिंह की दहाड़ गूॅजी___"बहुत तड़पाया है तुम सबने मुझे। मेरे दिन का चैन व रातों की नींद हराम कर रखी थी तुम लोगों ने। सबका हिसाब सूद समेत लूॅगा मैं।" कहने के साथ ही अजय सिंह विराज के नज़दीक आया फिर उसके जबड़े को अपने दाहिने हाॅथ से शख्ती से पकड़ते हुए कहा___"क्या समझता था तू अपने आपको? दो चार बार मुझे करारी शिकस्त क्या दे दी साला अपने आपको जेम्स बाॅण्ड का बाप समझने लगा। अरे तेरे जैसे जेम्स बाण्ड तो मेरे कच्छे के अंदर पाये जाते हैं समझा? देख लिया न, एक ही झटके में चारो खाने चित्त कर दिया है तुम सबको मैने। मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तुम सबके साथ जो चाहूॅ वो कर सकता हूॅ, और करूॅगा भी। अपने हर नुकसान का बदला लूॅगा मगर उससे पहले अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करूॅगा मैं। मेरी ख्वाहिशों के बारे में तो तुम सब बहुत अच्छी तरह जानते हो न।"

"एक बार मेरे ये हाॅथ खोल कर देखो बड़े भइया।" सहसा अभय गुस्से से उबलता हुआ बोल पड़ा___"अकेले तुम तीनों का राम नाम सत्य न कर दिया तो ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद न कहलाऊॅ।"

"यही, बस यही।" अजय सिंह तपाक से बोला___"यही अकड़ तो तुम सबकी निकालनी है मुझे। तुम सबके गुरूर और स्वाभिमान को अपने पैरों के तले रौंदना है मुझे। उसके बाद यहाॅ सबके सामने तुम सबके साथ ऐसा नंगा नाच करूॅगा कि ऊपर बैठे फरिश्तों का कलेजा भी दहल जाएगा।"

"डैड आपको जो भी करना है करिये।" सहसा अजय सिंह के पीछे से आता हुआ शिवा बोल उठा____"किन्तु अब मुझसे बरदास्त नहीं हो रहा। आप तो जानते हैं कि मेरी ख्वाहिश क्या है। अतः आप मुझे मेरी इस जाने बहार निधी का जी भर के रस पान करने की इजाज़त दीजिए।"

"अरे इजाज़त क्यों माॅगता है शहज़ादे?" अजय सिंह ने ज़ोर का ठहाका लगाते हुए कहा____"ये सब तो यहाॅ आए ही इसी सबके लिए हैं। तुझे जो पसंद आए उसे भोगना शुरू कर दे। मेरा शिकार तो ये गौरी है। कसम से इसे पाने के लिए मैं कितना तड़पा हूॅ ये तो सिर्फ मैं ही जानता हूॅ।"

"हरामज़ादे।" रस्सियों से बॅधा विराज बुरी तरह दहाड़ते हुए चिल्ला उठा____"अगर मेरी माॅ बहनों को हाॅथ लगाने की कोशिश की तो समझ लेना तेरे हाॅथ उखाड़ कर कुत्तों के सामने डाल दूॅगा।"

"चिल्ला मेरे भतीजे।" अजय सिंह ज़ोर से हॅसा___"और ज़ोर से चिल्ला। क्योंकि अब तू सिर्फ यही कर सकता है। जबकि मैं और मेरा बेटा यहाॅ मौजूद हर औरत व लड़की का रसपान करेंगे। उसके बाद यहाॅ मौजूद मेरे सभी आदमी उन्हें जी भर के भोगेंगे। उफ्फ! बाद मुद्दत के ये दिन आया है जिसका मुझे शिद्दत से इन्तज़ार था।"

अजय सिंह की इस बात पर रस्सियों में बॅधे विराज, आदित्य, अभय, हरिया व शंकर जैसे मर्द बुरी तरह छटपटा कर रह गए। गुस्सा, अपमान, व जलालत का कड़वा घूॅट पी जाने के सिवा जैसे उनके पास कोई दूसरा चारा ही नहीं था। जबकि अजय सिंह की बात तथा उसके मंसूबों का देख कर सभी औरतों व लड़कियों की रूह तक फना हो गई।

इधर ज़ोरदार कहकहे लगाते हुए अजय सिंह व शिवा अपने अपने पसंदीदा शिकार की तरफ बढ़ चले। रस्सियों में बॅधे सबके सब बुरी तरह छटपटा रहे थे। औरतों व लड़कियों की हालत पल भर में ख़राब हो गई। कुछ ही पलों में अजय सिंह व शिवा अपने अपने शिकार यानी कि गौरी व निधी के पास पहुॅच गए।

"उफ्फ।" निधी के क़रीब पहुॅचते ही शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"मेरी राॅड बहन तो पहले से और भी ज्यादा खूबसूरत हो गई है। लगता है मुम्बई का पानी काफी सूट किया है तुझे। चल ये तो और भी बहुत अच्छा हुआ। तेरी इस मादक किन्तु कच्ची जवानी का रसपान करने में अब और भी मज़ा आएगा।"

"हरामज़ादे कुत्ते।" विराज पूरी शक्ति से बंधनों को खींचते हुए चिल्लाया____"मेरी बहन से इस तरह बात करने का अंजाम बहुत भयंकर होगा। अगर अपनी खैरियत चाहता है तो दूर हट जा गुड़िया से वरना माॅ कसम यहीं ज़िंदा गाड़ दूॅगा तुझे।"

"ये गीदड़ भभकी किसी और को देना बेटा।" शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"चिन्ता मत कर, तेरा भी हिसाब करना है मुझे। तूने उस समय मुझ पर हाॅथ उठाया था न। उसका हिसाब तो ज़रूर लूॅगा तुझसे। मगर उससे पहले अपनी जाने जिगर से अपना मूड तो बना लूॅ।"

शिवा की बात पर विराज बुरी तरह छटपटा कर रह गया। उसे अपनी बेबसी पर बेहद क्रोध भी आ रहा था और रोना भी। उधर अजय सिंह भी गौरी के पास पहुॅच चुका था। उसने गौरी को बहुत ही नज़ाकत से ऊपर से नीचे तक कई बार देखा और फिर उसकी ऑखों में देखते हुए मुस्कुराया।

"सचमुच।" फिर अजय सिंह ने मानो मंत्रमुग्ध हो चुके भाव से कहा___"आज भी वैसी ही हो जैसे तब थी जब मैने तुम्हें पहली बार देखा था। वही सादगी, वही तीखे नैन नक्श, वही साॅचे में ढला हुआ मदमस्त कर देने वाला गदराया हुआ जिस्म। कसम से गौरी, तुम्हें अगर हज़ार बार भी भोग लूॅ तो मेरी तिश्नगी न बुझेगी। तुम्हें पता है, तुम वो दूसरी स्त्री हो जिससे मुझे सचमुच का प्यार हो गया था। मैं चाहता था कि तुम खुशी खुशी मेरी आगोश में आ जाओ। मगर जब तुम नहीं आई तो मुझे हर वो रास्ता अख्तियार करना पड़ा जिसके तहत मुझे लगता था कि तुम मेरी आगोश में आ सकती हो। पर कदाचित मैं ग़लत था गौरी या फिर मेरे प्यार में वो बात ही नहीं थी जिसके तहत तुम मेरी हो जाती।"

"भाभी से तमीज़ से बात करो बड़े भइया।" अभय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___"इतनी भी नीचता मत दिखाओ कि ईश्वर को भी शर्म आ जाए।"
"ओहो।" अजय सिंह ने ब्यंगात्मक भाव से उसे देखते हुए कहा___"तो मेरा छोटा भाई भी अब मुझसे इस ज़ुबान में बात करेगा। लगता है गौरी ने थोड़ा बहुत अपनी मदमस्त जवानी का स्वाद चखा दिया है तुम्हें।"

"ख़ाऽऽऽमोश।" अभय सिंह पूरी शक्ति से दहाड़ा था, बोला____"अपनी ज़बान को लगाम दे बेशर्म इंसान। बस एक बार मुझे इस बंधन से आज़ाद कर दे। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूॅ तेरा।"

"इस तरह चिल्लाने का कोई फायदा नहीं है छोटे।" अजय सिंह ने पूरी ढिठाई से कहा____"क्योंकि अब यहाॅ पर वही होगा जो सिर्फ और सिर्फ मैं चाहूॅगा। तुम सबकी ऑखों के सामने हम दोनो बाप बेटे एक एक औरत व एक एक लड़की की इज्ज़त का मर्दन करेंगे।"

इतना कहने के साथ ही अजय सिंह पलटा और पुनः गौरी के समीप आ गया। उसने जैसे ही हवस भरी ऑखों से गौरी की तरफ देखा वैसे ही गौरी ने नफरत व घृणा से उसके चेहरे पर थूॅक दिया। ये देख कर अजय सिंह तो आग बबूला हुआ ही किन्तु इस बीच गौरी के समीप तेज़ी से आकर प्रतिमा ने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया।

"साली कुतिया।" प्रतिमा किसी शेरनी की भाॅति गुर्राते हुए बोली___"तेरी हिम्मत कैसे हुई अजय के चेहरे पर थूॅकने की? अपने आपको बड़ी सती सावित्री समझती है न। अभी यहीं सबके सामने तेरे इस जिस्म को नुचवाती हूॅ। अपने रूप और सौंदर्य का बहुत घमंड है न तुझे, रुक ऐसा हाल करवाऊॅगी कि सब थूॅकेंगे तुझ पर।" कहने के साथ ही प्रतिमा एक झटके से अजय सिंह की तरफ पलटी, फिर गुस्से से फुंफकारते हुए बोली____"देख क्या रहे हो अजय? आगे बढ़ो और चीर फाड़ कर फेंक दो इस रंडी के जिस्म से इसके सारे कपड़े। ज़रा भी रहम न करना इस दो टके की राॅड पर।"

प्रतिमा का भभकता हुआ चेहरा तथा उसकी बातें सुन कर अजय सिंह पर तुरंत प्रतिक्रिया हुई। वह झटके से आगे बढ़ा और गौरी के जिस्म पर मौजूद सफेद साड़ी के ऑचल को पकड़ कर एक झटके से अपनी तरफ खींच लिया। जिससे गौरी का ऊपरी जिस्म अर्धनग्न सा हो गया। सफेद ब्लाउज पर कसे हुए उसके बड़े बड़े उन्नत उभार सबकी नज़रों में आ गए। उधर अजय सिंह की इस हरकत से वातावरण में कई सारी चीखें गूॅज गईं। गौरी तो लाज व शर्म की वजह से चिल्लाई ही थी किन्तु उसके साथ ही विराज आदि सब भी चीख पड़े थे। एकदम से जैसे वातावरण में कोलाहल सा मच गया था।
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