non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:00 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 50 》

अब तक,,,,,,,,

मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।

रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

उधर रितू के फार्महाउस पर!
सुबह का नास्ता पानी करने के बाद रितू बाहर की तरफ निकल गई। बाहर आकर उसने देखा कि सामने मेन गेट पर हरिया काका और शंकर काका आपस में कुछ बातें कर रहे थे। रितू उन दोनो को देखते ही उनकी तरफ बढ़ चली। कुछ ही समय में वो उन दोनो के पास पहुॅच गई। रितू को अपनी तरफ आता देख उन दोनों ने अपनी बात बंद कर दी और सम्हल कर खड़े हो गए।

"क्या हाल चाल हैं आप दोनो के काका?" रितू ने उन दोनों की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए कहा___"आप दोनों ने नास्ता पानी किया कि नहीं?"
"हम दोनों ने अभी थोड़ी देर पहले ही नास्ता पानी किया है बिटिया।" शंकर ने कहा___"बिंदिया भाभी हमारा काफी बेहतर तरीके से ख़याल रखती हैं।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है काका।" रितू ने कहा___"काकी हैं ही इतनी अच्छी कि उन्हें सबकी फिक्र रहती है।"
"हाॅ ये बात तो सच है बिटिया।" शंकर ने कहा___"हरिया बहुत किस्मत वाला है जो इसे बिंदिया भाभी जैसी जोरू मिली हैं।"

"अरे ई का कहथो रे बुड़बक?" हरिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"किस्मत वाली ता ऊ है ससुरी जो हमरे जइसन मरद मिल गवा है ऊखा। हम ता पहिले से ही किस्मत वाला हूॅ रे।"
"देखा बिटिया।" शंकर ने रितू से कहा___"ये अपने आपको जाने क्या समझता रहता है? जबकि सच्चाई तो यही है कि जबसे बिंदिया भाभी से इसका ब्याह हुआ है तब से इसके भाग्य खुल गए हैं।"

"खूब समझ रहा हूॅ रे तोहरी बातन का।" हरिया ने सिर हिलाते हुए कहा___"तू ससुरे ऊखर बहुतै बड़ाई करथै रे। तोहरे मन मा का है ई हम बहुतै अच्छी तरह से जानत हूॅ। इतना बुड़बक न हूॅ हम। पर तू ससुरे हमरी एक बात कान खोल के सुन ले, अउर ऊ या के कउनव दिन सारे हमरी मेहरारू का लइके भाग न जइहे समझा का?"

"ओए ये क्या बकवास कर रहा है तू?" शंकर ने एकदम से आवेश में आकर कहा__"ऐसा तू सोच भी कैसे सकता है मेरे बारे में? तू अच्छी तरह जानता है कि मेरे मन में ऐसी बदनीयती नहीं है। मैं तो भाभी की बहुत इज्ज़त करता हूॅ और उन्हें भाभी माॅ जैसा ही मानता हूॅ।"

"ई ता ससुरे तू मुह से बोल रहा है न।" हरिया ने कहा__"केहू के मन मा का है ई कउन जानथै भला, हाॅ?"
"तू जैसा है वैसा ही दूसरे को भी समझता है।" शंकर ने कहा___"इस लिए मुझे अपने लिए सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं है। ईश्वर जानता है कि मेरे अंदर क्या है?"

"मैं जानती हूॅ काका कि आपके मन में किसी के लिए कोई मैल नहीं है।" रितू ने कहा___"हरिया काका तो आपको बस छेड़ रहे हैं लेकिन मैं ये कह रही हूॅ आप भी शादी कर लीजिए और मेरे लिए एक अच्छी सी काकी ले आइये।"

"ये क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर हॅसा___"अब भला इस उमर में कौन लड़की मुझसे ब्याह करेगी? अब तो ये जीवन ऐसे ही कटेगा।"
"अरे अभी भी आप शादी कर सकते हैं काका।" रितू ने कहा___"और आपको करना ही पड़ेगा। जब आप शादी कर लेंगे तब हरिया काका आपको ये सब कह कर छेड़ेंगे नहीं।"

"हम ता ई ससुरे का समझाय समझाय के थक गयन बिटिया।" हरिया ने कहा___"पर ई ससुरा हमरी कउनव बात मानतै नाहीं है। कहैं का ता ई हमका आपन बहुतै बड़का पक्का यार मानथै पर ई बात भी सच हाय कि ई हमरी बात भी नाहीं सुनत है।"

"आप समझ नहीं रहे हैं काका।" रितू ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"शंकर काका को दरअसल बिंदिया काकी जैसी बीवी चाहिए। बात भी सही है काका अगर बिंदिया काकी जैसी बीवी शंकर काका को भी मिल जाए तो इनका जीवन और भी ज्यादा सॅवर जाए।"

"कारे ईहै बात हा का?" हरिया काका ने तिरछी नज़र से शंकर की तरफ देखा___"अउर अगर ईहै बात हा ता ससुरे ई बात तै हमका पहिले काहे ना बताए रहे? सरवा बेकार मा अब तक ते रॅडवा घूमत रहे। चल अउनव बात ना हा। हम तोहरे खातिर ऊ ससुरी बिंदिया जइसनै जोरू ढूॅढ़ब। हमरे इहाॅ अइसन मेहरारू केर कउनव कमी ना हा।"

"ये तो अच्छी बात है काका।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"आप जल्दी से वधू का इंतजाम कीजिए। उसके बाद चट मॅगनी पट ब्याह हो जाएगा। और हाॅ शंकर काका की शादी का सारा खर्चा मैं करूॅगी।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर काका एकदम से चौंक पड़ा__"भला मैं तुमसे कैसे खर्चा करवा सकता हूॅ? अरे तुमको तो मैं अपनी बेटी ही मानता हूॅ और बेटी से इस तरह अपने काम के लिए धन खर्चा करवाना अच्छी बात नहीं है। मुझे पाप लगेगा बिटिया।"

"आप भी कमाल करते हैं काका।" रितू ने कहा__"जीवन भर माॅ बाप अपने बच्चों के ऊपर अपनी पाई पाई खर्च करते रहते हैं तो क्या बच्चों का फर्ज़ नहीं बनता कि वो भी अपने माॅ बाप के ऊपर अपनी कमाई का पाई पाई खर्च कर दें? अगर आप मुझे अपनी बेटी मानते हैं तो मैं भी तो आपको अपने पिता जैसा ही मानती हूॅ। और ये मेरी इच्छा ही नहीं बल्कि खुशी की बात है कि मैं अपने शंकर काका की शादी में खूब पैसा खर्च करूॅ। मैने फैंसला कर लिया है, इस लिए अब आप इस बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे? वरना कभी बात नहीं करूॅगी आपसे।"

रितू की बातें सुन कर शंकर हैरत से देखता रह गया उसे। फिर सहसा जाने उसके अंदर कैसा भावनाओं का तूफान उठा कि उसकी ऑखों से झर झर करके ऑसू बह चले। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन पीड़ा और दुख के भाव उभर आए। ये देख कर रितू आगे बढ़ी और उसकी ऑखों से बह रहे ऑसुओं को अपने हाॅथ से पोंछा।

"ये क्या काका?" रितू ने कहा__"आप रों रहे हैं? क्या मुझसे कुछ ग़लती हो गई?"
"नहीं नहीं बिटिया।" शंकर एकदम से कह उठा___"तुमसे भला कोई ग़लती कैसे हो सकती है? तुम तो एक नेक दिल बच्ची हो बिटिया। आज वर्षों बाद इतनी खुशी महसूस हुई कि वो खुशी ऑसू बन कर इन ऑखों से छलक पड़ी। इस दुनियाॅ में इससे पहले बहुत दुख दर्द सहे थे मैने। मगर जबसे यहाॅ आया हूॅ तो ऐसा लगा जैसे मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरा भी कोई अपना है। जिसे मेरी फिक्र है।"

"मैं तो शुरू से ही आपको अपना ही मानती आ रही हूॅ काका।" रितू ने कहा___"मगर आप आज भी मुझे अपना नहीं मानते हैं। अगर मानते तो मेरे और हरिया काका के पूछने पर अपने बारे में वो सब कुछ बताते जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते हैं।"

"उस सबको बताने का कोई मतलब नहीं है बिटिया?" शंकर ने कहा___"अतीत किसी का भी हो वो जब भी याद आता है तो हमें दुख और उदासियाॅ ही देता है। मैं उस सबको याद नहीं करना चाहता। क्योंकि बड़ी मुश्किल से मैने खुद को इस हद तक सम्हाला है।"

"अपने अंदर के दर्द को बयाॅ कर देने से मन का बोझ काफी हल्का हो जाता है काका।" रितू ने कहा___"ये तो अच्छी बात है कि आप अपने उस दर्द से उबर कर आज सम्हल चुके हैं। लेकिन ये भी सच है कि अपने अंदर इतने सारे दुख दर्द को दबा के रखना भी अच्छी बात नहीं है। ऐसे में वो दर्द नासूर बन जाता है और हमें एक पल भी सुकून से जीने नहीं देता। इस लिए आप अपने के उस दुख दर्द को बाहर निकाल दीजिए और फिर नये सिरे से अपने जीवन की नई शुरूआत कीजिए।"

"रितू बिटिया बहतै भले की बात करथै शंकरवा।" हरिया ने कहा___"जो बीत गया हा उसे ता भूला दे मा ही भलाई हा। हम सरवा तोसे कब से रहा हूॅ के तू अपना ब्याह करके जीवन मा आगे बढ़। पर तू ससुरा हमरी सुनतै नाहीं है?"
"अब तो बिटिया ने अपना फैंसला सुना ही दिया है हरिया।" शंकर ने कहा___"और जिस अपनेपन से सुनाया है उसे अगर मैं ना मानूॅ तो फिर धिक्कार ही होगा मुझ पर। इस लिए अब मैं ज़रूर ब्याह करूॅगा यार।"

"हाॅ लेकिन उससे पहले।" रितू ने कहा___"मैं ये भी जानना चाहती हूॅ काका कि आपके साथ ऐसा क्या हो गया था जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते और ना ही अपने घर वालों से कभी कोई मतलब रखते हैं? आप हमें वो सब कुछ अभी बताएॅगे काका।"

"ठीक है बिटिया।" शंकर ने गहरी साॅस ली___"तुम अगर इतना ही ज़ोर दे रही हो तो सब कुछ बताता हूॅ तुम्हें। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाॅव महोबा का निवासी हूॅ। मैं छोटी जाति का हूॅ। मेरा बाप बल्ली रावत एक मिस्त्री था। जो मकानों में ईंटे की जोड़ाई का काम करता था। हम तीन भाई और दो बहन थे। मेरी माॅ बहुत शान्त स्वभाव की थी। अपने सभी बच्चों को वह बहुत प्यार करती थी। भाई बहनों में मैं सबसे बड़ा था। मैं माॅ पर गया था इस लिए मेरा स्वभाव भी सबके प्रति प्यार भरा ही था। उस वक्त मैं पच्चीस साल का हो गया था और अपने बापू के साथ रह कर मिस्त्रीगीरी पूरी तरह सीख चुका था। इस लिए जहाॅ भी काम मिलता मैं बापू के साथ ही रह कर उनके काम में हाॅथ बटाता था। मेरे सहयोग का असर ये हुआ की घर के आर्थिक हालात पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हो गए। हमारी जात बिरादरी के कुछ लोग मेरे बापू से अक्सर मेरा ब्याह कर देने को कहते रहते थे। पर पता नहीं बापू उन सबकी बातों को क्यों अनसुना कर देता था? इधर पास के ही एक गाॅव में हमारी ही जात बिरादरी में एक लड़की थी चंदा। जिसे मैं काफी पसंद करता था। वो भी मुझे बहुत पसंद करती थी। हमें जब भी समय मिलता हम एक दूसरे से ज़रूर मिल लिया करते थे। कहते हैं कि इश्क़ मुश्क़ कभी छुपता नहीं इस लिए इस बात का पता मेरे बापू को भी हो गया था। जिससे बापू मुझे इसके लिए डाॅट भी देता था कभी कभी। ख़ैर सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि एक दिन हर दिन की भाॅति मैं बापू के साथ काम पर गया हुआ था। गाॅव में ही काम चालू था तो दोपहर के समय सहसा मेरी बहन रीना भागते हुए आई और बताया कि अम्मा मर गई है। उसकी बात सुन कर हम दोनो बाप बेटा भौचक्के से रह गए। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि अम्मा मर गई है। रीना ने बताया कि अम्मा नहाने के लिए बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ से पानी खींच रही थी। तभी जाने कैसे उसका पाॅव फिसल गया और वो कुएॅ में गिर गई। अम्मा को तैरना नहीं आता था इस लिए वो पानी में डूब गई और मर गई। रीना ने बताया कि जब काफी देर तक अम्मा नहा कर न आई तो वह घर के पिछवाड़े पर बने कुएॅ में ये देखने गई कि अम्मा अब तक आई क्यों नहीं? लेकिन कुएॅ में अम्मा को न पा कर रीना कुएॅ के आस पास देखने लगी। फिर सहसा उसकी नज़र कुएॅ के अंदर पड़ी तो अम्मा को पानी की सतह पर औधे मुॅह लेटी पाया। रीना को समझते देर न लगी कि अम्मा मर गई है, बस ये कहानी थी अम्मा के मर जाने की। रीना की सारी बातें सुन कर हम दोनो बाप बेटा काम छोंड़ कर घर आ गए। गाॅव के कुछ लोगों की मदद से मेरे भाईयों ने अम्मा को कुएॅ से निकाल लिया था।

अम्मा के मर जाने का दुख सबसे ज्यादा मुझे था। लेकिन अब हो भी क्या सकता था। अम्मा का क्रिया कर्म किया गया और कुछ दिन में फिर से हमारी दिन चर्या पहले जैसी चलने लगी। अब घर में रोटी पानी मेरी दोनो बहनें ही बनाती थी। मेरे सभी भाई बहन बड़े हो गए थे और जवान भी। अम्मा के मर जाने का दुख मेरे अंदर बना ही रहा पर मैं किसी के सामने उस दुख को दिखाता नहीं था। कुछ दिन बाद एक बदलाव ये हुआ कि बापू अक्सर रात को देसी ठर्रा(शराब) लगा कर घर आने लगा और घर में सबको अनाप शनाप बकने लगा और गालियाॅ भी देने लगा। हम सब बापू के दारू पीने से परेशान से होने लगे। इधर एक बदलाव ये भी हुआ कि बापू मुझे काम पर लगा कर खुद चार चार घंटे के लिए गायब हो जाता। जबकि मैं सारा दिन काम में लगा रहता और फिर दिन ढले ही घर वापस आता। ऐसे ही दिन गुज़रते रहे।

ऐसे ही एक दिन मैं शाम को घर पहुॅचा। हाथ मुह धोकर खाया पिया और फिर घर के बाहर मैदान में चारपाई लगा कर उसमें लेट गया। दिन भर के काम से मैं काफी थक जाता था इस लिए लेटते ही मुझे नींद आ गई। अभी मुझे सोये हुए कुछ ही समय गुज़रा था कि सहसा किसी ने मेरी पीठ पर ज़ोर की लात मारी। जिससे मैं चारपाई के नीचें गिर गया। अचानक हुए इस हमले से पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु फिर तुरंत ही मेरे अंदर गुस्से का उबाल आ गया। मेरी नज़र मुझे लात मारने वाले पर पड़ी। देखा तो चारपाई के उस पार नशे में झूमता बापू खड़ा था।

"बापू तुमने मुझे मारा क्यों?" मैं लगभर नाराज़गी भरे भाव से पूछा___"और ये क्या तुम हर रोज़ देसी दारू चढ़ा के आ जाते हो। ये अच्छी बात नहीं है बापू।"
"बकवास ना कर समझा।" बापू नशे में झूमता हुआ गरजा___"मैं कुछ भी करू तुझे इससे क्या मतलब? मैं अपने पैसों की दारू पीता हूॅ तेरे बाप की नहीं समझा।"

"मेरे बाप तो तुम ही हो बापू।" मैने कहा___"मैं ये नहीं कहता कि तुम दारू न पियों मगर रोज रोज पीना अच्छी बात नहीं है। इससे तुम्हारी तबियत ख़राब हो जाएगी।"
"अरे वो सब छोंड़।" बापू ने हाॅथ को ऊपर से नीचे की तरफ झटकते हुए कहा___"ये बता कि तू अपनी नई नवेली अम्मा से मिला कि नहीं?"

"नई नवेली अम्मा??" मैं एकदम से चकरा गया__"ये तुम क्या बोल रहे हो बापू?"
"ठीक ही तो बोल रहा हूॅ बुड़बक।" बापू लड़खड़ा सा गया___"अरे आज मैं तुम सबके लिए एक नई अम्मा ले आया हूॅ। मैं जानता हूॅ कि अपनी अम्मा के मर जाने से तुम सब बहुत दुखी थे इस लिए मैने फिर से ब्याह कर लिया और तुम सबके लिए एक अम्मा ले आया।"

मैं बापू की बात सुन कर उछल पड़ा था। हैरत से ऑखें फाड़े नशे में झूमते बापू को देखे जा रहा था। किन्तु तभी मुझे एहसास हुआ कि लगता है बापू को दारू ज्यादा चढ़ गई है इस लिए अनाप शनाप बके जा रहा है।

"अंदर जाओ बापू।" फिर मैने कहा___"तुम्हें दारू आज ज्यादा चढ़ गई है। इस लिए अंदर जाओ और जो थोड़ा बहुत खाना खाना हो खाओ और आराम से सो जाओ।"
"तू साले मुझे बता रहा है कि मुझे चढ़ गई है?" बापू एकदम से चीख पड़ा था, बोला___"अरे इतनी सी बार बराबर दारू मुझे नहीं चढ़ती मादरचोद। मैं जो कह रहा हूॅ उसे मानता क्यों नहीं? चल आ मेरे साथ तुझे दिखाता हूॅ कि अंदर तेरी नई अम्मा है कि नहीं।"

बापू मेरा हाॅथ पकड़ कर अंदर की तरफ खींच कर ले जाने लगा। मैं चाहता तो अपना हाॅथ एक झटके में उससे छुड़ा लेता मगर मैं कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था इस लिए उसके खींचने पर उसके पीछे पीछे अंदर की तरफ खिंचता चला गया। अंदर बरामदे में मेरे सभी भाई बहन बैठे थे। घर कच्चे मकान का था। बाहर से आने पर पहले बड़ा सा बरामदा पड़ता था, उसके बाद दो कमरे थे। जिसमे एक कमरे में सामान वगैरा रखा रहता था। जबकि दूसरा कमरा बापू का था। कमरे में जो लकड़ी का दरवाजा था उसमें अंदर की तरफ कुण्डी नहीं थी।

बापू मुझे खींचते हुए उसी कमरे की तरफ बढ़ा और झटके से कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया। जबकि मैंने तुरंत ही अपना हाॅथ छुड़ा लिया था। अंदर दाखिल होते ही बापू ऊॅची आवाज़ में एक तरफ उॅगली का इशारा करते हुए बोला___"ये देख शंकर, ये है तेरी नई अम्मा। अरे देख न बेटीचोद तुझे यकीन नहीं हो रहा था न। देख ये बैठी है तेरी अम्मा चारपाई पर।"

मैंने अंदर की तरफ सिर करके चारपाई की तरफ देखा तो चौंक पड़ा। सच में अंदर रखी चारपाई पर कोई औरत बैठी थी। नई साड़ी में बड़ा सा घूॅघट किये थी वह। इस लिए मैं उसका चेहरा न देख सका। पर इतना काफी था मुझे हैरत में डालने के लिए। मैं उस औरत को देखने के बाद आश्चर्य से बापू की तरफ देखा। मुझे अपनी तरफ देखता देख बापू बड़े अजीब भाव से मुस्कुराया और फिर कमरे से बाहर बरामदे में आ गया।

"क्यों बापू?" मैने भारी आवाज़ में कहा__"क्यों किया ऐसा? हम कोई बच्चे तो नहीं थे जो हम अम्मा के बिरा जी नहीं सकते थे। तुम तो देख ही रहे हो बापू कि तुम्हारे बच्चे खुद अब ब्याह करने लायक हो गए हैं फिर खुद ब्याह करने की क्या ज़रूरत थी तुम्हें?"

"ज़रूरत थी बेटवा।" बापू ने कहा___"बल्कि बहुत ज़रूरत थी मुझे। तेरी अम्मा तो मर गई मगर मेरी जज्ञस्मानी ज़रूरतों को अब कौन पूरी करता? वैसे तेरी अम्मा के रहते हुए भी कुछ नहीं होता था। अच्छा हुआ साली मर गई। मुझ पर और मेरे लौड़े पर ज़रा सा भी तरस नहीं आता था उसे। जब भी उससे कहता कि आज बहुत दिल कर रहा है एक बार दे दो तो साली ऐसी बिदकती थी जैसे दुधारू गाय हो।"

"ये तुम क्या बकवास कर रहे हो बापू?" मैने पूरी शक्ति से चीखते हुए कहा___"शर्म आनी चाहिए तुम्हें अपने बेटे के सामने उसकी अम्मा के लिए ऐसा बोलने पर।"
"इसमें शर्म कैसी बछुवा?" बापू ढिठाई से मुस्कुराया___"जो सच बात है वही तो बोल रहा हूॅ मैं।"

"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बेहूदा बातें।" मैने गुस्से से कहा और पलट कर बाहर की तरफ अपनी चारपाई के पास आ गया। मेरा दिमाग़ बहुत ज्यादा ख़राब हो गया था। मगर ये भी सच था कि अब हो भी क्या सकता था?

मैं अपने अंदर हज़ारों तरह की बातें लिए चुपचाप चारपाई पर लेट गया। मुझे बापू पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मगर मैं कुछ कर नहीं सकता था। इस लिए अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से काबू किये हुए ऑखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा था। मगर कम्बख्त ऑखों में नींद का दूर दूर तक कोई आभास भी नहीं हो रहा था।

अभी मुझे लेटे हुए कुछ ही देर हुई थी कि तभी अंदर से किसी औरत की चीख सुनाई दी। मेरी ऑखें खुल गईं मगर मैं उठा नहीं। मैं समझ चुका था कि बापू अपनी नई नवेली जोरू के पास ही होगा और उसके साथ वही कर रहा होगा जो हर शादी शुदा मर्द औरत करते हैं शादी के बाद। इस लिए मैं चुपोआप लेटा रहा। मैं इस बात से हैरान ज़रूर हुआ कि बापू को ज़रा भी शर्म नहीं है कि घर में उसके पाॅ पाॅच जवान बच्चे मौजूद हैं और वो कमरे से क्या सुना रहा है उन्हें।

मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से मेरे कानों में औरत की चीख़ सुनाई दी साथ ही बापू की गालियाॅ भी। किन्तु इस बार मैं चीख़ सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा था। क्योंकि चीख़ में शामिल मेरा नाम था। उस आवाज़ को मैं लाखों में पहचान सकता था। ये चंदा की चीख़ थी। जी हाॅ, ये चंदा ही थी। मगर मैं चकित इस बात पर था कि वो यहाॅ कैसे? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से ज़ोरदार चीख़ मेरे कानों पर पड़ी। इस बार मुझे स्पष्ट सुनाई दिया और मुझे बिलकुल भी संदेह न हुआ। ये यकीनन चंदा ही थी, मेरी चंदा। ये जान कर कि वो चीख़ मेरी चंदा की ही है मैं एकदम से पागल सा हो गया और चारपाई से उतर कर बिजली की सी तेज़ी से अंदर की तरफ भागा। पलक झपकते ही मैं बरामदे में पहुॅच गया।

मेरी नज़र कमरे के दरवाजे के पास खड़े मेरे मॅझले भाई जगन पर पड़ी। वो अधखुले दरवाजे से कमरे के अंदर की तरफ देख रहा था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। मुझे लगा कि वो अंदर वो सब देख रहा है जो कदाचित मेरा बापू मेरी चंदा के साथ करने की कोशिश कर रहा होगा। मैं भला ये कैसे बर्दास्त कर सकता था? मैने देखा कि बरामदे के दाहिनी तरफ मेरी दोनो बहने यानी रीना तथा मीना ज़मीन पर ही एक पुराना चद्दर बिछा कर लेटी हुई थी और उनके बगल से ही मेरा छोटा भाई मदन लेटा हुआ था। बरामदे के बाईं तरफ कोने में रसोई थी।

जगन को इस तरह चोरी छुपे अंदर की तरफ देखते हुए देख कर मैं तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा और पीछे से ही उसकी शर्ट का कालर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और फिर उसे पलटा कर एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। उसको इस सबकी उम्मींद हर्गिज़ भी न थी। इधर मैं इतने पर ही न रुका था, बल्कि उसको पकड़ कर पूरी शक्ति से एक तरफ उछाल दिया। वो लड़खड़ाता हुआ दीवार से टकराया और नीचे गिर गया। तभी मेरे कानों में चंदा की चीख़ फिर से पड़ी। मेरा ध्यान उस तरफ गया तो मैं जगन की तरफ न जा कर पलटा और तेज़ी से कमरे के अंदर की तरफ दौड़ गया।

कमरे के अंदर का नज़ारा देख कर मैं गुस्से से पागल हो गया। मेरा बापू चंदा के ऊपर चढ़ा हुआ उसका ब्लाऊज फाड़ रहा था। नशे की हालत में उसे ज़रा भी होश नहीं था कि वो क्या कर रहा है? बापू के नीचे दबी चंदा बुरी तरह छटपटाए जा रही थी और चीखे जा रही थी। ये सब देख कर मैं उस तरफ बिजली की सी तेज़ी से लपका और फिर मैने बापू को पीछे से पकड़ कर पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा और फिर कमरे के फर्श पर लगभग फेंक दिया। बापू नशे में लड़खड़ाता ज़मीन पर लुढ़कता चला गया था।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी चंदा को इस तरह हाॅथ लगाने की?" मैने गुस्से से चीखते हुए झुका और बापू को दोनो हाॅथों से पकड़ कर उठा लिया___"तू इतना गिर गया है कि तुझे ये भी होश नहीं आया कि तू किसके साथ ये नीचता कर रहा है?"

"अबे छोंड़ मादरचोद।" बापू नशे में ज़ोर से चिल्लाया__"मुझे अपनी नई नवेली मेहरिया के साथ सुहागरात मना लेने दे। साला कैसा बेटा है तू कि अपने बाप को उसकी मेहरारू के पास भी नहीं जाने देता?"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:00 PM

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