non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर हवेली में!
सुबह से दोपहर और दोपहर से अब शाम होने वाली थी। प्रतिमा अपने कमरे में बेड पर पड़ी हुई थी। सारा दिन उसने इसी सोच विचार में गुज़ार दिया था कि वो अपने बाप से कैसे बात करे? हलाॅकि इस बीच उसने मुम्बई में अपनी बड़ी बहन से फोन पर अपने बाप जगमोहन सिंह का मोबाइल नंबर ले लिया था। उसकी बहन इस बात से हैरान भी हुई थी। उसके पूछने पर प्रतिमा ने उसे सारी बातें बता दी थी कुछ बातों को छोंड़ कर। किन्तु अपने बाप का मोबाइल नंबर लेने के बाद भी प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपने पिता को फोन लगाए।

उसकी इस हालत से शिवा भी परेशान था। उसने उन आदमियों का गेस्ट हाउस में रहने का इंतजाम भी कर दिया था। चिंतित व परेशान तो वो खुद भी था अपने बाप के लिए मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद ऐसा क्या करे जिससे सारी समस्याएॅ खत्म हो जाएॅ।

इस वक्त भी वो अपनी माॅ के कमरे में ही आया हुआ था और कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर बैठा हुआ था। उसकी नज़रें अपनी माॅ के मुरझाए हुए चेहरे पर केन्द्रित थीं। उसे इस बात से तक़लीफ भी हो रही थी कि वो कुछ कर नहीं पा रहा था। उसे आज समझ आ रहा था कि खुद कोई काम करना कितना मुश्किल होता है। आज तक तो वह बनी बनाई जलेबी ही खा रहा था। मगर जब खुद ही जलेबी बनाने का नंबर आया तो उसका दिलो दिमाग़ जैसे कुंद सा पड़ गया था। उसे पहली बार लगा कि बेबसी क्या होती है? सब कुछ होते हुए भी कुछ न कर पाना किसे कहते हैं?

"ऐसे कब तक हताश बैठी रहेंगी माॅम?" फिर उसने प्रतिमा को देखते हुए ही कहा___"ये तो आपको भी पता है कि हम अगर कुछ करना भी चाहें तो नहीं कर सकते। इस लिए अगर नाना जी के द्वारा हमारी समस्या का समाधान हो सकता है तो क्यों नहीं बात करती आप उनसे? दोपहर से देख रहा हूॅ मैं आपको। आप इसी तरह गहरी सोच में डूबी बैठी हुई हैं। इस तरह भला कब तक बैठी रहेंगी आप? आप जानती हैं कि डैड को सीबीआई के चंगुल से निकालना कितना ज़रूरी है। डैड के बिजनेस से संबंधित साथियों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए भेज दिये हैं। अब उनको हम यूॅ ही तो चुपचाप यहाॅ नहीं बैठाए रह सकते न? इस लिए माॅम आप अपने दिमाग़ से सारी बातों को निकालिए और नाना जी को फोन लगा कर उनसे बात कीजिए।"

"कैसे फोन लगा दूॅ बेटा?" प्रतिमा ने सहसा हताश भाव से कहा___"और किस मुह से फोन लगाऊॅ अपने बाप को?"
"क्या मतलब माॅम??" शिवा चकराया।
"तुम इस सब को जितना आसान समझते हो न वो इतना आसान नहीं है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा सोचो कि अपने बाप से संबंध तोड़े मुझे कितने साल हो गए। अपनी खुशी व अपने स्वार्थ के लिए मैने अपने उस पिता को त्याग दिया था जिनका इस दुनियाॅ में हम दोनो बहनों के सिवा दूसरा और कोई नहीं था। मैं ही सबसे ज्यादा अपने पिता की लाडली थी और मैने ही उन्हें सबसे ज्यादा दुख दिया और निराश भी किया। आज मुझे इस बात का बखूबी एहसास है बेटा कि अपनी औलाद की बेरुखी के चलते एक बाप ने आज तक कितनी तक़लीफ़ और कितना दुख सहा होगा। ये सवाल तो उठेगा ही बेटा कि इसके पहले मुझे अपने बाप की याद क्यों नहीं आई? इसके पहले मैने क्यों ये जानना भी ज़रूरी नहीं समझा कि जगमोहन सिंह नाम का कोई ब्यक्ति जो कि मेरा बाप है वो ज़िंदा भी है या कि मर गया है? आज अगर मुझ पर ये मुसीबत न आती तो ज़ाहिर है कि आइंदा भी मैं अपने बाप से बात करने के बारे में सोचती भी नहीं। ये ऐसी बात है बेटा जिसकी वजह से मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही कि मैं अपने बाप को फोन लगा कर उससे बात कर सकूॅ। जबकि इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी समस्या के बारे में जानकर मेरा बाप मेरी मदद करने से हर्गिज़ भी इंकार नहीं करेगा।"

"ये सच है माॅम कि आपने अपने पिता जी से बात न करके अब तक बहुत बड़ी भूल ही की है।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"मगर ये भी सच है कि इस बारे में सोचते रहने से भी क्या होगा? वो सब अपनी जगह से गायब तो नहीं हो जाएगा। भूल इंसान से ही होती है, आपसे भी हुई है। भले ही आपकी वो भूल माफ़ी के लायक हो या ना हो। मगर किसी भी भूल या अपराध के चलते यूॅ चुप तो नहीं बैठे रहा जा सकता। उसके लिए सबसे पहले अपने अपराधों के लिए नाना जी से माफ़ी माॅगनी होगी आपको। वो जो भी इसके लिए सज़ा दें उसे आपको स्वीकार करना ही पड़ेगा। हलाॅकि मुझे ऐसा लगता है कि नाना जी आपको कोई सज़ा देंगे ही नहीं। मगर औपचारिकता तो करनी ही पड़ेगी आपको। उन्हें भी इस बात का बोध होगा कि चलो मुसीबत में ही सही किन्तु उनकी बेटी को उनका ख़याल तो आया। बस, उसके बाद तो सब कुछ आसान ही हो जाना है माॅम। इस लिए मैं तो यही कहूॅगा कि आप ये सब सोचना छोंड़िये और नाना जी को हिम्मत बाॅध कर फोन लगाइये।"
प्रतिमा अपने बेटे शिवा की इस सूझ बूझ भरी बातें सुन कर चकित रह गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा ऐसी समझदारी भरी बातें भी कर सकता है। मगर चूॅकि शिवा की बातें न्यायपूर्ण व तर्कसंगत थी इस लिए उसे भी इस बात का एहसास हुआ कि इस तरह सोचते रहने से भला क्या होगा? आख़िर बिना फोन किये अथवा बिना बात किये किसी भी समस्या का समाधान तो होने वाला नहीं है। उसके लिए शारीरिक और मानसिक कर्म तो करना ही पड़ेगा।

"तुमने बिलकुल ठीक कहा बेटे।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जो हो गया और जो कुछ मैने किया है उसका सामना तो मुझे करना ही पड़ेगा। अतः मैं अब ज़रूर अपने पिता जी को फोन लगाऊॅगी। उनसे अपने किये की माफ़ी भी मागूॅगी। उनसे कहूॅगी कि अपनी बेटी की इस संगीन भूल को हो सके तो माफ कर दें और अपनी कृपा मुझ पर बरसा दें।"

"ये हुई न बात।" शिवा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"मुझे यकीन है माॅम कि नाना जी आपको कुछ नहीं कहेंगे। दुख तो होगा उन्हें मगर उससे भी ज्यादा खुशी भी होगी उन्हें कि उनकी लाडली बेटी ने आख़िर उन्हें याद करके फोन तो किया।"

"तेरे मुह में घी शक्कर हो बेटा।" प्रतिमा ने प्रसन्नतापूर्ण भाव से कहा___"ईश्वर करे तू जैसा कह रहा है वैसा ही हो।"
"ऐसा ही होगा माॅम।" शिवा ने जोशीले अंदाज़ के साथ कहा___"आप बिलकुल भी इस सबकी चिंता न करें। बस मोबाइल निकालिये और लगा दीजिए नाना जी को फोन।"

प्रतिमा ने अपने बेटे के उस चेहरे को कुछ देर तक देखा जो इस वक्त हज़ार हज़ार वाॅट के बल्बों की तरह रोशन था। फिर बेड के सिरहाने पर ही रखे अपने मोबाइल को एक हाथ से उठाया और अपने पिता का नंबर ढूॅढ़ कर काॅपते हाॅथों से उसे डायल कर दिया। काल लगाते ही प्रतिमा के हृदय की गति असाधारण रूप से तेज़ हो गई। दिलो दिमाग़ में एक अजीब सा एहसास मानो ताण्डव सा करने लगा। मन में एक अंजाना सा भय अपने पाॅव पसारने लगा। उधर काल लगाते ही रिंग जाने की आवाज़ प्रतिमा के कानों में सुनाई देने लगी। उसकी नज़र जब शिवा पर पड़ी तो शिवा को मोबाइल का स्पीकर ऑन करने का इशारा करते हुए पाया। प्रतिमा ने हड़बड़ा कर जल्दी से मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया। तभी,,,,

"यस जगमोहन सिंह स्पीकिंग हियर।" उधर से बहुत ही खुर्राटदार आवाज़ उभरी। प्रतिमा को उस आवाज़ से ही ऐसा लगा जैसे उसकी हवा शंट हो गई हो। प्रत्युत्तर में उसके मुख से कोई लफ्ज़ न फूट सका। जबकि,

"हैलो हू इज देयर?" जगमोहन की आवाज़ पुनः उभरी।
"पि..पिता...जी।" प्रतिमा ने बहुत हिम्मत करके आख़िर टूटे हुए शब्दों से कह ही दिया___"म..मैं आ..आपकी बेटी प्रतिमा बोल..रही हूॅ।"

प्रतिमा की इस बात से उस तरफ सन्नाटा सा छा गया। जबकि उधर के छा गए इस सन्नाटे ने प्रतिमा की हृदय गति को मानो रोंक सा दिया। उसके मनो मस्तिष्क में तरह तरह की आशंकाएॅ पल भर में उत्पन्न हो गईं।

"आ..आपने..सुना पिता जी??" प्रतिमा ने उस तरफ की ख़ामोशी से भयभीत होकर पुनः लरज़ते हुए स्वर में कहा___"मैं..आपकी बेटी प्रतिमा बोल रही हूॅ।"
"हाॅ सुन तो लिया है मैने।" उधर से जगमोहन का अजीब सा अंदाज़ झलका___"मगर सोच रहा हूॅ कि ऐसा कैसे हो सकता है और क्यों हो सकता है?"

"ज जी मैं कुछ समझी नहीं पिता जी।" प्रतिमा का मनो मस्तिष्क जैसे चकरा सा गया।
"समझने की ज़रूरत भी क्या है तुम्हें?" उधर से जगमोहन के लहजे में एकाएक ही जैसे शिकायत और नाराज़गी के भाव एक साथ घुल मिल गए थे___"जब समझने का वक्त था तो तुमने उस वक्त बेहतर तरीके समझ तो लिया ही था। अब और कुछ समझने की भला तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ गई?"

"मु मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी।" प्रतिमा की ऑखों से सहसा ऑसू छलक पड़े, उसकी आवाज़ एकदम से भारी हो गई, बोली___"मैने आपका बहुत दिल दुखाया है। जबकि मुझे पता है कि बचपन से लेकर युवा अवस्था तक आपने मेरी हर इच्छा को ऑख बंद करके पूरी की थी। बदले में मैने आपको दुख तक़लीफ़ और रुसवाई के सिवा कुछ भी नहीं दिया।"

"अरे ये क्या???" जगमोहन का ऐसा स्वर उभरा जैसे उसे प्रतिमा की इस बात पर ज़रा भी यकीन न आया हो। अतः बोला___"ये मैं क्या सुन रहा हूॅ भई? आज मेरी बेटी के मुख से इस लहजे में ऐसी बातें निकल रही हैं जिन बातों का मेरी बेटी के मुख से निकलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। सबसे पहले मुझे ये बता कि तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

प्रतिमा कुछ बोल न सकी। अपने पिता की इन बातों में चुपे तंज को समझ कर उसकी रुलाई फूट गई। उसे अपने पिता की इन तंजपूर्ण बातों का ज़रा भी बुरा नहीं लगा था। बल्कि रुलाई तो उसकी इस बात पर फूटी थी आज उसका वही बाप उससे इस लहजे में बात कर रहा था जो बाप इसके पहले उससे सिर्फ प्यार से बातें करता था। बिना माॅ की थी दोनों बहनें। मगर उस बाप नें माॅ बनकर भी अपनी बेटियों की परवरिश की थी।उसने दूसरी शादी नहीं की, बल्कि पना सम्पूर्ण जीवन और अपनी सम्पूर्ण खुशियाॅ अपनी बेटियों पर कुर्बान कर दिया था। जगमोहन अपनी दोनो बेटियों को जी जान से चाहता था मगर उसकी जान तो जैसे उसकी छोटी बेटी प्रतिमा पर बसती थी। इसका कारण ये था कि प्रतिमा बिलकुल अपनी माॅ पर गई थी। मगर प्रतिमा पर जिसकी जान बसती थी आज वही बाप अपनी बेटी से तंजपूर्ण बातें कर रहा था। प्रतिमा को इस बात का एहसास था कि उसके बाप का ये तंज दरअसल उसके अंदर छुपे दर्द रूपी गुबार का महज एक मामूली सा हिस्सा है।

"ये क्या बेटा?" उधर से जगमोहन का स्वर एकदम से भारी सा हो गया___"अपने बाप के अंदर छिपे दर्द रूपी इस गुबार को क्या ज़रा सा भी नहीं निकलने देना चाहती तू? इसे निकल जाने देती तो कदाचित दिल का दर्द कुछ कम हो जाता। मगर ख़ैर, जाने दे। मैं तो ख्वाब में भी तुझे रुलाने का सोच नहीं सकता, ये तो फिर भी हक़ीक़त है।"

प्रतिमा का हृदय बुरी तरह काॅप कर रह गया। वो ये सोच कर बुरी तरह फफक फफक कर रो पड़ी कि उसके बाप का दिल कितना विसाल है। अपने अंदर छुपे असहनीय दर्द के बावजूद वह अपनी बेटी को रुलाना नहीं चाहता। बाप की इस महानता ने प्रतिमा को इतना छोटा और मामूली बना कर रख दिया कि उसे अपने आप से एकाएक घृणा सी होने लगी। उसकी ऑखों के सामने पल भर में वो सारे मंज़र घूम गए जो अब तक उसने किया था और उस मंज़र को देखते ही प्रतिमा को लगा जैसे दुनियाॅ में उससे बड़ा कोई पापी नहीं है। प्रतिमा का जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें पाताल तक समाती चली जाए। मगर हाए रे किस्मय! ऐसा भी नहीं हो सकता था। उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का इतना भयंकर ज्वारभाॅटा मचल उठा कि उसे लगा कि कहीं उसका दिल उसका सीना फाड़ कर बाहर न उछल पड़े। अगले ही पल उसे ज़ोर का चक्कर आया और वह बेड पर एक तरफ गिर गई।

"माॅऽऽऽम।" शिवा जो एकटक प्रतिमा को ही देख रहा था वो अपनी माॅ को इस तरह चक्कर खा कर गिरते देख बुरी तरह चीखते हुए सोफे से उठ कर प्रतिमा की तरफ लपका था, बदहवाश सा प्रतिमा के चेहरे को थपथपाते हुए बोला___"क्या हुआ माॅम? आप ठीक तो हैं न? प्लीज बताइये न माॅम...क्या हो गया आपको? प पानी..पानी स सविता ऑटी...कहाॅ हैं आप? प्लीज जल्दी से पानी लाइये। डाॅक्टर को बुलाईये।"

शिवा बुरी तरह घबरा गया था और उसी घबराहट में चीखे जा रहा था। वहीं बेड पर ही पड़े प्रतिमा के मोबाइल से भी जगमोहन की घबराई हुई आवाज़ गूॅज रही थी। वो उधर से पूछे जा रहा था___"क्या हुआ बेटी? तू ठीक तो है न? तू चिंता मत कर मेरी बेटी। मैं तुझसे ज़रा सा भी नाराज़ या गुस्सा नहीं हूॅ। अरे तू तो मेरी लाडली बेटी है न।"

उधर शिवा के चिल्लाने का असर जल्द ही हुआ था। सविता जो कि नौकरानी थी वो तुरंत ही हाॅथ में पानी का ग्लास लिए भागते हुए आई। वो खुद भी बुरी तरह घबराई हुई लग रही थी।

"शिवा बेटे क्या हुआ है मालकिन को?" सविता ने पानी का ख्लास शिवा को पकड़ाते हुए बोली थी।
"पता नहीं ऑटी।" शिवा ने दुखी भाव से कहा___"माॅम तो नाना जी से फोन पर बातें कर रही थी। फिर जाने क्या हुआ इन्हें कि चक्कर खा कर बेड पर गिर गई हैं। आप प्लीज जल्दी से डाक्टर को फोन कीजिए और उनसे कहिए कि वो दो मिनट के भीतर यहाॅ आ जाएॅ।"

"ठीह है बेटा।" सविता ने कहा___"मैं अभी डाक्टर साहब को फोन लगाती हूॅ।" ये कह कर सविता वहाॅ से चली गई। जबकि इधर कमरे में मोबाइल में से गूॅजती जगमोहन की आवाज़ पर सहसा शिवा का ध्यान गया। उसने लपक कर मोबाइल उठा लिया।

"नाना जी मैं शिवा बोल रहा हूॅ।" फिर शिवा ने सीघ्रता से कहा___"देखिए न माॅम को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रही हैं। ऐसा क्या कह दिया है आपने जिसकी वजह से मेरी माॅम की ये हालत हो गई है?"
"ब बेटा मैने तो ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा था।" उधर से जगमोहन का भारी स्वर उभरा___"मगर तुम चिंता मत करना बेटे। तुम्हारी माॅ को बस चक्कर आया हुआ है और कुछ नहीं। डाक्टर आएगा वो अच्छे से चेकअप कर लेगा। तुम मुझे बताओ कि कहाॅ से बोल रहे हो? मैं सारे काम धाम छोंड़ कर अभी यहाॅ से तुम लोगों के पास आ रहा हूॅ।"

"नाना जी मैं जिला गुनगुन के हल्दीपुर गाॅव से बोल रहा हूॅ।" शिवा ने मन ही मन खुश होते हुए कहा था___"आप जब यहाॅ पहुॅचेंगे तो किसी से भी पूछ लीजिएगा कि ठाकुर साहब की हवेली जाना है। बस कोई न कोई आपको हवेली तक छोंड़ने ज़रूर आ जाएगा आपके साथ।"
"ओह ठीक है बेटा।" उधर से जगमोहन ने कहा___"बस तुम अपनी माॅ का अच्छे से ख़याल रखना। मैं कल तक तुम्हारे पास हर हालत में पहुॅच जाऊॅगा।"

इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने काल को कट कर दिया। जबकि शिवा के होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने पलट कर प्रतिमा को देखा और ग्लास में भरे पानी को अपनी हथेली में लेकर प्रतिमा के चेहरे पर छिड़कना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में प्रतिमा को होश आ गया। उसने पलकों को लपलपाते हुए अपनी ऑखें खोल दी। शिवा ने उसे बेड पर अच्छे से लिटाया और बेड के किनारे पर ही बैठ गये।

"पि पिता जी।" होश में आते ही प्रतिमा दुखी भाव से कह उठी थी।
"डोन्ट वरी माॅम।" शिवा ने प्रतिमा के हाथ को पकड़ कर हल्का सा दबाया___"इवरीथिंग इज अब्सोल्यूटली फाइन एण्ड फार काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन आपके पिता जी कल यहाॅ आ जाएॅगे।"

"क्याऽऽ???" शिवा की बात सुन कर प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी थी।
"यस माॅम।" शिवा ने मुस्कुराते हुए कहा___"एण्ड यू नो व्हाट आपके इस चक्कर ने कमाल कर दिया।"
"क्या मतलब???" प्रतिमा हैरान।
"मतलब ये कि जो चीज़ बातों में नहीं हो सकती थी वो चीज़ आपके इस चक्कर से हो गई।" शिवा ने उत्साहित भाव से कहा___"क्या सही समय पर आपको चक्कर आया माॅम।"

"ये तू क्या बकवास कर रहा है??" प्रतिमा के चेहरे पर एकाएक शख्त भाव उभर आए___"ये सब तुझे मज़ाक लग रहा है? तुझे मेरे और मेरे पिता की भावनाओं का ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ? कैसा बेटा है तू मेरा? तुझे इस सब में भी एक चाल नज़र आई? मेरा यू चक्कर खाकर गिर जाना भी तुझे किसी कामयाबी का हिस्सा नज़र आया? वाह बेटा वाह...आज तूने साबित कर दिया कि तू सिर्फ और सिर्फ अपने बाप पर गया है। तेरे लिए किसी के जज़्बात किसी के दुख दर्द कोई मायने नहीं रखते। आज अगर मुझे चक्कर की वजह से दिल का दौरा पड़ जाता तब भी शायद तुझे और तेरे बाप को कोई फर्क़ नहीं पड़ता।"

"म माॅम।" शिवा बुरी तरह से झेंपते हुए बोला___"ये आप क्या कह रही हैं?"
"शटअप।" प्रतिमा ज़ोर से चीखी थी। उसकी ऑखों से एकाएक ऑसू बह चले___"क्या नहीं किया मैने और क्या नहीं दिया मैने तुम दोनो बाप बेटों को? मगर मेरे त्याग और बलिदान का कोई मोल नहीं है तुम दोनो की नज़र में। मैने वो काम भी किया जिसके लिए कोई भी भारतीय औरत किसी भी सूरत में तैयार नहीं हो सकती। मैने अपने साथ साथ अपनी आत्मा तक को जहन्नुम में झोंक दिया मगर उसका भी कोई मोल नहीं तुम लोगों की नज़र में। अभी तक तो नहीं मगर अब एहसास हो रहा है कि मेरे कर्मों की सज़ा मुझे मिलनी शुरू हो गई है।"

"आई एम स्वारी माॅम।" शिवा ने सिर झुकाते हुए कहा___"मेरा वो मतलब हरगिज़ भी नहीं था जो आप समझ बैठी हैं। मैं तो.....
"बस।" प्रतिमा ने अपना दाहिना हाथ उठा कर अपने पंजे से उसे रुकने का संकेत देते हुए कहा___"कुछ भी सफाई देने की ज़रूरत नहीं है। मैं कोई बच्ची नहीं हूॅ जिसे किसी भी तरह की बातों से बहला फुसला दिया जाए। मेरे सीने में भी एक दिल है जिसमें प्यार मोहब्बत और ममता का सागर उछाल मारता है। मगर तूने और तेरे बाप ने कभी उसकी कद्र नहीं की।"

"आप बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"जबकि मैं क़सम खा कर कहता हूॅ कि मेरे कहने का वो मतलब नहीं था। हाॅ मैं ये मानता हूॅ कि मैंने वो सब उस समय कह दिया जबकि हालात वैसे नहीं थे। इसी लिए मैं आपसे उसके लिए माफ़ी भी माॅग रहा हूॅ। और दूसरी बात मुझे पहली नज़र में यही लगा कि आपने चक्कर खा कर गिरने का नाटक किया है। इस लिए आपके नाटक को ज़ारी रखने के लिए मैं भी ज़ोर से चीखते हुए आपके पास आकर वो सब आपसे कहने लगा था। क्योंकि ये तो मुझे पता ही था कि मोबाइल चालू हालत में है और नाना जी को वो सब कुछ साफ साफ सुनाई देगा जो कुछ हम यहाॅ करेंगे और ऐसा हुआ भी। तभी तो जब मैने देखा कि आपके चक्कर खाने से उधर नाना जी भी चिंतित व परेशान हो उठे हैं तो मैने जल्दी से मोबाइल उठा कर उनसे बात की थी और उन्हें आपके बारे में सब कुछ बताया था। उसके बाद उन्होंने यहाॅ आने के लिए कहा और यहाॅ का पता पूछा मुझसे तो मैने बता दिया। बस, यही हुआ था। उसके बाद मुझे लगा कि नाटक खत्म हो गया है तो मैने आपके चेहरे पर पानी छिड़क कर आपको होश में ले आया और आपसे वो सब कहा। मगर आपने तो कुछ और ही मुझे सुना दिया।"

"तभी तो कहती हूॅ कि तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है।" प्रतिमा ने दुखी भाव से कहा__"अगर होता तो उसी वक्त समझ जाते कि वो कोई नाटक नहीं बल्कि हक़ीक़त था। तुम्हें समझना चाहिए था कि वर्षों की बिछड़ी एक बेटी अपने बाप से बात कर रही थी। उस वक्त बाप बेटी के दिलों में भावनाओं का कैसा ज्वार भाॅटा ताण्डव कर रहा होगा? ये उन प्रबल भावनाओ का ही असर था कि मेरा दिल उन भीषण जज़्बातों को सहन न कर पाया और मैं चक्कर खा कर गिर गई थी। मगर, जैसा कि मैने कहा तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है। तभी तो मेरी उस हालत को भी नाटक समझ लिया।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए माॅम।" शिवा ने सहसा भारी लहजे में कहा___"मुझसे सच में बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मगर आइंदा ऐसा नहीं होगा माॅम, ये मेरा वादा है आपसे।

आप तो जानती हैं कि आपकी अहमियत मेरी लाइफ में कितनी है। मैं ऐसा कोई काम कर ही नहीं सकता जिससे आपके दिल को ठेस पहुॅचे। बस एक बार माफ़ कर दीजिए न।"

प्रतिमा ने इस वक्त शिवा के चेहरे पर उभरे हुए मासूम से भावों को देखा तो सहसा उसकी ममता जाग गई। उसने तुरंत ही शिवा को पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया और कस कर अपने सीने से भींच लिया। तभी किसी के आने की आहट से दोनो ही अलग हुए। कुछ ही पलों में सविता ने कमरेएं प्रवेश किया। उसने बताया कि डाक्टर साहब आ गए हैं। सविता की बात सुन कर शिवा बेड से उठ कर कमरे से बाहर की तरफ चला गया। थोड़ी ही देर में अजय सिंह का फैमिली डाक्टर अनिल जैन शिवा के साथ कमरे में दाखिल हुआ। अनिल जैन चालीस की उमर का तथा मध्यम कद काठी का ब्यक्ति था। अजय सिंह जैसे इंसान से संबंध रखने वाला ये पहला ऐसा ब्यक्ति था जो शक्ल और सीरत से शरीफ़ था।

शिवा ने अनिल को प्राथमिक बातें बताईं कि क्या हुआ था उसकी माॅम को। उसके बाद अनिल ने चेकअप करना शुरू किया। थोड़ी देर तक प्रतिमा को चेक करने के बाद उसने कुछ दवाईयाॅ दी और उन्हें सेवन करने की विधि बताई। फिर उसने शिवा को अपने साथ बाहर आने का इशारा करते हुए कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

"क्या बात है डाक्टर अंकल?" शिवा ने बाहर आते ही सहसा गंभीरता से पूछा___"मेरी माॅम पूरी तरह ठीक तो हैं न?"
"चिंता की कोई बात नहीं है बेटा।" अनिल ने कहा__"बस थोड़ी कमज़ोरी थी इस वजह से उन्हें चक्कर आया था। ठाकुर साहब आएॅ तो उनसे कहना कि मैने उन्हें याद किया है। अगर उनके पास समय हो तो कुछ समय के लिए मेरे पास ज़रूर आएॅ वो।"
"जी बिलकुल डाक्टर अंकल।" शिवा ने विनम्रता से कहा___"मैं डैड को ज़रूर आपके पास जाने के लिए कहूॅगा।"

उसके बाद डाक्टर अनिल जैन हवेली से अपना थैला लिये चला गया। शिवा भी वापस अपने माॅम के पास आ गया। सविता रात के लिए खाना बनाने चली गई थी। उसे प्रतिमा ने कह दिया था कि कुछ और लोगों को साथ में लेकर उन लोगों के लिए भी खाना बना लेना जो लोग आज गेस्टरूम में ठहरे हुए हैं। कुछ देर अपनी माॅ के पास बैठने के बाद शिवा प्रतिमा के ही कहने पर गेस्टरूम की तरफ चला गया। जबकि प्रतिमा अपने पिता के आने के बाद उससे मिलने के सुनहरे ख़याल बुनने लगी।
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