non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:06 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
प्रतिमा की इतनी लम्बी चौड़ी थ्यौरी सुन कर अजय सिंह आश्चर्यचकित रह गया था। काफी देर तक उसके मुख से कोई बोल न फूटा। फिर सहसा उसके चेहरे पर प्रतिमा के प्रति प्रसंसा के भाव उभरे। उसे प्रतिमा की सूझ बूझ और दूरदर्शिता की दाद देनी पड़ी। जबकि....।

"अब रहा सवाल इस बात का कि रितू ने इसके पहले विधी के साथ हुए उस रेप हादसे पर उन रेपिष्टों को कानूनन सज़ा क्यों नहीं दिलवाई?" प्रतिमा ने मानो पुनः कहना शुरू किया___"तो इसका जवाब तुम मंत्री के द्वारा पा ही चुके हो। मंत्री के अनुसार इंस्पेक्टर रितू ने विधी रेप केस के रेपिस्टों को पकड़ कर उन्हें कानूनन सज़ा दिलवाने की ज़रूर कोशिश की हो सकती है किन्तु मामला क्योंकि मंत्री के बच्चों का था इस लिए मंत्री की ताकत व पहुॅच के चलते कानूनन भी कुछ नहीं हो सकता था इस लिए रितू के आला अफसर ने भी रितू को इस मामले में हस्ताक्षेप न करने की सलाह दी होगी। विधी के माॅ बाप को भी यही समझ आया होगा, इसी लिए उन्होंने भी कोई केस करने का ख़याल अपने ज़हन से निकाल दिया होगा। दैट्स इट।"

"तुमने तो इस तरह इन सब बातों को खोल दिया है जैसे कि तुम इन सब चीज़ों का लाइव टेलीकास्ट देख रही थी और उसकी कमेंट्री भी कर रही थी।" अजय सिंह प्रभावित लहजे में बोला___"यकीनन तुम्हारा दिमाग़ काफी शार्प है। ख़ैर यहाॅ पर इसके आगे की कड़ी कुछ इस तरह है। विराज जब मुम्बई से आया और उसने अपनी लवर की वो हालत देखी तो उससे सहन नहीं हुआ। बल्कि उसका खून खौल गया होगा। किन्तु उसे भी समझ आ ही गया होगा कि वो विधी को कानूनन कोई न्याय नहीं दिला सकता। क्योंकि रेप करने वालों के आका बहुत बड़ी हस्ती थे। मगर जवान खून इसके बाद भी शान्त न हुआ होगा। तब उसने खुद उन लड़कों को सज़ा देने का सोचा होगा जिन लड़कों ने उसकी प्रेमिका के साथ वो घिनौना कुकर्म किया था। विराज के फैसले पर रितू ने भी अपनी सहमति दी होगी और उसकी मदद करने का वादा भी किया होगा। मंत्री के ही अनुसार, विराज और रितू मंत्री के फार्महाउस पहुॅचे और वहाॅ से मंत्री के उन बच्चों को धर लिया और वहीं से ही उनके हाथ कुछ ऐसे सबूत भी लगे जो मंत्री को विराज की मुट्ठी में कैद करने के लिए काफी थे दैट्स आल।"

"बिलकुल।" प्रतिमा ने कहा___"मंत्री को जब पता चला कि उसके बच्चों का किडनैपर हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह का भतीजा है तो उसने आज तुम्हें ये सोच कर फोन किया कि तुम इस मामले में उसकी यकीनन मदद कर सकते हो। ये अलग बात है कि तुम खुद भी मंत्री की तरह ही विराज की मुट्ठी में कैद हो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" अजय सिंह चौका___"मैं भला कैसे उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हूॅ?"
"कमाल है डियर।" प्रतिमा मुस्कुराई___"ये बात कैसे भूल सकते हो तुम कि विराज के पास तुम्हारी वो सब चीज़ें हैं जो तुम्हें किसी भी पल कानून की भयानक चपेट में ले लेने के लिए काफी हैं।"

"ओह हाॅ वो न।" अजय सिंह को अचानक ही जैसे सब कुछ याद आ गया और ये भी सच है कि वो सब याद आते ही उसके समूचे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई थी। उससे आगे कुछ कहते न बन सका था।

"बड़ी गंभीर सिचुएशन है अजय।" प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए गंभीरता से कहा___"सबकुछ कर सकने की कूबत होते हुए भी कुछ नहीं कर सकते, न तुम और ना ही वो मंत्री। मगर मुझे एक बात ये समझ नहीं आती कि जब इतना मसाला विराज के पास तुम दोनो के खिलाफ़ मौजूद है तो वो उस मसाले का उपयोग क्यों नहीं करता?"

"किया तो था उपयोग उसने।" अजय सिंह ने कहा___"उस मसाले के आधार पर ही तो उसने नकली सीबीआई वालों को भेजा था मुझे यहाॅ से ले जाने के लिए।"
"अरे हाॅ डियर।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे एकाएक ही बल्ब रौशन हुआ, बोली___"इस नये चक्कर को तो मैं भूल ही गई थी। ये भी तो सोचने का एक जटिल मुद्दा है। आख़िर विराज ने ऐसा किस वजह से किया होगा? नकली सीबीआई वालों को भेज कर उसने तुम्हें ग़ैर कानूनी धंधा करने तथा ग़ैर कानूनी पदार्थ रखने के जुर्म में गिरफ्तार करवाया और फिर दो दिन बाद बिना तुमसे कुछ पूछताॅछ किये छोंड़ भी दिया। सोचने वाली बात है कि इस सबसे उसे क्या मिला होगा? या फिर इससे उसका कौन सा फायदा हुआ होगा?"

"साला ऐसे ऐसे काम करता है कि कुछ समझ में ही नहीं आता।" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"सोचते सोचते दिमाग़ की नशें तक दर्द करने लगती हैं। मगर मजाल है जो कुछ समझ आए। हद हो गई ये तो। साला कल का छोकरा इतना शातिर होगा ये तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था मैने।"

"मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है उसके ऐसा करने का चक्कर।" प्रतिमा ने ये कह कर मानो अजय सिंह के ऊपर बम्ब फोड़ दिया था।
"क..क..क्या समझ आ रहा है तुम्हें?" अजय सिंह बुरी तरह हैरानी से पूछ बैठा था।

"ये तो तुम भी समझते हो न।" प्रतिमा ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"कि विराज की नज़र में ये एक जंग है जो उसने हमारे साथ शुरू की हुई है। जब कोई इंसान किसी से जंग शुरू करता है तब वो सबसे पहले अपनी कमज़ोरियों को अपने प्रतिद्वंदी से या तो छुपाता है या फिर उसकी पहुॅच से बहुत दूर कर देता है।"

"तुम क्या कह रही हो?" अजय सिंह उलझ कर रह गया, बोला___"मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा?"
"याद करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी ने हमें क्या ख़बर दी थी? यही न कि विराज मुम्बई से आए अपने दोस्त के साथ पवन की फैमिली को एम्बूलेन्स में बैठा कर चला गया था और एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी थी। जिसमें कि यकीनन रितू ही थी। यहाॅ पर मेरे कहने का मतलब ये है कि विराज ने ऐसा क्यों किया? आख़िर उसे क्या ज़रूरत थी पवन और उसकी फैमिली को अपने साथ कहीं ले जाने की? इस सवाल के बारे में अगर ग़ौर से सोचोगे तो जवाब ज़रूर मिल जाएगा। मतलब ये कि पवन और पवन की फैमिली विराज की कमज़ोरी थे। उसने सोचा होगा कि देर सवेर हमे इस बात का पता चल ही जाएगा कि उसके दोस्त पवन ने उसकी सहायता की थी और वो यहाॅ उसके ही घर में रुका था। अतः हम इसके लिए उसके दोस्त और उसकी फैमिली को कोई नुकसान भी पहुॅचा सकते हैं। ये सोच कर उसने पवन आदि को सुरक्षित रखना अपना कर्तब्य समझा। किन्तु उसके सामने समस्या रही होगी कि वो पवन आदि को सुरक्षित कैसे करे? उसकी समस्या का समाधान रितू ने किया होगा। उसने उन सब को किसी ऐसी जगह चलने को कहा होगा जहाॅ पर वो सब लोग पूर्णरूप से सुरक्षित रह सकते थे। यहाॅ पर ये भी समझ आ रहा है कि वो लोग एम्बूलेन्स से ही क्यों गए थे? दरअसल एम्बूलेंस ही एक ऐसा किफायती वाहन हो सकता था जिसमें सब लोग बड़े आराम से तथा बिना किसी बाधा के कहीं भी जा सकते थे। हम या हमारे आदमी सोच ही नहीं सकते थे कि वो लोग किसी एम्बूलेंस जैसे वाहन में यहाॅ से जा सकते हैं।एम्बूलेन्स के आगे आगे कुछ फाॅसले पर रितू अपनी जिप्सी में जा रही थी। फाॅसले पर इस लिए ताकि अगर हम या हमारे आदमी रास्ते में कहीं मिलें भी तो वो उस पर शक न कर सकें किसी बात का। कहने का मतलब ये कि रितू की मदद से विराज ने अपनी एक कमज़ोरी को हमारी पहुॅच से दूर कर दिया।"

"मगर इसमें ये कहाॅ फिट बैठता है कि वो इस सबके लिए मुझे ऐसे चक्कर में फॅसा कर बाद में छोंड़ भी दे?" अजय सिंह सहसा बीच में ही बोल पड़ा था___"और वैसे भी ये वाला चक्कर तो उस सबके बहुत बाद अभी हुआ है।"

"मेरी बात तो पूरी होने दो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मैं सब कुछ विस्तार से ही बता रही हूॅ और तुम्हारे सवाल की तरफ ही आ रही हूॅ। विराज के यहाॅ आने पर हमने ये अनुमान लगाया था कि संभव है कि वो यहाॅ पर अभय के बीवी बच्चों को लेने आया हो। हलाॅकि ये भी एक अहम बात है अजय, क्योंकि आज के हालात में विराज की दूसरी कमज़ोरी अभय के बीवी बच्चे भी हैं। इस लिए संभव है कि वो उन्हें भी अपने साथ ही ले गया हो। अभय ने उससे कहा होगा कि अगरसंभव हो सके तो वो अपने साथ अपनी चाची व अपने भाई बहन को भी ले आए। विराज मुम्बई से यही सोच कर आया रहा होगा कि वो विधी को देखेगा और फिर अपनी छोटी चाची व उसके बच्चों को साथ ले कर पुनः मुम्बई लौट जाएगा। मगर यहाॅ आने के बाद विधी के मामले में वो एक अलग ही चक्कर में पड़ गया। ऐसे माहौल में वो भला वो कैसे यहाॅ से चला जाता? दूसरी बात यहाॅ पर तो वैसे भी उसके लिए खतरा ही था। अतः अपने साथ साथ अपनी कमज़ोरियों को भी दूर करना उसकी पहली प्राथमिकता थी। रितू के द्वारा उसे कोई सुरक्षित जगह तो ज़रूर मिल गई रही होगी मगर उससे कदाचित वो संतुष्ट न रहा होगा। वो चाहता रहा होगा कि उसकी सभी कमज़ोरियाॅ हमारी पहुॅच से काफी दूर होनी चाहिए और काफी दूर तो मुम्बई ही थी। अतः उसने फैसला किया होगा कि सबको मुम्बई भेज दिया जाए। उधर उसे इस बात का भी एहसास रहा होगा कि रितू अब चूॅकि हमारे खिलाफ होकर उसकी मदद कर रही है इस लिए अब उस पर भी खतरा ही है और वो उसे खतरा के बीच में अकेला छोंड़ भी नहीं सकता था। तब उसने एक प्लान बनाया और वो प्लान यही था कि वो तुम्हें कम से कम दो दिन के लिए सीबीआई की गिरफ्त में डलवा दे। इसका फायदा ये था कि जब तुम ही मैदान पर न होते तो रितू पर खतरे की सीमा न के बराबर ही रह जाती। उधर प्लान के मुताबिक विराज अपनी कमज़ोरियों को लेकर वापस मुम्बई चला गया। मुम्बई में सबको छोंड़ कर वो उसी दिन वापस यहाॅ के लिए चल दिया।"

"तो तुम्हारे हिसाब से विराज ने इसी सबके लिए मुझे ऐसे चक्करें फाॅसा था?" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मगर तुमने ये कैसे कह दिया कि विराज उन सबको लेकर मुम्बई ही गया था?"

"इस आधार पर कि उसने तुम्हें दो दिन के लिए ही उस चक्कर में फाॅसा था।" प्रतिमा ने कहा___"इन दो दिनों में वो आराम से मुम्बई जाकर लौट भी सकता है। उसने तुम्हें नकली सीबीआई के जाल में फाॅसा जबकि वो चाहता तो तुम्हें सचमुच में ही रियल सीबीआई की गिरफ्त में पहुॅचा देता। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसका मकसद सिर्फ इतना ही था कि तुम दो दिन के लिए अंडरग्राउण्ड रहो"
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