non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:01 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर फार्महाउस पर!
शंकर काका की कहानी से माहौल थोड़ा गंभीर सा हो गया था किन्तु हरिया काका की मज़ेदार बातों से फिर से खुशनुमा हो गया था। रितू को सहसा कुछ याद आया तो उसने हरिया काका की तरफ देखा।

"अरे काका।" फिर उसने कहा___"इन सब बातों के बीच हम ये तो भूल ही गए कि तहखाने में मंत्री की बेटी कैद है और वो कल से भूखी प्यासी भी होगी।"
"हाॅ बिटिया।" हरिया काका के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे___"ई ता सही मा हम भुलाय दीन्हें रहे। ऊ ससुरी मंत्रीवा की छोकरिया अबे तक ता ज़रूरै भूख पियास से मरत होई।"

"आप भी कमाल करते है काका।" रितू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे आप उस बेचारी को ऐसे ही मार देंगे। जबकि अभी तो मुझे उसके अंदर की गर्मी निकालनी है। चलिये देखें तो सही क्या हाल चाल हैं उसके?"
"हाॅ हाॅ चला बिटिया।" हरिया काका ने बंदूख को शंकर के हाथ में थमाते हुए कहा___"अब ता देखहिन का पड़ी कि ऊ ससुरी अबे ज़िंदा बा के मर गईल है।"

रितू हरिया की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने की तरब बढ़ गई। उसके पीछे पीछे हरिया भी चल रहा था। कुछ ही देर में वो दोनो तहखाने के दरवाजे के पास खड़े थे। हरिया ने चाभी हे तहखाने का दरवाजा खोला और एक साइड हट गया। रितू दरवाजे के अंदर की तरफ दाखिल हो गई। अभी वो दो तीन सीढ़ियाॅ ही नीचे उतरी थी कि सहसा उसे रुक जाना पड़ा और जल्दी से पैन्ट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुह व नाॅक पर रखना पड़ा।

तहखाने में तेज़ दुर्गंध फैली हुई थी। मतलब साफ था अंदर मौजूद सूरज और उसके दोस्त या फिर सूरज की बहन में से किसी का टट्टी पेशाब छूट गया था जिसकी वजह हे अंदर दुर्गंध फैली हुई थी। रितू से बर्दास्त न हुआ तो वो वापस तहखाने से बाहर आ गई।

"काका इन लोगों ने तो यहाॅ गंध फैला रखी है।" रितू ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"ऐसे में अंदर जाया नहीं जाएगा। इस लिए सबसे पहले आप तहखाने का हाल सही करवाइये। उसके बाद ही आगे का कार्यक्रम होगा।"
"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम इहाॅ की सफाई करवाता हूॅ तब तक तू बाहर रहा।"
"ठीक है काका।" रितू ने कहा___"मैं कुछ देर के लिए कमरे में जा रही हूॅ। जब यहाॅ का सब ठीक हो जाए तो आप मुझे बुला लीजिएगा।"

ये कह कर रितू वहाॅ से बाहर आकर इस तरफ से अंदर गई और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर रितू बेड पर लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि नैना बुआ भी कमरे में आ गई और बेड के किनारे भाग में बैठ गई।

"आइये बुआ।" रितू ने अधलेटी अवस्था में कहा__"आप भी आराम से लेट जाइये।"
"चल ठीक है तू कहती है तो लेट जाती हूॅ।" नैना ने रितू के इस तरफ आते हुए कहा___"अच्छा ये बता कि तेरे इस फार्महाउस पर और क्या क्या होता है?"
"क्या मतलब??" रितू बुरी तरह चौंकी___"यहाॅ क्या क्या होता है से आपका क्या मतलब है?"

"इतनी नासमझ व बुद्धू नहीं हूॅ मैं जितना तू समझ रही है मुझे।" नैना ने कहा___"यहाॅ आए मुझे कुछ समय तो हो ही गया है। मैने महसूस किया है कि ये फार्महाउस असल में मुजरिम लोगों के लिए एक ऐसी जेल की तरह है जिसकी कैद से मुजरिम का निकल पाना नामुमकिन ही नहीं बल्कि असंभव है। कह दे भला कि मैं झूॅठ कह रही हूॅ?"

रितू चकित भाव से देखती रह गई अपनी बुआ को। किन्तु फिर तुरंत ही सम्हल भी गई। चेहरे पर शशंक भाव लाते हुए बोली___"ये सब आपने खुद महसूस किया है या ये सब बातें किसी के द्वारा पता चली है आपको?"

"बात अगर सच है तो इस बात से कोई मतलब ही नहीं रह जाता मेरी बच्ची कि मुझे ये सब कैसे पता चला?" नैना ने स्पष्ट भाव से कहा___"दूसरी बात मुझे इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं है कि तू इस फार्महाउस पर क्या कर रही है। बल्कि खुशी है कि मुजरिमों को उचित सज़ा दे रही है तू। मगर मैं बस यही कहूॅगी कि ऐसे कामों में अपनी जान का ख़तरा भी बहुत होता है इस लिए अपना भी ख़याल रखना।"

"ख़तरा तो हर इंसान के जीवन में होता है बुआ।" रितू ने कहा___"चाहे वो कोई आम इंसान हो या फिर कोई ऐसा इंसान जो हर वक्त ख़तरों के बीच ही रहता है। मैं इस फार्महाउस पर इसके पहले कभी भी किसी मुज़रिम को कानून अपने हाॅथ में लेकर नहीं आई बुआ और नाही ऐसा करने का मैने कभी सोचा था। मगर ये सब तो मैने तब किया जब विधी का मामला आया। हमारे देश में किसी मुजरिम को उसके संगीन से भी संगीन अपराध के लिए कोई शख्त सज़ा नहीं हो पाती। इसकी कई सारी वजहें हैं मगर मुख्य वजहें ये हैं कि हमारा कानूनी सिस्टम बहुत कमज़ोर व ढीला है। कोर्ट में आज भी लाखों ऐसे संगीन अपराधों के केस फाइलों के नीचे दबे हुए हैं जिनकी समयावधी का पता चलते ही हमारा कानून पर से विश्वास उठने लगता है। दूसरी बात हमारा यही कानूनी सिस्टम बड़े लोगों और मंत्री मिनिस्टरों के हाॅथ की कठपुतली बना हुआ है। जबकि सच्चाई ये है कि कानून की नज़र में कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता। अगर अपराध देश के सबसे बड़े ब्यक्ति ने किया है तो उसे भी वैसी ही सज़ा मिलनी चाहिए जो किसी आम मुजरिम को मिलती है। मगर ये सब कहने की बातें हैं बुआ, हकीक़त में ऐसा होता नहीं है। कानून के इसी कमज़ोर सिस्टम की वजह से एक शरीफ आदमी मजबूरीवश जुर्म का दामन थाम बैठता है।"

"तुम जिन चीज़ों की बात कर रही हो बेटा।" नैना ने गहरी साॅस ली___"वो हमेशा ऐसी ही रहेंगी। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इससे भी बदतर बन जाएॅगी। इस लिए इस विषय पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। तुमने कहा कि विधी का मामला जब सामने आया तब तुमने ऐसा क़दम उठाया। विधी के बारे में भी तुमने ही मुझे बताया था कि उसके साथ चार ऐसे लड़कों ने घिनौना कुकर्म किया था जो बड़े बाप की पैदाईश हैं। मैं ये कहना चाहती हूॅ कि ऐसे बड़े बाप की औलादों को यहाॅ लाकर और उनको सज़ा देने से कहीं तुम पर तो कोई ख़तरा नहीं आ जाएगा। आख़िर सवाल तो बड़े लोगों का है न। जिनके ये बच्चे हैं उन्हें अगर पता चल जाए कि उनके बच्चों को तुमने क्या और कैसे सज़ा दी है तो यकीनन वो बड़े लोग तुझ पर बिजली बन कर गिरेंगे।"

"फिक्र मत कीजिए बुआ।" रितू ने सहसा कठोर भाव से कहा___"मैंने उन सबका अच्छा खासा इंतजाम किया हुआ है। आप यूॅ समझिये कि उन बड़े बड़े खलीफाओं की जान मेरी मुट्ठी में कैद है। आज की डेट में वो सब ऐसी कठपुतलियाॅ बने हुए हैं जो सिर्फ मेरे ही इशारे पर नाचने के लिए मजबूर हैं। वो अपनी मर्ज़ी से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो मुझे पसंद ही न आए।"

"ऐसा तेरे पास उनके खिलाफ क्या है?" नैना ने चकित भाव से पूछा___"जिसकी वजह से वो सब बड़े बड़े सूरमा तेरे इशारों पर नाचने के लिए मजबूर बन गए हैं?"

नैना के पूछने पर रितू ने कुछ पल सोचा और फिर उसने वीडियो वाली सारी बात बता दी उसे। ये भी बताया कि उसने खुद मर्द की आवाज़ में फोन पर मंत्री से बात भी की थी और कल तो वो मंत्री की बिगड़ैल बेटी को भी पकड़ कर ले आई है जो इस वक्त तहखाने में बंद है। सारी बातें जानने के बाद नैना का मुह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।

"हे भगवान!।" फिर उसके मुख से निकला___"ये तू क्या कर रही है रितू? लड़कों की बात तक तो ठीक था और लड़कों के बापों तक भी ठीक था किन्तु लड़की को क्यों कैद कर किया तूने? ये ठीक नहीं है मेरी बच्ची। उन लोगों ने घृणित कर्म किया क्योंकि वो उनकी फितरत थी मगर तेरी फितरत तो ऐसी नहीं है न बेटा? इस लिए मेरी बात मान और मंत्री की बेटी को छोंड़ दे तू।"

"आपने बहुत दूर तक का सोच लिया बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"जबकि मेरा ऐसा करने का कोई इरादा ही नहीं है। मेरा मकसद तो बस ये है कि मैं उन्हें भी उस चीज़ का एहसास कराऊॅ जिस चीज़ को करने में उन्हें सबसे ज्यादा मज़ा आता है। मैं उन्हें दिखाना चाहती हूॅ बुआ कि जब वैसा ही सब कुछ अपने साथ होता है तब कैसा प्रतीत होता है? जब अपने ऊपर वैसा जुल्म होता है तो कितनी तक़लीफ़ होती है? हाॅ बुआ यही, बस यही एहसास कराना चाहती हूॅ मैं उन सबको।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" नैना ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"जो भी करना इस बात का ख़याल रखते हुए करना कि तुम एक अच्छे संस्कारों वाली लड़की हो जो किसी का भी बुरा नहीं कर सकती।"
"अच्छा अब आप आराम कीजिए बुआ।" रितू ने बेड से उतरते हुए कहा___"मैं ज़रा तहखाने में उन सबका हाल चाल देख लूॅ।"
"ठीक है जाओ।" नैना ने कहा और आराम से लेट गई।

रितू कमरे से निकल कर बाहर आ गई। उसने अपने आईफोन के बाईब्रेशन को महसूस किया था। वो समझ गई थी कि हरिया काका ने ही उसे मिस काल दिया था। मतलब साफ था कि उसने तहखाने की गंदगी को साफ कर दिया था। ख़ैर, कुछ ही देर में रितू तहखाने में पहुॅच गई। अब वहाॅ पर कोई गंध नहीं थी। बल्कि सबकुछ एकदम से साफ सुथरा हो गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ!
इस वक्त मंत्री के सभी साथी ड्राइंगरूम में जमा हुए बैठे थे। सबके बीच ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। अभी थोड़ी देर पहले ही मंत्री दिवाकर चौधरी अपने आवास पर अपने साथियों के साथ आया था। दिवाकर चौधरी कल शाम से चिंतित व परेशान था। कल शाम को ही आया ने बताया था कि रचना बेटी जिम से नहीं लौटी है। चौधरी को पहले इस बात पर ज्यादा चिंता की बात नज़र नहीं आई थी। उसे लगा था कि रचना अपनी फ्रैण्ड्स के साथ होगी। किन्तु जब आधी रात गुज़र जाने पर भी रचना न आई तो चौधरी को चिंता सताने लगी। उसने रचना की जान पहचान वाली सभी लड़कियों को फोन लगा कर रचना के बारे में पूॅछा था। मगर सबने यही कहा कि रचना उनके पास नहीं है। एक लड़की ने बताया कि शाम को जिम से बाहर आते समय रचना उसके साथ ही थी किन्तु फिर वो अपनी स्कूटी लेकर घर के लिए निकल गई थी।

दिवाकर चौधरी को कल सारी रात नींद नहीं आई थी। अपनी बेटी के लौटने के इंतज़ार में वह जागता ही रहा था। मगर रात गुज़र गई और अब ये दूसरा दिन शुरू होकर दोपहर भी हो रही थी। फिर भी रचना के बारे में कोई ख़बर न मिली थी उसे। चौधरी के लिए चिंता वाली सबसे ज्यादा बात ये थी कि रचना का मोबाइल फोन कल से लगातार बंद बता रहा था। दिवाकर चौधरी को अब अपनी बेटी की बहुत ज्यादा चिंता सता रही थी। उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली थी मगर रचना को ढूॅढ़ पाने में वह नाकाम रहा था। दूसरी चिंता की बात ये थी कि उसका बेटा और बेटे के तीनों दोस्तों का भी कहीं कोई पता नहीं चल रहा था। ये सब बातें चौधरी की रातों की नींद उड़ाए हुई थी।

"बड़ी हैरत की बात है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"पहले हम अपने बच्चों के लिए चिंतित व परेशान थे। उसके बाद हम अपने लिए परेशान हो गए उन वीडियोज़ की वजह से और अब रचना बेटी के लिए परेशान हो गए हैं। पिछले कुछ समय से ये सब हमारे साथ क्या होने लगा है इसका अंदाज़ा भी है किसी को?"

"हमसे सबसे बड़ी ग़लती ये हुई कि हमने हर चीज़ को तुच्छ व ग़ैरमामूली समझा।" अशोक मेहरा ने कहा__"पर अब हमें गंभीरता से इस सबके बारे में सोचना पड़ेगा चौधरी साहब। हमें शुरू से हर घटना पर ग़ौर करना होगा। हमारे साथ राहू कुतू का ये चक्कर तब से शुरू हुआ जबसे हमारे बच्चों ने उस लड़की का रेप किया था। उस रेप के बाद से ही हमारे बच्चे गायब हुए हैं और अब तक हमें उनकी कोई खोज ख़बर नहीं लगी है। उसके बाद उस अंजान ब्यक्ति का हमें वो वीडियोज़ भेजना, साथ ही उसकी वो धमकी भरी बात। और अब रचना बेटी का अकस्मात गायब हो जाना। ये सारी घटनाएॅ इस बात की तरफ स्पष्ट रूप से इशारा करती हैं कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है। दूसरा कोई शख्स ऐसा करने का सोच भी नहीं सकता है।"

"मैं अशोक की इन बातों से पूरी तरह सहमत हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"ये सच है कि सारी घटनाओं का केन्द्र बिन्दु उस लड़की के रेप वाली वो घटना ही है। ऐसे मामलों में आम तौर पर वही होता है जो ऐसे हर रेपिस्ट के साथ होता है। यानी रेप पीड़िता के घरवाले पुलिस में एफआईआर दर्ज़ करवाते हैं और अदालत से इंसाफ की गुहार लगाते हैं। हलाॅकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि कोई भी शरीफ ब्यक्ति अपनी बदनामी नहीं कराना चाहता इस लिए केस को रफा दफा करवा लेता है किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदनामी से नहीं डरते और इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा पार कर जाते हैं। मगर हैरत की बात है कि जिस लड़की के साथ हमारे बच्चों ने रेप किया उस पर किसी ने कोई ऐक्शन ही नहीं लिया। जबकि कानून के ही डर से हमारे बच्चे शायद कहीं छुप गए और आज तक लौट कर घर नहीं आए। दूसरी बात ये कि हमने भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि रेप के बाद उस लड़की का क्या हुआ? जबकि हमें ऐसे मामले की पल पल की ख़बर रखनी चाहिए थी। आज उस घटना को घटे क़रीब क़रीब दो हप्ते हो गए होंगे।"

"ये सच है कि हमने हर चीज़ को मामूली ही नहीं समझा बल्कि उसे नज़रअंदाज़ भी किया।" दिवाकर चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने को मिल रहा है। मगर, अब भी शायद कुछ नहीं बिगड़ा है। हमें इस मामले में अपनी तरफ से जाॅच पड़ताल करनी चाहिए। सबसे ज्यादा उस लड़की के बारे में, क्योंकि घटनाओं का सिलहिला उस रेप से ही शुरू हुआ है। संभव है कि हमें कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे हमें सारी बातों का पता चल जाए। हलाॅकि हमने उस दिन पुलिस कमिश्नर से फोन पर पूॅछा था कि हमारे बच्चों के लापता होने में अगर पुलिस का हाॅथ हुआ तो अच्छा नहीं होगा। इस पर कमिश्नर ने साफ साफ कहा था कि हमारे बच्चों पर कानून का हाॅथ तभी पड़ सकता था जबकि रेप पीड़िता के घरवालों ने थाने में एफआईआर दर्ज़ करवाया होता। इस लिए जब ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है तो हमारे बच्चों पर कानून कोई कार्यवाही कैसे कर देगा? इस लिए ये तो साफ है कि हमारे बच्चों के गायब होने में नुलिस या कानून का कोई हाॅथ नहीं है। मगर बच्चे गायब हैं ये सच बात है। इस लिए अब इसका पता लगाना बेहद ज़रूरी है कि ये सब किसने किया है हमारे बच्चों के साथ? दूसरा मामला वो वीडियो भेजने वाला है। वीडियो भेजने वाले ने उस दिन फोन पर स्पष्ट कहा था कि उसके पास हमारे खिलाफ ऐसे ऐसे सबूत हैं जिनके बेस पर वो हमें जब चाहे बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। उसकी इस बात पर हमने ये निष्कर्श निकाला था कि संभव है कि उसी ने हमारे बच्चों को पकड़ा हो और फिर उन्हें टार्चर करके उनसे हमारे खिलाफ़ उन वीडियो के रूप में सबूत प्राप्त किया होगा।"

"फिर तो ये साबित हो गया चौधरी साहब कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है।" अशोक मेहरा बीच में बोल पड़ा___"आपकी बातों में यकीनन ठोस सच्चाई है। यकीनन हमारे बच्चे उस वीडियों भेजना वाले के पास ही हैं। इस बात से ये भी सोचा जा सकता है कि रचना बेटी को भी उसी ने किडनैप किया होगा।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"अभी तक हमें वस्तुस्थित का ज़रा भी एहसास नहीं था किन्तु अब हो रहा है और समझ में भी आ रहा है कि वोडियो भेजने वाला हमसे चाहता क्या है?"

"क्या चाहता है वह??" दिवाकर चौधरी फिरकिनी की मानिंद अवधेश की तरफ घूम कर पूछा था।
"हो सकता है कि इन मामलों के तहत उस वीडियो भेजने वाले के संबंध में जो थ्यौरी मेरे दिमाग़ में बनी है वो ग़लत भी हो।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"किन्तु फिर भी प्रकट कर रहा हूॅ। बात उस लड़की के रेप से ही शुरू हुई। रेप पीड़िता के घरवालों को जब इस बात का पता चला होगा कि रेप करने वाले लड़के बड़े बाप की औलाद हैं तो वो समझ गए कि पुलिस में एफआईआर दर्ज़ कराने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि बड़े लोगों के प्रभाव से सीघ्र ही इस केस को इतना कमज़ोर बना दिया जाएगा कि उसमें कोई दम नहीं रह जाएगा। बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उल्टा लड़की को ही कोर्ट में चरित्रहीन और बदचलन साबित कर दिया जाए। उस सूरत में इंसाफ तो मिलने से रहा ही ऊपर से समाज के बीच उनकी जो इज्ज़त खाक़ में मिलेगी उसकी भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं हो सकती थी। इस लिए लड़की के घरवालों ने अपनी बेटी के साथ हुए रेप का बदला लेने के लिए दूसरा तरीका अपनाया। दूसरा तरीका ये था कि किसी तरह वो हमारे बच्चों को पकड़ लें और फिर अपने तरीके से जो चाहे सज़ा दें उन्हें। अब तक वो इसी लिए अपने हर काम में सफल रहे क्योंकि हमने इन सब चीज़ों की तरफ ध्यान ही न दिया था। ध्यान तो तब आया जब मामला हमारे हाॅथ से निकल गया। हाॅ चौधरी साहब, मामला हमारे हाॅथ से निकल ही तो गया है। क्योंकि उस ब्यक्ति के पास हमारे खिलाफ जो सबूत है वो हमें किसी भी पल बीच चौराहे पर नंगा होकर दौड़ने पर मजबूर कर देगा।"

"तो तुम्हारे हिसाब से ये सब लड़की के घरवालों ने किया है?" चौधरी ने कहा___"मतलब कि उन लोगों ने हमारे बच्चों को पकड़ा और उनसे हमारे खिलाफ़ सबूत भी प्राप्त कर लिए?"
"जी बिलकुल।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"आप खुद सोचिए कि ऐसा करने की उनके सिवा भला किसके पास वजह थी? ये तो एक यथार्थ सच्चाई है न चौधरी साहब कि बेवजह कभी कुछ नहीं होता है। इस लिए ये सब करने की वजह सिर्फ और सिर्फ रेप पीड़िता के घरवालों के पास थी। दूसरा ब्यक्ति ऐसा करने का शौक तो नहीं रख सकता न?"

"चलो मान लिया कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों ने किया है।" चौधरी ने कहा___"किन्तु सवाल ये है कि उन्हें हमारी बेटी को भी किडनैप या पकड़ने की क्या ज़रूरत थी? हमारी बेटी ने तो कोई गुनाह नहीं किया था न? फिर क्यों उसे पकड़ा उन्होंने?"

"संभव है कि रचना बेटी के ज़रिये।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"वो हमें ये एहसास दिलाना चाहते हों कि जब वैसा ही रेप केस हमारे साथ हो तो हमें कैसा लगेगा? हमें उससे कितनी तक़लीफ़ होगी?"

अवधेश श्रीवास्तव के इस तर्क से दिवाकर चौधरी कुछ बोल न सका। जैसे निरुत्तर हो गया था वह या फिर कदाचित उसे बात समझ में आ गई थी कि अवधेश का तर्क बिलकुल सही था। ख़ैर, अवधेश श्रीवास्तव की उस बात से कुछ देर सन्नाटा छाया रहा।

"तो अब क्या किया जाए?" सहसा अशोक मेहरा ने उस सन्नाटे को चीरते हुए कहा___"अगर हम सही लाइन पर हैं तो हमारा अगला क़दम अब क्या होना चाहिए?"
"बड़ा सीधा व सरल जवाब है अशोक।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारा अगला क़दम ये होना चाहिए कि हमें जल्द से जल्द उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों को धर लेना चाहिए। उसके बाद खुद ही हम अपने तरीके से उनका क्रिया कर्म करेंगे।"

"तुम तो ऐसे कह रहे हो अवधेश जैसे कि ये सब वैसा ही आसान काम हो जैसे थाली से दाल चावल का निवाला बना कर उसे खा लेना आसान होता है।" अशोक ने कहा___"जबकि हमें इस बात पर भी ज़रा ग़ौर कर लेना चाहिए कि जिस ब्यक्ति को हम धर लेने के लिए अपने क़दम बढ़ाने जा रहे हैं उसने क्या इस सबके बारे में नहीं सोचा होगा? बल्कि ज़रूर सोचा होगा भाई, उसे भी इस बात का अच्छी तरह से पता है कि हम क्या चीज़ हैं। अगर वो हमारे बच्चों को धर लेगा तो सबसे पहले हमारा शक़ उसी पर ही जाएगा। उस सूरत में हम उसकी उस धृष्टता के लिए उसका क्या हस्र करेंगे ये बात भी उसने ज़रूर सोची होगी। अब सोचने वाली बात ये है कि जब उसने ये सब सोचा होगा तो अपने बचाव का कोई न कोई रास्ता भी सोचा होगा। ऐसे ही तो नहीं कोई साॅप के बिल में अपना हाॅथ डाल देता है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में दम है।" अवधेश श्रीवास्तव ने जैसे स्वीकार किया__"और उसके जिस बचाव वाले रास्ते की तुम बात कर रहे हो वो यकीनन यही हो सकता है कि आज की डेट में उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत के रूप में वो वीडियो रूपी ब्रम्हास्र है।"

"बिलकुल ठीक समझे।" अशोक ने कहा__"इस लिए अब हम अगर कोई क़दम भी उठाएॅ तो ज़रा सोच समझ कर उठाएॅ। क्योंकि अगर उसे पता चल गया कि हम उसके खिलाफ़ कुछ करने जा रहे हैं तो संभव है कि अगले ही पल वो हम पर क़यामत बरपा दे।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि हम कुछ कर ही नहीं सकते।" सहसा चौधरी आवेश में कह उठा__"उस साले ने हमें पंगु बना कर रख दिया है। मगर ऐसा कब तक चलेगा यार? हमें कुछ तो करना ही पड़ेगा न? वरना वो दिन दूर नहीं जबकि हम चारों किसी चौराहे पर नंगे दौड़ लगा रहे होंगे।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नुकसान तो दोनो तरफ से होना ही है। इस लिए कुछ करके ही नुकसान झेलते हैं। शायद ऐसा भी हो जाए कि सारा खेल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तुमने।" चौधरी ने कहा___"मगर सवाल ये है कि हम करेंगे क्या?"

"वही जो करने का सजेशन थोड़ी देर पहले अवधेश भाई ने दिया था।" अशोक ने कहा___"मगर उसमें थोड़ा चेंज करना पड़ेगा। वो ये कि लड़की के घरवालों को पहले हम दिलेरी से धरने जा रहे थे जबकि अब वही काम हम इस तरीके से करने की कोशिश करेंगे कि उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अवधेश श्रीवास्तव बोला__"मगर मुझे लगता है कि हमें एक बार ये सब करने से पहले फिर से इस बारे में सोच लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम खुद ही धर लिए जाएॅ।"
"कायर व डरपोंक जैसी बातें मत करो अवधेश।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब हम चुप भी नहीं बैटना चाहते हैं। साला हिंजड़ा बना कर रख दिया है उसने हमें। मगर अब और नहीं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे फैंसला सुना दिया था। किसी में भी इस फैंसले के खिलाफ़ जाने की हिम्मत न थी। इस लिए अब इस काम को अंजाम देने की समय सीमा पर विचार विमर्ष किया गया और उसके बाद अशोक और अवधेश अपने अपने घर चले गए। मगर आगे किसके साथ क्या होने वाला है ये किसी को कुछ पता न था।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:01 PM

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