non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उस वक्त दोपहर के एक या डेढ़ बज रहे थे जब अजय सिंह टैक्सी के द्वारा अपनी हवेली पहुॅचा था। उसका दिलो दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था। उसके अंदर इतना ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था कि अगर उसका बस चले तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दे मगर अफसोस वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। कुछ करे तो तब जब उसे पता हो कि करना किसके साथ है? और जिसके साथ करना भी है तो वो है कहाॅ???

नीलम और सोनम तो बारह बजे ही हवेली पहुॅच गई थीं। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन की बेटी को आज पहली बार ऑखों के सामने देख कर बेहद खुश भी हुई थी और थोड़ा दुखी भी। सोनम अपनी मौसी से इस तरह मिली थी जैसे वह उससे पहली बार नहीं बल्कि पहले भी मिल चुकी हो। शिवा तो अपनी मौसी की बेटी सोनम की खूबसूरती और उसके साॅचे में ढले जिस्म को देख कर आहें भरने लगा था। उसे अपनी मौसी की लड़की पहली नज़र में ही भा गई थी। उसका मन कर रहा था कि जाए और उसे अपनी बाहों में उठा कर सीधी बेड पर पटक कर उसके ऊपर चढ़ बैठे मगर ऐसा संभव नहीं था। प्रतिमा अपने बेटे की मनोदशा को तुरंत ही ताड़ गई थी, इस लिए उसे अकेले में ले जाकर समझाया था कि वो ऐसी कोई भी हरकत न करे जिससे उसके साथ साथ हम सबको बाद में पछताना पड़े। प्रतिमा के समझाने पर शिवा समझ तो गया था मगर ये तो वही जानता था कि बहुत देर तक वो प्रतिमा के समझाने पर रह नहीं पाएगा।

सफ़र की थकान के कारण नीलम व सोनम ने नहा धो कर थोड़ा बहुत खाना खाया और नीलम के कमरे में दोनों एक ही बेड पर सो गईं थी। उधर अजय सिंह टैक्सी से उतर कर टैक्सी वाले को उसका भाड़ा किराया दिया। यद्दपि उसके पास पैसे के नाम पर चवन्नी भी नहीं थी मगर जहाॅ से उसे छोंड़ा गया था वहाॅ से उसे इतना तो रुपया दे ही दिया गया था कि वो आराम से अपने घर पहुॅच जाए। उसका मोबाइल फोन भी उसे वापस लौटा दिया गया था। ये अलग बात थी कि उसके फोन से सिम कार्ड निकाल लिया गया था और फोन के कैन्टैक्ट लिस्ट से सारे फोन नंबर्स डिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि उसका मोबाइल फोन फिलहाल महज एक डमी बन कर रह गया था। ना तो वो किसी को फोन कर सकता था और ना ही उसके पास किसी का फोन आ सकता था। यही वजह थी कि अजय सिंह का दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था।

टैक्सी से जब अजय सिंह उतरा तो हवेली में तैनात उसके आदमी हैरान रह गए। भाग कर उसके पास आए और हाल अहवाल पूछने लगे। मगर भन्नाए हुए अजय सिंह ने सबको डाॅट डपट कर अपने पास से भगा दिया और पैर पटकते हुए मुख्य दरवाजे के पहुॅचा। दरवाजे को ज़ोर से लात मारी उसने। दरवाजा कदाचित अंदर से बंद नहीं था इसी लिए लात का ज़ोरदार प्रहार पड़ते ही उसके दोनो पल्ले खुलते चले गए। दरवाजे के खुलते ही अजय सिंह ज़मीन को रौंदते हुए अंदर की तरफ बढ़ गया।

उधर ड्राइंगरूम में बैठी प्रतिमा बाहर ज़ोर की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ी थी। अभी वह ये देखने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी सहसा उसे ठिठक जाना पड़ा। सामने से आते अजय सिंह पर नज़र पड़ते ही वह हैरत से बुत सी बन गई। जबकि अजय सिंह आते ही सोफे पर धम्म से लगभग गिर सा पड़ा। धम्म की आवाज़ से ही प्रतिमा की तंद्रा टूटी और वह फिरकिनी की मानिंद अपनी एड़ियों पर घूमी। सोफे पर पसरे अपने पति को अस्त ब्यस्त हालत में देख कर एक बार वो पुनः हैरान हुई फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और एकदम से मानो बदहवाश सी होकर अजय सिंह की तरफ तेज़ी से बढ़ी।

"अ...अजय।" अजय सिंह के पास पहुॅचते ही वह लरजते हुए स्वर में बोल पड़ी___"तु..तुम अ आ गए???"
प्रतिमा के इस तरह पूछने पर अजय सिंह कुछ न बोला बल्कि अपनी ऑखें बंद किये सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिकाए अधलेटा सा पसरा रहा। उसके कुछ न बोलने पर प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई। वो झट से अजय सिंह के बगल से बैठी और अजय सिंह के कंधे पर अपना एक हाॅथ रखते हुए बोली___"तुम कुछ बोलते क्यों नहीं अजय? तुम ठीक तो हो न? और...और इस तरह अचानक तुम वहाॅ से कैसे आ गए?"

प्रतिमा के दूबारा पूछने पर भी अजय सिंह कुछ न बोला। उसकी ये ख़ामोशी प्रतिमा की मानो जान लिए जा रही थी। उसका गला भर आया। आवाज़ भारी हो गई तथा ऑखों में ऑसू उमड़ आए।

"अजऽऽऽय।" फिर उसने रुॅधे हुए गले से किन्तु अजय सिंह को झकझोरते हुए लगभग चीख ही पड़ी___"क्या हो गया है तुम्हें? कुछ तो बोलो। तुम इस तरह यहाॅ कैसे आ गए? तुम तो सीबीआई की गिरफ्त में थे न फिर तुम यहाॅ कैसे? कहीं....कहीं तुम उनकी गिरफ्त से भाग कर तो नहीं आ गए हो? अगर ऐसा है तो ये तुमने ठीक नहीं किया अजय। कानून तुम्हें इसके लिए मुआफ़ नहीं करेगा। बल्कि इस तरह भाग कर आने से तुम्हें शख्त से शख्त सज़ा देगा।"

"मैं कहीं से भाग कर नहीं आया हूॅ प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा खीझते हुए कहा___"बल्कि मुझे उन लोगों ने खुद ही छोंड़ दिया है।"
"क..क..क्या????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी___"उन लोगों ने तुम्हें खद ही छोंड़ दिया? ऐसा कैसे हो सकता है? सीबीआई के वो लोग तुम्हें ऐसे कैसे छोंड़ सकते हैं? बात कुछ समझ में नहीं आई अजय। आख़िर ये क्या माज़रा है? क्या चक्कर है ये?"

"सच कहा प्रतिमा।" अजय सिंह अजीब भाव से कह उठा___"ये चक्कर ही तो है।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा चौंकी।
"सच्चाई सुनोगी तो तुम्हारे पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।" अजय सिंह ने कहा___"ये सीबीआई का जो मामला हुआ है न ये सब महज एक चाल थी मुझे किसी मकसद के तहत इस सबसे दूर करके कैद करने की।"

"ये क्या कह रहे तुम अजय?" प्रतिमा की के चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था___"ये सब एक चाल थी? पता नहीं क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम।"
"मैं अनाप शनाप नहीं बोल रहा प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा आवेश में आकर कहा___"यही सच है। जो सीबीआई वाले मुझे गिरफ्तार करने आए थे वो सब नकली थे। उनका सीबीआई से कोई ताल्लुक नहीं था। जबकि मैं और तुम सब यही समझे थे कि वो सब सीबीआई के ऑफिसर थे।"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने मुख से बेशाख्ता निकल गया___"इतना बड़ा धोखा। अगर वो सीबीआई के लोग नहीं थे तो फिर कौन थे वो? और वो लोग तुम्हें यहाॅ से पकड़ कर क्यों ले गए थे और कहाॅ ले गए थे? आख़िर ये सब करने के पीछे उनका क्या मकसद था? कहीं ये सब हमारी बेटी रितू ने तो नहीं करवाया?"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"ये काम रितू का नहीं है बल्कि ये सब उस हरामज़ादे विराज किया धरा था।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" प्रतिमा बुरी तरह चौंकी थी, बोली___"भला वो ये सब कैसे कर सकता है?"
"क्यों नहीं कर सकता?" अजय सिंह उल्टा प्रतिमा पर ही हवाल लेकर चढ़ बैठा___"तुम्हीं तो कहा करती थी न कि इस सबके पीछे अगर कोई हो सकता है तो वो है विराज। वही है जो हमारा अहित करना चाहता है क्योंकि हमने उसके साथ अत्याचार किया है?"

"हाॅ मगर।" प्रतिमा गड़बड़ा सी गई___"ये सब भी कर सकता है वो ये तो नामुमकिन सी बात है अजय।"
"ये सब उसी ने करवाया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"क्योंकि जिस जगह मुझे रखा गया था वो सब उसी का ज़िक्र कर रहे थे। मैं ये सोच सोच कर आश्चर्यचकित था कि उस नामुराद के ऐसे लोगों से संबंध कैसे हो सकते हैं। आख़िर वो कमीना इतने कम समय में ऐसा कौन सा सूरमा बन गया है जिसके इशारे पर उसका हर काम हो जाए?"

"तुम क्या कह रहे हो अजय मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।" प्रतिमा ने अपने बाल नोंच लेने वाले अंदाज़ से कहा था।
"कमाल की बात है।" अजय सिंह ने कहा___"अपने आपको दिमाग़ की जादूगरनी समझने वाली को आज मेरी ये बातें समझ में ही नहीं आ रहीं। ख़ैर, बात ये है ये जो कुछ भी हुआ है उसमें सिर्फ और सिर्फ उस गौरी के पिल्ले का ही हाॅथ है। मुझे ये नहीं समझ में आ रहा कि उस कमीने ने आख़िर किस मकसद के तहत मुझे दो दिन के लिए सीबीआई के नकली जाल में फॅसा कर कैद में रखा और फिर आज छोंड़ भी दिया।"

"ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है अजय।" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि उसने किस वजह से ऐसा किया होगा? हलाॅकि वो चाहता तो बड़ी आसानी अपना बदला तुम्हारी जान लेकर ले सकता था और तुम यकीनन कुछ नहीं कर सकते थे। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि उल्टा तुम्हें बिना कोई नुकसान पहुॅचाए छोंड़ भी दिया। ये ऐसी बात है अजय जो आसानी से हजम नहीं हो सकती। हम जिस चीज़ को बेतुकी और ना क़ाबिले ग़ौर बात समझ रहे हैं उसमें कुछ तो पेंच ज़रूर है। बेवजह तो औसने ये सब नहीं किया होगा। ज़रूर ये सब करके उसने अपना कोई अहम कार्य सिद्ध किया होगा। कोई ऐसा कार्य जो फिलहाल हमारी सोच क्या कल्पना से भी कोसों दूर है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में सच्चाई है।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबसे एक बात ये भी ज़ाहिर होती है कि वो अब भी यहीं है और शायद इस वक्त रितू के साथ ही है।"
"अच्छा ये बताओ।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"कि जो सीबीआई के लोग बन कर आए थे वो लोग तुम्हें लेकर कहाॅ गए थे?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता चल सका।" अजय सिंह ने हताश भाव से कहा था।
"क्या मतलब??" प्रतिमा पुनः बुरी तरह चौंकी थी।

"उन लोगों ने सब कुछ पहले से प्लान किया हुआ था प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"जब वो लोग मुझे यहाॅ से अपनी कार में बैठा कर ले जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से मुझे बेहोश कर दिया था और फिर जब मेरी ऑख खुली तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि मैं किस जगह आ गया हूॅ? वहाॅ जिस जगह पर मैं था वहाॅ एक कमरा था जो कि किसी फाइव स्टार होटल के कमरे से हर्गिज़ भी कम न था। कमरे में दूसरा कोई नहीं था। ऐसा नहीं था कि मैं वहाॅ पर कहीं आ जा नहीं सकता था। बल्कि कहीं भी आ जा सकता था मगर उस जगह से बाहर की दुनियाॅ में जाने का जैसे कोई रास्ता ही नहीं था। कमरे से बाहर जहाॅ भी गया हर तरफ ब्लैक कलर की वर्दी में नकाबपोश अपने हाथों में गन लिए तैनात थे। वो किसी से कोई बात नहीं करते थे। जो सीबीआई के ऑफिसर बन कर आए थे उनका कहीं पता ही नहीं था। मैं उन गनधारी नकाबपोशों से चीख चीख कर पूछता रहा कि मुझे यहाॅ किस लिए लाया गया है मगर कोई कुछ बोलता ही नहीं था। उस दिन तो सारा दिन और रात मैं पागलों की तरह ही उन सबके सामने चीखता चिल्लाता रहा। फिर जब मुझे लगा कि यहाॅ पर मेरे चीखने चिल्लाने का कोई असर नहीं होने वाला तो मैं ख़ामोश हो गया। इतना तो मुझे भी पता था कि वजह कोई भी हो वो मेरे सामने ज़रूर आएगी। इस लिए ये सोच कर मैं वापस कमरे में चला गया और अपने वहाॅ होने की वजह जानने का इन्तज़ार करने लगा। वहाॅ पर जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती वो मुझे मिल जाती थी। मैं आज़ाद तो था मगर फिर भी कैद ही था वहाॅ। मेरा मोबाइल फोन मेरे पास से गायब था। अतः मैं किसी अपने से कोई काॅटैक्ट भी नहीं कर सकता था।"

"ओह तो फिर आज तुम्हें उन लोगों ने कैसे छोंड़ दिया?" प्रतिमा ने पूछा___"क्या तुम्हें पता चला कि उन लोगों ने तुम्हें क्यों पकड़ा था? और सबसे बड़ी बात ये कि तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो सब विराज का किया धरा था?"

"आज ही पता चला।" अजय सिंह ने कहा___"मैं वहाॅ पर कमरे में रखे अलीशान बेड पर लेटा हुआ था कि तभी कमरे में दो गनधारी नकाबपोश आए और मैने पहली बार उनके मुख से उनकी आवाज़ सुनी। उनमें से एक ने कहा कि मैं बाहर आऊ। मुझसे मिलने उनके कुछ साहब लोग आए हैं। मैं उस गनधारी नकाबपोश की ये बात सुनकर जल्दी से बेड पर उठ बैठा। अड़तालीस घंटे में ये पहला अवसर था जब मुझे किसी से ये जानने का अवसर मिलने वाला था कि मुझे यहाॅ क्यों लाया गया है? अतः मैं उन दोनो गनधारियों के साथ कमरे से बाहर आ गया। बाहर लंबे चौड़े हाल के बीचो बीच एक मध्यम साइज़ की टेबल रखी थी तथा उसके चारो तरफ कुर्सियाॅ रखी हुई थी। मैने टेबल और कुर्सियाॅ उस हाल में पहली बार ही देखा था। टेबल के एक तरफ की चारों कुर्सियों पर एक एक कोटधारी आदमी बैठा था। मैं जब उनके पास पहुॅचा तो उनमें से एक ने मुझे अपने सामने बैठने का इशारा किया। ये वही लोग थे जो मुझे यहाॅ से सीबीआई ऑफिसर बन कर ले गए थे। सच कहूॅ तो उस वक्त उन चाओं को देख कर मुझे बेहद गुस्सा आया मगर मैंने फिर खुद पर बड़ी मुश्किल से काबू किया।

"कहो अजय सिंह।" उन चार में से एक ने बड़ी जानदार मुस्कान के साथ मुझसे कहा___"यहाॅ किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं हुई न तुम्हें?"
"मेरी परेशानी की अगर इतनी ही फिक्र होती तुम लोगों को।" मैने आवेशयुक्त भाव से कहा___"तो मुझे इस तरह धोखे से पकड़ कर नहीं लाते यहाॅ।"

"ओह आई सी।" उसने खेद प्रकट करते हुए कहा__"माफ़ करना अजय सिंह। हमें तुम्हारे साथ धोखे के रूप में वो वैसी ज्यादती करनी पड़ी। मगर इसमें भी हमारी कोई ग़लती नहीं थी डियर। दरअसल हमारे विराज सर का ही आदेश था हम तुम्हें इस प्रकार हवेली से गिरफ्तार करके यहाॅ ले आएॅ।"

"वि..विराज..सर???" मैं उसकी ये बात सुन कर एकदम से भौचक्का सा रह गया था।
"अरे तुम हमारे विराज सर को नहीं जानते क्या?" एक अन्य ने मुस्कुराते हुए कहा___"कमाल है अजय सिंह। तुम अपने भतीजे को ही नहीं जातने। ये तो बड़ी हैरत की बात है। जबकि हमारे विराज सर तुमसे इतना स्नेह व लगाव रखते हैं कि वो तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की तक़लीफ़ नहीं देना चाहते थे। उनका शख्त आदेश था कि तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की कोई परेशानी न होने पाए। तभी तो हमने उनके कहने पर तुम्हारे लिए यहाॅ फाइव स्टार होटल से भी बेहतर सुविधाएॅ मुहैया कराई थी।"

"तो तुम्हारा मतलब है कि ये सब तुमने विराज के आदेश पर किया है?" मैं मन ही मन हैरान था, किन्तु प्रत्यक्ष में कठोर भाव से पूछ रहा था___"मगर क्यों?"
"तुम्हारे इस क्यों का जवाब तो हमारे पास है ही नहीं अजय सिंह।" उस आदमी ने कहा___"हमने तो बस उतना ही किया है जितना कि विराज सर ने हमें करने के लिए कहा था। इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी ये तो वहीं बेहतर तरीके से बता सकते हैं तुम्हें।"

"अच्छा।" मैने कहा___"तो फिर बुलाओ उसे। मैं उससे पूछना चाहता हूॅ कि उसने क्या सोच कर ये सब किया है?"
"उन्हें यहाॅ बुलाने की हिम्मत तो हममें नहीं है।" एक अन्य ने कहा___"हाॅ मगर एक आदेश और आया है उनका हमारे लिए। वो ये कि तुम्हें बाइज्ज़त यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। इस लिए अब हम वही करने वाले हैं। यानी कि अब तुम्हें आज़ाद कर दिया जाएगा। मगर क्योंकि हम अपना हर काम सीक्रेट तरीके से करते हैं इस लिए तुम्हें पुनः बेहोश करना पड़ेगा हमें।"

मैं उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह हैरान रह गया। तभी किसी ने पीछे से मेरी नाॅक में कुछ लगा दिया। जैसे ही मैने नाॅक से साॅस ली उसके कुछ ही पलों बाद मैं बेहोशी के समंदर में डूबता चला गया। जब मेरी ऑख खुली तो मैं अब किसी दूसरी जगह पर खुद को मौजूद पाया। मेरे आस पास बड़े बड़े पेड़ पौधे लगे हुए थे। मैं ये देख कर पहले तो चौंका फिर उठ कर आस पास का जायजा लेने लगा। मैं ये देख कर उछल पड़ा कि मैं किसी जंगल के हिस्से पर पड़ा था। बाएॅ तरफ लगभग पचास या साठ गज की दूरी पर ही एक सड़क नज़र आ रही थी।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:04 PM

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