non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:15 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"किस अपराधी को पकड़ने गई थी तुम्हारी पुलिस?" मंत्री ने पूछा।
"यूॅ तो शहर कई तरह के मुजरिमों से भरा पड़ा है मंत्री जी मगर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"हमारी पुलिस फोर्स ने जिस मोस्ट वान्टेड अपराधी को पकड़ने के लिए हल्दीपुर के पास वाले गाॅव माधोपुर में घेराबंदी की थी उसका नाम फिरोज़ खान है। इस नाम के अपराधी के बारे में तो आपने भी काफी सुना होगा। आप तो जानते हैं कि ये अपराधी कब से पुलिस व कानून के लिए सिर का दर्द बना हुआ था। आज हमारे ही एक विश्वासपात्र मुखबिर ने हमें बताया कि फिरोज़ खान अपनी गैंग के साथ इस समय माधोपुर में मौजूद है। बस फिर क्या था, हमने उसे पकड़ने के लिए अभी हाल ही में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शुक्ला को भेज दिया। मगर मेरी समझ में ये नहीं आता कि आपको इस मामले से क्या लेना देना हो गया? अगर मुनासिब समझें तो मुझे भी बताइये मंत्री जी।"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" चौधरी ने बात को टालने की गरज़ से कहा___"वैसे पता चला है कि तुम्हारी पुलिस ने हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है। भला ये क्या चक्कर है कमिश्नर? क्या वो ठाकुर भी फिरोज़ खान की तरह मोस्ट वान्टेड अपराधी है?"

"ठाकुर अजय सिंह को तो ज़रूरी पूॅछताॅछ के लिए गिरफ्तार किया गया है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"दरअसल हमारे मुखबिर ने बताया था कि फिरोज़ खान हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह की कार में ही बैठा हुआ था। इस लिए उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। तहकीक़ात में उनसे पूछा जाएगा कि फिरोज़ खान नाम का खतरनाक अपराधी उनकी कार में उनके साथ क्यों बैठा हुआ था? आख़िर उनका फिरोज़ खान से क्या संबंध है?"

"ओह तो ये बात है।" चौधरी को मानो बात समझ में आ गई, बोला____"वैसे सुना है कि ठाकुर और उसके भतीजे के बीच किसी मामले में तगड़ी रंजिश है। सुना तो ये भी है कि ठाकुर की बेटी खुद तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट की इंस्पेक्टर है और वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ होकर ठाकुर के दुश्मन भतीजे का साथ दे रही है।"

"बाॅकी सारी बातों के बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"लेकिन ये सच है कि ठाकुर अजय सिंह की बेटी हमारे पुलिस डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत है। बहुत ही इमानदार तथा बहादुर ऑफीसर है वो।"

"अब इस बारे में तो तुम्हें ही पता होगा कमिश्नर।" चौधरी ने कहा___"आफ्टरआल वो तुम्हारे पुलिस महकमे से है। चलो कोई बात नहीं, अच्छा अब हम फोन रखते हैं।"

इतना कह कर चौधरी ने काल कट कर दी। फिर बुझ चुके शिगार को सामने टेबल पर रखे ऐशट्रे में रखा और दूसरा शिगार निकाल कर सुलगा लिया। शिगार के दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआॅ ऊपर की तरफ उछाला।

"क्या कहा कमिश्नर ने चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव पूछे बग़ैर न रह सका था।
"बेवकूफ़ बनाने की कोशिश कर रहा था हमें।" चौधरी ने कहा___"उस साले को ये पता ही नहीं है कि वो किसे बेवकूफ बनाने चला था? साला राजनीति का खेल हम खेलते हैं और वो हमसे राजनीति कर रहा था।"
"ऐसा क्या कह रहा था वो आपसे?" अशोक ने पूछा।

मंत्री ने उसे सारी बातें बता दी, उसके बाद उसने फिर से शिगार का एक कश लिया फिर बोला___"जबकि साफ पता चलता है कि सच्चाई क्या है? डिटेक्टिव राणे के अनुसार विराज एण्ड पार्टी ठाकुर की दूसरी बेटी को लेने गए थे। किसी तरह से इस बात की जानकारी ठाकुर को हुई और वह फिरोज़ खान को उसके गुर्गों के साथ माधोपुर जा धमका, जहाॅ पर उसका आमना सामना विराज एण्ड पार्टी से हुआ। विराज को अंदेशा रहा होगा कि उसका ताऊ उसे पकड़ने का ऐसा ही कुछ इंतजाम करके आएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन लोगों ने भी ठाकुर से बचने का उपाय सोचा होगा। ठाकुर की बेटी क्योंकि अब विराज के साथ ही है इस लिए ठाकुर से बचने के लिए उसने अपने पुलिस महकमें का सहारा लिया। उसे पता था कि पुलिस के आ जाने से अजय सिंह कुछ कर नहीं पाएगा। बात भी सही है कि पुलिस से पंगा करने का कोई मतलब ही नहीं था। यानी वो सब पुलिस की मदद से बड़े आराम से ठाकुर की दूसरी बेटी को ले आएॅगे और ठाकुर कुछ भी नहीं कर पाएगा।"

"यकीनन चौधरी साहब।" अवधेश ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ठाकुर ने विराज एण्ड पार्टी को घेर कर पकड़ने का ज़बरदस्त प्लान बनाया था। ये अलग बात है कि बदकिस्मती से उसके उस ज़बरदस्त प्लान की खुद उसकी ही बेटी ने धज्जियाॅ उड़ा दी। इतना ही नहीं पुलिस को बुलवा कर वो अपनी छोटी को बहन को तो अपने साथ ले ही गई ऊपर से अपने बाप को भी गिरफ्तार करवा दिया।"

"लेकिन ठाकुर भी कम कमीना नहीं था।" अशोक ने झट से कहा___"पुलिस के साथ जाते जाते भी उसने एसीपी का रिवाल्वर निकाल कर अपनी छोटी बेटी को गोली मार दी। ये इस बात का सबूत है चौधरी साहब कि उस वक्त वह अपनी औलाद से किस क़दर ख़फा था और फिर गुस्से में आकर उसने बेटी को जान से मारने की कोशिश की। अगर समय रहते उसकी बेटी का विराज एण्ड पार्टी ने इलाज़ करवा लिया तब तो ठीक है वरना ठाकुर ने तो अपनी बेटी का काम तमाम कर ही दिया है समझिये।"

"जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मंत्री दिवाकर चौधरी ने कहा___"इस सबकी वजह से हमारा फायदा ये हुआ है कि हमारा दुश्मन हमारे जासूस राणे की नज़र में आ गया है। राणे विराज एण्ड पार्टी के पीछे साये की तरह लगा रहेगा। अभी तो वो सब किसी हाॅस्पिटल में ही गए होंगे क्योंकि ठाकुर की बेटी को मौत से बचाना उन सबकी पहली प्राथमिकता होगी। उसके बाद वो यकीनन उस जगह जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया होगा। राणे को जैसे ही उनके ठिकाने का पता चल जाएगा वैसे ही वो हमें सूचित कर देगा। बस, उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है शायद।"

"ये तो वाकई हमारे ही हक़ में है।" सहसा इस बीच सुनीता बोल पड़ी___"ठाकुर की घटना ने उसे भले ही करारी शिकस्त दी हो मगर इस सबमें हमारा यकीनन फायदा हो गया है। दूसरी बात जासूस राणे को इस काम के लिए बुलाने का भी बहुत अच्छा निर्णय साबित हुआ हमारा।"

"बिलकुल सही कहा तुमने।" चौधरी ने कहा___"अगर राणे को हमने बुलाया न होता तो हमें इतनी बड़ी सफलता हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती थी। क्योंकि इस बात का हमें पता ही न चलता कि विराज एण्ड पार्टी और ठाकुर के बीच क्या हुआ है? ठाकुर का भी कोई भरोसा नहीं था कि वो हमें इस बारे में कुछ बताता भी या नहीं।"

"ख़ैर, जो भी हो।" अवधेश ने कहा___"इस सबसे हमें फायदा तो यकीनन ही हुआ है मगर इस बीच हमारे लिए ये सोचना भी महत्वपूर्ण है कि इस मामले में पुलिस का दखल किस उद्देश्य से हुआ है? क्या सचमुच ही वो मोस्ट वान्टेट अपराधी फिरोज़ खान को ही पकड़ने के उद्देश्य से वहाॅ पर पहुॅची थी या फिर इसके पीछे भी पुलिस की कोई ऐसी चाल थी कि वो एक तीर से दो शिकार कर सके। कहने का मतलब ये कि ज़ाहिर तौर पर उसने हमें यही दिखाया हो कि उसका दखल महज फिरोज़ खान को ही पकड़ना था जबकि असल में उसका मकसद कुछ और ही रहा हो, जिसका संबंध हमसे हो।"

"हो सकता है।" चौधरी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए____"किन्तु कमिश्नर की बातों से भी कुछ ज़ाहिर नहीं हो सका। या तो उसने जान बूझ कर हमें घुमा दिया है या फिर ऐसा कुछ हो ही न। यानी हो सकता है कि हम जिस चीज़ की शंका कर रहे हैं वो बेवजह ही हो।"

"शंका तो शंका ही होती है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"भले ही वो बेवजह ही हो मगर हमारे मन में शंका तो है न। इस लिए जब तक हमें इस मामले में सच्चाई का पता नहीं चलता तब तक हमारी ये शंका हमारे अंदर से जाएगी भी नहीं।"

"चलो अगर ऐसा है भी।" चौधरी ने कहा___"तो वो आने वाले समय में ज़ाहिर तो हो ही जाएगा। तब हम देख लेंगे कि हमें उस बारे में क्या करना है। अभी के हालात में जो ज़रूरी है, हमे उस पर ज्यादा ध्यान देना है। हमें किसी भी कीमत पर अपने बच्चे तथा हमारे लिए डायनामाइट बने उन वीडियोज को हाॅसिल करना है। मौजूदा हालातों पर ग़ौर करें तो ये स्पष्ट हो चुका है कि बहुत जल्द राणे के द्वारा हमें इस सबमें सफलता मिलेगी।"

चौधरी की बात सुन कर सबके सिर सहमति में हिले। उसके बाद कुछ और इधर उधर की बातें हुई उन लोगों के बीच। फिर सब अपने अपने काम पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इधर आदित्य ऑधी तूफान की तरह दौड़ाते हुए कार को हास्पिटल की तरफ लिए जा रहा था। नीलम की हालत की वजह से हम सब बेहद दुखी हो गए थे। मैं बार बार नीलम को पुकार रहा था। उसकी पलकें बार बार बंद हो जाती थी। मैने अपने एक हाॅथ की हॅथेली को नीलम की पीठ पर कस के लगाया हुआ था ताकि उसका खून न बहने पाए। नीलम पहले तो दर्द और पीड़ा से कराह रही थी किन्तु अब वो प्रतिपल शान्त पड़ती जा रही थी। उसकी ये हालत देख कर मैं बदहवाश सा था और बार बार उसे पुकार रहा था। मेरे बाएॅ साइड ही नीलम के पैरों के पास बैठी सोनम दीदी अभी भी सिसक रही थीं। वो खुद भी पागलों की तरह नीलम को पुकारे जा रही थी।

रितू दीदी आगे बैठी हुई थी। उनके चेहरे पर भी पीड़ा के भाव उभर आते थे किन्तु उन्होंने खुद को सम्हाला हुआ था। उनके चेहरे पर मौजूद भाव प्रतिपल बदल रहे थे। कभी कभी तो ऐसे भाव उभर आते थे जैसे उन्होंने किसी बात के लिए कठोर फैसला किया हो। आदित्य फुल स्पीड से कार को भगा रहा था। तभी डैश बोर्ड के पास ही रखा मेरा मोबाइल फोन बज उठा। फोन के बजने से जैसे रितू दीदी की तंद्रा टूटी। उन्होंने हाॅथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे मौसा जी नाम को देख कर काल रिसीव की उन्होंने।

उधर से मौसा जी ने जाने ऐसा क्या कहा कि रितू दीदी एकदम से चौंक पड़ी, साथ ही कार की खिड़की से इधर उधर देखने भी लगी थी। फिर उन्होंने ये कह कर फोन रख दिया कि___"आपने यकीनन ये बहुत बड़ी ख़बर दी है मौसा जी। किन्तु उसे बोलिए कि अगर संभव हो सके तो उसे पकड़ ले। आप भी जल्दी से उसके पास जाइये और जाकर उसे अपने कब्जे में ले लीजिए।"

"क्या हुआ रितू??" कार चलाते हुए आदित्य ने सहसा एक नज़र रितू दीदी की तरफ डालते हुए पूछा।
"मंत्री मेरी चेतावनी के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आया।" रितू दीदी ने कहा___"उसने जब देखा कि वो खुद कुछ नहीं कर सकता है तो उसने अपने काम के लिए एक जासूस को बुलवाया और उस जासूस को हमारे पीछे लगा दिया।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" आदित्य रितू की बात सुन बुरी तरह चौंका था, फिर बोला___"मगर तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
"मुझे नहीं।" रितू दीदी ने कहा___"बल्कि मौसा जी के एक आदमी को पता चला है। उसी ने बताया है मौसा जी को। दरअसल हम सब लोग तो वहाॅ से चले आए मगर मौसा जी का एक आदमी ग़लती से वहीं रह गया। मौसा जी बता रहे थे कि उनका वो आदमी उस वक्त अपना पेट साफ करने चला गया था। इसी बीच हम सब वहाॅ से जल्दबाज़ी में निकल आए। कुछ देर में जब वो अपना पेट साफ करके आया तो हम लोगों को दूर जाते हुए देखा उसने। वो वहाॅ से चलते हुए कुछ दूर आया। फिर उसने अपना मोबाइल निकाल कर मौसा जी को फोन करने ही वाला था कि तभी उसे किसी के बात करने की आवाज़ सुनाई दी। वो आवाज़ की दिशा में गया तो उसने देखा कि मंदिर से लगभग पचास मीटर की दूरी पर एक आदमी पेड़ की ओट में खड़ा किसी से फोन पर बातें कर रहा था। मौसा जी का आदमी उससे कुछ ही दूरी पर था। उसने उस आदमी के कुछ पास जाकर उसकी बातें सुन ली। उसकी बातों में डैड के अलावा हमारा भी ज़िक्र था, साथ ही वह जिससे बात कर रहा था उसे वह चौधरी साहब कह कर संबोधित कर रहा था। मौसा जी के आदमी को उसकी बातों से समझ आ गया कि वो हम सबके पीछे ही लगा हुआ है। अतः उसने तुरंत ही इस बात की सूचना मौसा जी को फोन लगा कर दे दी।"

"ओह तो ये बात है।" आदित्य ने कहा।
"हाॅ, मैने अपने मुखबिरों को मंत्री तथा उसके सभी साथियों के पीछे लगाया हुआ था।" रितू दीदी ने कहा___"उन सबकी रिपोर्ट यही थी कि मंत्री या उसके साथियों ने ऐसा वैसा कुछ नहीं किया है। बल्कि उन सबकी दिन चर्या तथा कार्य सामान्य ही था। मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि वो कमीना अपने इस काम के लिए किसी जासूस को हायर कर लेगा। मगर कोई बात नहीं, ये बहुत अच्छा हुआ कि मंत्री के उस जासूस का पता चल गया। कहते हैं कि ईश्वर जो भी करता है उसके पीछे कोई ठोस वजह ज़रूर होती है। वरना सोचने वाली बात है कि मौसा जी जिन आदमियों को अपने साथ लेकर आए थे उन आदमियों में से किसी एक को उस वक्त टायलेट क्यों आता? ये ईश्वर की ही मर्ज़ी थी कि उसे उस वक्त टायलेट आया और वो टायलेट के लिए हमसे दूर चला गया। उसके बाद जब वह आया तो हम सब उस जगह से निकल चुके थे जबकि वो वहीं छूट गया। ईश्वर हमारे साथ है आदित्य, वो नहीं चाहता कि किसी वजह से हम फॅस जाएॅ। हमें नहीं पता था कि मंत्री ने कोई जासूस हमारे पीछे लगाया हुआ है अतः ईश्वर इस सबके द्वारा हमें उस जासूस के बारे में भी बता दिया।"

"सचमुच।" आदित्य कह उठा___"कुदरत का हर काम हैरतअंगेज़ होता है। ख़ैर, अब उस जासूस का क्या करना है?"
"अभी तो फिलहाल उसे किसी भी तरह से पकड़ लेने के लिए मैंने मौसा जी से कहा है।" रितू दीदी ने कहा___"उसका पकड़ में आना भी बेहद ज़रूरी है वरना वो हमारा पीछा करता रहता और अंततः हमारे ठिकाने तक पहुॅच जाता। उसके बाद वो हमारे ठिकाने के बारे में मंत्री को बता देता। बस फिर तो खेल ही खत्म हो जाना था।"

"सचमुच।" आदित्य ने कहा___"बहुत बड़ी मुसीबत में फॅसने वाले थे हम सब।"
"हाॅ आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"मंत्री अपने दलबल के साथ अगर हमारे ठिकाने पर आ धमकता तो हम उस हालात में उस वक्त कुछ कर नहीं पाते और फिर हम सबके साथ मंत्री क्या सुलूक करता इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता।"

"शुकर है।" आदित्य ने कहा___"ईश्वर ने हमें बचा लिया। अब तो यही दुवा करो कि वो जासूस मौसा जी की पकड़ में आ ही जाए। वरना अगर वो हाॅथ से निकल गया तो मुसीबत एक बार फिर से हम पर आ जाएगी। ईश्वर बार बार ऐसा संयोग नहीं बनाएगा।"

"सही कहा तुमने।" रितू दीदी ने कहा___"देखते हैं मौसा जी तथा उनके आदमी क्या करते हैं? इस वक्त तो हमें नीलम को बचाना है।"
"वैसे एक बात कहूॅ रितू।" आदित्य ने कहा___"तुम्हारे जैसा कमीना बाप मैने आज तक न कहीं देखा है और ना ही कहीं सुना है। खुद पापों की गठरी लिए फिरता है और अपनी ही बेटी के साथ......छिः..मुझे तो सोच कर ही ऐसे आदमी से घृणा हो रही है।"

"अगर मेरी बहन को कुछ हुआ न आदित्य।" सहसा रितू दीदी के मुख से ज़हर में डूबे शब्द निकले___"तो उस इंसान का मैं वो हाल करूॅगी कि बड़े से बड़ा जल्लाद भी उसका हाल देख कर थर्रा जाएगा।"

"अब तो उसकी नियति ही ऐसी बन चुकी है।" आदित्य ने कहा___"कि उसकी जब भी मौत होगी तो यकीनन बहुत भयानक तरीके से होगी।"

आदित्य की बात पर रितू दीदी कुछ न बोली। किन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि अपने अंदर के तूफान को उन्होंने कितनी मुश्किल से रोंका हुआ है। मैं उन दोनों की सारी बातें सुन रहा था। तभी रितू दीदी ने किसी को फोन लगाया और उससे कुछ बातें की। आदित्य ने बहुत ही कम समय में कार को हाॅस्पिटल पहुॅचा दिया।

हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचल लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।

हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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