non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:01 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
कमरे के अंदर आहट महसूस होते ही वो लड़का बुरी तरह चौंक कर पलटा और मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत सिर्फ कुछ पलों तक ही रही। उसके बाद उसने इस तरह से अपना रंग बदला कि भला गिरगिट क्या बदलता होगा। यहाॅ पर उसने इस कहावत को पूरी तरह सिद्ध कर दिया कि "उल्टा चोर कोतवाल को डाॅटे"। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाहिए था वही सब वो मुझे ऊॅची आवाज़ में कहने लगा था। उसके मुख से अपने लिए ये सब सुन कर मैं भौचक्का सा रह गया। हैरत व अविश्वास से मेरा मुह तथा मेरी फट पड़ी थी। जबकि वो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही देर में बाथरूम से कुमुद बिटिया कपड़े पहन कर बाहर निकली। मैने उसकी तरफ देखा तो चौंक गया, उसका चेहरा ऑसुओं से तर था और वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे बिना कुछ बोले ही ऑखों से कह रही हो कि___"क्यों चाचू, ऐसा क्यों किया तुमने? मैं तो आपकी बेटी जैसी ही हूॅ और आपको अपने पिता जैसा ही सम्मान देती हूॅ। फिर आपने मुझ पर गंदी नज़र डाली। क्यों चाचू क्यों? क्या आप हवस में इतने अंधे हो गए कि आपको मुझमें आपकी कुमुद बिटिया की जगह एक ऐसी लड़की दिखने लगी जिसके साथ अपनी हवस को मिटाया जाए?"

उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह दिया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई ज़रूरत नहीं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात समझ गया था। उसके चेहरे पर तुरंत ही हिकारत के भाव उभरे तथा उसमें शामिल हो गई घृणा। जिसके तहत उसने तुरंत ही अपना मुह फेर लिया जैसे अब वो मुझे देखना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दुनियाॅ बरबाद हो गई। चार सालों का मेरा विश्वास मेरा प्यार व स्नेह एक पल में ही जैसे नेस्तनाबूत हो गया था।

ये एहसास होते ही मेरे अंदर तीब्र पीड़ा हुई। मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मैने अपनी सफाई में कुछ भी कहना गवाॅरा न किया और मैं आगे भी कहना नहीं चाहता था। क्योंकि सबसे बड़ा होता है विश्वास। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मुझे तक़लीफ इसी बात पर हुई कि उस लड़की ने ये कैसे यकीन कर लिया कि मैंने उस पर गंदी नज़र डाली थी? उसे अपने भाई पर संदेह क्यों न हुआ जिसने सचमुच ही वो काम किया था। क्या सिर्फ इस लिए कि वो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?

वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बॅगले से निकल जाने के लिए कह दिया। मैं भी दुखी मन से उठा और अपनी बंदूख सम्हाले बॅगले से बाहर निकल गया। किन्तु मैं बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब के आने का इन्तज़ार था। मुझे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही वहाॅ से जाकर ये साबित नहीं करा देना चाहता था कि मैं वास्तव में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने जाकर ये दर्शाना चाहता था कि मैं गुनहगार नहीं हूॅ।

शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बॅगले पर लौट कर आए। मैं सारा दिन भूखों प्यासा मुख्य दरवाजे पर किसी गुलाम की तरह खड़ा रह गया था। रह रह कर मेरे मन में ख़याल आता कि यहाॅ से कहीं ऐसी जगह चला जाऊॅ जहाॅ से कोई इंसान दुबारा वापस नहीं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को अपना चेहरा दिखाना एक बार। मेरे अंदर औरत जात के प्रति जो नफ़रत कहीं खो सी गई थी वो फिर से उभर कर आ गई थी। ख़ैर, मेजर साहब आए और बॅगले के अंदर चले गए। मुझे पता था कि वो लड़का और कुमुद मेजर साहब को मिर्च मशाला लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। लेकिन मुझे परवाह नहीं थी अब। मुझे उम्मीद थी कि मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हर्गिज़ भी नहीं सोच सकते। आख़िर देश दुनियाॅ देखी थी उन्होंने। उनको इंसानों की पहचान थी।

मगर मेरी उम्मीदों पर बिजली उस वक्त गिरी जब मेजर साहब ने मुझे बुलाया और मुझे डाॅटना शुरू किया।
"हमें तुमसे ऐसे गंदे कर्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी शंकर।" मेजर साहब ने कड़ी आवाज़ में कहा___"हमें तुम पर कितना भरोसा था। हम तुम्हें कभी ग़ैर नहीं समझते थे। मगर तुमने अपनी ज़ात दिखा दी। शुरू में जब तुमने कहा था कि तुम दुनियाॅ का हर काम कर सकते हो लेकिन कोई ग़लत काम नहीं करोगे भले ही चाहे भूॅखों मर जाओ तो हम तुम्हारी उस बात से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर आज जो कुछ तुमने किया है उससे हमें बहुत दुख पहुॅचा है। हमारी बेटी तुम्हें हमारे जैसा ही पिता का सम्मान देती थी और तुमसे लाड प्यार करती मगर तुमने उस पर ही गंदी नज़र डाल दी। मन तो करता है कि तुमसे ये बंदूख छीन कर इसकी सारी गोलियाॅ तुम्हारे सीने में उतार दें मगर नहीं करेंगे ऐसा। इतने साल की वफ़ादारी का अगर यही इनाम लेना तो कोई बात नहीं। मगर अब तुम्हारे लिए यहाॅ कोई जगह नहीं है। निकल जाओ यहाॅ से और दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना हमें वरना हमसे ये उम्मीद न करना कि हम तुम्हें ज़िंदा छोंड़ देंगे।"

बस, मेजर साहब की ये बातें सुन कर मैं बुरी तरह अंदर से टूट कर बिखर गया। मैं अब एक पल भी यहाॅ लुकना नहीं चाहता था। इस लिए घुटनों के बल बैठ कर मैने अपने कंधे से बंदूख निकाली और मेजर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड़ कर नमस्कार किया और फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया। मेरे अंदर ऑधी तूफान मचा हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार कर रोऊॅ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था। खड़े होकर मैने एक बार कुमुद बिटिया की तरफ देखा तो उसने जल्दी से अपना मुह फेर लिया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टूट कर हाल के फर्श पर गिर गया।

उसके बाद मैं एक पल के लिए भी नहीं रुका। वहाॅ से बाहर आकर मैं सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ अपने कमरे में गया और वहाॅ से अपना सामान एक थैले में भर कर कमरे से बाहर आ गया। बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर मैं एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके बाद बॅगले में क्या हुआ इसका मुझे कुछ पता नहीं। वहाॅ से आने के बाद मैं एक सुनसान जगह पर दिन भर यूॅ ही दुखी मन से बैठा रहा। ये संसार बहुत बड़ा था मगर इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे मैं अपना कहता। जो मुझे समझता और मेरे दुखों को महसूस करता। वर्षों पहले एक दुख से उबरा था, आज फिर एक दुख ने मुझे वहीं पर ले जाकर पटक दिया था। ख़ैर, समय का काम है बदलना। इस लिए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भूलने की कोशिशें करने लगा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। मैं कोई न कोई काम कर लेता जिससे मुजे दो वक्त की रोटी मिल सके और रातों को कहीं भी लेट कर सो जाता। यहीं मेरी ज़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक दिन हरिया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने मुझमें ऐसा क्या देखा कि ये मुझे यहाॅ ले आया और फिर मैं तब से यहीं का रह गया। यहाॅ पर हरिया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। बिंदिया भाभी में मुझे एक माॅ की झलक दिखने लगी और रितू बिटिया के रूप में एक ऐसी नेक दिल लड़की मिल गई जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मुझे उसमें अपनी बेटी ही नज़र आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपूर परिवार ही मिल गया है। लेकिन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि किसी दिन मेरी किस्मत और सबका वो भगवान फिर से न मुझसे रूठ जाए और मुझे फिर से उसी दुख दर्द में ले जाकर पटक दे जहाॅ से उबरने में मुझे एक युग लग जाता है।"

अपने गुज़रे हुए कल की दुख भरी कहानी बता कर शंकर ने गहरी साॅस ली और अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसुओं को पोंछा। उसके सामने ही खड़े हरिया व रितू की ऑखों में भी ऑसू थे। शंकर की कहानी में वो इतना डूब गए थे कि उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही वो सब घट रहा था।

हरिया को जाने क्या सूझा कि वो झपट कर शंकर को अपने गले से लगा लिया और फूट फूट कर रो पड़ा। शंकर उसे इस तरह रोता देख मुस्कुराया। ये अलग बात थी कि उसकी ऑखें भी बह चली थी। रितू आगे बढ़ कर उन दोनो को एक दूसरे से अलग किया।

"काका आपने अपने अंदर इतना बड़ा दुख छुपा के रखा हुआ था।" रितू ने दुखी मन से कहा___"जिसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही दुखदायी था। मगर आप चिंता मत कीजिए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दुख में जाने नहीं दूॅगी जिससे आपको जीने में तक़लीफ हो।"

"भगवान करे ऐसा ही हो बिटिया।" शंकर ने कहा__"मैं भी तुम लोगों को छोंड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। तुम सबसे इतना लगाव हो गया है कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो यकीनन ये दुख सहन नहीं कर पाऊॅगा मैं।"
"अरे तू फिकर काहे करथै ससुरे?" हरिया ने कहा__"हम अइसन अब कउनव सूरत मा न होंय देब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खुश रख। अउर हाॅ ई हमरा वादा हा कि हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुंदर लड़की से करब जउन तोहरी ऊ ससुरी बिंदिया भौजी जइसनै होई।"

हरिया की ये बात सुन कर शंकर और रितू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा रितू को कुछ याद आया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~



उधर हवेली में!
कई सारी गाड़ियाॅ हवेली के बाहर विसाल मैदान में आकर रुकीं। सभी गाड़ियों के सभी दरवाज़े एक साथ खुले और उनमें से कई सारे अजनबी लोग बाहर निकले। सभी आदमियों में ज्यादातर आदमी हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डथ टाइप के थे। जबकि कुछ आदमी साधारण कद काठी के थे। वो सब हट्टे कट्टे आदमियों से घिरे हुए थे।

हवेली के बाहर अजय सिंह के कुछ आदमी हाॅथों में बंदूख लिए खड़े थे। उन लोगों ने जब इतने सारे आदमियों को एक साथ हवेली की तरफ आते देखा तो उनके चेहरों का रंग सा उड़ने लगा। उन्हें लगने लगा अब ये कौन सी नई मुसीबत आ गई यहाॅ? सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि ये सब क्या है? किन्तु जवाब किसी के पास नहीं था।

"ठाकुर साहब से कहो कि हम लोग उनके कहे अनुसार अपने आदमियों को यहाॅ लेकर आ गए हैं।" एक आदमी ने अजय सिंह के एक आदमी से कहा___"हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। इस लिए अभी हमें जाना होगा किन्तु हमारे ये आदमी उनके किसी भी आदेश का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेंगे।"

उस आदमी की ये बात कदाचित गार्ड की समझ में न आई थी। इसी लिए वह मूर्खों की तरह उस आदमी को देखता रह गया। उसके चेहरे पर उलझन के से भाव उभर आए थे।

"अरे भाई ऐसे क्यों देख रहे हो हमें?" आदमी ने चौंकते हुए कहा__"हम सब ठाकुर साहब के बिजनेस वाले फ्रैण्ड्स हैं। अतः जल्दी जाओ और उन्हें बताओ कि मिस्टर कमलनाथ और उनके साथ सभी उनके दोस्त यहाॅ आए हुए हैं।"

गार्ड के चेहरे पर फैले उलझन के भाव कम तो न हुए किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि पाॅकिट से मोबाइल निकाल कर किसी को फोन लगाया। उधर से काल रिसीव करते ही उसने कहा___"मालकिन, कुछ लोग मालिक से मिलने आए हैं। कह रहे हैं कि उनके बिजनेस से संबंधित फ्रैण्ड्स हैं। मेरे लिए क्या आदेश है मालिकन?"
"............।" उधर से कुछ कहा गया और इसके साथ ही काल कट हो गई।

"आप कृपया एक मिनट रुकिये।" फिर उस गार्ड ने बड़ी विनम्रता से कहा___"मालकिन आ रही हैं बाहर।"
"ओके नो प्राब्लेम।" उस आदमी ने कहा और दूसरी तरफ पलट कर इधर उधर देखने लगा।

कुछ ही देर में हवेली का दरवाजा खुला और प्रतिमा उसमे से बाहर निकली। उसके पीछे ही उसका बेटा शिवा भी था। हवेली के बाहर इतनी सारी गाड़ियाॅ और इतने सारे लोगों को देख कर वो चौंकी। मनो मस्तिष्क में एक ही बात चकरघिन्नी की तरह नाचने लगी कि 'कहीं फिर से कोई सीबीआई वाले नहीं आ गए यहाॅ'।

प्रतिमा की देखते ही गार्ड ने उस आदमी के पास जाकर उसे बताया कि मालकिन आ गई हैं। वो आदमी पलट कर प्रतिमा के पास आया।
"नमस्कार भाभी जी।" उस आदमी ने खुशदिली से हाॅद जोड़ कर नमस्कार करते हुए बोला__"हम सब ठाकुर साहब के फ्रैण्ड सर्कल के लोग हैं। ठाकुर साहब से कल मीटिंग में हमारी कुछ बातें हुई थी। जिसके तहत उन्होंने हमसे हमारे कुछ बेहतरीन आदमियों की माॅग की थी। सो इस वक्त हम उसी सिलसिले में यहाॅ आए हैं। हमारे पास ज्यादा समय नहीं है इस लिए हम ठाकुर साहब से मिल कर तुरंत ही यहाॅ से जाना चाहेंगे। उसके बाद ये उनका काम है कि वो हमारे इन आदमियों के द्वारा क्या काम लेते हैं?"

प्रतिमा उस आदमी की बातों से समझ गई कि कल अजय सिंह किसी ज़रूरी मीटिंग में था इसी लिए शाम को देर से आया था। तो इसका मतलब मीटिंग इस सबके लिए थी। किन्तु समस्या ये थी कि ये लोग जिससे मिलने आए थे उसे तो सीबीआई वाले सुबह ही अपने साथ ले गए थे। इस लिए अब वो इन्हें क्या जवाब दे यही उसकी समझ में नहीं आ रहा था। सच्चाई बताने पर संभव है कि बात बिगड़ जाती। अगर इन लोगों को अभी पता चल जाए कि अजय सिंह को सीबीआई वाले ले गए हैं तो ये लोग तुरंत ही यहाॅ से रफूचक्कर हो जाएॅगे।

"क्या बात है भाभी जी?" उस आदमी ने कहा___"आप किसी गहरी सोच मे डूबी हुई प्रतीत हो रही हैं। कहिए सब ठीक तो है न? ठाकुर साहब को बुलाइये हम उनसे मिलना चाहते हैं।"
"ठाकुर साहब तो इस वक्त हवेली के अंदर नहीं हैं।" फिर प्रतिमा को बहाना बनाना पड़ा___"सुबह ही कहीं चले गए थे। कहाॅ गए हैं इस बारे में कुछ बताया भी नहीं उन्होंने।"

"ओह आई सी।" उस आदमी ने कहा___"कोई बात नहीं भाभी जी। हम फोन पर बात कर लेंगे उनसे। अच्छा अब हम चलते हैं। हम अपने इन आदमियों कों यहीं पर छोंड़े जा रहे हैं।"
"अरे ऐसे कैसे चले जाएॅगे आप लोग?" प्रतिमा ने औपचारिकता के भाव से कहा___"अंदर आइये और कम से कम चाय या काॅफी तो पीकर ही जाइये। वरना आपके ठाकुर साहब मुझे ही डाॅटेंगे कि मैने आप लोगों को बिना चाय पानी करवाए ही जाने दिया।"

"इसकी ज़रूरत नहीं है भाभी जी।" आदमी ने हॅसते हुए कहा___"आपने कह दिया इतना ही बहुत है हमारे लिए। अच्छा अब हम चलते हैं, नमस्कार।"
"नमस्कार जी।" प्रतिमा ने भी प्रत्युत्तर में अभिवादन किया।

इसके बाद वो जितने भी साधारण कद काठी के आदमी सूट बूट पहने आए थे वो सब गाड़ियों में सवार होकर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद प्रतिमा ने बाॅकी बचे हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डर आदमियों की तरफ देखा।

"बेटा इन सबको सर्वेंट क्वार्टर में ले जाओ।" फिर प्रतिमा ने शिवा से कहा___"और इनके रहने का इंतजाम करो। तब तक मैं सविता(नौकरानी) से कह कर इन लोगों के लिए चाय पानी का उचित बंदोबस्त कराती हूॅ।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और हवेली की सीढ़ियाॅ उतर कर नीचे आ गया उन लोगों के पास।

उन सबको लेकर शिवा हवेली के पूर्व दिशा की तरफ बने सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गया। ये सर्वेंट क्वार्टर अजय सिंह ने साल भर पहले ही बनवाया था। उन लोगों के जाने के बाद प्रतिमा भी अंदर की तरफ चली गई। उसके चेहरे पर सहसा गहन चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। उसे पता था कि अजय सिंह के जो बिजनेस संबंधी दोस्त आए थे वो अजय सिंह से फोन पर ज़रूर बात करेंगे। लेकिन जब अजय सिंह का फोन नहीं लगेगा तो वो सब परेशान भी हो जाएॅगे। उस सूरत में उनका क्या रिऐक्शन होगा इसका कुछ भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

प्रतिमा को समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वो क्या करे? उसने मदद के उद्देश्य से ही अपनी इंस्पेक्टर बेटी रितू को फोन लगाया था किन्तु उसने काल को रिसीव न करके कट कर दिया था। ये प्रतिमा के लिए शायद आख़िरी सबूत था कि उसकी बेटी ने सचमुच ही अपने माॅ बाप के खिलाफ़ बगावत कर दी थी।

अंदर प्रतिमा ने सविता को उन आदमियों के लिए चाय का कह दिया और खुद आकर ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे से चिन्ता व परेशानी के भाव जा ही नहीं रहे थे। वो कुछ भी करके अजय सिंह को सीबीआई के चंगुल से बाहर निकालना चाहती थी। हलाॅकि उसे पता था कि ऐसे मामलों में अपराधी का कानून की गिरफ्त से बाहर आना बेहद मुश्किल काम होता है किन्तु इसके बावजूद प्रतिमा अजय सिंह को बाहर निकालना चाहती थी।

सहसा प्रतिमा को अपने पिता जगमोहन सिंह का ख़याल आया। प्रतिमा का बाप जगमोहन सिंह आज कल इलाहाबाद हाई कोर्ट में बतौर क्रिमिनल लायर था। ऊम्र से ज्यादा अधेड़ नहीं लगता था। कहा जाता है कि जगमोहन सिंह बहुत ही काबिल व तेज़ तर्रार वकील था। चाहे जैसा भी केस हो, मुहमाॅगी फीस मिलने पर वह अपने मुवक्किल को बाइज्ज़त बरी करा लेता था। मगर यहाॅ पर प्रतिमा के लिए सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो अपने बाप से मदद माॅगे तो माॅगे कैसे?

दरअसल, जब प्रतिमा ने अपने बाप को बताया कि वह अजय सिंह से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती है तो जगमोहन सिंह बुरी तरह भड़क गया। उसे प्यार शब्द से ही नफ़रत थी। पता नहीं ऐसा क्या था कि प्रेम प्रसंग होने पर वह आपे से बाहर हो जाता था। उसके घर में नियम कानून बड़े शख्त थे। उसकी दो ही बेटियाॅ थी। जिनमें से प्रतिमा छोटी वाली थी। जबकि पहली बेटी मुम्बई में रहती थी, जहाॅ आजकल अजय सिंह की बेटी नीलम रहती है। जगमोहन सिंह को कोई बेटा नहीं था। धन दौलत की शुरू से ही कोई कमी नहीं थी। ख़ैर, बाप के साफ इंकार कर देने पर प्रतिमा ने पहली बार अपने बाप से मुहज़ुबानी की थी और साफ शब्दों में कह दिया था कि वो शादी करेगी तो अजय सिंह से ही वरना वो कभी किसी से शादी नहीं करेगी। जगमोहन को अपनी इस बेटी की धृष्टता पर बेहद गुस्सा आया और उसने उसी वक्त कह दिया उससे कि आज के बाद वो उसके लिए मर गई है। बस प्रतिमा ने आव देखा न ताव, बाप का घर छोंड़ दिया और सीधा अजय सिंह के पास पहुॅच गई। अजय सिंह के साथ ही वह रहने लगी। इस बीच वो प्रग्नेन्ट हो गई तो आनन फानन में अजय सिंह और प्रतिमा ने आपस में कोर्ट मैरिज कर ली थी।

तब से लेकर अब तक प्रतिमा ने कभी भी अपने बाप से कोई मतलब नहीं रखा था और ना ही उसके बाप जगमोहन ने। प्रतिमा की इस बगावत से उसकी बड़ी बहन को धक्का तो ज़रूर लगा था किन्तु वो कर भी क्या सकती थी? ऐसे ही समय गुज़रता गया। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन से फोन पर ही हाल समाचार ले लिया करती थी। दोनो बहनें वर्षों से एक दूसरे से न मिली थी।

ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा इन्हीं सब यादों में खोई थी। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। माॅ का साया तो पहले ही उसके सिर से उठ गया था। दोनो बहनों में ये सबसे ज्यादा लाड प्यार में पली पढ़ी थी और शायद यही वजह थी कि जिद्दी हो गई थी। जिसका नतीजा ये हुआ था कि उसने अपने बाप के खिलाफ़ जाकर अजय सिंह से शादी कर ली थी। मगर आज के हालात बहुत और तब के हालात में बहुत फर्क़ हो गया था। आज के हालात में प्रतिमा किसी के भी सामने झुकने और किसी के भी नीचे लेटने को तैयार थी। बदले में उसे अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त से बाहर चाहिए था।

प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो दुबारा अपने बाप से बात कर सके। शादी वाली बात को तो वर्षों हो गए थे। किन्तु इन वर्षों में उसने एक बार भी अपने बाप से बात करना ज़रूरी नहीं समझा था। और आज जब बुरा वक्त आया तो उसे अपने बाप का ख़याल आया और उससे मदद माॅगने का भी। प्रतिमा को पहली बार लगा कि उसे अपने बाप से इस तरह मुहज़ुबानी नहीं करनी चाहिए थी और ना ही तैश में आकर इस तरह बाप के घर की दहलीज़ को छोंड़ देना चाहिए था। मामले को प्यार से और समझा बुझा कर भी सुलझाया जा सकता था। आज अगर ग़ौर किया जाए तो दो दो बेटियाॅ होने के बाद भी उसका बाप घर में अकेला ही था। सोचने वाली बात है कि उतने बड़े घर में उसका बाप पिछले कितने ही वर्षों से अकेला रह रहा है। क्या उसे अपने उस अकेलेपन से दुख नहीं होता होगा? क्या उसे इस बात का दुख नहीं होगा कि उसकी बेटी ने आज तक उसकी सुधि तक न ली। अपनी खुशियों को गले लगा कर अपने बाप को अकेला छोंड़ दिया। तन्हाई इंसान को जीते जी मार डालती है। मगर उसने कभी अपनी इस बेटी को फोन करके उस सबका गिला न किया था।

प्रतिमा को बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि उससे कितनी बड़ी भूल हुई है। कहते हैं कि माॅ बापप का गुस्सा या नाराज़गी जीवन भर के लिए नहीं होती। आख़िर बाप को औलाद के आगे हार जाना ही होता है। मगर यहाॅ तो जगमोहन दोनो तरफ से हारा हुआ बाप बन चुका था। प्रतिमा की ऑखों से पश्चाताप के ऑसू बह रहे थे। उसे इस बात का बखूबी एहसास था कि भले ही उसके बाप ने उसे त्याग दिया था मगर आज भी वो अपनी बेटियों के मंगलमय जीवन की कामना करता होगा। ये सब सोच सोच कर प्रतिमा को भारी दुख हो रहा था। उसे अपनी अज्ञानता और अपने छोटेपन का शिद्दत से एहसास हो रहा था मगर अब रोने से क्या हो सकता था? पच्चीस साल का वक्त थोड़ा सा नहीं होता अपने बाप से अनबन किये हुए।

प्रतिमा को लगने लगा कि ये जो कुछ भी आज उसके और उसके परिवार के साथ हो रहा है वो सब उसी का फल है जो उसने इतने वर्षों से बाप को दुखी किया हुआ है। ये सब सोच कर ही प्रतिमा को चक्कर सा आने लगा। उसने अपना सिर दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। तभी ड्राइंग रूम में शिवा दाखिल हुआ। अपनी माॅम को इस तरह पीड़ा में देख वह घबरा सा गया। तुरंत ही प्रतिमा के पास पहुॅचा वह और उसे उसके कंधों से पकड़ कर झकझोरा।

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने घबरा कर कहा___"आप ठीक तो हैं न माॅम? प्लीज़ बताइये न क्या हुआ है आपको?"
"कुछ नहीं बेटा।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"बस थोड़ा चक्कर सा आ गया था।"
"आप इतना टेंशन क्यों लेती हैं माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के चेहरे को दोनो हथेलियों में लेकर कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। डैड बहुत जल्द वापस आ जाएॅगे।"

"हाॅ बेटा।" प्रतिमा ने कहीं खोए हुए से कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। तेरे डैड जल्द ही हमारे पास वापस आ जाएॅगे।"
"आप चलिये माॅम।" शिवा ने प्रतिमा को उठाते हुए कहा___"अपने कमरे में आराम कीजिए आप और हाॅ ज्यादा सोच विचार मत किया कीजिए।"

शिवा की बात का प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया और कमरे की तरफ शिवा के साथ बढ़ गई। कमरे में बेड पर प्रतिमा को लेटा कर शिवा रसोई की तरफ बढ़ गया। रसोई में सविता चाय बनाकर केतली में डाल रही थी। ये देख कर शिवा वापस बाहर की तरफ आया और हवेली से बाहर आ गया। बाहर उसने एक आदमी को बुलाया और अंदर ले गया उसे। अंदर आकर उसने सविता से कहा कि वो चाय नास्ता काका को पकड़ा दे। सविता ने वैसा ही किया। शिवा और वो आदमी दोनो ही चाय नास्ता का सामान लिये सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गए।
Reply


Messages In This Thread
RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:01 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,464,192 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 540,203 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,217,052 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 920,466 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,631,962 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,063,373 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,921,242 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,958,763 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,993,768 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 281,359 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 5 Guest(s)