non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर हवेली में प्रतिमा का बाप व अजय सिंह का ससुर जगमोहन सिंह उस वक्त हवेली पहुॅचा जब अजय सिंह फ्रेश होने के बाद खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल के चारो तरफ लगी कुर्सियों में से मुख्य कुर्सी पर बैठा था। जगमोहन सिंह को हवेली के बाहर तैनात अजय सिंह का एक आदमी अंदर लेकर आया था।

अपने ससुर को आज वर्षों बाद देख कर अजय सिंह फौरन ही अपनी कुर्सी से उठ कर जगमोहन की तरफ बढ़ा और उसके पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अभी अजय सिंह अपने ससुर के पाॅव छू कर खड़ा ही हुआ था कि तभी प्रतिमा भी किचेन से हाॅथ में थाली लिए आई। प्रतिमा की नज़र जब अपने पिता पर पड़ी तो वो एकदम से मानो बुत बन गई। काफी देर बाद उसकी तंद्रा तब टूटी जब अजय सिंह ने उससे कहा कि देखो प्रतिमा पापा जी आ गए।

हाॅथ में ली हुई थाली को प्रतिमा ने डायनिंग टेबल पर रखा और फिर भाग कर जगमोहन की तरफ बढ़ी और अपने पिता के गले से लग गई। भावनाओं और जज़्बातों ने मानो प्रबल रूप धारण कर लिया जिसके प्रभाव से उसकी ऑखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे थे। प्रतिमा अपने पिता के सीने से छुपकी ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। जगमोहन खुद भी बेहद ग़मगीन हो गया था और हो भी क्यों न आख़िर प्रतिमा उसकी लाडली बेटी जो थी। अपनी बेटी को अपने कलेजे से लगाए जगमोहन को आज असीम सुख शान्ति मिल रही थी। वर्षों से उसके अंदर दर्द से भरी हुई टीस कम हो गई थी।

कितनी ही देर तक प्रतिमा अपने पिता के गले लगी रही उसके बाद जब उसके अंदर का गुबार खत्म हुआ तो वो अपने पिता से अलग हुई और अपने पिता से उनका हाल चाल पूछने लगी। कुछ देर बाद अजय सिंह ने प्रतिमा और अपने ससुर से कहा कि वो फ्रेश हो लें ताकि हम साथ में बैठ कर ही खाना खाएॅ। अजय सिंह की बात पर जगमोहन सिंह बोले कि वो बेटी के घर का अन्न कैसे खा सकते हैं? इस पर अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा कि पापा जी आप भी क्या बाबा आदम के रीति रिवाज लिए बैठे हैं। आज के समय के सबसे बड़े वकील होते हुए भी ऐसी बात करते हैं। आख़िर अपने दामाद और बेटी के बार बार कहने पर जगमोहन सिंह को अजय सिंह के साथ बैठ कर खाना ही पड़ा।

खाना खाने के बाद ससुर दामाद के बीच ढेर सारी बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह प्रतिमा को बता कर अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गया। काफी दिन से फैक्ट्री नहीं गया था वह। वैसे भी वो चाहता था कि वर्षों के बाद बाप बेटी मिले हैं तो वो फ्री होकर एक दूसरे से बातें करें। अजय सिंह प्रतिमा को किनारे पर बुला कर उससे एक बार पुनः ये कहा कि वो या कोई भी जगमोहन जी से हमारे हालातों के संबंध में कोई बात न करे। सब कुछ समझा बुझा कर अजय सिंह हवेली से बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसे शिवा इस तरफ ही आता दिखाई दिया। अजय सिंह उसे देख कर ठिठक गया। अपनी ही धुन में मस्ती से आता हुआ शिवा अपने बाप को देख कर हैरान रह गया और फिर एकदम से झपट कर उसके गला लग गया।

"ओह डैड आप आ गए।" शिवा खुशी से झूमता हुआ बोला था।
"मैं तो आ ही गया बर्खुरदार।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम इस वक्त कहाॅ से इस तरह मस्ती में डूबे चले आ रहे थे?"
"वो मैं गेस्टहाउस की तरफ से आ रहा था डैड।" शिवा ने कहा___"दरअसल आपके बिजनेस संबंधी दोस्तों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए यहाॅ भेज गए थे। इस लिए मैं उन्हीं के पास बैठा हुआ था। माॅम ने कहा था कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन सबका ख़याल रखूॅ।"

"ओह आई सी।" अजय सिंह आदमियों का सुन कर सहसा चौंक पड़ा था फिर बोला___"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे। मुझे खुशी हुई कि तुम अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हो। ख़ैर मैं ये कह रहा हूॅ कि आज तुम्हारे नाना जी आए हुए हैं इस लिए तुम या कोई भी उनके सामने हमारे हालातों के संबंध में कोई भी बात नहीं करोगे। और हाॅ, तुम भी ज़रा सम्हल कर उनसे बात करना। वो बहुत ही जहीन इंसान हैं। इंसान को पहचानने में उन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा। अतः सोच समझ कर और होशियारी से उनके सामने जाना। ऐसा न हो कि तुम्हारे हाव भाव से उन्हें ऐसा प्रतीत हो जाए कि तुम किस टाइप के लड़के हो? तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूॅ?"

"डोन्ट वरी डैड।" शिवा ने कहा___"मेरी वजह से नाना जी को कुछ और सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा और न ही उन्हें हमारे हालातों का कुछ पता चलेगा।"
"गुड ब्वाय।" अजय सिंह मुस्कुराया___"अब जाओ तुम। मैं भी ज़रा उन आदमियों से मिल लूॅ, उसके बाद मुझे थोड़ी देर के लिए फैक्ट्री भी जाना है।"
"ओके बाय डैड।" ये कह कर शिवा हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

शिवा का जाने के बाद अजय सिंह भी गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया। अभी वो कुछ क़दम ही चला था कि सहसा पीछे से उसे प्रतिमा की आवाज़ सुनाई दी। उसने पलट कर देखा तो प्रतिमा हवेली के मुख्य दरवाजे पर खड़ी थी। अजय सिंह के पलटते ही प्रतिमा ने उसे बताया कि लैण्डलाइन फोन पर किसी का काल आया हुआ है और वो उससे बात करना चाहता है। प्रतिमा की बात सुन कर अजय सिंह वापस हवेली के अंदर की तरफ चल दिया। उसे याद आया कि उसके मोबाइल पर तो सिम कार्ड है ही नहीं।

"हैलो।" अपने कमरे में रखे लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही अजय सिंह ने अपनी आवाज़ को प्रतभावशाली बनाते हुए कहा था।
"ठाकुर।" उधर से किसी की स्पष्ट आवाज़ उभरी__"हम इस प्रदेश के मंत्री दिवाकर चौधरी बोल रहे हैं।"

"म..मंत्री???" अजय सिंह उधर ईआ वाक्य सुन कर बुरी तरह चौंका था, फिर लरजते हुए स्वर में बोला____"क्या सच में आप मंत्री जी ही बोल रहे हैं?"
"हाॅ ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने खास अंदाज़ में कहा___"क्या तुम्हें हमारे मंत्री होने पर शक़ है?"

"न..न..नहीं नहीं मंत्री जी।" अजय सिंह बुरी तरह सकपकाया___"म मैं तो बस इस लिए ऐसा कह गया क्योंकि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि प्रदेश की इतनी बड़ी शख्सियत का फोन मेरे पास आ सकता है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान हूॅ कि भला मुझसे मंत्री जी का क्या काम हो सकता है जिसके तहत आपने मुझे फोन किया है।"

"कुछ तो खास वजह होगी ही ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने कहा___"वरना इस फानी दुनियाॅ में बेमतलब कोई भी किसी को याद नहीं करता।"
"हाॅ ये बात तो बिलकुल सच है मंत्री जी।" अजय सिंह के दिमाग़ के घोड़े बड़ी तेज़ी से ये पता लगाने के लिए दौड़ रहे थे कि मंत्री ने उसे किस वजह से फोन किया हो सकता है? किन्तु प्रत्यक्ष में बोला___"आज के समय में हर इंसान मतलबी बन चुका है। ख़ैर आप बताइये मेरे लिए क्या आदेश है आपका?"

"दोस्तों को आदेश नहीं देते ठाकुर।" उधर से चौधरी ने कहा___"बल्कि साफ शब्दों में कह दिया जाता है जो कहना होता है। ख़ैर हम ये कह रहे है कि हम तुमसे मिलना चाहते हैं। मिलने के बाद ही तसल्ली से हमारे बीच बात चीत होगी और ये भी कि वो खास वजह क्या है जिसके तहत हमने तुम्हें फोन किया है?"

"जैसा आप कहें मंत्री जी।" अजय सिंह मंत्री के मुख से दोस्तों शब्द सुन कर सोचने पर मजबूर हो गया था। हलाॅकि मंत्री का उसे फोन करना मौजूदा हालात के हिसाब से उसके लिए कहीं न कहीं राहत और खुशी की बात थी। उसे भी पता था कि मंत्री दिवाकर चौधरी क्या चीज़ है। फिर बोला___"बताइये मुझे कब और कहाॅ मिलने आना होगा आपसे?"

"वैसे समय तो अभी भी है ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"क्योंकि अभी शाम भी नहीं हुई है। इस लिए चाहो तो अभी हमारे यहाॅ आ सकते हो। इस वक्त हम गुनगुन में ही अपने आवास पर मौजूद हैं। किन्तु अगर तुम्हारे पास इस वक्त टाइम नहीं है तो कोई बात नहीं कल सुबह आ जाना। हमें कोई परेशानी नहीं है।"

"ये कैसी बात कर रहे हैं मंत्री जी?" अजय सिंह ने चापलूसी वाले अंदाज़ से कहा___"आप मुझे अपना समझ कर इतनी इज्ज़त से बुलाएॅ और मैं तत्काल न आऊॅ ऐसा कैसे हो सकता है भला? मैं तो अपने सारे ज़रूरी काम छोंड़ कर आपके पास ही दौड़ा चला आऊॅगा चौधरी साहब। बस कुछ देर तक इंतज़ार कर लीजिए। मैं फौरन ही अपने गाॅव हल्दीपुर से गुनगुन में आपके आवास पर आने के लिए निकल रहा हूॅ।"

"ओके हम इन्तज़ार कर रहे हैं ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"तुम हमारे दोस्त की तरह ही हो इस लिए अपने दोस्त का वैलकम भी हम शानदार तरीके से ही करेंगे।"
"ये तो मेरी खुशनसीबी है मंत्री जी।" अजय सिंह एकदम से खुश होते हुए बोला___"जो आप मुझे अपना दोस्त कह रहे हैं वरना मेरी आपके सामने भला क्या औकात?"

"ऐसी कोई बात नहीं है ठाकुर।" मंत्री ने कहा___"हर इंसान अपनी जगह पर औकात वाला ही होता है। तुम भी अपनी जगह किसी से कम नहीं हो। हमें सब पता है तुम्हारे बारे में। ख़ैर छोंड़ो ये सब। आओ फिर मिलकर ही बाॅकी बातें होंगी।"
"जी ठीक है चौधरी साहब।" अजय सिंह के ऐसा कहते ही उधर से काल कट गई।

रिसीवर को हाॅथ में पकड़े अजय सिंह किसी बुत की मानिंद खड़ रह गया था। उसकी ऑखें ऐसी चमकने लगी थी जैसे उसकी ऑखों के अंदर हज़ारों वाट के बल्ब एकाएक ही रौशन हो उठे थे। चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। कुछ देर तक अजय सिंह इसी तरह रिसीवर हाॅथ में खड़ा रहा फिर जैसे उसे होश आया। उसने मुस्कुरा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रखा और फिर कमरे में ही एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ चला।

आलमारी से उसने अपने सबसे अच्छे और सबसे कीमती कपड़े निकाले। अपने जिस्म पर पहले से ही पहने हुए कपड़ों को निकाला उसने और फिर उन कपड़ों को पहनना शुरू किया जिन्हें उसने आलमारी से निकाला था। उसके चेहरे पर इस वक्त एक अलग ही चमक दिख रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में वह कपड़ों को पहन कर एक तरफ दीवार से सटे आदमकद आईने के सामने आया और उसमें खुद को देखने लगा। कीमती कोट पैन्ट में इस वक्त वो काफी जॅच रहा था और लग भी रहा था कि वो कोई बहुत बड़ा आदमी है। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद वो मुस्कुराते हुए ही कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

ड्राइंगरूम में बैठे जगमोहन सिंह, प्रतिमा व शिवा की नज़र जैसे ही अजय सिंह पर पड़ी तो जगमोहन सिंह को छोंड़ कर प्रतिमा व शिवा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। जबकि जगमोहन सिंह के चेहरे पर ये सोच कर खुशी के भाव उभरे कि उसका दामाद वाकई में एक शख्सियत वाला तथा प्रभावशाली ब्यक्तित्व रखने वाला इंसान है। उसे पहली बार लगा कि उसकी बेटी ने अपने पति के रूप में ग़लत चुनाव नहीं किया था। यहाॅ आने के बाद उसने इतनी बड़ी हवेली और अंदर बाहर इतने सारे नौकर चाकर देखे तो उसे समझ आ गया था कि उसका दामाद वास्तव में कोई ऐरा ग़ैरा नहीं था। बल्कि इस गाॅव का राजा था वो।

"प्रतिमा मैं ज़रा मंत्री जी के पास जा रहा हूॅ।" अजय सिंह ने ये बात कुछ इस अंदाज़ से कही थी कि सोफे पर बैठे जगमोहन सिंह पर अपना एक खास असर डाल सके और ऐसा हुआ भी। जबकि अजय सिंह बोला___"अभी उन्हीं का फोन आया हुआ था। उन्होने मुझे किसी ज़रूरी काम से याद किया है। अतः हो सकता है कि मुझे वापस आने में देर हो जाए तो तुम पापा जी का अच्छे से ख़याल रखना।"

"ठीक है आप जाइये।" प्रतिमा ने अपने पिता की मौजूदगी में अजय सिंह से आप कह कर बात की, बोली___"मैं पापा का बहुत अच्छे से ख़याल रखूॅगी।"
"इसमें ख़याल रखने की क्या बात है बेटा?" सहसा जगमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"ये तो मेरा भी अपना ही घर है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हुई तो मैं खुद ही ले लूॅगा। क्यों बेटी?"

"जी आपने बिलकुल ठीक कहा पापा।" प्रतिमा ने खुशी से मुस्कुराते हुऐ कहा।
"फिर तो ठीक है पापा।" अजय सिंह भी मुस्कुराया__"मुझे आपकी ये बात बहुत अच्छी लगी। ख़ैर मैं जल्दी वापस आने की कोशिश करूॅगा और फिर आपसे ढेर सारी बातें होंगी। अच्छा अब चलता हूॅ।"

अजय सिंह के कहने पर जगमोहन सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि अजय सिंह फौरन ही हवेली से बाहर की तरफ बढ़ चला। उसके मन में इस वक्त मंत्री से मिलने की बड़ी ब्याकुलता पैदा हो गई थी। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि प्रदेश का मंत्री उसे दोस्त मान कर उससे मिलना चाहता है। मंत्री से संबंध होना उसके लिए कितना फायदेमंद हो सकता था इसका बखूबी अंदाज़ा था उसे। इसी लिए तो वो जल्द से जल्द मंत्री के पास पहुॅच जाना चाहता था।

बाहर एक तरफ खड़ी अपनी मर्सडीज कार के पास पहुॅच कर उसने कार का दरवाजा खोला और ड्राइंविंग शीट पर बैठ गया। कुछ ही पलों में उसकी कार गुनगुन के लिए रवाना हो गई थी।
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