non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
[size=large]हरीश राणे को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके साथ पलक झपकते ही ऐसा कुछ हो सकता है। वह एकदम से हकबका कर रह गया था। हलाॅकि उसने खुद को बड़ी तेज़ी से सम्हाला था मगर तब तक उसके गले में निरंजन ने उस पाइप को किसी फाॅसी के फंदे की तरह कस दिया था। निरंजन ये सोच कर जी जान लगाए हुए था कि अगर उसने ज़रा सी भी ढील दी तो ये जासूस उसे जान से मार देगा। निरंजन के दिमाग़ में बस एक यही बात थी, बाॅकी उसे किसी बात का कोई होश ही नहीं था। उसे इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं रह गया था कि उसके द्वारा इतनी ताकत से गले में पाइप को कसने से वो जासूस कुछ ही पलों में मर भी सकता है।

उधर राणे जल बिन मछली की तरह छटपटाए जा रहा था। वो अपने दोनो हाथों से अपने गले में फॅसे पाइप को पकड़ने की कोशिश कर रहा था मगर पाइप में निरंजन की पूरी ताकत लगी हुई थी। जिसकी वजह से राणे उसे हिला भी नहीं पा रहा था। देखते ही देखते राणे का बुरा हाल हो गया। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। चेहरे पर पसीना और तड़प साफ पता चल रही थी। किसी किसी पल वह खाॅसने भी लगता था। उसकी ऑखों की पुतलियाॅ जैसे बाहर कूद पड़ने को आतुर हो उठी थीं।

राणे की हालत प्रतिपल बिगड़ती जा रही थी। बाइक पर बैठा वह बुरी तरह खुद को झटके भी दे रहा था मगर मजाल है कि निरंजन की पकड़ में ज़रा सा भी ढीलापन आया हो। कहते हैं कि मौत से बचने के लिए इंसान अंत तक हर तरह से प्रयास करता है फिर भले ही उसके प्रयास विफल ही होते रहें। निरंजन के सिर पर जुनून सवार था और वो किसी यमराज की तरह राणे के सिर पर आ खड़ा हुआ था। राणे को एहसास हो गया कि अब वो मरने ही वाला है। उसे अब साॅस लेना भी मुश्किल पड़ रहा था। बुरी तरह छटपटाते हुए राणे ने एकाएक अपने एक हाॅथ को गले में फॅसे पाइप से हटा कर उसी हाॅथ की कुहनी का वार बड़ी तेज़ी से पीछे निरंजन के पेट के हल्का ऊपरी भाग पर किया। उसके इस वार से निरंजन के हलक से पीड़ा भरी कराह निकल गई और उसकी पकड़ तथा उसकी ताकत कमज़ोर पड़ गई। हलाॅकि उसने जल्दी से उस दर्द को बर्दास्त करके पुनः पाइप को कसना चाहा मगर तक मानो देर हो गई। क्योंकि जैसे ही निरंजन ने पुनः ताकत लगाई वैसे ही राणे ने कुहनी का वार जल्दी जल्दी कई बार निरंजन के पेट में कर दिया था। नतीजा ये हुआ कि निरंजन की पकड़ काफी ज्यादा ढीली व कमज़ोर पड़ गई। वह बुरी तरह दर्द व पीड़ा से बिलबिला उठा था।

निरंजन के कमज़ोर पड़ते ही हरीश राणे ने बड़ी तेज़ी से अपने गले से उस पाइप को पकड़ कर खींचा और फिर उसे ऊपर करते हुए सिर से निकाल दिया। हालत तो उसकी अब भी बहुत ख़राब थी। बुरी तरह खाॅस रहा था तथा बुरी तरह गहरी गहरी साॅसें भी ले रहा था। गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर आया था। गले से पाइप को निकालते ही वह बाइक से खुद को बाएॅ साइड गिरा लिया था तथा साथ ही कई पलटियाॅ भी खा लिया था। मगर तब तक उसकी पसली में निरंजन के बूट की ज़बरदस्त ठोकर लग चुकी थी। निरंजन जानता था कि अगर वह अब भी उसे सम्हलने का मौका दिया तो वो उसके लिए काल बन सकता है। अतः वह मौत के डर से उस पर वार पे वार किये जा रहा था।

हरीश राणे अभी अभी मौत से बच कर निकला था। इस लिए उसे खुद पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ समय चाहिए था मगर निरंजन था कि उस पर प्रहार किये जा रहा था। अचानक ही निरंजन ने देखा कि जासूस ने अपने हाॅथ को पीछे ले जाकर रिवाल्वर निकाल रहा है। ये देख कर निरंजन के समूचे जिस्म में मौत की सिहरन दौड़ गई। जैसे ही राणे ने रिवाल्वर निकाल कर अपने हाॅथ को निरंजन की तरफ उठाना चाहा वैसे ही मौत के डर से निरंजन ने उसकी उस कलाई पर अपनी टाॅग चला दी। नतीजा ये हुआ कि राणे के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर दूर जा गिरा तथा कलाई पर तेज़ ठोकर लगने से वो दर्द से कराह उठा।

निरंजन ने देखा कि रिवाल्वर उसकी पहुॅच में ही है इस लिए वो जल्दी से रिवाल्वर की तरफ लपका मगर तभी वह मुह के बल ज़मीन पर गिरा। गिरते ही उसके मुख से चीख़ निकल गई। राणे ने पलट कर उसका पैर पकड़ कर खींच लिया था जिससे वो अनबैलेंस होकर मुह के बल गिरा था। रिवाल्वर उसकी पहुॅच से लगभग डेढ़ दो हाॅथ ही दूर था। इधर निरंजन का पैर पकड़ कर खींचते ही राणे उसके ऊपर एकदम से आने की कोशिश की तो निरंजन घबरा कर पलट गया। नतीजतन इस बार राणे मुह के बल गिरा। किन्तु उसके एक हाॅथ में निरंजन का पैर अभी भी था।

निरंजन ने अपने पैर को उससे छुड़ाने के लिए ज़ोर से झटका दिया मगर उसका पैर तो न छूटा किन्तु झटकने से उसका पैर राणे की छाती से टकराया। निरंजन आवेश और घबराहट में अपने पैर को झटका देता ही रहा, जिसका नतीजा ये हुए कि बार बार छाती पर उसका पैर ज़ोर से लगने से आख़िर राणे को उसका पैर छोंड़ना ही पड़ा। इधर निरंजन जो कि दोनो हाॅथ पीछे की तरफ ज़मीन पर टिका कर बैठ चुका था वो अपने पाॅव के आज़ाद होते ही तेज़ी से रिवाल्वर की तरफ पलट कर लगभग उस पर कूद सा गया। उसके हाॅथ में रिवाल्वर आ चुका था। अभी वह रिवाल्वर के साथ पलटा ही था कि तभी राणे उसके ऊपर जंप मार कर आ गया।

राणे ने तुरंत ही निरंजन के रिवाल्वर वाले हाॅथ को पकड़ने के लिए अपना एक हाॅथ बढ़या तो निरंजन ने अपने उस हाॅथ को ऊपर अपने सिर के पीछे साइड कर लिया। राणे जैसे ही उसे पकड़ने के लिए उस तरफ झुका वैसे ही निरंजन ने अपना दूसरा हाॅथ छुड़ा कर ज़ोर से एक मुक्का राणे की कनपटी में मारा जिससे राणे उसके ऊपर से दूसरी तरफ पसर गया। इधर राणे के गिरते ही निरंजन लेटे लेटे ही एक साथ तीन चार पलटियाॅ खाता चला गया। जब तक राणे उठ कर उसके पास पहुॅचता तब तक निरंजन उठ कर बैठ चुका था, साथ ही रिवाल्वर वाला हाॅथ भी ऊपर उठा कर उस पर तान चुका था।

"रुक जा मादरजाद।" निरंजन आवेश में जल्दी से चिल्लाया था___"वरना इस रिवाल्वर की सारी गोलियाॅ तेरे सीने में उतार दूॅगा और ये मैं यूॅ ही नहीं कह रहा हूॅ बल्कि सचमुच ऐसा कर भी दूॅगा। क्योंकि तुझे जान से मार देने पर भी मुझे कुछ नहीं वाला। बल्कि इनाम ही मिलेगा मुझे।"

हरीश राणे निरंजन का ये डायलाॅग तथा उसके खतरनाॅक लहजे को देख कर एकदम से अपनी जगह पर गया। उसके चेहरे पर पहली बार डर व भय के चिन्ह नज़र आए। किन्तु उसे ये समझ नहीं आया कि ये आदमी है कौन और उसके पीछे उसकी मौत बन कर कहाॅ से आ गया था? क्या ये विराज व रितू का आदमी है जो उसके पीछे ही लगा हुआ था?

"कौन हो तुम?" हरीश राणे ने सतर्क भाव से पूछा___"और इस तरह मुझ पर जानलेवा हमला करने का क्या मतलब है तुम्हारा?"
"जिस तरह तू मंत्री का कुत्ता बन कर हमारे बाॅस के अज़ीज़ लोगों के पीछे लगा हुआ था।" निरंजन ने लहजे को कठोर बनाते हुए कहा___"उसी तरह मैं भी तेरे पीछे लगा हुआ था। ख़ैर, अब तू पकड़ में आ ही चुका है तो ये भी समझ गया होगा कि अब तेरा क्या हस्र होने वाला है?"

"ओह तो तुम्हें ये ग़लतफहमी है।" हरीश राणे ने बड़े अजीब भाव से कहा____"कि तुमने मुझे पकड़ लिया है?"
"ज्यादा शेखी मत झाड़।" निरंजन उसकी बात पर गड़बड़ा सा गया, फिर बोला___"वरना बता ही चुका हूॅ कि तुझे जान से मार देने पर मुझे कुछ नहीं होगा बल्कि इनाम ही मिलेगा।"

"अच्छा।" हरीश राणे सहसा मुस्कुराया___"तो फिर देर किस बात की है प्यारे? तुम्हारे निशाने पर हूॅ, खत्म कर दो मुझे और जल्दी से अपना इनाम भी हाॅसिल कर लो।"
"लगता है।" निरंजन अंदर ही अंदर हैरान___"कि तुझे मरने की बहुत जल्दी है।"

"क्या करें दोस्त?" राणे ने कहा___"अब जब तुमने कह ही दिया है ऐसा तो फिर देर किस बात की करना? मुझे लगता है कि तुम्हें भी अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अतः मेरी सलाह मानो और जल्दी से मुझे खत्म कर दो।"

निरंजन उसकी इस बात पर समझ न सका कि ये जासूस आख़िर है किस किस्म का ब्यक्ति? मौत सामने खड़ी है और ये ऐसी बातें कर रहा है। इसे ज़रा भी मौत का ख़ौफ नहीं है। जबकि निरंजन तो बस उसे डरा और धमका ही रहा था। ताकि वह कोई बेजा हरकत करने की कोशिश न करे। उसे पता था थोड़ी ही देर में उसके बाॅस यानी कि केशव शर्मा अपने आदमियों सहित यहाॅ पहुॅच ही जाएॅगे। अतः तब तक उसे इस जासूस को रोंके रखना था। मगर उसकी इन ऊल जुलूल बातों ने उसका सिर चकरा कर रख दिया था।

"क्या सोचने लगे प्यारे?" हरीश राणे उसे चुप देख कर कह उठा___"अरे भई चलाओ गोली मुझ पर और खत्म करो मुझे। तुम तो यार लगता है बस डींगे ही मारना जानते हो। जबकि मुझसे अब इन्तज़ार नहीं हो रहा।"
"ओये ज्यादा बकवास न कर समझा।" निरंजन ने उत्तेजित भाव से कहा___"वरना सच में तेरा राम नाम सत्य कर दूॅगा मैं।"

हरीश राणे कोई मामूली इंसान नहीं था। घुटा हुआ जासूस था, उसे समझते देर न लगी कि निरंजन उसे सिर्फ धमका रहा है। अगर उसे जान से मारना ही होता तो इतनी बातें न करता बल्कि कब का उसे यमलोक पहुॅचा दिया होता। अतः उसने पूरी सतर्कता से निरंजन की हर गतिविधी को नोट करते हुए बेख़ौफ निरंजन की तरफ बढ़ने लगा। ये देख कर निरंजन अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया। साथ ही उसके दिमाग़ ने काम करना भी बंद कर दिया। उसे समझ न आया कि ये साला अब उसकी तरफ क्यों बढ़ रहा है?

"ये...ये तू क्या कर रहा है मादरजाद?" बुरी तरह बौखलाते हुए निरंजन हकलाते हुए बोल उठा____"मैं कहता हूॅ रुक जा वरना सच में गोली मार दूॅगा तुझे।"
"मैं भी तो यही चाहता हूॅ प्यारे।" हरीश राणे ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम हो कि मुझे जान से मारते ही नहीं। इस लिए अब मैं खुद ही तुमसे रिवाल्वर लेकर खुद को गोली मार लूॅगा। मुझे समझ आ गया है कि तुमसे रिवाल्वर चलाया नहीं जाएगा।"

"तू...तू पागल है क्या रे?" निरंजन हैरान परेशान सा बोल पड़ा___"देख मेरी तरफ मत आ। वरना अगर मेरा भेजा गरम हो गया न तो तू सच में मेरे हाॅथों मारा जाएगा।"
"नहीं प्यारे।" हरीश राणे बोला___"मुझे पता चल गया है कि अब तुम मुझे गोली नहीं मार सकते। क्योंकि तुम्हें मुझसे अचानक ही बेइंतहां मोहब्बत हो गई है। हाय, ये मोहब्बत भी न बहुत बुरी चीज़ होती है कम्बख़्त।"

"साले।" निरंजन उसकी बातों से बुरी तरह भन्ना गया, बोला___"तुझे एक बार में बात समझ में नहीं आती है क्या? अब अगर एक क़दम भी आगे बढ़ाया तूने तो देख लेना यहीं पर ढेर हुआ नज़र आएगा।"

"ऐसा ग़ज़ब मत करना प्यारे।" राणे चहका___"ऐसा लगता है कि तुम्हारी तरह मुझे भी तुमसे मोहब्बत हो रही है। ओह नहीं नहीं....मुझे किसी से भी मोहब्बत नहीं हो सकती। खास कर उससे तो हर्गिज़ भी नहीं जो खुद ही मेरी तरह औज़ार लिए फिरता हो।"

निरंजन बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसे एहसास हुआ कि फालतू की बकवास करते हुए ये जासूस उसके काफी पास आ गया है। अभी निरंजन ये सोच ही रहा था कि अचानक ही मानो बिजली सी कौंधी। हरीश राणे ने हैरतअंगेज़ कारनामा किया था। पलक झपकते ही उसका जिस्म हवा में लहराया और इससे पहले की निरंजन कुछ समझ पाता राणे उसको लिए ज़मीन पर कई पलटियाॅ खाता चला गया। निरंजन के हाॅथ से रिवाल्वर जाने कब छूट गया था। अपने ऊपर हुए इस अप्रत्याशित हमले से निरंजन बुरी तरह बौखला गया था। जब तक उसे कुछ होश आया तब तक देर हो चुकी थी।

पलटियाॅ खाने के बाद राणे सबसे पहले उठा और फिर उसने निरंजन को कुछ भी करने का अवसर नहीं दिया। लात घूॅसों की बरसात सी कर दी उसने। निरंजन की चीख़ें फिज़ा में गूॅजती रही।

"हमने कहा था न प्यारे।" हरीश राणे निरंजन की छाती पर बैठा हुआ बोला___"कि तुमसे रिवाल्वर नहीं चलाया जाएगा। हमने तो ये भी कहा था कि हमें खत्म कर दो मगर नहीं तुम्हें तो हमसे मोहब्बत हो गई थी न। अब भुगतो मेरी जान। पीछे से वार करने वाला कायर बुज़दिल व हिंजड़ा होता है और ये सब बातें तुम में हैं, ये तुमने पहले ही साबित कर दिया था।"

अभी राणे ये सब निरंजन को बोल ही रहा था कि तभी वातावरण में वाहनों के आने का शोर गूॅजा। हरीश राणे ये महसूस करते ही बुरी तरह उछल पड़ा। उसने पलट कर देखा ही था कि निरंजन ने तेज़ी से एक मुक्का उसकी गर्दन के पास जड़ दिया। जिससे एक चीख़ के साथ राणे पलट कर नीचे गिर गया। उसके गिरते ही निरंजन उठा और सबसे पहले उसने राणे की पसली में बूट की ज़ोरदार ठोकर मारी। ठोकर लगते ही राणे दर्द से बिलबिला उठा।

इधर देखते ही देखते चारो तरफ से केशव जी ने तथा उनके आदमियों ने दोनो को घेर लिया। कुछ लोग दौड़ते हुए आए और हरीश राणे को पकड़ लिया। हरीश राणे समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। अतः उसने भी समझदारी का परिचय दिया और बिना कोई हील हुज्जत किये उनके द्वारा पकड़ कर ले जाने से चला गया। थोड़ी ही देर में वह केशव जी के आदमियों के बीच जीप में बैठा था। उसके दोनो हाॅथ पीछे की तरफ करके रस्सी से बाॅध दिये गए थे। उसका जो रिवाल्वर लड़ते वक्त निरंजन के हाॅथ से छूट कर गिर गया था उसे निरंजन ने फिर से उठा कर अपने पास रख लिया था। हरीश राणे को लिए वो काफिला वापस रेवती के लिए चल पड़ा था। केशव जी राणे को पकड़ कर बेहद खुश थे। उन्होंने निरंजन को इसके लिए शाबाशी दी तथा ये भी कहा कि उसने वास्तव में बहुत बड़ा काम किया है इस लिए उसे इसके लिए इनाम ज़रूर मिलेगा। निरंजन इनाम की बात से बेहद खुश हो गया था। इतना ही नहीं जासूस को पकड़वाने से उसका सिर गर्व से ऊॅचा हो गया था।
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उधर हास्पिटल में।
हम सब बुझे बुझे से बैठे थे। नीलम के लिए हर कोई चिंतित व परेशान था। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि अजय सिंह ऐसा कुछ कर सकता है। वरना ऐसा होता ही नहीं। ख़ैर, लम्बे इन्तज़ार के बाद आख़िर ओटी का दरवाजा खुला और डाॅक्टर बाहर आया। हम सब उसे देख कर एक साथ एक ही झटके से उस लम्बी चेयर से उठ कर खड़े हो गए थे। फिर लगभग एक साथ ही डाॅक्टर की तरफ लपके थे।

"डाॅक्टर साहब।" मैने उतावलेपन से किन्तु बेहद ही अधीर भाव से पूछा___"सब कुछ ठीक तो है न? नीलम ठीक तो है न?"
"डोन्ट वरी यंग मैन।" डाॅक्टर ने कहा___"वो अब ख़तरे से बाहर हैं। शुकर था कि बुलेट उनकी राइट साइड की पीठ पर थोड़ा निचले हिस्से पर लगी थी। अगर लेफ्ट साइड थोड़ा ऊपर लगती तो यकीनन वो गोली उनके दिल को भेद सकती थी। हमने बुलेट निकाल दिया है। अब वो ठीक हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दिया जाएगा तो आप सब उनसे मिल सकेंगे।"

"ओह थैंक्यू डाॅक्टर।" आदित्य बोल पड़ा___"थैंक्यू सो मच। आपने बहुत बड़े संकट से बचा लिया।"
"थैक्यू तो आप लोगों का भी करना चाहिए।" डाॅक्टर ने कहा___"जो आप वक्त रहते उन्हें यहाॅ लाने में कामयाब हो गए। वरना सचमुच कुछ भी हो सकता था। मुझे फोन पर एसीपी साहब ने इस बारे में बता दिया था और कहा भी था कि जैसे ही आप लोग यहाॅ आए वैसे ही हम उनका तुरंत इलाज़ शुरू कर दें।"

थोड़ी देर डाॅक्टर से और बातचीत हुई उसके बाद वो चला गया। हम सब अब खुश थे कि नीलम अब ठीक है। थोड़ी ही देर में एक नर्स आई उसने बताया कि हम नीलम से मिल सकते हैं। अतः उसके कहने के साथ ही हम सब लगभग दौड़ते हुए नर्स के पीछे पीछे गए और उस कमरे में दाखिल हो गए जिसमें नीलम को शिफ्ट किया गया था।

कमरे में पहुॅचते ही हमने देखा कि हास्पिटल वाले बेड पर नीलम करवॅट के बल लेटी हुई थी। उसका चेहरा दरवाजे की तरफ ही था किन्तु ऑखें बंद थी। हम लोगों के आने की आहट पाते ही उसने अपनी ऑखें खोल दी। जैसे ही उसने हमे देखा उसके चेहरे पर एक साथ कई तरह के भाव आए और फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान फैल गई।

रितू दीदी व सोनम दीदी एक साथ ही उसकी तरफ बढ़ीं और उसके पास खड़ी हो गई। रितू दीदी ने नम ऑखों से उसके माथे से होते हुए सिर पर हाॅथ फेरा और फिर झुक कर उसके माॅथे को चूम लिया। उनके मुख से कोई लफ्ज़ नहीं निकला। कदाचित कुछ कहने की हिम्मत ही न हुई थी उनमें। किन्तु इस क्रिया से ही उन्होंने जता दिया कि उसके ठीक होने पर उन्हें कितनी खुशी हुई है। सोनम दीदी भी नम ऑखों से नीलम को देख रही थी।

"भगवान का लाख लाख शुकर है नील।" सोनम दीदी उसे प्यार से नील कहा करती हैं, बोलीं____"उसने तुझे कुछ नहीं होने दिया वरना जब तुझे गोली लगी थी न तो जैसे हम सबके जिस्मों से प्राण ही निकल गए थे।"

"ये ज़िंदगी उसी गंदे इंसान की दी हुई थी दीदी।" नीलम ने करुण भाव से कहा___"जिसे उसने गोली मार कर अपनी तरफ से अब खत्म कर दिया है। अब ये मेरा दूसरा जन्म है जिसमें अब उसका कोई हक़ नहीं है। बल्कि आप लोगों का है।" कहने के साथ ही नीलम ने रितू दीदी की तरफ देखा फिर बोली___"मुझे आप पर नाज़ है दीदी कि आपने राज का साथ दिया और सच्चाई का साथ दिया। आज आपकी ही वजह से हम सब उस शैतान से बच कर यहाॅ आ गए हैं।"

"साथ तो हमेशा उसी का देना चाहिए नीलम।" रितू दीदी ने कहा___"जिसका साथ देने से हमारे ज़मीर तथा हमारी आत्मा को तक़लीफ न हो बल्कि उन्हें तृप्ति का एहसास हो। माॅ बाप हमेशा वंदनीय होते हैं और वो मेरे लिए भी हमेशा रहेंगे किन्तु वो माॅ बाप जिनकी अच्छी छवि में मन में है ना कि वो जो अपनी ही बहू बेटियों के बारे में ग़लत सोचते हैं। थोड़ा बहुत जो सम्मान बाॅकी था उनके लिए वो आज की इन घटनाओं से पूरी तरह खत्म हो चुका है। अब इस दिल में उनके लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा है। आज अगर तुझे कुछ हो जाता न तो क़सम ऊपर वाले की मैं उस इंसान का वो हाल करती कि दुबारा इस धरती पर पैदा होने से इंकार कर देता।"

"जाने दीजिए दीदी।" नीलम ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर बोली____"एक तरह से ये अच्छा ही हुआ। इसी बहाने सही मगर मुझे आज अपने इस भाई का अपने लिए इतना सारा प्यार व तड़प तो देखने को मिल गई। मैं महसूस कर रही थी उस वक्त जब मैं इसकी बाहों में असहाय सी पड़ी थी। मेरे कानों में इसकी हर बात सुनाई दे रही थी। मैं सोच रही थी कि एक मेरा वो भाई था जिसने कभी ये नहीं जताया कि वो अपनी बहनों से कितना प्यार करता है और एक ये भाई है जिसे हमने बचपन से जलील करके दुख दिया आज वो मुझे उस हालत में देख कर ऐसे तड़प रहा था जैसे गोली मुझे नहीं बल्कि इसको लगी थी। ये ख़याल बार बार मन में आता है कि इतना प्यार करने वाले भाई से हमने अब तक इतनी घृणा कैसे की थी?"

"ओये बंदरिया।" मैं एकदम से उसके पास आकर बोल पड़ा____"ये क्या बकवास किये जा रही है तू? तुझसे मैं कोई प्यार, व्यार नहीं करता समझी। उस वक्त तो मैं वो सब नाटक कर रहा था।"
"चल ठीक है भाई।" नीलम ने मुस्कुरा कर कहा___"मान लिया कि वो सब तेरा नाटक था मगर सच कहूॅ तो मुझे वो तेरा नाटक भी बहुत भाया राज। मैं चाहती हूॅ कि तू जीवन भर मेरे साथ ऐसा ही नाटक करता रहे।"

"अब तुम दोनो यहीं पर न शुरू हो जाना।" सहसा सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जाओ जाकर पता करो डाॅक्टर से कि हम इसे यहाॅ से कब तक ले जा सकते हैं?"
"अरे इसकी क्या ज़रूरत है दीदी?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मैं तो कहता हूॅ कि इसे यहीं पर पड़ी रहने देना चाहिए और हम लोगों को अब घर चलना चाहिए।"

"तू न अब मुझसे पिटेगा सच में।" सोनम दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"अब जा जल्दी यहाॅ से।"
"जो हुकुम आपका।" मैने अदब से सिर झुका कर कहा और फिर कमरे से बाहर चला आया। मेरे पीछे पीछे आदित्य भी मुस्कुराता हुआ चला आया।

"मेरे भाई को इस तरह भगा कर आपने अच्छा नहीं किया दीदी।" सहसा नीलम ने कहा___"जब वो मुझे इस तरह चिढ़ाता है तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगता है। मैं भी उसके जैसा ही बर्ताव करने लगती हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि जिन चीज़ों के लिए वो बचपन से तरसा था वो उन सभी चीज़ों को आज जी भर के जिए। हमारी वजह से अब तक जितना उसका दिल दुखा है अब वो हमारे साथ ऐसी ही नोंक झोंक करके अपने उस दिल को खुश रखे।"

"मुझे पता है नील।" सोनम दीदी ने कहा___"मुझे भी अच्छा लगता है जब वो तुझे इस तरह बंदरिया कह कर चिढ़ाने लगता है। किन्तु मैं उसे ये सब कह कर इस लिए रोंक देती हूॅ कि मुझे भी बड़े होने का इस तरह से फायदा उठाने में मज़ा आता है। मैं ये देख कर खुश हो जाती हूॅ कि कैसे वो अपने से बड़ों की बात सहजता से मान जाता है। अब रितू से ही पूछ ले, ये तो उसके साथ ही रहती है। संभव है कि ये भी मेरी तरह अपने बड़े होने का फायदा उठाती हो। क्यों रितू सच कहा न मैने?"

"सबकी सोच अलग अलग होती है सोनम।" रितू दीदी ने कहा___"तुम दोनो को ऐसा करके खुशी मिलती है जबकि मेरा कुछ और ही हिसाब है। तुम तो जानती ही हो कि मेरा स्वभाव कैसा है?"

"हाॅ जानती हूॅ।" सोनम दीदी ने कहा___"कि तेरा स्वभाव हिटलर वाला है। मगर कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।"

सोनम दीदी की इस बात पर रितू दीदी मुस्कुराई और कुछ पल के लिए कहीं खो सी गईं फिर जैसे उन्होंने तुरंत ही खुद को सम्हाला और ये कह कर बाहर की तरफ चली गईं कि उसे कुछ ज़रूरी फोन काल करना है। रितू दीदी के जाने के बाद सोनम दीदी ने वापस नीलम की तरफ देखा।

"तो आपको भी राज के साथ ऐसा करने में मज़ा आता है?" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे नहीं रे।" सोनम दीदी ने अजीब भाव से कहा___"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो ऐसे ही कह रही थी। ख़ैर छोंड़, अब तू ठीक है न? तुझे पीठ पर पेन तो नहीं हो रहा न अभी?"

"नहीं दीदी।" नीलम ने कहा___"अब अच्छा लग रहा है। बस सीधा लेटने में प्राब्लेम हो रही है।"
"वो तो होगी ही।" सोनम दीदी ने कहा__"अभी नया नया ज़ख्म है। इस लिए तुझे सीधा लेटने में कुछ दिन प्राब्लेम होगी। तुझे भी इस बात का ख़याल रखना होगा और हाॅ राज के साथ ज्यादा उछल कूद मत करने लगना। वरना तेरा ये ज़ख्म फिर से ताज़ा हो जाएगा।"

"ऐसा तो तभी संभव है दीदी।" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा___"जब वो मेरे सामने ही न आए। क्योंकि जैसे ही वो मेरे सामने आएगा। मैं फिर उसे छेंड़ूॅगी और फिर क्या होगा ये तो आप जानती ही हैं।"

"तू नहीं सुधरने वाली।" सोनम दीदी ने हैरानी से देखते हुए कहा___"अरे पागल कुछ दिन तो सबर कर ले।"
"हाय दीदी! कुछ दिन राज से झगड़ा किये बिना कैसे रह पाऊॅगी मैं?" नीलम ने आह सी भरते हुए कहा___"पता नहीं क्यों पर उससे झगड़ा करने का हर पल दिल करता है मेरा। मैं अकेले में सोचा करती हूॅ कि हर वक्त राज को छेंड़ना क्या अच्छी बात है? मगर ये सब सोचने के बावजूद ऐसा हो जाता है। आप ही बताइये मैं क्या करूॅ दीदी?"

सोनम दीदी नीलम की बात सुन कर बस मुस्कुरा कर रह गई। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आए और चले गए। जबकि उसकी मनोदशा से अंजान नीलम ने इस बार ज़रा गंभीरता से कहा___"एक बात कहूॅ दीदी??"

"हम्म कहो।" सोनम दीदी ने धीरे से कहा।
"काश! राज मेरा भाई न होता।" नीलम ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा।
"ये...ये क्या कह रही हो तुम??" सोनम दीदी उसकी इस बात पर बुरी तरह चौंकी। ऑखों में हैरत के चिन्ह लिए वो बोलीं___"इसके पहले तो कह रही थी कि राज जैसा भाई पा कर तू बहुत खुश है। फिर अब ऐसा क्यों कह रही है?"

"हर लड़की सोचती है कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो उससे बहुत ही ज्यादा प्यार करे।" नीलम ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसकी केयर करे तथा उसे एक पल के लिए भी खुद से दूर न करे। उसे कभी किसी बात पर दुखी न होने दे। ये सारी खूबियाॅ राज में हैं दीदी। मुझे पता है कि वो अपनी बहनों पर अपनी जान छिड़कता है। मगर उसे देख कर ये ख़याल भी मन में आता है कि काश राज के जैसा ही हमें जीवन साथी मिले। मगर आज के समय में ये संभव नहीं है और अगर मान भी लें कि ऐसे इंसान इस दुनियाॅ में मिल भी सकते हैं तो क्या उनमें से कोई हमारा जीवन साथी बनेगा?"

"तो तू कहना क्या चाहती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सशंक भाव उभरे।
"आपको मेरी बातें यकीनन बुरी अथवा ग़लत लगेंगी दीदी।" नीलम ने उसी गंभीरता से कहा___"मगर ये सच है कि मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल आता है कि काश राज मेरा भाई न होता तो मैं उसे ही अपना जीवन साथी बना लेती। राज को देखते ही उस पर निसार हो जाने का दिल करता है दीदी। उसे देख कर मैं भूल जाती हूॅ कि वो मेरा भाई है, और फिर जब ख़याल आता है कि वो मेरा भाई है तो जाने क्यों इस बात से दिल में दर्द होने लगता है? अंदर से एक टीस उभरती है और फिर समूचा जिस्म काॅप कर रह जाता है।"

"तू न कुछ भी बोलती रहती है।" सोनम दीदी ने बुरा सा मुह बनाया। ये अलग बात है कि नीलम की इन बातों से उसके अंदर एक अजीब से एहसास की झुरझरी सी दौड़ गई थी, बोली___"चल अब ज्यादा इस बारे में मत सोच। राज आता ही होगा अभी। तुझे यहाॅ से लेकर भी तो चलना है न।"

"आप मेरी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं न?" नीलम ने सोनम दीदी के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए कहा___"ऐसा मत कीजिए न दीदी। एक आप ही हैं जिनसे मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूॅ। इस लिए मेरी बात सुन लीजिए और उस पर अपनी राय भी दीजिए कि मैं जो कुछ कह रही हूॅ वो सही है या ग़लत?"

"क्या राय दूॅ मैं?" सोनम दीदी ने नीलम की ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"तूने तो सब कुछ कह कर ये ज़ाहिर कर ही दिया है कि तेरे मन में राज के प्रति अब क्या है? अब अगर मैं इस पर ये कहूॅ कि ये सब सोचना भी ग़लत है तो क्या फर्क़ पड़ता है उससे? इतना तो मैं समझ ही सकती हूॅ कि अगर राज के प्रति तेरे मन में ऐसे ख़याल आ चुके हैं तो इसका साफ मतलब है कि कहीं न कहीं तेरे दिल में राज के प्रति भाई वाली फीलिंग के अलावा भी एक अलग फीलिंग्स आ चुकी है। अतः ऐसी फीलिंग्स जब एक बार किसी के दिल में आ जाती हैं तो फिर उसकी सोच भी बदल जाती है। वो उसे ही सही मानता है फिर चाहे भले ही वो सबसे ज्यादा अनैतिक अथवा ग़लत हो।"

"मुझे पता है दीदी।" नीलम की ऑखें एकाएक ही सजल हो उठीं, बोली___"राज के प्रति ऐसी फीलिंग्स रखना ग़लत बात है। मगर ये भी सच है कि अब ये फीलिंग्स मेरे दिल से आसानी से जाएगी नहीं। इस लिए मैने अब एक फैंसला किया है।"

"फ..फैंसला???" सोनम दीदी चौंकी___"कैसा फैंसला?"
"यही कि मैं राज के क़रीब नहीं रहूॅगी।" नीलम ने दृढ़ता से कहा___"बल्कि उससे दूर चली जाऊॅगी। इस लड़ाई के बाद ये सच है कि मेरे माॅ बाप व भाई या तो ज़िन्दगी भर जेल की सलाखों के पीछे कैद हो कर रह जाएॅगे या फिर ऐसे भी हालात बन सकते हैं कि वो सब जान से मारे जाएॅ। तब तो हम दोनो बहनें अनाथ ही हो जाएॅगी। हलाॅकि इसके बाद भी मेरे अपनों में गौरी चाची, अभय चाचा और करुणा चाची आदि सब भी होंगे मगर इनके पास रहने से अक्सर मेरा सामना राज से होता ही रहेगा। उस सूरत में मेरे मन में ना चाहते हुए भी उसके प्रति आकर्शण बढ़ेगा जिसे शायद मैं रोंक भी नहीं पाऊॅगी। इस लिए बेहतर है कि इस सबके बाद मैं आपके साथ मुम्बई में मौसी के पास ही रहूॅ। राज से दूर रहने से कम से कम ये तो होगा कि धीरे धीरे मैं अपने दिल से उसे निकाल पाने में सफल हो सकती हूॅ।"

"इसका मतलब।" सोनम दीदी ने कहा___"ये सच है कि तू अपने ही भाई राज को अब एक प्रेमी की दृष्टि से देखने लगी है और उसके प्रति तेरे अंदर चाहत की भावना प्रतिपल बढ़ती ही जा रही है?"

"शायद यही सच है दीदी।" नीलम ने सहसा आहत भाव से कहा___"राज ने मेरी इज्ज़त की रक्षा जिस तरह से की थी उसके बाद से ही मुझे ये महसूस हुआ था कि राज के बारे में अब तक जो कुछ मैं अपने माॅम डैड के द्वारा पढ़ाए गए पाठ के तहत सोचती थी वो सब सिरे से ही ग़लत था। मेरे अंदर इस बात के एहसास होने के साथ ही राज के प्रति कोमल भावनाओं का उदय हुआ था। उसके बाद मुझे नहीं पता कि मैं उसके बारे में सोचते सोचते कब उसे चाहने लगी? जब उसने अचानक ही काॅलेज आना बंद कर दिया था तब मैं यही सोच कर रोती थी कि वो आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करने लगा है कि अब उसने मेरी वजह से काॅलेज आना भी बंद कर दिया। ये सब सोच सोच कर मुझे अपने आप से घृणा होने लगी थी कि मैने अपने उस भाई का बचपन से दिल दुखाया जिसका कभी कोई दोष था ही नहीं। बल्कि उसके दिल में तो हम दोनों बहनों के लिए वैसा ही प्यार व सम्मान था जैसा उसके दिल में गुड़िया(निधी) के लिए है। उसके बाद जब वो दुबारा मेरी इज्ज़त की रक्षा करते हुए मुझे ट्रेन पर मिला तो एक बार फिर से मेरा अंतर्मन ये सोच कर ज़ार ज़ार रो पड़ा कि उसने एक बार फिर से मेरी इज्ज़त की रक्षा की। यानी उसके दिल में आज भी हम दोनो बहनों के लिए वही प्यार व सम्मान है और चाहता है कि हम दोनों को कभी कोई ऑच तक न आए। बस उसके बाद तो जैसे सब कुछ बदल गया दीदी। जब मैने ये महसूस किया कि वो मुझसे झगड़ा करते हुए फिर से अपने बचपन को जीना चाहता है तो मैंने भी उसकी चाहत में उसका पूरा साथ दिया। मुझे भी उसे खुश देखने में अच्छा लगने लगा। इन्हीं सब बातों के बीच ही शायद ऐसा हुआ है कि मेरे दिल में उसकी अच्छाई और खूबियों को देख कर ऐसी चाहत जागी है। आज जब उसने मुझे अपनी बाहों में समेटे तथा मुझे उस हालत में देख कर पागल हुआ जा रहा था तो मैं उस हालत में भी ये सोच रही थी कि ये इतना अच्छा कैसे हो सकता है? इससे कोई नफ़रत कैसे कर सकता है? बस उसके बाद मैंने पहली बार अपने दिल की आवाज़ को सुना और फिर उसकी हो गई। मुझे पता है कि ये ग़लत है। अगर राज को मेरे दिल की बात पता चल गई तो संभव है कि वो मुझे ग़लत समझ बैठे। वो सोचेगा कि जैसे माॅ बाप थे वैसी ही उसकी औलाद भी है। जो अपने ही सगे रिश्तों के प्रति ऐसी सोच रखती है।"

"अगर यही सब बात है।" सोनम दीदी ने कहा___"और अगर ये भी कि तुम उसकी हो गई हो तो फिर ये अचानक उससे दूर हो जाने का फैंसला क्यों किया तुमने? क्या सिर्फ इस लिए कि राज तुझे ग़लत समझेगा?"

"ये वजह तो है ही दीदी।" नीलम ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा___"किन्तु एक दूसरी महत्वपूर्ण वजह और भी है।"
"दूसरी ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सोचों के भाव नुमायां हुए।

"आपने शायद ग़ौर नहीं किया दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"किन्तु मैने बहुत अच्छे से ग़ौर किया है।"
"क्या मतलब??" सोनम दीदी चकरा सी गईं।
"आप और मैं।" नीलम ने कहा___"जिस रितू दीदी को हिटलर समझते हैं, उन्हीं हिटलर दीदी की ऑखों में आज मुझे उस वक्त थोड़ी देर के लिए कुछ खास नज़र आया जब आपने उनसे कहा था कि____'कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।' उस वक्त उनकी ऑखों में पल भर के लिए एक टीस सी नज़र आई थी फिर उन्होंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था। कहते हैं कि चोंट के दर्द का एहसास वही कर सकता है जिसे कभी वैसी ह चोंट लगी हो। उस वक्त उनकी ऑखों में जो भाव थे उन भावों ने मुझे बता दिया कि वो दरअसल क्या है?"

"ये तू क्या अनाप शनाप बके जा रही है नील?" सोनम दीदी ने हैरत से कहा___"कहीं तू ये तो नहीं कहना चाहती है कि रितू भी राज से प्यार करती है? ओह माई गाड, ऐसा कैसे हो सकता है? नहीं नहीं...रितू ऐसा नहीं कर सकती नील। वो एक सुलझी हुई तथा समझदार लड़की है। उसे पता है कि ऐसा सोचना भी पाप होता है।"

"प्यार तो हर मायने में पवित्र ही होता है दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"फिर चाहे वो किसी से भी हो गया हो। दूसरी बात, जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है न तब सबसे पहले उस इंसान का विवेक शून्य हो जाता है। प्यार में पड़ा हुआ इंसान उसी को सही मानता है जिसे आम इंसान अनैतिक व पाप की संज्ञा देता है। मैने रितू दीदी की ऑखों में उस पवित्र प्यार को देखा है दीदी। मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे संभव हो सकता है? मगर ऑखें कभी ग़लत नहीं होती हैं। ख़ैर मुझे इससे कोई प्राब्लेम नहीं है बल्कि मैं खुश हूॅ कि मेरी जो दीदी लड़कों की ज़ात से नफ़रत करती थी तथा प्यार व्यार को बकवास कहती थीं आज वो खुद राज की चाहत में गिरफ्तार हैं। यकीनन उनकी सोच बदल गई होगी और अब उनके सीने में एक ऐसा दिल धड़कता होगा जो बहुत ही नाज़ुक हो चुका होगा तथा जिसमें किसी के लिए बेपनाह प्यार का सागर हिलोरें लेता होगा। अब जबकि मुझे इस बात का एहसास हो ही चुका है तो क्यों मैं उनकी राह का रोड़ा बनूॅ दीदी? मेरी दीदी के दिल में जीवन में पहली बार किसी के लिए ऐसी भावनाओं का उदय हुआ है। म
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:15 PM

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