non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर विराज की तरफ!
रात हुई तो विराज और आदित्य ने थोड़ा बहुत खाना खाया। हलाॅकि खाना पीना वो लोग लेकर नहीं चले थे इस लिए एक स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो वहीं इन दोनो ने अपने लिए खाने की कुछ चीज़ें ले लिये थे और फिर ट्रेन में ही दोनो ने बैठ कर खा लिया था।

नीलम की मौजूदगी में मैने इतना ज़रूर किया कि अपनी शीट पर आदित्य को बैठा दिया था और आदित्य की शीट पर मैं बैठ गया था। इससे हुआ ये कि अब नीलम की तरफ मेरी पीठ हो गई थी। हलाॅकि इस तरफ बैठने से मेरी पीठ भी उसे दिखाई नहीं देनी थी। ख़ैर खाना पीना करके हम दोनो ही आराम से लेट कर सो गए थे। नींद भी ज़बरदस्त लगी थी क्योंकि हम दोनो लगातार यात्रा ही कर रहे थे।

रात के किसी प्रहर हमें शोर सा सुनाई दिया। ऐसा लगा जैसे कुछ लोग आपस में झगड़ा कर रहे थे। ये एसी का डिब्बा नहीं था। मैने जानबूझ कर एसी में टिकट बनवाने को नहीं कहा था जगदीश अंकल से। रिजर्वेशन वाले डिब्बे में भी कुछ लोग जनरल डिब्बे की भीड़ देख कर घुस आते थे। ख़ैर, उस शोर शराबे की वजह से हमारी नींद टूट गई और हमारी ऑखें खुल गई।

शोर शराबा मेरे पीछे की तरफ से सुनाई दे रहा था। आदित्य जैसे ही उठ कर अपनी शीट पर बैठा वैसे ही उसकी नज़र मेरे पीछे उस तरफ पड़ी जिस तरफ शोर हो रहा था। आदित्य ने देखा कि चार पाॅच लड़के मेरे पीछे की तरफ वाली शीट के पास फर्श पर खड़े थे और शीट पर बैठे हुए यात्रियों को अनाप शनाप बके जा रहे थे। उन लड़कों की आवाज़ों के बीच कुछ औरतों व लड़कियों की भी आवाज़ें आ रही थी। इस बीच मैं भी उठ कर अपनी शीट पर बैठ गया था। मैने ये सोच कर अपने पीछे की तरफ नहीं देखा कि कहीं नीलम की नज़र मुझ पर न पड़ जाए। किन्तु उस वक्त मैं चौंका जब नीलम की तेज़ तेज़ आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बस रोने ही वाली हो।

ये जान कर मेरे मनो मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। मुझे समझते देर न लगी कि उन लड़कों से नीलम तथा अन्य लोगों की कहा सुनी हो रही है। मुझे ये तो समझ न आया कि आख़िर बात क्या हुई है किन्तु इतना ज़रूर समझ गया कि नीलम इस तरह किसी से झगड़ा करने वाली लड़की नहीं है। उस हालत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि वो ट्रेन में अकेली सफर कर रही हो। मुझे लगा नीलम इस वक्त बेहद परेशान हालत में है। मेरे अंदर का भाई जाग गया। बात भले ही चाहे जो हो मगर मैं ये हर्गिज़ भी बरदास्त नहीं कर सकता था कि कोई ऐरा गैरा मेरी बहन को कुछ उल्टा सीधा कहे या उससे किसी तरह का झगड़ा करे।

मैने आदित्य को इशारा किया। आदित्य मेरा इशारा समझ गया। उसके बाद हम दोनो ही उस तरफ चल दिये। इस बीच मैने जल्दी से अपने मुख और नाक को रुमाल से ढॅक लिया था। कुछ ही पल में हम दोनो उन लड़कों के पास पहुॅच गए। मैने एक लड़के को हल्का सा दबाव देकर एक तरफ किया और शीट की तरफ देखने की कोशिश की। मैं देख कर चौंका कि नीलम अपनी शीट पर बैठी सिसक रही थी। उसके बगल से ही एक और लड़की बैठी हुई थी। उसकी हालत भी नीलम जैसी ही थी। मुझे समझ न आया कि नीलम और वो लड़की सिसक क्यों रही हैं? जबकि उन दोनो के बगल से एक औरत भी बैठी थी जिसके साथ एक दस बारह साल का लड़का था। नीलम की सामने की शीट पर दो आदमी व दो औरतें बैठी हुई थी। उनके चेहरों पर लगभग बारह बजे हुए थे।

"ओये कौन है बे तू?" सहसा उस लड़के ने मुझे धक्का देते हुए कहा जिसे दबाव देकर मैं अंदर शीट की तरफ देखने लगा था, बोला___"और तू मुझे एक तरफ करके अंदर कहाॅ घुसा आ रहा है? क्या तुझे भी ये दोनो लौंडियाॅ पसंद आ गई हैं?"

"पसंद तो आएॅगी ही दिनेश।" एक अन्य लड़के ने हॅस कर कहा___"आख़िर माल तो ज़बरदस्त ही है न।"
"अरे तो पहले हमें तो चखने दे भाई।" दिनेश नाम के उस लड़के ने कहा___"उसके बाद ये भी चख लेगा।"
"कैसे चख लेगा यार?" तीसरे लड़के ने कहा___"हम साले इतनी देर से इन मालों से कह रहे हैं कि बाथरूम चलो मगर ये हैं कि सुनती ही नहीं हैं हमारी बात।"

उन लड़कों की इन बातों से ही ज़ाहिर हो गया था कि माज़रा क्या है। मगर मैं हैरान इस बात पर था कि वहाॅ पर बैठे बाॅकी सब उन लड़कों की बददमीची सहन कैसे कर रहे थे? या फिर वो सब डर रहे थे कि ये लड़के कहीं उनकी औरतों या बेटियों को कुछ कहने न लगें। ये यो हद ही हो गई थी। सबको अपनी फिक्र थी, कोई ये नहीं सोच रहा था कि दूसरी लड़कियाॅ भी तो किसी की बहन बेटी होंगी। इस सबसे मेरा दिमाग़ बेहद ख़राब हो चुका था। मैने पलट कर आदित्य की तरफ देखा। वो मुझे देखते ही समझ गया कि क्या करना है।

"ओ भाई ज़रा बात तो सुन।" मैने अपनी आवाज़ बदलते हुए कहा दिनेश नाम के उस लड़के से कहा___"तेरे अगर और भी साथी इस ट्रेन में हों तो फोन करके बुला ले उन्हें। क्योंकि अब जो तुम लोगों के साथ होने वाला है उसके बाद तुम लोगों हास्पिटल पहुॅचाने वाला भी तो कोई होना चाहिए न।"


"ओये चिकने।" दिनेश से पहले ही उसका एक अन्य साथी बोल पड़ा___"ज्यादा हीरोपंती करने का शौक चढ़ा है क्या तेरे को? चल फूट ले इधर से वरना हम लोगों से पंगा लेने का अंजाम अच्छा नहीं होगा समझा? और हाॅ आपन के और भी छोकरे लोग इस ट्रेन में मौजूद हैं। इस लिए आपन एक ही बार तेरे से बोलेगा कि इधर से खिसक ले तू।"

"किसी ने सच ही कहा है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।" मैने गुस्से से उबलते हुए उस लड़के का कालर पकड़ा और ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया___"तुम जैसे गटर के कीड़ों को मसलना ही बेहतर होता है।"

मैने जैसे ही उस लड़के को अपनी तरफ खींचा तो एक अन्य हरकत में आ गया। अभी वो हरकत में आया ही था कि आदित्य ने धर लिया उसे। इधर मैने उस लड़के के चेहरे पर ज़ोर का पंच जड़ दिया। उनमें से किसी को भी इस सबकी उम्मीद नहीं थी। चेहरे पर ज़ोरदार पंच पड़ते ही उस लड़के की नाक की हड्डी टूट गई और भल्ल करके खून बहने लगा। वो बुरी तरह बिलबिलाते हुए अपनी नाक को अपने दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। अचानक हुए इस हमले से दो लड़के जो अभी खाली थे वो भी हरकत में आ गए। आस पास फर्श पर खड़े हुए लोग एकदम से उस जगह से दूर हटते चले गए।

आदित्य ने जिस लड़के को धरा था उसका एक हाॅथ पकड़ कर ज़ोर से उमेठ दिया। जिससे वो दर्द में चीखा। हाॅथ उमेठते ही आदित्य ने पीछे से अपने घुटने का वार उसके पिछवाड़े पर किया तो उसका सिर ऊपर की शीट पर लगे लोहे के पाइप से टकराया। उसके हलक से चीख निकल गई। इधर दो लड़को के हाथ में पलक झपकते ही जाने कहाॅ से चाकू प्रकट हो गया था। मतलब साफ था कि वो चारो पेशेवर अपराधी थे। मगर उन्हें क्या पता था कि आज उनका पाला उनसे भी बड़े खलीफा से पड़ गया था।

एक लड़के ने जैसे ही अपना चाकू वाला हाथ ऊपर हवा में उठा कर मुझ पर चलाया तो मैने उसके उस हाॅथ को एक हाॅथ से हवा में ही रोंका और दूसरे हाॅथ से उसकी कलाई पर कराट का वार किया जिससे उसके हाथ से चाकू छूट कर फर्श पर गिर गया। चाकू के गिरते ही मैने उसके पेट में ज़ोर की लात मारी तो वो झोंक में ही बाएॅ साइड के डंडे से टकरा कर फर्श पर चित्त गिर पड़ा। उधर ऐसा ही हाल आदित्य की तरफ भी था। कहने का मतलब ये कि दो मिनट के अंदर ही वो चारो लड़के ट्रेन के फर्श पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे और हम दोनो से रहम की भीख माॅगने लगे थे।

"जी तो करता है कि।" मैने खूंखार भाव से कहा__"जो घिनौना कर्म तुम लोगों ने किया है उसके लिए तुम सबके हाथ पैर तोड़ कर तुम सबके हाॅथों में दे दूॅ। मगर मैं यहाॅ पर ज्यादा बखेड़ा नहीं करना चाहता। इस लिए जितना जल्दी हो सके यहाॅ से दफा हो जाओ वरना ये भी सोच लेना कि जिस बखेड़े की अभी मैं बात कर रहा हूॅ उससे मैं डरता भी नहीं हूॅ।"

मेरी इस बात का असर फौरन ही हुआ। वो चारो बुरी तरह लड़खड़ाते हुए फर्श से उठे और नौ दो ग्यारह हो गए। उन चारों के जाते ही मैं वापस पलटा और नीलम की देखा तो चौंक गया। वो मुझे ही देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि सहसा वह अपनी जगह से उठी और बिजली की तरह दौड़ कर मुझसे लिपट गई।

"राऽऽज मेरे भाई।" फिर वो मुझसे लिपटी फूट फूट कर रोने लगी थी। उसकी इस क्रिया से जहाॅ मैं भौचक्का रह गया था वहीं शीट पर बैठी वो दूसरी लड़की भी हैरान रह गई थी। तभी मुझे ध्यान आया कि उन लड़कों से लड़ते वक्त जाने कब मेरे मुख से रुमाल निकल गया था। शायद यही वजह दी कि नीलम जान गई थी कि मैं वास्तव में कौन हूॅ।

"ओह राज।" मुझसे लिपटी नीलम रोते हुए कह रही थी___"तुम यहाॅ भी मेरी इज्ज़त बचाने के लिए पहुॅच गए। इतने अच्छे और इतने महान कैसे हो सकते हो तुम? ये सच है कि अगर तुम नहीं होते तो कदाचित वो लड़के मुझे और सोनम दीदी को अपनी उन अश्लील बातों से ही मार देते।"

"बस चुप हो जाओ।" मैने उसे खुद से अलग कर उसके चेहरे को अपने दोनो हाॅथ की हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"कुछ नहीं होता। मैं जब तक ज़िंदा हूॅ तुम्हारा कीई भी बुरा नहीं कर सकता।"

मेरी ये बात सुन कर नीलम एकटक मेरी ऑखों में देखने लगी। कुछ इस तरह जैसे मेरी ऑखों में कुछ तलाश कर रही हो। आस पास मौजूद लोग हमारी तरफ ऑखें फाड़े देख रहे थे। मुझे ये सब बड़ा अजीब सा लगने लगा।

"जाओ अब अपनी शीट पर बैठ जाओ।" मैंने सहसा गंभीर भाव से कहा___"सब लोग अजीब तरह से इधर ही देख रहे हैं।"
"देखने दो राज।" कहने के साथ ही नीलम पुनः मुझसे छुपक गई, फिर बोली___"मुझे किसी की कोई परवाह नहीं। मैं बस इतना जानती हूॅ कि मैं ऐसे शख्स की पनाहों में हूॅ जिसना मेरी अस्मत की दो दो बार रक्षा की है। इस पनाह में आकर मुझे ऐसा एहसास हो रहा है मेरे भाई जैसे ये जगह मेरे लिए दुनियाॅ की सबसे महफूज़ और सबसे सुंदर जगह है। राज, मुझे अपनी इस पनाह से अब कभी जुदा न करना।"

"हाॅ बाबा नहीं करूॅगा।" मैने नीलम को खुद से अलग करके कहा___"अब जाओ अपनी शीट पर बैठ जाओ। और हाॅ मैं अगली शीट पर ही हूॅ। अगर किसी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे आवाज़ लगा देना।"

"तुम भी मेरे पास ही बैठ जाओ न राज।" नीलम ने किसी बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा___"या फिर ऐसा करो कि मुझे भी अपने पास बैठा लो। मैं तुम्हारे पास ही रहना चाहती हूॅ। प्लीज मेरी इतनी सी बात मान जाओ न।"

नीलम की इस बात से मैं एकदम से उसकी तरफ देखता रह गया। फिर मैने चेहरा घुमा कर आदित्य की तरफ देखा और सामने शीट पर बैठी सोनम की तरफ भी। दोनो मुझे ही देख रहे थे। मुझे समझ न आया कि अब मैं क्या करूॅ?

"तुम अपनी सोनम दीदी को अकेला छोंड़ कर कैसे मेरे पास बैठ सकती हो?" मैने कहा___"और उधर मेरे साथ मेरा दोस्त आदित्य भी तो है। मैं उसे अकेला छोंड़ कर तुम्हारे पास भला कैसे बैठ जाऊॅगा? इस लिए ये बेकार की ज़िद छोंड़ो और अपनी शीट पर बैठ जाओ। मैं पास में ही तो हूॅ।"

"हाॅ लेकिन मुझे तब भी तुम्हारे पास ही बैठना है।" नीलम ने बुरा सा मुह बना लिया___"अपने दोस्त से कह दो कि यहाॅ मेरी शीट पर सोनम दीदी के साथ बैठ जाएॅ।"
"ये कैसी ज़िद है नीलम?" मैने हैरान___"अगर सोनम दीदी को इस बात से ऐतराज़ हुआ तो?"

मेरी बात सुन कर नीलम ने झट से पलट कर सोनम की तरफ देखा और फिर कहा___"दीदी, क्या आपको इनके यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है?"
"क क्या मतलब??" नीलम के द्वारा एकाएक ही इस तरह पूछने पर सोनम लगभग हड़बड़ा गई थी।
"मैं ये पूछ रही हूॅ आपसे।" नीलम ने मानो अपने वाक्य को दोहराया___"कि क्या आपको राज के दोस्त के यहाॅ पर बैठने से ऐतराज़ है?"

सोनम ने नीलम की इस बात पर बड़े अजीब भाव से उसकी तरफ देखा। नीलम को देखने के बाद मेरी तरफ और फिर आदित्य की तरफ। सबको देखने के बाद पुनः नीलम की तरफ देखते हुए कहा___"अगर तू यही चाहती है तो ठीक है। मुझे कीई ऐतराज़ नहीं है इनके यहाॅ बैठ जाने से।"

"ओह थैंक्यू सो मच दीदी।" नीलम ने खुश होकर कहा___"आप सच में बहुत अच्छी हैं।"
"चल चल अब मस्का मत लगा।" सोनम ने कहा___"जा बैठ जा राज के पास। मगर उसे परेशान मत करना ज्यादा।"
"ओ हैलो।" मैं एकदम से बोल पड़ा___"कोई मेरे दोस्त से भी जानना चाहेगा कि उसे यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है कि नहीं?"
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