non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ देर वहीं पर बैठा अपने साथ घटी पिछली सभी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं किसी तरह उठा और कुछ दूरी पर नज़र आ रही सड़क की तरफ चल दिया। मैं ये समझ चुका था कि उन लोगों ने मुझे आज़ाद कर दिया था। मुझे बेहोश इस लिए किया गया था ताकि मैं उस जगह के बारे में कतई न जान सकूॅ कि उन लोगों ने मुझे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चुका था कि मैं चाह कर भी अब उन लोगों तक नहीं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के ऑफिसर बन कर हवेली से मुझे गिरफ्तार करके ले गए थे।

सड़क पर आकर मैं किनारे पर ही खड़ा हो गया और सड़क के दोनो तरफ देखने लगा। मुझा अपने मोबाइल का ख़याल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैंट के दोनो पाॅकेट पर रेंग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कि मोबाइल मेरी बाई पाॅकेट में मौजूद है। मैने जल्दी से उसे निकाला और स्विच ऑन किया। मगर मैं ये देख कर भौचक्का रह गया कि मोबाईल में मौजूद दोनो सिम कार्ड गायब थे। उसमे नेटवर्क होने का सवाल ही नहीं था। मैने फोन में काॅटैक्ट लिस्ट देखा तो मेरे होश उड़ गए। क्योंकि उसमे से सारे नंबर टिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि मैं मौजूदा हालत में किसी को ना तो फोन कर सकता था और ना ही मेरे मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ सकता था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। उन लोगों पर मुझे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मुझे फेंक दिया था जहाॅ से किसी वाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।

सड़क पर मैं घंटों खड़ा रहा किसी वाहन के इन्तज़ार में मगर कोई भी वाहन आता जाता नज़र न आया। प्रतिपल उस हालत में मेरे अंदर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद एक टैक्सी आती हुई नज़र आई। उसे देख कर मुझे थोड़ी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कि इस वक्त किसी वाहन में जाने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसके बावजूद मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ फेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पैन्ट की पिछली जेब में मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने फौरन ही उस चीज़ को निकाला तो मुझे एक पाॅच सौ का नोट नज़र आया।

पाॅच सौ का नोट उस वक्त मैं इस तरह देख रहा था जैसे मैने कभी उसे देखा ही न हो और सोचने लखा था कि इस प्रकार का ये काग़ज आख़िर है क्या चीज़? ख़ैर, वो टैक्सी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के लिए हाॅथ से इशारा किया। मेरे इशारे पर वो टैक्सी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने देखा कि उसमें जो ड्राइवर था वो कोई पैंतीस के आस पास का काला सा आदमी था। टैक्सी को रुकते ही उसने विंडो से अपना सिर बाहर की तरफ निकाल कर मुझसे पूछा कहाॅ जाना है? मैने उसे पता बताया तो उसने अंदर बैठने का इशारा किया। लेकिन उससे पहले ये बताना न भूला था कि भाड़ा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाड़े का सुन कर मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कि ठीक है भाई ले लेना मगर मुझे बताए गए पते पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।"

"बड़ी हैरत व बड़ी अजीब कहानी है।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इसका मतलब उन लोगों ने तुमें ऐसी जगह छोंड़ा था जहाॅ से अगर कोई वाहन मिलता भी तो वो तुमसे भाड़े के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी लिए उन लोगों ने तुम्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल दिये थे ताकि तुम आराम से यहाॅ तक पहुॅच सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।"

"कमाल तो हो ही गया।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे वो टैक्सी वाला भी साला उन्हीं का आदमी था। क्योंकि जिस रास्ते पर वो मिला था उस रास्ते पर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद ही उस टैक्सी के रूप में वाहन मिला था। टैक्सी पर कोई दूसरी सवारी नहीं थी
बल्कि ड्राइवर के अलावा सारी टैक्सी खाली ही थी।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है अजय।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ था, बोली___"यकीनन वो टैक्सी और वो टैक्सी ड्राइवर उन लोगों का ही आदमी था। अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कि पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था तुम्हारे पास वो वापस वहीं लौट भी गया। क्या कमाल का गेम खेला है उन लोगों ने।"

"उन लोगों ने नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उस हरामज़ादे विराज ने। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि वो सब विराज के आदमी हैं और विराज के ही हुकुम पर उन लोगों ने ये संगीन कारनामा अंजाम दिया था। तुम ही बताओ प्रतिमा क्या तुम सोच सकती हो कि कल का छोकरा कहीं पर बैठे बैठे ऐसा कोई कारनामा कर सकता है?"

"बेशक नहीं सोच सकती अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर शुरू से लेकर अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ऐसी रही हैं कि अब अगर वो कुछ भी अविश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साबित होती है कि वो कोई मामूली चीज़ नहीं रह गया है। या तो उसे किसी पहुॅचे हुए ब्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या फिर सच में वो इतना क़ाबिल हो गया है कि वो आज के समय में हर चीज़ अफोर्ड कर सकता है।"

"यही तो हजम नहीं हो रहा प्रतिमा।" अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___"इतने कम समय में आख़िर उसने ऐसा क्या पा लिया है जिसके बलबूते पर वो कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और नेकी कक राह पर चलते हुए इतनी बड़ी चीज़ अथवा कामयाबी नहीं पाई जा सकती। ज़रूर वो कोई ग़लत काम कर रहा है। हाॅ प्रतिमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बड़ी बड़ी चीज़ें हाॅसिल होती हैं, फिर भले ही चाहे उन बड़ी बड़ी चीज़ों की ऊम्र छोटी ही क्यों न हो।"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कहा___"ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बड़े सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला न।"
"कौन सा सवाल?" अजय सिंह चौंका।
"यही कि उसने तुम्हारे साथ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब है कि उसने तुम्हें नकली सीबीआई वालों के द्वारा गिरफ्तार करवा के दो दिन तक किसी गुप्त कैद में रखा तो इसमें उसका क्या मकसद छिपा था? आख़िर उसने तुम्हें कैद करवा के अपना कौन सा उल्लू सीधा किया हो सकता है? हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है अजय। आख़िर पता तो चलना ही चाहिए इस सबका।"

"पता चलना तो चाहिए।" अजय सिंह ने कहा___"मगर कैसे पता चलेगा? हमारे पास ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबूत या क्लू नहीं है जिसके आधार पर हम कुछ जान सकें।"
"एक सवाल और भी है अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा___"जो कि कुछ दिनों से मेरे दिमाग़ में चुभ सा रहा है।"

"ऐसा कौन सा सवाल है भला?" अजय सिंह के माथे पर शिकन उभरी।
"यही कि हमारी बेटी रितू।" प्रतिमा ने कहा___"जब से हमसे खिलाफ़ हुई है तब से वो घर वापस नहीं आई। तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई ऐसी जगह ज़रूर है जहाॅ पर वो नैना और विराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है?"

प्रतिमा की इस बात से अजय सिंह उसे इस तरह देखता रह गया था मानो प्रतिमा के सिर पर अचानक ही दिल्ली का लाल किला आकर खड़ा हो गया हो। फिर जैसा उसे होश आया।

"सवाल तो यकीनन वजनदार है।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर संभव है कि वो यहीं कहीं आस पास ही किसी के घर में कमरा किराये पर लिया हो और हमारे पास रह कर ही वो हमारी हर गतिविधी पर बारीकी से नज़र रख रही हो।"

"हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बेवकूफी वो हर्गिज़ भी नहीं कर सकती जबकि उसे बखूबी अंदाज़ा हो कि पकड़े जाने पर उसके साथ साथ नैना और विराज का क्या हस्र हो सकता है। इस लिए इस गाॅव में वो किसी के घर में पनाह नहीं ले सकती।"

"इस गाॅव में न सही।" अजय सिंह बोला___"किसी ऐसे गाॅव में तो पनाह ले ही सकती है जो हमारे इस हल्दीपुर गाॅव के करीब भी हो और वो बड़ी आसानी से हमारी हर मूवमेन्ट को कवरप कर सके।"
"हाॅ ये हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"किसी दूसरे गाॅव में वो यकीनन रह रही है और हम पर बारीकी से नज़र रखे हुए है। ख़ैर छोंड़ो ये सब बातें, मैं ये कह रही हूॅ कि आज तुम्हारे ससुर जी आ रहे हैं।"

"क क्या???" अजय सिंह उरी तरह चौंका___"स ससुर जी? मतलब कि तुम्हारे पिता जगमोहन सिंह जी??"
"हाॅ डियर।" प्रतिमा ने सहसा खुश होते हुए कहा___"आज वर्षों बाद मैं अपने पिता जी से मिलूॅगी। मगर अजय मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा ही नहीं पाऊॅगी। तुम तो जानते हो कि मैने तुमसे शादी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर तथा उनसे हर रिश्ता तोड़ कर की थी। इतने वर्षों के बीच कभी भी मैने उनसे न मिलने की कोशिश की और ना ही कभी उनसे फोन पर बात करने की। ये एक अपराध बोझ है अजय जिसके चलते मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पिता का सामना कर सकूॅ।"

"पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।" अजय सिंह ने चकित भाव से कहा___"कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपनी बेटी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का विचार कैसे आया उनके मन में?"
"ये सब मेरी वजह से ही हुआ है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"दरअसल जब तुम्हें सीबीआई के वो लोग गिरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परेशान व घबरा गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैं तुम्हें सीबीआई की कैद से आज़ाद कराऊॅ? तब पहली बार मुझे अपने पिता का ख़याल आया। हाॅ अजय, तुम तो जातने हो कि मेरे पिता जी बहुत बड़े वकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अंडर में आने के बाद उनका मुवक्किल बाइज्ज़त बरी ही होता है। इस लिए मैने सोचा कि तुम्हें कानून की उस गिरफ्त से छुड़ाने के लिए मुझे अपने पिता से ही मदद लेनी चाहिए। मगर चूॅकि मैने उनसे अपने हारे संबंध वर्षों पहले ही तोड़ लिये इस लिए हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे बात करने की।"

"ओह।" अजय सिंह हैरत से बोला___"फिर क्या हुआ?"
अजय सिंह के पूछने पर प्रतिमा ने सारा किस्सा बता दिया उसे। ये भी कि कैसे उसके चक्कर खा कर गिरने पर शिवा ने रिऐक्ट किया जिसके तहत उसके पिता जी भी घबरा गए और फिर उन्होंने तुरंत यहाॅ आने के लिए कहा। उनके पूछने पर ही शिवा ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सुन कर अजय सिंह अजीब सी हालत में सोफे पर बैठा रह गया।

"ये तुमने अच्छा नहीं किया प्रतिमा।" फिर अजय सिंह मानो गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला___"मैं इस बात से दुखी नहीं हुआ हूॅ कि मेरे सुसर और तुम्हारे यहाॅ आ रहे हैं बल्कि दुखी इस बात पर हुआ हूॅ कि ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है। तुमें तो सब पता ही है डियर हमारे हालातों के बारे में। तुम्हारे पिता एक तेज़ तर्रार व क़ाबिल वकील हैं तथा उनका दिमाग़ तेज़ गति से काम करता है। इस लिए अगर इस हालातों के संबंध में कोई एक बात शुरू हुई तो समझ लो कि फिर उस बात से और भी बहुत सी बातें शुरू हो जाएॅगी। उस सूरत में हमारी हालत और भी ख़राब हो सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कि हमारी असलियत उनके सामने फ़ाश हो जाए?"

"तुम सच कह रहे हो अजय।" प्रतिमा को भी जैसे वस्तु- स्थिति का एहसास हुआ___"इस बारे में तो मैने सोचा ही नहीं था। सोचने का ख़याल ही नहीं आया अजय। हालात ही ऐसे थे कि मुझे मजबूर हो कर अपने पिता डी से बात करनी पड़ी और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह दिया। दूसरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि तुम आज वापस इस तरह आ जाओगे। वरना मैं अपने पिता को फोन ही नहीं करती।"

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।
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