non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:05 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट.......《 54 》

अब तक,,,,,,

"सब वक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं जिनके तहत उसका पलड़ा बहुत भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नहीं होते तो हम उसे बताते कि हमारे साथ ऐसी ज़ुर्रत करने की क्या सज़ा मिल सकती थी उसे? ख़ैर छोंड़ो, तुम बताओ कि क्या तुम इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नहीं?"

"मैं पूरी कोशिश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"कि मैं इस मामले में आपके लिए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कि आपको मैं बता ही चुका हूॅ कि वो नामुराद मुझे भी अपना दुश्मन समझता है और मुझसे बदला ले रहा है तो उस हिसाब से ये भी सच है कि मैं भी यही चाहता हूॅ कि जल्द से जल्द वो मेरी पकड़ में आ जाए। एक बार पता चल जाए कि वो कमीना किस कोने में छुपा बैठा है उसके बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खूबसूरत ढंग से करूॅगा।"

"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कि उसके ठिकाने का पता किसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे लिए कोई क़दम उठाना भी आसान हो जाएगा।"

ऐसी ही कुछ देर और कुछ बातें होती रहीं। शाम घिर चुकी थी और अब रात होने वाली थी। इस लिए अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर वापस हल्दीपुर के लिए निकल चुका था। सारे रास्ते वह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भतीजा इतना बड़ा सूरमा हो सकता है कि वो प्रदेश के मंत्री तक को अपनी मुट्ठी में कैद कर ले। उसने मंत्री से कह तो दिया था कि वो इस मामले में उसकी मदद करेगा मगर ये तो वही जानता था कि वो उसकी कितनी मदद कर सकता था? ख़ैर थका हारा व परेशान हालत में अजय सिंह अपनी हवेली पहुॅच गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद अपने तथा चौधरी के लिए अब क्या करे?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

मैंने दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी थी। मेरे द्वारा दरवाजा खुलते ही वो मुझे देख कर पहले तो मुस्कुराई फिर जैसे ही उन्हें देख कर मैं एक तरफ हुआ तो वो दरवाजे से अंदर की तरफ कमरे में आ गईं। उन्हें कमरे में आते देख मुझे समझ न आया कि रितू दीदी रात में सोने की बजाय इस वक्त यहाॅ मेरे पास किस वजह से आई हैं?

दरवाजा बंद करके मैं पलटा और बेड की तरफ आ गया। रितू दीदी बेड पर ही एक किनारे पर बैठी हुई थी। इस वक्त उनके खूबसूरत बदन पर नाइट ड्रेस था। मैं खुद भी एक हाफ बनियान और शार्ट्स में था। हलाॅकि मुझे उनके यहाॅ इस वक्त आने पर कोई ऐतराज़ नहीं था बल्कि मैं तो खुश ही हुआ था मगर सोचने वाली बात तो थी ही कि इस वक्त उनके यहाॅ आने की क्या वजह हो सकती है?

"कहीं मैने तुझे डिस्टर्ब तो नहीं किया न राज?" मुझे बेड की तरफ आते देख सहसा रितू दीदी ने बड़ी मासूमियत से कहा___"कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने यहाॅ आ कर तेरी नींद में खलल डाल दिया हो?"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं उनके पास ही बेड पर बैठते हुए बोला___"भला आपकी वजह से मैं कैसे डिस्टर्ब हो जाऊॅगा? बिलकुल भी नहीं दीदी, मुझे भी अभी नींद नहीं आ रही थी।"

"अच्छा भला वो क्यों?" रितू दीदी ने सहसा मेरे चेहरे की तरफ ग़ौर से देखते हुए कहा___"क्या विधी की याद आ रही थी?"
"उसकी याद आने का तो सवाल ही नहीं है।" मैने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि मैं उसे एक पल के लिए भी भूलता ही नहीं हूॅ। दूसरी बात याद तो उन्हें करते हैं न जिन्हें हम भूले हुए होते हैं?"

"ओह राज।" रितू दीदी ने एकदम से मेरा चेहरा अपनी हॅथेलियों के बीच ले लिया, और फिर भारी स्वर में मुझसे बोली___"मैं जानती हूॅ कि तू विधी को इतनी आसानी से भूल नहीं सकता है। आख़िर तुम दोनो ने एक दूसरे से टूट कर मोहब्बत जो की थी, ऊपर से वो सब हो गया। मगर भाई, उस सबको याद करने से भी भला क्या होगा? बल्कि होगा ये कि तू हर पल उसे याद करके दुखी होता रहेगा। इस लिए तू खुद को सम्हाल मेरे भाई और उस सबसे बाहर निकल। तुझे पता है न कि मैं तुझे अब किसी भी सूरत में दुखी होते हुए नहीं देख सकती हूॅ। अगर तू खुश नहीं रहेगा तो मैं भी खुश नहीं रहूॅगी। अब तो तेरे ही खुशी में मेरी खुशी है राज और तेरे दुख में मेरा दुख है।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैंने उदास भाव से कहा___"मगर क्या करूॅ? यादों पर मेरा कोई अख़्तियार ही नहीं है। दिन तो गुज़र जाता है किसी तरह मगर ये रात.....ये रात और रात की ये तन्हाई जाने कहाॅ से मेरे दिल को दुखी करने के लिए उसकी यादें ले आती हैं? बस उसके बाद सब कुछ ऐसा लगने लगता है जैसे इस संसार में अब कुछ भी नहीं रह गया ऐसा जिसकी वजह से मैं खुश हो सकूॅ।"

"ऐसा मत कह मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुझे एकदम से खुद से छुपका लिया और फिर दुखी भाव से बोली___"हम सब भी तो हैं न जिनकी वजह से तू खुश हो सकता है। क्या सिर्फ विधी ही ऐसी थी जिसकी वजह से तू खुश हो सकता था? क्या गौरी चाची और गुड़िया कुछ भी नहीं जिनके लिए तू खुश रह सके?"

"हर रिश्ते की अपनी एक अलग अहमियत होती है दीदी।" मैने कहा___"मगर जो दिल का रिश्ता होता है और प्रेम के रिश्ते से जुड़ा होता है उसकी बात ही अलग होती है। हलाॅकि रिश्ता कोई भी हो उसके टूट जाने पर अथवा उसके न रह जाने पर तक़लीफ़ तो होती ही है। हम जिन्हें चाहते हैं तथा जिनसे प्रेम करते हैं वो अगर दुनियाॅ जहाॅन में हैं तो उनसे ताल्लुक न रहने के बाद भी इतनी तक़लीफ़ नहीं होती लेकिन अगर वो इस दुनियाॅ में ही नहों तो ये सोच सोच कर और भी ज्यादा तक़लीफ़ होती है कि अब वो इंसान उसे कभी भी नहीं मिल सकता। इंसान के दुनियाॅ में बने रहने से ये उम्मीद तो बनी ही रहती है कि कभी न कभी उसे वो ब्यक्ति मिलेगा ही। मगर......।"

"बस कर राज।" रितू दीदी फफक कर रो पड़ी___"मैं और कुछ नहीं सुन सकती। मुझे तो इतने से ही इतनी तक़लीफ़ हो रही है जबकि वो सब तो तेरे साथ घटा है तो तुझे कितनी ज्यादा तक़लीफ़ होती होगी। मुझे उस सबका एहसास है मेरे भाई मगर प्लीज....भगवान के लिए खुद को अपनी इस तक़लीफ़ से निकालने की कोशिश कर।"

"फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने दीदी को खुद से अलग कर उनके चेहरे को अपनी हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"ये दुख तक़लीफ़ें लाख असहनीय सही मगर ये मुझे नेस्तनाबूत नहीं कर सकती हैं। इतनी हिम्मत तो और इतनी कूबत तो है मुझमें कि मैं इन सबको जज़्ब कर सकूॅ। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि आप इस वक्त यहाॅ किस वजह से आई थी? क्या कोई काम था मुझसे?"

"क्या मैं तेरे पास बेवजह नहीं आ सकती राज?" रितू दीदी ने पुनः बड़ी मासूमियत से मुझे देखा था__"क्या मुझे अपने भाई के पास आने के लिए किसी वजह की ज़रूरत है?"
"नहीं दीदी ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मैने झेंपते हुए कहा___"बल्कि आप जब चाहें तब मेरे पास आ सकती हैं। मैने तो हालातों के बारे में सोच कर आपसे ऐसा कहा था।"

"हालातों के बारे में बात करने के लिए दिन काफी है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"कम से कम रात में तो उस सबसे दूर होकर हमें सुकून मिले। हर पल उसी के बारे में सोच सोच कर परेशान होना क्या अच्छी बात है?"

"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा___"हर वक्त एक ही चीज़ के बारे में सोच सोच कर परेशान होना बिलकुल भी उचित नहीं है। किन्तु ये भी सच है कि हालात ऐसे हैं कि हम भले ही ये सब सोच कर ऐसा कहें मगर ज़हन से वो सब बातें जाती भी तो नहीं हैं।"

"कोशिश करोगे तो ज़रूर जाएॅगी राज।" रितू दीदी ने कहा___"मगर तुम तो कोशिश ही नहीं करते हो। बस सोचते रहते हो जाने क्या क्या? अच्छा ये बता कि नीलम से क्या बात हुई थी तेरी?"

"बताया तो था आपको।" मैने कहा।
"हाॅ बताया तो था तूने।" रितू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"और ये भी बताया था कि कैसे तुम दोनो ट्रेन में धमाल मचा रखे थे।"
"क्या करता दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसी सबके लिए तो तरसा था मैं। मैं हमेशा ये चाहता था कि नीलम मुझसे लड़ाई करे, हम दोनो के बीच में खूब शैतनी भरा माहौल बना रहा करे। मगर वो सब ख्वाहिशें ही रहीं। आज सुबह जब ट्रेन में नीलम मेरे ऊपर झुकी हुई मुझे देख रही थी तो अचानक ही मेरे मन में वो सब बातें आ गई थी और फिर मैने उसे छेंड़ा। उसके बाद सचमुच वैसा ही हुआ दीदी जैसे की मैं हमेशा आरज़ू किया करता था। उस वक्त मैं बहुत खुश था औरुझे पता था नीलम भी उस सबसे बेहद खुश थी। उसके हाव भाव से ज़ाहिर हो रहा था कि वो भी मेरे साथ वो सब करके उन पलों को एंज्वाय कर रही थी।"

"काश उस वक्त मैं भी वहाॅ होती राज।" रितू दीदी ने सहसा आह सी भरते हुए कहा___"मैं भी नीलम की तरह तेरे साथ वैसी ही मस्ती करती।"
"अरे पर आप कैसे करती दीदी?" मैं दीदी की ये बात सुन कर चौंक पड़ा था___"आप तो मुझसे बड़ी हैं न, जबकि नीलम और मैं एक ही ऊम्र के हैं इस लिए हमारे बीच वैसी मस्ती हो सकती थी।"

"तो क्या हुआ भाई?" रितू दीदी ने कहा___"मैं तुझसे बड़ी हूॅ तो क्या हुआ? क्या मैं बड़ी होने की वजह से अपने भाई के साथ मस्ती नहीं कर सकती? ये किस कानून की किताब में लिखा है मुझे बता तो ज़रा?"

"हाॅ लिखा तो नहीं है मगर।" मैं दीदी की बात सुन कर सकपका गया था___"फिर भी आप मुझसे बड़ी तो हैं ही और मैं आपसे खुल कर वैसी मस्ती नहीं कर सकता था।"
"सीधे सीधे कह दे न कि तुझे मेरे साथ मस्ती करना पसंद ही नहीं आता।" रितू दीदी ने सहसा बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"एक नीलम ही बस तो है जिसके साथ तुझे वो सब करना अच्छा लगता है। जाओ मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।"

रितू दीदी ये कहने के साथ ही मुझसे ज़रा हट कर बैठ गईं और एक तरफ को मुह फुला कर बैठ गईं। मैं ये सब देख कर भौचक्का सा रह गया। मुझे उनसे इस सबकी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी। कदाचित इस लिए क्योंकि उनका कैरेक्टर ही ऐसा था। वो शुरू से ही हिटलर स्वभाव की रही थी। उन्हें ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं था। मगर इस वक्त वो हिटलर दीदी नहीं बल्कि किसी छोटी सी बच्ची की तरह मुह फुला कर एक तरफ बैठ गई थी। उनके चेहरे पर इस वक्त इतनी क्यूट सी नाराज़गी देख कर मैं हैरान भी था और अंदर ही अंदर ये सोच कर खुश भी कि इस वक्त रितू दीदी सच में किसी मासूम सी बच्ची की तरह लग रही थी। मुझे उनके इस तरह रूठ कर मुह फुला लेने से उन पर बेहद प्यार आया। मुझे ऐसा लगा जैसे इस क्यूट सी बच्ची पर मैं सारी दुनियाॅ हार जाऊॅ।
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